व्यंग्य आलेख // चोटी की दहशत // डॉ. सुरेन्द्र वर्मा

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बड़ा आश्चर्य है। राजस्थान से जो चोटियाँ कटने का सिलसिला शुरू हुआ, थम ही नहीं रहा है। दिल्ली होता हुआ उत्तरप्रदेश में और फिर गुजरात तक में इसन...

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बड़ा आश्चर्य है। राजस्थान से जो चोटियाँ कटने का सिलसिला शुरू हुआ, थम ही नहीं रहा है। दिल्ली होता हुआ उत्तरप्रदेश में और फिर गुजरात तक में इसने अपनी पहुँच बना ली। आज तक व्याख्या नहीं हो पाई कि आखिर कौन काट रहा है, ये चोटियाँ। दहशत फ़ैल गई है। समाधान के अबतक कई विकल्प आ चुके हैं। शायद कोई चुड़ैल है, या कुछ चुड़ैलें हों जो इसे अंजाम दे रहीं हैं। एक महिला को तो चुड़ैल मानकर पीट पीट कर मार ही डाला गया। कुछ लोगों का कहना है चोटियाँ कटने की बात केवल एक अफवाह है। वास्तव में तो चोटियाँ कटी ही नहीं हैं। कुछ उदाहरण ऐसे मिले भी। लेकिन कुछ की चोटियाँ यतार्थत: कटी देखी भी गईं हैं। कोई न कोई तो चोटी-कटवा है- इससे इनकार नहीं किया जा सकता। वो कौन है, पकडाई में नहीं आता। पुलिस ने एक को पकड़ा भी था – लेकिन एक ही आदमी इतनी सारी और इतनी जगहों पर एक साथ यह काम नहीं कर सकता। क्या कोई गैंग है ? एक व्याख्या यह भी है कि दरअसल एक बरसाती कीड़ा है जो बालों में घुस जाता है और पूरी की पूरी चोटी साफ़ हो जाती है।

बहरहाल चोटी की दहशत फैली हुई है। और सच मानिए यह कोई ऐसी-वैसी दहशत नहीं है, ‘चोटी’ की दहशत है। इसे नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता। कितने ही लोग ऐसे हैं जो चोटियाँ रखते हैं। स्त्रियों की तो आमतौर पर चोटियाँ होती ही हैं, तमाम पुरुष भी ऐसे हैं की जिनके चोटियाँ हैं। भले ही वे स्त्रियो की तरह उनकी पीठ पर न लहराएं, पर अनेक हिन्दू लोगों के सर पर बीचों-बीच बालों का एक गुच्छा जो हजामत बनाते वक्त छोड़ दिया जाता है, वह उनकी चोटी, जिसे शिखा भी कहा जाता है, ही तो है। वाराणसी में आपको न जाने कितने ऐसे ‘चोटी के विद्वान’ मिल जाएंगे। उनकी चोटी तो किसी चोटी कटवा ने नहीं काटी ! सिर्फ स्त्रियों की चोटियाँ ही काटी जा रहीं हैं। चोटी कटने में भी ‘लिंग-भेद’ ! पुरुष प्रधान समाज की मानसिकता यहाँ भी कायम है। वाह !

एक और अंतर देखिए। पुरुष की चोटी ‘शिखा’ है। वह उसके सर के बीचों-बीच उसके व्यक्तित्व का शिखर है। झंडे की तरह वहां स्थित है। और स्त्रियों की चोटियाँ ? झुक कर, गुंथी हुईं, स्त्रियों के कन्धों पर पडी हैं। वहीं लहराती हैं, खुश हैं। लेकिन आज के ज़माने में न तो पुरुष अपने सर पर कोई शिखर चाहता है और न हीं स्त्रियाँ लम्बे बालों की शौकीन हैं। अधिकतर पुरुषों ने अपनी चोटियाँ कटवा दी है। खुद ही कटवा दी हैं। कोई चोटी-कटवा उनके पास नहीं आया।

मेरी एक महिला मित्र हैं। उनके बड़े लम्बे बालों की लम्बी सी एक चोटी है। अच्छी तो लगती है लेकिन वे उसके रख-रखाव से दुखी हैं। कटवाना चाहती हैं। लेकिन घरवाले नहीं चाहते की इतने सुन्दर बालों को काट दिया जाए ! पर वे सैलून पहुँच ही गईं। लेकिन वहां भी बाल काटने वाले ने उन्हें हिदायत दे डाली कि वे अपने लम्बे बालों पर गर्व करें और रहम करें। चोटी न कटाएँ। फिर क्या था ! रात में जब सब सो रहे थे उन्होंने अपनी लंबी चोटी खुद ही काट डाली और लगे हाथों यह अफवाह उड़ा दी की कोई चोटी-कटवा उनकी चोटी काट ले गया। ...और लगीं विलाप करने !

पर्वतारोहण की शौकीनों ने न जाने कितने पर्वतों की चोटियाँ फतह कर डाली हैं। शायद ही कोई ऐसी चोटी रह गई हो जो फतह न हुई हों। हिमालय की सर्वोच्च चोटी, एवरेस्ट, पर कई देशों का झंडा कई बार लहराया जा चुका है। कई भारतीयों ने भी यह करिश्मा कर दिखाया। लेकिन आज तक किसी ने यह नहीं सोचा कि हिमालय क्या किसी भी पर्वत की कोई भी चोटी क़तर दी जाए। भले ही यह संभव न हो, पर कोशिश तो की ही जा सकती थी।

चोटियाँ स्त्रियों की ही कट रही हैं। स्त्रियाँ “सॉफ्ट टारगेट” हैं। स्त्रियों को वश में करना, उन्हें अपने अधीन कर लेना आसान है। उनकी चोटी काटने, कतरने में, उन्हें अपने आधिपत्य में ले लेने में, पुरुष ने दक्षता प्राप्त कर ली है। क्या किया जाए ? इसका एकमात्र समाधान यही है कि स्त्रियाँ पुरुषों से स्वयं को किसी तरह हीन न माने। अपना आत्मविश्वास जगाएं। स्त्रियों में एक बार यदि यह आत्म-विश्वास पैदा हो गया तो नि:संदेह सारे चोटी-कटवाओं की चोटियाँ कट जाएंगीं।

डा. सुरेन्द्र वर्मा (मो. ९६२१२२२७७८)

१०, एच आई जी / १, सर्कुलर रोड

इलाहाबाद – २११००१

COMMENTS

BLOGGER: 4
  1. आप का लेख चोटी का है। ऐसा करने में ऐसा करनेवाला या करनेवाली, यदि एक से अधिक हों तो भी, न कोई फायदा है न तुक। खौफ फैलाने का मकसद हीन मानसिकता दर्शाता है। बहरहाल तेनालीराम की चोटी कुछ विशिष्ट है, पर उसे कोई खतरा नहीं है, समाज पुरुष प्रधान जो है!

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  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’वीर सपूतों का देश और ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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  3. चोटी काटना महज अफवाह है जो समाज विशेषकर औरतों के मन में खौफ पैदा करने के उद्देश्य से फैलाई जा रही थी | इसका भी हश्र वही होगा जो काला बन्दर का हुआ | आपने व्यंग लेख के माध्यम से समसामयिक मुद्दा उठाया है | धारदार व्यंग

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  4. आपकी टिप्पणी चोटीकटवा पर बहुत ही सराहनीय है ।

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रचनाकार: व्यंग्य आलेख // चोटी की दहशत // डॉ. सुरेन्द्र वर्मा
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