देश विदेश की लोक कथाएं - रैवन2 : रैवन की लोक कथाएँ2 संकलनकर्ता सुषमा गुप्ता E-Mail: sushmajee@yahoo.com <mailto:sushmajee@yahoo.co...
देश विदेश की लोक कथाएं - रैवन2 :
रैवन की लोक कथाएँ2
संकलनकर्ता
सुषमा गुप्ता
E-Mail: sushmajee@yahoo.com <mailto:sushmajee@yahoo.com>
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Copyrighted by Sushma Gupta 2014
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Contents
सीरीज़ की भूमिका 4
रैवन की लोक कथाएँ2 5
1 रैवन ने व्हेल कैसे मारी 7
2 रैवन की समुद्री यात्रा 11
3 रैवन और बड़ी बाढ़ 19
4 सूरज की चोरी 22
5 रैवन और बेचारी चिड़ियाँ 32
6 लोमड़ा और रैवन 34
7 रैवन और उल्लू 39
8 रैवन और मिंक 42
9 नर गिलहरी और रैवन 47
10 रैवन और एक आदमी 50
11 रैवन और कौए का पौटलैच 54
12 रैवन और बतखें 61
13 रैवन और उसकी बतख पत्नी 70
14 रैवन ने शादी की 73
15 रैवन और उसकी दादी 77
16 शिकारी रैवन 88
17 जब रैवन की आँखें खो गयीं 97
18 जिराल्डा का रैवन 104
19 एक बूढ़े पति पत्नी और जूता बनाने वाले 117
20 जब रैवन मारा गया 125
सीरीज़ की भूमिका
लोक कथाएँ किसी भी समाज की संस्कृति का एक अटूट हिस्सा होती हैं। ये संसार को उस समाज के बारे में बताती हैं जिसकी वे लोक कथाएँ हैं। आज से बहुत साल पहले, करीब 100 साल पहले, ये लोक कथाएँ केवल ज़बानी ही कही जाती थीं और कह सुन कर ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को दी जाती थीं इसलिये किसी भी लोक कथा का मूल रूप क्या रहा होगा यह कहना मुश्किल है।
आज हम ऐसी ही कुछ अंग्रेजी और कुछ दूसरी भाषा बोलने वाले देशों की लोक कथाएँ अपने हिन्दी भाषा बोलने वाले समाज तक पहुँचाने का प्रयास कर रहे हैं। इनमें से बहुत सारी लोक कथाएँ हमने अंग्रेजी की किताबों से, कुछ विश्वविद्यालयों में दी गयी थीसेज़ से, और कुछ पत्रिकाओं से ली हैं और कुछ लोगों से सुन कर भी लिखी हैं। अब तक 1200 से अधिक लोक कथाएँ हिन्दी में लिखी जा चुकी हैं। इनमें से 400 से भी अधिक लोक कथाएँ तो केवल अफ्रीका के देशों की ही हैं।
इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है कि ये सब लोक कथाएँ हर वह आदमी पढ़ सके जो थोड़ी सी भी हिन्दी पढ़ना जानता हो और उसे समझता हो। ये कथाएँ यहाँ तो सरल भाषा में लिखी गयीं है पर इनको हिन्दी में लिखने में कई समस्याएँ आयी है जिनमें से दो समस्याएँ मुख्य हैं।
एक तो यह कि करीब करीब 95 प्रतिशत विदेशी नामों को हिन्दी में लिखना बहुत मुश्किल ह़ै चाहे वे आदमियों के हों या फिर जगहों के। दूसरे उनका उच्चारण भी बहुत ही अलग तरीके का होता है। कोई कुछ बोलता है तो कोई कुछ। इसको साफ करने के लिये इस सीरीज़ की सब किताबों में फुटनोट्स में उनको अंग्रेजी में लिख दिया गया हैं ताकि कोई भी उनको अंग्रेजी के शब्दों की सहायता से कहीं भी खोज सके। इसके अलावा और भी बहुत सारे शब्द जो हमारे भारत के लोगों के लिये नये हैं उनको भी फुटनोट्स और चित्रों द्वारा समझाया गया है।
