विज्ञान-कथा मिनामाटा' हरीश गोयल

SHARE:

व ह कोमा में पड़ी हुई थी। मुझे उसका इंतजार था। पूरा एक वर्ष बीत चुका था लेकिन उसकी स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। कोमा मूर्छा की एक ऐसी स...

image

ह कोमा में पड़ी हुई थी। मुझे उसका इंतजार था। पूरा एक वर्ष बीत चुका था लेकिन उसकी स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। कोमा मूर्छा की एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति को एक साल तो क्या पाँच-पाँच साल गुजर जाते हैं पर व्यक्ति को होश नहीं आता है। कई बार तो कोमा में ही मृत्यु हो जाती है। इसमें इंतजार के सिवा और कुछ किया ही नहीं जा सकता है।

पूजा की मुझसे हालत देखी नहीं जाती थी। कितनी बातूनी थी वह। उसके कारण पूरे घर में उल्लास छाया रहता था।

सच है पत्नी के बिना घर सुनसान हो जाता है। बल्कि मैं तो कहता हूँ मरघट बन जाता है। पूजा मेरी पत्नी है। उसके कोमा में चले जाने से घर में सन्नाटा छा गया।

मेरा एक ही बच्चा था अनुराग। उसकी दो साल पहले ही मृत्यु हुई थी। वह उसके सदमें को बर्दाश्त नहीं कर पाई और कोमा में चली गई। बड़ा प्यारा बच्चा था वह। वह उसकी नयनों का तारा था। बड़ी कठिनाई से वह हुआ था। क्लोनिंग का परिणाम था वह।

हाँ, आज के समय में क्लोनिंग एक सामान्य बात हो गई है। इसमें बंध्य औरतों को बड़ी राहत मिली। उसका एक-एक पल अनुराग के बारे में सोचते हुए बीतता था। कभी-कभी तो मुझे भी ईर्ष्या होने लगती या फिर झुंझलाहट क्योंकि मैं स्वयं को उपेक्षित महसूस करने लगता।

यद्यपि वह मेरा भी पूरा ख्याल रखती थी। अस्पताल से आता तो मैं उसे दरवाजे पर ही खड़ा पाता। वह मेरी प्रतीक्षा में पलकें बिछाये खड़ी रहती।

हमारा जीवन अच्छी तरह से व्यतीत हो रहा था। मैं पूजा को इतना अधिक प्यार करता था कि इसकी उसे कमी महसूस नहीं होने दी। अस्पताल जाते समय मैं चाहता था कि वह मुस्कराते हुए मुझे विदा करे। उसकी मुस्कराहट भी लाजवाब थी। अनुराग मुझसे पहले ही स्कूल चला जाता था।

पूजा उसे स्कूल डेंस पहनाती। उसका टिफन तैयार करती। स्कूल में यदि किसी क्लासमेट का जन्मदिन होता तो वह टिफिन के एक खाने में टोफियाँ रखती। यदि उसका स्वयं का जन्मदिन होता तो हम एक छोटी पार्टी रखते जिसमें बच्चे को ही बुलाते थे। बच्चे उसे उपहार देते जिसे पार्टी खत्म होने पर वह घंटो निहारता। उसे हंसता हुआ देखकर हम फूले नहीं समाते।

हर शाम हम घर से बाहर निकल पड़ते। कभी बगीचे में जाते। वह झूले का आनन्द उठाता। अब तो एस्सल वर्ल्ड के कई आइटम आ गये थे।

हम उसे हर आइटम को एन्ज्वाय करवाते। घर पर वह अक्सर विज्ञान कथा की कोई-न-कोई फिल्म देख रहा होता।

भारतीय कथाकारों ने भी बहुत अच्छी कथाएँ लिखी थीं। डॉ. राजीव रंजन उपाध्याय, डॉ. अरविन्द मिश्र, डॉ. जयन्त विष्णु नालींकर एवं देवेन्द्र मेवाड़ी की विज्ञान कथाएँ तो देख-देखकर वह अघाता नहीं था। यों वह वर्ल्ड क्लासिक्स की विज्ञान कथाएँ भी देखा करता था।

खेल में उसे क्रिकेट का बहुत अधिक शौक था। पढ़ने में भी वह अव्वल रहता था। विज्ञान के पढ़ने में उसकी गहरी रुचि थी। उसकी मम्मी तो उसे नित्य पढ़ाया करती थी।

