दस ग़ज़लें १) उमंगों ने बाँधा कुछ ऐसा समाँ है कि रंगों में डूबा ये सारा जहाँ है जले होलिका में कपट क्लेश सारे महज मित्रता का ही आलम यहाँ है ...
दस ग़ज़लें
१)
उमंगों ने बाँधा कुछ ऐसा समाँ है
कि रंगों में डूबा ये सारा जहाँ है
जले होलिका में कपट क्लेश सारे
महज मित्रता का ही आलम यहाँ है
हुई एकजुट है, अमीरी गरीबी
नहीं फर्क का कोई नामोनिशाँ हैं
गले प्यार से मिल रहे राम-रहमत
न अब दूरी उनके दिलों-दरमियाँ है
सँवरकर रँगीले पलाशों का वन से
शहर को चला झूमता कारवाँ है
उमर से शिकायत भी होगी तो होगी
मगर आज के दिन तो हर दिल जवाँ है
गली गाँव में गेर, के हैं नज़ारे
तो शहरों को होली-मिलन पर गुमाँ है
यों फागुन ने हर मन के दागों को धोया
गुलाबी-गुलाबी, ज़मीं-आसमाँ है
विदेशों में भी ‘कल्पना’ खेल होली
प्रवासी समझते कि भारत यहाँ है
----------
२)
अगर कर्म पर जन का विश्वास होगा
हर आँगन में खुशियों भरा हास होगा।
बदल दें बसंती बयारों का रुख तो
चमन का हरिक मास, मधुमास होगा।
उमीदों के दीपक जलें जो हमेशा
तो रातों में भी दिन का आभास होगा।
बजे मातमी धुन, अभावों की जिस दर
वहाँ कैसे लक्ष्मी का आवास होगा?
अगर देश में ही, उगें रोटियाँ तो
किसी भी पिता को क्या वनवास होगा?
मिले जो सज़ा, आरियों को किए की
तो वन-वन विहँसता अमलतास होगा।
ग़ज़ल-गीत कैसे, न गाएगा जन-मन
अगर “कल्पना” स्वाद-रस खास होगा।
----------------------
३)
जब क़लम को थामती, मेरी ग़ज़ल है।
खूब कहना जानती, मेरी ग़ज़ल है।
पूर होता जब गले तक सब्र-सागर
तब किनारा लाँघती, मेरी ग़ज़ल है।
दीन-दुखियों, बेबसों का हाथ गहकर
हक़ में उनके बोलती मेरी ग़ज़ल है
अंधविश्वासों की परतों को परे कर
रूढ़ियों को रौंदती, मेरी ग़ज़ल है।
नफ़रतों की बाढ़ से बिफरी नदी पर
नेह का पुल बाँधती, मेरी ग़ज़ल है।
हौसले हारे जनों के हिय जगाकर
दुख के कंटक काटती, मेरी ग़ज़ल है।
देशद्रोही, ठग लुटेरों की हरिक नस
‘कल्पना’ पहचानती मेरी ग़ज़ल है।
--------
४)
सांध्य-सूरज की तरह, ढलने लगी है ज़िंदगी।
थाम वैसाखी, सफर करने लगी है ज़िंदगी।
हर कदम हर वक्त, जो रफ्तार के रथ पर चली
उम्र की इस शाम में, थमने लगी है ज़िंदगी।
फूल बन खिलती रही, बाली उमर के बाग में
शूल बनकर अब वही, चुभने लगी है ज़िंदगी।
जो ठहाकों से हिलाती थी दरो दीवार को
मूक हो सदियों से यों, लगने लगी है ज़िंदगी।
कल धधकती ज्वाल थी, अब शेष हैं चिंगारियाँ
धीरे-धीरे राख बन, बुझने लगी है ज़िंदगी।
ख्वाब बन आती रही, रातों को गहरी नींद में
लेकिन अब ख्वाबों से ही, मिटने लगी है ज़िंदगी।
जो अडिग चट्टान थी, टुकड़े हुई अब टूटकर
पास आती मौत से, डरने लगी है ज़िंदगी।
------------------