ये सब कथाएँ "देश विदेश की लोक कथाएँ" नाम की सीरीज के अन्तर्गत छापी जा रही हैं। ये लोक कथाएँ आप सबका मनोरंजन तो करेंगी ही साथ में दूसरे देशों की संस्कृति के बारे में भी जानकारी देंगी। आशा है कि हिन्दी साहित्य जगत में इनका भव्य स्वागत होगा।
सुषमा गुप्ता
मई 2016
विंडसर, कैनेडा
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रैवन की लोक कथाएँ2
रैवन काले रंग का कौए की तरह का एक पक्षी होता है जो दुनियाँ में बहुत जगह पाया जाता है पर यह अमेरिका और कैनेडा के उत्तर पश्चिमी हिस्से में रहने वाले मूल निवासियों की लोक कथाओं का हीरो है। अमेरिका और कैनेडा की खोज से पहले अमेरिका और कैनेडा दो देश नहीं थे इसलिये रैवन की कथाओं को अमेरिका के मूल निवासियों की लोक कथा कहना ही ज़्यादा उचित होगा।
अमेरिका के मूल निवासियों मे बहुत सारी जनजातियाँ थीं और इन सबमें अलग अलग लोक कथाएँ थीं। रैवन की लोक कथाएँ कई जनजातियों में अपने अपने तरीके से कही सुनी जाती थीं और लोकप्रिय थीं।
आजकल रैवन कैनेडा देश के यूकोन प्रान्त और भूटान देश का राष्ट्रीय पक्षी है और भूटान देश की तो यह शाही टोपी में भी लगा हुआ है।
यह अपने काले रंग, सड़े हुए माँस खाने की आदत और कठोर आवाज की वजह से बहुत अपशकुनी माना जाता है पर फिर भी लोग इसको मारते नहीं है। अमेरिका के मूल निवासी इन्डियन्स के कायोटी की तरह से यह भी उनकी लोक कथाओं का एक मुख्य हीरो है। इसकी दुनियाँ बनाने वाली कहानियाँ बहुत मशहूर हैं।
इसको लोग जन्म और मौत के बीच का बिचौलिया भी मानते हैं क्योंकि यह सड़ा हुआ माँस खाता है इसलिये इसका रिश्ता मरे हुए लोगों और भूतों से है और क्योंकि इसने दुनियाँ बनाने में बहुत मदद की है इसलिये इसका रिश्ता ज़िन्दगी से भी है।
रैवन का जिक्र केवल अमेरिका और कैनेडा की लोक कथाओं में ही नहीं है बल्कि ग्रीस और रोम की दंत कथाओं में भी है। रोम की दंत कथाओं में अपोलो जो भविष्यवाणी करता है यह उनसे जुड़ा हुआ है। स्वीडन में इसको कत्ल हुए लोगों का भूत मानते हैं। इंगलैंड में कुछ ऐसा विश्वास है कि यदि रैवन "टावर औफ लंदन" से हटा दिये जायें तो इंगलैंड का राज्य ही खत्म हो जायेगा।
बाइबिल में भी इसका जिक्र कई जगहों पर आया है। टालमुड मे रैवन नोआ की नाव के उन तीन जानवरों में से एक है जिन्होंने बाढ़ के समय में लैंगिक सम्बन्ध स्थापित किये थे और इसी लिये नोआ ने उसको सजा दी थी। कुरान में रैवन ने ऐडम के दो बेटे केन और एबिल में से केन को उसके कत्ल किये हुए भाई को दफनाना सिखाया। हिन्दुओं की तुलसीदास जी की लिखी हुई "रामचरित मानस" में यह कागभुशुण्डि जी के रूप में आता है और 27 प्रलय देख चुका है। उसमें यह गरुड़ जी को राम कथा सुनाता है।
