संस्मरणात्मक शैली पर लिखी गयी पुस्तक “डोलर-हिंडा” का अंक ११ “ग़लती कहाँ की...?” “साहब। हम ना बोलेगा, ना लिखेगा मां कसम। इस कुतिया के ताऊ ने,...
संस्मरणात्मक शैली पर लिखी गयी पुस्तक “डोलर-हिंडा” का अंक ११
“ग़लती कहाँ की...?”
“साहब। हम ना बोलेगा, ना लिखेगा मां कसम। इस कुतिया के ताऊ ने, हमें ऐसा-वैसा कहा। हज़ार बार उसके लिए लड़ा साहब, उस हेड मास्टर के बच्चे से...”
“हज़ार बार लड़े तो एक बार और सही, दे दो बयान जो देखा तुमने।”
“ऐसा नहीं हो सकता, साहब। अब कैसे कह दिया, उसने...मैंने पीटा, उसको? नालायक को पलकों पर बैठाया, स्टाफ़ से लड़ा..आख़िर, किस के ख़ातिर..? इन ठाकुरों से बांधी दुश्मनी, किसके ख़ातिर? पड़ा रहता था, एक कोने में। मुंह लटकाए बोलता था, ‘भाई शिव राम, मैं जात का जटिया और आप हो जाट। दोनों का दुश्मन, ठाकर...मगर, अब दुनिया बदल गयी साहब। साला गिंडक बोला, मेरे खिलाफ़..? अब क्या डूबेगा साला, मुझसे दोस्ती रखता तो इन ठाकर अध्यापकों की कर देता मैं हड्डी-पसली एक। जानता नहीं साला, गाँव में सभी डरते हैं मुझसे। आख़िर लोग मुझे इसी बात पर, कहते हैं टाइगर।”
“कुछ भी लिख दो, भाई। अलग-अलग, रहने से क्या होगा? सच्चाई से, मुंह मोड़ना अच्छा नहीं।”
“छोड़िये साहब, एक बार कह दिया ‘नहीं लिखूंगा’ तो नहीं लिखूंगा। और, न दूंगा बयान। कोई माई का लाल पैदा नहीं हुआ, जो मुझसे ज़बरदस्ती बयान ले। यह टाइगर बोलेगा, तो अपनी इच्छा से...किसी से दबकर नहीं।”
वहां से खालड़े [देसी पगरखी] पहने निकल पड़ा, शिव राम जाट। और, जांच अधिकारी श्याम लाल को छोड़ दिया मुंह ताकते..? कमरे की खुली खिड़की से आ रही ठंडी-ठंडी हवा, सायं-सायं करती हुई गूंज़ उठी। कानों को मफ़लर से ढ़ककर श्याम लाल ने, अपनी नाक सिनकी। फिर जेब से रुमाल बाहर निकालकर अपना नाक पोंछा। अब उनको पछतावा हुआ, ‘ऐसी कौनसी बदनसीब घड़ी आन पड़ी, जब इन्होने इस मिडल स्कूल बभाण के प्रकरण की जांच करना स्वीकार किया?’ अक्सर मौसम समाचार टी.वी. पर देखने के बाद ही, टूर पर निकलने वाले श्याम लाल इस बार भूल गये टी.वी. देखना। अब हवा की बर्फ़ानी लहर से कांप उठा उनका पूरा बदन, आख़िर उन्होंने दिमाग़ पर ज़ोर लगाया...क्यों आये, यहाँ? लिहाफ़ ओढ़कर गर्म-गर्म चाय की चुस्कियों के साथ चाय का लुत्फ़ क्यों छोड़कर, क्यों आ गए इस डेज़र्ट इलाके में..साले इस मास्टर घीसा राम के कारण? अब उनकी आँखों के आगे, उसका रोता चेहरा छा गया।
“हुज़ूर, हम अनुसूचित जाति के अध्यापक आप जैसे रहम-दिल अधिकारियों के रहम-ओ-करम से ऐसी स्कूलों में काम कर पाते हैं, जहां ठाकुर अध्यापकों का बोलबाला हो। प्लीज, मान जाइए..ले लीजिये अपने हाथ में, हमारी स्कूल का यह जांच प्रकरण। साहब, आप पर हमें पूरा भरोसा है..आप ही हमें न्याय दिलाएंगे। आपकी मेहराबाने होगी, साहब...प्लीज..!
“बगना, अक्ल का दुश्मन..रोता क्या है? देश को आज़ाद हुए हो गए, पच्चास साल से ऊपर। अब भी तू रोता है, सामंतशाही को लेकर..?”
