सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का विव...
सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं की एक अन्य पुस्तक - रैवन की लोक कथाएँ में से एक लोक कथा यहाँ पढ़ सकते हैं. इथियोपिया की 45 लोककथाओं को आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.
रैवन सीरीज की लोककथाएँ बेहद लोकप्रिय हैं. सुषमा जी ने इस सीरीज की तीन खंडों प्रकाशित तमाम लोककथाओं को रचनाकार.ऑर्ग के माध्यम से इंटरनेट पर प्रकाशित करने हेतु सहर्ष अनुमति दी है व डिजिटल फ़ॉर्मेट में पाठ उपलब्ध करवाया है. वैश्विक हिंदी जगत उनका आभारी रहेगा.
रैवन की लोक कथाएँ 1
संकलनकर्ता
सुषमा गुप्ताCover Page picture: Raven Bird
E-Mail: sushmajee@yahoo.com <mailto:sushmajee@yahoo.com>
Website: www.sushmajee.com/folktales/index-folktales.htm <http://www.sushmajee.com/folktales/index-folktales.htm>
To read many such stories : https://www.scribd.com/sushma_gupta_1 <http://www.scribd.com/sushma_gupta_1>
Copyrighted by Sushma Gupta 2014
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विंडसर, कैनेडा
मार्च 2015
Contents
सीरीज़ की भूमिका 4
रैवन की लोक कथाएँ1 5
1 रैवन का जन्म 7
2 रैवन की नाक 12
3 रैवन का साहस 15
4 रैवन दिन ले कर आया 20
5 रैवन उत्तर में दिन ले कर आया 26
6 कौआ दिन ले कर आया 32
7 रैवन रोशनी ले कर आया 39
8 सरदार का बक्सा 42
9 रैवन इन्डियन्स के लिये रोशनी लाया 44
10 रैवन आग कैसे ले कर आया? 60
11 इन्द्रधनुषी कौआ 66
12 रैवन का रंग काला क्यों है? 73
13 रैवन पानी ले कर आया 78
14 शुरू शुरू में 82
15 रैवन की पहले आदमी से मुलाकात 88
16 रैवन ने आदमियों को मारा 95
17 रैवन और एक आदमी जो ज्वार भाटा पर बैठता था 98
18 रैवन ने धरती बनायी 108
19 रैवन ने दुनिया बनायी 112
20 रैवन और कौए को नोआ का शाप 116
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सीरीज़ की भूमिका
लोक कथाएँ किसी भी समाज की संस्कृति का एक अटूट हिस्सा होती हैं। ये संसार को उस समाज के बारे में बताती हैं जिस की वे लोक कथाएँ हैं। आज से बहुत साल पहले, करीब 100 साल पहले, ये केवल ज़बानी ही कही जातीं थीं और कह सुन कर ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को दी जाती थीं इसलिये किसी भी लोक कथा का मूल रूप क्या रहा होगा यह कहना मुश्किल है।
आज हम ऐसी ही कुछ अंग्रेजी और कुछ दूसरी भाषा बोलने वाले देशों की लोक कथाएँ अपने हिन्दी भाषा बोलने वाले समाज तक पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं। इनमें से बहुत सारी लोक कथाएँ हमने अंग्रेजी की किताबों से, कुछ विश्वविद्यालयों में दी गयी थीसेज़ से, और कुछ पत्रिकाओं से ली हैं और कुछ लोगों से सुन कर लिखी हैं। अभी तक 1000 से अधिक लोक कथाएँ हिन्दी में लिखी जा चुकी हैं।
