प्रविष्टि क्रमांक - 108 ध्रुव सिंह 'एकलव्य' १. मटमैला पानी अरे सुना है ! ऊ कलुआ पंचर वाले ने भी प्रधानी के चुनाव हेतु पर्चा भरा...
प्रविष्टि क्रमांक - 108
ध्रुव सिंह 'एकलव्य'
१. मटमैला पानी
अरे सुना है ! ऊ कलुआ पंचर वाले ने भी प्रधानी के चुनाव हेतु पर्चा भरा है ! ( ठहाका मार के हँसते हुए छगन मिसिर )
रामसजीवन - अरे ! यह बात तो हमने भी सुनी है।
छगन मिसिर - हाँ...! ठीक ही है। पंचर बनाते-बनाते कहीं गाँव की इज्ज़त पर न पंचर चिपका दे !
रामसजीवन - राम... ! राम ...! राम...! अब पंचर वाले भी हमार गाँव चलाने को तैयार हैं। घनघोर कलयुग !
तभी चमन डाकिया अपनी साइकिल की घंटी बजाता हुआ उन धनाढ्यों की चौपाल पर अपनी हाज़िरी लगाने पहुँचता है।
छगन मिसिर - का हो चमन ! कइसे हो ?
चमन - सब ठीक है पंडित जी !
छगन मिसिर ( व्यंग्य कसते हुए ) - आजकल हमरी चौपाल पर तुम्हरा आना-जाना बड़ा कम हो गया है। का सारी चिट्ठी-पाती उहे कलुआ पंचर वाले की झोपड़िया में गिरावत हो का !
चमन - अरे नाही पंडित जी ! का बात करत हो !
बात को टालते हुए चमन डाकिया वहाँ से चला जाता है। जल्द ही चमन की साइकिल सड़क के किनारे एक उजाड़-सी मड़ई ( जहाँ ट्यूब के कुछ टुकड़े ,लोहे के गोलाकार बर्तन में भरा मटमैला पानी और पास में ही रखा जंग लगा हवा भरने वाला पम्प जो मड़ई के घास-फूस की दीवार के सहारे टिकाकर रखा गया था। मड़ई की छत से कुछ पुराने टायर लटक रहे थे, मानों किसी साइकिल के पहिए में लगने से पहले ही अपने अंतिम अवस्था की बची चंद घड़ियाँ गिन रहा हो ! ) के पास आकर रुकी।
मटमैले लोहे के बर्तन में रखे पानी में एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति ट्यूब के एक सिरे से दूसरे सिरे को बार-बार डुबोता और हवा के आवागमन को परखता। छेद का अनुभव होने पर ट्यूब के उस स्थान को पास के जमीन पर पड़े लकड़ी के टुकड़ों को छेद में घुसेड़ते हुए उन्हें चिन्हित करता।
चमन डाकिया - का हो कल्लु ! कैसे हो ?
कल्लु - सब ठीक बा डाकिया बाबू !
चमन डाकिया - तुम्हरे चुनाव की तैयारी कैसी चल रही है ?
कल्लु - बस चल रहा है डाकिया बाबू ! कहते हुए कल्लु मड़ई के एक कोने में रखा लकड़ी का स्टूल चमन के लिए बाहर ले आता है और चमन से बैठने का निवेदन करता है और स्वयं जाकर पानी में डूबे हुए ट्यूब को पुनः उलटने-पलटने लगता है।
चमन डाकिया - अउर ! तोहार चुनाव की तैयारी के लिए कउनो पम्पलेट-वम्पलेट छपवाया ?
कलुआ एक पल को शांत हो जाता है और उसकी निगाहें संभवतः अपने आप को उसी बर्तन में रखे मटमैले पानी में तलाशती नजर आती हैं।
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प्रविष्टि क्रमांक - 109
ध्रुव सिंह 'एकलव्य'
२. ''गिरगिट'' (लघुकथा )
लखनऊ चारबाग रेलवे स्टेशन, अपने निर्धारित समय से वाराणसी जाने वाली ट्रेन प्लेटफार्म पर आ चुकी थी। लोग चालू टिकट खरीदकर अपने स्थान को ग्रहण करने में एड़ी-चोटी का जोर लगाने में मशगूल थे।
ट्रेन छूटते-छूटते पाँव रखने की भी जगह बोगी में नहीं रह गई थी। लोग एक-दूसरे से सटे-चिपके मानों ईद और होली एक साथ मना रहे हों। तभी एक महिला बोगी की भीड़ में चीख़ पड़ी और जोर-जोर से गालियाँ देने लगी। संभवतः महिला का पैर किसी भारी-भरकम व्यक्ति के पैर के नीचे दब गया था।
महिला बड़ी देर तक बोगी की भीड़ में गालियों का फौव्वारा छोड़ती रही और लोग भी उसके श्रीमुख से निकले शब्दों को प्रवचन की भाँति ग्रहण करते रहे।
भीड़ में ही एक महानुभाव न्यायपरक बातें और ईमानदारी की पींगे भरते हुए लोगों से शांति और धैर्य रखने की अपील करते हुए नजर आ रहे थे। कुछ देर बाद लखनऊ और बनारस के बीच का स्टेशन सुल्तानपुर आ गया। बहुत से यात्री यहीं उतर गए।
अब बोगी कुछ खाली हो गई। खाली हुई सीट को हथियाने के फ़िराक में लोग एक-दूसरे के ऊपर कूद पड़े। दो व्यक्तियों के बैठने के स्थान पर पाँच लोगों का दावा !
