एक बार इथियोपिया में एक राजा था। उसने किसी दूसरे देश की लड़की के साथ शादी की थी। जब वह लड़की नयी रानी बन कर राजा के घर आयी तो वह वहाँ खुश नहीं...
एक बार इथियोपिया में एक राजा था। उसने किसी दूसरे देश की लड़की के साथ शादी की थी। जब वह लड़की नयी रानी बन कर राजा के घर आयी तो वह वहाँ खुश नहीं थी। वह हर उस मुर्गे, बकरे आदि की शिकायत करती थी जो राजा के लिये वत बनाने के लिये वहाँ से खरीदे जाते थे।
वह वहाँ के उस शहद की भी शिकायत करती जिससे वह राजा के लिये तज बनाती थी। वह कहती थी कि वहाँ का शहद असली नहीं था इसी लिये उसकी तज अच्छी नहीं बनती थी।
वह रोज राजा से झगड़ती कि यहाँ की तो हर चीज़ में मिलावट है। वह कहती कि "मैं अपने घर वापस जाऊंगी जहाँ की हर चीज़ असली है।"
राजा अपनी उस रानी को बहुत प्यार करता था इसलिए उसने उसको खुश रखने के लिए उसके मायके से बहुत सारे जानवर मंगवा लिये मगर रानी फिर भी नाराज ही रही।
फिर राजा ने बहुत सारा खर्चा करके उसके मायके से शहद भी मंगवाया। अब रानी खुश थी।
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रानी के मायके से शहद लाने का काम एक सौदागर को सौंपा गया। रानी के मायके से शहद लाना कोई आसान काम नहीं था क्योंकि रास्ते में नीली नील नदी की गहरी गहरी घाटियाँ पार करनी पड़तीं थीं।
और जब बारिश का मौसम आता तो सड़कों पर तो चलना ही मुश्किल हो जाता और खच्चरों की पीठ तक ऊंची कीचड़ हो जाती।
एक अंधेरी रात को जब वह सौदागर अपने नौकर के साथ अपने खच्चरों को ऐसी ही कीचड़ में से हो कर राजा के लिये शहद ले कर जा रहा था तो घनघोर घटाऐं छा गयीं और मूसलाधार बारिश होने लगी।
सौदागर और उसका नौकर रास्ता भूल गये और रास्ते में भटक कर खो गये। उनको बारिश से बचने के लिए कोई घर भी नहीं मिल रहा था। वे अपने खच्चर हाँकते हाँकते एक बड़े जंगल में पहुंच गये।
हालाँकि जंगल घना था परन्तु पानी फिर भी पेड़ों से हो कर उनके ऊपर टपक रहा था। फिर भी एक घने पेड़ के नीचे वे दोनों अपने अपने कम्बल लपेट कर सिकुड़ कर बैठ गये और बारिश को कोसने लगे कि वह किस बुरे समय पर आयी है।
इतने में एक बन्दर उछलता कूदता वहाँ आया और उसने इन लोगों को खच्चरों के साथ पेड़ के नीचे सिकुड़े हुए बैठे देखा। उसने खच्चरों पर लदा हुआ सामान सूंघा और तुरन्त जान लिया कि यह सौदागर असली शहद ले कर जा रहा है।
बन्दर को चालाकी सूझी। वह सौदागर के सामने आया और उसको नमस्कार करते हुए बोला - "ए सौदागर, तुम्हारे दिमाग नहीं है क्या? तुम यहाँ भीगे और दुखी इस जंगल में बैठे हो। ऐसे तो तुम बीमार हो जाओगे। चलो, मेरे घर चलो। मेरा घर पास में ही है। वह सूखा है और वहाँ आग भी जल रही है। आओ।"
सौदागर बोला - "धन्यवाद बन्दर भाई, परन्तु हमारे इन खच्चरों और इस कीमती शहद का क्या होगा?"
