रैवन की लोककथाएँ - 3 - 1 : 1 रैवन पकड़ना आसान नहीं // सुषमा गुप्ता

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देश विदेश की लोक कथाएँ - रैवन3 : रैवन की लोक कथाएँ3 संकलनकर्ता सुषमा गुप्ता Cover Page picture: Raven Bird E-Mail: sushmajee@yahoo.com <m...

देश विदेश की लोक कथाएँ - रैवन3 :

रैवन की लोक कथाएँ3

संकलनकर्ता

सुषमा गुप्ता

Cover Page picture: Raven Bird

E-Mail: sushmajee@yahoo.com <mailto:sushmajee@yahoo.com>

Website: www.sushmajee.com/folktales/index-folktales.htm <http://www.sushmajee.com/folktales/index-folktales.htm>

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Copyrighted by Sushma Gupta 2014

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विंडसर, कैनेडा

मार्च 2015


Contents

सीरीज़ की भूमिका 4

रैवन की लोक कथाएँ3 5

1 रैवन पकड़ना आसान नहीं 7

2 रैवन ने तेल बेकार किया 16

3 बोलता रैवन जो हीरो बन गया 26


सीरीज़ की भूमिका

लोक कथाएँ किसी भी समाज की संस्कृति का एक अटूट हिस्सा होती हैं। ये संसार को उस समाज के बारे में बताती हैं जिसकी वे लोक कथाएँ हैं। आज से बहुत साल पहले, करीब 100 साल पहले, ये लोक कथाएँ केवल ज़बानी ही कही जाती थीं और कह सुन कर ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को दी जाती थीं इसलिये किसी भी लोक कथा का मूल रूप क्या रहा होगा यह कहना मुश्किल है।

आज हम ऐसी ही कुछ अंग्रेजी और कुछ दूसरी भाषा बोलने वाले देशों की लोक कथाएँ अपने हिन्दी भाषा बोलने वाले समाज तक पहुँचाने का प्रयास कर रहे हैं। इनमें से बहुत सारी लोक कथाएँ हमने अंग्रेजी की किताबों से, कुछ विश्वविद्यालयों में दी गयी थीसेज़ से, और कुछ पत्रिकाओं से ली हैं और कुछ लोगों से सुन कर भी लिखी हैं। अब तक 1200 से अधिक लोक कथाएँ हिन्दी में लिखी जा चुकी हैं। इनमें से 400 से भी अधिक लोक कथाएँ तो केवल अफ्रीका के देशों की ही हैं।

इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है कि ये सब लोक कथाएँ हर वह आदमी पढ़ सके जो थोड़ी सी भी हिन्दी पढ़ना जानता हो और उसे समझता हो। ये कथाएँ यहाँ तो सरल भाषा में लिखी गयीं है पर इनको हिन्दी में लिखने में कई समस्याऐं आयी है जिनमें से दो समस्याऐं मुख्य हैं।

एक तो यह कि करीब करीब 95 प्रतिशत विदेशी नामों को हिन्दी में लिखना बहुत मुश्किल ह़ै चाहे वे आदमियों के हों या फिर जगहों के। दूसरे उनका उच्चारण भी बहुत ही अलग तरीके का होता है। कोई कुछ बोलता है तो कोई कुछ। इसको साफ करने के लिये इस सीरीज़ की सब किताबों में फुटनोट्स में उनको अंग्रेजी में लिख दिया गया हैं ताकि कोई भी उनको अंग्रेजी के शब्दों की सहायता से कहीं भी खोज सके। इसके अलावा और भी बहुत सारे शब्द जो हमारे भारत के लोगों के लिये नये हैं उनको भी फुटनोट्स और चित्रों द्वारा समझाया गया है।

