संस्मरणात्मक शैली पर लिखी गयी पुस्तक “डोलर हिंडा” का अंक ६ “लखटकिया” لکھتکیہ लेखक दिनेश चन्द्र पुरोहित

SHARE:

पुस्तक “डोलर हिंडा” का अंक ६ “लखटकिया” لکھتکیہ   लेखक दिनेश चन्द्र पुरोहित इस ख़िलकत में एक ऐसा पेशा है, जिसमें अपने पास से कुछ लागत नहीं ल...

पुस्तक “डोलर हिंडा” का अंक ६ “लखटकिया” لکھتکیہ

 clip_image002

लेखक दिनेश चन्द्र पुरोहित

इस ख़िलकत में एक ऐसा पेशा है, जिसमें अपने पास से कुछ लागत नहीं लगानी पड़ती...वह है, “नेतागिरी”। मोहन लाल ज़मादार प्राय: भगवान से प्रार्थना किया करता था कि, सब-कुछ हो जाय। भले ज़िला शिक्षा अधिकारी बदल जाय, मगर आनंद कुमारजी कार्यालय सहायक का रुतबा कम न हो। क्योंकि, इस मोहने की सारी शक्ति अंततोगत्वा आनंद कुमार नाम के खूंटे से बंधी थी। वह अक्सर सोचा करता था, पड़ोस में आये “सेल-टैक्स विभाग” का चपरासी हिरदे हवेली बनाकर उसमें रहने लगा। उसके देखते ही देखते उस दफ़्तर के चित्रगुप्तों ने, आलिशान बिल्डिंगें खड़ी कर दी। अनगिनत भूखंड ख़रीद डाले। अजी बड़े-बड़े नेता शिक्षण दिवस पर भाषण झाड़ जाते हैं कि, ‘उनके राज में रिश्वत, करप्शन कहीं नहीं है। और ऊपर से छाती ठोककर यह भी कह देंगे कि, अगर कोई हो तो उनके समक्ष सबूत पेश किया जाए। सबूत सिद्ध होने पर, हम ख़ुद उसे रंगे हाथ पकड़ेंगे।’ इन बातों को सोचकर मोहने को हंसी आ जाया करती थी, उसको ऐसा लगता जैसे कोई कुंआरी कन्या अपनी गोद में अपना बच्चा लिए भ्रमण कर रही है और लोग उसके बारे में कहते है कि ‘यह कुलटा नहीं है।’ ऊपर से ताल ठोककर कहते हैं कि, ‘क्या आपके पास सबूत है, यह बच्चा इसी का है ?’ ये नेता जो कभी सूरज पोल पर चाय की थड़ी लगाया करते थे, वे आज़ आलीशान इमारतों और अपार धन-दौलत के मालिक बन गए हैं...और अब वे बेशक़ीमती कारों में भ्रमण करते हैं, जिसे हम अपनी नंगी आँखों से देख सकते हैं। ये सब, लाये कहाँ से ? ईमानदारी से, इसे कमाना मुमकिन नहीं....मगर कौन है ऐसा माई का लाल, जो इनको सत्य के दीदार करवाकर इन्हें अवैधानिक सम्पति रखने के आरोप में गिरफ्तार करवा सके..?