“आप अपनी आँखों से देखेंगे तब आपको भी हो जाएगा भरोसा, आप बैठे हैं शहर में..आपको क्या पत्ता? पिछड़े गाँवों में रहकर देखते तो, जनाब आपकी आँखों पर गिरा पर्दा स्वत: हट जाता। तरसते हैं हुज़ूर, हम सभी एक साथ एक ही मटकी से पानी पीयें, टी-क्लब में सभी अध्यापक एक ही जाजम पर साथ बैठें। मगर, कहाँ है हमारे ऐसे भाग्य? एक मटकी से पानी पीना तो दूर हुज़ूर, पीने की ग्लासों पर निशान-देही के लिए निशान पेंट कर दिए गए हैं वहां..और, आपको क्या पत्ता? बच्चों के सामने हमारी इज़्ज़त का पलीता करते हैं, ये ठाकुर अध्यापक और वहां का हेड मास्टर। अरे जनाब, वे अब भी ठाकुरशाही से बोलते हैं..ओय घीसिये..ओय चुन्निए..हुज़ूर ऐसे तू-तकारा सुनने से तो, हमारा मर जाना अच्छा है। साहब मत आओ, मत करो जांच..फिर कहना मत ‘अरे घीसिये, यह तूने क्या कर डाला...?‘ हुज़ूर, इज़्ज़त सबको प्यारी है।”
“कुतिया के ताऊ, रोता क्या है? मर्द बन..साफ़ कर ये क़ीमती आंसू। इन आंसू को पीया नहीं जाता प्यारे, थोड़ा ग़म खाना पड़ता है। तेरा भी वक़्त आएगा, सब ठीक हो जाएगा।” लिहाफ़ की सलवटों को सही करके, श्याम लाल बोले।
तभी चाय के प्यालों के खनकने की आवाज़ सुनायी दी, आवाज़ सुनते ही उन्हें वापस चाय की तलब हुई। बस, झट उन्होंने आवाज़ दे दी, श्रीमतीजी को “अजी मेम साहब, डबल कप चाय लाना।”
“डबल को मारो, गोली। अब तो आपको सिंगल चाय भी नहीं मिलेगी..काम कितना पड़ा है, आपको मालुम नहीं? अब चाय-वाय, घर के काम निपटने के बाद देखी जायेगी।” कर्कश सुर में, मेम साहब बोली। मेम साहब किचन में काम कर रही थी, तभी सिंक में बरतन पटकने की आवाज़ सुनायी दी...और इधर उनकी मेम साहब, चाय के प्याले तश्तरी में रखे कमरे में दाख़िल हुई। फिर, धीमी आवाज़ में साहब से बोली “शी..शी..क्या कर रहे हैं, आप? लोगों के दुःख देखकर भी, आपका दिल नहीं पसीजा? वाह..बदन को सोलियार बनाकर, आप हो गए पाडे..! पनघट पर मोहल्ले की औरतें मुझे ताने देती है कि, मैं कैसे साहब की जोरू हूँ? कल ही रामकली कह बैठी कुए के जगत पर ‘हाय राम, कैसा मर्द पाल रखा है पप्पू की बाई तुमने? जो केवल नाम का अफ़सर है, दौरे पर जाता नहीं..और कैसे बन गया अफ़सर? एक देखो मेरे साहब भले बाबू हैं, डी.एस.ओ. दफ़्तर के..मगर महीने के बीस दिन बाहर खाना खाते हैं और जब वापस घर लौटते हैं तब उनकी जेबें भरी रहती है, कड़का-कड़क हाथी छाप नोटों से।’ हाय राम, करम फूट गए मेरे? बाबा ने जिद्दो-जिद्द में शादी कर दी आपके साथ, और कहते थे ‘रामकली, तेरे लिए मैंने वर देखा है, जो सेकेंडरी स्कूल का हेड मास्टर है। बड़ा लरनेड...’ अब क्या चाटूं, अपने इस लरनेड मर्द को? ऊपर से घर पर बैठे आये टूर को, ठुकरा रहा है। और, जाए भी क्यों? जाने से भला हो जाता, घीसा भाई का..बेचारा बड़ी आशा लेकर आया यहाँ, आख़िर मेरे गाँव का है ना? तभी तो कहती हूँ, आपको मेरे पीहर वाले पसंद कहाँ?” फिर झट उनकी मेम साहब, घीसा लाल से बोली “भाई घीसा, अब तू लौट जा गाँव। क्या कहूं, तूझे..इन तिलों में तेल नहीं। चला जा, अब तू अपना वक़्त ख़राब मत कर।” कहते-कहते श्रीमतीजी भावुक हो उठी, उनकी आँखों से गंगा-यमुना बहने लगी। इस मंज़र को देखकर बेचारा घीसा लाल अपना ग़म भूल गया, और तपाक से खड़ा होकर कहने लगा “मत रो, बहना। साहब न चले, तो क्या हो गया? रामा पीर तो हैं ही, वे भला करेंगे।”
“काठ के उल्लू, बैठ जा वापस। कमबख़्त, करता है नाटक? साले गाँव की चौपाल में नौटंकी करता हो गया माहिर। खेल समझ रखा है यहाँ, तुम दोनों ने..? ले अब सुन साले, कल तड़के उठकर आ जाऊंगा तेरी बभाण मिडल स्कूल में..समझे?” लिहाफ़ को बदन से हटाकर, श्याम लाल ने कहा। फिर चाय का प्याला तश्तरी से उठाकर, कहने लगे घीसा लाल से “साले चुपचाप चाय पी ले, तेरा मामला सुनते हुए सारी चाय ठंडी हो गयी। चाय पी ले साले, फिर फुटास की गोली लेकर चला जा अपने गाँव। समझ गया, प्यारे..अब फ़िक्र करना मत।”
“चाय को तो छोड़ो, साहब। अब तो मैं आपके इन हाथों से, दिया गया ज़हर भी पी लूंगा।” ख़ुश होकर, घीसा लाल बोला। फिर क्या? उसने चाय का प्याला उठाया, और दो-चार घूँट में ही पूरी चाय पीकर ख़ाली प्याले को तश्तरी पर रख दिया।
बस से उतर पड़े, श्याम लाल। चार क़दम चलने के बाद उन्हें एक वृद्ध सज्जन नज़र आये, उन्होंने ऊँची धोती और बागल बंदी पहनी हुई थी..और सर पर केसरिया पगड़ी, और कंधे पर लाल गमछा। हाथ में चिटिया को ठुक-ठुक बजाते हुए, वे आगे बढ़ रहे थे। श्याम लाल ने उनको पीछे से आवाज़ दी, और कहा “बा”सा, राम-रामसा।
बा’सा रुककर पीछे मुड़े. और बोले “भाया, राम राम। कियां पधारिया?”
