दिनेश चन्द्र पुरोहित इसमें कोई शक नहीं कि, पुराने ज़माने में हर चीज़ उम्दा हुआ करती थी। चने से लेकर घी तक की याद को हमारे बुजुर्ग आह...
दिनेश चन्द्र पुरोहित
इसमें कोई शक नहीं कि, पुराने ज़माने में हर चीज़ उम्दा हुआ करती थी। चने से लेकर घी तक की याद को हमारे बुजुर्ग आहे भर-भर के उन्हें ताज़ी करते हैं, हम तो बस इतना कह सकते हैं कि “हाय, हम अस्सी साल पहले क्यों नहीं पैदा हुए...?”
उन दिनों को याद करते, प्रराम्भिक शिक्षा दफ़्तर के विधि शाखा के चेंबर में चर्चा छिड़ गयी। बाबू सुदर्शन की नज़र बाबू गरज़न सिंह के खिसियाये चेहरे पर जा गिरी, बात यह हुई कि ‘इनके मुख़्बिर ने दूर की कोड़ी पेश करते हुए यह कह डाला..कि, मेगदड़ा मिडल स्कूल के शारीरिक शिक्षक चुन्नी लाल ने, गाँव के सरपंच साहब के लाडके शरारती पोते को एक चपत लगा दी..जिससे गाँव का माहौल ख़राब होने लगा है। बस उस मुख़्बिर ने आगे यह भी कह दिया उनको, ताल ठोककर “उस्ताद उठा लो फ़ायदा, इस चुन्नी लाल का तबादला करके..बस इसके स्थान पर किसी ज़रूरतमंद शारीरिक शिक्षक को पदास्थापित करके, फ़ायदा उठाया जा सकता है।” बस यह ख़ुश-ख़बरी सुनकर जनाब इतने ख़ुश हुए कि जनाब के बदन में इतना ज़ोश भर उठा, बस उनकी कुर्सी गिरी नहीं..मगर, औंधी ज़रूर हो गयी। अब उनके लिए, लंच टाइम होने का इंतिज़ार करना हो गया मुश्किल..! बस, फ़टाफ़ट उन्होंने अपने मुख़्बिर को डी.ई.ओ.सेकेंडरी दफ़्तर भेजकर शिकायत कर्ता पैदा करने की तैयारी पूरी कर डाली। इधर घड़ी ने दोपहर के डेड बजने का समय बताया, और उधर बाबू गरज़न सिंह ने अपनी सीट छोड़ी.. दफ़्तर ‘ज़िला शिक्षा अधिकारी [माध्यमिक] पाली’ जाने के लिए। उधर बाबू सुदर्शन को भी इसी दफ़्तर में जाना था, उस बाबू भाग चंद को छात्रवृति का काम सिखाने के लिए।
इधर हवाई बिल्डिंग से नीचे उतरकर सुदर्शन ने जैसे ही स्कूटर स्टार्ट किया, और बाबू गरज़न सिंह लिफ्ट लेने के लिए वहां प्रकट हो गए। और उन्होंने सुदर्शन से कहा “मेरा भी वहां काम है।” इतना कहकर, वे झट स्कूटर की पिछली सीट पर बैठ गए।
विद्यालयों में अनुशासन की लहर फैलाने के लिए संस्था, विधि और रोकड़ शाखा की तीनों फीतियों से बाबू गरज़न सिंह को साक्षात ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शक्ति का आभास हुआ। यह मक़बूले आम बात है ‘रोकड़ शाखा से वेतन या अन्य भुगतान न मिलने पर अध्यापक ज़रूर तिलमिलायेगा, व वीर रस या रोद्र रस ओत-प्रोत होकर वह ज़रूर आचरण नियमों को तोड़ेगा। इसके बाद नियम टूटने से, विधि शाखा के जांच रुपी फैलाए गए ज़ाल में वह ज़रूर आकर फंसेगा। तब उसके छटपटाने से उसे मुक्ति दिलायेगी, संस्थापन शाखा..उसका दूरस्थ स्थान पर तबादला करके। बस, फिर क्या ? हमारे एक्सपर्ट बाबू गरज़न सिंह ने झट, मेगदड़ा मिडल स्कूल में शारीरिक शिक्षक की सीट ख़ाली करवाने का चक्रव्यू रच डाला। जैसे जनरल नियांजी को फांसने के लिए, जनरल मानक शाह ने कभी ज़ाल फेंका था।
