विज्ञान कथा // उड़नतश्तरी की वापसी // अभिषेक मिश्रा // विज्ञान कथा / जनवरी-मार्च 2018

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डॉ. रोहित अपने विशाल टेलिस्कोप से अंधेरी रात में तारों को निहारने में जूटे हुए थे। सेवानिवृत्ति के बाद अब यही एक ऐसा काम था जिसमें उन्होंने ...

डॉ. रोहित अपने विशाल टेलिस्कोप से अंधेरी रात में तारों को निहारने में जूटे हुए थे। सेवानिवृत्ति के बाद अब यही एक ऐसा काम था जिसमें उन्होंने अपने-आप को पूरी तरह डुबो दिया था। नए बनते, समाप्त होते तारों और ग्रहों-उपग्रहों की गतिविधियाँ उन्हें काफी रोमांचित करती थीं। मगर उनकी उत्सुकता का मुख्य विषय मात्र यही नहीं था। इन पर तो भारत की एक प्रमुख वेधशाला में काम करते हुये वो काफी शोध कर चुके थे। अब उनकी जिज्ञासा का मुख्य विषय इस विशाल ब्रह्मांड में जीवन की खोज था। उन्हें पूर्ण विश्वास था कि ब्रह्मांड में कहीं अन्यत्र भी जीवन अवश्य है और समय-समय पर उसका संपर्क पृथ्वी से होता रहा है। शायद यही कारण है कि विश्व के सभी प्रमुख सभ्यताओं और उनके प्राचीनतम ग्रंथों में दिव्य यानों और उन पर सवार अप्रतिम शक्तियुक्त देवताओं के आने का जिक्र मिलता है। उनकी एक धारणा थी कि निःसंदेह जिनके विषय में बात की जा रही है वो समय से आगे किसी विकसित सभ्यता के समय अथवा अंतरिक्ष यात्री रहे होंगे जिन्हें तत्कालीन सभ्यताओं ने देवताओं के रूप में देखा। वैसे ही जैसे आज यदि समय यात्रा संभव हो पाने पर हम आदि मानवों के युग में चले जाएँ और पत्थरों से आग जलाने के बजाए लाईटर से आग जला कर दिखा दें तो उन्हें हम किसी दिव्य शक्ति से युक्त ही लगेंगे। हालांकि यह मात्र समय और तकनीक के विकास का मामला होगा। तारों के अवलोकन में डूबे रोहित को अचानक अपनी आँखों पर एक तीक्ष्ण रोशनी सी महसूस हुई और इसी के साथ उन्होंने देखा कि मंगल और बृहस्पति के मध् य स्थित एस्ट्रोयड बेल्ट से एक चमकीली नीली वस्तु पृथ्वी की ओर आ रही है। समय के साथ उसके आकार में वृद्धि होती जा रही है। धीरे-धीरे उसकी आकृति और स्पष्ट होती गई और डॉ. रोहित को चौंकते हुये यह मानना पड़ा कि यह संभवतः एक उड़नतस्तरी ही है। उनके अनुसार भारत में अपने-आप में यह एक अनूठी घटना थी। इसे रिकॉर्ड कर लेने के लिए वह टेलिस्कोप छोड़ अल्मारी में रखे अपने कैमरे की ओर लपके कि तभी कौलबेल की आवाज ने उनका ध्यान भंग किया।

इस समय कौन आया हो सकता है यह सोचते हुये वो न सिर्फ चौंके बल्कि थोड़े खीझे भी। एक हाथ में कैमरा लिए दूसरे से दरवाजा खोलते ही उन्होंने अपने सामने दिवाकर घोष बाबू को पाया। घोष बाबू और भला हो भी कौन सकता था! एक वही तो थे जिन्हे रिटायर्ड जीवन बिता रहे डॉ. रोहित को किसी भी समय डिस्टर्ब करने का पूरा अधिकार मिला हुआ था। वो एक प्रतिष्ठित मनोचिकित्सक रहे थे और खुद भी रिटायरमेंट के बाद मस्तिष्क की शक्ति संबंधी नए-नए शोधों में संलग्न थे और गाहे-बेगाहे रोहित से चर्चा करने आ जाते थे। एक-दूसरे के अध्ययनों की चर्चा न सिर्फ इन्हें अपने जीवन की एकरसता से दूर करती थी बल्कि इनकी खोजों में कुछ नए बिन्दु जोड़ने में भी सहायक होती थी। मगर इस समय डॉरोहित घोष बाबू की उत्कंठा से स्वागत की मनःस्थिति में नहीं थे। उन्हें अंदर आने का इशारा कर वो वापस खिड़की की ओर भागे। उन्हें दूरबीन से बाहर बेचैनी से झाँकते देख घोष बाबू से रहा नहीं गया, और वो पूछ बैठे- ‘‘क्या ढूंढ रहे है डॉबाबू! उड़नतस्तरी क्या?’’