यदि समय होता तो मैं भी उसे पढ़ाता था। डॉक्टर का एक ऐसा पेशा है कि रोगी को देखने के लिए 24 घंटों तैयार रहना पड़ता था।

लोगों ने बहुत कहा था कि मैं प्राइवेट प्रेक्टिस प्रारम्भ करूँ, लेकिन मैंने मना कर दिया। पैसा ही तो सब कुछ नहीं है। मैं अधिक से अधिक समय अपने परिवार को देना चाहता था। पूजा और अनुराग दोनों को मेरा भरपूर प्रेम मिल सके इसके अतिरिक्त मुझे और कुछ नहीं चाहिए था। पूजा मुझे कितना

चाहती थी, इसका मैं बखान नहीं कर सकता।

हमारा एक हंसता-खेलता परिवार था। हमारे बड़े अच्छे दिन व्यतीत हो रहे थे। लेकिन भाग्य को मंजूर नहीं था। अनुराग अचानक बीमार पड़ गया और फिर उसकी बीमारी इतनी अधिक बढ़ गई कि वह संभल नहीं सका।

मैं स्वयं डॉक्टर था लेकिन विवश था। उसकी बीमारी जानलेवा साबित हुई। मैंने उसे बचाने का बहुत प्रयत्न किया लेकिन क्रूर भाग्य के आगे मेरा कोई बस नहीं चला।

लेकिन में इसे क्रूर भाग्य नहीं मानता। यह तो मनुष्य के स्वयं के हाथों से बोया हुआ बीज है। आज उसी के कुकृत्यों का परिणाम भी उसे ही भोगना पड़ रहा हैं यह कोई अबूझ पहेली नहीं है।

मनुष्य में इतना अधिक प्रदूषण फैला दिया है कि इसका परिणाम मेरे बच्चे को भोगना पड़ा है और केवल मेरा बच्चा ही नहीं पूरा शहर इससे पीड़ित है।

लोग शहर में उद्योग धंधे तो लगाते हैं लेकिन उससे उत्पन्न प्रदूषण की अनदेखी कर देते हैं वे उसका कोई समाधान नहीं ढूँढ़ते हैं। शहर में मिनामाटा बीमारी फैली हुई थी। यह बीमारी कालू नदी में औद्योगिक अवशिष्टों के कारण फैली थी। इस बीमारी का परिणाम जापानवासी भुगत चुके थे लेकिन फिर भी अक्ल नहीं आई।

मिनामाटा बीमारी पारे के कारण होती है। पारे का प्रयोग कागज मिलोंऔर रेयान मिलों द्वारा काफी मात्रा में होता है। इस पारे का अवशिट नदी में मिलकर नदी को विषैला करता है झीलों और नदियों में यह सतत रूप से इकटठा होता रहता है। हमारे शहर में भी कागज और रेयन की मिलें स्थापित हुई। कौन नहीं जानता है यहाँ स्थापित हुई नेशनल कार्पोरेशन, विजय इण्डस्टींज, अजन्ता पेपर मिल, बालकृष्ण पेपर मिल, बी. के. पेपर मिल, अमर डाई पिगमेन्ट एण्ड डाइस्टफ मिलों को। इन मिलों से निकला पारे का अवशिष्ट कालू नदी में जा मिला और नदी विषैली हो गई। नदी का पानी भी अब भूरा हो गया। पानी को देखते ही हमें घृणा होने लगती है लेकिन हम विवश हैं प्रदूषित पानी पीने को। कोई हमारे दर्द को समझने वाला नहीं है।

पारे के अनेक कार्बनिक यौगिक अकार्बनिक पदार्थों की तुलना में अधिक विषैले हैं। पर्यावरण में पारे की मात्रा मिथाइल मरकरी 1ध्4पारा1ध्2 के कारण बढ़ गई है मिथाइल मरकरी एक अत्यन्त विषैला पदार्थ है यह पदार्थ वनस्पति एवं जन्तुओं के द्वारा आसानी से ग्राह्य है।

कालू नदी में पारे की मात्रा निरन्तर बढ़ती गई। इससे यहाँ के वनस्पति तथा जीव-जन्तुओं पर काफी अधिक प्रभव पड़ा।

