विषादेश्वरी भाग 7 // उड़िया उपन्यास // सरोजिनी साहू // अनुवादक - दिनेश कुमार माली

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भाग 1 भाग 2 भाग 3 भाग 4 भाग 5   भाग 6   अल्बर्टो उसकी सारी बातें सुनने के बाद चुप रहा। हर्षा बालकनी के पास खड़ी होकर अपने बाल संव...



भाग 1 भाग 2 भाग 3 भाग 4 भाग 5  भाग 6 
अल्बर्टो उसकी सारी बातें सुनने के बाद चुप रहा। हर्षा बालकनी के पास खड़ी होकर अपने बाल संवार रही थी। दोनों के भीतर चुप्पी प्रबल थी। पीठ के पीछे बाल लहराती हुई वह बाथरूम में अपने हाथ धोने चली गई। अलमारी खोलकर उसने देवताओं की तस्वीरों के सामने धूप जलाया। वह अल्बर्टो की उपस्थिति के कारण थोड़ा अजीब महसूस कर रही थी। अगर किसी ने इस घर में इस गोरे आदमी को आते देख लिया तो ? नहीं, दिल्ली इतनी बड़ी जगह थी कि किसी के पास किसी के संबंध में हस्तक्षेप करने का कोई समय नहीं है। चिंता का एकमात्र विषय है, उसकी गोरी चमड़ी, जो आँखों को आकर्षित करती है। पड़ोसन की उत्सुकता बढ़ सकती है।
धूपदानी में अगरबत्ती लगाने के बाद, जब वह भैरवी की चौकी पर बैठी  तो अल्बर्टो ने कहा: "वाह! इतनी प्यारी सुगंध। क्या तुम्हारी पूजा खत्म हो गई है?"
हर्षा ने सिर हिलाया।

"क्या मैं तुम्हारे भगवान को देख सकता हूँ?"
"भगवान केवल मेरे ही नहीं हैं, वे सभी के हैं। "
हर्षा ने हँसते हुए अलमारी खोली और कहा, “आओ, अल्बर्टो, देखो। ”
  अलमारी के सामने खड़ा होकर पूछने लगा, "क्या तुम सभी की पूजा करती हो ?"
"हां, हमें सभी की पूजा करनी होती है। "

"क्या तुम मुझे अपने देवताओं का परिचय नहीं कराओगी ?"
  वह अल्बर्टों की बात सुनकर हँसने लगी। "क्या ये  इंसान हैं कि मैं उन्हें तुमसे मिलवाऊंगी? ठीक है, मैं बताती हूँ। ये जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा हैं; यह काली है, उसके पास में दुर्गा हैं, उसके बाद सरस्वती, उसके पास गणेश है। यहां शिव और पार्वती हैं। "
"क्या तुम एक ही समय में उनकी पूजा करती हो?"
"हां, तुमने इसे अभी देखा नहीं? हम तीन सहेलियाँ यहाँ रह रही हैं। हमने स्वयं अपनी आस्था के अनुसार अलमारियों में देवी-देवताओं की तस्वीरें रखी है। मगर इसका मतलब यह नहीं है कि वह केवल अपने देवताओं की पूजा करेगी, दूसरों की नहीं। हम सभी जानते हैं कि भगवान एक है, मगर हमने उन्हें विभिन्न रूपों में प्रस्तुत किया है। "
"और, वह शिव होने चाहिए, " अल्बर्टो ने अपनी उंगली से इशारा करते हुए कहा।
"मैंने तुम्हें शिव के बारे में एक अच्छी कहानी सुनाई थी, क्या याद है?"

हर्षा मुस्कुराई: "तो क्या तुम्हें याद है? ठीक है, मुझे बताओ कि मैं तुम्हारे लिए कौनसा नाश्ता तैयार करूंगी?  सुबह जल्दी ही तुम बाहर निकल गए हो, कुछ भी नहीं खाया होगा ? "
" किसने कहा? मैंने सुबह चॉकलेट केक खाया है। "
"सुबह-सुबह चॉकलेट केक? इसलिए तुम्हारे दांतों की यह स्थिति है ? "
अपने पड़ोसी द्वारा दी गई प्रसाद  की पूरी थाली को उसके सामने हर्षा ने रख दिया।
  "अल्बर्टो, चलो इसे मिलकर खा लेते हैं। ऐसे भी मैं इतना नहीं खा पाऊँगी। " उसने प्रसाद को दो अलग-अलग प्लेटों में बाँट दिया।
अल्बर्टो ने पूछा: "क्या यह ‘अर्ध-नारीश्वर’ की मूर्ति  है?"
"तुम इस शब्द के बारे में कैसे जानते हो ?"

"मुझे पता है कि तुम शैव हो और समुद्र-मंथन की कहानी सुनने के बाद मैंने उनके बारे में अध्ययन किया। "
हर्षा को अल्बर्टो का यह गुण बहुत अच्छा लगता है। सचमुच! इसी ज्ञान-भंडार के प्रेम में पड़कर वह धीरे-धीरे उसके नजदीक हो गई। हर्षा ने कहा: "तुम गलत कह रहे हो, अल्बर्टो यह मूर्ति 'अर्ध-नारीश्वर’ की नहीं है, मगर यह शिव-पार्वती की युगल मूर्ति है। क्या तुम जानते हो कि अर्ध-नारीश्वर’  क्या है? आधा पुरुष और आधी नारी के रूप का प्रतीक है। शिव है पुरूष का प्रतीक और पार्वती प्रकृति की।  शिव और शक्ति के संयोग से इस ब्रह्मांड से कीट तक की सृष्टि हुई है। "
"फिर, क्या यह प्रकृति नारी है?" अल्बर्टो ने पूछा।
"हां, तुम सही अनुमान लगा रहे हो, प्रकृति नारी है। "

