( पिछले अंकों से जारी… ) सृष्टि व ब्रह्माण्ड - खंड –ब.. जीवन , जीव व मानव--- भाग १. आधुनिक वैज्ञानिक मत सृष्टि व ब्रह्माण्ड -क्रम के क...
सृष्टि व ब्रह्माण्ड - खंड –ब.. जीवन, जीव व मानव--- भाग १. आधुनिक वैज्ञानिक मत
सृष्टि व ब्रह्माण्ड -क्रम के क्रमिक आलेख के इस द्वितीय क्रम खंड-ब“ जीवन, जीव व मानव” में हम - जीवन कैसे आरम्भ हुआ, जीव में गति, आकार वर्धन व सन्तति वर्धन (रीप्रोडक्शन), लिन्ग भिन्नता भाव (सेक्सुअल सिलेक्शन ), सन्ततिवर्धन की लिन्गीय स्वतः चालित प्रणाली (सेक्सुअल ओटोमेशन फ़ोर रीप्रोडक्शन) कैसे प्रारम्भ हुआ एवम प्राणी व मानव का विकास क्रम तथा भविष्य का मानव –विषयों पर, आधुनिक वैज्ञानिक मत, पाश्चात्य दर्शन व भारतीय वैदिक विज्ञान सम्मत विचारों से, निम्न तीन प्रलेखों द्वारा अवगत करायेंगे-
भाग १-पाश्चात्य दर्शन व आधुनिक वैज्ञानिक मत, डार्विन सिद्धान्त .
भाग २-वैदिक-विज्ञान सम्मत मत.
भाग ३- भविष्य का महामानव .
भाग १-आधुनिक वैज्ञानिक मत
आधुनिक विज्ञान मूलतः डार्विन की थिओरी (सर चार्ल्स डार्विन-१८०९—१८८२ ई), ओरिज़िन ओफ़ स्पेसीज़ (१८५९) पर केन्द्रित है। वस्तुतः डार्विन की थ्योरी कोई नवीन खोज नहीं थी अपितु प्राचीन ग्रीक धारणाएं-आगस्ताइन, अरस्तू, लिओनार्डो डा विंसी, अल्फ़्रेड रसल, प्लेटो आदि दार्शनिकों के विचारों की पुष्टि व समाशोधन ही था, वस्तुतः विज्ञान..दर्शन से ही प्रारम्भ होता है।
आगस्टाइन को- अडाप्टेशन व हेरीडिटी के बारे में पता था। प्लेटो के अनुसार-ईश्वर एक सम्पूर्णता है तथा महानता की क्रमिकता (अ ग्रेट चेन) के अनुसार ‘सर्वाइवल ओफ़ फ़िटेस्ट’ पर कार्य करता है । अरस्तू के अनुसार प्राणी, रौक (शिला-अर्थात कण=एटम ) से à सामान्य जीवà जटिल प्राणी à मानव à एन्जिल्स... की सीढी (लेडर लाइक) प्रणाली से बना। ग्रीक दार्शनिक एनाक्सीमेन्डर (ई.पू.६१०—५४६ ईपू ) ने बताया कि जीवन जल की नमी से सर्वप्रथम जल में हुआ फ़िर सरलà जटिल प्राणीàमछली व मानव बना,--चित्र अ--। ब्रह्मांड ( यह शब्द वैदिक देन है ) एक प्रारम्भिक अन्ड ( अ प्राइमोर्डियल एग --कोस्मोस) से बना । इन दर्शनों के अनुसार समस्त विश्व एक सम्मिलित श्रेणी (कोमन डिसेन्ट) व एक जीन पूल से बना है। इन्ही दर्शनों को डार्विन ने प्रयोगों, अनुभवों द्वारा अपनी थ्योरी का आधार बनाया, वस्तुतः ये प्राचीन दर्शन व्यक्तिवादी, मानवतावादी व ईश्वर-अनीश्वर-विज्ञान वादी थे, वह तो बाद में कठोर ईश्वरवादी धर्मों – क्रिश्चियन व इस्लाम में सब कुछ गोड या खुदा द्वारा ६ या ७ दिनों में बनाया गया बताया है, जो इवोल्यूशन में विश्वास नहीं रखते ।
१.जीवन – विज्ञान के अनुसार ओक्सीज़न न होने से पृथ्वी पर जीवन नहीं था, शायद जल में उपस्थित ओक्सीज़न परमाणु किसी तरह माइक्रो-मोलीक्यूल बने और जल में अपने आप को पुनः वर्धित करके प्रथम एक कोशीय जीव बना अथवा धूमकेतु के साथ पृथ्वी पर जीवन आया व विकसित हुआ । इस सम्बन्ध में मूलतः ये मत हैं—
----(अ) उल्काओं की वर्षा या धूम्रकेतु के साथ जीवन वहां से पृथ्वी पर-- जल-महासागरों में आया.