अनुराग भी की घातक बीमारी की चपेट में आ गया। हमें पहले की डर था कि अनुराग को यह बीमारी नहीं लग जाये। हमने बड़ी सावधानी बरती लेकिन फिर भी उसे इस बीमारी ने नहीं बख्शा।

इस बीमारी के लगने के बाद ही वह मानसिक रूप से पिछड़ने लगा। यह बीमारी स्नायु संस्थान को नष्ट करती है। कहाँ वह पढ़ाई में अव्वल रहता था और कहाँ व पिछड़े बच्चों की श्रेणी में आ गया। ऐसा नहीं था कि पूजा उसकी पढ़ाई में कोई कसर रखी थी लेकिन उसकी समझ शक्ति तेजी से घट गई थी। गणित के सवाल वह कठिनाई से ही हल कर पाता था। उसकी स्मरण शक्ति बहुत कमजोर हो गई थी।

उसके पढ़ाई में पिछड़ने में हमारी सारी उम्मीदें पर पानी फिर गया लेकिन अनुराग से हमें सहानुभूति थी। इसमें उसका कोई दोष नहीं था लेकिन उसके शिक्षकों तथा अन्य मित्रों को यह बात समझना बहुत कठिन था। उसके पढ़ाई में पिछड़ने के कारण होशियार बच्चों ने भी उसका साथ छोड़ दिया था। यह देखकर हमें बड़ा अफसोस होता। अब हम उसके मां बाप ही नहीं थे। हम उसका दोस्त बनकर इस कमी को दूर करते। पूजा तो उसकी छोटी-छोटी बात का बहुत ख्याल रखती थी। उससे स्कूल की एक-एक गतिविधि के बारे में पूछती। उसे किस चीज की खाने की इच्छा है, वही बनाती। क्या खेल खेलना चाहता है, उसी की सामग्री दिलाती। केवल यही नहीं हम भी उसके साथ-साथ खेलते। उसे हंसाने का प्रयत्न करते थे। उसकी मासूमियत ही हमारे लिये सबसे बड़ा खजाना था। पूजा उसे पल-पल का ख्याल रखती थी।

लेकिन बीमारी के बढ़ने के साथ-उसके उसके पागलपन में भी वृद्धि होती गई। यही नहीं धीरे-धीरे उसकी देखने और बोलने की क्षमता समाप्त होती गई।

पूजा का तो रो-रोकर हाल बेहाल था। उसके अश्रु कभी सूखते नजर नहीं आते। हमारा घूमना फिरना सब बंद हो गया था।

मैं स्वयं डॉक्टर था लेकिन कुछ कर नहीं पाता। पूजा मुझे बड़े से बड़े डॉक्टर को दिखाने के लिये जोर देती। मैं बड़े से बड़े डॉक्टर से परामर्श करता। यहां तक कि मैंने विदेशों के डॉक्टर से भी संपर्क किया। अब टेली-मेडिसिन का जमाना आ गया था। अतः विदेश में बैठे हुए डॉक्टर की मदद से शल्य चिकित्सा तक की जा सकती थी। लेकिन यह बड़े दुःख की बात थी कि मिनामाटा जैसी घातक बीमारी का कोई उपाय नहीं था। विदेशी चिकित्सकों का परामर्श भी हमारे लिये उपयोगी साबित नहीं हुआ। अब वह इसकी अंतिम अवस्था में पहुँच चुका था। अब वह बेहोशी या तंद्रा में ही पड़ा रहता।

पूजा गुम-सुम और उदास रहती। उसका खाना-पीना भी छूट चुका था। दिन-रात वह अनुराग के बिस्तर के पास बैठी रहती तथा उसकी आँखों में अश्रु बहते रहते। मुझसे उसकी यह स्थिति देखी नही जाती। मुझे अब अस्पताल में भी व्यस्त रहना पड़ा। मिनामाटा से पीड़ित बच्चों, महिलाओं तथा पुरुष से अस्पताल भरा रहता।