“सरकारी मिडल स्कूल बभाण जावण सारुं...!”
अजी बेटी का बाप, आ तो राइका री ढाणी है...बभाण स्कूल तो होसी, पांच कोस आघी। जाणो हुवे तो नाक री दांडी पकड़ लो...अर, एक फलांग पाळो हाल नै पोंछ जावो सोमिया राइका रे डेरा माथै। वो थान्ने जाखोड़ा री असवारी करे नै बभाण रौ गेलो परो पकड़ा देई।” वृद्ध सज्जन बोले, और फिर चिटिया ज़मीन पर ठुक-ठुक बजाते हुए वे आगे निकल गए। अब एक फलांग पैदल चलना, श्याम लाल के लिए बहुत बड़ी समस्या..सब्जी लाने जाते, तो उनकी सीट के नीचे स्कूटर होता..और अब एक फलांग छोटी सी दूरी पैदल तय करनी, उनकी मज़बूरी बन गई। बेचारे श्याम लाल किसी तरह पहुंचे सोमिये राइका के डेरे, वहां से ऊंट पर सवार होकर बभाण गाँव की ओर चले। ऊंट की कूबड़ कभी ऊँची तो कभी नीची..हिला दिया कमबख़्त ऊंट ने, श्याम लाल के पेट का सारा पानी। जांच करने क्या जाएँ, यहाँ तो सोमिये के ऊंट ने उनके गजनान्दी पेट की पूरी जांच-पड़ताल कर डाली? हाय...उबकाई पर उबकाई ने मार डाला..अच्छी की रामा पीर। ना तो घीसा लाल आता, न भरे झाड़े में लिहाफ़ छोड़कर इस डोलर-हिंडे की सवारी करनी पड़ती...?
स्कूल के गेट के बाहर ऊंट ने ज़ोर से रम्भाई ली ‘ऊsssssss…’ इस चीख़ से रोम-रोम खड़े हो गए, श्याम लाल के। सोमिये ने ऊंट को नीचे बैठाया, फिर वह श्याम लाल से बोला “हुकूम, हमै पधारो सा।”
घड़ी में सुबह के करीब पोने दस बजे होंगे, रिसेस का वक़्त था...स्कूल के कई बच्चे मैदान में, खेल रहे थे। कुछ बच्चे प्रधानाध्यापक कक्ष के बिल्कुल सामने, ग्रुप बनाकर खेल रहे थे। खेल का नाम था, ‘खोड़िया-रावण’! गलियारा पार करके, श्याम लाल इन बच्चों के निकट से गुज़र ही रहे थे तभी एक बच्चा ज़ोर से चिल्लाया “आयग्यो भाई, आयग्यो..खोडियो रावण आयग्यो।”
“क्या sssss…ssss…?” श्याम लाल आँखें तरेरकर, ज़ोर से बोले।
बच्चे हंस पड़े। उन बच्चों का ध्यान आगंतुक श्याम लाल की ओर से हटाता हुआ उनका ग्रुप लीडर, उन बच्चों के घेरे के चारों ओर चक्कर लगाता हुआ...ज़ोर-ज़ोर से बोलने लगा “चुप रौ रे, ठोकिरा। हाळीयां खा जासी, खोड़ियो रावण..अर, थे देखता रैय जावोला बापूड़ा।” इतना कहकर, वह वापस टेर लगाता हुआ उनके चारों ओर चक्कर काटने लगा “म्हारी म्हारी हाळीयां नै दूध-दही पाऊं, खोड़ियो रावण आवै तौ उनै होठा सूं धमकाऊं।”
कमरे के बाहर प्रधानाध्यापक की नेम लगी लगी देखकर, श्याम लाल हेड मास्टर साहब के कमरे में दाख़िल हो गए। सामने ही कुर्सी पर हेड मास्टर धन्ना राम, अध्यापक कुलवंत सिंह और नरेन्द्र सिंह को बैठा पाया। धन्ना राम की बगल की कुर्सियों पर जमे, अध्यापक कुलवंत सिंह और नरेन्द्र सिंह सिगरेट फूंक रहे थे। धन्ना राम ने अपना और उन दोनों अध्यापकों का मूड बनाने के लिए, टेबल की दराज़ में हाथ डाला ...दारु की बोतल बाहर निकालने के लिए। और तभी उनसे अभिवादन करते हुए, श्याम लाल बोल उठे “जै रामजी री, हेड मास्साब।” और आकर हेड मास्टर साहब के बगल में रखी कुर्सी पर बैठ गए, श्याम लाल। श्याम लाल को सफ़ेद कुर्ता-पायजामा पहने देखकर, हेड मास्टर धन्ना राम उनको पहचान न सके। वह उनको ग्रामीण आदमी समझ बैठा, इस लंच के वक़्त इनका यहाँ आ जाना, और बिना इज़ाज़त लिए इनका कुर्सी पर बैठ जाना...अख़रने लगा। कारण यह था, वक़्त रिसेस का था..और जनाब को, यह मदिरा सेवन का वक़्त बड़ी मुश्किल से मिला था। जिसे, वह खोना नहीं चाहता था। इनको देखकर, दराज़ से बाहर आ रही दारु की बोतल अन्दर ही रह गयी।
“भईजी, इण सकूल नै आप मामाळ समझ राख्यो कांई? मरज़ी आवै ज़रै पधार जावौ, वक़्त देखो न देखो आगला रौ मूड? कीं तौ दैख्या करौ, भईसा?” नाराज़गी के साथ, धन्ना राम बोला।
“नाराज़ क्यूं हुवो हेड मास्साब? हमार टाबरां री टी.सी. कटाय नै, परो जाऊं।” श्याम लाल बोले।
“टी.सी. टी.सी, भले म्हारे कनै कीं और काम कोनी कांई?”