ये सब कथाएँ "देश विदेश की लोक कथाएँ" नाम की सीरीज के अन्तर्गत छापी जा रही हैं। ये लोक कथाएँ आप सबका मनोरंजन तो करेंगी ही साथ में दूसरे देशों की संस्कृति के बारे में भी जानकारी देंगी। आशा है कि हिन्दी साहित्य जगत में इनका भव्य स्वागत होगा।

सुषमा गुप्ता

मई 2016

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रैवन की लोक कथाएँ3

रैवन काले रंग का कौए की तरह का एक पक्षी होता है जो दुनिया में बहुत जगह पाया जाता है पर यह अमेरिका और कैनेडा के उत्तर पश्चिमी हिस्से में रहने वाले मूल निवासियों की लोक कथाओं का हीरो है। अमेरिका और कैनेडा की खोज से पहले अमेरिका और कैनेडा दो देश नहीं थे इसलिये रैवन की कथाओं को अमेरिका के मूल निवासियों की लोक कथा कहना ही ज़्यादा उचित होगा।

अमेरिका के मूल निवासियों में बहुत सारी जनजातियाँ थीं और इन सबमें अलग अलग लोक कथाएँ थीं। रैवन की लोक कथाएँ कई जनजातियों में अपने अपने तरीके से कही सुनी जाती थीं और लोकप्रिय थीं।

आजकल रैवन कैनेडा देश के यूकोन प्रान्त और भूटान देश का राष्ट्रीय पक्षी है और भूटान देश की तो यह शाही टोपी में भी लगा हुआ है।

यह अपने काले रंग, सड़े हुए माँस खाने की आदत और कठोर आवाज की वजह से बहुत अपशकुनी माना जाता है पर फिर भी लोग इसको मारते नहीं है। अमेरिका के मूल निवासी इन्डियन्स के कायोटी की तरह से यह भी उनकी लोक कथाओं का एक मुख्य हीरो है। इसकी दुनिया बनाने वाली कहानियाँ बहुत मशहूर हैं।

इसको लोग जन्म और मौत के बीच का बिचौलिया मानते हैं क्योंकि यह सड़ा हुआ माँस खाता है इसलिये इस का रिश्ता मरे हुए लोगों और भूतों से है और क्योंकि इसने दुनिया बनाने में बहुत मदद की है इसलिये इसका रिश्ता ज़िन्दगी से भी है।

रैवन का जिक्र केवल अमेरिका और कैनेडा की लोक कथाओं में ही नहीं है बल्कि ग्रीस और रोम की दंत कथाओं में भी है। रोम की दंत कथाओं में अपोलो जो भविष्यवाणी करता है यह उनसे जुड़ा हुआ है। स्वीडन में इसको कत्ल हुए लोगों का भूत मानते हैं। इंगलैंड में कुछ ऐसा विश्वास है कि यदि रैवन "टावर औफ लंदन" से हटा दिये जायें तो इंगलैंड का राज्य ही खत्म हो जायेगा।

बाइबिल में भी इसका जिक्र कई जगहों पर आया है। टालमुड मे रैवन नोआ की नाव के उन तीन जानवरों में से एक है जिन्होंने बाढ़ के समय में लैंगिक सम्बन्ध स्थापित किये थे और इसी लिये नोआ ने उसको सजा दी थी। कुरान में रैवन ने ऐडम के दो बेटे केन और एबिल में से केन को उसके कत्ल किये हुए भाई को दफनाना सिखाया। हिन्दुओं की तुलसीदास जी की लिखी हुई "रामचरित मानस" में यह कागभुशुण्डि जी के रूप में आता है और 27 प्रलय देख चुका है। उसमें यह गरुड़ जी को राम कथा सुनाता है।