इस बात का खास ध्यान रखा गया है कि ये सब लोक कथाएँ हर वह आदमी पढ़ सके जो थोड़ी सी भी हिन्दी पढ़ना जानता हो और उसे समझता हो। ये कथाएँ यहाँ तो सरल भाषा में लिखी गयीं है पर इनको हिन्दी में लिखने में एक बहुत बड़ी समस्या आयी है। वह समस्या यह है कि करीब करीब 95 प्रतिशत विदेशी नामों को हिन्दी में लिखना बहुत मुश्किल है चाहे वे आदमियों के हों या फिर जगहों के। दूसरे उनका उच्चारण भी बहुत ही अलग तरीके का होता है। कोई कुछ बोलता है तो कोई कुछ। इसको साफ करने के लिये इस सीरीज़ की सब किताबों में फुटनोट्स में उनको अंग्रेजी में लिख दिया गया हैं ताकि कोई भी पढ़ने वाला उनको अंग्रेजी के शब्दों की सहायता से कहीं भी खोज सके। इसके अलावा और भी बहुत सारे शब्द जो हमारे भारत के लिये नये हैं उनको भी फुटनोट्स में और चित्रों की सहायता से समझाया गया है।
ये सब कथाएँ "देश विदेश की लोक कथाएँ" नाम की सीरीज में छापी जा रही हैं। ये लोक कथाएँ आपका मनोरंजन तो करेंगी ही साथ में दूसरे देशों की संस्कृति के बारे में भी जानकारी देंगी।
हिन्दी साहित्य जगत में इनके भव्य स्वागत की आशा के साथ,
सुषमा गुप्ता
मई 2016
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रैवन की लोक कथाएँ1
रैवन काले रंग का कौए की तरह का एक पक्षी होता है जो दुनिया में बहुत जगह पाया जाता है पर यह अमेरिका और कैनेडा के उत्तर पश्चिमी हिस्से में रहने वाले मूल निवासियों की लोक कथाओं का हीरो है। अमेरिका और कैनेडा की खोज से पहले अमेरिका और कैनेडा दो देश नहीं थे इसलिये रैवन की कथाओं को अमेरिका के मूल निवासियों की लोक कथा कहना ही ज़्यादा उचित होगा।
अमेरिका के मूल निवासियों में बहुत सारी जनजातियाँ थीं और इन सब में अलग अलग लोक कथाएँ थीं। रैवन की लोक कथाएँ कई जनजातियों में अपने अपने तरीके से कही सुनी जाती थीं और लोकप्रिय थीं।
आजकल रैवन कैनेडा देश के यूकोन प्रान्त और भूटान देश का राष्ट्रीय पक्षी है और भूटान देश की तो यह शाही टोपी में भी लगा हुआ है।
यह अपने काले रंग, सड़े हुए माँस खाने की आदत और कठोर आवाज की वजह से बहुत अपशकुनी माना जाता है पर फिर भी लोग इसको मारते नहीं है। अमेरिका के मूल निवासी इन्डियन्स के कायोटी की तरह से यह भी उनकी लोक कथाओं का एक मुख्य हीरो है। इसकी दुनिया बनाने वाली कहानियाँ बहुत मशहूर हैं।
इसको लोग जन्म और मौत के बीच का बिचौलिया मानते हैं क्योंकि यह सड़ा हुआ माँस खाता है इसलिये इस का रिश्ता मरे हुए लोगों और भूतों से है और क्योंकि इसने दुनिया बनाने में बहुत मदद की है इसलिये इसका रिश्ता ज़िन्दगी से भी है।
रैवन का जिक्र केवल अमेरिका और कैनेडा की लोक कथाओं में ही नहीं है बल्कि ग्रीस और रोम की दंत कथाओं में भी है। रोम की दंत कथाओं में अपोलो जो भविष्यवाणी करता है यह उनसे जुड़ा हुआ है। स्वीडन में इसको कत्ल हुए लोगों का भूत मानते हैं। इंगलैंड में कुछ ऐसा विश्वास है कि यदि रैवन "टावर औफ लंदन" से हटा दिये जायें तो इंगलैंड का राज्य ही खत्म हो जायेगा।
बाइबिल में भी इसका जिक्र कई जगहों पर आया है। टालमुड में रैवन नोआ की नाव के उन तीन जानवरों में से एक है जिन्होंने बाढ़ के समय में लैंगिक सम्बन्ध स्थापित किये थे और इसी लिये नोआ ने उसको सजा दी थी। कुरान में रैवन ने ऐडम के दो बेटे केन और एबिल में से केन को उसके कत्ल किये हुए भाई को दफनाना सिखाया। हिन्दुओं की तुलसीदास जी की लिखी हुई "रामचरित मानस" में यह कागभुशुण्डि जी के रूप में आता है और 27 प्रलय देख चुका है। उसमें यह गरुड़ जी को राम कथा सुनाता है।
