हरि भटनागर का उपन्यास - एक थी मैना एक था कुम्हार (9)

SHARE:

पिछले अंक 8 से जारी.. आधी रात को कुम्हार की एक दुःस्वप्न में नींद खुल गई। उसका समूचा शरीर काँप रहा था और तेज़-तेज़ साँसें चल रही थीं। वह उठ...

पिछले अंक 8 से जारी..

आधी रात को कुम्हार की एक दुःस्वप्न में नींद खुल गई। उसका समूचा शरीर काँप रहा था और तेज़-तेज़ साँसें चल रही थीं। वह उठ बैठा।

दुःस्वप्न में एक विशालकाय हाथी था जिसकी गर्दन पर महावत की जगह पटवारी बैठा था। पटवारी के हाथ में लोहे का भालेनुमा अंकुश था। पैरों के पंजों से वह हाथी को हँकाता हुआ मुँह से अजीबोगरीब आवाज़ निकाल रहा था जिसका आशय था कि अपनी मज़बूत सूँड़ से पहले कुम्हार का झोपड़ा गिरा, फिर बस्ती में जितने भी झोपड़े हैं एक-एककर उन्हें उजाड़ दो। हाथी के आगे-आगे बाबू है जो झोपड़ों की ओर इशारा कर रहा है कि इन्हें मिनटों में गिराओ, तनिक भी देर न करो।

हाथी जब पटवारी और बाबू के इशारों पर कुम्हार के झोपड़े की ओर भयंकर चिंघाड़ के साथ बढ़ता है तो भोला और कुम्हारिन और गोपी उसके सामने दृढ़ता से खड़े हो जाते हैं। भोला तीखी आवाज़ में कहता है- हमारी जान लेकर ही झोपड़ा गिराया जा सकता है! पहले हमारी जान लो।

पटवारी ग़ुस्से में अलफ। चीखता है- रौंद डालो!

हाथी ऐसा करने को होता है कि...

भोला की नींद खुल जाती है।

झोपड़े के ऊपर से बड़ा-सा चाँद आसमान में उठ रहा था। लगता था जैसे वह काँप रहा हो। भोला को लगा, चाँद की तरह ही उसका झोपड़ा काँप रहा है, नीम में भी यही कंपन हो रहा है। भोला उठा और आँगन में आ खड़ा हुआ। यहाँ घना अँधेरा था। पिछवाड़े का दरवाज़ा खोलकर उसने सामने क्षितिज की ओर देखा- स्याह अँधेरे में सब कुछ डूबा था। लगता था, यहाँ झोपड़े शेष नहीं रह गए हैं। सब उखाड़ दिए गए हैं। वास्तव में क्या ऐसा हो गया है? भोला सोचने लगा- अभी रात में जब वह सोया था तो सब कुछ था- यानी एक-दूसरे के कंधे से कंधा भिड़ाये झोपड़ों की शृंखला थी। जैसे कह रहे हों कि वे एक-दूसरे से जुड़े हैं, उन्हें कोई उखाड़ नहीं सकता। लेकिन आधी रात के अँधेरे में ऐसा क्या हुआ कि सब उखड़ गए। दूर तक फैले खेत अँधेरे के समुन्दर में डूबे थे मानों कह रहे हों कि अब हमें समुन्दर से कोई निकाल नहीं सकता। हमारी यही नियति है। नीम के नीचे अँधेरा और भी गाढ़ा था- भाँय-भाँय करता। न चाक दीखता था न मिट्टी के बर्तनों का ढेर! भोला एकदम से डर गया। मानों सब कुछ उससे छीन लिया गया हो।

यकायक उसका मन हुआ पत्नी को जगा दे। पत्नी ज़मीन पर लेटी थी। उसके बाजू में गोपी सोया था। उन पर भी अँधेरा इतना भारी था कि लगता था, यहाँ कोई है ही नहीं।

छोटे-छोटे डग रखता वह सार की तरफ़ गया जहाँ बड़े मियां विराजमान थे। सार दो तरफ़ से खुला था। यहाँ जब वह खड़ा हुआ- चाँद थोड़ा छोटा हो गया था और चारों तरफ़ उसका उजास फैल गया था। बड़े मियां उसे देखते ही उठने को हुए कि उसने कंधे दबाए कि बैठा रह, उठने की ज़रूरत नहीं।

भोला नीम के नीचे आ गया। स्याह अँधेरा अब न था। उसका डर यकायक जाता रहा। कुम्हारिन और बेटा भी उजास में अब साफ़ दीखने लगे थे।