प्रशान्त महासागर के उत्तर पूर्व के लोगों में रैवन की जो लोक कथाएँ कही सुनी जाती हैं उनसे पता चलता है कि वे लोग अपने वातावरण के कितने आधीन थे और उसकी कितनी इज़्ज़त करते थे। रैवन मिंक और कायोटी की तरह से कोई भी रूप ले सकता है - जानवर का या आदमी का। वह कहीं भी आ जा सकता है और उसके बारे में यह पहले से कोई भी नहीं बता सकता कि वह क्या करने वाला है। वैसे तो वह बहुत ही चालाक है लेकिन एक बार उसने एक बड़ी सीप में बन्द नंगे लोगों के ऊपर दया दिखायी थी। फिर वह अपनी चालबाजी से उनके लिये शिकार, मछली, आग, कपड़े और ऐसी ऐसी रस्में लेकर आया जो उनको भूतों और आत्माओं के असर से बचा सकती थीं। उसने प्रकृति से लड़ कर उन लोगों को काम के लायक बनाया।

रैवन की भूख बहुत ज़्यादा है और वह अपनी भूख कोई भी चाल खेल कर ही मिटाया करता है पर अक्सर वह चाल उसी पर उलटी पड़ जाती है।

रैवन की बहुत सारी लोक कथाएँ हैं। "रैवन की लोक कथाएँ1" में हमने रैवन के जन्म की, उसकी शक्ल की और उसके पहली पहली चीजें लाने की 20 लोक कथाओं का संकलन किया है। इन 20 लोक कथाओं में पहली कुछ कथाएँ उसके जन्म और शक्ल की हैं। फिर दिन, सूरज और आग लाने की हैं और फिर पानी लाने की हैं। इनमें कुछ कथाएँ एक सी लगती हैं पर सब अलग अलग हैं। रैवन की ये लोक कथाएँ रैवन के चरित्र के बारे कुछ जानकारी तो देंगी ही साथ में बच्चों और बड़ों दोनों का मनोरंजन भी करेंगी।

उसके बाद हमने रैवन की लोक कथाओं का दूसरा संकलन प्रकाशित किया था - "रैवन की लोक कथाएँ2"। उसमें उसकी कुछ ऐसी लोक कथाएँ थीं जिनमें उसका दूसरे जानवरों के साथ व्यवहार दिखाया गया था। कुछ उसकी शादी की कथाएँ थीं और अन्त में एक कथा उसके मरने की। यह कथा यह भी बताती है कि लोग रैवन को क्यों नहीं मारते।

रैवन की लोक कथाओं का यह तीसरा संकलन "रैवन की लोक कथाएँ3" रैवन की कुछ आधुनिक कहानियों का संग्रह है पर क्योंकि ये कहानियाँ रैवन से सम्बन्धित हैं इसलिये इनकी अलग से एक पुस्तक प्रकाशित की जा रही है। आशा है ये कहानियाँ भी तुमको रैवन के दूसरे संकलनों की तरह से पसन्द आयेंगी।

रैवन की ये कहानियाँ रैवन के चरित्र के बारे कुछ जानकारी तो देंगी ही साथ में बच्चों और बड़ों दोनों का मनोरंजन भी करेंगी।

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1 रैवन पकड़ना आसान नहीं

रिक सिनौट ने अपनी वैन का दरवाजा खोला और उसके फर्श पर उकड़ूँ बैठ गया और रेवन को पकड़ने के लिये अपनी कैनन को सैट किया तो उसने साँस रोक कर कहा "ओह मेरे भगवान, यह तो गाड़ी चलाते हुए गोली चलाना जैसा है।"

अचानक बहुत ज़ोर की एक आवाज हुई जो उसको एक राइफल से निकली हुई गोली की सी आवाज लगी। स्टील की चार लम्बी लम्बी गोलियाँ उसकी कैनन से निकलीं।

ये गोलियाँ 12 फुट के एक जाल से जुड़ी हुईं थीं और वह जाल वैन से 25 फुट की दूरी पर जा कर गिरता था। और इस आवाज के साथ ही उसका टार्गेट रैवन उड़ कर पास के पेड़ पर जा कर बैठ गया।