मगर यहाँ तो अगर कभी कोई नादान अध्यापक, तबादले अनुभाग के चित्रगुप्त और उनके आका ज़िला शिक्षा अधिकारी के ऊपर भूल वश उंगली दिखला दे...तो, अरे रामा पीर। बेचारे उस अध्यापक की शामत आ जायेगी ? ये लोग उसे विभाग के कानूनी ज़ाल में फंसाकर, उस पर सी.सी.ए. १७ का दिव्य अस्त्र चलाकर उसे चोटिल अवश्य कर देंगे। तब झूठ को छिपाकर शिक्षक संघों को, यही बताया जाएगा कि ‘विद्यालय प्रशासन में बाधा डालकर, इसने विभागीय नियमों के साथ खिलवाड़ किया है। और अब भी अगर यह शिक्षक नहीं सुधरा तो, इसका ‘अन्यत्र तबादला’ कर दिया जाएगा।’ कहते हैं, “सात पर्दों के पीछे की बात, छुपी नहीं रहती।” फिर क्या ? इन शिक्षक संघों को, उनके फ़ायदे का टुकड़ा डालना भी ज़रूरी हो जाएगा। अगर शिक्षक संघ के पदाधिकारियों का ऐसा कोई रिश्तेदार है, या इनके स्वयं के कोई पदाधिकारी घर से कहीं दूर बैठे हों..तो सौदा सहज़ता से पट हो जाएगा। यह बात, सोने में सुहागा जैसी होगी। उस आरोपी शिक्षक के स्थान पर, आगंतुक पात्र का स्वत: चयन हो जाएगा। फिर क्या ? साथ में अन्य अध्यापकों को दिखाने के लिए, शिक्षक संघ अपना नया नाटक शुरू कर देगा। उस आरोपित शिक्षक के पक्ष में, तीन या चार दिन तक दिखावटी आन्दोलन करेंगे, और फिर ये शिक्षक संघ वाले शांत हो जायेंगे। शांत होने का अर्थ है, ‘ज़िला शिक्षा अधिकारी ने इनके आगे, किसी सुफ़ारसी अध्यापक या किसी पदाधिकारी के तबादले का टुकड़ा डाल दिया है।’ इस तरह के तबादले करके अनुभाग के ये चित्रगुप्त, अपनी और ज़िला शिक्षा अधिकारी की कुर्सियों पर कीलें ठोककर उन्हें मज़बूत कर देंगे। फिर क्या ? तबादले के चित्रगुप्त व हमारे धर्मराज रूपी ज़िला शिक्षा अधिकारी, अपनी उज्जवल छवि को बकरार रखेंगे। आगे भी ऐसा चलता रहे, तो इन दोनों के लिए फ़ायदा...? बस, फिर क्या ? १५ अगस्त या २६ जनवरी के दिन इन चित्रगुप्तों को ख़ुश रखने के लिए, ज़िला शिक्षा अधिकारी इनको ‘सर्व श्रेष्ठ कार्मिक’ के ख़िताब से विभूषित कर देगा और ये भाग्यशाली कार्मिक पुष्प हारों से लाद दिए जायेंगे। इस तरह, शिक्षक संघ वाले आख़िर करते क्या ? ख़ाली इन समारोहों में तमाशबीन बनकर, तालियाँ पीटेंगे और क्या ? बस..शिक्षक संघ, चित्रगुप्तों और ज़िला शिक्षा अधिकारी का हित साधा जाय..इसी सिद्धांत को, शिक्षा विभाग में सर्वोत्तम स्थान मिलता है। सभी जानते हैं, योग्यता और ईमानदारी की कहाँ पूछ ? बस अफ़सर की चमचागिरी, और अफ़सर व ख़ुद का हित-साधना ही...दफ़्तर में आगे बढ़ने की, योग्यता मानी जाती है। ऐसे लोग ही, सफ़ेदपोश कहलाते हैं। जनाब, सफ़ेदपोश ऐसी कुत्ती चीज़ होती है..जिनकी पाँचों उंगलियाँ डूबी रहती है, भ्रष्टाचार में। आख़िर हकूमत चीज़ ही कुछ ऐसी है, जिसके निकट सभी रहना चाहते हैं...लखटकिया बनकर

! सवाल उठता है, लखटकिया आख़िर है क्या बला ? सभी जानते हैं यह एक ऐसी बला है, ‘जो हमेशा सत्ता से, चिपकी रहती है।’ इसका विश्लेषण, चारण चारु पंडित के ताई डूंगर सिंह ने किया। जो उप निदेशक कार्यालय में था, वाहन चालक। कार्यालय ज़िला शिक्षा अधिकारी में टूर पर आये उप निदेशक को चाय-नाश्ते में मशगूल करके, उसने मोहने को जीप के पास बुलाया। तब मोहने ने, इस ड्राइवर से हाथ जोड़कर कहा “फ़रमाइए हुज़ूर।” मोहने की नज़र में वह डूंगर सिंह ड्राइवर नहीं, वह ज़िला शिक्षा अधिकारी से कम नहीं था।

“अजी लखटकिया साहब, आप हमसे बात कर रहे हैं..मगर आपकी नज़रें बराबर इस सेल टैक्स दफ़्तर पर क्यों टिकी है..? बार-बार काहे उस दफ़्तर को देखते जा रहे हैं..क्या तक़लीफ़ है, जनाब को ?” आख़िर डूंगर सिंह ने पूछ लिया, वह इतनी देर से उस मोहने पर नज़र गढ़ाए जीप के पास खडा था। उसे यह समझ में नहीं आ रहा था कि, इतनी देर से यह मोहना काहे उस सेल टैक्स बिल्डिंग को बार-बार टकटकी लगाए देखता जा रहा है..?