बन्दर बोला - "उनकी तुम बिल्कुल चिन्ता न करो। मैं तुम्हारे खच्चरों को अपने घर के बाहर बाँध दूंगा। आज की रात बारिश बहुत हो रही है सो चोर डाकुओं का डर भी बिल्कुल नहीं है।"
सौदागर ने कहा - "उनको तुम ठीक से बाँधना क्योंकि मैं यह शहद रानी की रसोई के लिये ले कर जा रहा हूं।"
बन्दर बोला - "तुम बिल्कुल चिन्ता न करो मैं इनको बहुत संभाल कर बाँधूंगा।"
सो सौदागर और उसका नौकर बन्दर के पीछे पीछे चल दिये। बन्दर ने उन खच्चरों को अपने घर के बाहर एक पेड़ के नीचे बाँध दिया। फिर उसने एक नुकीली लकड़ी रास्ते में रख दी।
बन्दर बोला - "वैसे तो मैं इन खच्चरों को बाँधता नहीं परन्तु आज की रात बारिश बहुत ज़्यादा है, चारों तरफ पानी ही पानी है इसलिये आज मगरों का बड़ा मजा है। यह लकड़ी मैंने यहाँ उन्हीं के लिये लगायी है।"
इतना कह कर बन्दर उन दोनों को अपने घर के अन्दर ले गया। बन्दर का घर सूखा और गरम था सो दोनों को उसके घर में बाहर की ठंड और बारिश से बड़ा आराम मिला। बन्दर ने कूद कूद कर दोनों के लिये तज के प्याले तैयार किये।
सौदागर तज पीते हुए बोला - "बन्दर भाई, तुम्हारी यह तज तो बहुत ही अच्छी है।"
बन्दर बोला - "यह उसी शहद की तज है जो तुम अभी ले कर आ रहे हो। मेरी पत्नी केवल उसी शहद की तज बनाती है। वह तज के लिये किसी और शहद को इस्तेमाल करना पसन्द ही नहीं करती।"
बन्दर सौदागर को तज के प्याले पर प्याले तो पिलाता रहा पर सौदागर को खाने के आसार कहीं नजर नहीं आ रहे थे। बन्दर यह बात भाँप गया। वह बोला - "जब मेरी पत्नी वापस आ जायेगी हम लोग खाना तभी खायेंगे।"
इस तरह तज पीते पीते रात गुजर गयी और रात भर में सौदागर काफी सारी तज पी गया और बन्दर की पत्नी क्योंकि रात भर वापस नहीं लौटी इसलिये सौदागर को रात भर खाना भी नहीं मिला। नौकर वहीं आग के पास ही लेट गया था और गरमी आते आते खर्राटे भरने लगा था।
बन्दर सौदागर से बोला - "मैं देख रहा हूं कि तुम्हें जंभाइयाँ आ रही हैं और तुम्हारी ऑखें भी झपक रही हैं। क्या मैं तुमको कुछ अजीब सा दिखाई नहीं दे रहा हूं?"
सौदागर बोला - "बात यह है कि मैंने बहुत सारी तज पी ली है। मैंने अभी अभी तुम्हारी तरफ देखा तो मेरी ऑखों ने मुझे धोखा दिया क्योंकि मुझे ऐसा लगा जैसे तुम्हारे पूंछ ही नहीं है।"
पर इत्तफाक से यह सच था। इस बन्दर के तो वाकई पूंछ नहीं थी। परन्तु बन्दर ने साहस के साथ कहा - "तुम ठीक कह रहे हो। मेरे तो पूंछ है। तुम्हारी ऑखों ने ही सचमुच तुमको धोखा दिया है। पूंछ तो सारे ही बन्दरों के होती है फिर मेरे क्यों नहीं होगी?
पर इसकी एक वजह तो यह हो सकती है कि इस तज को पी कर तुमको ऐसा लगा कि मेरे पूंछ नहीं है। क्या मैं तुमको इसकी दूसरी वजह भी बताऊं?"
