जीवन और नैतिक मूल्य का विरोधाभास भारत के विश्व में श्रेष्ठ स्थान रखने का आधार यहाँ के नैतिक मूल्य ही रहे हैं। नैतिक मूल्यों का ज्ञान स्मृत...
जीवन और नैतिक मूल्य का विरोधाभास
भारत के विश्व में श्रेष्ठ स्थान रखने का आधार यहाँ के नैतिक मूल्य ही रहे हैं। नैतिक मूल्यों का ज्ञान स्मृतियों की धूल को एकत्र ही नहीं करता अपितु वह तो साफ़ दर्पण की भाँति सबको प्रतिबिंबित करता है। जो सदा ताजा और नया है। और जो सदा वर्तमान में है। नैतिक मूल्य जीवन को एक ऐसा बगीचा बना देते है जहाँ पंक्षी गाते हों, जहाँ वृक्ष नाच रहे हों, फूल खिल रहे हों। जहाँ पर सूर्य ख़ुशी से अपने कपोल चमका रहा हो। हम सब के भीतर कुछ ऐसा होता है जो पत्थर में नहीं है। जो प्रस्फुटित होता है। मग्न होता है। सुबह के सूरज को देखते ही जो आह्लादित हो उठता हो। रात में चाँद सितारों को देख जिसे भीतर एक अनुपम शांति छा जाती हो। एक गुलाब को आप एकटक देखिये, क्या वह एकांगी है ?नहीं, वह कुछ और है उसमें जीवन की झलक है। सौन्दर्य है। एक सरगम है। एक पक्षी को ध्यान से उड़ते हुए देखिये। उड़ते हुए कितना बेफिक्र रहता है। और किसी बैठे हुए पंक्षी के पास जरा जाकर देखिये वह आपको देखते ही डर जाएगा, सहम के सिकुड़ जाएगा, कांपने लगेगा। मगर गुलाब का फूल आप उसके आप जितने करीब जाओगे वो उतना ही प्यारा और निश्छल नजर आएगा। वजह मात्र इतनी सी है कि पंक्षी की खूबसूरती कम हो गयी क्योंकि वह आपसे डर गया मगर गुलाब आपसे नहीं डरा अपने में नग्न यथावत अपनी टहनी पर मस्तमौला सा झूमता रहा।
अब एक मनुष्य को देखिये, जब आप एक मनुष्य को देखते हैं तब आप जानते हैं कि इस मनुष्य की देह ही सब कुछ नहीं है। इसके भीतर इसके स्वभाव में कुछ अलग है। इसकी आत्मा में गहराई है। उसकी आँखों में झांकिये आपको देह का नहीं आत्मा का आभास होगा। आपने अक्सर देखा होगा लोगों को बातचीत करते समय। वह बोलते कुछ और हैं मगर उनकी आंखें कुछ और ही कह रही होती है। उनकी देह जुबान से झूठ भी बो सकती है लेकिन आँखें उनसे तो आत्मा बाहर झाँकने का प्रयास करती है। कितना विरोधाभास है अन्दर और बाहर। यही इस जगत का रहस्य है यहाँ अक्सर विरोधाभास मिल जाया करते हैं। एक दूसरे में डूबे तो कभी पृथक। अक्सर विरोधाभास यहाँ आलिंगन करते हैं। सिद्धांत कहता है शरीर है तो आत्मा नहीं हो सकती क्योंकि तब शरीर के ऊपर आत्मा की सीमा आरोपित हो जाती है अगर आत्मा भी है तो शरीर के जैसी ही दिखाई देनी चाहिए अदृश्य क्यों है ?और जो अदृश्य है उसका अस्तित्व क्योंकर स्वीकार्य हो ?शरीर का वजन टोला जा सकता है। आत्मा को दुनिया की किसी भी छोटी से छोटी या बड़ी से बड़ी तराजू पर तौलकर देख लो कोई वजन कोई माप आप प्राप्त नहीं कर पायेंगे। कहाँ है आत्मा? यहाँ तक कि शरीर को टुकड़े टुकड़े कर असंख्य भागों में विभक्त ही क्यों ना कर लिया जाए आत्मा का साक्षात् आपको नहीं होगा।
तर्क को सिद्ध करने की अनिवार्य शर्त है संश्लेषण और विश्लेषण तब जाकर किसी भी सिद्धांत का बोध किया जाता है। मगर आत्मा के सन्दर्भ में यही सबसे बड़ा विरोधाभास है कि यहाँ जो अदृश्य है वाही सत्य है, जिसे कसौटी पर परखा ही नहीं जा सकता वही वास्तविक है। यहाँ छिपा हुआ ही असीम सत्य है जो उजागर है उसका कोई मोल नहीं। जीवन की यही सबसे बड़ी खूबसूरती है यहाँ हर जगह विरोधाभास ही विरोधाभास आपको नजर आयेगा जैसे नदी प्रवाहमान, गतिमान है मगर बहती दो किनारों के बीच है, जन्म और मृत्यु एक दूसरे से बिलकुल विपरीत हैं मगर एक ही जीवन से जुड़े हैं। रात और दिन दोनों ही काल के दो विपरीत खंड हैं मगर काल के साथ हैं, सर्दी और गर्मी मौसम के दो विरोधी भाग मगर वह भी साथ साथ हैं, जुड़े हैं। यथार्थ जीवन जैसा है विशिष्ट है जीवन पर कोई सिद्धांत थोपा ही नहीं जा सकता। और यह इसलिए है की मनुष्य बहुत ही चालाक है वह सिद्धांत अपने हिसाब से बनाता है और अपने ही सिद्धांत को प्रतिपादित करने के लिए दूसरे हर सिद्धांत का खंडन करता जाता है। वजह सिर्फ इतनी सी की वह खुद को और खुद के सिद्धांत को सर्वश्रेष्ठ साबित करना चाहता है। जो उसके सिद्धांत के अनुकूल वह सही जो विपरीत वह गलत। ठीक वैसे ही जैसे राजनीति में कभी कोई नीति नहीं होती मगर नाम है राजनीति। व्यावहारिक तौर तो सब जानते हैं कि इसमें अनीति के अलावा और कुछ नहीं होता।