प्रशान्त महासागर के उत्तर पूर्व के लोगों में रैवन की जो लोक कथाएँ कही सुनी जाती हैं उनसे पता चलता है कि वे लोग अपने वातावरण के कितने आधीन थे और उसकी कितनी इज़्ज़त करते थे। रैवन मिंक और कायोटी की तरह से कोई भी रूप ले सकता है, जानवर का या आदमी का। वह कहीं भी आ जा सकता है और उसके बारे में यह पहले से कोई भी नहीं बता सकता कि वह क्या करने वाला है। वैसे तो वह बहुत ही चालाक है लेकिन एक बार उसने एक बड़ी सीप में बन्द नंगे लोगों के ऊपर दया दिखायी थी। फिर वह अपनी चालबाजी से उनके लिये शिकार, मछली, आग, कपड़े और ऐसी ऐसी रस्में लेकर आया जो उनको भूतों और आत्माओं के असर से बचा सकती थीं। उसने प्रकृति से लड़ कर उन लोगों को काम के लायक बनाया।
रैवन की भूख बहुत ज़्यादा है और वह अपनी भूख कोई भी चाल खेल कर ही मिटाया करता है पर अक्सर वह चाल उसी पर उलटी पड़ जाती है।
रैवन की बहुत सारी लोक कथाएँ हैं। "रैवन की लोक कथाएँ1" में हमने रैवन के जन्म की, उसकी शक्ल की और उसके पहली पहली चीज़ें लाने की 20 लोक कथाओं का संकलन किया है। इन 20 लोक कथाओं में पहली कुछ कथाएँ उसके जन्म और शक्ल की हैं। फिर दिन, सूरज और आग लाने की हैं और फिर पानी लाने की हैं। इनमें कुछ कथाएँ एक सी लगती हैं पर सब अलग अलग हैं। रैवन की ये लोक कथाएँ रैवन के चरित्र के बारे कुछ जानकारी तो देंगी ही साथ में बच्चों और बड़ों दोनों का मनोरंजन भी करेंगी।
हिन्दी साहित्य जगत में इनके भव्य स्वागत की आशा के साथ,
सुषमा गुप्ता
अक्टूबर 2015
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1 रैवन का जन्म
उत्तरी अमेरिका के मूल निवासी इन्डियन्स में रैवन पक्षी की कहानियाँ बहुत कही सुनी जाती हैं। इनमें से इसकी रोशनी की चोरी और आग लाने वाली कहानियाँ बहुत ज़्यादा लोकप्रिय हैं। लेकिन रैवन का जन्म ही कैसे हुआ इसके बारे में यह कहानी कही जाती है।
एक बार जब समुद्र के किनारे बहुत सारे लोग रहते थे तो उनमें से एक आदमी ऐसा भी था जिसके पास जादुई ताकत थी। वह अपनी पत्नी से अलग रहता था और किसी को भी उसके पास नहीं जाने देता था। वह उस पर कड़ा पहरा भी रखता था।
उसके पास उसकी एक बहिन रहती थी जिसकी शादी हो चुकी थी। कुछ दिन बाद उसकी बहिन ने एक बेटे को जन्म दिया। धीरे धीरे उसका वह बेटा बड़ा हो गया।
एक दिन वह आदमी अपने उस भान्जे को अपने साथ शिकार पर ले गया। वहाँ से वह उसको नाव में बिठा कर समुद्र में ले गया।
समुद्र में कुछ दूर जाने पर उस आदमी ने उस लड़के को नाव के एक किनारे पर बैठ जाने के लिये कहा। जब वह लड़का नाव के किनारे पर बैठ गया तो उस आदमी ने वह नाव बहुत ज़ोर से हिला दी। नाव के हिलते ही वह लड़का समुद्र में गिर गया और डूब कर मर गया।
घर आ कर उसने अपनी बहिन से बहाना बना दिया कि उसका लड़का नाव के ऊपर चढ़ गया था और वहाँ से समुद्र में गिर कर मर गया।
कुछ समय बाद उस आदमी की बहिन ने फिर एक बेटे को जन्म दिया। कुछ समय बाद जब वह लड़का बड़ा हो गया तो उस आदमी ने उस लड़के के साथ भी यही हाल किया और उसे भी मार दिया। इस तरह उसने अपनी बहिन के कई बेटे मार दिये।
उस आदमी की बहिन ने फिर एक बेटे को जन्म दिया। इस बार का उसका यह बेटा उसके पहले बेटों से कुछ अलग था। इस लड़के को लकड़ी के खिलौने बनाने का बहुत शौक था। इस लड़के का नाम उसकी बहिन ने रैवन रखा।