सौदागर सोता हुआ सा बोला - "हाँ हाँ, क्यों नहीं। मुझे यह जानना ही चाहिये कि मुझे ऐसा क्यों लगा। बताओ न कि मुझे ऐसा क्यों लगा।"
बन्दर बोला - "वह वजह यह है कि ... वह वजह यह है कि ..." लेकिन बन्दर इसके आगे कुछ बोलता कि उससे पहले ही सौदागर लेट गया और खर्राटे भरने लगा।
बन्दर ने कुछ पल उस सोये हुए सौदागर को देखा और फिर वहाँ से बाहर भाग गया जहाँ उस सौदागर के खच्चर बंधे हुए थे। उसने उनके ऊपर लदा हुआ सामान खोला और शहद चख कर देखा।
शहद बिल्कुल असली था। उसने सौदागर के लाये शहद के बरतनों का शहद अपने बरतनों में डाल लिया और उसके खाली बरतन नदी की कीचड़ से भर दिये। इसके बाद वह अपने घर चला गया और जा कर सो गया।
काफी सुबह बीतने के बाद सौदागर नींद से जागा। पर यह क्या? वह न तो बन्दर से बोला और न अपने नौकर से। बस उठ कर अपने खच्चर खोले और राजा के महल की तरफ चल दिया।
बन्दर बोला - "यह कितना बदतमीज आदमी है कि इसने मेरी इतनी बढ़िया तज के लिये मुझे कोई धन्यवाद भी नहीं दिया।"
सौदागर जब राजा के महल में पहुंचा तो महल में खूब खुशियाँ मनायी गयीं। रानी के चेहरे पर पहली बार हंसी दिखायी दी तो राजा भी बहुत खुश हुआ। शहद के बरतन खच्चरों की पीठ से उतार कर रानी की रसोई तक ले जाये गये।
रानी ने अपने सब नौकरों को एक लाइन में खड़ा करके कहा "मेंरे मायके का शहद तो दुनियाँ भर में सबसे अच्छा शहद है। यहाँ का शहद तो कीचड़ जैसा है। मैं चाहती हूं कि तुम सब मेरे मायके का शहद चख कर देखो और जानो कि असली शहद क्या होता है।"
रानी ने अपने सब नौकरों से कहा कि वे अपनी अपनी उंगली उन बरतनों में डुबोयें और शहद चखें। सब नौकरों ने ऐसा ही किया। उन्होंने सबने वह कीचड़ चखी जो बन्दर ने उन बरतनों में भर दी थी।
रानी ने हर नौकर से बारी बारी से पूछा - "यही शहद सबसे अच्छा है न?"
हर नौकर ने कीचड़ चख कर मुंह पर हाथ रख लिया पर हर एक ने रानी से यही कहा - "यह तो सचमुच ही बहुत बढ़िया शहद है और यह यहाँ की कीचड़ जैसा तो बिल्कुल भी नहीं है।"
रानी यह सब सुन कर बहुत खुश हुई और सबके बाद उसने भी अपनी उंगली डुबो कर उस चीज़ को चखा जो उन बरतनों में थी तो चखते ही वह चिल्लायी - "अरे यह तो जहर है। बेवकूफों तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया?"
राजा भी चिल्लाया, राजा के रक्षक भी चिल्लाये, और अपनी तलवारों तथा ढालों से ज़ोर ज़ोर की आवाजें करने लगे। वह बेचारा गरीब सौदागर पकड़ लिया गया।
राजा सौदागर पर चिल्लाया - "कितनी बुरी बात है कि तुम राजा से चाल खेलते हो और तुमने अपनी रानी को भी जहर देने की कोशिश की? तुमने हमारा शाही शहद चुराया है इसलिए तुमको मौत की सजा मिलेगी।"
सौदागर बेचारा बहुत रोया, बहुत गिड़गिड़ाया, बहुत चिल्लाया। कभी उसने इस सेन्ट की कसम खायी तो कभी उस सेन्ट की और बोला - "मैं बिल्कुल बेकुसूर हूं राजा साहब, मैं बिल्कुल बेकुसूर हूं। एक बन्दर ने मेरे साथ यह चाल खेली है। उसी ने रानी जी का शहद चुराया है। उस पूंछ कटे बन्दर को मारना चाहिये।"
राजा बोला - "तुम बहुत चालाक हो। मैंने साफ झूठ बोलने वाले तो पहले भी बहुत सुने हैं पर दूसरे को दोषी ठहराने वाले तुम पहले आदमी हो। तुम बन्दर को दोषी ठहरा रहे हो और वह भी पूँछ कटे बन्दर को। और यह पूंछ कटा बन्दर क्या चीज़ है?"
इस पर सौदागर ने राजा को सारी कहानी सुना दी और जमीन पर माथा रगड़ कर और सब सेन्टों की कसम खा कर वह बोला कि वह जो कुछ भी कह रहा था एक एक शब्द सच कह रहा था।
राजा बोला "भला पूंछ कटा बन्दर भी कभी किसी ने कहीं देखा है? तुम फिर झूठ बोल रहे हो। ठीक है तुम्हारा सच तो हमें अभी पता चल जाता है। अगर हमें वह पूंछ कटा बन्दर मिल गया तो हम तुम्हें उसी समय छोड़ देंगे।
यह कहानी तुम्हारी ज़िन्दगी के कुछ ही दिन और बढ़ायेगी । तुम अभी मेरे सिपाहियों के साथ उस पूंछ कटे बन्दर की खोज में जंगल में जाओ और उसे ढूंढो। और हाँ एक सवाल और। क्या इस पूंछ कटे बन्दर को मालूम था कि यह शहद रानी के लिये था?"