यकायक उसके दिमाग़ में बच्चू कौंधा। कुएँ में कूदे जाने की घटना याद आई। टी.आई. तोमर याद आया और पटवारी जो बच्चू को जेल में डलवाने की रणनीति लेकर उसके पास आया था। कितना ग़लत है यह सब! भोला बुदबुदाया- पटवारी आख़िर ऐसा क्यों करना चाहता था? उसने तो ऐसा कुछ नहीं चाहा था! फिर? ऐसा कर वह उसे बिल्कुल अकेला कर देना चाहता है- यही उसकी मंशा थी।

दिमाग़ में उसके सहसा एक विचार कौंधा कि बस्ती के एक-एक लोगों के पास वह दौड़ा जाए और कहे कि हीले के चक्कर में अपनी ज़मीन और घर को छोड़ना कहाँ की समझदारी है? सबको कलेक्टर के पास चलकर अपनी बात रखनी चाहिए। हो सकता है, कलेक्टर का मन पसीज जाए और वह निर्णय बस्ती के हित में कर दे! बिना रोए माँ कभी बच्चे को दूध पिलाती है? दूध के लिए हमें रोना पड़ेगा। सब इकट्ठा होंगे तभी हो सकता है, काम बन जाए।

खाट पर लेटते हुए उसने मन बनाया कि सुबह वह सबके पास जाएगा, देखो फिर क्या होता है? चाँद को देखते हुए जो छोटे-छोटे झीने बादलों के बीच भागा चला जा रहा था, उसने आँखें मीचीं और थोड़ी देर में खर्राटे भरने लगा।

***

कुम्हार चुप बैठा है- अपने में कहीं खोया हुआ।

अभी-अभी कुछ देर पहले कुम्हारिन ने उससे कहा था कि वह इस तरह मुँह लटका के न बैठा करे। इस तरह बैठना उसे असगुन जैसा लगता है। अगर भाग्य में दर-ब-दर होना लिखा है तो उसे कोई मेट नहीं सकता और अगर अच्छा होना है तो अच्छा होगा, उसे कोई टाल भी नहीं सकता। इसलिए ख़ुश रहो। जबरन दुःखी न हो।

कुम्हार ने कहा- जबरन दुःखी नहीं हूँ और न होता हूँ। अब तुम्हें क्या बताएँ। जानती हो, बच्चू कह रहा था कि पुलिस से तुम झूठ क्यों बोल गए। जो होना था हो जाता। मैं भुगत लेता। ऐसा करके तुमने मेरे साथ अच्छा नहीं किया। वह बहुत शर्मिन्दा था और दुःखी। उसने कहा कि इस दुःख के चलते वह यहाँ नहीं आएगा चाहे ज़मीन-झोपड़े रहें या जाएँ।

-चलो उसने अपनी ग़ल्ती मानी यह बड़ी बात है।

-काका बीमार हैं, उनसे खड़ा नहीं हुआ जा रहा है। और लोग हैं जो कह रहे हैं कि तू देख ले भोला, हम अब तेरे भरोसे हैं। श्यामल का बाबू भी यही कह रहा था, बताओ ऐसे में क्या करूँ?

-कुछ नहीं करना है, तुम तो जैसा पटवारी ने वचन दिया है काम करने का, वैसा करो। डर तो लगता है कि कहीं वह हमें अँधेरे में तो नहीं रख रहा है, लेकिन उसके अलावा कौन है जो रास्ता सुझावे और साथ चले। तहसीलदार ने तो समय ही नहीं दिया है, अब कलेक्टर साहब का ही वसीला है। मेरा विश्वास है कलेक्टर साहब समय देंगे और अपने पक्ष में होंगे।

-मुझे भी यही लगता है- कुम्हार बोला।

-कल दोपहर 12 बजे का समय बतलाया है। पटवारी ने सारी बातें मुझे समझा दी हैं। कलेक्टर आफिस के बाहर वह मिलेगा।

कुम्हारिन आँगन में चली गई थी और कुम्हार उसे आहत-सा देखता रह गया था कि तभी सामने मैना आ बैठी।

कुम्हार का मन हुआ कि पूछे कि उसके घर पर बदमाशों की छाया है, वह उससे कैसे बचे? -चाहकर भी वह मैना से यह प्रश्न नहीं कर पाया। और यह एक ऐसा प्रश्न था जो उसे लगातार उदासी के गर्त में ठेलता जा रहा था जिससे वह किसी तरह के बचाव का रास्ता नहीं निकाल पा रहा था।