----(ब) धूम्रकेतु या उल्का के जल में गिरने पर उत्पन्न तीब्र ताप की, उपस्थित कणों से प्रतिक्रियाओं के फलस्वरूप जीवन की उत्पत्ति हुई ।
---(स)-१९५० में अमेरिकन केमिस्ट व बायोलोजिस्ट, स्टेनले लायड मिलर तथा यूरे ने प्रयोगों द्वारा पयोग शाला में अकार्बनिक पदार्थों से सामान्य भौतिक प्रक्रियाओं से जैविक (कार्वनिक) पदार्थ बनाने में सफ़लता प्राप्त की । अमोनिया, हाइड्रोज़न व मीथेन (जैसी ज्यूपिटर आदि ग्रहों पर स्थिति है ) गेसों के मिश्रण में जल वाष्प की उपस्थिति में विद्युत पास की, तो भूरे रन्ग का –अमीनो-असिड जैसा पदार्थ बना जो न्यूक्लिअक-अम्ल (जो प्रत्येक जीव कोशिका का मूल अंग है) बनाने में मूल हिस्सा निभाता है। मिलर के अनुसा्र–जीवन की प्रथम बार उत्पत्ति का यह कारण हो सकता है।
इस प्रकार( विज्ञान के अनुसार मूलतः संयोग ही ) इस प्रकार प्रथम जीवन जो एक जीवाण् (बेक्टीरिया) के रूप् में आया जो आज भी वनस्पति जगत व प्राणि-जगत दोनों में माना जाता है, जिससे एक कोशीय प्राणी ( अमीवा) व एक कोशीय–पौधे (स्पाइरोगाइरा,यूलोथ्रिक्स् आदि) फ़िर क्रमश: वनस्पति व प्राणी व मानव वने ।
गति, वर्धन, सन्तति वर्धन, लिन्ग भिन्नता एवम लिन्गीय स्वचालित सन्तति वर्धन प्रणाली ---के अस्तित्व में आने को विज्ञान मूलतः संयोग ही मानता है , कोई निश्चित धारणा नहीं है। डार्विन के अनुसार- एक कोशीय जीव से –मानव तक विकास के लिये मूलतः निम्न चार प्रमुख बिन्दु—भूमिका निभाते हैं…..
(क.)- जीवन के लिये सन्ग्राम (स्ट्रगल फ़ोर एग्ज़िस्टेन्स)—परिस्थिति के अनुसार स्वयं को ढालना, बदलना ।
(ब)- उपयुक्त का जीवित रहना-( सर्वाइवल ओफ़ फ़िटेस्ट )—कमजोर प्रज़ातियां नष्ट होजाती हैं, यथा... पृथ्वी पर कालान्तर में जल के अथाह सागर कम होने, वनस्पति के कम होने, व स्तनपायियॊं के आने पर डायनासोरों का समाप्त होना ।
(स)—प्राकृतिक चुनाव ( नेचुरल सिलेक्शन)—प्रकृति (??? या ईश्वर???) अपने अनुसार स्वयम चुनाव कर लेती है कि कौन कब, कितनी- सन्बर्धन, प्रगति करेगा ।
(द)—उत्परिवर्तन ( म्यूटेशन )—किसी भी जीवधारी में अचानक कोई भी स्वतः बदलाव आ सकता है, परिस्थिति, वातावरण, आवश्यकतानुसार या बिना किसी कारण के----मूलतः परिस्थिकी (ईकोलोजी ), अडाप्टेबिलिटी, हेरीडिटी व जीन–ड्रिफ़्ट के अनुसार उपरोक्त बदलाव होते हैं।
मानव का विकास क्रम---- उपरोक्त कारणों व बिन्दुओं के अनुसार ही, डार्विन के मतानुसार एक कोशीय जीव-àबहुकोशीय-àकीट-कृमि आदि-à मत्स्य-à जल-स्थलचरàसरीस्रप( रेंगने वाले रेप्टाइल)-àस्तन धारी-àवानर-àगोरिल्ला आदि क्रमिक विकास से मानव बना।
ग्रीक दर्शन के अनुसार विकास इवोल्यूशन ( विज्ञान)
प्राणी का विकास मानव का विकास
क्रमश:.. जीवन, जीव व मानव--- भाग २-वैदिक-विज्ञान सम्मत मत....
धन्यवाद रवि जी....
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