शब्द उपनिषद ‘ उपनिषद” का शब्दार्थ ‘समर्पणभाव से निकट बैठना’ है.उप का अर्थ है निकट;;नि; से तात्पर्य है’समर्पण’भाव और सद माने बैठना है.ऋष...
शब्द उपनिषद
‘ उपनिषद” का शब्दार्थ ‘समर्पणभाव से निकट बैठना’ है.उप का अर्थ है निकट;;नि; से तात्पर्य है’समर्पण’भाव और सद माने बैठना है.ऋषियों के पास बैठकर जिज्ञासुओं को जो ज्ञान प्राप्त हुआ वही उप्निषदों में संकलित है.
एक मज़ेदार बात यह है कि जूतों के लिये एक प्राचीन शब्द ;उपानत’ था उपानत का अर्थ है, जिसे निकट लाया जाए. आख़िर जूते हमारे पैरों के सबसे नज़दीक नज़दीक रहने वाली वस्तु है. “उपनिषद” और उपानत,दोनो में इस प्रकार जो भावात्मक सम्बंध है, देख्ते ही बनता है,भले ही दोनों के अर्थ में कोई सिर पैर न हो. या,यों कहें ,सिर और पैर का अंतर हो.
यदि हम समर्पण भाव से शब्दों के निकट जाएं तो शब्द अपने तमाम रहस्य रहस्य हमारे समक्ष खोल देते हैं. कुछ ऐसे ही शब्दों का जायज़ा लीजिए....
अनशन
गांधी जी ने स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में अनशन को एक राजनैतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया थ. वैसे, अनशन उपवास है, आहार त्याग है. राज्नैतिक हथियार के रूप में इसे भूख हड़ताल भी कहा गया है. संस्कृत में अशन का मतलब भोजन या भोज्य पदार्थ से है. अनशन इस प्रकार अशन में नकारात्मक प्रत्यय,अन,लगाकर ही बना है. भोजन न करना ही अनशन है. एक रोचक बात यह है कि हिंदी ने अनशन को तो अपना लिया है, लेकिन भोजन के लिए अशन शब्द का प्रयोग प्रचलित नहीं हो पाया.
अवेल
संसकृत में एक शब्द है,अवेल. हिंदी में भी इसका प्रयोग कभी कभी देखने को मिल जाता है. अवेल का अर्थ है, सीमा रहित, अ समयिक. सीमा या समय को वेला कहते हैं.इसी से अवेल बना है. जो सीमाहीन हो, समय पर न हो.अमुख जी अकसर हमारे घर वेला अवेला आ ही टपकते हैं.
अवेल, शब्द अंगरेज़ी में भी है. वहां इसका अर्थ उपलब्ध होने, काम आने,उपयोगी होने से है .दिलचस्प बात यह है कि अंगरेज़ी में, अवेल का अर्थ संस्कृत के अवेल के ठीक विपरीत है. जो समय पर प्राप्त न हो वह ‘अवेल”{संस्कृत} है.लेकिन अंगरेज़ी में अवेल का अर्थ उपलब्ध होने से है, पर दोनों भाषाओं में अवेल के इस अर्थ वैपरीत्य को आकस्मिक ही कहा जाएगा.
अस्पताल
चिकित्सालय या दवाखाने को अस्पताल भी कहा जाता है. ज़ाहिर है”चिकित्सा”से चिकित्सालय और दवा से दवाखाना बना है लेकिन अस्पताल ?
अंगरेज़ी में अस्पताल को “होस्पिटल” कहते हैं. अस्पताल इसी होस्पिटल का बिगड़ा हुआ उच्चारण है. होस्पिटल का ह ह्टा दें तो आस्पिटल हो जएगा.और आस्पिटल से अस्पताल बनने में देर नहीं लगी होगी.
हिंदी ज़बान में मुख सुख के लिए अंगरेज़ी के अनेकानेक श्ब्दों का उच्चारण बदल गया है.और ये शब्द अब हिंदी भाषा में समाहित हो गए हैं अलुमिनियम, अरदली, अलमारी, बक्सा अफसर, अमरीका,अलबम, लालटेन, आदि सैकड़ों शब्द अंगरेज़ी शब्दों के ही बदले हुए रूप हैं.