- अब चौंकने की बारी डॉ. साहब की थी। उन्होंने उनकी ओर पलट कर पूछा- ‘‘हाँ, शायद वही थी। इतने ही क्षण में जाने कहाँ गुम हो गई! मगर आपको कैसे पता!’’ उनका सवाल सुन घोष बाबू शुरू में मंद-मंद मुस्कुराते रहे और फिर बोले- ‘‘आपने शायद मेरे हाथ में रखा यह यंत्र नहीं देखा!’’- डॉ. साहब चौंके। उन्होने वाकई घोष बाबू के हाथों में यह टॉर्च सा यंत्र पहले नहीं देखा था। घोष बाबू बोलते रहे-‘‘आपको अभी उड़नतस्तरी फिर दिखेगी भी नहीं। क्योंकि यह कभी थी ही नहीं। मैंने अपने इस यंत्र से आपके मस्तिष्क पर अपने विचारों का प्रक्षेपण किया था, और जैसी तस्वीर मैं अपने दिमाग में यूएफओ की बना सकता था, वैसी ही आपके मस्तिष्क में भी उभरने लगी। वरना खुद ही सोचिए कि जहाँ आपकी कल्पित सभ्यता हमसे समय और तकनीक में हजारों साल आगे है, वो प्राचीन काल से आज तक उसी तश्तरीनुमा यान में ही आती रहेगी! ‘‘डॉ. रोहित उनकी बातों को आश्चर्य से सुन रहे थे। उन्हें याद आ रहा था कि कैसे उड़नतश्तरी दिखने से पहले उन्होंने अपनी आँखों पर एक तीव्र रोशनी महसूस की थी।

अब उनके सामने सारा माजरा स्पष्ट हो चुका था। वो अब समझ चुके थे कि किस प्रकार घोष बाबू ने अपने मस्तिष्क में विचारों को रूप दे उसे इस यंत्र से जोड़ा और इस यंत्र के प्रभाव से वो विचार उनके मस्तिष्क में भी प्रक्षेपित हो गए। उन्होंने घोष बाबू की इस खोज की प्रशंसा की और इसके निर्माण तथा क्रिया विधि पर चर्चा करने लगे। रात के 2 बज चुके थे, उनकी चर्चा खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी कि मोबाईल की कौलर ट्यून ने उनका ध्यान खींचा। दोनों को इस समय कॉल आने पर आश्चर्य हो रहा था। डॉ. रोहित ने मोबाईल ऑन किया। दूसरी ओर एक घबड़ाई सी आवाज उनके साथ काम कर चुके डॉ. रमण की थी। वो थोड़ी देर उनकी बात गंभीरता से सुनते रहे। थोड़ी परेशानी उनके चेहरे से भी झलक रही थी। फोन रखने के बाद भी वो थोड़ी देर चिंतातुर से कुछ सोचते रहे। घोष बाबू ने उन्हें झिंझोड़ा तो जैसे वो अपने ख्यालों की दुनिया से बाहर निकले। शून्य की ओर एकटक देखते वो बोले- ‘‘घोष बाबू, आप दूसरे ग्रहों-उपग्रहों में मेरी रुचि जानते ही हैं। लेकिन आप यह नहीं जानते कि इसके पीछे एक और राज भी है। भारत सहित विश्व के कई अन्य देश दूसरे ग्रहों-उपग्रहों की खोज मात्र उनकी भौतिक-रासायनिक आदि दृष्टिकोण से जानकारी के लिए ही नहीं कर रहे हैं, बल्कि उनके शोध का एक और उद्देश्य उनमें जीवन और उसके स्तर की संभावना की तलाश भी है। हाँ, इसे आम नागरिकों की जानकारी से छुपा कर रखा जाता है ताकि किसी आशंका अथवा अफवाह से आम जनजीवन प्रभावित