एक देश था, देश में सड़कें भी थी और सड़कों पर गड्ढे भी थे , गड्ढे होते ही हैं, हो ही जाते हैं ! वह भी एक साधारण गड्ढा ही था , उसमें पानी भरा था...
एक देश था, देश में सड़कें भी थी और सड़कों पर गड्ढे भी थे , गड्ढे होते ही हैं, हो ही जाते हैं ! वह भी एक साधारण गड्ढा ही था , उसमें पानी भरा था , आते जाते वाहन कीचड़ उछालते और जिनको छींटे लगते, वे वाहन वालों को जी भरकर कोसते ! एक व्यक्ति उस गड्ढे में गिर गया और उठकर कीचड़ झाड़ता हुआ इधर उधर देख रहा था कि अचानक उसने देखा - उस गड्ढे की आकृति उस देश के नक्शे जैसी दिखाई दे रही थी। उस व्यक्ति ने उस गड्ढे का फोटो खींचा और वाट्सअप पर डाल दिया। उस फोटो को देखने वालों के हृदय में अब देशप्रेम की ज्वाला भड़क उठी। जिनको गड्ढों से नफरत थी वे भी देखने चल पडे़ ! कोई इसे प्राकृतिक चमत्कार बता रहा था, कोई शुभ संकेत ! लोंगों की भीड़ उमड़ पड़ी। जिसने सर्वप्रथम गड्ढे का प्रचार किया था वह खुद को उसका मालिक समझ बैठा ? उसने गड्ढे के पास ही एक बड़े पेड़ पर देश का नक्शा टांग दिया और नीचे सिन्दूर लगा पत्थर रख दिया। अब जो भी जाता वो पेड़ के नीचे चढ़ावा जरूर चढ़ाता ! हार-फूल प्रसाद की बिक्री बढ़ गई, भीड़ देख कर खोमचे वाले भी आ गए, चाय पोहे समोसे की दुकान खुल गई ,कई लोगों को रोजगार मिल गया, आते जाते वाहन एक ओर से निकलने लगे, रास्ते में जाम लगने लगा और देखते ही देखते गड्ढा प्रसिद्ध हो गया ।
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बात के पंख नहीं होते परन्तु वह पंख वालों से तेज उड़ती है। धीरे धीरे बात ऊपर तक पहुँची। नेताजी ने अपने विश्वस्त (चापलूस) अधिकारी को आदेश दिया - देख कर आओ क्या माजरा है ? अधिकारी सपरिवार सरकारी गाड़ी से निकला और अपनी ससुराल के सब काम निपटाता हुआ गड्ढे के दर्शन कर 3 दिन की यात्रा सानन्द सम्पन्न कर सकुशल लौट आया और अपने आका को विस्तृत जानकारी दी।
गड्ढे के भ्रमजाल में नेताजी को विशाल वोट बैंक और अधिकारी को कमीशन दलाली और घोटाला कर गुजरने की मौका नजर आया ! नेताजी ने गड्ढा यात्रा का कार्यक्रम बनाया, रेडियो टेलीविजन और समाचार पत्रों में गड्ढा यात्रा के विज्ञापन दिए गए, प्रत्येक ग्राम में उसकी सूचना भिजवाई गई, पोस्टर छपवाए गए और यात्रा का उद्देश्य देश की एकता अखंडता व समृद्धि बताया गया। प्रत्येक ग्राम से रैली में जाने हेतु वाहन की व्यवस्था की गई और ग्राम समूहों को भोजन पेकेट बनाने का आदेश दिया गया। नियत तिथि पर सैकड़ों वाहनों की विशाल रैली के रूप में जनसैलाब उमड़ पड़ा। गाँव से लेकर जिला तक के अधिकारी अपना अपना काम छोड़कर नेताजी की अगवानी में सुबह से ही खड़े थे। लोग हैरान परेशान होकर एक दूसरे को देखते और खिसिया कर हँस देते, शायद आज के लिए विधाता ने उनका यही भाग्य रचा था। समय पर पहुँचना तो नेताजी का अपमान था सो वे शाम को पहुँचे। माहौल बोझिल और थकित श्रमित होते हुए भी उत्साहित हुआ ? उत्साहित जनता ने मातृभूमि की जयकार की और नेताजी ने उस जगह गड्ढे का स्मारक बनाने की घोषणा ! स्मारक निर्माण की फाइलें ऊपर से नीचे, नीचे से ऊपर चलती रही, करोड़ों का आवंटन हुआ , टेण्डर हुए और सबके कमीशन तय हुए।
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घटनाक्रम कब कैसे बदल जायगा ? कोई नहीं जानता ? एक सिरफिरे ने गड्ढा भर दिया। जानकारी मिलते ही फिर नेता और अधिकारियों के दौरे शुरू हो गए, सिरफिरे पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज हुआ। सरकारी खजाने से भारी भरकम फीस वकीलों को दी गई। इस बीच चुनाव की घोषणा हो चुकी थी। सिरफिरा विपक्षी दल में शामिल हो गया और विपक्ष जीत गया। नई सरकार ने मुकदमा वापस ले लिया और मेरी नींद खुल गई ... अहा ???? क्या रोमांचक स्वप्न था ??? .....
