बढ़ते वृद्धाश्रम खोटे संस्कार श्रीमती शारदा नरेन्द्र मेहता (एम.ए. संस्कृत ) वृद्ध हमारे समाज की मजबूत रीढ़ है। हमारे संस्कार एवं धार्मिक और सा...
बढ़ते वृद्धाश्रम खोटे संस्कार
श्रीमती शारदा नरेन्द्र मेहता
(एम.ए. संस्कृत )
वृद्ध हमारे समाज की मजबूत रीढ़ है। हमारे संस्कार एवं धार्मिक और सामाजिक मान्यताएँ वृद्ध जनों के आग्रह से ही आधुनिक परिवेश में जीवन्त दिखाई दे रहे हैं। हमारे धार्मिक संस्कार विदेश में जीवन-यापन करने वाले भारतीय जन में भी विभिन्न त्यौहारों पर दिखलाई देते हैं।
प्राचीन समय में वृद्ध जनों को परिवार में,समाज में तथा अपने-अपने कार्य क्षेत्रों में अत्यधिक सम्मान प्राप्त था। हर व्यक्ति को अपने से वरिष्ठ व्यक्ति के साथ निर्धारित मान्यता के आधार पर ही व्यवहार करना होता था। वरिष्ठजन भी अपने से छोटे लोगों के साथ मर्यादित व्यवहार ही रखते थे। अनुशासन सर्वत्र था। वृद्धजनों की उपस्थिति ही वातावरण को संयमित बना देती थी।
विदेशी आक्रमण तथा विभिन्न संस्कृतियों के संविलियन से भारतीय संस्कृति का स्खलन हुआ और वरिष्ठजनों के प्रति कर्तव्य से शैथिल्य दृष्टिगोचर होने लगा।
आधुनिक समाज में संयुक्त परिवार प्रथा शनैः शनैः समाप्त होती जा रही है। युवा पीढी़ एकल परिवार प्रणाली की ओर कदम बढ़ा रही है। व्यक्ति से बड़ा पैसा है। समाज के उस व्यक्ति को सम्मान दिया जाता है जिसके पास अकूत सम्पत्ति है तथा जिसकी संतानें विदेशों में जाकर धनार्जन कर रही है। माता-पिता भी गर्वित है अपनी संतान की इस उपलब्धि पर, कुछ वर्षो तक तो वे अपने माता-पिता से दूरभाष तथा अन्य संचार माध्यमों से सम्पर्क में रहते है परंतु वहां की जीवनशैली तथा नौकरी और व्यवसाय में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि भारत में उनकी बाट जोहते माता-पिता से उनका सम्पर्क कम होता जाता है।
हमारी भारतीय संस्कृति में हमारी संतान अपने घरों में परस्पर एक दूसरे के साथ विशेषकर बुजुर्गों के साथ प्रेम, दया, सेवा, सहानुभूति, आज्ञापालन, सहयोग आदि सदगुणों को सीखती है। और इस परम्परा का निर्वाह होता रहे इस बात की अपेक्षा वह अपने से छोटी उम्र की संतान से भी करती है श्रीरामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदासजी रामचरित्र का वर्णन करते हुए लिखते है -
प्रातःकाल उठिके रघुनाथा । मात-पिता गुरू नावहिं माथा।।
यह थी हमारी प्राचीन संस्कृति की झलक। अब पारिवारिक परिदृश्य परिवर्तित हो चुका है। जब तक माता-पिता शारीरिक, मानसिक तथा आर्थिक रूप से सहायक है, तब तक तो सब ठीक चलता रहता है परन्तु इन सभी में जब शिथिलता आ जाती है तो स्थिति भयावह होने लगती है। कमजोर होते माता-पिता इस बात से अनभिज्ञ नहीं रहते हैं। वास्तविकता उन्हें समझ में आती है फिर भी अपनी संतान की सामाजिक प्रतिष्ठा को देखते हुए वे मौन धारण कर लेते हैं। यह एक दयनीय स्थिति है। समाज का धनाढ़्य वर्ग अपने वृद्ध जनों को वृद्धाश्रम में रख कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझता है और आने वाली पीढी़ को इस समस्या का निदान दर्शा देता है।
अभी हम मानसिक रूप से इतने विकृत नहीं है। हमारे यहां आज भी सौ दो सौ सदस्यों के संयुक्त परिवार दिखलाई देते हैं जहाँ परिवार के बुजुर्ग के हाथों में परिवार की बागडोर रहती है। वही प्रधान होता है और उसकी आज्ञा के बिना कोई निर्णय नहीं लिया जाता है। उसकी आज्ञा सभी सदस्यों के लिये शिरोधार्य है।