न हो। इसीलिए उनके द्वारा भी कभी दिखे यूएफओ आदि की सूचनाओं को सामान्यतः नकार ही दिया जाता है। यद्यपि यह पूर्णतः असत्य नहीं होता। तकरीबन एक प्रतिशत दावे सच्चाई के करीब ही होते हैं, मगर वो इन पर खोज कर रही संस्थाओं की खोज-बीन के विषय ही होते हैं। अपने शोध के क्रम में हमने दूसरे ग्रहों पर जीवन की संभावना तो पाई है, इनमें कुछ ग्रहों पर यह काफी उन्नत स्तर पर भी हो सकता है। क्योंकि कुछ उड़न तश्तरियाँ हमारी खोज में सच पाई गई हैं। हाँ, हमें यह ज्ञात नहीं हो पाया कि वह इसी सौर मंडल से हैं या किसी अन्य आकाशगंगा से भी।’’- उनकी बातें अचरज से सुन रहे घोष बाबू के मन में कई सवाल उमड़-घुमड़ रहे थे, जिसे सामने रखने में उन्होंने देर न की। साथ ही उन्होंने डॉ. साहब की परेशानी का कारण भी पूछ ही लिया। उनकी उत्सुकता को शांत करते हुये डॉ. रोहित ने फिर कहना शुरू किया- ‘‘आप इतिहास से भी अवगत हैं और वर्तमान वैश्विक राजनीति से भी। किसी भी संभावना के अच्छे-बुरे दो पहलू हो सकते हैं। पराग्रही जीवन से भी कई संभावनाएँ जुड़ी हुई हैं। हमारी तरह वो भी हमारा अध्ययन कर रहे हैं। यह उनकी स्वाभाविक जिज्ञासा भी हो सकती है अथवा पृथ्वी की शक्तियों का आंकलन कर इस पर आक्रमण का इरादा भी। इसी तरह उन्हें लेकर इस परियोजना में शामिल देश भी दो गुटों में बाँट गए हैं। एक गुट का उद्देश्य वैज्ञानिक दृष्टिकोण और मैत्री है तो दूसरे का इनकी तकनीक का लाभ उठा अपनी शक्ति बढ़ाना। इसके लिए यदि कभी संभव हुआ तो उनसे संपर्क कर इस ग्रह पर अपनी सत्ता स्थापित करवाने के प्रयासों से भी पीछे नहीं हटेगी ये विचारधारा।’’ घोष बाबू उनकी बातों की गंभीरता को समझ रहे थे। उन्होंने पुनः अपनी जिज्ञासा प्रकट की- ‘‘आपने इस समस्या के विविध पहलू तो बताए, मगर मुझे ऐसा लग रहा है कि आपकी चिंता अभी किसी और तात्कालिक कारण से बढ़ी

हुई है। उसके बारे में कुछ बताएँ तो शायद मैं भी आपकी कोई सहायता कर सकूँ...।’’ डॉ. साहब ने उनकी बात से सहमति जताते हुये सामने रखे ग्लास से पानी की दो घूंटें पी और पुनः कहना शुरू किया- ‘‘अफगानिस्तान में रूसी हमले के दौरान वहाँ एक अफवाह यूएफओ दिखने की उड़ी थी, जिसे ऐसी ही अन्य सूचनाओं की तरह खारिज कर दिया गया था। मगर वास्तविकता ये थी कि रूस जो अंतरिक्ष विज्ञान में भी काफी आगे था की अत्याधुनिक सेना ने उस स्वचालित यूएफओ पर हमला कर गिरा दिया था। उसे वहाँ से अपने साथ मास्को ले जाने में उपग्रहों आदि की पकड़ में आने का खतरा था इसलिए उन्होंने उसे वहीं किसी पहाड़ की गुफा में छुपा दिया ताकि बाद में उसके वैज्ञानिक उसपर अध्ययन कर सकें। बाद में बदलती परिस्थितियों में उन्हें वापस लौटना पड़ा, मगर वह यान वहीं छुपा रहा। इसके बारे में लिखित रूप से कोई दस्तावेज भी नहीं रखा गया था, मगर कुछ रूसी अधिकारी ये बातें जानते थे। समय गुजरता गया। वर्ल्ड ट्रेड टावर पर हमले के बाद अमेरिका ने भी अफगानिस्तान में प्रवेश किया। इस कहानी से कुछ अंशों में अवगत सीआईए ने भी उस यान को ढूँढ़ने की कोशिश