संपादकीय / रचना समय - मार्च 2016 / कहानी विशेषांक 2

SHARE:

  यह अंक ‘रचना समय’ का यह अंक कहानी विशेषांक के रूप में प्रस्तुत है। इस विशेषांक की प्रस्तुति के पीछे समकालीन कथा-लेखन के वर्तमान स्वरूप क...

image

 

यह अंक
‘रचना समय’ का यह अंक कहानी विशेषांक के रूप में प्रस्तुत है।
इस विशेषांक की प्रस्तुति के पीछे समकालीन कथा-लेखन के वर्तमान स्वरूप का जायज़ा लेने का सोच था। वह किस दशा-दिशा की ओर अग्रसर है। उसमें यथार्थवादी लेखन के खुरदुरे यथार्थ को विभिन्न गद्य-विधाओं में व्यंजित करने की शक्ति-सामर्थ्य शेष है जो हमारे जातीय गद्य लेखन की ठोस परम्परा की पहचान रही है। हम समय को किस नज़रिये से देख रहे हैं- रोमानी नज़र से या अपनी जातीय लेखन की पैनी नज़र से आगे जाकर दिख रहे यथार्थ के पीछे छिपे सत्य को रूपायित कर देने वाली दृष्टि से। आज के कथा-लेखन के समक्ष एक बड़ी चुनौती इस तथ्य की है कि प्रस्तुत परम्परा में हमारा रचनात्मक योग क्या और कितना है? कहीं हम पीछे तो नहीं जा रहे या क़दमताल की मुद्रा में तो नहीं- इन्हीं सारे मुद्दों के मद्देनज़र इस विशेषांक की योजना बनी थी और हमारे मित्र युवा रचनाकार राकेश बिहारी ने इस दिशा में अतिथि सम्पादक के रूप में जो प्रस्तुत किया है- इसकी जाँच-परख तो पाठकों-लेखकों-आलोचकों की है। हमारा कार्य यहीं तक रहा, अब इन विद्वानों का काम शुरू होता है। बहरहाल, पृष्ठों की संख्या पूर्व निधार्रित थी लेकिन यह सीमा टूट गई तो पठनीयता को ध्यान में रखते हुए कहानी विशेषांक को हमने दो भागों में विभक्त किया है। उम्मीद ही नहीं, विश्वास है, हमारी यह प्रस्तुति आप सभी रचनाकारों- पाठकों को पसंद आएगी। हम तो इसे ताज़ भोपाली की नज़र से देख रहे हैंः

जितना खिलता है उतना खुलता है
यह सरापा गुलाब जैसा है।


‘रचना समय’ का यह विशेषांक उन लेखकों के नाम जिन्होंने अपने सामाजिक सरोकारों से लैस होकर हमें सामाजिक चेतना से सतत् सम्पन्न किया।
-हरि भटनागर

--

 

संपादकीय

समाज और कहानी के लोकतंत्रीकरण की गवाहियाँ

कहानियाँ अपने समय से संवाद करती हुईं सभ्यता की समीक्षा का इतिहास दर्ज करती हैं। कहानी और सभ्यता की समीक्षा की चर्चा के क्रम में कहानी की विकास यात्रा पर बात करना स्वाभाविक है। एक रचनात्मक विधा के रूप में कहानी का विकास कहानियों के जनतंत्रीकरण का इतिहास है। मैं जब भी कहानी के जनतंत्रीकरण की बात सोचता हूँ, मुझे हमेशा दो कविताओं की पंक्तियाँ याद आती हैं। एक मैथिलीशरण गुप्त की- ‘माँ कह एक कहानी, राजा था या रानी?’ और दूसरी नंदलाल पाठक की जिसे जगजीत सिंह की आवाज़ में खूब प्रसिद्धि मिली- ‘माँ सुनाओ मुझे वह कहानी, जिसमें राजा न हो न हो रानी। ‘राजा था या रानी’ से ‘राजा न हो न हो रानी’ तक का यह सफर सभ्यता, समाज और कहानी तीनों के लोकतांत्रीकरण का गवाह है। यहाँ राजा-रानी को उसके स्थूल अर्थों तक ही सीमित नहीं किया जाना चाहिए। राजा-रानी के न जाने कितने प्रारूप और संस्करण देश और दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरह से मौजूद रहे हैं। कहानी के विकास की यात्रा राजा-रानी की उन तमाम बहुपरतीय और विविधरूपीय अवधारणाओं से मुक्ति का अनवरत इतिहास है। कहानी की इस विकास यात्रा में सामाजिक संरचना में होने वाली टूट-फूट और विकासोन्मुख नवनिर्माण के साथ एक विधा के रूप में कहानी के अंतःपुर में घटित हो रहे रूप और कथ्य के बदलाव की अनुगूंजों को भी रेखांकित किया जा सकता है। रचना समय का यह विशेष आयोजन हिन्दी कहानी की इसी विकास यात्रा के अद्यतन पड़ाव को रेखांकित करने का एक विनम्र प्रयास या उपक्रम है।

