"आइडियल मदर" ©डॉ कविता"किरण" माँएं.. अक्सर फैलियर क्यूँ होती हैं.... क्यूँ बच्चे तुलना करते हैं अपनी माँओं की दूस...
"आइडियल मदर"
©डॉ कविता"किरण"
माँएं..
अक्सर फैलियर क्यूँ
होती हैं....
क्यूँ बच्चे तुलना करते हैं
अपनी माँओं की
दूसरे बच्चों की माँओं के साथ..
उन्हें हमेशा दूसरों की
माँएं ही क्यूँ अच्छी और
सही लगती हैं..
दरअसल माँएं
दो प्रकार की होती हैं
एक वो माँ...
जो चौबीस घण्टे
घर में रहती है
एक "आम गृहणी" की तरह..
कभी किचन में बच्चों की
फरमाईश पर आलू के परांठे,
पिज्जा,पाव भाजी,
मूंग की दाल का
हलुवा बनाती हुई..
तो कभी टीवी देख रहे या ..
स्टडी रूम में पढ़ रहे बच्चों में
किसी को चाय का कप,
किसी को कॉफी तो
किसी के हाथ में दूध का गिलास
थमाती हुई माँ
वो माँ...
जो आधी रात में भी
बच्चों को भूख लगने पर
उन्हें गरमागरम चपाती सेंककर खिलाती है..
रसोई में आटे से सने हाथ
माथे पर पसीने की बूंदे
कपड़ों में मसालों की महक
बदन में थकन,
टूटन लिए
हड़बड़ाती हुई..
लेकिन फिर भी चेहरे से सदा
मुस्कुराती हुई माँ
यदि बच्चों के मित्र घर आ जाएं
तो उनकी फरमाईश पर
भाग भागकर
उनकी पसंद के पकवान
बनाती हुई..माँ
कभी बरतन मांजती हुई..
कभी घर-भर के कपड़े धोकर
इस्त्री करती हुई..
कभी अस्त व्यस्तता को
समेटती हुई
घर में बिखरी चीजों को
करीने से लगाती हुई..माँ
तो कभी आंगन में रंगोली
अल्पना सजाकर तुलसी क्यारे में
जल देती हुई..
मंदिर में दिया जलाती हुई..
आरती गाती हुई माँ..
कभी सर पर पल्लू डाले घर के बुज़ुर्गों की सेवा करते हुए..
घर भर के ताने सहते हुए..
बिना कोई शिकवा शिकायत किये
होंठों में सिसकी दबाए
सबका आदेश मानने को
तत्पर खड़ी माँ
तो कभी दिन भर के कामों से थककर निढाल होने के बावजूद
रात में बिस्तर पर बच्चों को
थपक-थपककर
कहानियां सुनाती हुई..माँ
.....
दूसरी तरफ़ वो माँ..
जिसे हम
"वर्किंग वुमन" कहते हैं
जो सुबह सवेरे जल्दी उठकर
घर के ज़रूरी काम निबटाकर
कुछ काम महरी के जिम्मे
तो कुछ घर के अन्य
सदस्यों के भरोसे छोड़कर...
तैयार होकर लगभग भागती हुई सी
निकल पड़ती है
अपने वर्क प्लेस की तऱफ
और
रख देती है कदम
तिलस्मी दुनिया के
एक ऐसे अथाह समुद्र में..
जहाँ उसे हर पल
सामना करना होता है
प्रिय-अप्रिय परिस्थितियों का..
करना पड़ता है संघर्ष
कई आशंकाओं से अपनी
आत्मरक्षा के लिये..
वो माँ
जो बच्चों के टिफिन में अक्सर
पूरी परांठे सब्जी नहीं रख पाती..
रख देती है टोस्ट,सैंडविच..
या कुछ और
जो ऑफिस में देरी के डर से
नहीं बना पाती अपना
लंच बॉक्स..
स्नेक्स खाकर ही चला लेती है
काम कई बार..
वो माँ जो बच्चों को
खुद नहीं पढ़ा पाती
रख देती है उनके लिए ट्यूटर इसलिए...क्योंकि
उसे पूरे करने होते हैं स्वयम
अपने बॉस द्वारा दिये गए टारगेट
वो बच्चों को लाकर पकड़ा देती है
कहानियों की किताबें इसलिए..
क्योंकि नहीं है उसके पास उनको
कहानी सुनाने का वक़्त भी...
