शेख चिल्ली की कहानियाँ अनूपा लाल अनुवाद - अरविन्द गुप्ता ससुराल की यात्रा आखिर शेख चिल्ली की अम्मी ने उसके लिए एक चांद जैसे चेह...
शेख चिल्ली की कहानियाँ
अनूपा लाल
अनुवाद - अरविन्द गुप्ता
ससुराल की यात्रा
आखिर शेख चिल्ली की अम्मी ने उसके लिए एक चांद जैसे चेहरे वाली सुंदर दुल्हन ढूंढ ही निकाली। उसका नाम फौजिया था। फौजिया के पिता शेख के पिता को जानते थे और जब वो कई बरस पहले शेख से हकीमजी के घर मिले थे तो उन्हें शेख पसंद आया था।
शादी के कुछ महीनों बाद शेख चिल्ली को ससुराल जाने का निमंत्रण मिला। वो अपने सबसे अच्छे कपड़े पहनकर सुबह-सुबह ही निकल पड़ा। ससुराल में उसकी पत्नी के माता-पिता भाई-बहनों ने उसकी बहुत आवभगत की।
ठाठ से भोजन खाने के बाद शेख को उसके साले ने पान खाने को दिया। शेख ने पहले कभी पान नहीं खाया था। फिर भी उसने पान को अपने मुंह में डाला और उसे चबाने लगा। पान चबाते समय उसने इत्तफाक से अपने मुंह को आइने में देखा। पान के लाल रस की एक पतली सी धार उसके मुंह से बह रही थी। शेख उसे खून समझ बैठा। वो डर से एकदम सहम गया!
मैं मर रहा हूं! उसने सोचा। मेरे अंदर अचानक कोई चीज टूट गई है या फिर इन लोगों ने मुझे जहर खिला दिया है! पर चाहे जो कुछ भी हो मैं मर रहा हूं।?
उसकी आंखें आसुओं से भर गयीं। बिना एक भी शब्द कहे वो खडे होकर सीधे अपने कमरे में गया और वहां पलंग पर जाकर लेट गया। यह जानने के लिए कि शेख का मिजाज अचानक क्यों बिगड़ गया है उसका साला भी उसके पीछे-पीछे चला। शेख को पलंग पर पडे बिना कुछ बोले और बिलख-बिलख कर रोते हुए देखकर उसके साले को कछ भी समझ में नहीं आया कि आखिर वो क्या करे! उसी समय शेख के ससुर भी कमरे में पधारे।
'' बेटा मुझे बताओ कि तुम्हें क्या हुआ है?'' उन्होंने शेख से पूछा। '' क्या तुम्हें कहीं दर्द हो रहा है?''
'' अब मैं मर रहा हूं!'' शेख ने ऐलान किया। '' मेरा खून मेरे मुंह से रिस-रिस कर बाहर निकल रहा है। '' फिर उसने पान के लाल रस की ओर अपनी उंगली से इशारा किया।
'' क्या बस इतनी सी बात है?'' ससुर ने अपनी हंसी को दबाते हुए पूछा।
'' आप क्या इससे भी कुछ ज्यादा चाहते हैं?'' शेख ने नाराज होते हुए कहा।
शेख के अचानक बीमार हो जाने के रहस्य का आखिर पर्दाफाश हुआ! पान के लाल रस और खून के बीच में अंतर समझने के बाद शेख की सांस-में-सांस आई। उसके बाद वो पलंग पर से कूदकर अपने साले के साथ शहर के दर्शनीय स्थल देखने के लिए पैदल निकला। लौटने से पहले अंधेरा हो गया था। शेख पलंग पर लेटते ही गहरी नींद में सो गया। रात में एक मच्छर के भिनभिनाने से उसकी आँख खुली। शेख ने उसे मारने की बहुत कोशिश की मगर असफल रहा। अंत में उसने मच्छर को मारने के लिए अंधेरे में उसकी ओर अपनी चप्पल फेंकी। मच्छर का भिनभिनाना बंद करने के बाद शेख दुबारा सो गया। परंतु उसकी फेंकी हुई चप्पल सीधे शहद से भरे एक छोटे बर्तन से जाकर टकराई थी। यह बर्तन छत की लकड़ी की बल्ली से सीधे शेख के ऊपर लटका था। चप्पल लगने के बाद बर्तन कुछ टेढ़ा हो गया और शेख के मुंह पर शहद टपकने लगा। सपने में शेख को शहद की मिठास आने लगी। सुबह उठने पर उसने अपने पूरे शरीर को शहद से सना पाया!
