26 जनवरी गणतंत्र दिवस पर विशेष गर्व से सिर उठाने का दिन ० देश के जयघोष का पर्व है -गणतंत्र दिवस भारतीय गणतंत्र पर्व यानी गर्व से सिर उठाने ...
26 जनवरी गणतंत्र दिवस पर विशेष
गर्व से सिर उठाने का दिन
० देश के जयघोष का पर्व है-गणतंत्र दिवस
भारतीय गणतंत्र पर्व यानी गर्व से सिर उठाने का दिन। 26 जनवरी 1950 को हमनें अपने संविधान को अंगीकार किया। दुनिया में सबसे बड़ी लोकतांत्रिक प्रणाली के अंतर्गत देश के प्रत्येक नागरिक को असीम शक्ति प्रदान करने वाले हमारे संविधान ने रंग, जाति और ऊंच नीचे के भेद को मिटाते हुए सभी को समान अधिकार प्रदान किये। हिंदुस्तान के सरजमीं पर सभी धर्मों ने सम्मान पाते हुए अपना अस्तित्व कायम किया। यही कारण है कि हम गर्व से कह सकते है हिंदुस्तान एक देश नहीं वरन कई देशों, कई धर्मों, कई जातियों का संगम है। समानता के अधिकार से लेकर धर्म की स्वतंत्रता, विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रत और अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने की स्वतंत्रता से हमनें संविधान की मर्यादा को बरकरार रखा है। 26 जनवरी के दिन हम अपने राष्ट्रीय प्रतीक तिरंगे को तीनों सेनाओं की सलामी प्रदानकर अपने राष्ट्र भक्त होने का परिचय देते रहे है। इस बार हम अपने गणतंत्र की 68वीं सालगिरह मनाने जा रहे है। हमें जरूरत महसूस हो रही है कि हम अपने देश में बदल रही युवा शक्ति की चाहत और उनकी परिपाटी पर गंभीरता पूर्वक चिंतन करते हुए संविधान को और शक्तिशाली बनाने कार्यप्रणाली की शरण में जायें। विधायिका, कार्यपालिका और न्याय पालिका ही वह ताकत है जो देशवासियों को भय के दायरे में रख सब कुछ व्यवस्थित रख सकती है।
गणतंत्र ही एक ऐसा सर्व धर्म पर्व है जिसके दम पर हम अपनी एकता और शक्ति का परिचय विश्व को दे सकते है। हमारे देश की तीनों सेना की ताकत और तोपों की गर्जनों, आकाशीय इंद्रधनुषीय लड़ाकू विमानों की गोताखोरी, हवाई युद्ध में हमारे जंबाजों की शक्ति का नमूना मानी जा सकती है। विजय पथ पर जवानों की कदमताल इस बात जयघोष है कि अपने वतन के लिए हम सब साथ चलने तैयार है। एनसीसी कैडेट्स और शालाओं में एनएसएस पाठ्यक्रम का हिस्सा बन रहे बच्चे जब 16 व्यायाम के जरिये अपनी देशभक्ति का प्रदर्शन विराट समूह के बीच करते है, तो ऐसा लगता है मानो देश की भावी सेना दुश्मन के छक्के छुड़ाने बेताब है। विभिन्न राज्यों की सांस्कृतिक छटा को बिखेरते हुए लालकिले के सामने से झांकियों का नयनाभिराम समूह जब गुजरता है तो हमारे हृदय में एक राष्ट्र, एक विचार, भाईचारा और सद्भावना की मिशाल गर्व से चित्कार ध्वनि कर उठती है कि ऐ! आंख तरेरने वालों! सावधान हम एक थे, एक हैं और एक ही रहेंगे। हमारी शक्ति न तो अंग्रेजों के कम हुई थी, और न ही अब कश्मीर पर हल्ला मचाने वाले मुट्ठी भर लोगों के सामने कम होंगी। हमारा इतिहास रहा है कि हमने हमेशा विश्व में भाई चारे को स्थापित किया है और आज भी उस पर अडिग है।
हमें गौरवान्वित करने वाले गणतंत्र पर्व ने हमें अपने शुरूआती दिनों से ही संगठित रहने की प्रेरणा प्रदान की है। किसी भी देश के संविधान की तुलना में धर्म और जाति से ऊपर हमारे संविधान का स्थान अलग ही है। समाज के सबसे निम्न स्तर पर रहने वालों से लेकर उच्च घरानों और मध्यम वर्गीय लोगों के लिए समान कानून और अधिकार की बात करने वाले अनुच्छेदों ने ही भारत वर्ष की एकात्मवाद और संगठनात्मक शक्ति को वह प्रदान किया है जिसके सहारे हमारा कद विश्व स्तर पर प्रतिदिन