"इसका मतलब है, तुम द्वैतवाद के दर्शन में विश्वास करती हो? मगर शंकराचार्य अद्वैतवादी थे। मेरा मानना है कि वह सही थे, "अल्बर्टो ने बहस करना शुरू कर दिया।
"ये अलग-अलग मत हैं। भारत में वैदिक काल से विभिन्न मत प्रचलित हैं। किसी ने ईश्वर को एक माना तो किसी ने पुरुष और स्त्री दोनों के अस्तित्व की कल्पना की। कौनसा मत सही है, कौनसा मत गलत है, यह सोचना अर्थहीन है। उपनिषद में कहा गया है- "मायाम् तू प्रकृति विद्यात, मायिनम तू महेश्वरम्" - जिसका अर्थ है कि 'माया' कुछ भी नहीं है बल्कि 'प्रकृति' है और इस 'माया' का निर्माता है 'महेश्वर'। क्या यह एक ही अस्तित्व का मतलब नहीं है? सुनो, अल्बर्टो, इस बारे में एक सुंदर कहानी आती है। "

"मुझे वह कहानी सुनाओ, हाना?"
"निश्चित रूप से। सृष्टि के शुरुआत की कहानी। महाशक्ति योगमाया इधर-उधर अकेली घूम रही थी। बिना किसी साथी के। धीरे-धीरे उसकी निसंगता असहनीय हो गई थी। अपनी निसंगता दूर करने के लिए उसने अपने शरीर से 'आदिपुरुष' ब्रह्मा  पैदा किया और उससे अनुरोध किया कि वह उसके अकेलेपन को दूर करे। मगर ब्रह्मा ने जन्मदात्री महिला से शादी कैसे की जा सकती है, का एक उचित प्रश्न उठाया। इससे असंतुष्ट होकर प्रकृति-स्वरूपिणी  योगमाया ने उसे जलाकर राख कर दिया। इसके बाद उसने विष्णु को बनाया और  विष्णु से वही अनुरोध दोहराया। जब उन्होंने मना कर दिया, तो उसे भी जला दिया। दिन-ब-दिन देवी का अकेलापन असहनीय होता जा रहा था। इस बार उसने बनाया अपने स्वयं के शरीर से महेश्वर को। महेश्वर के सामने अपनी इच्छा व्यक्त करने पर महान योगी महेश्वर उनकी मंशा समझ गए और न्याय-अन्याय के मानदंडों का उल्लंघन कर प्रकृति और पुरूष की सृष्टि-प्रक्रिया में आवश्यकता को प्राथमिकता देते हुए प्रकृति को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया और वहां से सम्पूर्ण सृष्टि पैदा हुई। क्योंकि प्रकृति की दृष्टि में, काम सखा है, काम भ्राता है, काम देव महेश्वर है।

खाना खाते हुए  अल्बर्टो ने पूछा: " यह क्या मिथक है?"
  "हां, सभी कहानियां पौराणिक कथाओं में सुनाई जाती हैं मगर, अल्बर्टो, तुम इन मिथकों को कवि की कोरी कल्पना या अवैज्ञानिक कहकर टाल नहीं सकते। तुम तो बहुत अच्छी तरह जानते हो कि विश्व के सारे दर्शनों में भारतीय-दर्शन अपनी तार्किकता के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
अल्बर्टो हँसने लगा: "तुम बहुत भावुक हो रही हो, हाना। "
"ऐसा बात नहीं है, अल्बर्टो,  तुम्हें उपनिषदों में निश्चित रूप से कपिल-मुनि के प्रकृति-पुरूष की कहानी मिलेंगी। उन्होंने यह भी कहा कि प्रकृति निर्जीव है और पुरुष चेतन है और उनके मिलन से सारी सृष्टि संभव हो सकती है। इस दर्शन को 'सत्कार्यवाद' के नाम से जाना जाता है। अल्बर्टो, हम भौतिक विज्ञान से जानते हैं कि दो शक्तियां हैं: एक पॉज़िटिव और दूसरी नेगेटिव। नेगेटिव आवेश को भौतिक विज्ञान में हम इलेक्ट्रॉन कहते है, जो अस्थिर और क्रियाशील है। पॉज़िटिव आवेश को प्रोटॉन कहा जाता है, जो स्थिर है। उनके संयोजन से एक परमाणु बनता है, जिससे जगत की सृष्टि होती है। इस जगत की प्रत्येक वस्तु में, प्राणी में, जंगम में हमें एक ही थ्योरी मिलेगी। चाहे पूरी ग्रह प्रणाली की बात हो या संपूर्ण जीवित विश्व। "
"ओह, यू आर वंडरफूल माय गर्ल, देट व्हाय आई एडोर यू। "
उसकी बात को अनसुनी करते हुए हर्षा ने पूछा: "क्या चाय पीओगे ?”  दोनों हाथों में जूठी प्लेटें लेकर वह रसोईघर में चली गई थी। अल्बर्टो ने उसका पीछा किया: "मुझे लगता है कि तुम अभी भी मुझसे नाराज हो। "
"नहीं, मैं क्यों नाराज होउंगी ?"
"प्लीज फोरगिव मी, माय स्वीट हार्ट !" अल्बर्टो ने अपना सिर थोड़ा नीचे झुकाया।
"ऐसा मत कहो, अल्बर्टो। मुझे बुरा लगेगा। मैं तुमसे प्यार करती हूं और तुम्हारा सम्मान करती हूं। यदि तुम एक अपराधी की तरह मेरे सामने सिर झुकाकर खडे रहोगे तो मुझे बुरा लगेगा। मैंने तुम्हें  पहले ही बता दिया है कि मैं तुम्हारी आँखों को नहीं पढ़ सकी, अन्यथा इसमें नाराज़ होने की क्या बात है।
"मैं तुम को सब-कुछ बताऊंगा, निश्चित रूप से मैं तुम को बताऊंगा, "अल्बर्टो ने अपनी असहायता व्यक्त की। 
हर्षो ने दोहराया: "तुमने मुझे बताया नहीं कि चाय पीओगे या नहीं?"
"नहीं, मैं नहीं पीऊँगा। "
हर्षा एक कप चाय जल्दी तैयार कर खाट पर बैठ गई। "सुनो, अल्बर्टों, सृष्टि-तत्व पर वेद में एक और कहानी है। कामदेव नामक ऋषि ने इसे मिथुन तत्व के रूप में प्रतिपादित किया है। सृष्टि-देवता ने पहले एक गाय बनाई और उसके साथ संभोग किया, फिर मवेशी वर्ग पैदा हो गया था। पितामह के उत्पीड़न से मुक्त होने के लिए गाय अलग-अलग रूप धारण करने लगी। जिससे कई चीजें बनी। गाय को प्रकृति की और आदिकर्ता को  पुरूष की परिभाषा दी गई।