प्रशान्त महासागर के उत्तर पूर्व के लोगों में रैवन की जो लोक कथाएँ कही सुनी जाती हैं उनसे पता चलता है कि वे लोग अपने वातावरण के कितने आधीन थे और उसकी कितनी इज़्ज़त करते थे। रैवन मिंक और कायोटी की तरह से कोई भी रूप ले सकता है - जानवर का या आदमी का। वह कहीं भी आ जा सकता है और उसके बारे में यह पहले से कोई भी नहीं बता सकता कि वह क्या करने वाला है। वैसे तो वह बहुत ही चालाक है लेकिन एक बार उसने एक बड़ी सीप में बन्द नंगे लोगों के ऊपर दया दिखायी थी। फिर वह अपनी चालबाजी से उनके लिये शिकार, मछली, आग, कपड़े और ऐसी ऐसी रस्में लेकर आया जो उनको भूतों और आत्माओं के असर से बचा सकती थीं। उसने प्रकृति से लड़ कर उन लोगों को काम के लायक बनाया।
रैवन की भूख बहुत ज़्यादा है और वह अपनी भूख कोई भी चाल खेल कर ही मिटाया करता है पर अक्सर वह चाल उसी पर उलटी पड़ जाती है।
रैवन की बहुत सारी लोक कथाएँ हैं। "रैवन की लोक कथाएँ1" में हमने रैवन के जन्म की, उसकी शक्ल की और उसके पहली पहली चीजें लाने की 20 लोक कथाओं का संकलन किया है। इन 20 लोक कथाओं में पहली कुछ कथाएँ उसके जन्म और शक्ल की हैं। फिर दिन, सूरज और आग लाने की हैं और फिर पानी लाने की हैं। इनमें कुछ कथाएँ एक सी लगती हैं पर सब अलग अलग हैं। रैवन की ये लोक कथाएँ रैवन के चरित्र के बारे कुछ जानकारी तो देंगी ही साथ में बच्चों और बड़ों दोनों का मनोरंजन भी करेंगी।
उसके बाद अब प्रस्तुत है रैवन की लोक कथाओं का दूसरा संकलन "रैवन की लोक कथाएँ2"। इसमें उसका दूसरे जानवरों के साथ व्यवहार दिखाया गया है। कुछ उसकी शादी की कथाएँ हैं और अन्त में एक कथा उसके मरने की। यह कथा यह बताती है कि लोग रैवन को क्यों नहीं मारते।
रैवन की ये लोक कथाएँ रैवन के चरित्र के बारे कुछ जानकारी तो देंगी ही साथ में बच्चों और बड़ों दोनों का मनोरंजन भी करेंगी।
1 रैवन ने व्हेल कैसे मारी
हर बार की तरह एक बार रैवन बहुत भूखा था। उसने सुन रखा था कि पास वाले टापू के पास एक व्हेल था सो वह उसको देखने के लिये खुद ही वहाँ चला गया।
जो लोग वहाँ के पास के गाँव में रहते थे वे उस व्हेल से बहुत डरते थे इसलिये वे वहाँ मछली पकड़ने भी नहीं जाते थे।
रैवन वहाँ गया और उस व्हेल को तीन दिन तक देखता रहा और सोचता रहा कि उस व्हेल को वह कैसे धोखा दे सकता था।
उसको मालूम था कि एक बार व्हेल अगर मर गया तो उसको कितना सारा माँस खाने को मिलेगा और वह माँस उसके लिये तो बहुत दिन तक चलेगा।
सोचते सोचते उसके दिमाग में एक विचार आया और वह समुद्र के किनारे आराम करती हुई व्हेल के पास पहुँचा और उससे बोला - "ओ व्हेल, थोड़ा मेरे और पास आओ न मैं तुमसे बात करना चाहता हूँ।"
व्हेल ने धीरे से अपनी आँखें खोली और किनारे की तरफ बढ़ा। वह उस काली चिड़िया के पास आ कर बोला तुम मुझसे क्या कहना चाहते हो।
उस चालाक रैवन ने कहा - "मैं तुमसे यह कहना चाहता हूँ कि हम दोनों कज़िन हैं।"
व्हेल यह सुन कर आश्चर्य में पड़ गया और बोला - "यह तो मेरे लिये एक खबर है। यह तो हो ही नहीं सकता कि तुम मेरे कज़िन हो। तुम चिड़िया हो और मैं पानी में रहने वाली मछली व्हेल हूँ। हम लोग एक दूसरे के कज़िन कैसे हो सकते है?"