आकाश छू रहा है। छोटे छोटे बच्चों के हाथ में लहराते तिरंगे इस बात का प्रतीक माने जा सकते है कि वे विशुद्ध मन से अपने राष्ट्रीय प्रतीक के प्रति सम्मान की भावना रखते है। हमें बड़ी कोफ्त होती है जब हम देखते है कि इसी तिरंगे को अपने कार्यालय और कार्य करने वाले टेबल पर राष्ट्रीय भावना का दिखावा करते हुए रखने और लहराने वाले लोग देश विरोध गतिविधियों में संलग्न पाये जाते है। प्रत्येक भारतीय के मस्तक को गर्व से ऊंचा करने वाले इसी तिरंगे को अपनी स्वार्थगत विधि में इस्तेमाल करने वाले गद्दारों की भूमिका ने ही अनेक बार हमें शर्मसार भी किया है। हम अपने देश के साहसी बच्चों को इसी गणतंत्र पर्व पर हाथी में सवार कर हजारों लाखों लोगों के बीच उनकी वीरता की कहानी बताते देश के राष्ट्रपति के हाथों सम्मानित कराते रहे है। इन बच्चों का सम्मान और किसी आयेाजन में भी किया जा सकता है, किंतु गणतंत्र पर्व की राष्ट्रीय महत्ता को और बढ़ाने के लिए ही बच्चों के साहस को इसी दिन सम्मानित करने की परंपरा बनायी गयी है।
26 जनवरी के दिन संविधान लागू होने के साथ ही और भी गौरवशाली काम हुए है, जिससे यह दिन यादगार बन पड़ा है। हमनें 1950 में जब अपना पहला गणतंत्र पर्व मनाया, तब वह भी एक इतिहास लिख गया। हमनें अपने राष्ट्रीय तिरंगे को इर्विन स्टेडियम में गगनाधीन कर उसे सलामी दी। संविधान लागू होने से पूर्व 26 जनवरी 1930 पूर्ण स्वराज दिवस के रूप में मनाया जाता था। इसी कारण संविधान के लिए भी इसे ही तय किया गया। इसी दिन 26 जनवरी 1950 को हमारे देश के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद ने गवर्मेंट हाऊस में शपथ ग्रहण किया। साथ ही 1955 को 26 जनवरी के दिन ही गणतंत्र दिवस की पहली परेड राजपथ पर हुई। इस प्रथम परेड पर गणतंत्र पर्व के मुख्य अतिथि भारत वर्ष से अलग होकर बने पाकिस्तान के गवर्नर जनरल मलिक गुलाम मोहम्मद थे। भारत वर्ष का राष्ट्रीय पक्षी कौन होगा, इसे भी मोर के रूप में स्वीकृति 26 जनवरी 1963 को ही प्रदान की गयी। इसके साथ ही सारनाथ के अशोक स्तंभ पर बने सिंह को राष्ट्रीय चिह्न के रूप में 26 जनवरी को ही अपनाया गया।
26 जनवरी गणतंत्र पर्व के आयोजन में भाग लेना बड़े सम्मान की बात मानी जाती है। प्रत्येक वर्ष परेड का प्रारंभ करते हुए देश के प्रधानमंत्री अमर जवान ज्योति, जो देश के सैनिकों की याद में बनाया गया स्मारक है, और राजपथ के एक छोर पर इंडिया गेट पर स्थित है, प्रधानमंत्री द्वारा पुष्प अर्पित किया जाता है। शहीदों की याद में दो मिनट की मौन श्रद्धांजलि भी दी जाती है। इसी श्रद्धांजलि के साथ हम अपने शहीद जवानों को जो सम्मान प्रदान करते है, वह भी हमें गौरवान्वित कर जाता है। सुबह से लेकर देर शाम तक देशभक्ति के ओत प्रोत कार्यक्रम और देशभक्ति के गीतों से पूरा देश गूंजायमान रहता है। सबसे बड़ी बात यह कि राष्ट्रीय पर्व के अवसर पर सभी ओर भाईचारा और राष्ट्रवाद का परचम दिखाई पड़ता है। फिर कोई चाहे हिंदू हो, मुस्लिम हो, सिक्ख अथवा ईसाई या फिर किसी और धर्म का पुजारी हो 26 जनवरी गणतंत्र पर्व के अवसर पर अपना सिर से गर्व से ऊंचा कर राष्ट्रीय प्रतीक तिरंगे को सलामी देता दिखाई पड़ता है। यही हमारा सबसे बड़ा गर्व कहा जा सकता है।
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डॉ. सूर्यकांत मिश्रा
न्यू खंडेलवाल कालोनी
प्रिंसेस प्लेटिनम, हाऊस नंबर-5
वार्ड क्रमांक-19, राजनांदगांव (छ.ग.)
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