"चीन में युन्गिविन की ऐसी ही अवधारणा है। तब तुम मेरी प्रकृति हो और मैं तुम्हारा पुरूष हूं? "अल्बर्टों ने मुस्कुराते हुए पूछा।
वास्तव में,  अल्बर्टो नहीं समझ पाया। वह उसके साथ शास्त्रों पर आलोचना करेगी। कान में प्रेम के मंत्रों को पढ़ने के साथ-साथ जब वह शरीर के प्राकृतिक आवेगों की संतुष्टि करने वाले ऋषि की तरह पूरी तरह से नाराज हो जाएगा, जिसका ध्यान-भंग हो गया हो। यह क्या था ? प्यार की अभिव्यक्ति निश्चित रूप से शरीर में उत्पन्न होती है तो क्या शरीर के बिना प्रेम का कोई अर्थ है? भले ही, उस आदमी के साथ उसके शारीरिक संबंध थे, मगर  प्यार नहीं। फिर भी देखो कैसे निरर्थक था।
अल्बर्टो ने कहा: "मुझे पता है कि कल की घटना के बाद तुम थोडी परेशान हो। नहीं, मैं वास्तव में सेक्स को पाप नहीं मानता हूं। ऐसा नहीं है कि मैंने सेक्स नहीं किया है। यदि मैं ऐसा कहता हूं तो गलत कहता हूँ। मैं नैष्ठिक पवित्र नहीं हूँ। यदि तुम मुझे ऐसा ऋषि मुनि समझती हो तो मुझे दुख लगेगा। मगर मैं सेक्स के प्रति थोड़ा उदासीन हूँ। बल्कि तुम कृपण  कह सकती हो। ”
आश्चर्य से हर्षा  ने उसकी तरफ देखा। अल्बर्टो के कहने का क्या मतलब था? उसने कहा: "आई लव वुमेन। आई एम नॉट एन इम्पोटेंट, बट आई मेक लव विद पार्सीमनी। "
हर्षा की चुप्पी देखकर उसने कहा, " मैं तुम्हें और खोलकर कह देता हूँ। मुझे नहीं लगता कि एक पुरुष और एक महिला का मिलन पाप है, और न ही मुझे लगता है कि नारी नरक का द्वार है। यदि किसी को हानि नहीं पहुँचती है, तो विवाहेतर संबंध गलत नहीं है। शायद मैं भगवान बुद्ध के निवृत्ति तत्व के कारण सेक्स के प्रति थोड़ा उदासीन हूँ। "
मगर जब उसने अल्बर्टो की तरफ देखा तो उसे लगा कि कुछ अनकहा उसकी छाती में रह गया था। हर्षा  ने कहा: "छोड़ो, अब आलोचना यहाँ बंद करो। जीवन में कई आकस्मिकताएँ घटती हैं, कल की घटना ऐसा ही मान  लो। "
"नहीं, हाना, मैं सचमुच में तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। नहीं, मैं बिल्कुल दुखी नहीं हूँ और न ही विचलित हूं, हमारे  शारीरिक संबंध स्थापित होने के कारण। अगर कल नहीं, तो निश्चित रूप से किसी दूसरे दिन ऐसा होता। प्यार में सम्पूर्ण समर्पण की भावना होती है। नाखून बढ्ने की तरह, मेरे मन में तुम्हारे प्रति कामना पैदा हो रही है। इच्छा हो रही है तुम्हारे बहुत करीब जाने की, क्योंकि मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ। मगर मेरी समस्या कहीं और है। समस्या उस क्षण की नहीं है, मगर बाद वाले समय की है। मैं शक्तिहीन हो जाता हूँ, मुझे भयंकर  हैंगओवर हो जाता है, पता नहीं क्यों ?"
"यह स्वाभाविक है, मगर अल्बर्टो, उस दिन मैंने तुम्हारी आँखों में थकावट की जगह शून्यता और कंगालपन देखा था। "