“हुज़ूर, ऐसी कोई ऐसी बात नहीं, जो आपसे छिपाऊं..छिपाने में आख़िर पड़ा क्या है..? बस, भरोसा नहीं होता। देखो, उस दफ़्तर के चपरासी हिरदे को..रोज़ हाथी छाप नोटों से, अपनी जेब भरता है। वास्तव में वह कमबख़्त, लखटकिया है। यहाँ आप मुझे लखटकिया कहकर, नाहक शर्मिन्दा कर रहे हैं।” मोहना रुंआसा होकर, बोला।

“भइए, पहले यह बता..तू दफ़्तर में कहाँ बैठता है ? बोल, फिर बताता हूँ स्कीम।” लबों पर मुस्कराहट लाकर, डूंगर सिंह बोला।

“हैं..हैं..हैं.., बस बड़े साहब के कमरे के बाहर, स्टूल लगाकर यों ही थोड़ा...” हकलाता हुआ, मोहना बोला।

“यों कह कि, बड़े साहब की ताबेदारी में लगा हूँ। अब बता, रोज़ कितने मास्टर बड़े साहब से मिलने आते हैं ? कितने लोग तबादला हेतु, और कितने लोग नियुक्ति हेतु आते हैं ?” डूंगर सिंह ने, आख़िर पूछ ही लिया।

“हुज़ूर, क्या बताऊँ ? इनकी कोई गिनती नहीं, रोज़ के रोज़ इन मुलाक़ातियों को देने के पर्चियों के कई पेड ख़त्म हो जाते हैं।” मोहना बोला।

“देख मेरे भोले शंभू, मैं जो बात तुझसे कहूं..उसे अच्छी तरह से समझना। तू जिसे चाहता है, उसकी मुलाक़ात साहब से करवाता है...यह बात सही है। और, साहब तेरी बात भी मानते हैं। और उधर तबादला अनुभाग के प्रभारी आनंद कुमारजी भी तुम्हारे, फिर यार काहे तू बहती गंगा में हाथ नहीं धोता...मूर्खानंद ?” यह कहकर, डूंगर सिंह ने अकाट्य सत्य का उज़ागर किया। उसके इस विश्लेषण ने खिड़कियाँ खोल दी, मोहने के बंद पड़े दिमाग़ की। मोहना तड़फ़ उठा, काहे अब-तक उसने अपना वक़्त बरबाद किया ? इस राह पर चलते तो, हम भी कुछ और होते...इस कल्पना में, कितना सुख है ? सोच-सोचकर मोहना पछताया कि, अब-तक उसने ऐसा क्यों नहीं किया ? ख़ैर कुछ नहीं, अब जगे तब सवेरा। तब-तक आ गयी अक्ल, और बन गए चपरासियों के लीडर...ज़िलाध्यक्ष। अब सुबह जल्दी उठना और ओटे पर बैठना मूढा डालकर, और लगाना चपरासियों का दरबार। यूनियन के नाम चन्दा वसूल करना, और न देने पर उनको तबादले की धमकियां देना..फिर चाय पीना, सिगरेट सुलगाना..ज़माने की ख़बरें इकट्ठी करना..लोगों को इधर-उधर लड़ाना और फिर नए फैसले कराने के लिए तैयार हो जाना। हुकूमत की हुकूमत, और खुशामद की खुशामद। आने-जाने वाले जब मोहने को ‘भइजी’ कहते थे, तब उसका सीना फूलकर छत्तीस इंच का हो जाता। शाम को गरम-गरम नोट उसकी जेब में गिरते और हाथ में आ जाया करती, दारु की बोतल..और साथ में कोई ज़रूरतमंद चपरासी बैठा उसके पाँव दबाता..वाह, क्या जन्नती सुख..? बड़े-बड़े आदमी अपनी प्रतिहिंसा भरी भावनाएं प्रकट करते, और मोहना उनसे लाभ उठाता। इस तरह, मोहना आख़िर लखटकिया बन ही गया।