"उफ। अगर वह 5 फीट और पास होता तो मैंने उसे पकड़ लिया होता।" चिल्लाते हुए सिनौट वैन से उस जाल को वापस लाने के लिये कूद गया।

रैवन जैसी चालाक चिड़िया को पकड़ना आसान नहीं है। सिनौट एक महीने से सारा दिन रैवन को पकड़ने की कोशिश करता रहा है। उसने अब तक 39 रैवन पकड़े हैं और वह कुल 60 रैवन पकड़ना चाहता है। अभी तो उसको 21 रैवन और पकड़ने हैं।

जब वह उनको पकड़ लेगा तो उनकी पहचान के लिये उन पर कोई निशान बना देगा और फिर उनकी पीठ पर वह बहुत छोटे छोटे रेडियो ट्रान्समिटर बाँध देगा।

सिनौट स्टेट डिपार्टमेन्ट औफ फिश ऐन्ड गेम में एक जंगली जानवरों का बायोलोजिस्ट था और यू ऐस डिफैन्स डिपार्टमेन्ट के 39 हजार डालर फोर्ट रिचर्डसन के रैवनों पर उनकी आदतों के अध्ययन पर खर्च करना चाहता था।

वैज्ञानिकों को ऐसी प्रौजक्ट के लिये पैसे बहुत कम मिलते हैं जिसमें वे रैवन जैसे जानवर का अध्ययन कर रहे हों क्योंकि वह कोई ऐसा जानवर नहीं है जिसकी जाति खतरे में हो या फिर वे शिकारियों का निशाना हों।

इसलिये पैन्टैगन ने जब फोर्ट रिचर्डसन को 69 हजार डालर जानवरों और पौधों का सर्वे करने के लिये दिये तो उसने उसमें से कुछ पैसे मिलिटरी वालों को रैवन का अध्ययन करने के लिये देने का भी विचार किया।

कई सालों से वह रैवन के बारे में जानने के लिये बहुत उत्सुक था। रैवन जो जनता में तो बहुत लोकप्रिय था पर वैज्ञानिकों में नहीं। उसके आश्चर्य की सीमा न रही जब मिलिटरी उसका यह काम करने पर राजी हो गयी।

बिल गौसवीलर बोला - "मैंने अपनी हर मिलिटरी बेस से पूछ लिया पर कोई रैवन के बारे में कुछ भी नहीं जानता सिवाय इसके कि सबके यहाँ कुछ कुछ रैवन हैं।"

सिनौट का कहना है कि वैज्ञानिक लोग रैवन के बारे में साधारण बातें भी नहीं जानते, जैसे वे रात को कहाँ सोते हैं? वे अपना घोंसला कहाँ बनाते हैं? शहरों में कितने रैवन रहते हैं? वे गरमियों में कहाँ जाते हैं? आदि आदि।

सो इससे पहले कि तुम रैवन का पीछा करो तुम्हें पहले रैवन को पकड़ना होगा। और जब रैवन को पकड़ने की बात आती है तो यह कोई आसान काम नहीं है क्योंकि रैवन तो पक्षियों की दुनिया का दिमाग है।

पहले तो सिनौट ने एक तार का जाल बनाया जो 25 फीट और 30 फीट लम्बा और चौड़ा था और 7 फीट ऊँचा था। उसने उस जाल में 10 दिन तक हिरन का माँस लगा कर रखा ताकि रैवन उस माँस को खाने के आदी हो जायें।

हालाँकि वे उस जाल के अन्दर नहीं आ रहे थे फिर भी वह अपनी योजना के अनुसार अपना काम जारी रखे था।

मेन स्टेट से एक रैवन पकड़ने वाला उनको रैवन पकड़ना सिखाने के लिये आया हुआ था। उसी के बताये अनुसार सिनौट ने एक तार एक लोहे के खम्भे से बाँधा हुआ था जो उस जाल का दरवाजा खोल देता था और उसका दूसरा छोर उसके हाथ में होता था।