उसे रात में भी जागकर
करना पड़ता है
कंप्यूटर पर अपना
ऑफिशियल वर्क कई बार
वो माँ..
जो बच्चों को डाँटती है अक्सर अपना बैग ,अपने शूज़, अपनी यूनिफॉर्म सही जगह पे न रखने पर..
खीझती है उनकी
अनुशासनहीनता पर
तो कभी झुंझला उठती है
उनके अस्त-व्यस्त
लाइफ स्टाइल पर या
उल्टे सीधे हेयर स्टाइल पर
जो करती है हरदम कोशिश उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की
चाहती है अपनी दिनचर्या में उनका भी सहयोग क्योंकि
वह एक साधारण गृहिणी नहीं..
एक "वर्किंग वुमन" है
"वर्किंग वुमन"..
जो दफ़्तर में वर्क लोड के कारण
पूरी तरह मानसिक तनाव से
घिरी रहती है..
जो देहरी के बाहर की दुनिया से
जूझती हुई..
दोहरे दायित्व का निर्वहन करती हुई
खुद को बेस्ट साबित करने की कोशिश में..
अपनी आन और आत्मसम्मान की रक्षा करते हुए
स्थापित करती है कई कीर्तिमान...
पाती है सम्मान.. पुरस्कार..
देती है परिवार को खुद पर
गर्व करने का अवसर...
मगर फिर भी..
कभी हासिल नहीं कर पाती
एक "अच्छी माँ" होने का मेडल..
वो माँ
जिसके भीतर की "वर्किंग वुमन"
और "आदर्श गृहिणी" के बीच
चलता रहता है
अनवरत संघर्ष ..
क्योंकि वो कभी नही बन पाती
बच्चों के लिय एक
"आइडियल मदर"
नहीं समझ पाते हैं बच्चे
ये कभी
कि
उनकी सेल्फ डिपेंड माँ
अपने खर्चे ख़ुद उठाने के सिवा
जुटाती है घर-भर के लिए
सुख सुविधाएं भी तो..
करती है हर हाल में
कंधे से कंधा मिलाकर
चलने की कोशिश..
मगर..!!!!
मगर वो बच्चे...
जिनकी माँएं शुद्ध गृहिणी होती हैं..
उन्हें अच्छी लगती है एक आधुनिक ..
इंग्लिश बोलने वाली..
सुंदर सजी धजी..कार, स्कूटी चलाती हुई कामकाजी माँ...
बच्चों को उनका स्पेस देती हुई..
राजनीति और क्रिकेट पर बहस करती हुई..
समाज सेवा करती हुई..
हक़ के लिए लड़ती हुई
एक जागरूक माँ
और साथ ही
पार्टीज़ में थिरकती हुई
चहकती हुई
हँसमुख जिंदादिल माँ
दूसरी तरफ़ वो बच्चे..
जिनकी माएँ "वर्किंग वुमन" होती हैं..
उन्हें चाहिए होती है एक ऐसी
"आदर्श घरेलू माँ"
जो अपनी खुशी और ज़रूरतों को भुलाकर
हर वक़्त बच्चों की हाजिरी में रहे..
जो खुद के बारे में नहीं
सिर्फ और सिर्फ अपने
बच्चों के बारे में सोचे..
उनकी झिड़की खाकर भी हमेशा मुस्कुराती रहे..
उफ न करे..
एक आदर्श त्याग और
ममता की प्रतिमूर्ति
एक समर्पित माँ की तरह
समझ मे नहीं आता
आख़िर बच्चों को
दूसरों की माएँ ही
क्यूँ अच्छी और
सही लगती हैं..
जबकि माँ चाहे कोई भी हो
कैसी भी हो
जो हो, जैसी भी हो
अपने बच्चों के लिए
हर हाल में होती है
सिर्फ़ और सिर्फ़
एक "माँ "
माँ
जो कभी भी
किसी भी हाल में
अपनों बच्चों पर
नहीं आने देती है कोई आंच
बनी रहती है हर संकट में
उनके लिए रक्षा कवच
कभी आँचल
तो कभी बाहों में छुपाकर
लुटाती है तो सिर्फ
वात्सल्य
माँ चाहे एक गृहिणी हो
चाहे वर्किंग वुमन
अपने बच्चों के लिए
हर हाल में होती है वो
सिर्फ़ और सिर्फ़
एक "माँ "
©डॉ कविता"किरण"
फालना'राजस्थान
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