टैम्पोवाली ---------------------------- सुबह का अलार्म जो बजता है उसके साथ ही दिन भर का एक टाइम टेबल उसकी आँखों के सामने से गुज...
टैम्पोवाली
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सुबह का अलार्म जो बजता है उसके साथ ही दिन भर का एक टाइम टेबल उसकी आँखों के सामने से गुजर जाता । जल्द ही काम सिमटा कर बूढ़ी माँ की आज्ञा ले सिटी के मुख्य चौराहे पर अपना टैम्पो को खड़ा कर लेती थी यहाँ पर और भी टैम्पो खड़े होते थे लेकिन महिला टैम्पो वाली नाक के बराबर थी इन रिक्शे वालों के बीच से घूरती कुछ आँखें उसके चेहरे पर आ टिक जाती थी एक सिहरन फैल जाती उसके बॉडी में । वो सिकुड़ रह जाती है। सोचने को मजबूर हो जाती कि भगवान ने पुरूष महिला के बीच भेद को मिटा क्यों नहीं दिया जो उसे लोगों की घूरती निगाहें आर-पार हो जाती है ।
सिर से पैर तक अपने को ढके वो अपने काम में लीन रहती हर रेड लाइट पर रूक उसको ट्रेफिक पुलिस से भी दो चार होना पड़ता , यह पुलिस भी गरीब को सताती है और अमीर के सामने बोलती बंद हो जाती है ।
शादीशुदा होने के बावजूद उसको पति का हाथ बँटाने के लिए यह निर्णय लेना पड़ा पति जो टैम्पो चालक था सिटी के मुख्य रेलवे स्टेशन पर टैम्पो खड़ा कर देता था चूँकि वह एक पुरूष था इसलिए सब कुछ ठीक चलता लेकिन टैम्पो वाली दो चार ऐसी खड़ूस सवारी मिल जाती थी जो पाँच के स्थान पर तीन रूपये ही देती और आगे बढ जाती ।
दिन प्रतिदिन यही चलता शाम को घर लौटने पर बेटी बेटे की देख रेख करना और सासु के साथ हाथ बँटाना रात थक बच्चों के साथ सो जाना । वाकई रोटी का संकट भी विचित्र होता है सब कुछ करा देता है । सुबह से शाम तक सिटी के चौराहों की धूल फाँकना सवारी को बैठाना और उतारना और कहीँ-कहीँ पुरुष की सूरत में बैठने वाले कुत्तों से दो चार होना यही जीवन चर्या थी ।
एक बार उसका टैम्पो कई दिन तक नहीं निकला तो उसकी रोजमर्रा की सवारी थी उसमें से एक जो उसके टैम्पो से आफिस जाया करता था बरबस ही उसके विषय में सोचने लगा कि "ऐसा क्या हुआ जो वो दिखाई नहीं देती " पर पता न होने के कारण ढूंढ़ भी नहीं सका ।
टैम्पोवाली का बीमारी से शरीर बहुत दुर्बल हो गया था एक रोज जब वह किसी दोस्त से मिलनेग जा रहा था तो वही टैम्पो खड़ा देखा जिस पर अक्सर बैठ आफिस जाता था पूछताछ करने पर पता लगा कि वो पास ही रहती है ।
पता कर घर पहुँचा तो माँ बाहर आई "बोली , बाबू किते से आये हो और किस्से मिलना है " संकुचाते हुए उसने टैम्पो वाली के विषय में पूछा तो पता लगा , बीमार है और पैसे न होने के कारण इलाज नहीं हो सकता , बताते हुए माँ सिसकने लगती है " वो व्यक्ति कुछ पैसे निकाल देता है इलाज के लिए ।
बच इसी बीच उसका पति अपना टैम्पो ले आ जाता है वस्तुस्थिति को समझते हुए पति हाथ जोड़ पैर में गिर पड़ता है और सोचने लगता है कि दुनियाँ में नेक लोगों की कमी नहीं ।
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डॉन्ट डिस्टर्व मी
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क्या रोज की खिच -खिच मचा रखी है "तुमने यह नहीं किया तुमने वो किया " यह कहते हुए सोनाली ने शुभम को अनदेखा कर अपना पर्स उठाया और चल दी । आटो स्टैण्ड पर आ आटो में बैठ आफिस की ओर चल दी , उतर कर कुछ दूरी आफीस के लिए पैरों भी जाना होता था । आफिस में पहुँचते ही उसे साथी ने टोक दिया "कि आप लेट हो गयी ,"मुँह बना अपने केविन की ओर जा ही रही थी कि पिओन आ बोला "साहब , बुलाते है , पर्स रख साहब के केबिन में पहुँची ,जी सर । साहब जो एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति था , बोला "व्हाट प्रोब्लम , वाय आर यू सो लेट ? सर आइ नोट लेट , आइ हेव सम प्रोव्लम , आइ ट्राई नाट कम टू लेट । अपनी बात को कहते हुए आगे बॉस के आदेश का इन्तजार करने लगी ।
दो मिनट के मौन के बाद बॉस ने आदेश देते हुए कहा कि " सी मी फाइल्स आफ इमेल्स , सेन्ट टुमारो" मिसेज सोनाली । "यस सर , इन फ्यू मिनट्स " कहते हुए अपने केबिन की ओर चल दी । और फाइल्स को निकालने लगी । लगभग पन्द्रह मिनट्स बाद फाइल्स हाथ में लेकर वाॅस के आकर बोली , देट्स फाइल्स ।
फाइल्स देखते हुए बॉस, जो एक अधेड़ उम्र का था , गुड सोनाली, कहते हुए प्रमोशन का आश्वासन दिया । प्रफुल्लित होते हुए घर चली आई दरवाजे पर पैर रखते ही
सुबह शुभम के साथ घटित वाकया पुनः याद आ गया ।
डा मधु त्रिवेदी
संक्षिप्त परिचय
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पूरा नाम : डॉ मधु त्रिवेदी
पदस्थ : शान्ति निकेतन कालेज आॅफ
बिजनेस मैनेजमेंट एण्ड कम्प्यूटर
साइंस आगरा
प्राचार्या,
पोस्ट ग्रेडुएट कालेज आगरा
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कोर्डिनेटर
* राजर्षि टंडन ओपन यूनिवर्सिटी
* एन आई ओ एस
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उप संपादक "मौसम " पत्रिका में
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2012 से फेसबुक पर सक्रिय
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साहित्यिक सफरनामा :
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विद्यार्थी जीवन स्कूल की मैगजीन
में छपा करती थी
तत्पश्चात कैरियर की वजह ब्रेक हुआ
फिर वैवाहिक जीवन की जिम्मेदारी के कारण
बाधित जनवरी , 2015 में
"सत्य अनुभव है "
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आन लाईन पत्रिका में प्रकाशित हुई ।
मैगजीन जिनमें प्रकाशित
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India Ahead
स्वर्गविभा आन लाइन पत्रिका
अटूट बन्धन आफ लाइन पत्रिका
झकास डॉट काम
हिंदी लेखक डॉट काम
हारीजन हिन्द
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मातृभाषा मंच
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शब्दों का प्याला
सहज साहित्य
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सान्ध्य दैनिक
ट्र टाइम्स दिल्ली
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में लेख एवं शोध पत्र
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अमर उजाला काव्य
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन बैंक की साख पर बट्टा है ये घोटाला : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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