उसने बीड़ी निकाली और उसके धुएँ में डूब गया।

कुम्हारिन ने कुम्हार को धुएँ में डूबे देखा तो सोचा-हो सकता है कुम्हार कोई रास्ता निकाल ले क्योंकि बीड़ी के धुएँ में डूबा वह कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेता है।

***

टी.आई. तोमर से विदा लेकर जब पटवारी घर लौटा, उस वक़्त वह अपने को धिक्कार-सा रहा था कि जब लोग अपने आप निपट रहे हैं ऐसे में उन्हें पुलिस से उलझाना ठीक नहीं। उसे ऐसा नहीं करना चाहिए। यह ग़लत लड़ाई है। यह ग़ल्ती उससे हुई कैसे? क्या वह बाबू है जो पूरी तरह चुगद है जिसे हर क़दम पर सिखाना पड़ता है, इसके बाद भी वह सीख नहीं पाता। ख़ैर... गहरी साँस लेकर यकायक उसने पूरे मामले को दिमाग़ से निकाल दिया और आगे क्या करना है उस पर विचार करने लगा। मामले की पूरी तस्वीर उसके सामने थी। ऊपर के अफ़सरों के बीच जो बात तै हुई, वह यह थी कि काग़ज़ के हिसाब से सिर्फ़ कुम्हार की ज़मीन ही घेरी जाएगी जो उसने स्वेच्छा से दी है, लेकिन काग़ज़ से हटकर समूची बस्ती को भी घेरना है, कब्जे में लेना है। मान लो कल कोई कानूनी अड़चन आ खड़ी हो या कोर्ट-कचहरी में मामला अटके तो बात आईने की तरह साफ़ रहे कि बस्ती की ज़मीन से हमारा कोई लेना-देना नहीं, हमारे पास तो सिर्फ़ कुम्हार की ज़मीन है। इस तरह कुम्हार की ज़मीन के साथ समूची बस्ती की ज़मीन हाथ आ रही है। कारण कि लोग हक़ के लिए सामने आने वाले नहीं। आते भी हैं तो कितने दिन लड़ेंगे? अंततः उन्हें हारना ही है... इन बिन्दुओं को अफ़सरों के सामने रखा गया था जिन पर सभी सहमत थे। कलेक्टर ने भी इन बिन्दुओं पर गहन चिंतन-मनन किया। आख़िर में वह भी सहमत हो गया था।

इन बातों को सोचता पटवारी रात को एक बजे के आस-पास सोया होगा लेकिन तुरंत ही उसकी नींद खुल गई। पत्नी ज़मीन पर चादरा डाले लेटी थी। वह तख़्ते पर था। पत्नी को इस तरह ज़मीन पर सोया पड़ा देखकर उसके मन में यह बात उभरी कि सालों से उसने पत्नी से न ढंग से बात की और न ही प्यार किया। ज़मीन और पैसे के चक्कर में इस तरह खोया कि उसे पत्नी की सुध ही नहीं। वह क्या पहनती है, क्या खाती-पीती है, कैसे गृहस्थी चलाती है? उसने उससे कभी कुछ पूछा ही नहीं और न यह बात महसूस की। उस दिन की घटना उसे याद हो आई जब कुम्हार के कुएँ में कूदने की ख़बर पर वह उस पर बेतरह चिल्लाया था- उसे अपशकुन माना था। यह सब सोच कर वह दुःखी हो गया।

सहसा पत्नी उठकर बैठ गई। धीमी आवाज़ में उबासी लेते उससे पूछा -आप सोए नहीं, तबियत तो ठीक है?

पटवारी ने मन की बात छुपा ली, बोला -हाँ-हाँ, तबियत ठीक है। तुम सो जाओ!

-आजकल आप चिंता बहुत कर रहे हैं, नींद तभी ठीक से नहीं आ रही है -थोड़ा रुककर उसने आगे कहा -चाय बना लाऊँ?