उसे नहाने के लिए पास की नदी पर जाना पड़ा। उसके कमरे से लगा एक भंडार कक्ष था। शेख बिना किसी को जगाए इस कमरे में से होकर नदी तक जा सकता था। शेख दबे पांव इस कमरे में घुसा और सीधा रुई के एक ढेर मैं जा गिरा। रुई की धुनाई हो चुकी थी और उसे सर्दियों के लिए रजाइयों में भरा जाना था।
रुई शेख के बालों चेहरे और शरीर पर चिपक गई। वो अंधेरे मैं पिछले दरवाजे को तलाश रहा था तभी उसकी साली भंडार कक्ष में कुछ लेने के लिए आई। वो एक अजीब रोएंदार आकार को देखकर डर गई और जोर से चिल्लाई '' भूत! भूत!'' और फिर कमरे मैं से तेजी से भागी।
शेख को पिछला दरवाजा मिल गया और वो घर से नदी की ओर दौड़ा। उसने जो अनुमान लगाया था उससे नदी कुछ दूर थी। रास्ते में भेड़ों की एक बाड़ थी। शेख दो-चार मिनट सुस्ताने के लिए वहां बैठ गया। भेड़ों के शरीर की गर्मी से शेख को एक झपकी आ गई लेकिन तभी उसे भेड़ों के बीच कोई चलता हुआ दिखाई दिया। वो एक चोर था! इससे पहले कि शेख कुछ करता उस चोर ने शेख के ऊपर एक कंबल फेंका और फिर शेख को अपने कंधे पर उठाकर दौड़ने लगा। '' अरे! तुम यह क्या कर रहे हो?'' शेख ने खुद को छुड़ाते हुए गुस्से में कहा। '' मैं कोई भेड थोड़े ही हूं!''
क्या बोलने वाला जानवर! चोर एकदम सहम गया! उसने कंबल और शेख को फेंका और अपनी जान बचाने के लिए सरपट भागा! शेख नदी में कूदा और उसने रुई और शहद को रगड-रगड कर साफ किया। फिर उसने चोर द्वारा छोड़े हुए कंबल को ओढ़ा और घर की ओर चला।
'' भाईजान आप कहां गए थे?'' शेख के साले ने पूछा। '' गनीमत है कि आप सही-सलामत हैं! आपके पास वाले कमरे में एक भूत है! हम भूत को भगाने के लिए अभी किसी को बुलाकर लाते हैं। ''
'' इसकी अब कोई जुरूरत नहीं है शेख चिल्ली ने शांत भाव में कहा। '' मैं खुद ही भूत से निबटने के लिए काफी हूं। ''
फिर शेख ने खुद को भंडार कक्ष में बंद कर लिया और फिर झाडू से रुई की खूब धुनाई की। साथ में वो जोर-जोर से झूठ-मूठ के कुछ मंत्र भी पड़ता रहा! उसके बाद वो कमरे में से किसी महान विजेता की तरह निकल कर आया। शेख ने अपना बाकी समय ससुराल में मजे में बिताया। वो लगातार परिवारजनों और पड़ोसियों की प्रशंसा का पात्र बना रहा।
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(अनुमति से साभार प्रकाशित)
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