अधर/अवर
इन दोनो ही शब्दों का अर्थ एक ही है, नीचा या नीचे का. लेकिन संदर्भानुसार इन का प्रयोग अलग अलग होता है.जहां तक अधर का प्र्श्न है नीचे का होठ अधर कहलाता है बल्कि अब तो दोनों होटो के लिए अधिकतर अधर शब्द का ही प्रयोग कि या जाता है. अधर का अर्थ “बीच में” भी होता है, जैसे अधर में.झूलना.
अवर नीचा दरजा, नीची कोटि है यह “बाद वाला” के अर्थ में प्रयोग होता है. बहरहाल अधर और अवर दोनो शब्दों में भाव नीचे का ही है.
अंगरेज़ी में “अंडर” अपने उच्चारण और अर्थ दोनों में ही अवर और अधर के काफी नज़दीक है लेकिन यह कहना कठिन है कि अंगरेज़ी के अंडर की व्युत्पत्ति अवर या अधर से हुई होगी.
लश्कर
मध्यप्रदेश में ग्वालियर नगर का एक हिस्सा लश्कर भी है.यह कभी ग्वालियर महाराजा की सेना का केंद्र था.फारसी भाशा नें लश्कर का अर्थ सेना से है.जहाज़ पर काम करने वाले भी लश्करी कहलाते थे. ईस्ट इंडिया कम्पनी ने आसाम और बंगाल से ,काम करने के लिए, त्माम लश्करों को नियुक्त किया था. शायद इसीलिए यह लश्कर शब्द अंगरेज़ी भाषा में भी गुसपैठ कर गया.
कम्पू/कैम्प
लश्कर ग्वालियर का एक हिस्सा है और लश्कर का एक हिस्सा कम्पू है. यह कम्पू और कुछ नहीं अंगरेज़ी का “कैम्प”है. यहां सेना की टुकड़ियां कभी कैम्प करतीं थीं. अंगरेज़ी में सेना शिवरों या पड़ावों को कैम्प कहा गया है. लश्कर में न तो अब कोई सेना है और न हीं उसके कैम्प करने का कोई प्रश्न है. फिर भी ग्वालियर में “लश्कर”और “कम्पू”आज भी विद्यमान हैं. हिंदी भाषा में भी अंगरेज़ी के कैम्प ने अपनी जगह बना ली है. यह शब्द हिंदी के किसी भी शब्दकोश में आपको मिल जाएगा.
क़द
किसी भी व्यक्ति की शक्सियत में हम अन्य बातों के अतिरिक्त उसके क़द की भी क़दर करते हैं. क़द, अर्थात, क़द काठी,देह की ऊंचाई और गठन. लेकिन यह क़द शब्द वस्तुतः फारसी भाषा का है, जिसे हम डील डौल कह सकते हैं. डील डौल फरसी में क़द ओ क़यामत है. आदमी के बराबर की ऊंचाई क़द्दे आज़म है.
अब हिंदी ने नुक़्ता लगाना छोड़ दिया है. सो यहां यहां क़द कद बा गया है. लेकिन संस्कृत में कद एक उपसर्ग केरूप में प्रयुक्त होता है. कदाचार जैसे शब्द इसी कद उपसर्ग से बनाए गए हैं. कद का अर्थ बुरे से है. यह क़द की ऊंचाई कभी प्राप्त नहीं कर सकता.
क़दर
किसी के भी व्यक्तित्व में हम अन्य बातों के अतिरिक्त अतिरिक्त उसके क़द की भी क़दर करते हैं. क़दर आदर और सत्कार है, सम्मान और प्रतिष्ठा है गुणों की परख क़द्रदानी है.
गुण ग्राहक क़द्रदां होते हैं वैसे तो अरबी भाषा के इस शब्द {क़दर} का एक अन्य अर्थ मात्राया अनुमान {किस क़दर?} भी है. कभी कभी भाग्य या तक़दीर के लिए भी क़दर शब्द इस्तेमाल किया जाता है.
हमारी हिंदुस्तानी ज़बान ने क़दर शब्द इस क़दर अपना लिया है कि हम लगभग भूल ही चुके हैं कीसका मूल अरबी भाषा में है. लेकिन अधिकतर हम इसे क़दर न कहकर क़द्र लिखते और कहते है.
क़दर से मिलता जुलता शब्द संस्कृत में कदर {नुक़्ता विहीन} है लेकिन इस कदर का अर्थ एक्दम अलग है. यह आरा अंकुश या छेना के अर्थ में प्रयुक्त होता है.
