प्रेम गली अति सांकरी सुशील शर्मा 'घड़ी चढ़े, घड़ी उतरे, वह तो प्रेम न होय, अघट प्रेम ही हृदय बसे, प्रेम कहिए सोय।' कबीर यह निश्चित...
प्रेम गली अति सांकरी
सुशील शर्मा
'घड़ी चढ़े, घड़ी उतरे, वह तो प्रेम न होय,
अघट प्रेम ही हृदय बसे, प्रेम कहिए सोय।'
कबीर
यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि प्रेम हमारे जीवन की सबसे मोहक भावनाओं में से एक है। यह कहना भी काफी हद तक सच है कि "प्यार अँधा होता है" क्योंकि आप कभी नहीं जानते कि आपका दिमाग कब प्यार करेगा। जोड़ों के बीच वासना, आकर्षण, लगाव और प्रेम को उत्तेजित करने में रासायनिक प्रतिक्रियाओं की एक बड़ी संख्या शामिल है। विज्ञान ने अभी तक प्यार की जटिलता के पीछे सटीक शारीरिक प्रतिक्रियाओं की खोज की है। हालांकि, उपर्युक्त अध्ययनों के आधार पर यह स्पष्ट रूप से कहा जाता है कि प्यार में पड़ने से मस्तिष्क के भीतर कई तंत्र और रसायन शामिल होते हैं। आप प्रेम की प्रतिक्रिया से बच नहीं सकते हैं। जरुरी नहीं कि आपका साथी उत्कृष्ट, या सुन्दर हो क्योंकि प्रेम की भावना शारीरिकता से गहरी है। प्यार एक प्राकृतिक म्यूज़िक है; आप इसमें भ्रमित होगें , इसके बारे में सपने देखेंगे, और इसके विचार में खो जाएंगे।
प्रेम में मांग करना भिक्षा के समान हैं। प्रेम में अपेक्षा नहीं होती ,प्रेम में उपेक्षा भी नहीं होती प्रेम में निरपेक्षता होती है। प्रेम तो उस जल के सामान है जो निरंतर बहता है अगर वह रुका तो सड़ जाता है बास मरने लगता है । जब हम किसी से प्रेम करते हैं तो ये जरूर निरीक्षण करें कि कहीं उस प्रेम में हमारी अपेक्षाएं तो जीवित नहीं हो रही हैं कहीं कोई मांग तो हमारे अंदर पैदा नहीं हो रही हैं ,कही हम अपने अंदर का खालीपन ,अकेलापन भरने की कोशिश तो नहीं कर रहें हैं।
हम सच्चे प्रेम की रचना अपने अंदर कैसे करें यह बहुत व्यक्तिगत प्रश्न हैं क्योंकि अधिकांशतः जिसे हम प्रेम कहते हैं वह प्रेम नहीं होता बल्कि हमरे अंतर्भूत ,हमारे अंदर की इच्छाएं ,वासनाएं ,लालच ,अकेलापन ,निर्भरता ,हमारे अहम् की तुष्टि ,हमारी किसी कमी की पूर्ति की त्वरित जरूरत हो सकती है। प्रेम दूसरे का स्वामी बनने की प्रवृत्ति नहीं रखता। प्रेम का किसी अन्य से लेना-देना होता ही नहीं है। वह तो हमारे अस्तित्व की एक स्थिति है।
प्रेम संबंधों पर आधारित नहीं हैं यह जरूरी नहीं की जो हमारा पति है ,पत्नी है ,भाई है या कोई और रिश्ता है बस उसी से हमें प्रेम हो ,प्रेम संबंधों में सीमित नहीं होता है। प्रेम हमारे अस्तित्व की एक स्थिति है। जब वह सम्बन्ध होता है, तो प्रेम नहीं हो सकता। गोपियों का कृष्ण से कोई सम्बन्ध नहीं था ,राधा का कृष्ण से कोई सम्बन्ध नहीं था इसलिए ये लोग अनन्य प्रेमी आज भी कहलाते हैं। यशोदा का कृष्ण से कोई सम्बन्ध नहीं था ,राम का शबरी से कोई सम्बन्ध नहीं था। सम्बन्ध में बंधन होता है और प्रेम निर्बंध होता है ,सम्बन्ध के दोनों और बांध हैं इसलिए प्रेम का पानी रुक कर सड़ सकता है किन्तु सरिता का जल निरंतर प्रवाहित है शुद्ध है वही प्रेम है।
प्रेम तो हमारे अस्तित्व को पोषित करता है उसमे शोषण नहीं होता है किन्तु जब प्रेम में अपेक्षाएं आ जाती हैं तो वह शोषण बन जाता है कितना कम देना पड़े और कितना ज्यादा मिल जाए इसकी चेष्टा है। जब हम प्रेम में कुछ नहीं मांगते सिर्फ स्वयं के समर्पण का भाव होता है तो हृदय को शांति मिलती है, आनंद मिलता है,रस मिलता है।
जब आप किसी को प्लैटोनिक रूप से प्यार करते हैं, तो सम्बन्ध टूटने का डर नहीं होता है। "ब्रेक टू" या "टार्निश" जैसा कुछ भी नहीं होता है। यदि आप आपस में लड़ते भी हैं,तो उससे आपके अंदर असुरक्षा की भावना नहीं आती कि मैं इसे खो दूंगा या खो दूँगी । आप हमेशा एक-दूसरे के साथ से वापस आ जाएंगे क्योंकि आप एक दूसरे से प्यार करते हैं।जब आप रोमांटिक रूप से किसी से प्यार करते हैं, तो आपका रिश्ता समझौता पर आधारित होता है। इस प्रेम में यह महत्वपूर्ण है कि आप एक दूसरे को खुश रखें अन्यथा खोने का डर लगा रहेगा। उनकी ज़रूरतें आपके सामने आती हैं, और कोई भी अनसुलझी स्थिति नकारात्मकता पैदा करके संबंधों को को जहरीला या बोझ बना देती है।
