संस्मरणात्मक शैली पर आधारित “डोलर हिंडा” का अंक 3 “तिगनी का डांस” लेखक दिनेश चन्द्र पुरोहित

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डोलर हिंडा का अंक ३     तिगनी का डांस   लेखक दिनेश चन्द्र पुरोहित “रौशनिये की, ऐसी की तैसी। यह सब जुगाड़ किसने किया, घीसू लालजी ? कानों में त...

डोलर हिंडा का अंक ३

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 तिगनी का डांस

 लेखक दिनेश चन्द्र पुरोहित

“रौशनिये की, ऐसी की तैसी। यह सब जुगाड़ किसने किया, घीसू लालजी ? कानों में तेल डाल हमारी मूंछ और चुटिया कटा डाली आपने...? है भगवान, इस रौशनिये के बच्चे के आगे डाल देता कमीशन की घास..तो मेरे मालिक, यह बखेड़ा खड़ा न होता..? अब तो यह हरामी, अपना मुंह बंद न करके मेरी ढकी-ढकाई उधारी किये दे रहा है ..? आज़ आपके कान भरे, और कल...?” तमतमाते हुए बोले सोहन लाल, और रौशन लाल को न्योछावर कर डाला गालियों का गुलदस्ता। कम्बख़्त ने सोहन लाल के अज़ीज़ दोस्त घीसू लाल को मनगठंत किस्से सुनाकर, उनके कान घड़े के कानों की तरह खड़े कर दिए..ऊपर से कह डाला कि, “पुराने खलीफ़ा हैं, हुज़ूर..पुराने कमीशन चोर, आज़ के सफ़ेद हाथी।”

“हाथी कहो या घोड़ा, हमें तो गधे को भी बाप बनाना आता था..मगर, इस प्रकरण में चूक गए चक्करखानी खाकर। अरे भगवान। अच्छे-ख़ासे दरी पट्टियों से आने वाले कमीशन को धूल में मिला दिया, इस खच्चर रौशनिये ने।” सोचते सोचते बेचारे सोहन लाल के पुराने घाव ताज़ा हो गए, और जनाब जा गिरे अतीत के सागर में....।

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“श्योपत सिंह, क्या बकते हो, बिल्टी के बारे में ? किसने आदेश दिए, बिल्टी को छुडाने का ? यह बज़ट सरकारी ख़जाना है, कोई कारू का ख़जाना नहीं है, जिसे चाहें उसे लुटा दें..?” प्रोढ़ शिक्षा अधिकारी के दफ़्तर का ख़ाजिन रौशन लाल, अपने दफ़्तर के ड्राइवर श्योपत सिंह से उलझ पड़ा। उसकी गगन-भेदी कड़वी आवाज़ सुनकर, बगल के कमरे में बैठे दफ़्तर के सीनियर मोस्ट वरिष्ठ लिपिक सोहन लाल सीट से उठ खड़े हुए। बेचारे कब से इन्तिज़ार कर रहे थे कि ”दरी पट्टी का मामला, झट निपट जाए और कोई बम न फूटे...?” उनको भय था, ‘कहीं इस मामले में और कोई लंका का ‘विभीषण’ बनकर न आ जाय यहाँ...और मुफ़्त में उनकी टांग-खिंचाई न करवा डाले...?’ फिर क्या ? भाई सोहन लाल झट जा पहुंचे, ख़ाजिन के कमरे के दरवाज़े के पास...और ज़ोर से इस तरह खंखारे कि ‘उनके खंखारने की आवाज़ सुनकर, वह नौसिखिया रौशन लाल घबरा जाय..?’