जब यह लड़का छोटा ही था तभी उस आदमी ने इस लड़के को भी शिकार पर ले जाने की इच्छा प्रगट की परन्तु उसकी बहिन ने उसको यह कह कर मना कर दिया कि यह मेरा आखिरी बेटा है और मैं इसको मरने नहीं देना चाहती।
पर जब उस आदमी ने कई बार अपनी बहिन से उसे भेजने की जिद की तो लड़के ने अपनी माँ से कहा - "माँ, मुझे इनके साथ जाने दो न। मुझे इनके साथ कोई नुकसान नहीं पहुँचने वाला।"
माँ न चाहते हुए भी राजी हो गयी और रैवन अपने मामा के साथ शिकार पर चला गया। जाते समय वह अपने कम्बल में अपनी बनायी हुई लकड़ी की नाव छिपा कर लेता गया।
उस आदमी ने रैवन के साथ भी वही किया जो उसने अपनी बहिन के दूसरे बच्चों के साथ किया था। उसने रैवन को नाव के एक किनारे पर बैठ जाने को कहा और जब रैवन नाव के एक किनारे पर बैठ गया तो उसने नाव ज़ोर से हिला दी। रैवन पानी में गिर पड़ा।
रैवन कुछ देर तक पानी में नीचे ही रहा जिससे उसके मामा को यह लगे कि वह पानी में डूब गया है।
मामा भी यह समझ कर कि रैवन पानी में डूब गया है और मर गया है घर वापस आ गया और अपनी बहिन से बोला कि रैवन भी अपने दूसरे भाइयों की तरह बेवकूफ था इसलिये वह भी पानी में डूब कर मर गया। उसकी बहिन यह सुन कर बहुत दुखी हुई।
उधर रैवन थोड़ी देर पानी के अन्दर रह कर फिर बाहर आ गया और उसने अपनी खिलौने वाली नाव को समुद्र में पानी की सतह पर रखा तो वह एक बड़ी नाव बन गयी। वह उस नाव में बैठ कर घर आ गया। रैवन की माँ उसको देख कर बहुत खुश हुई।
घर आ कर उसने अपनी माँ को बताया कि उसके साथ क्या हुआ था। उसने अपनी माँ से यह भी कहा कि उसके बड़े भाइयों के साथ भी शायद कुछ ऐसा ही हुआ होगा जैसा मामा ने मेरे साथ किया। उन्होंने उनको भी ऐसे ही मारा होगा जैसे उन्होंने मुझे मारने की कोशिश की थी।
रैवन की माँ रैवन को देख कर इतनी खुश थी कि उसने रैवन की बातों पर कुछ ध्यान ही नहीं दिया।
कुछ दिनों बाद वह आदमी रैवन को फिर से शिकार पर ले गया और उसने उसके साथ फिर वही हरकत की पर रैवन फिर उसी तरह बच कर घर वापस आ गया।
उस आदमी ने तीसरी बार भी रैवन को ले जाने की कोशिश की पर इस बार रैवन ने यह कह कर उसको मना कर दिया कि आप मुझे हमेशा ही इस तरह बाहर ले जा कर मारने की कोशिश करते हैं मैं अब आपके साथ नहीं जाऊँगा।
यह सुन कर वह आदमी अकेला ही बाहर चला गया। उसके जाने के थोड़ी ही देर बाद रैवन अपनी मामी के घर गया और उसके साथ खेलने लगा। खेलते खेलते रैवन ने अपनी मामी का पेट पकड़ लिया।
मामी को गुदगुदी हुई तो उसने अपने दोनों हाथ ऊपर उठा दिये। उसके हाथ उठाते ही उसकी दोनों बगलों में से दो पक्षी निकल कर उड़ गये। पक्षियों के बाहर निकलते ही उसकी मामी मर गयी।
मामा को भी अपनी पत्नी के मरने का तुरन्त ही पता चल गया तो वह दौड़ा दौड़ा घर आया। घर आ कर उसने देखा कि उसकी पत्नी तो मर चुकी है और दोनों चिड़ियाँ उड़ चुकी हैं।
उसको बहुत गुस्सा आया और गुस्से में आ कर उसने रैवन का पीछा किया ताकि वह उसे मार सके पर रैवन भी होशियार था।
उसने अपनी लकड़ी की नाव को पानी पर रखा और पानी पर रखते ही वह खिलौने वाली नाव एक बड़ी नाव बन गयी और रैवन उसमें बैठ कर बच कर निकल गया।
इस घटना के बाद वह रैवन पक्षी बन गया। उसने सारा संसार घूमा और फिर वह अपनी जन्म भूमि कभी वापस नहीं लौटा।
(क्रमशः अगले अंकों में जारी...)
