पूर्वोत्तर भारत में हिन्दी प्रोफेसर महावीर सरन जैन स्वतंत्रता के बाद उत्तरपूर्वीय क्षेत्र को असम राज्य के अन्तर्गत वर्गीकृत किया गया। ...
पूर्वोत्तर भारत में हिन्दी
प्रोफेसर महावीर सरन जैन
स्वतंत्रता के बाद उत्तरपूर्वीय क्षेत्र को असम राज्य के अन्तर्गत वर्गीकृत किया गया। सन् 1960-70 में नागालैण्ड, मेघालय और मिजोरम राज्यों का गठन किया गया। वर्तमान में पूर्वोत्तर भारत से सात बहनों के नाम से प्रसिद्ध निम्न सात राज्यों का बोध होता है –
राज्य का नाम | राज्य की राजधानी का नाम |
अरुणाचल प्रदेश | ईटानगर |
असम | दिसपुर (गुवाहाटी का भाग) |
मणिपुर | इम्फाल |
मेघालय | शिलांग |
मिज़ोरम | आइज़वाल |
नागालैण्ड | कोहिमा |
त्रिपुरा | अगरतला |
उत्तरपूर्वीय क्षेत्र में सन् 1947 ईस्वी में सिक्किम की स्थिति भारतीय संरक्षित राज्य की थी। सन् 1975 से यह भारत का पूर्ण राज्य है। इन आठ राज्यों के विकास के लिए सन् 1971 में केन्द्रीय संस्था के रूप में पूर्वोत्तर परिषद (North Eastern Council) के गठन के बाद से भारत सरकार ने इस क्षेत्र में हिन्दी की प्रगति के लिए प्रभावी योजना बनाना आरम्भ किया। हम ‘असम में हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार’ के सम्बंध में अलग से एक लेख में विचार कर चुके हैं। शेष राज्यों में हिन्दी की स्थिति के सम्बंध में विचार करना ही अभीष्ट है।
इन राज्यों में सेना, सुरक्षा से जुड़े हुए जवान, व्यापार के लिए हिन्दीभाषा क्षेत्र से जाकर इन राज्यों में बस जानेवाले व्यापारी, पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार से काम के सिलसिले में इन राज्यों में काम करनेवाले मजदूरों के कारण यहाँ हिन्दी भाषा का प्रचार प्रसार हुआ। असम के न्यू बोगाई-गाँव नामक जनपद मुख्यालय में बीसवीं सदी के अन्तिम दशक में 31 वीं वाहिनी पी. ए. सी. के सेनानायक डॉ. अजित कुमार सिंह ने पूर्वोत्तर भारत में हिन्दी के प्रयोग एवं व्यवहार के सम्बंध में अपने अनुभव इस प्रकार व्यक्त किए हैं –
“पूर्वोत्तर भारत में राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति वगाव में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। बोंगाई-गाँव, कोकराझार, धुबरी, रंगिया, गौहाटी एवं शिलांग में ही नहीं वरन् दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में भी हिन्दी बोलनेवाले और समझनेवाले पर्याप्त संख्या में मिले। - - - - पूर्वोत्तर भारत में हिन्दी समझने एवं जानने वाले तथा बोलने वाले की संख्या पर्याप्त है। हमारी वाहिनी के कर्मचारीगण जो मात्र हिन्दी भाषी थे, वे दूरस्थ वन क्षेत्रों तक में नियुक्त थे। बाजार से सामान क्रय करने एवं एक दूसरे की भावनाओं के आदान-प्रदान में उन्हें कहीं भी निराश नहीं होना पड़ा”।
(पूर्वोत्तर भारत का इतिहास, पृष्ठ (1), सदानीरा प्रकाशन, लखनऊ (1998))
पूर्वोत्तर राज्यों में हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में केन्द्रीय हिन्दी संस्थान का योगदान भी उल्लेखनीय है। संस्थान के तीन केन्द्र गोवाहाटी, शिलांग तथा दीमापुर में स्थित हैं। ये तीनों केन्द्र अपने-अपने कार्य क्षेत्रों के राज्यों में हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार के विशेष कार्यक्रम चलाते हैं तथा विशेष रूप से हिन्दी शिक्षण-प्रशिक्षण के क्षेत्र में कार्यरत हिन्दी अध्यापकों के लिए आवश्यकतानुसार एक सप्ताह से लेकर चार सप्ताहों के लघु अवधीय नवीकरण पाठ्यक्रमों का संचालन करते हैं। इन पाठ्यक्रमों में प्राध्यपकों को भाषा-शिक्षण की