मना करने के बाद भी पत्नी चाय बनाकर ले आई। पटवारी को कप थमाती बोली -लीजिए, चाय पीजिए। मेरी माने तो किसी तरह की चिंता मन में न लाएँ, नहीं बीमार पड़ जाएँगे।

पटवारी ने कप थाम लिया। पत्नी की बात मानते हुए चाय की चुस्कियाँ लेने लगा। यकायक पत्नी लेट गई और खर्राटे भरने लगी। चाय पीकर पटवारी फ्रेश होने चला गया। दो घण्टे तक हनुमान चालीसा का पाठ किया। जैसे ही पाठ ख़त्म किया, पत्नी उठ गई और फिर से चाय बनाने लग गई।

दुबारा चाय पीते हुए पटवारी आज 12 बजे की कलेक्टर की मीटिंग के बारे में सोचने लगा। ठीक उसी वक़्त कुम्हार अपने झोपड़े से निकला। सँकरे, कंकरीले, ऊबड़-खाबड़ रास्ते पार करता वह सबसे पहले बच्चू की झुग्गी के सामने आ खड़ा हुआ। बच्चू के आस-पास बस्ती के आठ-दस परिवार आ बसे थे जो सबके सब मजदूर थे जिनकी औरतें-बच्चे झोपड़ों में किराने की दूकानें चला रहे थे। बच्चू बाहर खाट में धँसा बैठा स्टील के गिलास को गमछे से लपेटे गर्मागर्म चाय पी रहा था। पास में प्लास्टिक के तीस-चालीस डब्बे जमा थे जो आधे भरे थे और आधे भरे जाने थे जिनको उसकी घरवाली नल से पानी ढो-ढोकर भरने में लगी थी। कुम्हार को देखते ही बच्चू खाट से उठ बैठा, बोला- आओ भोला, अच्छे समय पर तुम आए। तुम्हारी भाभी तीन बजे से पानी की लाइन में लग जाती है तब कहीं पानी मिल पाता है। बैठो, एक मिनट में चाय लेके आया- कहता वह झुककर झोपड़े में घुसा और अंदर से बोला- चाय बनी धरी है, गर्म करना भर है।

जब चाय गर्म कर वह लाया, घरवाली डब्बे में पानी कुरोती हाँफती-सी आवाज़ में भोला से कह रही थी- यहाँ बड़ी मारा-मारी है। तीन बजे से उठो, पानी भरो फिर कॉलोनी में निकल जाओ काम के लिए- यही ज़िन्दगी है।

खाँसते हुए बच्चू ने पूछा- ज़मीन का क्या हुआ? -फिर एक उँगली उठाता आगे बोला- यहाँ सब नाकारा लोग हैं, कोई सामने आने वाला नहीं। हाँ, ज़मीन मिल रही होगी तो सब आ टपकेंगे। मैं तो सबसे कह-कह के हार गया। कोई तुम्हारे पास जाने को तैयार नहीं। सब धंधे-पानी का रोना रोने लगते हैं- ऐसे में बताओ भला क्या होगा? -इन्हीं लोगों के चक्कर में मैं भी पीछे हटने लगता हूँ।

भोला चाय का गिलास थामता बोला- आज 12 बजे कलेक्टर साहब ने बुलाया है सबको। मैं तो पहुँचूँगा, देखते हैं क्या होता है। सब लोग आ जाते तो हमारी ताक़त बढ़ जाती- फिर अफस़रान ग़लत काम करने से डरते भी हैं...

-बात तो सई कह रहे हो -बच्चू खाट की पाटी पर बैठता बोला - तुम ठीक से बैठो, चिंता न करो, टूटेगी नहीं...क्या है भोला, भीड़-हंगामे से सभी डरते हैं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि कुछ होगा। गौरमिंट झूठै ज़मीन का हल्ला मचा रही है, कुछ होने वाला नहीं। ज़मीन जब हमारी है तो कोई भला उसे ले कैसे सकता है। मैं तो इसी बात पर अड़ा हूँ कि परधान मंत्री नहीं ले सकते तो ये अल्लू-लल्लू हैं।

-न ले सकें तो बहुतै अच्छा है, मगर मुझे अंदेशा है कि कहीं कुछ गड़बड़ है -भोला ने कहा -यही बात घरवाली भी शुरू से कहती आ रही है -लाख पटवारी ईमानदार हो या अपनापा दिखलाता रहे, विभीषण बनते इसे देर न लगेगी...

बच्चू आँख चमकाता बोला -भौजाई सही कहती है। किसी के पेट में फैली दाढ़ी को भला कौन देख सकता है, लेकिन हम इस बात पर अड़े बैठे हैं कि आज कोई किसी की ज़मीन नहीं हड़प सकता। कलेक्टर अंधा नहीं हो सकता, वह गलत काम नहीं करेगा, तुम देख लेना।

भोला बोला -तो हम ये मानें कि तुम नहीं आओगे, औरों की तो कह रहे हो, अपनी बताओ?