“रौशन लाल, क्या तक़लीफ़ है तूझे ? बिल्टी छुड़ाना तेरा काम है, अगर नहीं छुड़ाना चाहता है तो भाई मना कर दे...मगर, चिल्लाता क्यों है ? ख़ाजिन की कुर्सी पर जमा है, तब काम तो तूझे करना ही होगा। नहीं करेगा, तो तेरी कुर्सी पर बैठने वाला और कोई भाई करेगा...तुझसे चार्ज लेकर। आख़िर, दफ़्तर का काम रुकता नहीं, रौशन लाल।” कुपित होकर सोहन लाल कमरे में दाख़िल हुए, और रौशन लाल से कहते रहे। फिर अचानक, उनकी नज़र वहां खड़े श्योपत सिंह पर गिरी, और उनका सारा गुस्सा उस बेचारे ड्राइवर पर फट पड़ा। और वे उससे, गुस्से में बोल पड़े “यहाँ क्यों खड़े हो, भाई ? यहाँ किसी पातुर का मुज़रा हो रहा है, क्या ? और तुम यहाँ आ गए, तबले पर थाप देने ? अरे भाई, ड्राइवर हो, गाड़ी में बैठ जाओ जाकर। न मालुम, कब साहब मूड बाहर जाने का बन जाय ?” उनकी गरज़ती हुई आवाज़ से सन्नाटा छा गया, बेचारा नया-नया दफ़्तर में लगा ख़ाजिन उनकी आवाज़ सुनकर दहल गया। मगर, श्योपत सिंह पर सोहन लाल की दहाड़ का कोई असर नहीं...रौशन लाल के कान में पास फुसफुसाते हुए, इस छाये सन्नाटे को तोड़ डाला। भगवान जाने, ऐसा क्या कह दिया श्योपत सिंह ने ? सोहन लाल को बोलना पड़ा “अरे भाई, यह कानाफ़ूसी कैसी ? जाओ श्योपत सिंह, अपना काम देखो।”

मगर, श्योपत सिंह के पाँव वहां ऐसे जमे, मानों रावण की सभा में अंगद खड़ा हो...? फिर उसने कमरे के बाहर से गुज़र रहे दफ़्तर-ए-निगार राजेन्द्र गुप्ता को, आवाज़ देकर कमरे में अलग से बैठा दिया।

अब वक़्त हो गया, साहब के आने का। सोहन लाल अन्दर ही अन्दर घबरा गए, “कहीं वे यहाँ आकर, इस मसले में पड़कर उनके गिरेबान में न झाँक लें...? अगर ऐसा हो गया तो, उनकी इज्ज़त की बख़िया उधेड़ दी जायेगी और जमी-जमाई उनकी साख़ मिट्टी में मिल जायेगी। इससे तो अच्छा अब यह है, यहाँ से जाना ही अच्छा है।” इतना सोचकर, सोहन लाल वहां से चले गए। बस यह मामला, उस दिन टायं-टायं फिस्स ही रहा।

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मार्च का महीना था, ख़ाजिन रौशन लाल के पास ढेरो काम..बेचारा सर ऊपर उठा नहीं पा रहा था। इसके सीनियर बोस राजेन्द्र गुरु का दिया गया गुरु-मन्त्र “बज़ट लेप्स न हो” ने, उसके हाथों की गति को बढ़ा डाली। फिर क्या ? रौशन लाल ने तमाम बकाये बिलों को कोषागार से पारित करवाकर, दम लिया। अब उसे ध्यान आया ‘मार डाला रे, इस सोहन लाल लाल ने। बड़ा ऋषि-मुनि बनकर, उसने बहका दिया और दरी-पट्टियों का बिल मुझसे पास करवा दिया। वाह रे, सोहन लाल। तूने तो गुर्गों के कन्धों पर, बन्दूक रखकर दाग दी...? अब तो ऑडिट से बचने का एक ही उपाय, गुरु-मन्त्र देने वाले राजेंद्र गुरु के पास है।

“गुरु, कुछ करो। न तो यह आपका चेला, राम सुगना धोबी की तरह मारा जाएगा।” रौशन लाल ने, राजेन्द्र गुप्ता के आगे गुहार लगाई।