“पकड़ ढीली मत रखना, भूरे सिंह। पकड़ ढीली रखी तो सोच लेना, लेने के देने पड़ जायेंगे।”
डी.ई.ओ. [सेकेंडरी] दफ़्तर के बाहर गेट के पास प्रतीक्षारत खड़े भूरे सिंह से बोले, बाबू गरज़न सिंह। भूरे सिंह बभाण मिडल स्कूल के शारीरिक शिक्षक करम सिंह के ठहरे, भतीजे। जनाब ने अभी-अभी, अपने चाचा का तबादला बभाण मिडल स्कूल से मेगदड़ा मिडल स्कूल में करवाने का बीड़ा उठाया था।
“ठीक है, भूरे सिंह। तुम अभिनय ऐसा करना, सुदर्शन के सामने कि..उनको ऐसा लगे कि, तू सच्च बोल रहा है प्यारे। अब तू यहीं खड़ा रह, मैं बाबू सुदर्शन को तेरे पास भेजता हूँ..उनमें अनुशासन का रस भरकर।” इतना कहकर, बाबू गरज़न सिंह दफ़्तर के अन्दर दाख़िल हो गए।
थोड़ी देर बाद बाबू सुदर्शन दफ़्तर से बाहर आये, बस फिर क्या ? भूरे सिंह को तो उनका ही इंतिज़ार था, झट जाकर भूरे सिंह ने शिकायत पत्र उनको थमा दिया। शिकायत पत्र पढ़कर, बाबू सुदर्शन उखड़ते हुए बोले “क्या बकवास है ? सेन्स ऑफ़ नेबर हुड का इस्तेमाल करो भय्या, कभी अध्यापक इतना गिर सकता है ? शिकायत लाने के पहले, आप शिकायत के तथ्यों की जांच कर लिया करें।”
“हाँ हुज़ूर, पूरी जांच कर ली..लोगों ने आँखों से देखा है। यह मास्टर बच्चों को पढ़ाने के बहाने अपने घर बुलाता है, फिर कमरे का कूठा लगाकर हो जाता है चालू।” भूरे सिंह बोला।
“क्या सबूत है, तुम्हारे पास..वह मास्टर अनैतिक कार्य करता है ?” बाबू सुदर्शन आँखें तरेरते हुए, बोले।
“हजूर, मालिश करवाता है, यह लीजिये इस कागज़ में बच्चों ने लिखा है..अब आप पढ़ लीजिये। और कर लीजिएगा, दूध का दूध और पानी का पानी। जनाब, तालाब में एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है। आप ही बताये, ऐसा-वैसा होना गाँव वाले कैसे करेंगे बर्दाश्त ? गाँव का माहौल बिगड़ रहा है, जनाब फिर आप यह मत कहना कि गाँव वालों ने इस शारीरिक शिक्षक पर कोई फौज़दारी कर डाली। हुज़ूर मामला ज़रा नाज़ुक है, अभी आपके साहब इस बदमाश का तबादला करके इस स्थिति को संभाल सकते हैं।”
बाबू सुदर्शन ने शिकायती-पत्र को दो-तीन बार पढ़ा, मगर उनको किसी भी तरह मास्टरजी पर लगाए गए आरोप सही नहीं लग रहे थे..बस उनका दिल एक ही बात पर ज़ोर दे रहा था कि, ‘एक अध्यापक अच्छे चरित्र का ज्वलंत उदाहरण होता है।’ तभी उनको बाबू नारायण सिंह की कही बात, उन्हें याद आ गयी “सब धुनहे-जुलाहों को मिल गए हैं, मेडल..और तुम बैगर सूंड के हाथी की तरह, इधर-उधर घूमते रह गए। जानते हो, साला गरज़न १५ अगस्त को मार गया, मेडल ? कान खोलकर सुन लो, इस साल तुम्हें मेडल हथियाना ही होगा। यह कैसे हो सकता है...ज्यादा काम करो तुम, मेडल और कोई मारे..?”