अफसरी
फारसी भाषा में अफसर प्र्धान अधिकारी को कहते हैं. जिसके पास विशेष अधिकार हो वह अफसर है. अंगरेज़ी में यही अफसर आफिसर कहलाता है.क्या ऑफिसर ही बिगड़ते बिगड़ते अफसर बन गया? हिंदी का अफसर तो कम से कम ऑफिसर का ही बिगड़ा रूप लगता है. अंगरेज़ी में ऑफिसर, ऑफिस से बना है. जिस के हवाले ऑफिस हो,वही ऑफिसर है. हिंदी भाषा ने अफसर के रूप में ऑफिसर तो अपना लिया, लेकिन ऑफिस?
नहीं,यह हिंदी भषा के लिए अभी भी अंगरेज़ी का ही शब्द है. हिंदी में ऑफिस के लिए कार्यालय शब्द ही प्रयुक्त होता है.
अफसर के पद पर बने रहने से व्यक्ति के व्यवहार मे जो हेकड़ी आ जाती है,उसे हिंदी में अफसरी कहते हैं. अफसरी ठेठ हिंदी का शब्द है. अंगरेज़ी में अफसरी अथवा ऑफिसरी नाम से कोई शब्द है ही नहीं. वहां के अफसर शायद हेकड़ीबाज़ न होते हों.
अंतरिम
आजकल राजनीति और समाज वार्ता में प्रायः “अंतरिम” शब्द का प्रयोग होता है.”अंतरिम” सरकार, “अंतरिम”व्यवस्था, “अंतरिम” निर्णय, इत्यादि. वह जो अंतिम न हो, जिसमें परिवर्तन की गुंजाइश न हो, अंतरिम है. इसे कामचलाऊ भी कह सकते हैं.
अंगरेज़ी शब्द ”इंटैरिम” {आई एन टी ई आर एम} का भी लगभग यही अर्थ है. कोई भी सावधान पाठक “अंतरिम”और “इंटैरिम” में ध्वनि साम्य देख सकता है.हो सकता है अंतरिम अंगरेज़ी “इंटेरिम”का ही हिंदीकरण हो. अंतरिम अंतिम न होकर अंतिम से पूर्व की अस्थाई स्थिति की ओर संकेत है.
अफलातून
यूनानी दार्शनिक प्लेटो को हिंदी भाषी अफलातून कहते हैं.प्लेटो बहुत विद्वान था. कोई जब अपनी झूठी विद्वता झाड़ने लगता है तो व्यंग्यात्मक रूप से कहा जाता है, बड़ा अपने को अफलातून बनता है. पर प्रश्न यह है कि प्लेटो को हम अफलातून कहते ही क्यों हैं? प्लेटो से अफलातून बनने की यात्रा बड़ी मज़ेदार है. हम हिंदुस्तानी प्लेटो के उच्चारण को मृदु बनाने के लिए “प्लातून” कहने लगे और प्लातून कहते कहते वह फ्लातून हो गया तथा फ्लातून से उसे फिर “अफलातून” बनने में देर नहीं लगी. अब तो अफलातून इतना प्रचलित हो गया है कि हम प्लेटो को भले ही भूल जाएं अफलातून नहीं भूल सकते. वह हमारी भाषा में रच बस गया है.
कत्थक
कथक उत्तर भारत में नृत्य का एक प्रकार है. मुख सुख के लिए कभी इसे “कत्थक”भी कहा जाता है.लेकिन कत्थक या कथक का कत्त्था, जिसे मसाले के तौर पर पान में लगाया जाता है, से कुच लेना देना नहीं है. कथक की व्युत्पत्ति संभवतः “कथा”से हुई है.
संस्कृत में कथा से अर्थ “कथा कहने वाले” से होता है और कथक नृत्य में भी कोई न कोई कथा होती है. जिसे वह कहता है.गाने बजाने वाली एक जाति का नाम भी कत्थक है. क्त्थक नृत्य क्त्थकों में खूब प्रचलित है. कथा बांचने का पेशा करने वालों को कथक्कड़ या कथक भी कहते हैं. यहां यह भी ध्यातव्य है कि संस्कृत में एक शब्द है, “कत्थन”. इसका अर्थ डींग मारना या डींग मारने वाले से होता है.
कुशल
कुशल से मतलब चतुर, होशियार,कार्य विशेष में निपुण से है. हर व्यक्ति हर काम में निपुण नहीं होता पर किसी न किसी काम में वह इतना दक्ष होता है कि उसे करने में उसे “कुशल”कहा जाता है.