“राम सुगने को छोड़, मरा होगा साला..अपने उस्ताद की सलाह न मानकर। मगर, तू क्यों रोता है ? तेरे ऊपर है, तेरे उस्ताद का हाथ।” इतना कहकर, राजेन्द्र गुप्ता ने झट अपना हाथ रख दिया रौशन लाल के सर पर। फिर कुर्सी को बेक लिया और बोले “”सुन ले, पहला मन्त्र। चुपचाप बिल का भुगतान उठा ले बैंक से, फिर बिल्टी छुड़ाकर माल मंगवा दे। ”यह क्या कह रहे हो, गुरु ? सफ़ा-सफ़ धांधली हुई है, और अप ऐसी सलाह दे रहे हैं मुझे...क्या मुझे, ‘ता थई था’ का कत्थक डांस कराने का इरादा रखते हैं ?” घबराकर, रौशन लाल बोल उठा।

“अरे अक्कल के उल्लू, कत्थक डांस तू नहीं..वह करेगा...। अब तू चुपचाप खेल देख, बोलेगा नहीं। उलझेगा नहीं उससे।” इतना कहकर हथेली पर तम्बाकू फैलाया, और उस पर दूसरे हाथ से लगाई थप्पी थप्प..थप्प। फिर कहने लगे “समझा...? थप्प थप्प..यह ताल देना तू, और वह करेगा तिगनी का डांस।”

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बिल्टी का माल कुछ ऐसा ही था, रौशन लाल के विरोध करने से बेचारे सोहन लाल को हो गयी सर-दर्द की बीमारी। बेचारे दो दिन में ही खा गए, दस पत्ते एस्प्रो के। मगर, अचानक बिल्टी क्या उठी...? अंधे के हाथ, clip_image003बटेर लग गए। घर पर आकर सबसे पहला काम किया ‘शिव-मंदिर जाने का, और चार आने का गुड़ चढ़ाने का।’

“बड़ी मुसीबत है। अब कहें तो आफत्त और न कहें तो आफत्त..गुरु, क्या बला डाल दी मेरे सर- दस बार आ गया सोहन लाल मेरे पास, धोक चढ़ाने – ‘रौशन लाल, क्या हाल है ? भइये, कैसे हो ? मज़े में हो..?’ दस दफ़े पूछ गया मुझे, घर जमाई समझ रखा है, मुझे इस सोहन लाल ने..?” रौशन लाल ने, राजेंद्र गुप्ता से कहा।

“नाराज़ क्यों होता है, भैंस के ताऊ ? अभी से डाल दिए, हथियार ? फिर, तिगनी का डांस कैसे होगा, प्यारे ?” राजेंद्र गुरु मुस्कराते हुए बोले।

“तिगनी के डांस की ऐसी की तैसी, उस्ताद अब इसे बनाउंगा विलिंग बकरा..” तैश खाकर, रौशन लाल बोला।

“कुछ खुलकर बोल, यार।” राजेन्द्र गुरु बोले।

“सुनो...इ अफ़सर मादर जात चपरासी से बेगार निकालते हैं । उस्ताद, तुम ख़ुद देख लो इस मगनिये को..क्या करता है..साहब की बेबी का गंदा अंडर वियर धोता था, अब परमोशन लेकर बन गया एलकार। और उधर देखो, इस मोहनिये जमादार को..कल-तक साहब की लुंगी धोकर सुखाता था, आज़ बन गया लीडर चपरासियों का..? बड़े साहब के भी बड़े साहब के घर क्या होता है ? साहब के बच्चों के, कपड़ों को तो छोड़ो..गेट पर तैनात, भौंकने वाले साहब के कुत्ते को भी ये लोग नहलाते हैं..जनाब। उस्ताद, यह एक वर्गीय व्यवस्था है..जहां बेगार को प्रिविलेज की ओढ़नी पहनायी जाती है, और छंटनी की की अफ़वाह सब तरफ़ फैलाकर विलिंग बकरा बनाती है भय्या। बस अब आप शतरंज के मोहरे जमाकर ऐसी चाल बताओ कि, मैं इन महाशय को बना डालूँ ऐसा मेरा विलिंग बकरा...जैसा मैं कहूं वैसा करे। मैं कहूं बैठ तो बैठ जाय, और उसे कहूं उठ तो वह उठ जाय।” रौशन लाल कहता गया, और राजेन्द्र गुरु उसकी बात पर हंसते गए..ठहाका लगाकर।

