व्यंग्य ............सुशील यादव ..... हम सरकारी दफ्तर वाले, १४ सितम्बर को हर साल ‘हिन्दी दिवस’ के नाम इकठ्ठा हो के चर्चा में व्यस्त हो ...
व्यंग्य
............सुशील यादव .....
हम सरकारी दफ्तर वाले, १४ सितम्बर को हर साल ‘हिन्दी दिवस’ के नाम इकठ्ठा हो के चर्चा में व्यस्त हो जाते हैं। अति व्यस्तता के बीच कार्यालय के मुखिया प्रकट होकर बताते हैं कि आज वे ज्यादा वक्त नहीं दे सकेंगे। अगली मीटिंग के लिए ‘टेंडर’ वाले लोग कारीडोर में प्रतीक्षारत बैठे हैं। टूटी- फूटी हिंदी में औपचारिकता पूरी की जाती है। साहब हर साल वाला भाषण, हिन्दी को प्रोत्साहित करने की दिशा में सुना देते हैं। अपने कार्यालय के हिन्दी-रूपी काम-काज की समीक्षा में, वे अपनी और अपने स्टाफ की पीठ थपथपा देते हैं। तालियाँ बजती है। यंत्रवत हिन्दी फंड से चाय-समोसे परोस दिए जाते हैं।
बहरहाल यही हाल देश के अधिकाँश सरकारी मुहकमो में पिछले कई सालों से यानी जब से राजभाषा अधिनियम १९६३ प्रस्तावित हुआ है चला आ रहा है।
अगर सीरयसली, ‘हिन्दी की राष्ट्रव्यापी सेवा’ किये जाने का संकल्प है, तो एक आन्दोलन के रूप में हिन्दी को व्यापक बनाना जरुरी है। राज-भाषा में ‘क’ ‘ख’ और ‘ग’ क्षेत्र की विषमताओं को एक रूप करना होगा। अभी ये छूट है की ‘क’ खेत्र वालों को हिन्दी पत्रीं के उत्तर हिंदी में अनिवार्य रूप से देना है ,संकल्प ,आदेश,लाइसेंस परमिट को हिंदी में अथवा द्विभाषी रूप में जारी किया जाना अपेक्षित है। अमूमन देखा यह जाता है की संपूर्ण आदेश या पत्र अंग्रेजी में लिखा होता है ,केवल आगे के पन्ने में द्विभाषिक साइक्लोस्टाइल्ड फारवर्डिंग मेमो लगा दिया जाता है। अब इससे हिंदी का कितना भला हो रहा है राम जाने ....?
हिन्दी भाषी क्षेत्र के पूरे दफ्तर में हिन्दी-ज्ञाता चिराग लेकर ढूढने पर, एक दो प्रतिशत से अधिक मिलने से रहे। अहिन्दी भाषी क्षेत्रों की हालत इन परिस्थितियों में कैसी होगी स्वत; अनुमान लगाया जा सकता है ..?
हिन्दी को व्यापक रूप में प्रसारित किये जाने का लक्ष्य निर्धारित किया जाना चाहिए। इसके लिए वृहत आन्दोलन और गैर-हिन्दी-भाषी राज्यों से सहयोग की जरूरत है। हमारा उद्देश्य केवल सरकारी दफ्तरों में इसे प्रसारित कर आंकड़े में वृद्धि करने का नहीं होना चाहिए।
सरकार निम्न बिन्दुओं पर ध्यान दे सकती है .