प्राचीन काल में ऋषि आश्रमों में यज्ञ और पूजन आदि धर्मकृत्यों के लिए एक विशेष घास की आवश्यकता होती थी जिसे कुश कहा गया है यह गास कड़ी और नुकीली पत्तियों वाली होती है और इसलिए इसे एकत्रित करने में बड़ी दक्षता की दरकार होती है. आश्रमों में निवास करने वाले बालक इसे इकट्ठा करते थे.जो बालक “कुश”घास को इकट्ठा कर लेने की दक्षता प्राप्त कर लेता था, उसी को कुशल कहा जाता था. पर बाद में किसी भी काम में दक्षता प्राप्त करना कुशलता प्राप्त करना हो गया.
खाट
चारपाई को खाट कहते हैं. खट का स्त्रीलिंग खटिया है. वैसे है तो “खाट”भी स्त्रीलिंग, पर खटिया छोटी चारपाई होती है. जिस टिकटी पर अर्थी ले जाई जाती है, उसे भी खाट कहा गया है.
अंगरेज़ी में खाट से मिलता जुलता शब्द “कॉट”{सी ओ टी} है. इसका अर्थ भी खटिया या चारपाई से ही है. दोनों में इतना ज़बर्दस्त उच्चारण साम्य है कि लगता है दोनों की व्युत्पत्ति शायद किसी एक ही शब्द से हुई हो. वैसे प्राकृत भाषा में भी खटिया को खाट ही कहते हैं.हो सकता है प्राकृत का खाट ही अंगरेज़ी में कॉट बना गया हो.
“ज़ेंन” दर्शन
चीन और जापान में प्रचलित एक दार्शनिक संप्रदाय है जिसे ज़ेन दर्शन कहा जाता है. इस दार्शनिक पद्धति का संबंध भारत के जैन दर्शन से बिल्कुल नहीं है. इसकी निकटता भारतीय योग पद्धति से है. अष्टांग योग का एक अंग “ध्यान”भी है यही ध्यान जापान पहुंचते पहुंचते “ज़्यान” हो गया. और यही ज़्यान बाद में पिट पिटाकर “ज़ेन”हो गया
योग
योग का अर्थ जुड़ने से है. कर्म से जुड़कर कर्मयोग,भक्ति से जुड़कर भक्तियोग, ज्ञान से जुड़कर ज्ञानयोग बनता है इसी तरह ध्यान से जुड़कर ध्यानयोग और अनासक्ति से जुड़कर अनासक्तियोग विकसित हुआ है. द्र्शन में ही नहीं गणित में भी “योग”जुड़ने के अर्थ में ही प्रयुक्त हुआ है.
अंगरेज़ी में आजकल योग को योगा कहने लगे हैं लेकिन इस योगा का अर्थ जुड़ने/जोड़ने से नहीं है. ज्ड़ने/जोड़ने के लिए अंगरेज़ी में एक दूसरा शब्द है, “योक”
{वाई ओ के ई}.यों तो “योक” के अनेक अर्थ हैं,लेकिन हैं,लेकिनिसका भी मुख्य आशय जोड़ने या मिलकर काम करने से है.जो वस्तु/उपकरण/औज़ार दो चीज़ों को जोड़ने में सहायक होता है, वह “योक”कहलाता है. और तो और अंगरेज़ी में पति पत्नी तक को “योक मेट”{जुड़े हुए साथी}कहा गया है.
जब भी हम किसी पशु को गाडी में जोतते हैं तो वस्तुतः हम उसे किसी न किसी तरह गाड़ी से जोड़ रहे होते हैं.अंगरेज़ी में इसे भी “योक”ही कहा जाता है. लगता है”योग”और”योक” दोनो ही शब्दों का मूल अवश्य ही समान होना चाहिए.
बेह्तर
बेह्तर शब्द यों तो फारसी का है लेकिन हिंदी/उर्दू में भी इसका इस्तेमाल धड़ल्ले से होता है.हिंदी में यह इतना रच बस गया है कि लगता ही नहीं,यह परदेसी है.
फार्सी शब्द “बेह”का अर्थ है,अच्छा,भला. “बेह्तर”बहुत अच्छा है और”बहतरीन”बेहद अच्छा है. अंगरेज़ी में इसी क्र्म के लिए हम “गुड’”बैटर”और “बैस्ट”का प्रयोग करते हैं. गुड और बैस्ट के बीच में “बैटर” है. वह फारसी का का”बेहतर”ही तो है! नहीं?