अब इस सीरियस प्रकरण की जांच अवश्य होगी..सूक्षमता से सारे जासूसी सूत्रों को निचोड़कर, संस्थापन शाखा को परोसनी होगी थाली तबादले की.., फिर शिक्षा क्षेत्र में फैलेगा, आंतक। स्कूलों में लहरा जायेगी, अनुशासन की लहर। भगवान ने चाहा तो, मेडल रुपी वेतरणी सहजता से हो जायेगी पार।
“साहब, यह तो शर्मनाक प्रकरण है..ऐसे शिक्षकों को, विभाग में रखना ही कलंक है। मगर, करें क्या हुज़ूर ? तबादला के अलावा कोई चारा नहीं...इधर की गन्दगी उधर डालनी, और उधर की गन्दगी इधर डालनी।” ज़िला शिक्षा अधिकारी [सेकंड्री] दफ़्तर से आकर, सुदर्शन ने मेगदड़ा मिडल स्कूल शारीरिक शिक्षक चुन्नी लाल के ख़िलाफ़ लिखा गया शिकायत-पत्र अवर उप ज़िला शिक्षा अधिकारी जनाब सुलतान सिंह मनड़ा के सामने प्रस्तुत कर दिया। ज़िला शिक्षा अधिकारी कपूरा राम गर्ग ने इनके तुजुर्बे को मानकर, इनको ‘विधि और जांच शाखा का अधिकारी’ मनोनीत किया था। सच्च यही था कि, जनाब को विधि एवं जांच प्रकरण हेंडल करने का काफ़ी तुजुर्बा था। यहाँ आने के पहले, मनड़ा साहब किसी पंचायत समिति में विकास अधिकारी के रूप में काम करते थे। वहां इनके पास कई गबन, घोटाले के प्रकरण आते रहते थे। इनकी एक ख़ासियत यह थी कि, ‘ये आली जनाब घोटालों के सूत्रधार का इतिहास, चित्रगुप्त की तरह काग़ज़ सूंघकर पत्ता लगा लेते।’ यह इनकी अनोखी अदा थी।
भूरे सिंह को तो, बस एक ही बात घर कर गयी कि ‘किसी तरह चच्चा जान का तबादला मेगदड़ा मिडल स्कूल में करवाना ही है, और उसके लिए चुन्नी लाल को वैधानिक-ग़ैर वैधानिक किसी तरीक़े से हटाकर चच्चा जान को मेगदड़ा मिडल स्कूल में लाना ही है।’ इस तरह अपनी बात मनवाने के लिए, जनाब को बेलने पड़े पापड़। बाबू गरज़न सिंह की ब्रेन-वेव से पहला मुख्बिरी का काम कर डाला, अब मुआइना करके दांतों की किटकिटाहट को मिटाना ज़रूरी था..यह सोचकर, मनड़ा साहब को नमस्कार करके कहने लगे “हुज़ूर नमस्कार। इस बन्दे को, सभी ठाकुर भूरे सिंह कहते हैं। ग्रामीण युवा मोर्चा का, यह बन्दा अध्यक्ष है।”
“फ़रमाइए, ठाकुर साहब। कैसे आना हुआ, आपका ?” मनड़ा साहब ने, अपने होंठों पर मुस्कान बिखेरते हुए कहा।
“क्या कहें, हुकूम ? आज़कल हमारी मेगदड़ा गाँव की जनता परेशान है, उनके बच्चे सुरुक्षित नहीं है। चारों तरफ़ इस चुन्नी लाल पी.टी.आई. के विरोध में ज़हरीली हवा फ़ैल रही है, हुज़ूर मशाल लेकर ढूंढ लें आपको ऐसा बदमाश चरित्रहीन शारीरिक शिक्षक कहीं नहीं मिलेगा। अगर इस चुन्नी लाल जैसा पाज़ी पी.टी.आई. आपको और कहीं दिखाई दे जाय तो, मैं अपनी मूंछ कटाकर आपकी हथेली पर रख दूंगा। गाँव वालों ने इस कमबख़्त के कारनामों की शिकायत की है, उसी शिकायत को मैं लेकर आया हूँ। बस, मालिक आप तो इसे काला पानी दिखला दें। तब मानूंगा मैं, कि आप एक सक्षम जांच अधिकारी हैं।” बिना सोचे-समझे भूरे सिंह ने अपने दिल की भड़ास, मनड़ा साहब के सामने रख दी।