कलह तो मचनी ही थी। कुछ देर पहले जो महानुभाव शांति और भाईचारे की बातें कर रहे थे वही सीट पर बैठने के लिए दूसरे यात्रियों की जान तक लेने पर उतारू थे।
ख़ैर ! जैसे-तैसे एडजस्टमेंट हो गया। सभी एक-दूसरे से चिपक- चिपककर बैठ गए। कुछ देर बाद वही महानुभाव अपने प्रवचन का पिटारा खोलते नजर आए जो अभी क्षणभर पहले बोगी में स्थान हेतु उन्मादी बन बैठे थे !
बात चली तो पता चला कि ये महानुभाव काशी के किसी गौरवशाली घराने से ताल्लुक़ रखते थे। प्रवचन का दौर शुरु हुआ लोग बड़ी ही श्रद्धा से उनकी आध्यात्मिक बातों को आत्मसात करने में जुट गए।
उन्हीं महानुभाव की सीट के सामने वाली सीट पर एक व्यक्ति बैठे थे जो इनकी बातों का अवलोकन बड़ी ही सूक्ष्मता से कर रहे थे। एकाएक तपाक से बोल पड़े- साहब आपका घर चौक में है। चौक में कहाँ ? महानुभाव जी ने उत्तर दिया -अरे ! वही चौक,थाने वाले मुन्नू चाय की दुकान के बगल में ( बातों पर जोर देते हुए )। अच्छा ! ( सामने वाली सीट पर बैठे व्यक्ति ने सहमति जताई )
महाशय पान खाएंगे ? ( उस व्यक्ति ने बड़े ही सम्मानपूर्वक महानुभाव जी से पूछा )
महानुभाव जी ने प्रतिक्रिया दी - अवश्य !
उस व्यक्ति ने अपने थैले से एक ताँबे का छोटा संदूक निकाला जिसमें पान के कई बंडल पहले से ही तैयारकर रखे गए थे। उस उदार व्यक्ति ने संदूक महानुभाव जी की तरफ बढ़ा दिया। महानुभाव जी के साथ-साथ औरों ने भी पान का एक-एक बीड़ा उठा लिया और मुँह में गपक गए। लगभग पूरी बोगी के लोग पान का रस दाँतों तले पीस-पीसकर लेने लगे। गाड़ी वाराणसी रेलवे स्टेशन पर पहुँच चुकी थी।
स्टेशन पर धीरे-धीरे भीड़ जुट रही थी। महानुभाव जी को होश आया तो देखा रेलवे सुरक्षा बल के जवान महानुभाव जी को घेरे खड़े थे परन्तु उनका सामान दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा था। सुरक्षा कर्मियों से पता चला कि महानुभाव जी किसी जहरखुरान दल के द्वारा छले जा चुके थे ! यह सुनते ही महानुभाव जी को संत से उन्मादी बनने में तनिक भी देर न लगी।
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प्रविष्टि क्रमांक - 110
ध्रुव सिंह 'एकलव्य'
३. नौटंकी ( लघुकथा )
वाराणसी शहर अपने अल्हड़ मस्ती और मस्तानों की एक से बढ़कर एक टोली हेतु मशहूर और बात करें लंका स्थित पनवड़िया बनारसी पानवाले के पान की दुकान की तो क्या बात ! संसद में जितने सत्र होते हैं वर्ष में उसमें सभी माननीय उपस्थित हों यह आवश्यक नहीं परन्तु पनवड़िया बनारसी के पान की दुकान पर वर्षभर सत्र का आयोजन कोई आम बात नहीं और वो भी शहरभर के धुरंधर ज्ञानी 'मनई' का जमावड़ा। पनवड़िया बनारसी और उसकी दुकान में जोर-जोर से बजता सुपरहिट भोजपुरी चलचित्रों का मनलुभावन देशी अपनत्व और कुछ पाश्चात्य की अश्लीलता से सराबोर पॉप टाइप आधुनिक संगीत। सुबह का समय पंडित फुदकू राम जी का आगमन -
पंडित फुदकू राम ( बड़े ही रौब से ऐंठते हुए )- अरे बनारसी ! थोड़ा चकाचक पान तो लगा ! पनवड़िया बनारसी पान लगाने में मस्त। अरे पंडित जी प्रणाम ! का हाल-चाल बा ? ( उधर से विद्याधर द्विवेदी बड़ी ही शालीनता से बोले। ), पंडित फुदकू राम नाक-भौं सिकोड़ते हुए प्रतिउत्तर में अपने पान के दागों से रंगे दाँत विद्याधर द्विवेदी को दिखा दिए।
विद्याधर द्विवेदी ( बड़े ही चुटीले अंदाज में )- पंडित जी कछु सुना ?