बाबू को बाबू से लड़ाना, चपरासी को बाबू से लड़ाना, बाबू को चपरासी से लड़ाना..इन सभी वाकयों में वाक-युद्ध के, आधुनिक तकनीक का ज्ञान कराने के लिए चपरासियों को वह दाव-पेच समझा देने उसका फ़र्ज़ था। इन करमज़लों की टेबलें साफ़ न करना, कुर्सी की गद्दी में आलपिनें फ़िक्स करना, घंटी का स्विच ख़राब कर देना वगैरा दाव-पेच इन चपरासियों के लिए पर्याप्त ठहरे। इतने हथकंडों के आगे कोई बाबू बैठा रहे, शांत...महावीर स्वामी की तरह। जैसे स्वामीजी के कानों में कभी कीलें थोक दी थी किसी चरवाहे ने, मगर वे रहे शांत...अपने ध्यान में मस्त। तब ऐसे अहिंसा प्रिय बाबू को पाकर, उसके कान में मोहना मारवाड़ी बोली में यों फुसफुसाया करता था “मालक, का करौ..ई चपरासी जात रौ कांई भरोसो ? अलमारी री फ़ाईलां गमा देई मालक, तौ थे कांई करोला ?” फ़ाइलें गायब हो या न हो, इसका कोई सरोकार नहीं। फाइलें किस आदमी से किस प्रकार गायब होगी, यह शरारत भरी योजना, मोहने के दिमाग़ में बराबर बनी रहती थी। फिर क्या ? फ़ाइल गायब हो जाती, और उस वक़्त बेचारे बाबू का तिलमिलाना वाज़िब होता। तब यह मोहना फ़ाइलें ढूँढ़ने का नाटक कुशल अदाकार की तरह करता था, फिर क्या ? अनायास उन फ़ाइलों को, वह उसकी टेबल पर ला पटकता। फिर हाथ जोड़कर खुशामद से मक्खन लवरेज शब्दों का पयोग करता हुआ, वह ऐसे कहता “मालक, रामा पीर री कृपा सूं आपरी गमयोड़ी फ़ाइलां लादग्यी सा। हजूर, अबै बोल्योड़ी मन्नत सारूं मिठाई चढ़ावण रौ कौल पूरो करौ सा।” भले उस बेचारे ने मन्नत बोली नहीं, मगर फ़ाइलों के मिल जाने की ख़ुशी के आगे...वह भोला बाबू मोहने से विवाद नहीं करके, फटाक से मिठाई और नमकीन मंगवा लेता था। फिर क्या ? वह झट काग़ज़ पर थोड़ी मिठाई रखकर चला आता, आनंद कुमार के पास। मिठाई उनकी टेबल पर रखकर, वह उनसे कहता “हुज़ूर अरोगो सा, गुपालाजी रौ प्रसाद लायो हूँ सा।” इस तरह आनंद कुमार को ख़ुश करना, वो भी पराये पुण्य से..कितना आनंददायक रहा होगा, इस मोहने के लिए ? यह बात तो वह ख़ुद जाने, या जाने रामा पीर।

जेठ का महीना आया, आक की हर डाली पर सफ़ेद पुष्प की कलियाँ खिल उठी। ऐसी किदवंती है, “अगर सूरज के ढलने के बाद आक की पत्तियों से निकले दूध को, काँटा चुभी हुई चमड़ी पर वहां लगा दिया जाय...तो वह दूध, चमड़ी में चुभे कांटे को खींचकर बाहर निकालने की ताकत रखता है। तो दूसरी तरफ़ उसे आँख में लगाते ही, वह मनुष्य को अंधा बनाने की शक्ति रखता है। हकीम लोग इस आक के दूध से, कई तरह की दवाइयां बनाते हैं। और कभी-कभी हम फेरी वालों को, यह आवाज़ लगाते हुए देखा करते हैं कि ‘आक के पत्ते, उड़ा दे वादी के लत्ते।’ इसी तरह, एक ही वस्तु के अनेक प्रयोग होते हैं। ऐसा ही, हमारा मोहना ज़मादार है। देखने से बुरा नहीं लगता, अगर वह गंभीर हो जाय तो उसे देखने पर हमें भ्रम हो जाता था..और हमें ऐसा लगता था कि, ‘शायद यह शरीफ़ आदमी है।’ इस दफ़्तर के कार्यालय सहायक आनंद कुमार पारखी ठहरे, वे इसका प्रयोग कांटे निकालने के लिए करते थे। जबकि दूसरी तरफ़ दफ़्तर जिला शिक्षा अधिकारी [माध्यमिक शिक्षा] पाली के वाहन चालक श्योपत सिंह, इसका इस्तेमाल दूसरों की आँख फोड़ने के लिए करते थे। श्योपत सिंह जाति के थे, राज पुरोहित। इन लोगों को राज परिवार ने कई एकड़ ज़मीन देकर, इनको जागीरदार बना रखा था। इसलिए लोग इनको कहते थे, जागीरदार। श्योपत सिंह का यहाँ आँख फोड़ने का अभिप्राय आँख फोड़ना नहीं, ‘महज़ दूसरे के कंधे पर बन्दूक रखकर, शिकार करना है।’ हुआ यूं, एक दिन कार्यालय का एक चपरासी जिसका नाम था द्वारका प्रसाद...जो मेहतर जाति से ताल्लुकात रखता था..उसने कर दिया एलान “भइजी, आप हमें ऐसा-वैसा मत समझना, जात के हम मेहतर हैं तो क्या ? तुम्हारी, जीप साफ़ करेंगे ? सरकार हमें पैसे देती है, कार्यालय की सफ़ाई करने के..तुम्हारे जैसे ऐरे-ग़ैरों की जीप साफ़ करने के नहीं।” सुनकर, जागीरदार श्योपत सिंह के कलेज़े पर लोटने लगे सांप..! दिल में एक ही विचार उठा कि, “साला कल का छोकरा, हमसे ज़ुबान लड़ाता है ? अभी-तक इस जागीरदार को देखा कहाँ है, इसने ? अब क्या करता हूं, देखेगा..इस छोकरे को आख़िर, लाइन पर लाना होगा। गाड़ी की सफ़ाई अब गयी, तेल लेने...अब तो हम तेरी ख़ुद की सफ़ाई कर देगे, इस कार्यालय से बेदख़ल करके। यह बेवकूफ़, जानता नहीं ? हमारा नाम श्योपत सिंह है, पत्ता-वत्ता सब खड़का देते हैं हम। और लोगों को कान में, ख़बर नहीं होती।” इतना सोचकर, श्योपत सिंह ने मोहने को आवाज़ देकर बुलाया। फिर कहा “ज़मादार साहब, काहे के नेता बने फिरते हैं आप ? कल का लौंडा अनाप-शनाप बककर चला गया, तुम्हारे बारे में।”