-अब क्या है दादा -बच्चू बीड़ी जलाता, उसका धुआँ नाक से निकालता कांड़ी हवा में लहराकर बुझाता बोला - तुम देख लो, अगर कुछ गड़बड़ दिखे तो ख़बर भर कर देना, मैं हाजिर हो जाऊँगा।

-इनके भरोसे मत रहना दादा -बच्चू की घरवाली पानी का डब्बा पटकती बोली -टेसन पर ये कितनी भी दौड़-धूप करते हों, यहाँ घर में तो खाट तोड़ने के अलावा इन्हें कुछ नहीं आता। ये नहीं आनेवाले जान लो। हाँ, झगड़ा-टंटा करा लो, तुमसे लड़ना था तो पहुँच गए तुम्हारे घर। वह भी जानते हो किसके भिड़ाने पर... पल भर को रुकते हुए वह आगे बोली -हम तो डर गए थे कि हुआ कुछ गड़बड़।

-अरे, ये तो कई बार कूद चुका है -बच्चू हँसा- मज़ा खिलाड़ी है, इसे कुछ नहीं होने वाला!

-ऐसा नहीं है। ये कहो पानी था, नहीं हाथ पैर टूट जाते। सिर में लग जाती। -बच्चू की घरवाली आँखें मटकाती बोली -टी.आई. यहाँ आया था, हाथ गरम हो जाए, इस फेर में था, हमने तो उसकी तरफ़ देखा तक नहीं।

-सुना है भौजाई ने ऐसी धूल झाड़ी उसकी कि एक पल को न रुका, मुँह छिपा के भागा -बच्चू ने कहा- अरे, अरे भोला, कहाँ चले तुम, एक चाय इनके हाथ की तो पीते जाओ... रुको तो सई।

थोड़ी देर बाद कुम्हार परसादे, श्यामल के बाबू, काका और काकी के झोपड़ों के बाहर कच्ची सड़क पर नाली के किनारे खड़ा था। नाली ठहरी हुई थी, दुर्गंध छोड़ती जिसमें मच्छर-मक्खियाँ मँडरा रहे थे। नाली पर एक बड़ा-सा पत्थर रखा था जो आने-जाने का रास्ता था। काकी डंडे के सहारे पत्थर पर पैर जमाती धीरे-धीरे चलती, चूड़ियों भरा हाथ कमर पर रखे, दूर से चिल्लाती आवाज़ में बोलती आईं - काये भोला, बुढ़ापे में तो हमारी दुर्गति हो गई। कोई न कोई दिक बनी रहती है, क्या करें? कभी सिर में दर्द, कभी कमर में, कभी पेट में, कभी कंधों में। आँखें भी आगलगी चली गई हैं, सूझता ही नहीं कुछ। तुम्हारे काका का भी यही हाल है, बेचारे चार दिन से खाट पर पड़े हैं, कमर में कसका लगा है...

कुम्हार ने दौड़कर काकी को सहारा दिया। काकी झूठी नाराज़गी में उसके सिर पर हाथ मारती बोलतीं - तू झोपड़े में चल, यहाँ कहाँ आ खड़ा हुआ, चल। यहाँ तो आगलगी ऐसी बुरी बास उठ रही है कि...

इस बीच परसादे, श्यामल का बाबू और तीन-चार नवयुवक कुम्हार के पास आ गए।

श्यामल का बाबू बोला - हमें ख़बर लग गई है, 12 बजे कलेक्टर ने मिलने का समय दिया है, लेकिन भोला, यह बात समझ में नहीं आती कि जब नीचे के अफ़सर ने कई दिन पदाने के बाद भी समय नहीं दिया तो ये तो कलेक्टर- जिले का राजा, ये हमें समय देगा, हमसे मिलेगा? हमारा दर्द सुनेगा?

कुम्हार ने विनीत स्वर में कहा- भैया, पटवारी ने घर आकर हमें ख़बर दी है कि साहब हमारी बातें सुनना चाहते हैं।

परसादे ने यकायक चीखकर कहा -तो पहले वाले ने हमें क्यों रुलाया?