रैवन बोला - "यह सच है व्हेल और मैं इसे साबित कर सकता हूँ।"
यह सुन कर तो व्हेल यह जानने के लिये बहुत ही उत्सुक हो गया कि वे दोनों कज़िन कैसे हैं सो उसने कहा "तो बताओ न कि हम लोग कज़िन कैसे हैं।"
रैवन बोला - "अगर तुम अपना मुँह खोलो तो मैं तुमको बता सकता हूँ कि हमारे और तुम्हारे गलों की शक्ल एक सी है इसलिये हम कज़िन हैं।"
हालाँकि वह इतना बड़ा व्हेल रैवन की इस बात से कोई बहुत ज़्यादा सन्तुष्ट तो नहीं था फिर भी उसने अपना मुँह खोल दिया। जब व्हेल का मुँह काफी बड़ा खुल गया तो रैवन उड़ कर उसके गले के अन्दर चला गया और वह उसमें बहुत नीचे तक चला गया।
रैवन की कमर पर एक थैला लटका हुआ था। उस थैले में एक चाकू था और कुछ लकड़ियाँ थीं। जैसे ही वह व्हेल के अन्दर पहुँचा उसने अपने चाकू से व्हेल का थोड़ा सा माँस काटा और उन लकड़ियों से आग जला कर उसने उसे उस आग पर भूनना शुरू कर दिया।
जब व्हेल को पता चला कि रैवन ने उसके साथ चालाकी खेली है तो उसने रैवन से प्रार्थना की कि वह वहाँ कुछ भी करे पर उसका दिल न खाये। रैवन उस समय उसकी बात मान गया और उसके पेट में बहुत दिनों तक रहा।
अब जब भी उसको भूख लगती तभी वह व्हेल का थोड़ा सा माँस काट लेता और खा लेता। और क्योंकि वह तो हर समय ही भूखा रहता था सो वह हर समय ही उसका माँस काटता रहता और खाता रहता था।
जब व्हेल का काफी सारा माँस कट गया और खा लिया गया तो रैवन ने उसके शरीर के दूसरे हिस्से काटने शुरू कर दिये, जैसे जिगर आदि पर उसने उसका दिल अभी छोड़ दिया।
एक दिन व्हेल ने रैवन को बताया कि समुद्र का पानी और उथला होता जा रहा था और वह खुद किनारे के पास आता जा रहा था। बस रैवन ने अपना चाकू निकाला, व्हेल का दिल काटा और खा लिया। दिल के कटने से व्हेल तुरन्त ही मर गया।
व्हेल का मरा हुआ शरीर धीरे धीरे किनारे पर आ कर लग गया पर रैवन उसमें से बाहर नहीं निकल सका क्योंकि जैसे ही व्हेल मरा उसका मुँह बन्द हो गया। वह एक दो दिन और वहीं रहा और उसकी पसलियाँ खाता रहा।
तीसरे दिन उसको कुछ आदमियों की आवाजें सुनायी दीं। यह एक शिकारियों का समूह था जिसको व्हेल का ढाँचा समुद्र के किनारे पड़ा मिल गया था। उन्होंने उस व्हेल को काट लिया और रैवन वहाँ से उड़ कर भाग निकला।
इस तरह से रैवन ने व्हेल को भी मारा और वह व्हेल के पेट से भी बच कर बाहर निकल आया।
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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं की एक अन्य पुस्तक - रैवन की लोक कथाएँ में से एक लोक कथा यहाँ पढ़ सकते हैं. इथियोपिया की 45 लोककथाओं तथा रैवन की लोककथाएँ खंड 1 की लोककथाओं को आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.
(क्रमशः अगले अंकों में जारी...)
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