“जागीरदारां, किनी मां अजमो खायो, जिको म्हाऊं अड़े ?” मोहना शराब के नशे में, हिचकी खाता हुआ बोला।

“हुजूरे आला, इतना भी नहीं जानते, आप ? ऐसा कौन हो सकता है, इस द्वारका प्रसाद के सिवाय ? साला कहता है कि, इस दफ़्तर का मोहना, ज़मादार नहीं...दल्ला है, आनंद कुमार का। तबादले के नाम चपरासियों से वसूल करता है चन्दा, और पी जाता है पूरी बोतल दारु की। इस दल्ले से तो हम ही अच्छे, अपनी मेहनत के पैसे से बनायी है चार मंजिला इमारत....इसी बस स्टेंड पर। और रहते हैं शान से, न की उसकी तरह...”

“उसकी तरह...कांई मुतळब, आपरौ ? आगे बोलोपा।” श्योपत सिंह की बात काटता हुआ, मोहना बोला।

“उसकी तरह नहीं, जो दारु पीकर पड़ा रहता है गंदी नालियों में..!” मोहने को भड़काता हुआ, श्योपत सिंह बोल उठा।

“औ माता रौ दीनो यूं बोल्यो ? अबै जागीरदारां थे देखज्यो, मैं कांई करुं इण हितंगिया रौ..?” इतना कहकर, उसने श्योपत सिंह के कंधे पर अपना हाथ रख दिया, और उसने अपने मुंह से छोड़ दी देसी दारु की भयंकर नाक़ाबिले बर्दाश्त बदबू। यह बदबू, श्योपत सिंह बर्दाश्त नहीं कर पाया। तपाक से उसने, उसका हाथ दूर हटा दिया। और, कड़वी आवाज़ में बोला “दूर, दूर। गू खंडा, तेरे बदन से दारु की बदबू आ रही है..? परे हट...!”

सुनकर, मोहना क्रोध से कांपने लगा। उसके मुंह से बोलने के पहले ही, दारु की ज़बरदस्त दुर्गन्ध फ़ैल गयी। फिर, वह नशे में बकने लगा “अब-तक मैं तूझे जागीरदार..जागीरदार बोल रियो हूँ। थने गढ़ेड़ा, बात करनी आवे कोनी..? जाणे कोनी, मैं कुण हूँ ? मैं हूँ युनियन लीडर, थारी बदली करवा दूंला।” मोहना गुस्से में बोला, और दारु के नशे के कारण उसके पाँव लड़खड़ाने लगे। फिर, वह धम्म करता, पास पड़ी बेंच पर बैठ गया। उसको गुस्से से काफ़ूर होते देख, श्योपत सिंह फट पड़ा और वह क्रोध से उबलता हुआ बोला “क्या कहा, युनियन लीडर..? अरे कमज़ात, तू कहाँ का लीडर ? कल के लौंडे द्वारके ने सरे आम तेरी इज्ज़त के पलीते कर डाले, और तुझसे कुछ हुआ नहीं ? मेरी ट्रांसफर को तो छोड़, तू द्वारके का कुछ करे..तो मैं कुछ जानू।” यह कहकर श्योपत सिंह ने, आँख फोड़ने का श्री गणेश कर डाला। फिर, चल दिया खाज़िन [खंजान्ची] के कमरे की ओर। कमरे में दाख़िल होते श्योपत सिंह ने द्वारका प्रसाद को देखा, जो युरिनल के पास में स्थित स्टोर के कमरे के बिल्कुल सामने सर के नीचे झाड़ू रखकर लेटा था। अब अगली योजना के बारे में श्योपत सिंह ने सोच लिया, वह जानता था कि, ‘इस खाज़िन के कमरे में बैठकर, फिर ज़ोर बोलकर इस द्वारका प्रसाद को भड़काया जा सकता है।’ फिर क्या ? श्योपत सिंह जाकर खाज़िन हरी प्रसाद की सीट के पीछे बनी पत्थर की बेंच पर लेट गया, फिर वहां से द्वारका प्रसाद को सुनाने के लिए, ज़ोर से कहने लगा “देखो भय्या हरी प्रसाद, मोहना बड़ा कमीना निकला। दफ़्तर का कोई आदमी, चार पैसे क्या कमा लेता है..? उसे देखकर, यह कमबख़्त ईर्ष्या से जल मरता है। देखो बेचारे द्वारका प्रसाद को, बेचारे ने पाई-पाई जोड़कर बस स्टेंड पर आलिशान बिल्डिंग खड़ी की है। मगर, यह दारुखोरा क्या बकता है..सरे आम ?”