हंसते-हंसते राजेन्द्र गुरु ने खिड़की के बाहर झांका, उन्होंने बाहर सड़क पर एक मदारी को देखा..जो डुगडुगी बजाकर बंदरिया का नाच तमाशबीनों को दिखला रहा था। मदारी बोल रहा था, बंदरिया से “उठ, मेरी रानी।” वह बंदरिया उसका हुक्म तामील करती हुई झट उठ गयी। फिर उस मदारी ने आगे हुक्म दे डाला “पापी पेट का सवाल है, साहब लोगन को सलाम करो।” मदारी का हुक्म तामील करती हुई उस बंदरिया ने झट एक तमाशबीन के पाँव पकड़ लिए, मगर तमाशबीन द्वारा पैसे न देने से वह बंदरिया “कीं कीं” बोलती हुई उस बेचारे तमाशबीन को डराने के लिए अपने दांत निपोरने लगी। वह बेचारा तमाशबीन डर के मारे चीख उठा “हाय अल्लाह। बचा मेरे मोला।” मगर यह क्या ? उस तमाशबीन ने जैसे ही पैसे जेब से निकालकर फेंके, और तपाक से उस बंदरिया ने उसके पाँव छोड़ दिए।

“मेरे ज़िगर के टुकड़े, रौशन लाल। अब तू देखना, मेरा खेल। अब यह सोहन लाल बंदरिया बनकर, कैसे तिगनी का डांस करेगा..?” राजेन्द्र गुरु खिड़की से निगाहें हटाकर, रौशन लाल से बोले।

“हुज़ूर, यह तो मैं समझ गया कि, यह बंदरिया है कौन ? मगर यह न समझ सका कि, आपके खेल में मदारी कौन है..? मुझे तो आप मदारी बने, बहुत अच्छे नज़र आयेंगे।” दरवाज़े से सटकर खड़ा श्योपत सिंह हँसता हुआ बोल उठा, ख़ुदा जाने वह चुपचाप कब यहाँ आकर खड़ा हो गया...?

“हट साले, मौत आयी है तेरी..? जमूरे भाग, यहाँ से।” राजेंद्र गुप्ता की एक घुड़की सुनकर, बेचारा श्योपत सिंह भाग खडा हुआ।

कुछ दिन बीते, सोहन लाल हो गए निश्चिंत..’अब मामला तय। अब कोई माई का लाल उधेड़ेगा नहीं, हमारी इज्ज़त की बख़िया।’ आख़िर एक दिन काट आये एक चक्कर जयपुर का, दरी पट्टियां बनाने वाली फर्म के पास, और ख़ुश होकर बैंक से भुगतान उठने की बात कहकर अपना उल्लू सीधा कर आये। मगर जनाब जब वापस दफ़्तर आये, और दफ़्तर के चौक में बिखरी दरी पट्टियां देखी..तो सकपका गए। फिर, रौशन लाल से कहने लगे “भाई रौशन लाल, इस चौक को मंडी मत बनाओ। सभी दरी पट्टियों को वितरित करके, आराम की सांस लो। जानते हो ? काम पूरा, और मज़दूर मस्त। सही कहा ना, रौशन लाल ?”

उनकी कही बात को अनसुनी करता हुआ, रौशन लाल दरी पट्टियां समेट रहे चपरासी शंकर लाल को डांटता हुआ कह बैठा “चुप रहकर काम करने से काम नहीं चलता, शंकर लाल। उठ, और जा पिछले साल दरी पट्टियां ख़रीद का सेम्पल और इस साल आया ‘जोधपुर कारागृह’ का सेम्पल..जो स्टोर में है, झट ले आ। तूझे पत्ता नहीं, ये दोनों सेम्पल साहब कब से मंगवा रहे हैं अपने कमरे में ?”