धन्ना राम गरज़ उठे, इधर उसके आस-पास बैठे इनके मधुशाला के साथी अध्यापक उनका साथ दे लगे। ये दोनों साथी कुलवंत सिंह और नरेन्द्र सिंह, पड़ोस गाँव के नामी ठाकुर ख़ानदान से ताल्लुक़ात रखते थे। अक्सर चुनाव में इन दोनों के बुजुर्ग ही, पञ्च-सरपंचों के चुनाव जीता करते थे। अब यहां दो-दो सिंह जिस धन्ना राम की सुरुक्षा में तैनात, वह धन्ना राम क्यों डरे किसी बाहर से आने वाले आगंतुक आदमी से..?
तभी घीसा लाल और चपरासी कुरड़ा राम, कमरे में दाख़िल हुए। इस वक़्त कुरड़ा राम के हाथ में, ओइल पेंट के निशान लगी कांच की ग्लासें थी। उन ग्लासों को टेबल पर रखता हुआ कुरड़ा राम, श्याम लाल से बोला “हुज़ूर, इन ग्लासों में मास्साब घीसा रामजी और चुन्नी लालजी को चाय पिलाई जाती है।” इतना कहकर, कुरड़ा राम श्याम लाल से आगे बोला “हुकूम, अगला हुक्म दीजिये..आगे क्या करना है?”
इतना सुनते ही, धन्ना राम के कानों की खिड़कियाँ खड़क उठी, और उसके दिमाग़ में विचार कोंधने लगा “यह आगंतुक आदमी, आम आदमी नहीं हो सकता है....बात कुछ और है।”
तभी श्याम लाल, रौबीली आवाज़ में बोल उठे “दबिस्तान-ए-शहंशाह। हम हैं, जांच अधिकारी। हम ‘घीसा लाल-पिटाई प्रकरण’ की जांच करने आये हैं, हुज़ूर का ख़ास्सा जानने के लिए हमने टी.सी. लेने का एक नाटक रचा था। नाटक से मालुम हुआ, हुज़ूर और उनके दरबारी इस दबिस्तान में करते क्या हैं? अब उठिए जनाब, और हमारे लिए एक अलग कमरे की व्यवस्था कीजिये। ताकि हम, इस प्रकरण से जुड़े हर शख़्स से अलग-अलग निष्पक्ष बयान ले सकें।” श्याम लाल ने कहा।
अब जांच अधिकारी के रूप में श्याम लाल को सामने पाकर, धन्ना राम और उनके साथियों के हाथ के तोते उड़ गए...सारा खेल इनके सामने आ गया कि, ‘लंच के वक़्त ये तीनों, क्या करते हैं?’ वाह, इस आदमी ने तो कच्चा चिट्ठा पढ़ डाला, बिना बताये..? अब घीसा लाल के दिलो-दिमाग़ में, अमिताभ बच्चन स्टाइल का फ़िल्मी डाइलोग कोंधने लगा “तुम क्या हो? हम जानते हैं..हम क्या हैं? जान लोगे..हम वह हैं, जो देखते-देखते लोगों की आँखों से सूरमा चुरा लिया करते हैं।”
“साहब, आपने काहे तक़लीफ़ उठायी? सोजत के सीनियर डिप्टी साहब, इस प्रकरण की जांच करके जा चुके हैं। और उन्होंने जांच की रिपोर्ट भी ज़िला शिक्षा अधिकारी साहब के पास पेश कर दी है, और उन्होंने अपनी जांच से यही निष्कर्ष निकाला कि, ‘यह घीसा राम इस विद्यालय के प्रशासन में, व्यवधान डाला करता है।’ अब हुज़ूर, आप ख़ुद ही समझदार हैं..की गयी जांच को, वापस क्यों करते हैं आप?” बेचारा धन्ना राम दुखी सुर में बोला।
“अजी क्या फ़र्क पड़ता है, हुज़ूर? एक दफ़े और बयान दे दीजिये। हमें भी सरकार ने, जांच करने के आदेश दिए हैं।” श्याम लाल सहजता से बोले। धन्ना राम का कथन सुनकर, श्याम लाल का रहा-सहा भ्रम भी दूर हो गया कि ‘ज़िला शिक्षा अधिकारी ने सीनियर डिप्टी को यह जांच दी नहीं, फिर काहे मन-मर्ज़ी से सीनियर डिप्टी ने यहाँ आकर जांच पूरी कर ली? और जांच की रिपोर्ट भी गोपनीय होती है, फिर धन्ना राम ने कैसे जांच के निष्कर्ष को कैसे जान लिया? आख़िर, इसकी गोपनीयता भी कोई मायना रखती है।
“साहब, चलिए..बगल का कमरा खोल दिया है। और वहां फर्नीचर और स्टेशनरी वगैरा की, पूरी व्यवस्था कर दी गयी है।” कुरड़ा राम श्याम लाल के निकट आकर, बोला। फिर क्या? श्याम लाल बगल वाले कमरे में दाख़िल हो गए, और कुरड़ा राम को कमरे के बाहर तैनात कर दिया। सबसे पहले उन्होंने, शिकायत कर्ता घीसा लाल को बयान देने कमरे में बुलाया। घीसा लाल के बयान दर्ज़ हो जाने के बाद, उन्होंने उन बच्चों को बुलाया जो इस प्रकरण में प्रत्यक्ष दर्शी गवाह थे..यानी उन बच्चो ने, घीसा लाल को मार खाते देखा था। उन बच्चों ने श्याम लाल को बताया ‘खून से भरे घीसा रामजी मास्साब, हेड मास्साब के कमरे से बाहर आकर पड़े, और उस वक़्त कमरे में हेड मास्साब, कुलवंत सिंहजी मास्साब नरेन्द्र सिंहजी मौजूद थे। शोरगुल सुनकर, गलियारे से पी.टी.आई. शिव रामजी आ रहे थे।”