पंडित फुदकू राम ( तनिक ऐंठते हुए )- सुन ही तो रहे हैं अउर का मूँगफली थोड़े न तोड़ रहे हैं।
विद्याधर द्विवेदी पंडित फुदकू राम के इस व्यंग्यात्मक प्रतिक्रिया से अपनेआप को थोड़ा असहज महसूस करने लगे।
पंडित फुदकू राम ( थोड़ा नरम पड़ते हुए )- अब नया का हो गवा ?
विद्याधर द्विवेदी ( उत्सुकतापूर्वक )- अरे ! सबरीमला का कांड सुने की नाही ?
पंडित फुदकू राम ( कुंठा भरी प्रतिक्रिया देते हुए )- ओ का सुने ! घर-बार के कांड से फुर्सत मिले तब ना। ख़ैर छोड़िए ! क्या रखा है देश-दुनिया की खबरों में। यहाँ तो कुलहिन भ्रष्टाचारी हैं। केके देखें ? कउनो कुछ कहते भी नहीं। सभी के मुँह जो सिले हैं।
अबही हाल ही की एक घटना ले लीजिए,गाँव में शौचालय बनाने का पैसा ब्लॉक का प्रमुख अउर ग्रामप्रधान दोनों सठगठिया भाई मिलकर गपत कर गए। सरकारी कागज में शौचालय निर्मित अउरो धरती पर नदारद ! अउर तो अउर सड़क पर पुलिसवालों की दादागीरी अलगे चल रही है।
भारी वाहनों के प्रवेश हेतु वर्जित सड़क पर हमारे रक्षक खाली बीस ठो रुपल्ली खातिर रात में भारी सामान से भरे ट्रकों को बिना किसी रोक-टोक के आने-जाने की सहर्ष अनुमति प्रदान करते हैं ! अउर का देखें ? सभी तो देख ही रहे हैं परन्तु सभी ने बाबा विश्वनाथ की कछु न बोलने की कसम ले रखी है !
तभी सड़क के दूसरी ओर से जोर-जोर किसी के रोने-गिड़गिड़ाने की आवाज सुनाई पड़ने लगी। पनवड़िया बनारसी के दुकान पर खड़े सभी सज्जन इस चलचित्र को देख रहे थे जहाँ एक गरीब रिक्शावाला यह कहते हुए अपने प्राणों की भीख माँग रहा था कि साहब हमसे गलती हो गई।
रिक्शे का चेन उतर गया था इसलिए रिक्शा सड़क के किनारे लगाने में तनिक देर हो गई। परन्तु रिक्शेवाले की ये खोखली दलीलें उस ईमानदार पुलिसवाले के समक्ष बौनी साबित हो रही थीं और कानून के समुचित पालन हेतु वह लगातार उस गरीब रिक्शेवाले के ऊपर लाठियों की बौछार करता चला जा रहा था और पनवड़िया बनारसी के सभी गणमान्य ग्राहक मूकदर्शक बने यह नाटक बड़ी ही ईमानदारी और तन्मयता के साथ देख रहे थे। तभी पंडित फुदकू राम यह कहते हुए वहाँ से निकल लिए कि बड़ी देर हो रही है और इस नौटंकी का प्रसारण कोई खास बात नहीं !