द्वार
संस्कृत में दरवाज़े को द्वार कहते हैं.हिंदी में भी हम द्वार शब्द ही इस्तेमाल करते हैं. लेकिन प्राकृत में”द्वार”को”दार”कहा गया है. लगता है प्राकृत के के”दार”से ही हिंदी और संस्कृत में”द्वार”शब्द बना है.
अंगरेज़ी मेंद्वार के लिए “डोर”{डी ओ ओ आर}शब्द है जो प्राकृत के “दार”से बिल्कुल सटा हुआ है. क्या यह समानता आकस्मिक है?
लाद/लद्द
भार लादने या लाद देने को अंगरेज़ी में “लोड”कहते हैं. लोड लदान भी है और लादना भी है. लोड और लाद की यह समानता भी आकस्मिक नहीं हो सकती प्राकृत में जिसे लद्द कहा गया है,वही अंगरेज़ी में सम्भवतः”लोड’ हो गया है.
बटाटा/टमाटर
आलू के लिए गुजराती भाषा में शब्द “बटाटा”प्रयोग में आता है.यही बटाटा का दोहरा “टा”अंगरेज़ी के “पटेटो”{ पी ओ टी ए टी ओ}में भी मिलता है. अद्भुत साम्य है. टमाटर को अंगरेज़ी में “टोमैटो”{टी ओ एम ए टी ओ} कहते हैं यह भी ध्यान देने लायक बात है
मण्डप
म्ण्डप से भला कौन परचित नहीं है. विवाहोत्सव तथा अन्य समारोह प्रायः मण्डप के नीचे ही होते हैं. मण्डप ऊपर से छाया हुआ पर चारों ओर से खुला कई लोंगों के साथ साथ बैठने का सुसज्जित स्थान है.
एक पेय होता है, मण्ड.हिंदी में इसे में इसे मांड़ भी कहा गया है. यह पकाए हुए चावलों से बना पेय है.एक समय में ऋषि मुनि अपने आश्रमों में खुले लेकिन ऊपर से छाए हुए स्थान पर बैठकर इसका सेवन किया करते थे. जहां माड़ पिया जाता था उस स्थान को”मण्डप” कहते थे.
मण्डप अब मंड पीने का स्थान नहीं रह गया है.है.उसने अर्थ विस्तार पा लिया है अब उत्सव और समारोह मंडप भी आयोजित किए जाते हैं. कबीर ने तो पूरे ब्रह्मांड को ही एक मंडप की तरह मानकर कहा है, सकल मॉड में रमि रह्या, साहिब कहिए सोय!
खग
शब्द “खग”के कई अर्थ हैं. पक्षी, सूर्य, ग्रह, वायु,बादल,चन्द्रमा,देवता, आदि. वैसे मुख्यतः खग का अर्थ परिंदे से ही है. खग, जैसाकि स्पष्ट ही है, “ख” और “ग” अक्षरों से मिलकर बना है, लेकिन ये दोनो ही अक्षर बड़े सार्थक हैं. ख का अर्थ आकाश है जबकि ग गमन करनेवाला है. इसप्रकार ख्ग का अर्थ हुआ, जो आकाश में गमन करे. परिंदे तो आकाश में उड़ते ही हैं, सूर्य,ग्रह,वायु,बादल,चन्द्रमा,वाण आदि, भी तो आकाश में ही विचरने वाले हैं. अतः सभी खग कहलाए गए.
शराब
जिसतरह खग दो अक्षरों से मिलकर बना है,शराब शब्द भी दो अन्य शब्दों से मिलकर बना है. ये शब्द हैं, शर और आब. शर{या शर्र} अरबी शब्द है. इसका अर्थ है,उपद्रव या फसाद. फारसी में पानी को आब कहते हैं. शराब इस प्रकार वह पानी है जिसे पीकर लोग झगड़े फसाद पर उतर आएं.
आब
हिंदी और संस्कृत में पानी के लिए अनेकानेक शब्द हैं. जल, वारि,सलिल,नीर,पानी,आदि. किंतु संकृत में पानी के लिए एक शब्द “आप” भी है. फारसी में इसे आब कहते हैं.कैसा संयोग और साम्य है. लगता है फारस की अपनी यात्रा में”आप” ही बिगड़ते बिगड़ते आब हो गया होगा.