जांच के क्रम में घीसा लाल द्वारा प्रस्तुत किये गए फोटो की सूक्ष्मता से जांच की, श्याम लाल ने। फोटो रंगीन थे, जिनमें घीसा लाल के मुख से खून निकल रहा था और उसके कपड़े खून से सने थे। तदन्तर, स्टाफ़ का हाज़री रजिस्टर देखा गया। कुलवंत सिंह और नरेन्द्र सिंह के हस्ताक्षर कोलम में कांट-छांट और फर्ज़ी हस्ताक्षरों का पाया जाना, धन्ना राम द्वारा आये-दिन इन अध्यापकों से फर्ज़ी हस्ताक्षर करवाकर उनसे दारु-मीट की पार्टी का चन्दा वसूल करना, इन तीनों की आदतों को दर्शाने लगा। सबूत के तौर पर नरेन्द्र सिंह के हाथ से लिखी गयी पर्ची जब्त की गयी, जिसमें दारु-मीट पार्टी के हिसाब का कच्चा चिट्ठा आ गया सामने। इस तरह विद्यालय में, दारु-मीट पार्टी आयोजित करने का एक पक्का सबूत उनके हाथ लग गया। जिसके साक्ष्य के रूप में पत्थरों पर पर लगी चूल्हे की कालिख़, और बच्चों के बयान सबूत के तौर पर पर्याप्त माने गए। अपने बयान में घीसा लाल ने बताया “इन लोगों के कारनामों का विरोध करने पर, धन्ना राम, कुलवंत सिंह, नरेन्द्र सिंह और शिव राम जाट ने मिलकर उसकी पिटाई की थी। विद्यालय में अनुसूचित जाति के अध्यापकों के साथ छूआ-छूत, दारु-मीट पार्टियां विद्यालय में आयोजित करना, हाज़री रजिस्टर में धन्ना राम द्वारा अध्यापकों से फर्ज़ी हस्ताक्षर करवाना वगैरा सभी बिन्दुओं पर ग़ौर करते हुए, श्याम लाल का दिल सिहिर उठा। आज़ देश को आज़ाद हुए पच्चास साल से ऊपर हो गए, मगर इन गाँवों का समाज नहीं बदला। सामंतशाही का भूत अभी भी पाँव पसारे बैठा है, इन गाँवों में..? शिक्षक अपना सम्मान ख़ुद खोता जा रहा है, जिस देश में शिक्षकों को मज़बूर किया जाता है कि, ‘वे अपने सम्मान के लिए, आयोजित शिक्षक दिवस समारोह की शिक्षक पताकाएँ खुद बेचे।’ काम के स्थान पर, अधिकारियों को चापलूसी ज़्यादा पसंद है, वह देश कैसे इकीसवीं सदी में है? अब तो जनाब श्याम लाल को पूरा भरोसा हो गया कि, ‘घीसा लाल सच्च कह रहा था।’
तेज़ हवा के झोंके से कमरे की खिड़कियाँ खुल गयी, तब दरवाज़े के पास स्टूल पर बैठे कुरड़ा राम ने उठकर खिड़की से बाहर झांका। उसने एक कुत्ते को ज़ोर-ज़ोर से कूकते हुए देखा, तभी उसे मालुम हुआ ‘खिड़की के नीचे बैठे इस कुत्ते को, किसी बच्चे ने पत्थर मारा है...और पत्थर लगने से वह बेचारा कुत्ता, ऊंचा मुंह करके ‘ऊsss ऊsss ऊsss...के रुदन सुर ज़ोर से निकालता हुआ रो रहा है।’ उस कुत्ते के रुदन सुर सुनकर, कुरड़ा राम ने खिड़की बंद कर डाली...और आकर, वह स्टूल पर बैठ गया। इस कुत्ते के रुदन से, श्याम लाल का रोम-रोम कांप उठा...और वे अतीत को छोड़कर, लौट पड़े वर्त्तमान में। फिर क्या? झट मफ़लर से अपने कानों को ढका, और टेबल पर बिखरे जांच के दस्तावेज़ों को इकट्ठा किया। तभी उन्हें कमरे के बाहर खड़े शिव राम जाट की तल्ख़ आवाज़ सुनायी दी, जो घीसा लाल के कंधे को झंझोड़ता हुआ उससे कह रहा था “घीसिया, बयान बदल ले। अभी भी वक़्त है, कुछ बिगड़ा नहीं है। तू जानता है, टाइगर झूठ नहीं बोलता। मां कसम, हमने हाथ नहीं उठाया.. तुम पर। साला तू तो मार खाकर पड़ा था, बेहोश.. दरवाज़े के पास। तब मैं वहां आया, तूझे होश में लाने की कोशिश कर रहा था...और तूने मुझको भी, कसूरवार ठहरा दिया..कमबख़्त।”