सौदागर बोला - "जी सरकार। मैंने उससे कहा था कि वह खच्चरों को संभाल कर बाँधे क्योंकि इन पर रानी जी के लिये शहद जा रहा है।
लेकिन उसने मुझे तज तो खूब पिलायी पर खाने के लिये कुछ नहीं दिया। मैं यात्रा का थका था सो जल्दी ही सो गया। लगता है कि जब मैं सो गया तब उसने शहद चुरा लिया और शहद की जगह इन बरतनों में कीचड़ भर दी।"
राजा बोला - "यह तो बहुत बुरी बात है। यह तो शाही महल की बेइज़्ज़ती है।"
फिर वह अपने सिपाहियों से बोला - "तुम लोग अभी अभी इस सौदागर को ले कर जंगल चले जाओ और जा कर उस पूंछ कटे बन्दर की खोज करो।
अगर तुमको वह पूंछ कटा बन्दर कहीं मिल जाये तो इस सौदागर को छोड़ देना और उस बन्दर को मार देना और अगर तुमको वह पूंछ कटा बन्दर न मिले तो इस सौदागर को मार देना। समझे, अब जाओ।"
सौदागर और राजा के सिपाही जंगल में उस पूंछ कटे बन्दर की तलाश में चल दिए। वे क्योंकि ढोल बजाते जा रहे थे इसलिये उस ढोल की आवाज सुन कर सारे जानवर वहाँ से भागे जा रहे थे। बन्दर भी भाग गये। बल्कि वे तो जंगल के सबसे ज़्यादा घने हिस्से में जा कर छिप गये।
वे आपस में कहने लगे - "ये लोग हमारा शिकार करने क्यों आ रहे हैं? हम तो इनके किसी काम के नहीं हैं। हमारे तो बाल भी इनके लिये बेकार हैं। हमारा तो माँस भी बहुत पतला है फिर ये हमको मारने क्यों आये हैं।"
वह चालाक बन्दर भी वहीं था। वह बोला - "ये लोग हमारी पूंछ के लिये आ रहे हैं क्योंकि शहरों में आजकल स्त्रियों में बन्दर की पूंछ ले कर चलने का फैशन हो गया है। ये लोग इसी लिये आये हैं। ये लोग हमें मारेंगे और हमारी पूंछ काट कर ले जायेंगे।"
बाकी बन्दर बोले - "पर अब हम क्या करें। अब तो हमें वे मार डालेंगे और हमारी पूंछ काट कर ले जायेंगे।"
चालाक बन्दर बोला - "तुम लोगों को मरने की कोई जरूरत नहीं है। देखो मेरे पूंछ नहीं है इसलिये वे लोग मुझे नहीं मारेंगे। इसलिये तुम लोग ऐसा करो कि तुम सब अपनी अपनी पूंछ काट दो और बस फिर तुम्हें चिन्ता करने की कोई जरूरत नहीं है।"
इस पर बन्दर बोले - "मगर हमको तो अपनी पूंछ की जरूरत है। जब हम पेड़ पर बैठ कर अपने दोनों हाथों से खाना खाते हैं तब हमें अपनी पूंछ की जरूरत होती है।"
चालाक बन्दर बोला - "चिन्ता मत करो। कुछ ही दिनों में तुम लोग बिना पूंछ के रहना सीख जाओगे जैसे मैंने सीख लिया है। तुममें से ऐसा कौन है जो मुझसे ज़्यादा अच्छी तरह से खाना खा सकता है?