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परिचय :
नाम - ध्रुव सिंह 'एकलव्य'
स्थान - वाराणसी
मेरी अबतक की उपलब्धियाँ :
शिक्षा : विज्ञान परास्नातक,अणु एवं कोशिका आनुवंशिकी विज्ञान में विशेष दक्षता।
साहित्यिक जीवन : काशीहिंदू विश्वविद्यालय में छात्र जीवन के दौरान प्रथम रचना ‘बेपरवाह क़ब्रें’ से साहित्यिक यात्रा का आरम्भ।
अबतक कई राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित।
प्रकाशित काव्य-संग्रह : २०१८ में मेरी प्रथम पुस्तक ”चीख़ती आवाज़ें” ( काव्य-संग्रह ) का प्रकाशन।
साहित्यिक गतिविधियाँ : दैनिक जागरण ‘वीथिका’ से प्रकाशन की शुरुआत
दैनिक जागरण ‘वीथिका’ : एक बूँद हूँ मैं,बस अपनी क़िस्मत समझकर ,तारे जमीं पर लाऊँगी
एस जी पी जी आई न्यूज़ लेटर लख़नऊ में प्रकाशित रचनायें : ‘जीवन भर बस यूँ ललचाये’,’बंजारों सा’
अक्षय गौरव पत्रिका में प्रकाशित रचनायें : ‘विचलित सा तूँ मन है कैसा’ ,उड़ जा रे मन दूर कहीं’,’जयकार नहीं करता’,उत्तम चरित्र ,’ज़िन्दगी फ़िरकी’ , ‘सूर्यास्त की कामना’ साहित्य कुँज : ‘जूतियाँ’, ‘विजय पताका’, ‘मुर्दे’ ,वे आ रहें हैं ,
अनहद कृति : ‘अंतिम गंतव्य बाक़ी’
अनुभव पत्रिका – अगस्त २०१७ अनुभव – अंक 11 में प्रकाशित : “वही पेड़ बिना पत्तों के”
साहित्य सुधा, लेखनी नेट ,हिंदी कुञ्ज , रचनाकार, साहित्यमंजरी, साहित्य शिल्पी एवं जख़ीरा डॉट कॉम में अन्य रचनायें प्रकाशित ।
नज़रिया नॉव में मेरी प्रथम कहानी का प्रकाशन : ”मौन विलाप” ( २०१८ ) पुरस्कृत कहानी
अन्य गतिविधियाँ : राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्ली द्वारा आयोजित विशेष कार्यशाला में रंगशाला का अनुभव एवं एक रंगकर्मी के रूप में निरन्तर अभिनय और नाट्य मंचन।
बहुत सुन्दर कहानियाँ। मिट्टी से जुडी और देसी अंदाज मन को छू लेनेवाला है। बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !नीतू जी !
हटाएंबताने के लिए हार्दिक आभार.
जवाब देंहटाएंपढने में बड़ा मज़ा आ रहा है. सबसे ज़्यादा लोकांचल की अलग-अलग बोलियों का नमकीन स्वाद सर चढ़ कर बोलता है.
नमस्ते.
नूपुर
धन्यवाद !
हटाएंवाह!! सभी कहानियाँँ एक अलग अंदाज लिए हुए , सरल भाषा शैली ,आंचलिकता का पुट आपकी कहानियों को रोचक बनाता है । माँ सरस्वती का आशीर्वाद आप पर बना रहे ,हृदयतल से यही कामना है ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शुभा जी !
हटाएंशुभकामनाएंं।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीय सुशील जी !
हटाएंतीनों लघुकथाओं में समाज में घटित हो रही घटनाओं का कथाकार ने सूक्ष्म दृष्टि से अवलोकन किया है। इन लघुकथाओं का सामाजिक सरोकारों से जुड़ा होना ही इन्हें आँचलिकता की उत्कृष्ट श्रेणी में रखता है।
जवाब देंहटाएंबधाई एवं शुभकामनाएँ।
आदरणीय रवींद्र जी लघुकथाओं की सटीक समीक्षा हेतु आपका धन्यवाद ! सादर
हटाएंतीनों कहानियां पढ़ कर बहुत अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंआपकी हर रचना एक अलग ही अंदाज लिए होती हैं
बधाई हो आपको दिनप्रतिदिन आप इसी तरह से कहानियां लिखते रहिये और हम ऐसे ही पढ़ते रहे
आदरणीया शकुंतला जी लघुकथाओं की सटीक समीक्षा हेतु आपका धन्यवाद ! सादर
हटाएंआंचलिकता का सुन्दर समावेश, बेहतरीन कहानियां 👌
जवाब देंहटाएंआप को हार्दिक शुभकामनायें
सादर
आदरणीया, लघुकथाओं की सटीक समीक्षा हेतु आपका धन्यवाद ! सादर
हटाएंआंचलिकता का सुन्दर समावेश, बेहतरीन कहानियां 👌
जवाब देंहटाएंआप को हार्दिक शुभकामनायें
सादर
वाह...माननीय ध्रुव की, चिर परिचित अंदाज़ में देखकर अच्छा लगा. तीनों कृतियां अपने आप में श्रेष्ठ हैं.
जवाब देंहटाएंसफलता हेतु शुभकामनाएं...