उन पद्धतियों का ज्ञान कराया जाता है जिनको ध्यान में रखकर वे अपने स्कूलों में उन विद्यार्थियों को हिन्दी पढ़ा सकें जिनकी मातृभाषा हिन्दी नहीं है। विशेष रूप से पूर्वोत्तर के विद्यार्थियों को हिन्दी सीखते समय किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है तथा उनकी कठिनाइयों का समाधान किस प्रकार किया जा सकता है। गोवाहाटी के केन्द्र का कार्य क्षेत्र असम, अरुणाचल प्रदेश एवं सिक्किम राज्य हैं। शिलांग के केन्द्र का कार्य क्षेत्र मेघालय, त्रिपुरा एवं मिजोरम राज्य हैं। दीमापुर के केन्द्र का कार्य क्षेत्र नागालैण्ड एवं मणिपुर राज्य हैं। संस्थान ’समन्वय पूर्वोत्तर‘ शीर्षक त्रैमासिक पत्रिका का प्रकाशन करता है जिसमें पूर्वोत्तर भारत के राज्यों के लेखक अपने अपने राज्य में प्रचलित लोक कथाओं, लोकगीतों आदि का हिन्दी में अनुवाद कर रहे हैं तथा मौलिक सर्जन भी कर रहे हैं। इसका दूरगामी परिणाम यह होगा कि वे अपने अपने क्षेत्र की जनभाषा को देवनागरी लिपि में लिखने के अभ्यस्त हो जाएँगे।
अब हम कुछ राज्यों के संदर्भ में हिन्दी की स्थिति पर विचार करेंगे।
1.मणिपुर में हिन्दी-
मणिपुर में ‘हिन्दी साहित्य सम्मेलन’ की ओर से सन् 1928 ईस्वी से हिन्दी का प्रचार-कार्य शुरु हो गया था। कुछ वर्षों बाद यहाँ ‘राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा ने अपनी शाखा खोल दी। यहाँ इम्फाल में के हिन्दी प्रेमियों ने मिलकर 07 जून, सन् 1953 ईस्वी को ’मणिपुर हिन्दी परिषद‘ की स्थापना की। इसकी स्थापना के लिए श्री मणिस्ना शर्मा शास्त्री की पहल पर बुलाई गई बैठक में हिजम विजय लिंह, नीलवीर शास्त्री, भागवत देव शर्मा, चन्द्रमणि सिंह आदि उपस्थित थे। मणिपुर की दूसरी संस्था का नाम ’मणिपुर राष्ट्रभाषा प्रचार समिति‘ है। दिनांक 12 अक्टूबर, सन् 1998 ईस्वी को इस संस्था ने हमें सम्मानित किया। इस कारण हमें इस संस्था की गतिविधियों, मणिपुर के हिन्दी प्रेमियों तथा मणिपुर में हिन्दी के व्यवहार की स्थिति को नजदीक से देखने, जानने, परखने का अवसर प्राप्त हुआ।
मणिपुर के प्रमुख हिन्दी प्रचारक और हिन्दी सेवी –
1. लाइयुम ललित माधव शर्मा 2. टी. वी. शास्त्री 3. फु. गोकुलानंद 4. एन. तोम्बीसिंह 5. हेमाम नीलमणि सिंह 6. अरिबम पंडित राधा मोहन शर्मा 7. क. हिमाचार्य शर्मा 8. एस. नीलवीर शर्मा शास्त्री 9. अरिबम घनश्याम शर्मा 10. राधागोविंद थोङाम 11. कालाचाँद शास्त्री 12. नन्दलाल शर्मा 13. नवीन चाँद 14. सिजगुरुमयुम 15. लाइमयुम नारायण शर्मा 16. फिराइलात्पम पंडित जगदीश शर्मा 17. द्विजमणि देव शर्मा |
नागालैण्ड में हिन्दी
नागालैण्ड के प्रमुख हिन्दी सेवक ब्रज बिहारी कुमार हैं। नागालैण्ड के लिए सन् 1992 से सन् 1998 की अवधि में केन्द्रीय हिन्दी संस्थान ने हिन्दी शिक्षण डिप्लोमा पाठ्यक्रम की पाठ्य-पुस्तक का संशोधन एवं परिवर्द्धन करके उसकी पाण्डुलिपि प्रकाशन के लिए नागालैण्ड सरकार को सौंप दी। नागालैण्ड शिक्षा बोर्ड की कक्षा 9 से कक्षा 10 की हिन्दी पाठ्यपुस्तकों के निर्माण का कार्य किया। श्री के. फ्योखामो लोथा को ’हिन्दी-अंग्रेजी-लोथा शब्दावली और शब्दकोश‘ बनाने के लिए प्रेरित किया तथा कार्य सम्पन्न होने पर उसको प्रकाशित करने के प्रति सहमति व्यक्त की। उक्त पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है। हिन्दी अंगामी द्विभाषी शब्दकोश प्रकाशित हो चुकी है। हिन्दी प्रचार के लिए ’नागालैण्ड राष्ट्रभाषा प्रचार समिति‘ कार्यरत है। नागालैण्ड मे अनेक जनभाषाएँ बोली जाती हैं। इन समस्त जनभाषाओं