दोनों ही चुपचाप कुछ समय के लिए बैठे हुए थे। उस समय उन्हें सड़क पर गाड़ियों की आवाज, छोटे-छोटे बच्चों की हंसने-रोने की आवाज, दीवारों पर कील ठोकने की आवाज और प्रेशर कुकर की सीटी-कुछ भी सुनाई नहीं दे रही थी, जबकि ये आवाजें पहले से ही आ रही थी। दोनों ही इस शब्द-ब्रह्मांड में दो कठपुतलियों की तरह बैठे हुए थे। अल्बर्टो ने कुछ समय बाद चुप्पी तोड़ी।
"जब मैं छोटा बच्चा था। चार-पांच साल का था। मेरे साथ एक भयानक हादसा हुआ। हमारे घर के पास एक  आधा पागल आदमी रहा करता था, जिसे तुम क्रेज़ी कह सकते हो। उसने मुझे रास्ते से अपहरण कर अपने घर में बंद कर दिया। उसने अपने बंद घर में कई दिनों तक मेरा यौन शोषण किया। एक दिन मौका देखकर  मैं उसके घर से भाग गया, सीधे अपने घर की तरफ। मैं उसकी यातना से गंभीर रूप से घायल हो गया था। घाव सूखने में कई दिन लगे। बेशक, मैंने उस व्यक्ति को अपने अपराध के लिए क्षमा कर दिया। मगर मैं आसानी से किसी पर भरोसा नहीं कर पाता। उस घटना के बाद मैं हमेशा संदेह की दृष्टि से हर किसी की तरफ देखता हूँ। मुझे लगता है, बचपन का यह डर अभी भी मुझमें समाया हुआ है और मुझे समय-असमय डराता है। "

ऐसा लग रहा था जैसे घनघोर बादल बरसने लगे हो और बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही हो।
"क्या मैं तुम्हें एक बात पूछूँ, हाना? मुझे आशा है कि तुम उसे बुरा नहीं मानोगी। "
"ठीक है, हमारे बीच क्या छुपा हुआ है, जिसके लिए तुम्हें मेरी अनुमति की आवश्यकता हो ?"
अल्बर्टो ने अचानक अद्भुत प्रश्न उठाया। तुम्हारा वैवाहिक जीवन तो बिल्कुल सुखी नहीं था। जितने दिन तुम उस आदमी के साथ रही, उसने तुम्हारा यौन-उत्पीड़न किया था। क्या तुम उस दर्दनाक अतीत को भूलकर जीवन की सुखद अनुभूति प्राप्त कर सकती हो? शायद मैं इस प्रश्न को ठीक से नहीं रख पा रहा हूं, मगर मुझे लगता है कि तुम पहले की तरह दुखी नहीं हो।
  वह अल्बर्टो को यह कैसे समझा सकती है? क्या सब-कुछ तर्क द्वारा समझाया जा सकता है?
शोवेल लेकर कोई लगातार वार करता जा रहा था।
चट्टान के नीचे पानी की खोज में
पसीने से तर-बतर आदमी का कांपता शरीर
फिर भी जल-स्रोत का कोई ठिकाना नहीं 
पत्थर निर्विकार
वार पर वार।
प्रत्येक वार पर फूलती सांसें
मजबूत मांसपेशियों वाला 
काकुस्थ पुरुष
पानी की खोज में
बार-बार व्यर्थ होता उसका मनोरथ
इतने दिनों के निर्विकार पत्थर
शोवेल के आघात से घायल, जर्जरित
दाँत भींचते करते सहन प्रत्येक आघात ,
  मगर इस बार शोवेल के आघात से
  सिहरित हो उठा पत्थर
  कांपा  शरीर धन्वाकार ,
बारिश की पहली बूंद
समुद्र का पहला दर्शन
  किशोर गाल का चुंबन
या आसन्न मृत्यु की कल्पना
शरीर पर स्तंभित रोमकूप  
एक अदृश्य स्पर्श से।
उस सिहरन में
प्रबल आकांक्षाएं
किसी भी पल गिरता जल-प्रपात
यहां देखो, यहां देखो
पत्थर फुसफुसा रहा था:
माटी के बंधन से मुझे मुक्त कर दो
देखते-देखते पानी खोदने वाला शोवेल
खुद पानी बन गया
चट्टान की सतह पर गिर गया
चारों ओर कल-कल, छल-छल शब्द
'पूर्णमिदम' मंत्रोच्चारण के साथ
देखते-देखते डूब गया 
पानी के भीतर,
इतने दिनों का निर्विकार पत्थर
 

