शेख चिल्ली की कहानियाँ अनूपा लाल अनुवाद - अरविन्द गुप्ता बीमार दरांती शेख चिल्ली की मां गांव के रईस घरों में इधर-उधर के काम करके...
शेख चिल्ली की कहानियाँ
अनूपा लाल
अनुवाद - अरविन्द गुप्ता
बीमार दरांती
शेख चिल्ली की मां गांव के रईस घरों में इधर-उधर के काम करके अपनी आजीविका चलाती थी।
'' बेटा शेख उन्होंने एक दिन सुबह को कहा '' देखो मैं फातिमा बीबी के घर उनकी लड़की की शादी की तैयारी में मदद के लिए जा रही हूं। मैं अब रात को ही वापिस लौटूंगी। हो सकता है कि मैं? शायद अपने लाड़ले के लिए कुछ मिठाई बोरा भी साथ में लाऊं। फातिमा बीबी काफी दरियादिल औरत हैं। ''
'' बेटा तुम दरांती लेकर जंगल में जाना ओर वहां से पड़ोसी की गाय के लिए जितनी हो सकें उतनी घास काट कर लाना। इंशाअल्लाह आज हम दोनों मिलकर काफी कमाई कर सकते हैं। देखा अपना वक्त बरबाद मत करना और न ही दिन में सपने देखना। तुमने अगर सावधानी से काम नहीं किया तो तुम्हें दरांती से चोट भी लग सकती है। ''
'' आप मेरे बारे में बिल्कुल भी फिक्र न कर अम्मीजान शेख ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा। और फिर वो खुशी-खुशी जंगल की .ओर चला। वो रास्ते में उन मिठाइयों के बारे में सोचता रहा जो उसकी अम्मी फातिमा बीबी के घर से लाएंगी। क्या वो नर्म भूरे चाशनी में से गुलाब जामुन होंगे जो उसने एक बार पहले कभी खाए थे? उनका स्वाद उसे बार-बार याद आ रहा था।
'' बंद करो यह बकवास!'' उसने खुद को झिड़कते हुए कहा। '' अम्मी ने कहा था न कि दिन में सपने नहीं देखना। ''
वो जगंल में पहुंचने के बाद काफी लगन से काम में लग गया। दोपहर के खाने के समय तक उसने काफी सारी घास काट डाली थी। उसने उसका एक बड़ा बंडल बनाया और उसे घर ले आया। पड़ोसी के घर घास छोड़ने के बाद और कुछ आने कमाने के बाद वो घर लौटा और उसने चटनी के साथ मोटी रोटी खायी। तब उसे याद आया कि वो अपनी दरांती को तो जंगल में ही भूल आया था। वो दौड़कर वापिस जंगल गया। दरांती वहीं पड़ी थी जहां उसने उसे छोड़ा था। तपती धूप में दरांती का ब्लेड एकदम गर्म हो गया था और शेख ने जब उस गर्म लोहे को छुआ तो उसे एक झटका सा लगा। उसकी दरांती को आखिर क्या हुआ? वो अपनी दरांती का मुआयना कर रहा था तभी पड़ोस का लल्लन उस रास्ते से गुजरा।
'' मियां तुम किसे इतनी गौर से देख रहे हो?'' उसने पूछा।
'' अपनी दरांती को। उसे कुछ हो गया है। वो काफी गर्म है '' हाय राम! उसे बुखार हो गया है!'' लल्लन ने शेख की नासमझी पर हंसते हुए कहा। '' तुम उसे किसी हकीम के पास ले जाओ। पर जरा रुको। मुझे मालूम है कि तेज बुखार में हकीमजी क्या दवाई देते हैं। आओ मेरे साथ चलो। ''
दरांती के लकड़ी के हैंडल को सावधानी से पकड़कर लल्लन शेख को एक कुंए कें पास ले गया। वहां उसने दरांती को एक लंबी रस्सी से बांधा और फिर उसे कुंए के ठंडे पानी में लटकाया।
'' अब तुम इसे इसी हालत में छोड्कर घर चले जाओ उसने शेख से कहा। '' अब तुम रात होने से पहले आना। तब तक दरांती का बुखार उतर गया होगा। '' अरे बेवकूफ! उतनी देर में मैं दरांती को भी वहां से गायब कर दूंगा लल्लन ने चुपचाप कहा। मैं उसे छिपा दूंगा या फिर बेच दूंगा और फिर शेख की मां दरांती खोने के लिए उसकी खूब मरम्मत करेगी!