इतना सुनते ही, द्वारका प्रसाद के कान घोड़े के कानों की तरह खड़े हो गए। और उसने अपने कानों की दिशा, खाज़िन के कमरे की ओर दे दी।

“आगे बोलो, जागीरदारां। आगे क्या बकवास की, उसने ?” हरी प्रसाद पूछ बैठा। उसकी भी व्यग्रता बढ़ने लगी, जानने के लिए। आख़िर, वह भी तो इंसान ठहरा। इस पराई पंचायती के महा-सुख को, वह कैसे ठुकराता ?

“बकता था, ’यह द्वारका पक्का चोर निकला, इसने अपने भोले ताऊ को उल्लू बनाकर हथिया ली यह चार मंजिला इमारत।” इतना कहकर, श्योपत ने कलह के बीजों को बो डाले। उसकी आवाज़ बेतार के रेडियो की तरह, साफ़-साफ़ द्वारका के कानों में पहुच गयी..बस, अब आगे का तमाशा श्योपत सिंह को देखना बाकी रहा।

दूसरे दिन, कार्यालय गपास्टिक रेडिओ की सुर्ख़ियों में यह ख़बर आ गयी कि, ‘द्वारका प्रसाद और मोहने के बीच में घमासान वाक-युद्ध हुआ। यह लड़ाई, तुरंत ही हाथापाई का रूप ले बैठी। द्वारका था जवान लौंडा..उसने झट जोश में आकर, मोहने की गरदन पकड़ ली। इस तरह, इनको लड़ते देखकर भाई आनंद कुमार अपने प्यादे को बचाने के लिए इस जंग में कूद पड़े। बीच में कूदकर, उन्होंने दोनों को अलग क्या किया ? यहाँ तो ख़ुद गिरफ्त गए, “बेचारे आनंद कुमार गए थे, लड़ाई छुडाने..मगर ख़ुद सींकिया पहलवान होने के कारण, अपने बदन को संभाल नहीं पाए और द्वारके के एक जोरदार धक्के से बेचारे चारों खाना चित्त होकर गिर पड़े।” उनके नीचे गिरते ही, दफ़्तर के बाबूओं ने बीच में पड़कर, उन दोनों जंगजू को शांत कर डाला। ना तो उन दोनों के मध्य हो रही हाथापाई, न जाने क्या अंजाम ले बैठती ? कहते है, ‘आज़कल का ज़माना भलाई करने का नहीं है।’ अपने प्यादे को, क्या बचाया ? यहाँ तो इनको, लेने के देने पड़ गए।

अब यह घटना बेचारे द्वारका प्रसाद के लिए, किसी भूचाल से कम नहीं रही। दूसरे दिन ही चपरासियों के तबादले की फ़ेहरिस्त जारी हुई, जिसमें द्वारका प्रसाद का नाम पहले स्थान पर था। इस फ़ेहरिस्त को देखकर, मोहने के क़दम धरती पर नहीं पड़ रहे थे। उसने तपाक से उस आदेश की एक प्रति, द्वारका प्रसाद को थमा दी। फिर पास खड़े श्योपत सिंह से, वह अभिमान से बोला “देख ल्यो जागीरदारां, म्हारो कमाल ? अबै कोई म्हाऊं अड़ियो तो, व्हीनो औ इज हाल करूंला।” इतना कहकर, उसने श्योपत सिंह के कंधे पर हाथ रख दिया। फिर बह बोला “ध्यान राखजो, जागीरदारां..अबै थे म्हाऊं, तीन-पांच करजो मती। चालो सा, अबै मैं जाय नै हेड साब नै धोक लगाय नै आ जाऊं पाछो। चालां, भाई जागीरदार।”