7
अल्बर्टो ने हर्षा के हाथ को अपनी मुट्ठी में लेते हुए कहने लगा: "हम सब-कुछ भूल जाएंगे, सोचकर तो  दिल्ली छोड़कर यहाँ आए थे, हाना, मगर ऐसा लग रहा है जैसे दुख हमारा पीछा  नहीं छोड़ेगा। फिर स्वर्ग की दहलीज पर बैठकर हमें दु: ख की बात क्यों करनी चाहिए, ? क्या तुमने फ्रीडा, मैक्सिकन कलाकार का नाम सुना है? वह तुम्हारी तरह विषाद की देवी थी।  उसके जीवन में दर्द के सिवाय कुछ भी नहीं था। फिर भी वह अपने जीवन की हर क्षण को अपने दिल से उपभोग करना चाहती थी। क्या वह उन सभी चीजों को संभाल कर रखती थी जिसे दुनिया में  दुःख कहा जाता है? "
"अल्बर्टो, मैं भी दुखों से परे जाना चाहती हूं, उन सभी रातों के बुरे सपने को भूलना चाहती हूँ। मगर मैं तो कलाकार नहीं हूँ, जो तूलिका से रंग भरकर अपने वेदना-बोध को चित्रित कर दूँ। "
ऐसा लगा रहा था कि वे दोनों ठंड में कांप रहे थे। आपस में एक-दूसरे के हाथ रगड़कर एक-दूसरे को गर्मी देना चाहते थे; इसी तरह वे एक-दूसरे को सांत्वना दे रहे थे। ऋषिकेश की नदी के किनारे वे बैठे हुए थे। यहां दिल्ली की कोई भीड़-भाड़ नहीं, कोई शोरगुल नहीं, राजनीति सरगर्मी नहीं, कोई धूल-धंगड नहीं है, कोई नारेबाजी नहीं, कोई पुतली-दहन नहीं, कोई आतंकवाद नहीं है और न ही कोई अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार। चारों तरफ निर्मल शांति।
अल्बर्टो ने कहा: "उस बड़े पर्वत की तरफ देखो, यह तुम्हारे शिव की तरह सुंदर और कमनीय  है और यह बहती हुई गंगा नदी शक्ति का प्रतीक है। यहां मानो सृष्टि का महामिलन हुआ हो। "
हर्षा अल्बर्टो की भावुकता देखकर आश्चर्यचकित थी। एक विदेशी के मुंह से शिव और शक्ति का चित्रण! "अल्बर्टो, उस पहाड़ के ऊपर देखो, जिसका शिखर बादलों से आच्छादित है। क्या कहीं तुम्हारे बुद्ध गहरे ध्यान में तो नहीं बैठे है?"
     दोनों सहजता से हंसने लगे। जैसे यह हंसी गंगा के प्रवाह के साथ-साथ कुछ दुःखों को बहाकर ले जा रही हो। घाट के इस तरफ इतनी भीड़ नहीं थी। फिर भी दो-तीन पंडे घूम रहे थे। उनकी उपस्थिति इतनी विशाल प्रकृति के सामने तुच्छ लग रही थी। अल्बर्टो ठीक ही कह रहा था कि वे लोग वास्तव में स्वर्ग की दहलीज पर पहुंचे हैं। वे बैठे रहे, तभी एक कार थोड़ी दूरी पर रुक गई। कुछ समय बाद कार से कुछ मोटे आदमी और औरतें उतरी। चेहरे से वे राजस्थानी लग रहे थे।
उन्हें देखकर ज़ोर से मंत्रोंच्चारण करने वाले दोनों पंडों में प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई कि कौन इन नए तीर्थयात्रियों के पास पहले पहुंचे। फिर उनमें जो वयस्क था, उसके नेतृत्व में पूरा दल 'घाट' की ओर बढ़ा। फिर शुरू हुआ स्नान, तिल-तर्पण और पिंडदान प्रक्रिया।

"क्या वे 'माँ गंगा की पूजा कर रहे हैं?” अल्बर्टो ने उत्साह से पूछा।
"नहीं, अल्बर्टो, वे अपने पितृ-पुरुषों  को पिंडदान दे रहे हैं। पितृ-पुरुषों  का मतलब दिवंगत आत्माएँ। क्या तुम जानते हो कि हिंदू धर्म और दर्शन में आत्मा अमर है? "
"हाँ, मुझे पता है, मगर इन परंपरागत मान्यताएं अर्थहीन हैं। मैंने सुना है कि आत्माओं को   चावल, कपड़ों का दान दिया जाता है। मगर मरा हुआ आदमी इन प्रसादों को कैसे स्वीकार करेंगा? वास्तव में, हाना, मैं यह देखकर हैरान हूं कि भारत में शंकर जैसे दार्शनिक, बौद्ध धर्म का उत्पत्ति-स्थल होने के बावजूद लोग इन सब बातों पर कैसे विश्वास करते है? शंकर मेरे प्रिय दार्शनिक है, बुद्ध मेरा लक्ष्य है और हिंदू धर्म की कहानियां और किंवदंतियां मुझे तृप्ति देती हैं। फिर भी  मुझे स्पिनोजा के देवता पर अधिक विश्वास है। "

"यह स्पिनोज़ा कौन है? इसके अलावा, बौद्ध होने के कारण तुम्हारा स्पिनोजा के देवता पर विश्वास क्यों है? "
"स्पिनोजा एक यहूदी था। उनके अनुसार पूरी दुनिया एक ही नियम से चलती है और उस नियम से परे कोई भगवान नहीं है। इसलिए तुम उस नियम को भगवान कह सकती हो।  मगर एक बात निश्चित है कि इस नियम में भी ऐसी कोई ताकत नहीं है कि जिसे बुलाने पर बारिश कर देगी या तुम्हारे मांगने पर तुम्हें वांछित फल दे देगी। इन दृष्टिकोणों से तुम उसे तटस्थ कह सकते हो। आइंस्टीन भी स्पिनोजा के भगवान में विश्वास करते थे। मुझे लगता है स्पिनोज़-दर्शन भारतीय-दर्शन की तुलना में अधिक तार्किक है। इसके अलावा, यह अधिक विश्वसनीय भी है। "
"अल्बर्टो, तुम एक या दो ऐसे दार्शनिकों को पढ़कर भारतीय दर्शन भंडार को कमतर नहीं आंक सकते। यहाँ विभिन्न मतवालों का अलग-अलग समय में प्रादुर्भाव हुआ है। तुम्हारा  स्पिनोजा हमारे कनाद जैसा मुझे लगता है। कनाद वैदिक काल के एक संत थे। उन्होंने केवल चावल के कणों को खाकर भगवान शिव की उपासना की थी और सिद्धि प्राप्त की थी, इसलिए उनका नाम ‘कनाद’ पड़ा। उन्होंने स्पिनोज़ा की तरह कहा कि भगवान केवल मूक दर्शक हैं। उसका सृजन-प्रक्रिया से कोई लेना-देना नहीं है। दुनिया अदृश्य परमाणुओं से उत्पन्न हुई है और इसकी गतिविधियां चलती रहती हैं। परमाणुओं के संयोजन से सृष्टि का निर्माण और उनके विखंडन से प्रलय होता है। मेरा मानना है कि कनाद स्पिनोजा से बहुत पहले पैदा हुए है। ”