प्रेम का विज्ञान
सोसायटी फ़ॉर न्यूरोसाइंस के इस शोध में मस्तिष्क के उन हिस्सों में उथल-पुथल का पता चला है जो ऊर्जा से संबद्ध हैं। शोधकर्ताओं ने 17 युवा लड़कों और लड़कियों के दिमाग़ की स्कैनिंग करके यह देखने का प्रयास किया कि प्यार होने पर उनके दिमाग़ में क्या बदलाव आता है। लिसा डायमंड और जना डिकेंसन, यूटा विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिकों ने पाया कि प्रेम दो मस्तिष्क क्षेत्रों-वेंट्रल टेगमेंटल एरिया (वीटीए) और कौडेट न्यूक्लियस में गतिविधि के साथ सबसे लगातार जुड़े हुए हैं। ये क्षेत्र हमारे प्रेम की उत्पति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और "हमारे न्यूरोट्रांसमीटर डोपामाइन को नियंत्रित करते हैं।
और समय के साथ ये भावनाओं को सतत जारी रहतीं हैं। न्यूरोइमेजिंग शोध से पता चलता है कि एक बार जब आप प्रेम करते हैं तो सिर्फ आपके आपके साथी के बारे में सोचने से न केवल आपको अच्छा लगता है बल्कि दर्द, तनाव और अन्य नकारात्मक भावनाओं के खिलाफ भी वह ढाल का काम करता है।प्रेम होने पर उनके मस्तिष्क में 'डोपामाइन' का स्तर बढ़ा रहता है। डोपामाइन' दिमाग़ में बनने वाला एक रसायन है जो संतोष और आनंद की भावनाओं को जन्म देता है। जब इसका स्तर बढ़ जाता है तो ऊर्जा में वृद्धि हो जाती है और इंसान आमतौर पर उत्साहित महसूस करता है.लेकिन पुरुषों और महिलाओं में प्रतिक्रियाएँ अलग-अलग थीं। अधिकतर महिलाओं में दिमाग़ के उस हिस्से में बदलाव देखा गया जो भावनाओं से संबद्ध है। लेकिन अधिकतर पुरुषों में उत्तेजना बढ़ाने वाले बदलाव नज़र आए।
मनोविज्ञानी रोबेर्ट स्टर्न्बर्ग ने प्यार के त्रिभुजाकार सिद्धांत को सूत्रबद्ध किया हैं। उन्होंने तर्क किया के प्यार के तीन भिन्न प्रकार के घटक हैं: आत्मीयता, प्रतिबद्धता और जोश। आत्मीयता वो तत्व है जिसमें दो मनुष्य अपने आत्मविश्वास और अपने ज़िन्दगी के व्यक्तिगत विवरण को बाँटते हैं। ये ज़्यादातर दोस्ती और रोमानी कार्य में देखने को मिलता है।प्रतिबद्धता एक उम्मीद है कि ये रिश्ता हमेशा के लिये कायम रहेगा। आखिर में यौन आकर्षण और जोश है। आवेशपूर्ण प्यार, रोमानी प्यार और आसक्ति में दिखाया गया है।
यौन के जैविक मॉडल में प्रेम को भूख और प्यास की तरह दिखाया गया हैं। हेलेन फिशर, के अनुसार प्रेम को तीन हिस्सों में विभाजन किया गया हैं: जिसमें काम , आकर्षण, और आसक्ति प्रमुख हैं । काम यौन इच्छा होती है। आकर्षण निर्धारित करता है कि आपके साथी में आपको क्या आकर्षित करता है। आसक्ति में घर बार , माँ-बाप का कर्तव्य, आपसी रक्षा और सुरक्षा की भावना शामिल है। जैविक आधार के अनुसार जैसे जैसे मनुष्य प्यार करने लगते हैं, उनके मस्तिष्क में एक प्रकार के रसायन की रिहाई होती हैं। मनुष्य के मस्तिष्क में सुखों के केन्द्र को उत्तेजित करता है। प्रेम के सारे प्रपत्र में इन घटकों का संयोजन होता हैं।
केवल प्रेम ही किसी को आमूल चूल बदलने की सामर्थ्य रखता है। प्रेम से ही भयंकर से भयंकर अहंकार को गलित किया जा सकता है। प्रेम से ही योग और ध्यान का रास्ता गुजरता है। बिना शर्तों का प्रेम ही ध्यान है योग है। जहाँ प्रेम न दिखे, वहाँ मोक्ष का मार्ग ही नहीं है ।प्रेम से हमारे अंदर का तमस उजाला बन जाता है। वह अपने साथ एक नया मौसम लाएगा और हमारे अंदर नए अस्तित्व की कोंपले फूटेंगी। जहाँ प्रेम है, निष्ठा है, पवित्रता है, वहाँ पर ही भगवान है। जिस प्रेम में क्रोध-मान-माया-लोभ कुछ भी नहीं, स्त्री नहीं, पुरुष नहीं कुछ भी नहीं वही सच्चा प्रेम है।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन आपातकाल की याद में ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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