पिछले साल उम्दा दरी पट्टियों की खरीद हुई, जिसकी दरें भी जयपुर वाली फर्म से कम थी। और इस साल जोधपुर से आया सेम्पल भी उम्दा, और उसकी रेट भी जयपुर वाली फर्म की दरी पट्टियों से कम। इस जानकारी ने खोल दी, खिड़कीयाँ कानों की। सोहन लाल को अपना जमा-जमाया खेल, प्यादे की शह से ताश के पत्तों की तरह बिखरता जान पड़ा। तभी दरवाज़े से सटकर खड़े श्योपत सिंह ने बुझ रही आग में घी डालने का काम कर डाला, वह शंकर लाल को कहने लगा “अरे ओ, शंकर लाल स्टोर में जा और जीप के पर्दों के सेम्पल भी लेते आ, चार साल हुए इन्हें ख़रीदे हुए..और उन पर्दों के दीदार हुए, अब..? वह भी रौशन बाबू की, मेहरबानी से।” फिर श्योपत सिंह गाड़ी में रखा गाड़ी का टायर, वहां ले आया चौक में। उसे चौक में रखता हुआ, सोहन लाल से बोला “आप हमारे साहब हो, कपड़ा तो अब आपकी मेहरबानी से हमें नसीब हुआ। हुज़ूर की बरक़त बढ़े, दिन दूनी रात चौगुनी तरक्क़ी मिलती रहे आपको। हम ठहरे गंवार ड्राइवर जात, हमें क्या करना दिया गया कपड़ा सूती और बिल पेश किया गया हो टेरीकोट कपड़े का ? सही कहा ना, हेड साहब ? हमें तो कपड़े से मतलब है, आप जो देंगे वह हम चुपचाप ले लेंगे।”

अब सोहन लाल के चेहरे पर आते-जाते भावों की, किसे परवाह ? उधर साहब की घंटी बज उठी, शंकर लाल दरी पट्टियों को एक तरफ रखकर चल दिया साहब के कमरे की ओर। थोड़ी देर बाद, वह वापस आकर राजेंद्र गुप्ता और सोहन लाल को साहब के कमरे के भीतर ले गया।

तभी आकाश में बादलों की गड़गड़ाहट हुई, काले-काले बादल आसमान में छा गए। बिजली के कोंधने के मंज़र को छोड़, श्योपत सिंह साहब की खिड़की कि पाज़ पर चढ़ गए। फिर अपने चमत्कारी कानों को कमरे के भीतर हो रही अफ़सरी गरज़ना को सुनने के लिए दिशा दे दी...कब बिजली कोंधे और न्यूज़ बने। साथ ही वे, खिड़की के छेद से अन्दर का नज़ारा देखने लगे।

“गुप्ताजी, मैं तुमसे कह रहा हूँ, उठो और जाओ इन हेड साहब के हेंडराइटिंग के सेम्पल लेते आओ..देखता हूँ, अफ़सरों की मोहर के ऊपर चढ़कर, कैसे अफ़सर के जाली दस्तख़त करते हैं ?” क्रोध से काफ़ूर होकर साहब गरज़ उठे, सोहन लाल को उठते देख साहब के दिल की क्रोधाग्नि भड़क उठी। वे शेर की तरह दहाड़ते हुए बोले “आपको उठने का, किसने कहा ? सोहन लालाजी, यहीं बैठे रहिये। अभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता है, आपके सामने।”

राजेंद्र गुप्ता के जाते ही, सोहन लाल झट झुक पड़े साहब के चरणों में। मगर, यहाँ तो न मालुम साहब किस मिट्टी के बने हैं..? वे तो झट गुस्से से बोले “हटो सोहन लालाजी, इस तरह काम नहीं चलेगा। आपने इस दफ़्तर की साख़ गिरवी रख दी...” साहब ने इतना कहकर, विद्युत घंटी स्विच दबा दिया।