अल्बर्टों ने मुस्कराते हुए कहा, “क्या तुम्हें  गुस्सा आ रहा है? मेरा तुम्हें दुख पहुंचाने का इरादा नहीं था और न ही तुलना करना मेरा उद्देश्य था। यदि तुम्हें मेरी बातों से दुख पहुंचा है तो मुझे बहुत खेद है। मुझे बताओ, कनाद के बारे में मुझे अध्ययन-सामग्री कहां से मिलेगी? तुम्हें सुनने के बाद मेरी उनके बारे में जानने की इच्छा पैदा हो गई है। क्या तुम्हें पता है कि सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण चीज क्या  है? "
 
  "क्या?"
  "जिस वजह से मैं तुम्हें प्यार करता हूँ। मुझे लगता है कि तुम मेरे जीवन का एक अनमोल उपहार हो। "
  "नहीं, अल्बर्टो, मैं नहीं बता सकती कि कनाद के बारे में तुम्हें कहाँ से जानकारी मिलेगी।  तुम्हारे पास एक बड़ी लाइब्रेरी है, तुम वहां से या अपने सहयोगियों से परामर्श कर बेहतर और अधिक जानकरी प्राप्त कर सकते हो। मुझे याद नहीं है मैंने  उनके बारे में कब और कहाँ  पढ़ा था। वास्तव में, हम भारतीय चन्दन के प्रलेप की तरह आध्यात्मिकता को हमारे शरीर पर लगाते हैं। चाहे, वह पढ़ा-लिखा या अनपढ़ हो, वह दर्शन के बारे में कुछ-न-कुछ जानता है। सबसे बड़ी बात यह है अल्बर्टों कि हम ईश्वर को विश्वास में खोजते हैं, तर्क-वितर्क में नहीं। सभी तर्कों और वैज्ञानिक मतों से परे रहस्य की एक दुनिया है, जहां तक हम अभी तक नहीं पहुंच पाएहैं। 'निर्वाण' या 'मोक्ष' की तरह रहस्यमय है। "
 
  अल्बर्टो हर्षा को मुग्ध नेत्रों से देखने लगा। मेरी असली हाना कहाँ है?वाग्मिता से परिपूर्ण अथवा पहले वाली जीवन युद्ध में हारी हुई विषादग्रस्त। क्या वही लड़की है? वास्तव में  दोनों रूपों में अद्वितीय।
 
 
अंधेरा होने लगा था। मलिन आसमान में फीका चाँद दिखने लगा था। धीरे-धीरे यह जगह निर्जन होती जा रही थी। बहुत दिनों से हर्षा की ऋषिकेश आने की इच्छा थी। अपनी पढ़ाई पूरी करने से पहले अपने दोस्तों के साथ यहाँ आने के बारे में सोचकर रखा था उसने। मगर अचानक अल्बर्टो ने उसके पास यह प्रस्ताव रखा। 'नवमी' के दिन उनके अपनी जगह लौटने पर हर्षा की मां ने उसे फोन किया: "तुम्हारे ससुराल वाले फोन पर पूछ रहे थे कि तुम पूजा पर घर आ रही हो या नहीं? इतनी बड़ी दुर्गा पूजा चली गई, मगर तुम्हारी बेटी नहीं आई ? ऐसा क्या पढ़ रही है?  या पत्रकारिता कर रही है। घर की बहू सड़कों पर रिपोर्टर बनकर घूमेगी?  वह छोटी बच्ची है, मगर आप लोगों ने तो दुनिया देखी है, आप लोग तो उसे रोक सकते थे। बहू ने अपने पति को छोड़ दिया है इसलिए वह अपना चेहरा नहीं दिखा पा रही हैं। लोगों ने इधर-उधर की बातें करना शुरू कर दिया है। "
 
हर्षा अपनी मां से बातचीत करने के बाद बहुत रोई थी। उसके माता-पिता को उसके कारण कष्ट हो रहा है,  लोग उन्हें दोषी ठहरा रहे हैं। बुरे दिन अभी तक उसका पीछा नहीं छोड़ रहे थे। उसे बहुत अकेलापन महसूस हो रहा था। उसकी इच्छा हों रही थी कि वह किसी अनिर्दिष्ट  सड़क पर जाकर कहीं खो जाए।
 
उस समय अल्बर्टो का फोन आया।
 
"हाना, मैं ऋषिकेश जा रहा हूं। तुम्हारी छुट्टियां हैं; क्या तुम मेरे साथ जाओगी ?"
 