लेखक - कमल किशोर वर्मा दुर्गा कालोनी कन्नौद जिला देवास
लेखक परिचय -
कमल किशोर वर्मा , दुर्गा कालोनी कन्नौद जिला देवास म.प्र. शिक्षा - बी. एससी . एम.ए. बी.एड.
कवि, लेखक, गीतकार, संगीतकार, चि़त्रकार, ज्योतिषी, हस्तरेखा विशेषज्ञ, सामुद्रिकशास्त्र, वास्तुशास्त्र विशेषज्ञ, आयुर्वेद के ज्ञाता, प्राचीन भारतीय संस्कृति के मर्मज्ञ इतिहासकार
लिखी गई पुस्तकें -
काव्यांजलि निहारिका भाग 1 तथा भाग 2 ( काव्य संग्रह ) एक चम्मच सच ( र्व्यंग्य लेख व कहानी संग्रह )
मुगल काल का काला सच ? राजा राममोहन राय का सच ? कैसा महात्मा था गाँधी ? सिन्धु का विनाश कारण और विश्लेषण देव चर्चा
पुस्तक परिचय - देव चर्चा
पुस्तक देवचर्चा का कथानक इस प्रकार प्रारम्भ होता है कि भगवान विष्णु ने एक बार नारदजी से कहा कि हे नारद, हमारे प्रिय आर्यावर्त भारतखंड से हमें श्रीकृष्ण रूप से आए लगभग 5000 साल हो गए हैं आप भारत में जाकर 6 माह रहिए और हमें वहाँ की सब बातें, सब हाल समाचार विस्तार से बताइये। तब नारदजी भारत आए और यहाँ के हालात का विस्तार से वर्णन किया .. यहाँ के दुःख-दर्द, लाचारी, चोरी, बेइमानी, सत्तालोलुपता, भ्रष्टाचार, अन्याय और अत्याचार की कथा विस्तार से सुनाई। वही कथानक है।
पुस्तक परिचय - सिन्धु का विनाश कारण और विश्लेषण
सिन्धु घाटी की सभ्यता के बारे में आज बहुत सी बातें जानी जा चुकी है। सब जानते हैं कि सिन्धु घाटी की सभ्यता बहुत विकसित थी। परन्तु खुदाई से प्राप्त कुछ बर्तन औजार मकान गली सड़क से उस समय की भौतिक जानकारी ही प्राप्त होती है, मानसिक वैचारिक कर्तव्यनिष्ठा कार्यशैली आपसी तालमेल, विचारधारा, शासन व्यवस्था अधिकारियों कर्मचारियों की कार्य शैली उनके कार्य व्यवहार नियम रीति-रिवाज और भ्रष्टाचार के बारे में खुदाई से पता नहीं चल सकता ! अब सबसे बड़ा प्रश्न है कि इतनी विकसित सभ्यता नष्ट क्यों हो गई ? सिन्धु घाटी की सभ्यता नष्ट होने का कारण मै जानता हूँ। सिन्धु घाटी में उस समय लगभग 38 विभाग थे जिनमें लगभग 5000 नियम, कानून, योजना, कार्य, कार्यशैली, और कार्यपद्धति मूर्खतापूर्ण और भ्रष्ट थी। ये योजनाएँ सिर्फ इस लिये बनाई गई थी कि राजा और अधिकारियों को कमीशन और रिश्वत मिल सके ! समाज देश मानवता का क्या होगा ? इसका न तो उनको ज्ञान था न इससे उनको मतलब ? वे सिर्फ वही योजना बनाते थे जिसमें उनको धन मिले ! उन सब मूर्खतापूर्ण योजनाओं का वर्णन इस पुस्तक में है। राजा और अधिकारियों की सत्तालोलुपता जिद तानाशाही भ्रष्टता और मूर्खता से कैसे विनाश हो जाता है यही विवेचना है।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन साक्षरता दिवस सिर्फ कागजों में न रहे - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन व्यंग। आभार।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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