मिनामाटा पूरे शहर में फैल गई थी। स्थिति यह हो गई कि कोई बिस्तर खाली नहीं था। अतिरिक्त बिस्तर की व्यवस्था की गई परन्तु वह भी पर्याप्त नहीं था। कोमा में नित्य आये लोगों को घर भेज दिया जाता। जो गंभीर अवस्था में नहीं होते उन्हें भी भर्ती नहीं किया जाता। अस्पताल में मृतकों की संख्या बढ़ती जा रही थी। यह सख्त हिदायत दी गई कि भोजन में मछलियाँ नहीं खायी जायें। कालू नदी में पायी जाने वाली मछलियों में खतरे की हद से कहीं अधिक पारे की मात्रा पायी गई है। यह पारा उनके सारे शरीर में व्याप्त हो गया है। इस नदी के ऊपर उड़कर मछलियों का शिकार करने वाले पक्षी या तो मर चुके हैं अथवा उस नदी को छोड़कर अन्यत्र चले गये है।

कालू नदी के किनारे मरे हुए पक्षियों को दुर्गन्ध फैल गई।

कालू नदी का पानी खतरनाक ढंग से प्रदूषित हो चुका था। सावधानियाँ बरतने के बावजूद मिनामाटा के मृत व्यक्तियों की संख्या बढ़ती जा रही थी।

मेरी अस्पताल में पूरी-पूरी रात गुजर जाती। एक तरफ अनुराग की बीमारी तथा दूसरी ओर मेरी व्यस्तता। बीच-बीच में विडियोफोन पर मैं उसका हाल पूछ लेता। लेकिन फोन भी अधिक समय तक अटेन्ड नहीं कर पाता।

घर में मैंने अक्वा फिल्टर रख रखा था। सभी फलों तथा सब्जियों को धोकर उपयोग किया जाता तथा अन्य सावधानियाँ बरती जातीं।

लेकिन अनुराग की तबियत बिगड़ती चली गई। उसके उसे लिए मिनीमाटा जानलेवा साबित हुई। वह कोमा में ही चल बसा। मुझे अस्पताल में ही उसकी मृत्यु की सूचना मिली।

मैं धक रहा गया। पूजा का क्या हाल हुआ होगा, उसकी कल्पना करके ही मैं सिहर उठा। मैं तुरन्त घर कीओर लपका। मेरे हृदय की धडत्रकन बढ़ चुकी थी।

मैं तो डॉक्टर होने के नाते स्वयं को संयत करना सीख चुका था लेकिन बेचारी पूजा........ वह स्वयं को नहीं संभाल पाई होगी।

घर पहुँचा तो पाया कि वह मूर्छित हो चुकी थी । घर में कोहराम मचा हुआ था।

होश में आते ही वह बिलख उठी। कुछ समय बाद वह फिर मूर्छित हो जाती। उसके माता-पिता आ चुके थे। घर में कोहराम मचा हुआ था। उन्होंने भी उसे ढ़ांढ़स बंधाया। मेरे माता-पिता सहित अन्य रिश्तेदारों ने भी उसे दिलासा दिलाने का प्रयत्न किया और कहाकि ईश्वर की मर्जी के आगे किसका बच चलता हैं लेकिन वह चीख उठती.... और कहती यह ईश्वर की मर्जी नहीं हैं.... यह तो मनुष्य की करतूत है...आप सबकी.... आपने नदी में जहर घोल दिया.......मिनमाटा ईश्वर की देन नहीं है.... आपने मेरे बच्चे का गला घोटा.. . आप हत्यारे हैं... हाँ.... हाँ... आप हत्यारे हैं....आपने मेरे अनु की हत्या की.... आप मेरी भी हत्या की दीजिए.... मेरा भी गला दबा दीजिए....लीजिए दबाइये... वह रिश्तेदार के दोनों हाथ पकड़कर अपने गले तक ले जाती....रिश्तेदार अपना हाथ छुड़ा लेता....

वह फिर मूर्छित हो जाती.... कई दिनों तक उसके मूर्छित होने का तथा होश में आने का सिलसिला चलता रहा।

रिश्तेदार जा चुके थे। उसकी मम्मी भी जा चुकी थी। मैं ने अपनी मम्मी को रोक लिया था इस डर से कि कहीं वह पीछे से कुछ कर न ले। मेरा अस्पताल जाना आवश्यक होता था। अब वह गुमसुम और उदास रहने लगी। कई दिन बीत गये पर कई दिन बीतने पर भी उसकी उदासी दूर नहीं हुई। मैं उसे घुमाने भी ले गया पर उसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ। हंसना, मुस्कराना वह भूल चुकी थी। उसकी गुलाब की पंखुड़ियों सी खिलखिलाहट से घर महका रहता लेकिन अब मरघट की-सीशांति छाई रहती जीवन बेसुरा हो चला था।