एवं असमिया तथा हिन्दी के मेल जोल से तैयार समन्वित भाषा का चलन बढ़ रहा है जिसको नागालैण्ड के लोग ’तेञीदिए‘ के नाम से पुकारते हैं और जिसको अंग्रेजी के ग्रंथों की देखा देखी ’नागामीज़‘ कहा जाता है। इसमें मौसम, प्रार्थना, अंग आदि अनेक हिन्दी शब्दों का प्रयोग होता है तथा हिन्दी फिल्मों के संवादों तथा गानों में प्रयुक्त शबदों का चलन बढ़ता जा रहा है। केन्द्रीय हिन्दी संस्थान नागालैण्ड के हिन्दी अध्यापकों के लिए सन् 1972 से विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित कर रहा है जिसमें प्रति वर्ष नागालैण्ड से बीस से तीस हिन्दी अध्यापक आगरा आते हैं तथा प्रशिक्षण के बाद आगरा से अपने यहाँ ’हिन्दी के राजदूत‘ बनकर लौटते हैं। धीरे धीरे नागालैण्ड के अंगामी, रेंगमा, लोथा, चाखेसाङ, फोमा आदि जनऊषाओं के बोलनेवाले देवनागरी लिपि को अपना रहे हैं।
मिज़ोरम में हिन्दी
मिजोरम में श्री दारछोना ने हिन्दी के प्रचार का कार्य शुरु किया। मिज़ोरम के हिन्दी सीखनेवालों की सुविधा के लिए केन्द्रीय हिन्दी संस्थान ने सन् 1998-99 सत्र में हिन्दी-लुशाई शब्दकोश के निर्माण का कार्य सम्पन्न किया। यह प्रकाशित हो चुका है। संस्थान ने मिजोरम राज्य की कक्षा 5,6, 7 तथा 8 की पाठ्यपुस्तकों का संशोधन कार्य सम्पन्न किया है तथा उनकी पाण्डुलिपि राज्य सरकार को सौंप दी है। मिज़ोरम की डॉ. इंजीनियरी जेनी संस्थान में हिन्दी की प्रोफेसर हैं तथा इन्होंने ’पूर्वांचलीय हिन्दी साहित्य‘ पर शोध कार्य किया है तथा इनका हिन्दी मिज़ो शब्दकोश प्रकाशित हो चुका है। हिन्दी के प्रचार की संस्था का नाम ’मिज़ोरम हिन्दी प्रचार सभा, आइजोल‘ है। आर. एल. थनमोया एवं ललथलमुआनो हिन्दी-मिजो परियोजना पर कार्य कर रहे हैं।
मेघालय में हिन्दी
संस्थान ने सन् 1976 में अपना शिलांग केन्द्र खोला। हमने निदेशक के रूप में फरवरी, सन् 1995 ईस्वी में इस केन्द्र का संदर्शन किया तथा मेघालय, त्रिपुरा एवं मिजोरम राज्यों में हिन्दी की स्थिति का साक्षात्कार किया। हिन्दी-खासी द्विभाषी कोश प्रकाशित है। संस्थान ने मेघालय के सरकारी स्कूलों के कक्षा 5 से 7 तक की पुस्तकों का निर्माण किया है। यहाँ की दो प्रमुख भाषाओं – खासी तथा गारो- का हिन्दी से व्यतिरेकात्मक विश्लेषण का कार्य हो रहा है। इससे खासी भाषी तथा गारो भाषी विद्यार्थियों के लिए हिन्दी प्रशिक्षण सामग्री और अधिक वैज्ञानिक ढंग से बनाई जा सकेगी। संस्थान ने मेघालय राज्य की कक्षा 5, 6, 7, 8 की पुस्तकों का निर्माण किया है। आशा है अब तक ’हिन्दी-खासी-गारो-अंग्रेजी बाल शब्दकोश‘ बन चुका होगा। प्रोफेसर एस. लमारे एवं श्रीमती जीन एस. इखार हिन्दी-खासी परियोजना पर कार्य कर रहे हैं।
त्रिपुरा में हिन्दी
त्रिपुरा के हिन्दी प्रचारकों में रमेन्द्र कुमार पाल का नाम उल्लेखनीय है। डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा तथा खोमतियादेव वर्मा हिन्दी-कॉकबरॉक परियोजना पर कार्य कर रहे हैं।
प्रोफेसर महावीर सरन जैन
सेवानिवृत्त निदेशक, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान
123, हरि एन्कलेव, चाँदपुर रोड
बुलन्द शहर (उत्तर प्रदेश)पिन – 203 001
855 DE ANZA COURT
MILPITAS CA
(U. S. A. ) 95035-4504
यह आलेख पूर्वोत्तर भारत के हिंदी सेवियों का नाम प्रकाश लाने की दृष्टि से महत्वपूर्ण लगता है| लेखक का यह प्रयास प्रशंसनीय है| इस प्रकार के प्रकाशन से लोगों में हिन्दी के प्रयोग के प्रति एक नई ऊर्जा का संचार होना चाहिए |
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