मोहना चला गया, आनंद कुमार के पास। और आँगन पर बैठकर, उनके चरण दबाने लगा। फिर बोला “हुज़ूर इण दफ़्तर मायं गुंडा लोग दशहत फैला राखी है, मैं तो हुज़ूर आपरी ख़िदमत में अठै आयग्यो सा। म्हाऊं औ अणूतो अन्याय देखीजे कोनी सा।” इतना कहकर मोहने ने टेबल पर रखी ज़र्दे की पेसी उठायी, और सुर्ती बनाने लगा। फिर सुर्ती बनाकर, आनंद कुमार को पेश की। सुर्ती उठाकर आनंद कुमार ने अपने होंठ के नीचे दबाई, उधर यह मोहना उनको भड़काता हुआ आगे कहने लगा ‘औ द्वारको हरामजादो, आपने सरे आप गालियाँ बकतो फिरे सा। औ कमसल आपरै खिलाफ़ यूं बातां बणावे सा, क ‘औ कमसल ओ.ए. छुट्टी व्या पछे भी इण बापड़ी नुवी लागोड़ी चपरासन कमला बाई नै ग़लत कांम सारूं रोके, जिण सूं अबै मैं इनौ तबादलो कराय नै छोडूंला। म्हारा काकोसा माँगी लालजी आर्य पछे भले कद कांम आई ?’ पछे औ आगे यूं बोल्यो सा, क “औ कमसल ओवर टाइम ख़ुद करे, अर दुःख म्हा भुगतां..औ किसो घर रो न्याव ?”

“इसकी, इतनी हिम्मत ?” आँखें तरेरकर, आनंद कुमार बोले।

“हाँ सा। हुज़ूर भले आप म्हारे सर माथे हाथ मती धरो, पण मैं तो सांच कैवूला सा क ‘इण मिनख़ लारे, थापी है..प्राम्भिक शिक्षा रा बड़ा बाबू गरज़न सिंगसा री।” मोहना बोला।

“कौन है, गरज़ सिंह ?” गुस्से में, आनंद कुमार बोले।

“अरे हुज़ूर, आप ओळख्या कोनी कांई इयांने ? जोधपुर मायं कुञ्ज बिहारी रे मिन्दर कने इयांरी पतासा री दुकान है, अबै तो मालक ओळख्या ? इयांरो असली नांम है, ज्ञान चंद अगरवाल। पण दफ़्तर में, ज्ञानजीसा हाका घणा करे सा, इण ख़ातर लोग इयांने बाबू गरज़ सिंह कैया करे सा। सागेड़ा, डायला माड़साब जैड़ा इज है सा। दफ़्तर रा किणी बाबू री इत्ती हिम्मत कोनी, जिको इयांरे साम्ही बोल सके। मालक, अबै तो आप ओळख्या ?’ मोहना ने कहा।

“पूरी जानकारी दे यार, अभी-तक पहचाना नहीं इसे...आख़िर यह है कौन, जो सोये शेर को जगा रहा है ?” आनंद कुमार फिक्रमंद होकर, बोले।

“बाबूसा वे इज है सा, जिका महासंघ चुनाव में आपरी खिलाफ़त करी ही। पण..” मोहना बोला।

“साफ़-साफ़ बोल ना मोहने, आख़िर यह ज्ञान चाहता क्या है ? साले ज्ञान, तेरा सारा अज्ञान निकाल दूंगा अब..समझता क्या है, अपने-आपको..पतासे वाला ?” आनंद कुमार गुस्से में बोले, फिर तेज़ी खाते हुए आगे कहा “तूझे यह क्या बीमारी लगी है, दूसरे दफ़्तर वालों की बकवास यहाँ बैठकर करने की ? भंगार के खुरपे, क्यों बकवास करता है ? जानता नहीं, तू ? इस दफ़्तर का ओ.ए. मैं, और निदेशालय बीकानेर तक मेरी है एप्रोच..! जानता है, सारा ज़िला है...मेरी मुट्ठी में। कल का, यह गरज़न...इसकी क्या हैसियत ? जो मेरी खिलाफ़त करे...साला ठहरा, बरसाती मेंढक...?” आनंद कुमार अभिमान से, बोल उठे।

“हुज़ूर, खम्मा घणी अन्नदाता।” मोहना हाथ जोड़कर, आनंद कुमार से बोला “मोटा मिनखां री बातां, मोटा मिनख जाणे। म्हा छोटा मिनखां नै, कांई करणो ? पण, हुज़ूर री सान में कोई गुस्ताख़ी करे, तो आ गुस्ताख़ी म्हने बर्दाश्त हुवे कोनी सा।”

इस तरह मोहना ज़मादार को, आँख फोड़ने के काम करने की आदत बन गयी, उसकी ऐसी गतिविधि देखकर दूर बैठा श्योपत सिंह का दिल बाग़-बाग़ हो जाया करता था। इस तरह श्योपत सिंह के बोये कलह के बीज, अब धीरे-धीरे विशाल विष वृक्ष धारण करने लगा। ज्ञान चंद यानी बाबू गरज़न सिंह और आनंद कुमार के बीच, द्वेष की खाई बढ़ने लगी।

