कहानीः डी पी सेनगुप्ता चित्रांकनः सुमंत्र सेनगुप्ता हिंदी अनुवादः अरविन्द गुप्ता कारगिल युद्ध के दौरान भारत और पाकिस्तान में अनाथ ...
कहानीः डी पी सेनगुप्ता
चित्रांकनः सुमंत्र सेनगुप्ता
हिंदी अनुवादः अरविन्द गुप्ता
कारगिल युद्ध के दौरान भारत और पाकिस्तान में अनाथ हुए बच्चों को समर्पित
संसार सागर के किनारे
बच्चों की भीड़ लगी है
शीश पर अचंचल अंतहीन गगन तल है
और गहरा फेनिल जल प्रतिक्षण नाच रहा है
तट पर कितना कोलाहल हो रहा है
बच्चों की भीड़ लगी है
वे बालू के घरौंदे बना रहे हैं
सीपियों से खेल-खेल रहे हैं
विपुल नील सलिल पर
पत्तों को गूंथ-गांथकर
खेल-खेल में बनाई गई
उनकी टिकटी तैर रही है
संसार सागर के किनारे बच्चों की भीड़ लगी है
आकाश में अंधेरा चक्कर काट रहा है
सुदूर जल में नाव डूब रही है
मरण-दूत गतिवान है
बच्चे खेल रहे हैं
संसार सागर के किनारे
शिशुओं का महा-मेला लगा हुआ है
--- रवीन्द्रनाथ टैगोर
दूरदराज एक देश था, नाम था जिसका चीचीबाबा। वहां दो भाई रहते थे। एक का नाम था गुरुक और दूसरे का टुरुक। दोनों एक-दूसरे को बहुत प्यार करते थे। बस एक बात को लेकर उन दोनों में हमेशा ठन जाती - गुरुक सब काम बाएं हाथ से करता था, टुरुक दाएं हाथ से। गुरुक हमेशा बाएं हाथ से खाना खाता था और बाएं हाथ से ही लिखता था। टुरुक हमेशा दाएं हाथ से खाना खाता था और दाएं हाथ से ही लिखता था।
गुरुक सोचता कि वह सही काम कर रहा है और टुरुक गलत है। टुरुक सोचता कि वह सही है और गुरुक गलत। कौन सही है और कौन गलत? इस बात को लेकर दोनों भाइयों में बहस छिड़ जाती। वे लड़ने लगते।
तब गुरुक टुरुक को बाएं हाथ से घूंसा मारता और टुरुक गुरुक को दाएं हाथ से मुक्का मारता।
परंतु उनकी लड़ाई जल्द ही बंद भी हो जाती। फिर गुरुक अपना बायां हाथ टुरुक के गले में डालता और टुरुक अपना दायां हाथ गुरुक के गले में। और फिर दोनों भाई हंसते, बतियाते, खिलखिलाते हुए सैर करने निकल जाते।
इस तरह कई साल बीत गए। गुरुक और टुरुक बड़े हुए और अपने देश पर राज करने लगे। वे अब भी कभी-कभी बहस करते और लड़ते, परंतु दोनों एक-दूसरे को बहुत प्यार भी करते थे। उस देश में कुछ और लोग भी थे जो या तो दाएं हाथ से काम करते थे या फिर बाएं हाथ से। जब गुरुक और टुरुक के बीच लड़ाई होती तो ये लोग भी आपस में लड़ते थे।
एक बार दोनों भाईयों के बीच लंबी लड़ाई चली। उन दिनों दूर देश से एक चालाक आदमी टौमटौम उनके पास आया हुआ था। उसने कहा, ‘तुम दोनों को अब अलग-अलग रहना चाहिए।’ और फिर एक लंबी दीवार से उनका देश दो हिस्सों में बंट गया। दोनों भाई अलग-अलग रहने लगे।
गुरुक के देश का नाम चिनचिन और टुरुक के देश का नाम चिनचुन पड़ा। बाएं हाथ से काम करने वाले सब लोग चिनचिन चले गए। दाएं हाथ से काम करने वाले सभी लोग चिनचुन चले गए। समय के साथ-साथ उनके परिवार बढ़े। कुछ दाएं हाथ वाले परिवारों में बाएं हाथ से काम करने वाले बच्चे पैदा हुए तो कुछ बाएं हाथ वाल परिवारों में दाएं हाथ से काम करने वाले।
टौमटौम समय-समय पर चिनचिन और चिनचुन आता-जाता रहता था। ‘तुम जरा टुरुक से सावधान रहनाए’ टौमटौम गुरुक से कहता।