कायस्थ
हिंदू जीवन पद्धति नें वर्ण व्यवस्था के अंतर्गत चार वर्ण बताए गए है.ये हैं, ब्राह्मण, क्षत्रीय वैश्य और शूद्र. कहा जाता है कि विश्व रचयिता के सिर से ब्राह्मण, बाहुओं से क्षत्रीय, उदर से वैश्य, और पैरों से शूद्र उत्पन्न हुए. पूछा जा सकता है, और कायस्थ? उत्तर है कि जो समस्त काया में स्थित है वह कायस्थ है. कहने का मतलब यह है कि कायस्थ किसी एक प्रकार के कार्य का विशेषज्ञ नहीं है. वह सभी कार्यों में “कर्यस्थ”है. तभी तो कायस्थ है.
हड़ताल
आज के राजनैतिक माहौल में विरोध की एक प्रचलित पद्धति के रूप में”हड़ताल”से हर कोई परचित है. हड़ताल में दूकानों में ताले लगाकर खरीद फरोक्त के काम काज आदि, बंद कर दिए जाते हैं.
हड़ताल शब्द मूलतः”हट्ताल”है और यह दो शब्दों से मिलकर बना है, हट्ट और ताल. हट्ट/हाट बाज़ार को कहते हैं. जब बाज़ार में ताला लगा दिया जाए तो यह “हटताल” या “हड़ताल” हो गया.
क्रेमेल{ऊँट}
संस्कृत में ऊँट को क्रेमेल कहते हैं. ऊँट अपने न केवल विचित्र रंगरूप से बल्कि रेगिस्तान में अपनी उपयोगिता के लिए भी जाना जाता है जिस् तरह इसका रंगरूप विचित्र है लम्बी गरदन लम्बी टाँगें, पीठ पर कूबड़ उसी तरह संस्कृत में इसका नाम भी विचित्र ही कहा जा सकता है, क्रेमेल. लेकिन आश्चर्य है कि अंगरेज़ी में भी तो इसे”कैमेल”{ सी ए एम ई एल } ही कहते हैं. बस संस्कृत के ”क्रे” से ”र’ हटा दीजिए, हो गया, “केमल”! क्रेमल से कैमल का सफर कितना आसान है!
सुत {पुत्र}
कौन होगा जो अपने पुत्र से प्रेम न करता हो ? पुत्र प्रेम से अंधे होकर संसार में न जाने कितने अत्याचार हुए हैं.
पुत्र के लिए एक शब्द, सुत, भी है. पता नहीं सुत शब्द कैसे बना? शायद इसलिए कि सुत का अर्थ उत्पन्न करना भी है. हम अक्सर बच्चों को सोनू कहकर भी पुकारते हैं. सही शब्द है, सूनुः. संस्कृत में सूनः का अर्थ है, बेटा या बच्चा. क्या यह सम्भव है कि संस्कृत का सुत या सूनुः अंग्रेज़ी का “सन” (एस ओ एन ) हो गया हो? सूनुः से मात्राओं का आभूषण यदि हटा दिया जाए तो यह सन हो जाएगा. क्या ऐसी कुछ सम्भावना हो सकती है?
पत्र /पक्षी
पतंग, परिंदा, पंख, पवन आदि शब्द ‘प’ से आरम्भ होते हैं. संस्कृत में ‘प’ वर्ण का अर्थ ही पत्ता या वायु से होता है. ‘पत’ वह मूल क्रिया है जो संस्कृत में ‘उड़ने’ के भाव को दर्शाती है. ‘पत्र’ शब्द पत से ही बना है. इसका अर्थ है, पत्ती. पक्षी के पंख के लिए भी पत्र ही इस्तेमाल किया जाता है. इसीप्रकार ‘वायु’ के लिए जो शब्द ‘पवन’ है वह भी ‘प’ से ही बना है. भारत की अनेक भाषाओं में कनकौए के लिए ‘पतंग’ शब्द का प्रयोग किया जाता है, यह भी ‘प’ से ही निकला है. उड़ने वाले कीट के लिए भी ‘पतंगा’ शब्द है. ‘पत’ से ही ‘पताका’ भी आया है. द्रविण और फारसी भाषाओं में ‘त’ के स्थान पर ‘र’ का उच्चारण होता है. शायद इसी वजह से फारसी में पक्षी के लिए परिंदा और पंख के लिए ‘पर’ जैसे शब्दों की रचना हुई है. परवाज़, परवाना, परवेज़ जैसे लव्ज़ भी ‘पर’ से ही बने हैं. स्वयं “पर” संस्कृत के ‘पत’ का ही रूपांतरण है.
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