मैं वह सभी काम कर सकता हूं जो तुम कर सकते हो। पर मैं तुमसे बेकार में बहस क्यों करूं क्योंकि मेरे तो पूंछ है नहीं इसलिये वे लोग मुझे तो मारेंगे नहीं।"
सारे बन्दरों ने उस चालाक बन्दर का विश्वास कर लिया और सबने अपनी अपनी पूंछ पलक झपकते काट दी।
कई दिनों की तलाश के बाद जब बन्दर सिपाहियों को मिले तो किसी बन्दर के भी पूंछ नहीं थी। सब पूंछ कटे थे और इस तरह चालाक बन्दर ने अपने आपको छिपा लिया था।
सौदागर ने जब इतने सारे पूंछ कटे बन्दर देखे तो चिल्लाया "देखो न, मैंने राजा से क्या कहा था कि मैंने पूंछ कटा बन्दर देखा था। इससे मेरी कहानी और भी ज़्यादा सच साबित होती है।
देखो केवल एक ही बन्दर पूंछ कटा नहीं है बल्कि यहाँ तो सारे ही बन्दर पूंछ कटे हैं। अब तो हम लोगों को एक ही नहीं बल्कि सैंकड़ों पूंछ कटे बन्दर मिल गये हैं इसलिये मैं अब जाता हूं।"
पर उधर सिपाही सोच रहे थे कि वे क्या करें क्योंकि यह सच था कि राजा ने उनसे यही कहा था कि अगर उनको पूंछ कटा बन्दर मिल जाये तो वे सौदागर को छोड़ दें और अब तो उनको बहुत सारे पूंछ कटे बन्दर मिल गये थे इसलिये उन्होंने सौदागर को छोड़ दिया।
सौदागर भागता भागता पास के एक शहर में पहुंचा और उसने वहीं जा कर दम लिया। इधर सिपाही इतने सारे बन्दरों को तो मार नहीं सकते थे इसलिए वे भी महल वापस लौट गये।
राजा ने उनसे पूछा - "क्या तुम लोगों को पूंछ कटा बन्दर मिला?"
सिपाहियों का कप्तान बोला - "सरकार, हमने तो पूंछ कटे बन्दर सैंकड़ों की तादाद में देखे। सौदागर का सच तो सैंकड़ों गुना निकला। जंगल में तो सारे बन्दर पूंछ कटे ही थे। हमने सौदागर को तो छोड़ दिया पर हम इतने सारे बन्दरों को नहीं मार सके।"
राजा चिल्लाया - "यह तो चाल है। किसने खेली यह चाल? सौदागर ने या बन्दर ने?"
फिर राजा ने अपने सबसे ज्यादा अक्लमन्द सलाहकार को बुलाया जो उसको लड़ाई, प्रेम और चाल खेलने पर सलाह दिया करता था और उससे पूछा "तुम्हारी राय में किसने खेली होगी यह चाल? सौदागर ने या बन्दर ने?"
सलाहकार ने जवाब दिया - "यह चाल सौदागर की नहीं हो सकती सरकार, यह चाल तो बन्दर ने खेली है। उन बन्दरों में एक चालाक बन्दर है जिसने यह शहद चुराया है।"
जब उस बन्दर ने सिपाहियों और सौदागर को आते देखा तो उसने सारे बन्दरों की पूंछ कटवा दी ताकि वे उसे ढूंढ ही न सकें। अब हमको उस बन्दर को ढूंढना है जिसकी पूंछ पहले से कटी हुई हो।"
सिपाही, वह अक्लमन्द सलाहकार और राजा सभी जंगल की तरफ चल दिये। बन्दर बेचारे फिर भागे और जंगल के सबसे ज़्यादा घने हिस्से में जा कर छिप गये परन्तु सिपाहियों ने उनको फिर भी ढूंढ निकाला और उनमें से कई बन्दरों को पकड़ कर राजा के पास ले आये।
राजा बोला - "हम तो हार गये भाई, अब हम यह कैसे पता लगायें कि वह बन्दर कौन सा है जिसकी पूंछ सबसे पहले कटी थी। वह बन्दर तो बहुत ही चालाक है।"
सलाहकार बोला - "सरकार, कोई भी बन्दर मेरे लिये चालाक नहीं हो सकता। मेरे पास एक ऐसा तरीका है जिससे मुझको पता चल जायेगा कि वह चालाक बन्दर कौन सा है।
आप अपने सिपाहियों से कहिये कि वे बन्दरों को पेड़ों की शाखों पर बैठने के लिए कहें और फिर तीन दिनों तक बन्दरों को खाने के लिये कुछ न दिया जाये।"