पूजा ने बोलना बहुत कम कर दिया था। वह केवल एक दो शब्द ही बोलती थी। उसने मुस्कराना बिल्कुल बंद कर दिया था। मुझे याद नहीं है कि इस घटना के पश्चात वह फिर कभी मुस्कराई है।

खाना-पीना उसका बहुत कम हो चुका था। उसकी भूख मिट चुकी थी। उसके स्वास्थ्य में बड़ी तेजी से गिरावट आई और फिर वही बात आई जिसका कि मुझे डर था। पूजा को मिनासाटा रोग ने आ घेरा।

मैं स्वच्छता का पूरा ख्याल रखता। खान-पान में पूरा एहतियात बरतता। फिल्टर्ड पानी को भी हम उबाल कर तथा

ठंडा करके पीते। मछलियों का खाने में नामोनिशान नहीं था। पूरे एहतियात के बावजूद भी मैं उसे मिनामाटा से नहीं बचा सका। अब वह अनुराग की ही स्थिति में गुजरने लगी। उसकी स्थिति दिन प्रतिदिन गिरने लगी। दवाईयों का उस पर कोई असर नहीं हुआ। पारे का विष उसके शरीर में फैल चुका था। कागज तथा रेयान मिलों से रिसता अवशिष्ट पदार्थ.... नदी में घुलता जहरीला अपशिष्ट ...जहर घोल दिया इसने... खून के एक-एक कतरे में...पशु... पक्षी... तथा मानव...शहर का.. . बच्चा... महिला... कोई इस राक्षसी पंजे में नही बचा... हर खून दूषित हो चुका था... थोड़ा कम...थोड़ा ज्यादा... लेकिन विषाक्त पार की मात्रा हरेक के खून में थी.... पता नहीं कब. ..कौन...इस काल की चपेट में आ जाये....पूजा कैसे बचती. .. आखिर वह कोमा में चली गई...दीर्घ मूर्च्छा... उसे इस तरह मूर्छा में रहते हुए पूरा वर्ष बीत चुका था। मुझे उसके होश में आने का इंतजार था। पता नहीं वह होश में आयेगी भी या नहीं। कहीं ऐसा तो नहीं कि वह दीर्घ मूर्च्छा में ही दम तोड़ दे। यह सोचकर मैं काँप उठा लेकिन फिर मन में नहीं माना... मन के एक कोने में आशा की एक कोपल जिन्दा थी... मैं उसके होश में आने की प्रतीक्षा करने लगा... उस सुनहरे पल की. ....। मैं उस पल के लिये अधीर हो उठा।

उधर शहर में मिनामाटा का तांडव नृत्य जारी था।

harishgoyalswf@gmail.com

मिनामाटा = 'पारे के योगिक मिथाइल मरकरी की विषाक्तता के कारण उत्पन्न रोग का जापानी नाम, क्योंकि इस व्याधि का प्रभाव सर्वप्रथम जापान में देखा गया था।

विज्ञान कथा अक्टूबर-दिसम्बर' 2016 से साभार

image

COMMENTS

BLOGGER: 1
  1. प्रदूषण का विकृत रूप दर्शाती एक रोचक कहानी। सच में अगर हमने प्रदूषण पर काबू नहीं पाया तो यह पूरी मनुष्य जाति को लील लेगी।

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: विज्ञान-कथा मिनामाटा' हरीश गोयल
विज्ञान-कथा मिनामाटा' हरीश गोयल
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEioYE5iemHqZEG7kQ9oS6Edomzfsx9sLoWHb-faukSuPAbYz2vwjst7pbI-6Pz_qSZyahucu2RfxgfZ6bvBX7wKzRePxd9eJlk4WwLWtJT0rValVeAT83C7tAq7RIq7mKxHCK26/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEioYE5iemHqZEG7kQ9oS6Edomzfsx9sLoWHb-faukSuPAbYz2vwjst7pbI-6Pz_qSZyahucu2RfxgfZ6bvBX7wKzRePxd9eJlk4WwLWtJT0rValVeAT83C7tAq7RIq7mKxHCK26/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2016/11/blog-post_2.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2016/11/blog-post_2.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content