“जांच कर देगे, ठाकुर साहब। उतावली काहे की ? शिकायत तो आज़ आयी है, जांच में एक माह लग जाएगा..फिर देखेंगे, मास्टरजी का क्या करना है ?” मुस्कराते हुए, मनड़ा साहब बोले।
“हुज़ूर, तब तो गज़ब हो जाएगा..तबादलों पर बेन लग जाएगा, फिर हमारा यहाँ आना व्यर्थ..?” रुआंसा होकर, भूरे सिंह बोला। सुनकर, मनड़ा साहब मन ही मन हंसने लगे..उस बेचारे की नादानी पर। बेचारे की दिल-ए-तमन्ना, उनके सामने ज़ाहिर हो गयी। भूरे सिंह का बाबू गरज़न सिंह के आस-पास डोलना, फिर उनके पास आकर चुन्नी लाल को काला पानी दिखलाने की सिफ़ारिश करना...इन सबके पीछे, किसकी भूमिका हो सकती है...? उन्होंने अपनी बूढ़ी आँखों से पढ़ ली।
शिक्षा विभाग में संस्थापन शाखा का रुतबा वह था, जो इंद्र का स्वर्ग में होता है। गरज़नजी घागर में सागर थे, एलिमेंटरी दफ़्तर के। वे चाहते थे, दफ़्तर की तीनों शक्तियां संस्थापन, विधि और रोकड़ एक हो जायें...जैसे तीनों जिस्म पर, एक रूह। ताकि उनके करम से सच्चे और झूठे प्रकरण आते रहें, और उनकी रोज़ ईद मनती रहे। इस दफ़े उनको ट्रांसफर सीज़न में पिटे हुए मुरीदों की छंटनी करनी पड़ी, गत वर्ष इन नामाकूलों की तनिक लापरवाही से अख़बारों की सुर्खियाँ ख़ूब रंगी गयी थी। क्या करते, बेचारे बाबू गरज़न सिंह ...? अध्यापकों के तबादलों के नित नए घोटालों की जानकारी, आम हो गयी। कई मास्टरों के तबादले दो-दो स्कूलों में कर दिए गए, समस्या आ गयी बेचारे कहाँ ज्वाइन करें..? इससे कोई सरोकार नहीं, गरज़नजी को। उन्होंने अपनी सफ़ाई में कह डाला “वाह, भाई वाह। सालों को दो-दो मौक़े मिले हैं, ज्वाइन करने के...मगर अहसानमंद रहने की जगह, करते जा रहे हैं अख़बार बाजी ? मैं जानता नहीं था, ये लोग इतने कृतध्न निकलेंगे..? ज़माना नहीं रहा, भलाई करने का।” तब से गरज़न बाबू हो गए, सतर्क। अब वे उनका सीधा तबादला न करके, उनको जांच का रास्ता दिखलाने लगे। जांच के माध्यम से तबादला रूपी वेतरणी पार करने का मंसूबा ही, उनको उचित लगने लगा। अपयश आये तो, जांच शाखा पर मंड दो और रबड़ी-मलाई ख़ुद चाट जाओ।
यही कारण रहा, संस्थापन-ए-आज़म ने भूरे सिंह को सलाह दे डाली “तुम्हारे चच्चा जान के लिए मेगदड़ा स्कूल का स्थान केवल जांच से ही ख़ाली हो सकता है, आप ऐसा कीजिये..आप दो-चार गुमनाम ख़त डलवा दीजिये, डी.ई.ओ. के नाम। उन ख़तों में लिखा हो कि, ‘चुन्नी लाल के कारनामों के कारण गाँव का वातावरण दूषित हो रहा है, स्कूल में अंधेर मची हुई है।’ ख़तों पर शिकायत कर्ताओं के ज़ाली नाम-पत्ता, और ज़ाली हस्ताक्षर करवाकर, एक प्रति बाबू सुदर्शन को दे दीजिये। जो जोश में आकर फ़ाइल को पाँव लगा देंगे, बाकी उनको उकसाने का काम मुझ पर छोड़ दो।”
मनड़ा साहब से मिलने के बाद, भूरे सिंह चला गया बाबू गरज़न सिंह के पास। और आते ही, गरज़न बाबू से कहने लगा “आ गया, गरज़नजी। मनड़ा साहब को, राई के पहाड़ पर चढ़ाकर।”