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सुषमा गुप्ता का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर में सन् 1943 में हुआ था। इन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से समाज शास्त्र और अर्थ शास्त्र में ऐम ए किया और फिर मेरठ विश्वविद्यालय से बी ऐड किया। 1976 में ये नाइजीरिया चली गयीं। वहां इन्होंने यूनिवर्सिटी औफ़ इबादान से लाइब्रेरी साइन्स में ऐम ऐल ऐस किया और एक थियोलोजीकल कौलिज में 10 वर्षों तक लाइब्रेरियन का कार्य किया।
वहां से फिर ये इथियोपिया चली गयीं और वहां एडिस अबाबा यूनिवर्सिटी के इन्स्टीट्यूट औफ़ इथियोपियन स्टडीज़ की लाइब्रेरी में 3 साल कार्य किया। तत्पश्चात इनको दक्षिणी अफ्रीका के एक देश़ लिसोठो के विश्वविद्यालय में इन्स्टीट्यूट औफ़ सदर्न अफ्रीकन स्टडीज़ में 1 साल कार्य करने का अवसर मिला। वहॉ से 1993 में ये यू ऐस ए आगयीं जहां इन्होंने फिर से मास्टर औफ़ लाइब्रेरी ऐंड इनफौर्मेशन साइन्स किया। फिर 4 साल ओटोमोटिव इन्डस्ट्री एक्शन ग्रुप के पुस्तकालय में कार्य किया।
1998 में इन्होंने सेवा निवृत्ति ले ली और अपनी एक वेब साइट बनायी- www.sushmajee.com <http://www.sushmajee.com>। तब से ये उसी वेब साइट पर काम कर रहीं हैं। उस वेब साइट में हिन्दू धर्म के साथ साथ बच्चों के लिये भी काफी सामग्री है।
भिन्न भिन्न देशों में रहने से इनको अपने कार्यकाल में वहॉ की बहुत सारी लोक कथाओं को जानने का अवसर मिला- कुछ पढ़ने से, कुछ लोगों से सुनने से और कुछ ऐसे साधनों से जो केवल इन्हीं को उपलब्ध थे। उन सबको देखकर इनको ऐसा लगा कि ये लोक कथाएँ हिन्दी जानने वाले बच्चों और हिन्दी में रिसर्च करने वालों को तो कभी उपलब्ध ही नहीं हो पायेंगी- हिन्दी की तो बात ही अलग है अंग्रेजी में भी नहीं मिल पायेंगीं.
इसलिये इन्होंने न्यूनतम हिन्दी पढ़ने वालों को ध्यान में रखते हुए उन लोक कथाओं को हिन्दी में लिखना पा्ररम्भ किया। इन लोक कथाओं में अफ्रीका, एशिया और दक्षिणी अमेरिका के देशों की लोक कथाओं पर अधिक ध्यान दिया गया है पर उत्तरी अमेरिका और यूरोप के देशों की भी कुछ लोक कथाएँ सम्मिलित कर ली गयी हैं।
अभी तक 1200 से अधिक लोक कथाएँ हिन्दी में लिखी जा चुकी है। इनको "देश विदेश की लोक कथाएँ" क्रम में प्रकाशित करने का प्रयास किया जा रहा है। आशा है कि इस प्रकाशन के माध्यम से हम इन लोक कथाओं को जन जन तक पहुंचा सकेंगे.
मुज्हे यह देख कर बहुत अच्छा लगा कि इस तरह का साहित्य भी उपलब्ध है| मैने यह पुस्तक अपने बच्चो के लिये ली | भाषा बहुत सरल है और उन्हे हिन्दी सीखने मे मदद मिल रही है|
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