१. देश के माध्यमिक स्तर के स्कूलों में हिन्दी अनिवार्यत; पढाई जावे। विरोध करने वाले राज्यों को
केंद्र से मिलाने वाले अनुदान राशि में तीस प्रतिशत की कटौती की जावे।
२,दस-पंद्रह वर्ष बाद, हर सरकारी सेवा या प्रशाशनिक सेवा में भर्ती के लिए हिन्दी ज्ञान या माध्मिक स्तर तक हिन्दी पढ़े होने पर बोनस अंको की व्यवस्था हो।
३.किसी भी चुनाव में उम्मीदवारों के ८’X१०’ के होर्डिंग में तीस प्रतिशत भाग हिंदी में लिखा हुआ मिले। पाम्पलेट में भी ये शर्तें लागू हों। चुनाव आयोग इस दिशा में सक्रियता देखा सकते हैं।
४.बीस वर्षों बाद, हिन्दी के स्कूली-अनुभव को, चुनाव के उद्देश्य से, नए केन्डीडेट के लिए आवश्यक माना जावे।
५देश के तमाम शहरों के नए होर्डिंग्स तभी अनुमोदित हों जब उनमे अल्प सही कुछ भाग में हिन्दी भी शामिल हो
६. रेस्टोरेट और टेक्सी में रेट लिस्ट, अनुरोध किये जाने पर हिंदी में भी उपलब्ध कराया जाये।
७.सरकारी दफ्तरों में, विशेष परिस्थितियों को छोड़कर, हिंदी में अच्छे कार्य पर प्रोत्साहन देने की व्यवस्था बंद हो, उलट इसके, उनके हिंदी कार्य से सक्षम अधिकारी संतुष्ट नहीं हैं तो तीन सदस्यीय समिति के समक्ष,कार्य-समीक्षा किया जावे और स्न्तोश्जंक ण पाए जाने पर,उन्हें मिलने वाले इन्क्रीमेंट को ‘बाधित’ किया जावे।
८. हर राज्य के स्कूलों में, सप्ताह में दो पीरियड, हिन्दी की कार्यशाला को समर्पित हो। इसमें कक्षा स्तर के मुताबिक़ उनसे प्रोजेक्ट-वर्क करवाया जावे। मौखिक-संवाद की अनिवार्यता कदापि न रहे। लिखे स्क्रिप्ट विद्यार्थी पढ़े .इससे झिझक मिटने में आसानी रहेगी। प्रोजेक्ट संक्षिप्त हो। विषय क्षेत्रीय भाषा के, किस्से, कहानी, प्रसंग आदि पर आधारित हों, जिसे वे हिन्दी में प्रस्तुत कर सकते हैं। उंची क्लास के विद्यार्थी, किसी भी भाषा के, साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रस्तुत कर सकते हैं। वे साथ में मूल स्क्रिप्ट यदि उपलब्ध करा सकें तो अतिरिक्त लाभ देखा जा सकेगा। इन प्रोजेक्ट में से अच्छे स्तर के काम को संरक्षित कर, आने वाले छात्र-छात्राओं के लिये दिशा-निर्देश पाने के प्रयोजन से उपयोग में लाया जा सकता है।
९. सरकारी खर्चे से माह के एक अवकाश दिवस् पर, हिन्दी में साहित्यिक कार्यक्रम आम-जन के लिए होना चाहिए। खर्चे सिर्फ स्टेज और व्यवस्था पर हो ,स्कूल कालेज के विद्वान वक्ता,व् उत्साही कवि- लेखक अपनी प्रस्तुति दे सकते हैं। इससे शासन पर अपनी पसंद के कवि लेखकों को रेवड़ी बांटने का आरोप लगभग नहीं लगेगा।
हिन्दी के प्रचार-प्रसंग में,एक किस्सा बयान करना, गैर मौजू नहीं रहेगा।
तुर्क देश में शासक नये-नये गद्दी नसीन हुए। उन्होंने अपने सलाहकारों से पूछा ,अपने देश में कितने प्रतिशत लोगो को ‘तुर्की’ भाषा आती है। देश में, उपलब्ध आंकड़े खंगाले गये ,किसी के अनुसार तीस, किसी के कहे पर चालीस ,मगर अंतत: सरकारी फर्जी आंकडा, पच्चास-पचपन के उपर नहीं चढ़ा। सुलतान ने असंतोष जाहिर करने के बाद पूछा, देश के सभी नागरिकों को इसे सीखने में कितना वक्त लगेगा....?
सभासद एक दूसरे का मुह ताकते हुए , तरह-तरह के जवाब दिए। किसी ने कहा शत- प्रतिशत को सीखाना तो असंभव है हुजूर। कोई ने कहा दो-साल, किसी ने एक-साल की सीमा निर्धारित किया। इससे कम समय-सीमा से नीचे उतरने पर कोई सभासद राजी होते नहीं दिखे । ’शासक’ ने सभासदों को झिड़कते हुए कहा,आज से ये फरमान जारी कर दो ,अगर सात दिनों के भीतर, ये तुर्की में नहीं बोल पायें , तो सर कलम कर दो ....। जंगल में आग की तरह खबर फैली और आसमान में बिजली की तरह पूरे देश में गडगडाहट की गूंज सुनी गई।
इस फरमान के बाद क्या हुआ पता नहीं ....?जंगल की आग और बिजली की कड़क ने ,सुबह- सुबह मुझे नींद से जगा दिया।
देश ! हिन्दी के लिए, एक सशक्त कार्य-योजना,मेरे द्वारा,पाते-पाते रह गया.....?
सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर दुर्ग (छ.ग.)
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