घंटी सुनकर, शंकर लाल पर्दा हटाकर कमरे के अन्दर दाख़िल हुआ..और बोला “फ़रमाइए हुज़ूर।”

“गुप्ताजी से कहो कि, सोहन लालजी का निलंबन आदेश टंकित करना न भूलें।” साहब बोले।

इस अभूतपूर्व स्वागत से सोहन लाल घबरा उठे, साहब के हुक्म को मुस्तैदी से तामिल होते देख उनको सामने बैठे साहब “प्रोढ़ शिक्षा अधिकारी” के रूप में नज़र न आकर वे हाथ में डंडा लिए पुलिस अधिकारी की तरह नज़र आने लगे। मानों वे अपने थुल-थुल पेट पर डंडा सटाकर कह रहे हो “क्यों हमसे उड़ने लगे ? हम तो उड़ती चिड़िया को पहचानते हैं..बहन के...[भद्दी गाली] हमसे ही बदमाशी..?

“हाँ हुज़ूर, ग़लती हो गयी..माफ़ कीजिये। चक्कर आ रहा है, पाँव लड़खड़ा रहे हैं..देखो यह मैं गिरा...” और इतना कहते-कहते सोहन लाल, झट चक्कर खाकर ठन्डे फर्श पर जा गिरे। यह मंज़र देखकर, श्योपत सिंह अपने-आपको रोक न सका। कहकहा लगाकर, ज़ोर से हंस पड़ा..मानों अभी-अभी उसने सर्कस के किसी जोकर का क़रतब देख लिया हो..? उसको आश्चर्य होने लगा कि, कल तक यह सोहन लाल केसरी सिंह नाहर की तरह गरज़ता था, आज वही आदमी भीगी बिल्ली बन गया है ? तभी अचानक न मालुम कहाँ से एक काली बिल्ली आयी, उसने दीवार फांदकर खिड़की के पास छलांग लगा डाली..? और डरावनी आवाज़ निकालने लगी “म्याऊ..म्याऊ।” इसकी आवाज़ ने छुट्टी कर दी, श्योपत सिंह की। इस बिल्ली को देखकर खिड़की पर चढ़े श्योपत सिंह के पाँव, करने लगे हरि-कीर्तन। उसी वक़्त वहां से रौशन लाल का गुज़रना हुआ, उसने देखा ‘पाज़ से पाँव छूट जाने से, श्योपत सिंह खिड़की से लटका रहा था।’ उसे इस तरह लटके देखकर रौशन लाल हंस पड़ा, और व्यंग से श्योपत सिंह को कहने लगा कि, “अबे ओ चिलगोजे की औलादजी, आपने कुछ खाया-पीया या नहीं ? साली बंदरिया की तरह, लटक रहे हो..? कहाँ गया तुम्हारा मदारी, हेड साहब ?”

“ओए मां के दीने जी, उस ख़ुसूट की कहाँ औकात हमारा मदारी बने ? वह तो ख़ुद बन गया, बंदरिया।” इतना कहकर, श्योपत सिंह ने खिड़की छोड़ दी और नीचे कूद पड़ा..सीधा चौक में बिल्कुल रौशन लाल के समीप। तभी चौक में गुप्ता गुरु आ गए, और उनके हाथ में टाइप किया हुए काग़जों का पेड था। वहां रौशन लाल को वे देखकर बोल उठे “यार रौशन लाल, हो गया कमाल। अब खेल तो हो गया चालू, जा देख ले साहब के कमरे में तैयार खड़ी है तेरी बंदरिया..तिगनी का डांस करने। अब तेरी मर्जी, इसे तू विलिंग बकरा बना या करवा तिगनी का डांस। हमने तो अपना वादा पूरा कर लिया है, हमारे ज़िगर के टुकड़े रौशन के लिए।” इतना कहकर, राजेंद्र गुरु ने प्यार से गाल सहला दिए रौशन लाल के। शर्म के मारे उसके गोरे-गोरे गाल हो गए लाल। “साला, शर्माता क्या है ? आज़कल तो छोरियां भी शर्माती नहीं इतना, साली बेच आती सरे आम शरीफ़ आदमी को। चल इधर आ, और पकड़ इस पेड को। फिर चल, अपने कमरे में..जहां इस ख़ुसूट हेड से उठ-बैठक करानी है।”

