सीमा असीम (1) करनी आज दिल की बात है॥ गुनगुनाती सी सुबह और मुस्कुराती साँझ है। पास तो बैठो प्रिये तुम, पास तो बैठो प्रिय तुम, करनी आज द...
सीमा असीम
(1) करनी आज दिल की बात है॥
गुनगुनाती सी सुबह और मुस्कुराती साँझ है।
पास तो बैठो प्रिये तुम, पास तो बैठो प्रिय तुम,
करनी आज दिल की बात है॥
गुनगुनाती सी सुबह और मुस्कुराती साँझ है।
बिन तुम्हारे कैसे कटती , बिन तुम्हारे कैसे कटती ,
पौस की यह रात है।
गुनगुनाती सी सुबह और मुस्कुराती साँझ है।
अनकही सी अनसुनी सी, अनकही सी अनसुनी सी
कौन सी यह बात है।
गुनगुनाती सी सुबह और मुस्कुराती साँझ है।
न बुझे है यह कभी भी, न बुझे है यह कभी भी
कौन सी यह प्यास है।
गुनगुनाती सी सुबह और मुस्कुराती साँझ है।
देखने को तरसे नैना, देखने को तरसे नैना,
अब तुम्हारी आस है।
गुनगुनाती सी सुबह और मुस्कुराती साँझ है।
बस चुके हो दिल में मेरे , बस चुके हो मन में मेरे ।
तन की अब क्या बात है।
गुनगुनाती सी सुबह और मुस्कुराती साँझ है।
पास तो बैठो प्रिये तुम, पास तो बैठो प्रिय तुम,
करनी आज दिल की बात है॥
(2) ओढ़ चुनरिया फूलों वाली हवा में जो लहराई
फूलों वाली चूनर जो मैंने लहराई,
तेरे प्यार की खुष्बू सारी मैं उसमें भर लाई
उस खुष्बू से मैंने अपना जीवन महकाया
उतरा है फिर उसमें तेरे प्यार का साया
जिन्दगी लेने लगी है एक अँगड़ाई
तेरे प्यार की खुश्बू सारी मैं उसमें भर लाई
जज्बातों का आलम किस कदर है मुझ पर छाया
प्यार तो कम दर्द बहुत ही पाया
बिन तेरे प्यार न गुजरे अब यह तरूणाई
तेरे प्यार की खुश्ब सारी मैं उसमें भर लाई
हवाओं ने छेड़े हैं कैसे तराने
होठों पर रहते हैं तेरे फँसाने
कलियां भी खिलकर कैसी निखर आईं
तेरे प्यार की खुश्बू सारी मैं उसमें भर लाई
रंगों में सारे रंग मिलने लगे
दिल के कमल ऐसे खिलने लगे
ऋतुऐं भी अब देखो मुस्कुराईं
तेरे प्यार की खुश्बू सारी मैं उसमें भर लाई
दिल में जगा दी है कैसी ये हसरत
बिन तुम्हारे जीवन का न कोई मकसद
वहा दो अब सुहानी पुरवाई
तेरे प्यार की खुश्बू सारी मैं उसमें भर लाई
3 प्रिये
कितना माधुर्य
कितना पे्रम
छलक उठता है
जीवन में
एक मधुमास आ जाता है
बसंत दस्तक देने लगता है
हर समां रंगीन
खुशनुमा लगने लगता है
जब तुम कह देते हो
ओ प्रिये
मेरी प्रिया।
4 मौसम
बरखा बादल फुहारें
कितना हसीन मौसम है
हर बार आता है
पर इस बार कुछ अलग है
कुछ पाने का, कुछ खोने का
यह मौसम का तकाजा है
या प्यार का नशा
नहीं जानती
कभी काली घटायें ले आती हैं
मन में उदासी
तो कभी बादलों के बीच से फूटती
किरण
भर जाती हैं
खुशी का उजाला
तन मन चमक उठता है
उस प्रकाश में
धानी चुनर ओढ़
निखर उठती हूँ
सज संवर जाती हूं
इतराती, इठलाती
फुहारों का आनन्द लेती
निकलती हूं
तो एक बिजली की कड़क