५)
जो बतियाते सिर्फ कलम से, अँधियारों में।
वो कब छपते खबरों में या, अखबारों में।
नमन उन्हें जो, धर आते भर नेह उजाला
चुपके से इक दीप, तिमिर के ओसारों में।
राह दिखाते कोहरे-बरखा में जुगनू भी
आब न होती जब नभ के चंदा तारों में।
छल-बल देर-सबेर विजित होंगे निर्बल से
लिप्त रहा करते जो कुत्सित व्यापारों में।
सधा हुआ ही राग बंधु! गाया जाएगा
सत्य-मंच पर गीतों में या अशयारों में।
चर्चित होंगे नाम विश्व में कभी ‘कल्पना’
जो रचते इतिहास घरों की दीवारों में।
-------------------
६)
मेरी प्यारी भोली बिटिया।
घर भर की हमजोली बिटिया।
चहक चमन की, महक सदन की
कोयलिया की बोली बिटिया।
पर्वों को जीवंत बनाती
आँगन सजा रँगोली बिटिया।
लँगड़ी, टप्पा, खो-खो, रस्सी
खेल-खेल की टोली बिटिया।
गली-मुहल्ले बाँटा करती
झर-झर हँसी-ठिठोली बिटिया।
देव-दैव्य से माँग दुआएँ
ले आती भर झोली बिटिया।
कड़ुवाहट का नाम न लेती
खट-मिट्ठी सी गोली बिटिया।
नाज़ ‘कल्पना’ हर उस घर को
जिस घर माँ! पा! बोली बिटिया।
---------------------
७)
ज़मीं से उठाकर फ़लक पर बिठाएँ।
अहम लक्ष्य हो, आज बेटी बचाएँ।
जहाँ घर-चमन में, चहकती है बेटी
बहा करतीं उस घर, महकती हवाएँ।
क़तल बेटियाँ कर, जनम से ही पहले
धरा को न खुद ही, रसातल दिखाएँ।
बहन-बेटी होती सदा पूजिता है
सपूतों को अपने, सबक यह सिखाएँ।
पढ़ाती जो सद्भाव का पाठ जग को
उसे बंधु! बेटे बराबर पढ़ाएँ।
न हो जननियों, अब सुता-भ्रूण हत्या
वचन देके खुद को अडिग हो निभाएँ।
है सच “कल्पना” बेटी बेटों से बढ़कर
कि अब भेद का भूत, भव से भगाएँ।
-----------
८)
इस जनम में अब नहीं अपमान अपना मैं सहूँगी।
पीर से वर माँग, अपनी गोद, बेटी से भरूँगी।
कस शिकंजा ज़ालिमों के कत्ल का ऐलान होगा
लाड़ली! लेकिन तुम्हें क़ातिल हवा लगने न दूँगी
सुन जिसे पापी-पतित पछताएँ, अपना पीट लें सिर
लेखनी में भर लहू, ऐसी गज़ल हर दिन कहूँगी।
‘दामिनी’ औ’ ‘निर्भया’ भयमुक्त हों ज्यों दानवों से
सिर उठा, संकल्प कर, कानून वो लागू करूँगी।
चाहे क्यों ना काल मुझको ही गले अपने लगा ले
‘कल्पना’ पर मौत, बेटी! गर्भ में तुमको न दूँगी।
------------------
९)
नई सदी लिक्खेगी शक्त कहानी, ‘बिटिया’।
राज करेगी युगों युगों तक, प्यारी बिटिया।
नयन-नेह से उसके, महकेगा हर आँगन
चाहेंगे अपने घर में सब, रानी बिटिया।
पुरस्कार, सम्मान चरण चूमेंगे आकर
अंबर का ध्रुव तारा बन, चमकेगी बिटिया।
गर्वित होंगे पालक, सुन उसकी यश-गाथा
शीश उठाकर कहा करेंगे ‘मेरी बिटिया’।
दाम बढ़ा लेंगे निज, तब कागज़-स्याही, जब
काव्य-ग्रंथ-पृष्ठों में छाई होगी, ‘बिटिया’।
गीत-छंद बेटी का ही गुणगान करेंगे