ऐसा ही किया गया। बन्दर तीन दिन तक बिना खाये पेड़ों की शाखों पर बैठे रहे। वे बेचारे काँपते रहे, चिल्लाते रहे, दुखी होते रहे पर उनको खाना नहीं दिया गया।
तीसरे दिन उनसे कहा गया कि आज तुम्हारा राजा तुमको शानदार दावत खिलायेगा। राजा चाहते थे कि इस शानदार दावत का पूरा मजा लूटने के लिये तुम लोगों को थोड़ा सा भूखा रखा जाये।
इसके बाद सिपाही बहुत सारा बढ़िया खाना ले कर आये और उसे पेड़ों के बीच में रख दिया। राजा के इशारे पर सिपाहियों ने खाना बन्दरों की तरफ फेंकना शुरू किया।
केवल एक बन्दर को छोड़ कर बाकी सभी बन्दरों ने खाना दोनों हाथों से लपकना चाहा परन्तु पूंछ न होने की वजह से वे पूंछ से पेड़ की शाख न पकड़ सके और पेड़ से नीचे गिर गये। केवल वह चालाक बन्दर ही पेड़ से नीचे नहीं गिरा।
सलाहकार बोला - "सरकार यही है वह चालाक बन्दर। आप इसे पकड़ लें।"
बन्दर चिल्लाया - "सरकार, मैं बेकुसूर हूं, मेरा कोई कुसूर नहीं है। और आपको कैसे पता चला कि मेरी पूंछ काफी समय से नहीं है। हो सकता है कि मेरी पूंछ भी अभी हाल में कटी हो और मैंने दूसरे बन्दरों के मुकाबले में यह काम जल्दी सीख लिया हो। मैं होशियार हूं न?"
सलाहकार बोला - "तुम होशियार हो न, तो इससे तो यह बात और भी ज़्यादा पक्की हो जाती है कि तुम ही वह पूंछ कटे बन्दर हो जिसने उस बेचारे सौदागर को छला। तुम ही हो वह।"
सिपाहियों ने उसके हाथ पैर बाँधे और नदी के किनारे एक डंडे से बाँध दिया और बोले - "अभी यहाँ मगर आयेंगे और फिर तुम कभी शाही शहद नहीं चुरा पाओगे।"
सिपाहियों ने बन्दर के गले में एक कागज यह लिख कर टाँग दिया - "इसे कोई न छुए, राजा की आज्ञा से"। ऐसा करके वे सभी सिपाही गीत गाते हुए महल वापस लौट गये।
शाम को एक हयीना उस नदी पर पानी पीने आया। उसने बन्दर देखा और उस पर लगा हुआ नोट देखा तो वह परेशान हो गया।
उसने बन्दर से पूछा - "बन्दर भाई, यह सब क्या है?"
बन्दर घुड़क कर बोला - "तुमको दिखायी नहीं देता क्या? इस नोट का मतलब है कि मैं राजा की हिफाजत में हूं। यह मेरी हिम्मत का इम्तिहान है। अगर मैं यहाँ सारी रात बंधा रह गया तो राजा कल सुबह मुझे एक पूरी गाय खाने के लिए देगा।"
एक पूरी गाय का नाम सुन कर तो हयीना का मुंह आश्चर्य से फटा का फटा रह गया - "एक पूरी गाय?"
बन्दर बोला - "हाँ हाँ, एक पूरी गाय।"
इस पर हयीना ने बन्दर से पूछा - "मगर इतना छोटा सा बन्दर एक पूरी गाय कैसे खा सकता है?"
बन्दर बोला - "यही तो दुख की बात है कि यह मेरे भाग्य में तो हो ही नहीं सकता कि मैं एक पूरी गाय खा लूं क्योंकि मैं तो एक पूरी गाय खा ही नहीं सकता पर जो खा सकता है उसके भाग्य में तो हो सकता है।"
हयीना बोला - "अगर मैं तुम्हारी जगह पर बैठ जाऊं बन्दर भाई, तो क्या वह इनाम जो राजा ने तुम्हें देने का वायदा किया है, वह मुझे मिल सकता है?"
बन्दर बोला - "हाँ हाँ क्यों नहीं। आओ न तुम यहाँ आ कर बैठ जाओ। बस कल फिर पूरी गाय तुम्हारी है।"
हयीना ने बन्दर को खोल दिया और बन्दर ने हयीना को उसी डंडे से बाँध दिया जिससे वह खुद बंधा हुआ था पर बन्दर ने उसको वह नोट नहीं लगाया।
हयीना ने पूछा - "और बन्दर भाई वह नोट?"