सुनकर, बाबू गरज़न सिंह ने अपना सर पीट लिया। फिर, वे कहने लगे “अक्ल के दुश्मन। तू तो अक्ल के पीछे, लट्ठ लेकर भाग रहा था नामाकूल ? देख उधर, मनड़ा साहब तूझे ही टाम्प रहे हैं। उनको संदेह हो गया है कि, तू हमसे मिला हुआ है। अब उनका यह संदेह, कभी मिटने वाला नहीं। राई के पहाड़ के ऊपर उनको नहीं, मुझ बदनसीब को चढ़ा दिया तूने।”
अब क्या ? जो होना था, वह हो गया...काठ की हंडिया एक दफ़े ही चढ़ती है, चूल्हे पर। यह एलिमेंटरी दफ़्तर का होल है, जहां सबकी निग़ाहें एक-दूसरे पर टिकी रहती थी। मक़बूले आम बात है ‘आली जनाब सुलतान सिंह मनड़ा साहब का, दफ़्तर में क्या काम ? या तो, पास बैठे अवर उप ज़िला शिक्षा अधिकारियों या वरिष्ठ उप ज़िला शिक्षा अधिकारियों से हफ्वात हांकना। या फिर, होल में बैठे इन बाबूओं के पारस्परिक-वार्तालाप पर अपने कान दिए रखना। यहाँ बैठने का मूड न हो तो फेक्टरी चले जाना, जहां उन्होंने किसी बनिए के साथ साझेदारी में कपड़े रंगने का धंधा खोल रखा था।
यानी अब-तक वे बैठे-बैठे, अपने दिव्य कानों से बाबू गरज़ सिंह और भूरे सिंह के पारस्परिक-वार्तालाप को ध्यान से सुन चुके थे। पूरी वार्ता सुनने के बाद, वे अपनी सीट से उठे। उनके लबों पर छाई रहस्यीमयी मुस्कान को देखकर, बाबू गरज़न सिंह सकपका गए। आख़िर हिम्मत बटोरकर, उनसे पूछ बैठे “कहाँ चल दिए, साहब ? “उनको शत प्रतिशत संदेह हो गया कि, इस बुढ़ऊ ने अपना भेजा काम में लेना चालू कर दिया है।
“ठोकिरा, जावां कठे ? एक ही ठौड़.....नाड़ो खोल... “सुलतान सिंह मनड़ा बोल उठे। सुनकर, घबरा गए बाबू गरज़न सिंह। बुढ़ऊ को, कौनसी तरंग आ गयी..?
“...पोथी रो, ठोकिरा देखे कांई ? जांच नहीं करावणी..?” इतना कहकर, उन्होंने युरीनल की तरफ़ अपने क़दम बढ़ा दिए।
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(क्रमशः अगले अंकों में जारी...)
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पाठकों।
इस अंक को पढ़ने के बाद अब आपको मालुम हुआ होगा कि, ‘संस्थापन शाखा में किस तरह अध्यापकों की फ़र्जी शिकायत के ज़रिये, तबादला करवाने का षडयंत्र रचा जाता है ? जांच अधिकारी को भावना के प्रवाह में लाकर, बेचारे बेगुनाह अध्यापकों को जांच में दोषी बनाया जाता है। दोष सिद्ध हो जाने के बाद, संस्थापन शाखा उन अध्यापकों का अन्यंत्र तबादला कर देती है और उन अध्यापकों के ख़ाली हुए रिक्त पदों पर अपने वांछित अध्यापकों को लगा देती है।’ मगर जहां सुलतान सिंहजी मनड़ा जैसे अनुभवी विधि अधिकारी विधि शाखा में मौजूद होते हैं, वहां ऐसे संस्थापन प्रभारियों के मंसूबे पूरे नहीं होते। यह अंक ११ “बुढ़ऊ” आपको बहुत पसंद आया होगा, अब आपके सामने पुस्तक “डोलर-हिंडा” का अंक १२ “पहला नशा” प्रस्तुत किया जाएगा। आशा है, आप इस अंक १२ का बेसब्री से इन्तिज़ार करेंगे।
आपके ख़तों की प्रतीक्षा में
दिनेश चन्द्र पुरोहित [लेखक - पुस्तक ‘डोलर-हिंडा’]
ई मेल – dineshchandrapurohit2@gmail.com
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