“टाइगर, तू मेरा कंधा छोड़ दे। मैं तेरी गीदड़ भभकी से, डरने वाला नहीं। यह ठीक है, समझौता हो सकता है। एक बात तू मेरी मान ले कि, तूझे धन्ना राम के खिलाफ़ बयान लिखकर देना है।” घीसा लाल ने बेशर्मी से, अपनी शर्त उसके सामने रख दी।
“तू और तेरा धन्ना राम गया, तेल लेने। अरे ओ काबुल के गधे, मैं क्यों झूठा बयान दूंगा? तेरी पिटाई के वक़्त, मैं वहां मौजूद भी नहीं था। कमबख़्त, मैं क्यों बीच में आऊँ तेरे और धन्ना राम के झगड़े में? कह देता हूँ, सीधी तरह से मेरा नाम हटा ले...नहीं तो...” गुस्से में, शिव राम बोला।
“क्या कर लेगा, तू?” गरज़ता हुआ, घीसा लाल बोला।
“मैं क्या करूँ..? करेगा तेरा बाप, धन्ना राम। तेरे पाली जाने के बाद, वह गया था पुलिस स्टेशन...नरेन्द्र सिंह और कुलवंत सिंह को साथ लेकर। जानता है, क्यों? रिपोर्ट लिखवाने कि, ‘तूने उस धन्ना राम पर, टेबल पर रखी घंटी से वार किया।’ अब तू सोच ले, पुलिस की मार पड़ेगी और तू काटेगा चक्कर कचहरी के। तब, तेरी तबियत ठीक होगी।” शिव राम गुस्से में, अपनी सफ़ाई देता हुआ इतना बोल गया।
“अजी टाइगर साहब, तबियत तो खराब होगी..मेरे दुश्मनों की। घंटी आयी, कहाँ से..? वह तो दो साल पहले राईट-ऑफ़ हो गयी, यानी वह विद्यालय स्टोक में भी नहीं..फिर, आयेगी कहाँ से घंटी?” कुटिल मुस्कान छोड़ता हुआ, घीसा लाल बोला।
“कानूनी तीर-तुक्के तू जानें, या जाने तेरा बाप धन्ना राम। मेरे-जैसे मस्त-मौला को मत फंसा, घीसिया। फंसाया तो तेज़ा पीर देखेगा, तुझको। मुझे मेरे तेज़ा पीर पर भरोसा है, तू मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता कमबख़्त..!” बेचारा शिव राम जाट, दुखी स्वर में बोला।
जांच करके, श्याम लाल चले गए। बार-बार उनकी आँखों के आगे, शिव राम जाट का किरदार छाने लगा। वे बेचारे, घीसा लाल और शिव राम के बीच में पक रही खिचड़ी से दाने नहीं निकाल पा रहे थे। फिर क्या? उन्हें किसी कोने में शिव राम आरोपी न लग रहा था, अत: उन्होंने अपनी रिपोर्ट के निष्कर्ष में शिव राम को छोड़कर सभी को सस्पेंड करने का सुझाव ज़िला शिक्षा अधिकारी को लिख डाला। फिर क्या? जांच की रिपोर्ट के आधार पर, एक बार ज़िला शिक्षा अधिकारी ने....आरोपियों को, निलंबित कर दिया..! मगर, इस रिपोर्ट के आधार पर ज़िला शिक्षा अधिकारी का इस निर्णय क़ायम रहना आसान नहीं। कारण यह रहा कि, “कुलवंत सिंह और नरेन्द्र सिंह के सगे-सम्बन्धी सत्ता गुट के पञ्च, सरपंच या एम.एल.ए. थे या फिर उनके ख़ास चमचे थे। अत: सियासती स्तर पर विरोध होने के बाद, ज़िला शिक्षा अधिकारी ने निलंबन खारिज़ करके इन सभी आरोपियों का दूर स्थानों पर तबादला कर दिया। कहते हैं, गेहूं के साथ, धुन भी पिसा जाता है। इन मुख्य आरोपियों के तबादलों के साथ, बेचारे शारीरिक शिक्षक शिव राम जाट का भी दूरस्थ स्थान पर तबादला कर दिया गया। सोजत चुनाव क्षेत्र में इन तबादला आदेशों ने मचा दी, ख़लबली। सत्ता दल भारतीय जनता पार्टी के ज़िला अध्यक्ष मदन लाल राठौड़ के पास, इस इलाके के पूर्व एम.एल.ए. ने शिकायत दर्ज़ कर डाली। उस शिकायत में उन्होंने लिखा कि, ‘प्रारंभिक शिक्षा महकमें ने धांधली मचा रखी है, बेचारे निर्दोष कर्मचारियों का तबादला करके उन्हें दूर स्थानों पर लगाया गया..केवल फर्ज़ी जांच के नाम। इस तबादले से, सोजत के ‘पार्टी मतदाता’ नाराज़ हो रहे हैं। आगामी चुनाव में, इसका ख़ामियाज़ा अपने दल को भुगतना पड़ सकता है।’ फिर क्या? ज़िला अध्यक्ष मदन लाल राठौड़ को, झट कार्यवाही करनी पड़ी। उन्होंने झट ज़िला शिक्षा अधिकारी को फ़ोन करके, अपने कार्यालय में बुलाया.... तब जांच फ़ाइल लेकर कपूरा राम, झट सुदर्शन के साथ उनके स्कूटर पर बैठकर कार्यालय पहुंचे। इन दोनों को आया देखकर, शिकायत कर्ता पूर्व एम.एल.ए. शेर की तरह गरज़ते हुए कहने लगे “अरे, मदनजी भाई साहब। ज़रा देखिये इनको, ये आ गए हैं...बेचारे मास्टरों पर, अन्याय व अत्याचार करने वाले गर्ग साहब। यह कुलवंत हैं ना, मनोहर सिंहजी सरपंच साहब का बेटा..और यह नरेन्द्र सिंह है, पञ्च डूंगर सिंहजी का बेटा। इन दोनों के पिताजी, हमारी पार्टी के ख़ास कार्यकर्ता है। आपसे क्या कहूं, भाई साहब? इन्होने जांच का बहाना लेकर, इन दोनों बेचारों का तबादला बहुत दूर गोरिया-भीमाणा में कर डाला? अरे हुज़ूर, यह क्या? ऐसा अन्याय, आपके राज़ में..? जब अभी हमारी सत्ता है, और हमारे आदमियों के सम्बन्धी तक़लीफ़ देख्र रहे हैं..? घोर अन्याय है, ऐसा होता रहा तो भाई साहब...हमें वोट देगा, कौन? हमारे मतदाता नाराज़ हो रहे हैं, फिर आप कहना मत कि, आपके इलाके में बी.जे.पी. को वोट कम क्यों पड़े?” बेचारे मदन लाल सुनकर हो गए, परेशान। वे जानते थे, ‘ये ठाकुर जाति के दोनों मास्टर बाज़ आते नहीं, दादागिरी करने में।’ अब सवाल पड़ा है वोटों का, अत: पूर्व एम.एल.ए. साहब को नाराज़ भी नहीं कर सकते..मदन लाल, और बिना ग़लती किये गर्ग साहब को फटकार भी पिला नहीं सकते? बेचारे दुविधा में फंसे मदन लाल ने, आख़िर मध्यम आर्ग अपना डाला। सांप भी मर जाए, और लाठी भी न टूटे। जनाब उनको समझाते हुए, कहने लगे “अजी शांत रहो, अभी देखते हैं।” इतना कहकर मदन लाल ने गर्ग साहब और सुदर्शन को, अपनी बगल वाली कुर्सी पर बैठाया। उन दोनों को, बैठने के लिए कुर्सी क्या दी..? पूर्व एम.एल.ए. साहब हो गए नाराज़, और अपने बगल में बैठे कुलवंत सिंह के पिता से कहने लगे “बोलो सरपंच साहब, यह घीसिया दिन-भर क्या करता है स्कूल में? मैं तो यही कहूंगा कि, साले को काला पानी दिखलाना होगा..कमबख़्त, सोजत क्या? सोजत के निकट आने के भी, सपने देखेगा कुतिया का ताऊ। जो उलझा है, ठाकुरों से?”
काफ़ी देर-तक, सुदर्शन बाबू उनकी बक-बक सुनते रहे...फिर मुस्कराते हुए, उन्होंने जांच पत्रावली मदन लाल के सामने रख दी। और नरेन्द्र सिंह के हाथ की लिखी दारु-मीट पार्टी के हिसाब की पर्ची पर, उंगली से संकेत कर दिया। फिर, वे बोले “भाई साहब, हम तो सोचते थे ‘आपकी पार्टी सामंतशाही का विरोध करती हुई, अनुसूचित जाति के सदस्यों के हक़ की रक्षा करेगी।’ मगर, यहाँ तो आपके एक्स एम.एल.ए. साहब क्या अर्ज़ कर रहे हैं..? मुझे तो भाई साहब, आपकी पार्टी की पालिसी समझ में न आ रही है।” पत्रावली-अवलोकन के बाद, मदन लाल एक्स एम.एल.ए. की ओर मुख करके बोले “एम.एल.ए. साहब, आप बताइये..क्या इस पर्ची पर लिखी लिखावट नरेंद्र बन्ना की है या नहीं? आप देखकर, बताएं।’ फिर मदन लाल ने, पत्रावली उनके सन्मुख रख दी। एक्स एम.एल.ए. साहब ने झट अपनी जेब से नरेन्द्र सिंह के हाथ की लिखी अर्जी बाहर निकाली, और लिखावट मिलान करने के लिए उसे अपने हाथ ली। फिर उन्होंने अर्जी में दिए गए नरेन्द्र सिंह के हस्ताक्षर और पर्ची पर अंकित नरेन्द्र सिंह के हस्ताक्षर. आपस में मिलान करने की कोशिश की। पूरी जांच करने के बाद, उन्होंने मदन लाल से कहा “मदनजी भाई साहब। हस्ताक्षर तो नरेन्द्र के ही हैं..शायद उसने भोलेपन से, किसी काग़ज़ पर हस्ताक्षर कर दिए हों...? फिर उस काग़ज़ पर किसी ने इबारत लिखकर, उस पर्ची का मिसयूज़ किया हो..उसे फंसाने के लिए?”