डरा जाती है
सहमा जाती हूँ
कि कहीं सूर्य को तो कुछ नहीं हुआ
वह सुरक्षित तो है न
बादलों के पीछे
तभी बादलों के सीने को चीरता
अपने अस्तित्व और तेज के साथ
हॅसता मुस्कुराता माथे को चूमता
आकाश की धाती पर चमक उठता है
अपने पूरे तेज के साथ
गीली धरा की
प्यास को कुछ और बढ़ाने को।
5 प्यार तुम्हारा
तुम्हारा प्यार है रूई के
नर्म फाहे के जैसा
जो सहलाता है
जख्मी रिसती चोट को
प्यार से धीरे-धीरे
फिर ढक लेता है
अपने कोमल नर्म
एहसास तले
दर्द, तकलीफ को
अपने अंदर समेट कर
ले आता है मुस्कुराहट
पीड़ा से छटपटाते चेहरे पर
दिल में प्यार जगाते हुए
भर देता है ललक
जीवन जीने की
मंजिल की ओर
बढ़ते हुए जो कदम
ठिठक गये थे
चोट खाकर
उनमें भर है देता है
रवानगी।
6 मैं मौन थी
मैं मौन थी
फिर भी तुम ताड़ गये
पढ़ लिया मुझे
मेरे भावों से
स्वप्नों से भरी
मेरी आँखें देख
चूम कर सजीव कर गये
मेरे मौन को भी
अब सुन रहे हो
समझ रहे हो।
एक साथ है तुम्हारा
तो कुछ बोझिल नहीं
हॅसी है
खुशी है
और है मुस्कुराहट
होठों पर
साथ हो तुम
तो सब रास्ते
आसान हो जाते हैं
किसी राह पर डगमगा
जाती हूं
तो तुम्हारी बाहें
दे देती हैं सहारा
घबरा जाती हूं
जब कभी
तब तुम्हारी बातें
बंधा जाती हैं ढांढस
प्यार से समझाते हुए
काई भी पथ कोई भी डगर
आसान हो जाती है
जब साथ हो तुम्हारा।
औपचारिक
इतनी औपचारिक
इतनी बेरूखी
तुम कैसे कर सकती हो
तुम तो प्यार करती हो
हाँ सच कहा
मैं ही तो करती हूँ
तुमसे प्यार
तुम्हारा इंतजार
तुम्हारी हर गलती को
माफ करते हुए
तुम्हारी अपेक्षाओं
पर भी नाराज ना होते हुए
और तुम करते हो
मेरा उपयोग
तभी तो लाद देते हो
गहनों के बोझ तले,
तुम्हें चूड़ियों की खनकार
पायलों की झनकार लुभाती है
और मुझे बनाती है
हथकड़ी बेड़ी के सामान लाचार
मेरे काले लम्बे घने बालों से खेलते हुए
कजरारे नैनों की गहराइयों में उतर जाते हो
तो मैं शरमा सकुचा जाती हूं
तो उन्हीं पलों में
डाल देते हो भार
एक अनचाही संतान का ।
---------------.
परिचय
नाम ः सीमा असीम
पति का नाम ः प्रदीप सक्सेना
जन्म ः 21 जुलाई
शिक्षा ः रूहेलखन्ड विष्वविद्यालय,बरेली से संस्कृत में एम.ए.
अन्य ः पी.जी.डी.सी.ए.
सृजन ः एक काव्य संग्रह‘‘ये मेरा आसमाँ'' 2014 के
पुस्तक मेले में , एनबीटी के लेखक मंच पर
लोर्कापित
कविता, कहानी , लेख आदि विधाओं में जो
राष्टृ्ीय पत्र, पत्रिकाओं, संकलनों में प्रकाशित
व दूरदर्शन पर परिचर्चा, काव्य गोष्ठी
आदि में सहभागिता
सम्मान ः सारस्वत सम्मान, रामपुर में।
सम्प्रति ः जनमोर्चा दैनिक अखबार के सम्पादकीय
विभाग में।
ईमेल ः seema4094@gmail.com
---------------
मीना चोपड़ा
अघटनीय
बिना रफ्तार
दौड़ते अँधेरों और
दीवारों से चिपकते सायों का
शहर की तंग गलियों में
दुबकते जाना कब तक?