की, मगर उसे भी सफलता नहीं मिली। अमेरिका और रूस की प्रतिद्वंदिता इस क्षेत्र में भी उन्हें परस्पर सहयोग करने से रोक रही थी। समय के साथ अमेरिका ने वहाँ सेना में कटौती की मगर विभिन्न पहाड़ी गुफाओं में अमेरिका की रुचि से वहाँ विभिन्न कबाईली गुटों को भी कुछ भनक लग गई थी, और वो भी जनश्रुति में बसे उस यान की खोज में जुटे हुये थे। आज खबर आई है कि किसी चरमपंथी गुट को वह यान मिल गया है और किसी अन्य उच्च तकनीकी संपन्न देश से सौदेबाजी कर वह इसे प्रयोग करना भी सीख गया है। दुनिया पर अपनी सत्ता कायम करने के लिए उसने इस यान की सामरिक शक्तियों का प्रयोग कर विनाश लाने की चेतावनी दी है।’’ डॉ. रोहित अभी यह बता ही रहे थे कि उनके मोबाईल में एक नोटिफिकेशन की टोन बजी। उन्होंने खोला तो एक ब्रेकिंग न्यूज की नोटिफिकेशन थी। यान पर कब्जा करने वाले गुट ने मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने के लिए पहला वार कर दिया था, वो भी विश्व के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका पर। एक अपार ऊर्जायुक्त लेजर किरण के प्रहार से वहाँ की प्रसिद्ध ‘स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी’ एक झटके में ही कण-कण में बिखर गई थी। उस गुट ने इसे मात्र एक उदाहरण बताते हुए अगला हमला किसी बड़ी आबादी वाले महानगर पर करने की धमकी भी दी थी। संभावना थी कि उसका अगला लक्ष्य भारत में मुंबई हो।

खबर पढ़ दोनों इस समस्या और इसके समाधान हेतु सोच-विचार में डूब गए। बातों-ही-बातों में कब सुबह हो गई पता ही न चला। सूरज की पहली किरण के साथ ही डॉ. रोहित की आँखों में एक आशा की किरण भी नजर आ रही थी। वो भारत सरकार के रक्षा सचिव को फोन करने उठ खड़े हुए। उड़नतश्तरी सहारा के मरुस्थल में अपनी प्रभावपूर्ण आभा के साथ खड़ी थी। उसमें बैठे शख्स जिसने अपना चेहरा एक नकाब से ढँक रखा था में भी इस प्रभावशाली यान पर नियंत्रण की अलग ही ठसक थी। अपने सामने बैठे वैश्विक प्रतिनिधिमंडल को वो हिकारत की नजर से देख रहा था। प्रतिनिधिमंडल में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सहित डॉरोहित और घोष बाबू भी थे। उसने उनसे दो-टूक शब्दों में कह दिया था कि या तो संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वावधान में सारे देश उस गुट की अधीनता स्वीकार कर लें अथवा एक झटके में पूरे विश्व को तबाह होते देखने को तैयार रहें। प्रतिनिधिमंडल अभी तक इस गुट को पर्दे के पीछे से समर्थन दे रहे देश की पहचान नहीं कर पाया था, ताकि उसी के माध्यम से ही कोई दबाव बनाया जा सके। डॉ. रोहित ने पलट कर घोष बाबू की ओर देखा। उनकी आँखें बंद थीं। ऐसा लगता था मानो वो सो रहे हों। मगर बस रोहित ही जानते थे कि घोष बाबू के दिमाग में क्या चल रहा है! शाम होने के साथ यान के अंदर भी थोड़ा अंधेरा सा हो गया था। डॉ. रोहित ने कहा कि उन्हें रक्षा सचिव को एक फैक्स भेजने का मसौदा तैयार करना है, तो क्यों न घोष बाबू की टार्च जला ली जाए? किसी ने कोई ऐतराज नहीं किया।