फिर वह 300 फीट पीछे बरफ की एक दीवार के पीछे रैवन के आने का इन्तजार करता था। सिनौट अपनी तरफ का तार का सिरा तब खींचता था जब उस जाल में करीब करीब 30 रैवन होते थे।

पर यह तरकीब मेन स्टेट के गाँवों में तो चलती थी पर ऐन्करेज में यह तरकीब नहीं चल पा रही थी। वह वहाँ के रैवनों को बेवकूफ नहीं बना पा रही थी।

एक बार जब दो रैवन जाल में फँसे तो सिनौट ने तार खींचा तो उसका खम्भा तो जमीन में ही जम गया और बिल्कुल भी नहीं हिला। जब तक सिनैट उस जाल का दरवाजा बन्द करता वे रैवन वहाँ से उड़ कर भाग गये थे।

सिनौट ने महसूस किया कि ऐन्करेज के रैवनों को मेन स्टेट के रैवनों के मुकाबले में खाना बहुत ज़्यादा मिल जाता था शायद इसी लिये वे खाने के लिये वे कोई खतरा मोल लेना नहीं चाहते थे।

फिर सिनौट ने टाँगों वाला जाल लगाया जो छोटे दूध पिलाने वाले जानवरों के लिये इस्तेमाल किया जाता था। उसके किनारे उसने रबर के रखे ताकि वे रैवनों की टाँगों को कोई नुकसान न पहुँचा सकें।

उस जाल में उसने सन्तरे और चीज़ की खुशबू वाला खाना लगाया जो रैवन बहुत ज़्यादा पसन्द करते थे। पर इन जालों को बरफ से ढकना पड़ता था जबकि रैवन वहाँ ज़्यादा आते थे जहाँ कम बरफ होती थी जैसे गाड़ी पार्क करने की जगहों पर।

जब सिनौट ने एक ऐसी ही गाड़ी पार्क करने की जगह पर रैवनों को पकड़ने के लिये अपना जाल लगाया और उसे बरफ से ढक दिया तब भी किसी रैवन ने उस जाल में लगा चारा छुआ तक नहीं।

सिनौट ने फिर कुछ चीटोज़ पार्किंग की जगह के पास फेंके और कुछ वहाँ भी फेंके जहाँ उसने जाल बिछाया था। यह कुछ बार तो काम किया पर फिर रैवनों को यह चाल पता चल गयी और उन्होंने जाल के पास फेंके गये चीटोज़ के पास आना ही बन्द कर दिया।

सिनौट ने बताया कि रैवनों को पता चल गया है कि इन चीटोज़ के पास नहीं जाना चाहिये। वे घंटों उनको दूर से बैठे देखते रहते पर जब वह चीटोज़ जमीन पर फेंकता तो वे भाग जाते।

सिनौट ने उनके बाद मूँगफली का इस्तेमाल किया, कुत्ते के खाने का इस्तेमाल किया, फ्रेन्च फ्राईज़ का इस्तेमाल किया, पर रैवनों की होशियारी को ध्यान में रखते हुए वह कोई भी काम इधर उधर का नहीं करता था।

जैसे वह चीटोज़ मैकडोनाल्ड की दूकान के सामने नहीं फेंकता था और फ्रेन्च फ्राईज़ चर्च में गाड़ी पार्क करने की जगह में नहीं फेंकता था।

सिनौट बोला - "यह एक बड़ा आपसी रिश्ता है हमारा। वे मुझे इसी तरह से जानते हैं। वे बरफ के ढेर की तरफ देखेंगे और फिर मेरी तरफ देखेंगे और फिर सोचेंगे कि हमें ये चीटोज़ अभी नहीं खाने।

कभी कभी जब वे मुझे नहीं देख रहे होते तब मैं उनको चुपके से पकड़ने की कोशिश करता हूँ और कई रैवन मैंने इस तरीके से पकड़े भी हैं।"