पिछले दस-पंद्रह वर्षों में कहानी को विधागत केन्द्रीयता की स्थिति-सी प्राप्त हुई है। इस दौरान मुख्य धारा की लगभग सभी महत्वपूर्ण पत्रिकाओं ने अलग-अलग विशेषांकों के माध्यम से न सिर्फ कहानी की विधागत केन्द्रीयता को रेखांकित किया है बल्कि इस बीच कहानीकारों की एक नई पीढ़ी जिसे बहुधा ‘युवा पीढ़ी’ कहा गया और मैं जिसे ‘भूमंडलोत्तर कथा पीढ़ी’ कहता हूँ की स्थापना को भी स्वीकृति दी है। इस दौरान प्रकाशित हुये विभिन्न पत्रिकाओं के कहानी केन्दि्रत विशेषांक अमूमन पीढ़ी, विमर्श या विषय विशेष पर केन्दि्रत रहे हैं। पीढ़ी, विमर्श या विषय की चर्चा जरूरी है, लेकिन सिर्फ इन्हीं को केंद्र में रख कर विचार करने की प्रविधि की एक बड़ी सीमा यह होती है कि रचनात्मक विधा के तौर पर किसी कला पर समग्रता में विचार नहीं हो पाता है। इसलिए आज जब एक साथ चार से पाँच पीढ़ियाँ कथा-लेखन के क्षेत्र में अपनी सक्रिय भागीदारियाँ निभा रही हैं, समय, समाज और कहानी के अंतर्संबंधों को समझने के लिए इसे पीढ़ी, विमर्श और विषय विशेष के त्रिभुज से बाहर निकाल कर हर पीढ़ी और हर तरह की कहानियों पर एक साथ और समग्रता में बात किए जाने की जरूरत है। इस विशेषांक के समायोजन-प्रकाशन की योजना के मूल में यही अवधारणा थी।