अगर यह कोई दूसरा दिन होता तो हर्षा यह कहकर टाल देती: "क्या तुम्हें लगता है कि यह  यूरोप है?  मैं तुम्हारी सहेली बनकर आश्रमों और मठों में घूमती रहूँ ?हम लोग कुछ समय के लिए अपने विचारों का आदान-प्रदान करते हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि तुम मुझे दिल्ली से बाहर जाने के लिए आमंत्रित करोगे और मैं सब-कुछ छोड़कर पागल की तरह तुम्हारे पीछे चली जाऊंगी। मैंने  बहुत जमाना देखा है, अल्बर्टो। "
 
मगर हर्षा ने ऐसा नहीं कहा। इसके विपरीत, उसके मन में पाप या पुण्य, अच्छे और बुरे का ख्याल नहीं आया। यहां तक कि उस वक्त अगर रावण आकर बुला देता, तो भी वह लक्ष्मण -रेखा पार कर चली जाती। जबकि, अल्बर्टो उसका दोस्त है, उसका प्रेमी है।
 
"क्या हुआ, हाना?" तुम्हारे मन में क्या चल रहा है? " उसने कहा:" तुम देखोगी, कुछ देर बाद चाँद और उज्ज्वल होगा, गंगा चांदनी रात में मनमोहक लगेगी। कुछ और समय हम बैठेंगे , फिर चले जाएंगे, तुम क्या कहती हो? "
 
हर्षा ने दीर्घश्वास छोड़ी :"जैसी तुम्हारी इच्छा। " मानो जगह बदलने के बाद भी दुःख लगातार उसका पीछा कर रहे थे। किसी चोर की तरह किसी भी फांक से घुस जा रहे थे।  एक पल में सभी सुख लूटकर चले जाते थे।
 
अल्बर्टो ने हर्षा की पीठ पर अपना हाथ रख दिया और उसे अपने करीब लाया:"ऐसा लगता है कि मेरी उपस्थिति का कोई मूल्य नहीं है, अन्यथा तुम अपने प्रेमी के बाहों में दुख के दिनों का स्मरण कर पाती ? हाना, मेरी प्यारी हाना, मेरी प्यारी मत्स्य-कन्या, मैं तुम्हें फ्रीडा के बारे में बता रहा हूँ, ध्यान से सुनो। फ्रीडा नाटी थी, मगर उसके पति डिएगो का शरीर सुडोल था, लोग मजाक में उन्हें हाथी और चींटी की जोड़ी कहते थे। वे दिखने में भी सुंदर नहीं थे।
 
  जब फ्रीडा छह वर्ष की थी, तब उसे पोलियो हो गया था। उसका दायाँ पैर बचपन से बहुत कमजोर हो गया था। जब वह अठारह साल की हुई, तब एक बस दुर्घटना में रीढ़ की हड्डी समेत ग्यारह जगहों पर फ्रेक्चर हुआ था। दायां पैर तो पूरी तरह से टूट गया था। वह महीनों-महीनों तक प्लास्टिक कवर के भीतर सोती रहती थी। उस समय उसने अपने जिंदा रहने की आशा खो दी थी। मगर चमत्कारिक रूप से वह बच गई, पूरे शरीर में निशान-ही-निशान और दर्द लेकर। उसे जीवन में तीस बार ऑपरेशन करना पड़ा। दर्द से राहत पाने के लिए उसके पास शराब, ड्रग्स और सिगरेट का सहारा लेने के बजाय और कोई विकल्प नहीं था। फिर भी उसके जीवन में एक जबरदस्त उत्साह था। अच्छा, हाना, तुम्हारी शादी कितनी उम्र में हुई थी? अठारह या उन्नीस में? "

"उन्नीस वर्ष में, " हर्षा ने कहा।
"ओह, हाना, डिएगो के साथ उसकी शादीशुदा जिंदगी बिल्कुल अच्छी नहीं थी। उसका वैवाहिक जीवन आँधी- तूफान वाला था।  पीड़ादायक। गर्भपात। पति के साथ वैचारिक मतभेद। उसका नाम बदनाम होने वाला था। मगर वह निराश नहीं हुई थी। चित्रकारी उसकी 'साधना' थी; और कला के लिए चाहिए प्रेम। फ्रीडा की कुरूपता, प्रेमहीनता, अभाव और यंत्रणा के बावजूद भी बहुत सारे प्रेमी थे। प्रसिद्ध कम्युनिस्ट नेता नीयन ट्रॉट्स्की से लेकर फोटोग्राफर निकोलस मूरे सभी उसके  पाँव पड़ते थे। मगर क्या तुम जानती हो, कुछ लोगों को संदेह है कि फ्रीडा ट्रॉट्स्की की हत्या में शामिल थी? ऐसा इसलिए है उसकी हत्या के बाद वह स्टैलिन को बहुत पसंद करने लगी, जो ट्रॉट्स्की का सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी और दुश्मन था। मगर तुम्हें  पता है कि मुझे क्या लगता है? ये सब झूठ हैं। उनके विरोधियों द्वारा फैलाई हुई अफवाहें है। फ्रीड़ा जैसी प्रेमिका कभी भी ऐसा काम नहीं कर सकती। हाना, हालांकि यह अविश्वसनीय लगता है, उसने अपनी विख्यात पेंटिंग 'गोडेस' का चित्रांकन तब किया, जब वह ट्रॉट्स्की के साथ संभोग कर रही थी। ”

     हर्षा मंत्र-मुग्ध होकर अल्बर्टो से फ्रीडा के जीवन की कहानी सुन रही थीं। हर्षा को  उस महान रहस्यमयी व्यक्तित्व को देखने की  इच्छा हो रही थी I
     : फ्रीडा बिल्कुल सुंदर नहीं थी। उसकी नाक के नीचे पतली नीली मूंछें थी। उसकी  भौहें जुड़ गई थी। उसने अपनी कुरूपता को अपने चित्रों में आँकने में कभी भी झिझक नहीं की थी। "क्या तुम्हें लगता है कि उसका इतने सारे लोगों से प्यार करना एक छल था ? तुम तो एक औरत हो,  बहुत अच्छी तरह से समझ सकती हो। "

