अध्यापक दिवस का दिन है और खुद एक अध्यापक होते हुए शायद इस बात को ज्यादा गहराई से महसूस किया जा सकता है कि अध्यापक होना और अध्यापक होते हुए ह...
अध्यापक दिवस का दिन है और खुद एक अध्यापक होते हुए शायद इस बात को ज्यादा गहराई से महसूस किया जा सकता है कि अध्यापक होना और अध्यापक होते हुए हमेशा अपने आस पास की परिस्थितियों से सीखना समझना कितना चुनौती पूर्ण होता है। याद कीजिये अपने उन अध्यापकों को जिन्हें याद रखने की कोई वजह आपके पास है। हमें या तो बहुत दुखद अनुभव वाले या बहुत सुखद अनुभव वाले अध्यापक ही याद होंगे। सुखद अनुभव वाले अध्यापक वो ही रहे जिन्होंने हमें जीवन के निराश पल में हौसला और हिम्मत दी। जिन्होंने किसी भी मुसीबत को मेहनत और आत्मविश्वास से हल करना सिखाया। उन्होंने हमारी हार को भी एक शिक्षा का रूप दिया और सदा कर्म करते रहने और अपने लक्ष्य को हर समय दिमाग में रखने का तरीका बताया। तब हम विद्यार्थी थे और कई बार उनकी बातों को ज्यादा अहमियत भी नहीं देते थे पर जीवन के चुनौती भरे क्षणों में उनकी कही गयी बातें हमारे मन मस्तिष्क में गूंजती रही और हमें तब पता चला कि उनकी कही गयी बातें कोरा प्रवचन नहीं थी उनके भोगे हुए अनुभव थे। आज हम अपने कार्यक्षेत्र में ,घर में ,समाज में एक दूसरे के साथ कई बार शिक्षक विद्यार्थी वाला रोल बांटते हैं। समय अब हर पल सीखते रहने का है। कई बार नयी पीढ़ी भी पुरानी पीढ़ी के लिए शिक्षक साबित होती है बस सहजता से उन्हें स्वीकार करने का गुण होना चाहिए।
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शिक्षक होने के नाते आज हमें लगता है कि अब शिक्षा का स्तर ज्यादा सामाजिक हो चूका है। जो शिक्षा जीवन से नहीं जुडती वो लुगदी से अधिक कुछ नहीं। हम अपने छात्रों को जो सपने दिखा रहे है या उनके मन में भविष्य के प्रति एक उम्मीद भर रहे है उन्हें लेकर खुद भी कई बार शंका और चिंता मन में पैदा होती है। आज जो हताशा ,असफलता और निराशा से ओत प्रोत बेकारी का वातावरण देश में बना हुआ है ,रोजगार के हालात बद से बदतर हो रहे है और नौजवानों के बीच विदेश जाने की होड़ मची है उस बीच एक अध्यापक की जिम्मेवारी और ज्यादा बढ़ जाती है। बाकी आजकल का सिनेमा ,मीडिया जिस प्रकार के विचार नौजवान विद्यार्थियों में रोपित कर रहा है उनके जंजाल से भी अध्यापक का मुकाबला है।
इससे पहले कि असभ्य और हिंसक विचार नौजवानों के लिए आदर्श बने या उनके दिलो दिमाग पर कब्ज़ा कर ले ,अध्यापक को छात्रों में अच्छे साहित्य और सामाजिकता की समझ भी विकसित करनी होगी। आज हमारे अपने देश में शिक्षा का मूलभूत ढांचा लार्ड मैकाले के ढाँचे से कुछ हद तक मुक्त हुआ है या हो रहा है पर समाज में जिस प्रकार संबंधों की नैतिकता और अपने देश वासियों के प्रति गैर जिम्मेदारी की घटनाएं बढ़ी है ,वो चिंता का विषय है।
शिक्षा का उद्देश्य ही एक अच्छा और जिम्मेदार नागरिक बनाना है ,और इसके साथ आर्थिक तौर पर एक मजबूत लाइफ स्टाइल देना है ,पर हम देख रहे है कि किस प्रकार उत्तर प्रदेश ,राजस्थान ,पंजाब ,मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में अध्यापक स्वयं आन्दोलन रत है। ठेका या संविदा भर्ती के नाम पर उनका शोषण किस प्रकार हो रहा है। उनके धरने प्रदर्शनों पर लाठी चार्ज या दर्ज हो रहे केस की ख़बरें आम हो रही हैं। दिन ब दिन शिक्षण संस्थानों की बढ़ती गिनती और उसमें से निकलने वाला प्रशिक्षित युवाओं का सैलाब किस प्रकार रोजगार के लिए मारा मारा फिर रहा है ,चिंतनीय है। ये ऊर्जा का बड़ा स्रोत हैं और इनका सही उपयोग तथा इन्हें सही दिशा अगर न दी गयी तो समाज में हिंसा , नशा , आतंकवाद ,अराजकता ,हताशा की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता।