गोकि नई कहानी आंदोलन के पूर्व प्रेमचंद और जैनेन्द्र के रूप में कहानी की दो अलग-अलग प्रवृत्तियों और आस्वादमूलकताओं को पाठकीय स्वीकृति मिल चुकी थी, लेकिन एक संगठित आंदोलन के रूप में नई कहानी हिन्दी कहानी का पहला सुचिन्तित आंदोलन है, जिसके अग्रणी कथाकारों ने न सिर्फ अपनी कहानियों को पूर्व की कहानियों से अलग कर के रेखांकित करने का प्रयास किया बल्कि अपनी कहानियों के लिए आलोचना की अलग कसौटियों की मांग भी की और खुद कथालोचनाएं भी लिखीं। बाद में जनवादी कथाकारों ने भी अपनी कहानियों को समझने के लिए एक नई समीक्षा-दृष्टि और सौन्दर्यशास्त्र की आवश्यकता पर बल दिया। उनके अनुसार ‘नई कहानी’ और ‘अकहानी’ वाली दृष्टि उनकी कहानियों को खोलने के लिए अपर्याप्त थी। आज जब सूचना और सम्प्रेषण की क्रान्ति ने समय और समाज को नए सिरे से बदल डाला है, आज के कहानीकार भी कथालोचना के नए टूल्स विकसित किए जाने की जरूरत पर बात कर रहे हैं। कहानी के बदलते स्वरूप और आलोचना के नए उपकरण की मांग के बीच कभी तेज तो कभी मद्घम चाल में रुक-रुक कर चलती कथालोचना अपनी शक्ति और सीमाओं के साथ कहानियों को खोलने-खँगालने का काम कर रही है। कुछ कथालोचकों ने कहानियों के अंबार में से सचमुच की अच्छी कहानियों को चुन-परख और खोज-बीन कर रेखांकित करने की बजाय कहानी विधा के लड़खड़ा कर गिर जाने की स्वयंभू घोषणाएँ तक कर डाली है। इस तरह बड़ी चतुराई से रचना के संकट को आलोचना में और आलोचना के संकट को रचना में खोजने का यह आसान-सा खेल लगातार चल रहा है। इस बीच बहुत ही दिलचस्प तरीके से पीढ़ी, परंपरा और कहानी की समझ से ‘युत कुछ ऐसे बाज़ार-पोषित समीक्षक भी खर-पतवार की तरह उग आए हैं जो पाठकों की मांग और अभिरुचि की आड़ में गंभीर, बोधगम्य और ‘पल्प’ के बीच की दूरी को न सिर्फ पाट देना चाहते हैं बल्कि ‘पल्प’ को ही सर्वाधिक अनिवार्य और सशक्त की तरह रेखांकित करने की कोशिश कर रहे हैं। यदि बाज़ार की शब्दावली में भी बात करें तो उन्हें यह नहीं मालूम कि ‘सेल्स’ और ‘मार्केटिंग’ के बीच एक बुनियादी और दृष्टिगत अंतर होता है। ‘सेल्स’ जहां उपभोक्ताओं की माँग के अनुरूप अपने उत्पादों की बिक्री को अपना लक्ष्य मानता है, वहीं ‘मार्केटिंग’ का काम अपने उत्पाद के लिए नए उपभोक्ता समूह का निर्माण भी होता है। ‘सेल्स’ को ‘मार्केटिंग’ में परिसीमित करना व्यावसायिक दृष्टि से भी तंगनिगाही का ही सूचक है। साहित्य या साहित्यिक विधा का काम तथाकथित पाठकीय भूख के हिसाब से खुद को ढालना नहीं, बल्कि अपनी बृहत्तर मानवीय दृष्टि और बड़े रचनात्मक मूल्यों और स्वप्नों के अनुरूप पाठकीय संस्कारों का निर्माण करना है। कहने की जरूरत नहीं कि यह तबतक संभव नहीं, जबतक लेखक अभिव्यक्ति से कहीं आगे सम्प्रेषण को अपना लक्ष्य माने। निश्चित तौर पर बोधगम्य होना उसकी पहली शर्त है। बोधगम्य रचनात्मकता की भूमिका इस अर्थ में दुहरी होती है कि जटिल अभिव्यक्ति की ‘डिकोडिंग’ के लिए भी पाठकों को तैयार करने का काम इसे ही करना होता है। यह वही विंदु है जहाँ, आलोचना भी रचना के रूप में उपस्थित होती है। मतलब यह कि कहानी को लेकर लेखक, पाठक, संपादक और आलोचकों की अलग-अलग कसौटियाँ हो सकती हैं, होती हैं। लेखक से किसी खास तरह की कहानियों की मांग हो या आलोचक से नए टूल्स आविष्कृत किए जाने की माँग या फिर पाठकों से उनके विकसित होने की अपेक्षाएँ ये सब उन्हीं अलग-अलग कसौटियों के द्वन्द्वों का परिणाम हैं। अच्छी कहानी किसे कहें, या कहानी को विश्लेषित करने के नए टूल्स विकसित किए जाएँ के संश्लिष्ट सूत्रों को आज खोलने की जरूरत है। इसी जरूरत को महसूस करते हुए प्रस्तुत अंक में लेखक, पाठक, आलोचक और संपादक की अलग-अलग कसौटियों पर विस्तार से बात करने की कोशिश की गई है। कथा-कसौटी पर इस बहुकोणीय विमर्श को और विस्तार देने की जरूरत है। शायद इस तरह कहानियों का एक मुकम्मल आलोचना-शास्त्र भी विकसित हो पाये।