“चुप रहें, एम.एल.ए. साहब। यह नरेन्द्र सिंह नन्हा बच्चा नहीं है, पढ़ा-लिखा स्नातक है..अनपढ़-गंवार नहीं। आप शिकायत करने से पहले, उस शिकायत की जांच कर लिया करें। फिर, हमारे पास आया करें। आप जैसे लोगों के कारण ही, पार्टी की इमेज ख़राब होती जा रही है।” मदन लाल ने गुस्से से कहा। एक्स एम.एल.ए. साहब का चेहरा, अब देखने लायक था। अब वे मन ही मन, कुलवंत सिंह के पिता को कोसने लगे। और उधर गर्ग साहब सोचने लगे कि, ‘जो दल सत्ता पा लेता है, उसके कार्य कर्ता या उस दल के प्रतिनिधि किस तरह न्याय से मुंह मोड़कर अपने या अपने कार्यकर्ताओं के आरोपी रिश्तेदारों को बचाकर ईमानदार और सच्चे आदमियों को फंसाने के लिए ज़ाल गूंथ लिया करते हैं..? बिहार के कवि गोरख पांडे ने सच्च ही कहा है “राजा बोला रात है, रानी बोली रात है। मंत्री बोला रात है, संतरी बोला रात है। ये सुबह-सुबह की बात है।”....’
“भाई साहब चलें, आपका हुक्म हो तो..” गर्ग साहब कुर्सी से उठकर, बोले। फिर वे उनकी इज़ाज़त लेकर, सुदर्शन के साथ रुख़्सत हो गए। बुजुर्ग कहते हैं, “पैसों और एप्रोच के कारण सरकारी काम सहजता से हो जाते हैं।” बस, यही हाल रहा इस प्रकरण का। कुलवंत सिंह और नरेन्द्र सिंह ने, येन-केन किसी तरीके से अपना तबादला अपने मूल निवास-स्थल के पास करवा डाला। इस तरह उनका बभाण गाँव छूट गया, एक तरह से देखा जाय तो यह जांच उनके लिए दंड नहीं पुरस्कार ही साबित हुई। मगर, धन्ना राम के पास कोई एप्रोच न होने से उसका तबादला ऐसे गाँव में हुआ, जहां हिस्ट्री शीटर अध्यापकों को ही लगाया जाता था। वहां धन्ना राम के लिए हेड मास्टरी करनी एक टेडी खीर ही थी। अब धन्ना राम की दबंगगिरी, इतिहास के पन्नों में दब चुकी थी।
कहते हैं, ईश्वर सब-कुछ देखता है..उसके घर देर है, मगर अंधेर नहीं। एक दिन न जाने वह अपनी आदतों से बाज़ आया नहीं, और दारु के लिए इन शैतान अध्यापकों से चन्दा वसूल करने की कोशिश कर डाली। जिसका परिणाम यह हुआ, स्कूल से लौटते वक़्त गाँव वालों ने धन्ना राम को पकड़कर ऐसा धोया, बेचारे भूल गए अपनी पूरी दबंगगिरी। न मालुम किन अध्यापकों ने गाँव में जाकर गाँव वालों को, धन्ना राम के खिलाफ़ अनाप-शनाप भड़काया होगा? फिर क्या? वह रोता हुआ ज़िला शिक्षा अधिकारी के दफ़्तर में आया, और वहां सिसकता हुआ बाबूओं को अपनी राम कहानी सुना डाली। उसकी राम कहानी सुनकर, पदम सिंह से बिना बोले रहा नहीं गया। वह बोल उठा “अब काहे का रोना, घीसा राम को छठी का दूध पिलाने वाले हेड मास्टर साहब?” उसके व्यंग बाण से आहत होकर धन्ना राम की ऐसी स्थिति बन गयी, जैसे उसे काटें तो उसमें खून नहीं।
ईश्वर की लीला निराली है। बेचारे निर्दोष शिव राम जाट को, कोई उपचार नहीं मिला। बेचारे को लगाया, बहुत दूर...! फिर क्या? वापस अपने निवास-स्थान के निकट तबादला करवाने की, उसने भरसक कोशिश की..मगर उस बेचारे का तबादला वापस अपने गाँव के निकट हो न सका। हाय री उसकी क़िस्मत, उसके बहुत प्रार्थना करने के बाद भी अधिकारियों के सर पर जूं न रेंगी। आख़िर, बेचारे ग़रीब शिव राम का तबादला उसके गाँव के निकट न हो सका। ठाकुर और जटिया जैसे दो हाथियों के दंगल में फंसा बेचारा ईमानदार ग़रीब शारीरिक शिक्षक, बिना पैसे और बिना सियासती एप्रोच अपना तबादला वापस अपने गाँव के नज़दीक न करवा सका। वह कहाँ, और कहाँ उसका परिवार...? भाग्य की विडम्बना, देखिये एक दिन .. भारी बरसात के कारण उसके गाँव में बाढ़ आ गयी, और उसका परिवार उस बाढ़ की चपेट में आ गया। उसका परिवार, गाँव में आयी बाढ़ में बह गया..और सदा के लिए, मौत की गोद में सो गया। अकेला रह गया, शिव राम जाट। परिवार चला गया..अब वह किसके लिए कोशिश करे, तबादले की? बस, उसने तबादले के प्रयास को दी दी, तिजांजलि। समझ में नहीं आ रहा था, उसे..आख़िर, उसने ग़लती कहाँ की? क्या वह, वास्तव में दोषी था?
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(क्रमशः अगले भागों में जारी...)
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