समाज के बीच समरसता को बनाये रखने के लिए ,लोगों के मनों में अपनी जमीन के प्रति आदर और सम्मान बनाये रखने के लिए ,अपने देश पर गर्व करने के लिए इस युवा ऊर्जा पर बहुत ध्यान देने की जरूरत है। हम जानते है उनके सपनों से खेलने के लिए और उनकी ऊर्जा का गलत इस्तेमाल करने के लिए बहुत सी अराजक ताकतें अग्रसर है। ऐसे समय में शिक्षा संस्थानों ,उनके पाठ्यक्रर्मो और उनके भीतर पनप रहे वातावरण पर आशावादी दृष्टिकोण अपनाना और पैदा करना होगा। शिक्षा के ढाँचे को नयी उपलब्धियों से नए प्रयोगों से परिवर्तनशील बनाना होगा और उसमें ऐसी व्यवस्थाएं करनी होगी जो उन्हें जाति, धर्म या देशद्रोह से परे रखकर उनके मन में आर्थिक और सामाजिक विकास के लक्ष्य निर्धारित कर सके ,उन्हें अपने जीवन में सफलता के नए आयाम दे सके।
आजकल नौजवान यदि उद्देश्यहीन है तो उसका पूरा दोष शिक्षा प्रणाली के ऊपर है। कई बार स्वयम शिक्षक को यह बात कक्षा में पढ़ते हुए महसूस होती है कि वो जो पाठ्यक्रम पढ़ा रहा है या बता रहा है उसका महत्व सुबह सुबह टी वी पर चलने वाले प्रवचनों जैसा है जिनको जीवन में न तो लागू किया जा सकता है और न ही इस औद्योगिक विकास के संसार में उनके सत्यापन की कोई संभावना है। शिक्षक ऐसे समय में चाहते हुए भी कई बार इन बातों का विरोध स्पष्ट रूप से नहीं कर पाता क्योंकि वह आजीविका और पाठ्यक्रम की नैतिकता तथा उत्तरदायित्व से बंधा होता है।
पंचतंत्र ऐसी कहानियों का संकलन है जिसमें विष्णु शर्मा नामक आचार्य या शिक्षक ने राजा के मूर्ख पुत्रों को कहानियां सुनाकर मूर्ख से विद्वान् बनाया। उन्होंने वो काम कर दिखाया जो बड़े बड़े शिक्षा विद नहीं कर पाए। विष्णु शर्मा की शिक्षा सरल और जीवन के अनुभवों पर आधारित थी और व्यवहार के साथ जुडी थी ,यही कारण था कि वे सही शिक्षण देने में सफल रहे।
आज बहुत कुछ वैसा ही हो रहा है हमारी शिक्षा पद्धति एक भीड़ जूता रही है ,रटंत प्रणाली और परम्परावादी शिक्षण से त्रस्त ,जिसमें केवल एक ठहराव है ,रोचकता और मनोरंजन नहीं। बहुत से शिक्षकों ने इस ढाँचे को तोड़ने का प्रयास किया है और कर रहे हैं। अभी कुछ दिनों पहले प्रो यशपाल की मृत्यु हुई ,वे आधुनिक और रोचक तरीकों से विज्ञान समझाते थे। आज भी ऐसे शिक्षक ही युवाओं के आदर्श बन सकते है और उनकी ऊर्जा को ,जीवन को ,लक्ष्य को एक दिशा दे सकते हैं। जरूरत है शिक्षा में कार्य कुशलता को बढ़ने की और छात्रों को जीवन से अधिक जोड़ने वाले पाठ्यक्रम को लागू करने की। रोजगार के नए मौके विशेषकर ग्रामीण और अति पिछड़े इलाकों में विकसित करने की।
डा हरीश कुमार
बरनाला (पंजाब )
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’परमवीर चक्र से सम्मानित वीर सपूत धन सिंह थापा और ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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