‘मैं तुम्हें एक नई बाएं हाथ वाली गुलेल दूंगा, जिससे तुम अपनी रक्षा कर सको।’ इस तरह टौमटौम ने गुरुक से लिए ढेर सारे पैसे लिए।
उधर टौमटौम ने टुरुक से कहा, ‘तुम जरा गुरुक से सावधान रहना। मैं तुम्हें एक नई दाएं हाथ वाली गुलेल दूंगा। जिससे तुम अपनी हिफाजत कर सको।’ और टौमटौम ने टुरुक से भी खूब सारा धन वसूला।
जैसा कि हम सब लोग जानते हैं, दाएं हाथ वाली गुलेल और बाएं हाथ वाली गुलल में कोई अंतर नहीं होता। दोनों एकदम एक-जैसी होती हैं।
गुलेल मिलते ही गुरुक घमंड में टुरुक को अपनी गुलेल दिखाने दीवार के पास गया।
टुरुक ने कुछ इस तरह का नाटक किया जैसे उसने गुरुक की गुलेल देखी ही न हो। परंतु उसने अपनी नई गुलेल जरूर दिखाई। उसने यह पक्का कर लिया कि टुरुक उसकी गुलेल को जरूर दखे।
एक दूसरे देश में एक और आदमी रहता था।
उसका नाम सैमसम था और वह हथियार बनाता था। सैमसैम ने गुरुक को एक बहुत बड़ी गुलेल बेची जिससे बहुत भारी-भारी पत्थरों को फेंका जा सकता था। अगर ये पत्थर घरों पर गिरते तो उनको चकनाचूर कर देते।
गुरुक बहुत खुश हुआ।
वो आराम से बैठकर खुशी-खुशी अपना हुक्का पीने लगा। हुक्के के अंदर से गुड़गुड़ाने की आवाज आई - गुरुक टुरुक गुरुक टुरुक है पक्का कुरुक
हुक्के के गाने का मतलब था कि गुरुक धोखेबाज और चोर है।
टुरुक ने जब यह गाना सुना तो वह परेशान हो गया। वह सीधा टौमटौम के पास गया। टौमटौम ने एक नया हथियार बनाया था - एक तरह की तोप। तोप की नली में बारूद के साथ लोहे का एक बड़ा गोला ठूंसा जाता था। फिर आग लगते ही बारूद में विस्फोट होता और उसमें से गोला दनदनाता हुआ बाहर निकलकर बहुत दूर जाकर गिरता।
‘इससे तमाम घरों को तबाह किया जा सकता है और बहुत सारे लोगों को मारा जा सकता है,’ टौमटौम ने कहा।
टुरुक ने टौमटौम को बहुत सारा पैसा देकर तोप खरीद ली।
टुरुक ने तोप को दोनों देशों को बांटने वाली दीवार के पास रखा। उसने तोप का मुंह गुरुक के घर की ओर किया। फिर उसने जोर-जोर से गाना शुरू किया जिससे कि गुरुक उसके गाने को सुन सके। गाना थाः
‘मैं हूं बादशाह, मैं हूं नरेश, मेरे पास तो तोप है।, गुरुक के पास गुलेल!’
गुरुक ने गाना सुना। तोप क्या होती है यह उसे पता नहीं था। वो तुरंत सैमसैम के पास गया।
सैमसैम ने उसे एक बहुत बड़ी तोप दी जो ज्यादा घरों को तबाह कर सकती थी। बहुत सारे लोगों को मार सकती थी। गुरुक ने सैमसैम को बहुत सारा धन दिया और तोप लेकर घर आ गया।
इस तरह साल-दर-साल यही सिलसिला चलता रहा।
गुरुक और टुरुक, दाएं और बाएं हाथ से काम करने वाल दो भाई , जो कभी एक-दूसरे को बहुत प्यार करते थे, अब एक-दूसरे से नफरत करने लगे।
उनके देशों के बीच की दीवार के दोनों ओर अब तरह-तरह के हथियारों का जमघट था। दोनों
ओर तोपें तनी थीं। वर्दी पहने, बाएं हाथ वाले फौजी और दाएं हाथ वाले सैनिक दीवार के दोनों ओर, अपने-अपने देश की सुरक्षा के लिए तैनात थे।
इन तमाम हथियारों को खरीदने और सैनिकों को तनख्वाह देने में बहुत सारा पैसा खर्च करना
पड़ता था। इससे एक ओर गुरुक और टुरुक गरीब हो गए। दूसरी ओर टौमटौम और सैमसैम एकदम मालामाल हो गए।
चिनचिन और चिनचुन को बांटने वाली दीवार एक जगह से कमजोर हो गई थी। उसमें एक
