इथियोपिया की लोक कथाएँ-2 संसार में सात महाद्वीप हैं - एशिया, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, अन्टार्कटिका, यूरोप और आस्ट्रेलिया - ...
इथियोपिया की लोक कथाएँ-2
संसार में सात महाद्वीप हैं - एशिया, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, अन्टार्कटिका, यूरोप और आस्ट्रेलिया - सबसे बड़े से सबसे छोटा क्रम से।
इस प्रकार अफ्रीका इस संसार का साइज़ और जनस्ंख्या दोनों में दूसरे नम्बर का महाद्वीप है। इस महाद्वीप में 54 देश हैं। इस महाद्वीप का अपना लिखा हुआ और इसके बारे में लिखा हुआ साहित्य और दूसरे महाद्वीपों की तुलना में बहुत कम मिलता है इसी वजह से हमने इस महाद्वीप की लोक कथाएँ हिन्दी भाषा में प्रस्तुत करने का विचार किया है। इस महाद्वीप से लगभग 400 से अधिक लोक कथाएँ इकठ्ठी की गयी हैं।
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अफ्रीका के 54 देशों में से इथियोपिया, नाइजीरिया, घाना, तन्ज़ानिया और दक्षिण अफ्रीका देशों की लोक कथाएँ काफी संख्या में मिल जाती है इसलिए उन देशों की लोक कथाएँ उन देशों के नाम से ही दी गयी हैं। अफ्रीका की लोक कथाएँ तीन भागों में बाँटी गयी हैं - अफ्रीका की लोक कथाएँ, दक्षिणी अफ्रीका की लोक कथाएँ और पश्चिमी अफ्रीका की लोक कथाएँ। शेष देशों की लोक कथाएँ या तो अफ्रीका की लोक कथाओं में शामिल कर दी गयी हैं या फिर उन देशों के नाम से ही दी गयी हैं, जैसे नाइजीरिया की लोक कथाएँ, घाना की लोक कथाएँ, इथियोपिया की लोक कथाएँ, दक्षिण अफ्रीका की लोक कथाएँ, ज़ंज़ीबार की लोक कथाएँ।
खरगोश, कछुए और अनन्सी मकड़े का अफ्रीका की लोक कथाओं में विशेष स्थान है सो उनकी लोक कथाएँ अलग से दी गयी हैं।
इस पुस्तक में अफ्रीका के इथियोपिया देश की लोक कथाएँ अपने हिन्दी भाषा जानने वालों के लिये हिन्दी में प्रस्तुत की जा रही हैं। इथियोपिया देश की दो खासियत हैं - एक तो यह कि इस देश पर किसी पश्चिमी सत्ता ने कभी राज नहीं किया सिवाय इटली देश के जिसने वहाँ केवल पाँच साल राज किया। दूसरे पूरे अफ्रीका में यही एक देश है जिसकी अपनी लिपि है। अफ्रीका के बाकी सारे देश अपनी भाषा लिखने के लिए रोमन लिपि का इस्तेमाल करते हैं। इस देश को "लैंड औफ थरटीन मन्थ्स औफ सनशाइन" भी कहते हैं क्योंकि यहाँ के साल में 13 महीने होते हैं, 12 नहीं - 30-30 दिन के 12 महीने और 5-6 दिन का 13वाँ महीना।
इथियोपिया की लोक कथाओं का पहला संकलन "इथियोपिया की लोक कथाएँ-1" हम पहले ही प्रकाशित कर चुके हैं। अब यह प्रस्तुत है इथियोपिया की लोक कथाओं का दूसरा संकलन - "इथियोपिया की लोक कथाएँ-2"।
आशा है कि ये लोक कथाएँ इथियोपिया के जीवन की एक झलक प्रस्तुत करने में सहायक होंगी।
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1 धन के बच्चे
एक बार एक आदमी ने दूसरे आदमी को कुछ पैसे छह महीने के लिये ब्याज पर उधार दिये। उधार लेने वाले ने उन पैसों को ऐसा का ऐसा ही उठा कर रख दिया।
जब छह महीने बीत गये तो उधार देने वाले ने खुशी से भर कर पूछा - "भाई, तुम मेरे पैसे कब वापस करोगे?"
यह सुन कर उधार लेने वाला अन्दर गया और पैसों की थैली खोल कर उसके सारे के सारे पैसे उसको गिन कर दे दिये।
उधार देने वाले ने पूछा - "भाई, जो इस धन से पैदा हुआ वह कहाँ है?" उसका मतलब था कि उस पैसे का ब्याज कहाँ है?