संयुक्त परिवारों के विघटन से हमारी सामाजिक व्यवस्था पूर्ण रूप से चरमरा गई है। इस टूटन से हमारे परिवार की महिलाएँ अधिक प्रभावित दिखलाई देती हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ बनाने के लिए उसे भी सम्मानजनक नौकरी करना होती है। कार्यालयीन समय लगभग प्रातः 8 बजे से सायं 8 बजे तक रहता है। घर में संतान नौकरानी के भरोसे रहती है । कई बार तो छोटा बच्चा ममतामयी माँ को याद करता हुआ निद्रा देवी की गोद में सो जाता है । माँ की ऑखें उसे खेलते हुए देखने के लिये लालायित रहती है । वह बालक को न संस्कार दे सकती है न ही उसका विकास अपनी आशा के अनुरूप ही कर सकती है। बालक को परिवार में रहने की शिक्षा नहीं प्राप्त हो सकती है। उसमें परिवार का महान गुण सहनशीलता का विकास हो ही नहीं पाता है। सहनशीलता मानव जीवन में हर समय आवश्यक है। इसके अभाव में सभी ओर हमें अशान्ति , बैर-भाव क्रोध आदि मानसिक विकार का बोलबाला दिखलाई देता है। ऐसी परिस्थतियों में परिवार के युवा सदस्यों को वृद्धजनों के अनुभव और बालक के लालन-पालन में उनकी सूझ-बूझ की याद आना स्वाभाविक ही है।
वृद्ध जनों के पास अनुभव का खजाना होता है। वह उनकी लंबी तपस्या का फल है। यह फल उन्हें पीढ़ियों से सहेजे हुए ज्ञान के आधार पर प्राप्त होता है। वृद्ध का एकाकीपन भी उनकी दयनीय स्थिति के लिए जिम्मेदार है। जब वृद्ध दंपत्ति रहते है तो उनका समय एक दूसरे की सेवा सुश्रुषा में व्यतीत हो जाता है। परंतु जहॉ दोनों में से एक जीवित है तो स्थिति बद से बदतर हो जाती है। कतिपय वृद्ध अपना समय समाज सेवा , लेखन कार्य, हास्य क्लब, योग सेन्टर, प्रवचन आदि में व्यतीत करते है। उनका कार्य स्तुत्य है और वे अपने समवयस्कों के लिये प्रेरणा स्त्रोत हैं।
आप कोई भी समाचार पत्र पढें उसमें अधिकांश समाचार गृह कलह, भ्रष्टाचार, तनाव, सहनशीलता की कमी से की जाने वाली आत्महत्याएं आदि घटनाएँ पढ़़ने को मिलती है। विकृत मानसिकता से पीड़ित अपने आप को संसार में सबसे दुःखी मानते हैं और आत्महत्या की बात कहकर पारिवारिक कलह को जन्म देते है। परिवार में ऐसा व्यक्ति अपना सम्मान स्वयं खो देता है और अपनी हीन बुद्धि के कारण पछताना पड़ता है। प्रार्थना, ध्यान, धार्मिक पुस्तकों का वाचन, स्वरूचि के कार्य, महान व्यक्तियों की आत्मकथाओं का वाचन व्यक्ति के जीवन की नकारात्मक धारा के प्रवाह को रोक उन्हें सकारात्मक राह दिखलाता है ।
युवा पीढी़ भी वृद्ध जनों को अटाला समझकर कोने में न पटके वरन् घर परिवार की समस्या के समाधान में उनसे भी उचित मार्ग दर्शन प्राप्त करें। संभव है वे सकारात्मक रूख अपनाकर आपको उचित मार्ग दर्शन कर सके। परिवार के पुरूष का अपने कर्तव्य स्थल पर जाने के पश्चात् घर में रहने वाले अन्य सदस्य उनका विशेष ध्यान रखें। पुरूष सदस्यों के घर पर आने पर वातावरण खुशनुमा बनाये रखे। आपसी सौहार्द्र और सहयोग से हमेशा आशीर्वाद प्राप्त करते रहे। परस्पर सामंजस्य से जीवन में माधुर्य का समावेश कीजिए। एक दूसरे की बुराई को अतिरंजित कर घर के माहौल को दूषित न करें।
वृद्ध परिवार में उनके जीवन के उतार चढ़ाव, उनकी दूरदर्शिता, सफलता-असफलता के अनुभव सुनाकर हमारा मार्ग प्रशस्त करते है। नई पीढी़ को उनका सम्मान करते हुए उनके अनुभवों का लाभ लेकर जीवन को सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण करें। मानव जीवन का लक्ष्य केवल धन संचय करना तथा सत्ता लोलुप होना ही नहीं है, वरन ज्ञान वृद्ध एवं वयोवृद्ध जनों के आशीर्वाद रूपी हीरे मोती को सहेज कर रखना और समय-समय पर जीवन में ऊँचाई को छूना भी है। दूसरों को पीड़ि़त करने के बजाय किसी की पीड़ा, दुःख-दर्द के मर्म को समझकर उसे दूर करने में निस्वार्थ होकर तत्पर रहना एक बड़ी उपलब्धि है।
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(श्रीमती शारदा नरेन्द्र मेहता)
एम.ए.संस्कृत
Sr. MIG-103, व्यास नगर, ऋषिनगर विस्तार
उज्जैन (म.प्र.)456010
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन एक लम्हे में चाँदनी से जुदाई : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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