"नहीं, नहीं, अल्बर्टो, प्रेम में छल-कपट कभी भी हृदय को सर्जनशील नहीं बना पाता है। वह निश्चय एक महान प्रेमिका थी; वास्तव में प्रेममयी। "
"हां, तुम सही कहती हो, हाना, केवल छल-कपट रहित प्रेम ही रचनात्मक हो सकता है, अगर छल-कपट है तब संभव नहीं है। उसके प्रेमी उसे ‘गोडेस’ कहते थे। सेक्स और पेंटिंग से उसे इतनी  प्रसिद्धि मिली कि सुंदर मडोना की लोकप्रियता भी उसके साथ प्रतिस्पर्धा करने में नाकाम रही। "
" मगर इतनी बड़ी विदुषी की मौत बहुत दर्दनाक हुई थी। उसका पैर सूज गया था। डॉक्टरों ने सलाह दी कि पैर काटना पड़ेगा। फ़्रीडा प्यार की देवी थी, सैक्स की देवी थी; पैर कटवाने  से पहले ही उसने आत्महत्या कर ली। पता है; हाना, उसने आत्महत्या करने से पहले अपने नोट में क्या लिखा था?

  'आई होप द एक्ज़िट विल होपफुल एंड आई होप नेवर टू रिटर्न। ' फ्रीडा को अपने जीवन में कुछ नहीं मिला, मगर मानव-सभ्यता को बहुत कुछ दे गई। मनुष्य  ऊर्जा का स्रोत है, हाना। फ्रीडा के जीवन में तो दुखों की कमी नहीं थी ? फिर क्या उसने जीवन जीना छोड़ दिया? पता नहीं कैसे, तुम्हारी जिंदगी फ्रीडा के साथ मेल खाती हैं। चेहरे से या व्यक्तित्व से, मगर है तो निश्चित। "
हर्षा ने एक दीर्घ-श्वास छोड़ी। अल्बर्टो ने उसे कसकर पकड़ लिया। नहीं, और दीर्घश्वास नहीं।  और निराशा नहीं। कभी हमने जीवन में बुरे सपने देखे थे तो क्या आज हमे जीवन जीना छोड़ देंगे ?  नहीं, मेरी हाना, नहीं।
हर्षा अल्बर्टो के प्यार में पूरी तरह से डूब गई थी। अगर किसी को ज़िंदगी में क्या चाहिए, अगर दुर्दिनों में कोई अपने बांह फैलाकर उसे निर्भय आश्रय प्रदान करें ? अल्बर्टो उस समय उसे सबसे प्यारा इंसान लग रहा था। अब लता की तरह लोटने में कोई पछतावा नहीं लग रहा था, न ही कोई पश्चाताप और न ही अपराध-बोध। साठ या सत्तर साल के इस जीवन में बहुत ही कम रंगीन तितलियों की तरह खुशियाँ हाथ में आती है। उन सुखों को मुट्ठी में बांधकर रखना उचित है।

चाँद गंगा  की छाती पर चमक रहा था। सम्पूर्ण वातावरण आकर्षक था। हर्षा की इच्छा हो रही थी कि वह अल्बर्टो के साथ इस चांदनी रात में स्वर्ग के गंधर्व और अप्सरा की तरह नृत्य करें। उसने अल्बर्टो की गोद में अपना सिर रखा। अपनी उंगलियों से उसके बालों को सहलाते हुए वह कहने लगा: " चलें, हाना? देखो,  चारों तरफ कैसे निर्जन हो गया है और  यहां बैठना सुरक्षित नहीं है। मैं नहीं चाहता कि ऐसी कोई अप्रिय घटना घटे, जिसके लिए मैं जिम्मेदार बनूँ। "
"क्या तुम्हारा मन इस चांदनी रात में तैरने का नहीं हो रहा हैं?"
"किसने कहा? यदि मैं सुरक्षा वलय तैयार कर पाता, अगर मेरे अंदर ऋषि विश्वामित्र की तरह  स्वर्ग पैदा करने की क्षमता होती , तो तुम देखती मैं तुम्हारे लिए कैसा स्वर्ग बनाता। वहां सदैव चांदनी रात होती। वलय भेद कर शैतान की कभी वहां प्रवेश करने की हिम्मत नहीं होती। वहाँ पक्षी सदा गायन करते। न तो भूख लगती और न ही प्यास। हम बारहमासी नदी की तेजस्वी छाती पर नौका-विहार करते। "
अल्बर्टो के माथे पर बड़ी-बड़ी लकीरें दिखाई दे रही थीं, जबकि  उस समय वे अदृश्य हो गई। मानो उसने जिस दार्शनिक अल्बर्टो से मुलाक़ात की थी, वह नहीं है, मगर उसका प्रेमी एल्बी है।  "हे, एल्बी, मेरी प्यारे स्वप्नहार, बहुत हो गया। पृथ्वी पर लौट आओ। मुझे डर लग रहा है। ऐसे सपने मनुष्य के भाग्य में नहीं है। "


(क्रमशः अगले भागों में जारी...)

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रचनाकार: विषादेश्वरी भाग 7 // उड़िया उपन्यास // सरोजिनी साहू // अनुवादक - दिनेश कुमार माली
विषादेश्वरी भाग 7 // उड़िया उपन्यास // सरोजिनी साहू // अनुवादक - दिनेश कुमार माली
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