अपनी भयावहता और खूबसूरती दोनों ही अर्थों में अभूतपूर्व होने के कारण पिछले दो दशकों के बीच फैले समय का भूगोल खासा जटिल है। तेज़ रफ्तार चलते समय के विविधवर्णी और बहुपरतीय यथार्थ और उसकी विडंबनाओं को दर्ज करती आज की कहानियों से कहानी विधा लगातार समृद्ध हो रही है। लेकिन कुछ अपवादों को छोड़ कर, कहानी में बदलते समय की इस धमक को समवेत रूप में आलोचना ठीक-ठीक पकड़ने मे सफल रही है यह उसी आश्वस्ति के साथ नहीं कहा जा सकता। उदारीकरण के पहले तक का समय जहां एक खास तरह के मूल्यों और मानदंडों की स्थापना का समय था वहीं उसके बाद का कालखंड उन मूल्यों और मान्यताओं के अतिक्रमण और विखंडन का काल है। नए दौर के इस विखंडन और अतिक्रमण में बहुत तरह की पुनर्संरचना के बीज भी छिपे हैं जिसका सबसे बड़ा असर आज जाति, विवाह और परिवार की संस्था पर पड़ा है। अतिक्रमण और पुनर्गठन के इन्हीं द्वन्द्वों से टकराकर आलोचना के नए टूल्स विकसित होंगे। कई समर्थ कथाकार कथालोचना को कहानीकार का क्षेत्र बिलकुल ही नहीं मानते न हीं इस सूत्र को खोलना चाहते हैं कि आज की कहानियों को समझने के लिए कथालोचना के क्या प्रतिमान और उपकरण होने चाहिए। रचना और आलोचना के बीच ऐसी दूरी कविता के क्षेत्र में नहीं है। हमेशा से कवियों के द्वारा आलोचना लिखी जाती रही है और वह आज भी जारी है। क्या कथालोचना के क्षेत्र में व्याप्त सुदीर्घ सन्नाटे को तोड़ कर कहानी के नए प्रतिमान गढ़ने के लिए आज आलोचकों के साथ कहानीकारों को भी आगे नहीं आना चाहिए? आज इस प्रश्न पर भी गंभीरता से विचार किए जाने की जरूरत है।

इधर की कई कहानियों को पढ़ते हुये रूप और शिल्प के स्तर पर कहानी के ढांचे में बहुत बड़े बदलाव दृष्टिगोचर होते हैं। कहानी में कविता और कविता में कहानी की बात जैसे बहुत पीछे छूट गई है। अब तो कई बार कहानी, संस्मरण, रिपोर्ताज, खबर, सूचना, इतिहास, दर्शन आदि के बीच की लकीरें भी मिटती-टूटती दिखाई देने लगी हैं। आखिर यह क्या है- किस्सागोई की कोई नई प्रविधि या फिर कहानी की पकड़ से कथातत्व का छूटते जाना? आधुनिक समय के बहुकोणीय और जटिलतम यथार्थों के निरूपण का नया तरीका या फिर विधाओं की हदबंदी से मुक्ति की शुरुआत? प्रश्न यह भी उठता है कि क्या आज के जीवन की सूक्ष्म और बहुपरतीय संश्लिष्टताओं को किसी एक विधा के फ़ॉर्म में अभिव्यक्त करना मुश्किल या असंभव हुआ जा रहा है? ‘कहानीपन’ के ठाट को जिंदा रखने की जरूरतों के बीच इन सवालों से जूझना भी आज इतना ही जरूरी है। प्रस्तुत अंक के दूसरे खंड में दी गई अर्चना वर्मा की रचना ‘व्योम में वास है विचारों का’ को इसी बहस की भूमिका की पूर्वपीठिका के रूप में देखा जाना चाहिए।