उधार लेने वाला डर गया। वह डरते डरते बोला - "खुदा गवाह है भाई, इससे तो कुछ भी पैदा नहीं हुआ।"
इस पर उधार देने वाले ने ज़ोर दे कर कहा - "मुझे इससे जो पैदा हुआ वह भी तो ला कर दो न, मुझे वह भी चाहिये।"
उधार लेने वाला हाथ जोड़ कर बोला - "तुमको मेरा विश्वास नहीं होता तो आओ मेरे साथ। मैं तुमको वह जगह दिखाता हूँ जहाँ मैंने ये पैसे रखे थे।"
ऐसा कह कर वह उस आदमी को वहाँ ले गया जहाँ उसने वह थैली रखी थी और उसको वह जगह दिखाते हुए बोला - "देखो यह रही वह जगह जहाँ मैंने तुम्हारी दी हुई पैसों की थैली रखी थी।
और वह थैली मैंने ऐसी की ऐसी ही तुमको तुम्हारे सामने वापस कर दी है। मैं कसम खा कर कहता हूँ कि तुम्हारे इन पैसों में से कुछ भी पैदा नहीं हुआ है।"
उधार देने वाला यह सुन कर अपना पैसा वापस ले कर अपना सिर पीटता हुआ अपने घर वापस चला गया।
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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं की एक अन्य पुस्तक - रैवन की लोक कथाएँ में से एक लोक कथा यहाँ पढ़ सकते हैं.
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सुषमा गुप्ता का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर में सन् 1943 में हुआ था। इन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से समाज शास्त्र और अर्थ शास्त्र में ऐम ए किया और फिर मेरठ विश्वविद्यालय से बी ऐड किया। 1976 में ये नाइजीरिया चली गयीं। वहां इन्होंने यूनिवर्सिटी औफ़ इबादान से लाइब्रेरी साइन्स में ऐम ऐल ऐस किया और एक थियोलोजीकल कौलिज में 10 वर्षों तक लाइब्रेरियन का कार्य किया।
वहां से फिर ये इथियोपिया चली गयीं और वहां एडिस अबाबा यूनिवर्सिटी के इन्स्टीट्यूट औफ़ इथियोपियन स्टडीज़ की लाइब्रेरी में 3 साल कार्य किया। तत्पश्चात इनको दक्षिणी अफ्रीका के एक देश़ लिसोठो के विश्वविद्यालय में इन्स्टीट्यूट औफ़ सदर्न अफ्रीकन स्टडीज़ में 1 साल कार्य करने का अवसर मिला। वहॉ से 1993 में ये यू ऐस ए आगयीं जहां इन्होंने फिर से मास्टर औफ़ लाइब्रेरी ऐंड इनफौर्मेशन साइन्स किया। फिर 4 साल ओटोमोटिव इन्डस्ट्री एक्शन ग्रुप के पुस्तकालय में कार्य किया।
1998 में इन्होंने सेवा निवृत्ति ले ली और अपनी एक वेब साइट बनायी- www.sushmajee.com <http://www.sushmajee.com>। तब से ये उसी वेब साइट पर काम कर रहीं हैं। उस वेब साइट में हिन्दू धर्म के साथ साथ बच्चों के लिये भी काफी सामग्री है।
भिन्न भिन्न देशों में रहने से इनको अपने कार्यकाल में वहॉ की बहुत सारी लोक कथाओं को जानने का अवसर मिला- कुछ पढ़ने से, कुछ लोगों से सुनने से और कुछ ऐसे साधनों से जो केवल इन्हीं को उपलब्ध थे। उन सबको देखकर इनको ऐसा लगा कि ये लोक कथाएँ हिन्दी जानने वाले बच्चों और हिन्दी में रिसर्च करने वालों को तो कभी उपलब्ध ही नहीं हो पायेंगी- हिन्दी की तो बात ही अलग है अंग्रेजी में भी नहीं मिल पायेंगीं.
इसलिये इन्होंने न्यूनतम हिन्दी पढ़ने वालों को ध्यान में रखते हुए उन लोक कथाओं को हिन्दी में लिखना पा्ररम्भ किया। इन लोक कथाओं में अफ्रीका, एशिया और दक्षिणी अमेरिका के देशों की लोक कथाओं पर अधिक ध्यान दिया गया है पर उत्तरी अमेरिका और यूरोप के देशों की भी कुछ लोक कथाएँ सम्मिलित कर ली गयी हैं।
अभी तक 1200 से अधिक लोक कथाएँ हिन्दी में लिखी जा चुकी है। इनको "देश विदेश की लोक कथाएँ" क्रम में प्रकाशित करने का प्रयास किया जा रहा है। आशा है कि इस प्रकाशन के माध्यम से हम इन लोक कथाओं को जन जन तक पहुंचा सकेंगे.
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