यहाँ घोषणाएं तो नीति के आधार पर की जाती हैं और उनपर भरोसा करके ही राजनेताओं को चुना जाता है जो राजनेता जितना चतुर होता है वह घोषणा तो पूरी ईमानदारी के साथ करता है मगर चुने जाने के बाद निभाता उतनी बेईमानी से है। यह सत्य है कि राजनेता कितना ही झूठा क्यों ना हो कहीं ना कहीं उसे सत्य तो बोलना ही पड़ता है। उसके दिल की बात कहीं ना कहीं तो जुबान पर आ ही जाती है। आज जीवन में आत्मा की और नैतिक मूल्यों की अत्यंत आवश्यकता है।
भौतिकतावाद जहाँ जीवन की सच्चाई और मासूम खुशियां लील ले गया है तब नैतिक मूल्य ही इसमें सुधार ला सकता है क्योंकि पर्यावरण का गिरता स्तर, पूँजीवाद सभी का कारण जीवन में नैतिक मूल्यों का हास् होना ही है। आजकल जीवन में धर्म और राजनीति की अच्छी घुसपैठ हो गयी है। और इन दोनों वृत्तियों का उद्देश्य मानव कल्याण नहीं अपितु दूसरों का शोषण करना होता है। वे धर्म के नाम पर लोगों को बांटते हैं। सम्प्रदाय खड़े करते हैं। और लड़वाते हैं वह लोगों को नैतिक मूल्यों की शिक्षा ना देकर हिन्दू -मुसलमान, जैन -बौद्ध, नीची जाती-ऊंची जाती इत्यादि अलगाववादी शिक्षा देकर समाज से नैतिकता और सार्वभौमिकता का नामोनिशान मिटाने की कोशिश करते हैं।
आज हमारे देश को हम मनुष्यों को एक नयी नैतिकता की आवश्यकता है।
पुरानी नैतिकता लोकल थी स्थानीय थी नैतिकता सार्वभौमिक होगी। पुरानी नैतिकता एक छोटे से घेरे में कैद थी। नैतिकता का कोई घेरा ही नहीं होगा। पूरी मनुष्यता ही उसका विस्तार होगी। पुरानी नैतिकता हमें भड़काती थी कि देखो तुम्हारी चमड़ी काली और तुम्हारी गोरी है, तुम अलग, तुम अलग, तुम अलग तुम हिन्दू, तुम मुस्लिम, मगर नई नैतिकता कहेगी मनुष्य मनुष्य है और कोई मनुष्य किसी अन्य मनुष्य से अलग नहीं। सब मनुष्य उस परम पिता की संतान हैं एक हैं एक ही रहेंगे।
साहित्यकार सपना मांगलिक
कमला नगर आगरा २८२००५
ईमेल –sapna8manglik@gmail। com
रचनाकार परिचय -
नाम – सपना मांगलिक
जन्मतिथि -17/02/1981
जन्मस्थान –भरतपुर
वर्तमान निवास-आगरा(यू.पी)
शिक्षा-एम्.ए ,बी .एड (डिप्लोमा एक्सपोर्ट मेनेजमेंट )
सम्प्रति –उपसम्पदिका-आगमन साहित्य पत्रिका ,स्वतंत्र लेखन, मंचीय कविता,ब्लॉगर
संस्थापक –जीवन सारांश समाज सेवा समिति ,बज्म-ए-सारांश (उर्दू हिंदी साहित्य समिति )
सदस्य- ऑथर गिल्ड ऑफ़ इंडिया ,अखिल भारतीय गंगा समिति जलगांव,महानगर लेखिका समिति आगरा ,साहित्य साधिका समिति आगरा,सामानांतर साहित्य समिति आगरा ,आगमन साहित्य परिषद् हापुड़ ,इंटेलिजेंस मिडिया एसोशिसन दिल्ली
प्रकाशित कृति-(तेरह)पापा कब आओगे,नौकी बहू (कहानी संग्रह)सफलता रास्तों से मंजिल तक ,ढाई आखर प्रेम का (प्रेरक गद्ध संग्रह)कमसिन बाला ,कल क्या होगा ,बगावत (काव्य संग्रह )जज्बा-ए-दिल भाग –प्रथम,द्वितीय ,तृतीय (ग़ज़ल संग्रह)टिमटिम तारे ,गुनगुनाते अक्षर,होटल जंगल ट्रीट (बाल साहित्य)
संपादन –तुम को ना भूल पायेंगे (संस्मरण संग्रह ) स्वर्ण जयंती स्मारिका (समानांतर साहित्य संस्थान)
प्रकाशनाधीन –इस पल को जी ले (प्रेरक संग्रह)एक ख्वाब तो तबियत से देखो यारो (प्रेरक संग्रह )
विशेष –आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर निरंतर रचनाओं का प्रकाशन
सम्मान-विभिन्न राजकीय एवं प्रादेशिक मंचों से सम्मानित
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