'' यकीन करो मियां उसने जोर से कहा। '' बुखार का यही सबसे अच्छा इलाज है!''
शेख चिल्ली ने उसकी बात पर विश्वास किया और घर वापिस चला गया। फिर वो सो गया और जब उसकी नींद खुली उस समय सूरज ढल रहा था। '' मैं अम्मी के घर आने से पहले ही दरांती ले आता हूं '' उसने सोचा। '' अब तक उसका बुखार उतर गया होगा। ''
फिर वो कुएं की तरफ चला। लल्लन के घर के सामने से गुजरते समय उसे अंदर से किसी के कराहने की आवाज आई। शेख अंदर गया। लल्लन की दादी आंगन में एक खाट पर पड़ी इधर-उधर करवटें बदल रहीं थीं। शेख जब उनके पास पहुंचा तो एकदम डर गया। उनका शरीर बहुत गर्म था। उन्हें तेज बुखार था और शेख के अलावा उनकी मदद करने वाला और कोई न था। परंतु अब लल्लन की दया से शेख को तेज बुखार का सही इलाज पता था।
शेख ने बूढ़ी औरत को सावधानी से अपने कंधे पर उठाया और फिर वो कुएं की और बढ़ने लगा।
'' मियां तुम लल्लन की दादी को कहां लिए जा रहे हो?'' एक पड़ोसी ने पूछा।
'' इलाज के लिए शेख ने जवाब दिया। '' उन्हें बहुत तेज बुखार है। ''
उस समय लल्लन और उसके पिता बूढ़ी दादी के लिए दवाई लेने हकीम के पास गए हुए थे। जब वो घर वापिस पहुंचे तब उन्होंने बूढ़ी दादी को नदारद पाया! जब वो बूढ़ी दादी को तलाशते हुए इधर-उधर भटक रहे थे तब उन्हें वही पड़ोसी मिला जिसने शेख चिल्ली से पूछा था।
लल्लन को जब पूरी बात समझ आई तो उसके होश उड़ गए! वो दौड़ता हुआ कुएं के पास गया और उसके पीछे-पीछे उसके पिता भी हो लिए। लल्लन को दरांती चुराने का वक्त ही नहीं मिला था। शेख ने तभी अपनी दरांती को कुएं में से निकाला था और वो बूढ़ी औरत को रस्सी से बांधने की तैयारी कर रहा था। बस उसी समय लल्लन और उसके पिता वहां पहुंचे।
'' अरे पागल तुम यह क्या कर रहे हो?'' लल्लन के पिता ने चिल्लाते हुए कहा। फिर उन्होंने शेख को एक तरफ धकेला और अपनी बेहोश मां की रस्सियां खोलने लगे।
'' चाचा उन्हें बहुत तेज् बुखार है!'' शेख ने काफी उत्तेजित होकर कहा। '' उन्हें रस्सी से बांधकर कुएं में लटका दीजिए। बुखार का यही सबसे अच्छा इलाज है। लल्लन ने ही तो मुझे बताया है। ''
लल्लन के पिता अपने लड़के की ओर चीते की तरह झपटे। '' तुमने यह क्या नई खुराफात की हैं?'' वो चिल्लाए। '' हरामखोर! मैं तुझे बाद में सबक सिखाऊंगा! अगर तुम्हें अपनी जान प्यारी हैं तो फौरन अपनी दादी को घर पहुंचाने और हकीम को लाने में मेरी मदद करो
लल्लन की दादी कुछ दिनों में ठीक हों गयीं पर लल्लन की उसके पिता ने जमकर पिटाई लगाई। शेख की अम्मी ने जब यह पूरी घटना सुनी तो उन्हें यह समझ मैं ही नहीं आया कि वो हंसें या रोये
वो शेख के लिए जो स्वादिष्ट गुलाब जामुन लायीं थीं उनको उसने मजा ले-लेकर खाया। बाद में अम्मी ने शेख को समझाया कि दरांती क्यों गर्म हुई थी और क्यों किसी चीज को कुएं में डालना उसका बुखार उतारने का सबसे अच्छा तरीका नहीं था!
शेख चिल्ली की अन्य कहानियाँ - एक, दो
(अनुमति से साभार प्रकाशित)
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