बड़ा-सा छेद हो गया था। सिपाहियों और बड़ों की निगाह बचाकर दोनों तरफ के बच्चे इस छेद में से एक-दूसरे के साथ खेलते।
इन बच्चों को एक बात नहीं पता थी। चिनचिन और चिनचुन के होशियार लोगों ने यह पता
लगा लिया थाप कि टौमटौम और सैमसम ने किस तरह ऐसे बेहतर और ताकतवर बम बना लिए थे जिनसे पूरे के पूरे देशों को नष्ट किया जा सकता था। दोनों देशों के होशियार लोगों ने भी बहुत मेहनत करके उसी तरह के बम बना लिए थे। गुरुक ने अपने देशवासियों से कहा, ‘जब मैं चिनचुन पर यह बम गिराऊंगा तब वहां पलक झपकते ही सारे लोग मर जाएंगे। वहां पर इतनी गर्मी पैदा होगी कि धरती मक्खन की तरह पिघलने लगेगी।’ ‘वाह!’ चिनचिन के लोग जोर से चिल्लाए।
टुरुक ने अपने देशवासियों को समझाया, ‘जब मैं इस बस को चिनचिन पर गिराऊंगा तो वहां हरेक चीज पिघल जाएगी। वहां पर सब लोग मर जाएंगे और फिर कोई बाएं हाथ वाला आदमी हमें धमकाने के लिए नहीं बचेगा। वहां पर वर्षों तक घास का तिनका तक नहीं उगेगा।’ ‘वाह!’ चिनचुन के लोग जोर से चिल्लाए।
बच्चों को यह सब पल्ले नहीं पड़ा। शाम होते ही चिनचिन और चिनचुन के बच्चे दीवार के बड़े छेद के पास इकट्ठे हुए। चिनचिन के बच्चों ने अपने बाएं हाथ बढ़ाए और चिनचुन के बच्चों के दाएं हाथों को थाम लिया। बच्चे सहमें और भयभीत थे। मक्खन की तरह पिघलना क्या होता है, यह उन्हें नहीं मालूम था।
अगर हम पिघल गये तो हमारे हाथ भी नहीं बचेंगे। तब हम सब एक-जैसे हो जायेंगे,’ चिनचिन के किंशुक ने कहा।
‘इससे क्या फर्क पड़ेगा? तब तक तो हम सभी लोग मर जाएंगे, है न?’ चिनचुन की रुक्मा ने पूछा।
‘वैसे भी हम लोग मरेंगे ही। मैंने दो दिन से कुछ भी नहीं खाया है।’ एक छोटे लड़के ने कहा। यह पता नहीं चला कि वो छोटा लड़का, चिनचिन का था या चिनचुन का।
अपने-अपने घर की खिड़कियों से गुरुक और टुरुक ने बच्चों की इस भीड़ को देखा। सिपाही बच्चों को पकड़ने ही वाले थे, परंतु दोनों भाइयों ने उन्हें रोक लिया। दोनों भाई अपने घरों से बाहर आए और दीवार के छेद के दोनों ओर आकर खड़े हो गए। गुरुक और टुरुक दोनों एक-दूसरे को काफी देर तक टकटकी लगाए देखते रहे।
सालों बाद, यह पहला मौका था जब वे एक-दूसरे से मिल रहे थे। वे बस एक-दूसरे को देखते रहे।
उन्हें वो सुनहरे दिन याद आने लगे जब वे साथ रहते थे और एक-दूसरे से प्यार करते थे।
‘हमने अपना क्या हाल कर लिया है,’ दोनों भाई चिल्लाए और उनकी आंखों से आंसू बहने लगे। गुरुक और टुरुक दोनों ने अपने हाथ बढ़ाए ओर एक-दूसरे के गले लग गए। ‘हम अपने सारे हथियार और बम नष्ट कर देंगे और फिर उसी तरह रहेंगे जैसे हम पहले रहते थे,’ उन्होंने कहा। बच्चों को यह नजारा देखकर अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ। पहले तो बच्चे थोड़ा सा घबराए।
लेकिन फिर वो हंसने लगे, पहले धीरे से और फिर जोर-जोर से। दोनों तरफ के लोग भी इस खुशी में शामिल हुए और खुशी से हंसने लगे। फिर
बच्चों ने एक गोला बनाया और खुशी का गाना गाया फिर नाच-कूद की होड़ लगाई।
हंसते-रोते, नंगे-भूखे खुशी से सबसे आंसू सूखे प्रेम ने जंग की आग बुझाई।
(अनुमति से साभार प्रकाशित)
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