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हथेली पर लगी थप्पी, थप्प..थप्प, तम्बाकू की मनभावन महक से अतीत की दुनिया छोड़, चेतन हो गए सोहन लाल। अब सोहन लाल ने घीसू लाल की हथेली से तम्बाकू उठायी, फिर उसे अपने होंठ के नीचे दबाई..फिर घीसू लाल से कहने लगे “यार घीसू लाल, तुम दोस्त मानते हो मुझे तो कभी इसका जिक्र मत करना। इस दरी पट्टी काण्ड को हमेशा के लिए दफ़न कर दो, अब। इस काण्ड के कारण ही मुझे रायपुरिया का काला पानी देखना पड़ा। अरे यार घीसू लाल, तू देख इस देश में बड़े-बड़े मिनिस्टर खाते हैं रिश्वत और कमीशन करोड़ों रुपयों का...जिसे सदभावना शुल्क समझकर खा जाते हैं पूरा, और डकार भी नहीं लेते कमबख़्त। और वहां हम जैसे ग़रीब आदमी बची हुई खुरचन के हाथ भी लगा दे, तो ये नासपीटे कर देते हैं हमारा तबादला ऐसी काला पानी [डार्क ज़ोन] की जगह..वहां से वापस लौटना बहुत मुश्किल। यार, तूझे क्या पत्ता ? बड़ी मुश्किल से निलंबन के फेर से बचने के लिए, तबादले को गले लगाया था। न तो कौन ऐसा मूर्ख है, जो अपना मूल निवास स्थान छोड़े...?”

आसियत का अँधेरा बढ़ने लगा, चाय पीकर सोहन लाल कुर्सी से उठ गए। और, कहने लगे “भाई घीसू लाल, अब रुख़्सत दीजिये..देर हो गयी। अगर भागवान [घर वाली] सो गयी तो, दरवाज़ा खोलेगा कौन ? अगर गली के कुत्ते जग गए तो, यार मुझे कहीं तिगनी का डांस न करना पड़े...? शुभ रात्रि।” इतना कहकर, वे घर के दरवाज़े की ओर क़दम बढ़ाने लगे।

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पाठकों।

शुभ दीपावली। दीपावली पर्व पर, मेरी आप सबको शुभकामनाएं। आपका नव वर्ष मंगलमय हो। इस दीपावली के पावन अवसर पर आप संकल्प लें कि “इस अंक में दर्शाए गए अनुसार आप कभी अपने ईमान को डिगने नहीं देंगे। करप्सन छोटा हो या बड़ा, देश के विकास में बाधा अवश्य डालता है। इससे बचे रहें, यही इस अंक तीन “तिगनी का डांस” का लक्ष्य है। आप इस अंक को पढ़कर, आप अपने विचार मुझे अवश्य अवगत करायेंगे। आपका शुभचिन्तक

  दिनेश चन्द्र पुरोहित [लेखक]

dineshchandrapurohit2@gmail.com

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जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
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रचनाकार: संस्मरणात्मक शैली पर आधारित “डोलर हिंडा” का अंक 3 “तिगनी का डांस” लेखक दिनेश चन्द्र पुरोहित
संस्मरणात्मक शैली पर आधारित “डोलर हिंडा” का अंक 3 “तिगनी का डांस” लेखक दिनेश चन्द्र पुरोहित
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