गज़लों को भी देगी नव्य रवानी, ‘बिटिया’।
कहनी इतनी बात, सुता होगी घर-घर में
और 'कल्पना' हर नारी चाहेगी, ‘बिटिया’।
---------------------
१०)
धरती हुई निहाल, बधाई दी अंबर ने।
जब हर नारी लगी गोद बेटी से भरने।
कन्या भ्रूण विसर्जित होने कभी न देगी
कृत संकल्प हुई जननी, अब रक्षित करने।
क्रूर-काल ने भी ठाना है, आएगा वो
प्राण पुत्रियों के न जन्म से पहले हरने।
ग़ज़लें करने लगीं बेटियों पर ही शायरी
कलम चली बिटिया को कविता अर्पित करने
किया समर्थन समंदरों ने, ज्वार बढ़ाकर
नदियों ने दी ताल, गा उठे पर्वत-झरने
देख हवा के बदले रुख को, दंग ‘कल्पना’
झुका लिया है सिर नारी के, आगे नर ने
मानो रे इंसान! बाँझ है भू, बेटी बिन
रची ‘कल्पना’ सृष्टि सोचकर ही ईश्वर ने
--------------
ये रचनाएँ मौलिक, स्वरचित, वेब पर अप्रकाशित तथा अप्रसारित हैं
-कल्पना रामानी
१५/२/२०१६
--------------
परिचय-
नाम-कल्पना रामानी
जन्म तिथि-६ जून १९५१ (उज्जैन म॰ प्र॰)
वर्तमान निवास-मुंबई, महाराष्ट्र।
*आत्म कथ्य-
हाई स्कूल तक औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद मेरे साहित्य प्रेम ने निरंतर पढ़ते रहने के अभ्यास में रखा। परिवार की देखभाल के व्यस्त समय से मुक्ति पाकर उम्र के सातवें दशक (सितंबर २०११) में मेरा साहित्य-प्रेम लेखन की ओर मुड़ा और कंप्यूटर कंप्यूटर ज्ञान हासिल करके अंतर्जाल से जुड़ने के बाद मेरी काव्य-कला को देश विदेश में सराहना और पहचान मिली।
मेरी गीत, ग़ज़ल, दोहे, कुण्डलिया आदि छंद विधाओं के साथ ही कहानी-लेखन में भी विशेष रुचि है तथा मेरी रचनाएँ अनेक स्तरीय मुद्रित पत्र-पत्रिकाओं के साथ ही अंतर्जाल पर प्रकाशित होती रहती हैं।
*प्रकाशित कृतियाँ-
*नवगीत संग्रह- “हौसलों के पंख”(२०१३-अंजुमन प्रकाशन)
*गीत-नवगीत- संग्रह-“खेतों ने ख़त लिखा”(२०१६-अयन प्रकाशन)
*ई बुक- मूल जगत का, बेटियाँ-(तीन छंद-दोहे कुण्डलिया व कहमुकरियाँ)-(२०१५ ऑनलाइन गाथा)
*ग़ज़ल संग्रह- संग्रह मैं ‘ग़ज़ल कहती रहूँगी’(२०१६ अयन प्रकाशन)
पुरस्कार व सम्मान
*पूर्णिमा वर्मन(संपादक वेब पत्रिका-“अभिव्यक्ति-अनुभूति”)द्वारा मेरे प्रथम नवगीत संग्रह पर नवांकुर पुरस्कार
*वर्तमान में १४ वर्षों से वेब पर प्रकाशित होने वाली पत्रिका/अभिव्यक्ति-
अनुभूति(संपादक/पूर्णिमा वर्मन) के सह-संपादक पद पर कार्यरत हूँ।
*स्थायी पता-
अमरलाल रोचवानी
बी-२०९
सतराम सिंधी कॉलोनी
उज्जैन-मध्यप्रदेश
*वर्तमान पता-
कल्पना रामानी
c/o-Ajay Ramani- Mo.07303425999
६०१ /५ हेक्स ब्लॉक्स, सेक्टर-१०
खारघर, नवी मुंबई -४१०२१०
मो-07498842072
ई मेल -kalpanasramani@gmail.com
ब्लॉग-http://kalpanaramanis.blogspot.in/
--
COMMENTS