कलह का बीज बोकर श्योपत सिंह मुस्कराता हुआ उठा, और चल दिया दफ़्तर के बाहर..जहां चाय की केन्टीन की बेंच पर बैठकर, वह अपना वक़्त गुज़ारने लगा। आख़िर वह ठहरा ड्राइवर, साहब के दफ़्तर में बैठने के बाद उसका कोई काम न काज। वक़्त काटना भारी, समस्या से निज़ात पाने के लिए उसे चाहिए था ऐसा साधन..जिससे उसका वक़्त मनोरंजन करते हुए आसानी से बीत जाए। बस उसकी तो हर वक़्त यही इच्छा बनी रहती थी कि, “किसी को वह भड़काकर, अपनी इच्छानुसार ‘’खिलका’’ पैदा करता रहे। जिसके लिए उसे कभी इसके कंधे पर तो कभी किसी दूसरे के कंधे पर बन्दूक रखकर, चलानी भी पड़े..तो कोई ग़म नहीं। बस, श्योपत सिंह के लिए तो वक़्त काटने के लिए, खिलका होना चाहिए...जिससे उसका मनोरंजन होता रहे। आख़िर, निक्कमा बनिया क्या करता ? इधर का तोला उधर, और उधर का तोला इधर..! बस रामा पीर से, वह रोज़ अरदास करता रहता कि, “ओ रामसा पीर। ऐसे लखटकियों को और पैदा करते रहो इस ख़िलकत में, ताकि मेरा वक़्त आराम से कटता रहे।”

पाठकों। राजवीणा मारवाड़ी साहित्य सदन, जोधपुर,

सोमवार, 26 नवम्बर 2018

इस अंक के मुख्य पात्र “लखटकिया” आपको ज़रूर पसंद आया होगा ? सरकारी दफ्तरों में प्राय: ऐसे कई लखटकिये मिल जाया करते है, जिनका इस्तेमाल करके कई श्योपत सिंह जैसे निक्कमें लोग उन्हें अपना मनोरंजन का साधन बना देते हैं। ख़ुदा का मेहर भी, इन निक्कमें लोगों पर ऐसा बरसता है कि, “अक्सर वे काम से बचे रहते हैं, और उनको वक़्त काटने के लिए रोज़ लखटकिया जैसे पात्रों की ज़रूरत बनी रहती है।” ऐसे लखटकिये जैसे पात्र मिलते ही, उन्हें भड़काकर दफ़्तर में रोज़ खिलका पैदा करके अपना मनोरंजन कर लिया करते हैं। कहिये, आपकी इस मामले में क्या राय है ? मुझे भरोसा है, आप ज़रूर अपने विचारों से मुझे अवगत करेंगे। मेरी लिखने की शैली और कथनों पर आलोचना या समालोचना संबंधी आपके जो भी विचार हों, उन विचारों को आप बेहिचक लिखकर मुझे अवगत करायेंगे..ऐसी मेरी आशा है। इस अंक के बाद आप पढेंगे, अंक ७ “हो गया कबाड़ा”।

आपके ख़तों की प्रतीक्षा में जोधपुर, २४ नवम्बर. २०१८

दिनेश चन्द्र पुरोहित राजवीणा मारवाड़ी साहित्य सदन,

अँधेरी-गली, आसोप की पोल के सामने, जोधपुर [राज.]

ई मेल dineshchandrapurohit2@gmail.com dineshchandrapurohit2080@gmail.com

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: संस्मरणात्मक शैली पर लिखी गयी पुस्तक “डोलर हिंडा” का अंक ६ “लखटकिया” لکھتکیہ लेखक दिनेश चन्द्र पुरोहित
संस्मरणात्मक शैली पर लिखी गयी पुस्तक “डोलर हिंडा” का अंक ६ “लखटकिया” لکھتکیہ लेखक दिनेश चन्द्र पुरोहित
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjhP-zz3kFuLPfVEseCx8MQNCNLluQRDUJtn3GXsIjFxpltlypZ9m_2_kWRMMDZsPdBTcSKmvIj9K_WSRBwpNMRaDpQYr4Tk9PcVQh2whiRAP0OJqBNvnnbG_78LPWUC7ZkWYsF/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjhP-zz3kFuLPfVEseCx8MQNCNLluQRDUJtn3GXsIjFxpltlypZ9m_2_kWRMMDZsPdBTcSKmvIj9K_WSRBwpNMRaDpQYr4Tk9PcVQh2whiRAP0OJqBNvnnbG_78LPWUC7ZkWYsF/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/11/blog-post_48.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/11/blog-post_48.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content