बन्दर कूदता हुआ उस नदी के किनारे पर लगे एक ऊंचे से पेड़ पर चढ़ गया और वहीं से बोला - "तुमको तो उस नोट की जरूरत ही नहीं है।"
हयीना ने पूछा - "क्यों?"
बन्दर बोला - "क्योंकि मगरों को पढ़ना नहीं आता।"
फिर वह ज़ोर से बोला - "ठीक से खाना।"
हयीना खुशी खुशी बोला - "हाँ भाई, मैं ठीक से खाऊंगा।"
इस पर बन्दर बोला - "मैं तुमसे नहीं कह रहा हयीना भाई, मैं तो सामने से आने वाले मगरों से कह रहा था।"
यह सुन कर हयीना ने जो सिर उठा कर देखा तो सचमुच ही कई मगर मुंह उठाये उसी की तरफ बढ़े चले आ रहे थे।
बस फिर क्या हुआ होगा हयीना का यह तो तुम खुद ही सोच सकते हो।
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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं की एक अन्य पुस्तक - रैवन की लोक कथाएँ में से एक लोक कथा यहाँ पढ़ सकते हैं.
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सुषमा गुप्ता का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर में सन् 1943 में हुआ था। इन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से समाज शास्त्र और अर्थ शास्त्र में ऐम ए किया और फिर मेरठ विश्वविद्यालय से बी ऐड किया। 1976 में ये नाइजीरिया चली गयीं। वहां इन्होंने यूनिवर्सिटी औफ़ इबादान से लाइब्रेरी साइन्स में ऐम ऐल ऐस किया और एक थियोलोजीकल कौलिज में 10 वर्षों तक लाइब्रेरियन का कार्य किया।
वहां से फिर ये इथियोपिया चली गयीं और वहां एडिस अबाबा यूनिवर्सिटी के इन्स्टीट्यूट औफ़ इथियोपियन स्टडीज़ की लाइब्रेरी में 3 साल कार्य किया। तत्पश्चात इनको दक्षिणी अफ्रीका के एक देश़ लिसोठो के विश्वविद्यालय में इन्स्टीट्यूट औफ़ सदर्न अफ्रीकन स्टडीज़ में 1 साल कार्य करने का अवसर मिला। वहॉ से 1993 में ये यू ऐस ए आगयीं जहॉ इन्होंने फिर से मास्टर औफ़ लाइब्रेरी ऐंड इनफौर्मेशन साइन्स किया। फिर 4 साल ओटोमोटिव इन्डस्ट्री एक्शन ग्रुप के पुस्तकालय में कार्य किया।
1998 में इन्होंने सेवा निवृत्ति ले ली और अपनी एक वेब साइट बनायी- www.sushmajee.com <http://www.sushmajee.com>। तब से ये उसी वेब साइट पर काम कर रहीं हैं। उस वेब साइट में हिन्दू धर्म के साथ साथ बच्चों के लिये भी काफी सामग्री है।
भिन्न भिन्न देशों में रहने से इनको अपने कार्यकाल में वहॉ की बहुत सारी लोक कथाओं को जानने का अवसर मिला- कुछ पढ़ने से, कुछ लोगों से सुनने से और कुछ ऐसे साधनों से जो केवल इन्हीं को उपलब्ध थे। उन सबको देखकर इनको ऐसा लगा कि ये लोक कथाएँ हिन्दी जानने वाले बच्चों और हिन्दी में रिसर्च करने वालों को तो कभी उपलब्ध ही नहीं हो पायेंगी- हिन्दी की तो बात ही अलग है अंग्रेजी में भी नहीं मिल पायेंगीं.
इसलिये इन्होंने न्यूनतम हिन्दी पढ़ने वालों को ध्यान में रखते हुए उन लोक कथाओं को हिन्दी में लिखना पा्ररम्भ किया। इन लोक कथाओं में अफ्रीका, एशिया और दक्षिणी अमेरिका के देशों की लोक कथाओं पर अधिक ध्यान दिया गया है पर उत्तरी अमेरिका और यूरोप के देशों की भी कुछ लोक कथाएँ सम्मिलित कर ली गयी हैं।
अभी तक 1200 से अधिक लोक कथाएँ हिन्दी में लिखी जा चुकी है। इनको "देश विदेश की लोक कथाएँ" क्रम में प्रकाशित करने का प्रयास किया जा रहा है। आशा है कि इस प्रकाशन के माध्यम से हम इन लोक कथाओं को जन जन तक पहुंचा सकेंगे.
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