डॉ. रंजीत के इशारा करते ही घोष बाबू उठे और एक कोने में जा समूह की ओर अपने टार्च का रुख कर बटन दबा दिया। नकाबपोश सहित सभी की आँखें चौंधिया गईं। तभी उन्होंने देखा मध्यम कद और हरी त्वचा वाले दो अंतरिक्ष परग्रही उनके बीच खड़े हैं। उन्होंने अपनी उंगली नकाबपोश की ओर की और उससे निकली एक रोशनी के घेरे ने उसे लपेट लिया। दूसरे परग्रही ने शेष लोगों को बाहर निकलने का इशारा किया। वो एक-एक कर वहाँ से निकल गए। आखिर में उन्होंने उस नकाबपोश को भी बाहर धकेल दिया। जैसे-जैसे उसपर से रोशनी की पकड़ ढीली होती जा रही थी यान भी अंतरिक्ष की ओर उठता जा रहा था। थोड़ी ही देर में यान अंतरिक्ष में गुम हो चुका था और वह नकाबपोश उनकी गिरफ्त में था। सभी इस घटना से प्रसन्न थे, सिवाए डॉ. रोहित के। उन्होंने घोष बाबू की ओर प्रश्नवाची नजरों से देखते हुए पूछा- “ये माजरा क्या है! हम सभी को परग्रही दिखे यह बात तो समझ आई किन्तु यह यान कैसे गायब हो गया! मैंने तो सोचा था कि हम सभी इस पर और अध्ययन करेंगे...।” घोष बाबू स्वयं हतप्रभ थे। उनकी योजना में तो सिर्फ उस नकाबपोश में परग्रहियों का एक भ्रम उत्पन्न करना ही शामिल था, ताकि वो आत्मसमर्पण कर दे। मगर उसके बाद यह सब कैसे हो गया, वो खुद समझ नहीं पा रहे थे। - ‘‘ईश्वर जाने’ जैसी अभिव्यक्ति देते कंधे उचकाते उन्होंने जैसे ही आकाश की ओर देखा, उन्हें शायद अपने सभी प्रश्नों का उत्तर मिल गया। छोटे आकार का एक और त्रिकोणाकार यूएफओ पहले वाली उड़नतश्तरी के पीछे जाता दिख रहा था। वो समझ गए थे कि इतने वर्षों से इस उड़नतश्तरी की खोज उस ग्रह वाले भी कर रहे थे ताकि उनकी तकनीक की चोरी या नाजायज लाभ न उठा लिया जाए। उड़नतश्तरी के खुले स्थान में आने और इध्ार-उधर उड़ने से उन्हें इसके सिग्नल मिल गए और थोड़ी देर से ही सही वो इसे वापस लेने आ गए। संजोग ही था कि जितनी योजना घोष बाबू ने तैयार की थी उसका तारतम्य इनकी योजना से मिल गया और ये सारी घटना घटित हुई। अब तक सुरक्षा अधिकारियों ने उस नकाबपोश को अपनी गिरफ्त में ले लिया था और आगे की पूछताछ के लिए अपने साथ ले जाने लगे थे। प्रतिनिधिमंडल के सदस्य भी संतोष की साँस लेते हुए अपने-अपने देश लौटने की तैयारी करने लगे थे। धीरे-धीरे समय बीतने के साथ प्रमुख देश परग्रही जीवन पर अपने शोध को लेकर नए सिरे से तैयारी करने लगे थे। आम जनता को फिर से यह समझा दिया गया था कि यह सारा घटनाक्रम एक आतंकी साजिश मात्र थी, जिसे अब नियंत्रण में ले लिया गया है। डॉ. रोहित पुनः अपने टेलिस्कोप के साथ अंतरिक्ष में कुछ टटोलने लगे थे, और उधर दूसरी ओर कहीं अंतरिक्ष में भी कुछ आँखें थीं जो पृथ्वी की इन गतिविधियों पर नजर रखे हुए थीं.....

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रचनाकार: विज्ञान कथा // उड़नतश्तरी की वापसी // अभिषेक मिश्रा // विज्ञान कथा / जनवरी-मार्च 2018
विज्ञान कथा // उड़नतश्तरी की वापसी // अभिषेक मिश्रा // विज्ञान कथा / जनवरी-मार्च 2018
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