-सब एक से एक खुर्राट हैं, हमारी कोई नहीं सुनने वाला -एक नवयुवक जो हाथ में कड़ा पहने था, सिर के बाल कंधे तक थे, रंग उड़ी कसी जींस पहने था, कानों में पीतल के कुण्डल थे, कड़क आवाज़ में बोला -उस दिन तो हमने पटवारी को छोड़ दिया था, अब ज़रा भी गड़बड़ हुई तो उसकी ख़ैर नहीं... गला... कहकर वह अपना मजबूत पंजा देखने लगा।

काकी तिरछी नज़रों से नवयुवक को देखती- चिल्लाती-सी बोलीं -चल दुष्ट, बड़ा आया ख़ैर लेने। पटवारी थोड़ै कुछ कर रहा है।

-तो कौन कर रहा है? -नवयुवक जलती आँखों से काकी को देखता उनके मुँह से मुँह सटाता, तीखी आवाज़ में बोला।

-मुँह में थूक रहा है कमीन, हट -काकी ज़ोरों से चीखीं और ज़मीन पर थूकती बोलीं।

-काकी से तू क्यों उलझ रहा है? -श्यामल का बाबू नवयुवक को समझाता बोला।

-कुम्हार दादा से मैं नहीं बोलूँगा -नवयुवक ने कहा।

-क्यों नहीं बोलेगा?

-बो अपने मन की करेंगे, लाख हम कहें वे सुनने से रहे।

-कब नहीं सुनी तुम्हारी बात? -कुम्हार नवयुवक के सामने आ खड़ा हुआ, पूछा -तूने कौन सी बात कही बता पहले जो मैंने नहीं सुनी? हम तो जो सबकी राय बनी उसी के हिसाब से चलते आए हैं अब तक। अब साहब टैम नहीं दे रहा है या आगे कलेक्टर टैम देकर जुल दे जाए तो इसके लिए हम दोखी थोड़ै हैं। इसमें हमारी क्या ग़लती है बताओ! हमारा काम है पहले एक होकर रहना -अपनी बात कलेक्टर के सामने रखना। अगर हम एक नहीं होंगे, बिखरे रहेंगे, तो इसका लाभ सामने वाला उठाएगा। आज जब कलेक्टर ने हमें बुलाया है तो हम लोगों को एकजुट होकर जाना चाहिए। उनसे फरियाद करनी चाहिए।

काकी चीखीं- वहाँ कोई नहीं जाए, बस यहीं भोला के सिर पर गुस्सा फोड़ो -काकी गुस्से से तमतमा उठीं, बड़बड़ाने लगीं -सब एक से आगलगे, अपने मन के, नासपीटे। लुघरियाजले!!!

भोला ने सबकी ओर नज़र डालते हुए सहज भाव से कहा -देखो, मेरा फरज तो आप लोगों को बताने, साथ ले चलने का है, अब तुम लोग हमीं पर इलजाम लगाने लग जाओ, हमारी पीठ पर धूल लगाने लगो तो चुप हो जाने के अलावा हम कुछ नहीं कर सकते।

यहाँ से कुम्हार निकला तो बस्ती के दूसरे लोगों के पास नहीं गया। उसका मन ख़राब हो गया था। उसे गुस्सा आ रहा था लोगों पर। उसने तै कर लिया था कि बस्ती के लोग साथ हों तो अच्छा; न होने पर वह पीछे हटने वाला नहीं। लड़ाई वह अंतिम साँस तक लड़ेगा।

जब वह नीम के नीचे पहुँचा, कुम्हारिन ने मुस्कुराते हुए उसका स्वागत किया। ठीक उसी वक़्त मैना मीठे स्वर में गा उठी। उसका मन प्रसन्न हो गया।

वह कुएँ पर गया और गड़ारी से खींच-खींचकर कई कलसे अपने बदन पर डाले। रोटी खाकर वह सीधे पटवारी के पास जाएगा -कलेक्टर ऑफिस।

***

--

(क्रमशः अगले अंक में जारी...)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: हरि भटनागर का उपन्यास - एक थी मैना एक था कुम्हार (9)
हरि भटनागर का उपन्यास - एक थी मैना एक था कुम्हार (9)
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgDPErhSp4U154YrO7i4gXJH8XNlwr6Or21iEg9aFXWlRXkf6jdCRV8o1Ni6KZwCcAn91etV0wg6_82eXsLTW6Mn_K55xxXmKdWIpSpZKR6mAvZOmaRRNOVT79cNiZyVegiiWj5/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgDPErhSp4U154YrO7i4gXJH8XNlwr6Or21iEg9aFXWlRXkf6jdCRV8o1Ni6KZwCcAn91etV0wg6_82eXsLTW6Mn_K55xxXmKdWIpSpZKR6mAvZOmaRRNOVT79cNiZyVegiiWj5/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2014/12/9.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2014/12/9.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content