पर साधारणतया सिनौट ने काफी सारे रैवन नैट कैनन से ही पकड़े हैं। वह उनको वैन में से बैठ कर पकड़ता है क्योंकि रैवन आदमियों की बजाय गाड़ियों से कम डरते हैं।

जो रैवन आते जाते रहते हैं वे फोर्ट रिचर्डसन की 60 हजार एकड़ की जगह में नहीं रुकते हैं और न ही सिनौट। सो एक बार तो उसने फोर्ट रिचर्डसन जगह पर रैवन पकड़ने का विचार छोड़ दिया तो उसने सारे शहर से रैवन पकड़ने का निश्चय किया।

कुछ रैवन उसने ऐन्करेज के अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के गाड़ियाँ पार्क करने की जगह से पकड़े, कुछ नौर्थवे मौल से और कुछ कार्स हफ़मैन से पकड़े।

जब वह रैवन पकड़ने जाता था तो वह अपने कानों को अच्छी तरह से बन्द कर लेता था ताकि कैनन की आवाज उसके कानों को खराब न कर दे और बड़े मोटे वाले दस्ताने पहनता था ताकि रैवन उसकी उँगलियों को नुकसान न पहुँचा सकें।

वह जब भी कोई रैवन पकड़ता था वह तो उसके साथी उस जाल को वहाँ से तुरन्त ही उठा लाते थे ताकि कोई दूसरा रैवन उसको न देख ले।

सिनौट का कहना है कि अगर इनमें से एक रैवन के साथ भी तुमने कुछ गड़बड़ की तो बहुत सारे दूसरे रैवनों को तुरन्त ही पता चल जाता है कि तुम उन लोगों के साथ क्या करने वाले हो और वे फिर तुम्हारी पकड़ में नहीं आने वाले।

सिनौट का अन्दाज है कि करीब करीब 2000 रैवन हर साल जाड़े के मौसम में उड़ कर ऐन्करेज आते हैं और आ कर यहाँ के कूड़े में से खाना खाते हैं।

उनके लम्बे और कम चौड़े पंख जो इधर उधर आने जाने वाली चिड़ियों की पहचान है उनको दूर तक उड़ने में सहायता करते हैं। वहाँ जा कर वे मरे हुए जानवरों के ढाँचों को खाते हैं जो उनका निर्जन जगहों में सामान्य खाना है।

सिनौट का सवाल है कि वे इधर उधर तो आते जाते रहते हैं पर वे सोते कहाँ हैं?

उनके बारे में बहुत सारी बातें जानने के लिये वह एक रैवन पकड़ने के बाद वह उसकी चोंच और टाँगों के चारों तरफ टेप लगा देता है।

फिर वह उसको एक चमड़े की पेटी में बन्द कर देता है जिसमें एक औंस से भी कम वजन का एक रेडियो ट्रान्समिटर लगा रहता है। वह उसके पंखों में एक नम्बर लगा देता है। इस सारे काम में करीब आधा घंटा लग जाता है।

यह ट्रान्समिटर करीब करीब दो साल तक सन्देश भेजता रहता है। इन सन्देशों से वह यह जान पायेगा कि वे रात को कहाँ आराम करते हैं। पर रैवन यह कभी नहीं जान पायेंगे कि सिनौट क्या करना चाहता है।

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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं की एक अन्य पुस्तक - रैवन की लोक कथाएँ में से एक लोक कथा यहाँ पढ़ सकते हैं. इथियोपिया की 45 लोककथाओं को आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.

(क्रमशः अगले अंकों में जारी...)

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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया 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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: रैवन की लोककथाएँ - 3 - 1 : 1 रैवन पकड़ना आसान नहीं // सुषमा गुप्ता
रैवन की लोककथाएँ - 3 - 1 : 1 रैवन पकड़ना आसान नहीं // सुषमा गुप्ता
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