तकनीकी आविष्कारों और सूचना-सम्प्रेषण की क्रान्ति के बीच बनी हुई कहानी के कागज पर उतरने की प्रक्रिया (रचना-प्रक्रिया नहीं) की एक अपनी दास्तान है। रचनात्मक लेखन के लिए जहां कुछ लोग सिर्फ और सिर्फ हाथ से लिखे जाने के ही आग्रही रहे हैं तो लेखकों का एक बड़ा समूह अब सीधे कंप्यूटर पर लिखने लगा है। रचनात्मक लेखन, खास कर कहानी-लेखन के संदर्भ में इन बदलावों की क्या भूमिका रही है या आगे इस क्षेत्र में और कैसी संभावनाओं के बीज छुपे हैं, इसे जानना एक दिलचस्प अनुभव हो सकता है, जिसे टटोलने की एक शुरुआती कोशिश भी हमने यहाँ की है।

हमारी कोशिश है कि इस अंक के बहाने समकालीन कथा-परिदृश्य का एक समग्र और बृहत्तर चेहरा आपके सामने रख सकें। चंद्रकिशोर जायसवाल जैसे सिद्धहस्त और वरिष्ठ कथाकार से लेकर ममता सिंह जैसे नए कथाकारों और रोहिणी अग्रवाल जैसी प्रतिष्ठित आलोचक से लेकर अमिय विंदु जैसे अल्पज्ञात आलोचक तक की समान रूप से महत्वपूर्ण उपस्थिति के बीच यदि आप यहाँ सभ्यता, समाज और कहानी के जनतंत्रीकरण की कुछ प्रामाणिक छवियों से रूबरू हो पायें, जिनकी चर्चा मैंने इस टिप्पणी की शुरुआत में की है, तो मैं अपने इस लघु प्रयास को सार्थक समझूँगा। पत्रिका के नियमित संपादक होने के नाते हरि भटनागर अपनी कहानी नहीं देना चाहते थे। लेकिन, मेरे विशेष आग्रह पर इस खास आयोजन में, बतौर कथाकार वे भी शामिल हैं। बहरहाल, जैसा भी बन पड़ा है, रचना-समय का यह विशेष अंक एक चैतन्य उत्तरदायित्व-बोध के साथ आपको सौंप रहा हूँ। आपकी बेबाक प्रतिक्रियाओं का इंतज़ार रहेगा। रचनात्मक सहयोग देने के लिए अंक में शामिल सभी लेखकों और भरोसे के साथ अंक के सम्पादन का अवसर देने के लिए अग्रज कथाकार हरि भटनागर और रचना समय के प्रति मैं हृदय से कृतज्ञ हूँ।

- राकेश बिहारी

 

--

इस अंक की रचनाएँ -

 

कहानी

संजीव / 08

जया जादवानी / 12

तेजेंद्र शर्मा / 19

तरुण भटनागर / 25

राकेश दुबे / 37

उपासना / 46

शेखर मल्लिक / 54

पंकज सुबीर / 66

मुकेश वर्मा / 78

प्रज्ञा / 82

सौमित्र / 91

ज़कीया जुबैरी / 95

 

बहसतलब

अर्चना वर्मा / 100

 

सफरनामा

मृदुला गर्ग / 111

सूरज प्रकाश / 115

प्रियदर्शन / 120

 

आलोचना

विनोद तिवारी / 123

प्रांजल धर / 140

नीरज खरे / 149

सुभाष चंद्र कुशवाहा / 156

टेकचंद / 166

चन्द्रकला त्रिपाठी / 171

 

(क्रमशः अगले पृष्ठों में जारी…)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: संपादकीय / रचना समय - मार्च 2016 / कहानी विशेषांक 2
संपादकीय / रचना समय - मार्च 2016 / कहानी विशेषांक 2
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgjN32yr8e6K7UGN7uI3LI_csyMfLXYmtC8gKCXPKC0U5xuA0j_37Ccvw3hqTjna-j0CV7ugKQXTj9WERSIqkUTDLQnRP1DmO0t_utOKoSgfwBYTUvMkT5b99SgoaabUpHUtcDE/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgjN32yr8e6K7UGN7uI3LI_csyMfLXYmtC8gKCXPKC0U5xuA0j_37Ccvw3hqTjna-j0CV7ugKQXTj9WERSIqkUTDLQnRP1DmO0t_utOKoSgfwBYTUvMkT5b99SgoaabUpHUtcDE/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2016/06/2016-2_18.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2016/06/2016-2_18.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content