झिरीठों से निकलती
नुकीली किरणे पकड़े
बंद दरवाज़ों और खिड़कियों में
सिसकती उदासी का
डबडबाना कब तक?
बेबस सी —
बेरुख और सुन्न निगाहों का
आँगन के अँधेरे कोनों
और खुदे आलों में
फड़फड़ाना कब तक?
कहाँ है — ?
कहाँ है — ?
रोशनी का वह छलकता पानी
बुहार देती जिसे बहाकर मैं
अपने आँगन का
हर एक दर और ज़मीं
धो देती कोना-कोना इसका |
सजा देती
एक -एक आला और झरोखा
जलते दियों की श्रृखलाएँ रखकर।
खड़ी हो जाती मैं
इस साफ़ सुथरे आँगन के बीच
उठाए हुए
अचंभित सी नज़रें
और तब — !
घट के रह जाता
रिक्त आँखों के
स्तम्भित शून्य में
एक निरा,
साफ़ और स्पष्ट
नीला आसमान।
उन्मुक्त
कलम ने उठकर
चुपके से कोरे कागज़ से कुछ कहा
और मैं स्याही बनकर बह चली
मधुर स्वछ्न्द गीत गुनगुनाती,
उड़ते पत्तों की नसों में लहलहाती।
उल्लसित जोशीले से
ये चल पड़े हवाओं पर
अपनी कहानियाँ लिखने।
सितारों की धूल
इन्हें सहलाती रही।
कलम मन ही मन
मुस्कुराती रही
गीत गाती रही।
पिघलता सूरज
एक पिघलता सूरज देखा है मैंने
तुम्हारी आँखों के किनारे पर।
कभी देखा है किनारों से पिघलता रंग
गिरकर दरिया में बहता हुआ
और कभी
दरिया को इन्हीं रंगों में बहते देखा है
देखा है जो कुछ भी
बस बहता ही देखा है।
ओस की एक बूँद
ओस में डूबता अंतरिक्ष
विदा ले रहा है
अँधेरों पर गिरती तुषार
और कोहरों की नमी से।
और यह बूँद न जाने
कब तक जियेगी
इस लटकती टहनी से
जुड़े पत्ते के आलिंगन में।
धूल में जा गिरी तो फिर
मिट के जाएगी कहाँ?
ओस की एक बूँद
बस चुकी है कब की
मेरे व्याकुल मन में।
इश्क़!
कफ़न में लिपटा बादलों के
छुपता सूरज
अँधेरी क़ब्र में सो चुका था
न जाने कब से
अपने आप से रूठा सूरज
एक आग के दरिया में
बहते किनारे उफ़क के
न जाने जलते रहे किसके लिए
दिन के ढल जाने तक|
कौन था यह?
न जाने कबसे
खड़ा था जो सामने बाहें पसारे
पौ के फटने और भोर के हो जाने तक!
कब्र के फटने और कफ़न के उड़ जाने तक!
ओस की बूँद में बैठा छिपकर साँसे लेता
इश्क का कोई टूटा हुआ
टुकड़ा है शायद
किसी बिसरे हुए गीत का
कोई भटका हुआ
मुखड़ा है शायद!
अवशेष
वक्त खण्डित था, युगों में !
टूटती रस्सियों में बंध चुका था
अँधेरे इन रस्सियों को निगल रहे थे।
तब !
जीवन तरंग में अविरत मैं
तुम्हारे कदमों में झुकी हुई
तुम्हीं में प्रवाहित
तुम्हीं में मिट रही थी
तुम्हीं में बन रही थी|
तुम्हीं से अस्त और उदित मैं
तुम्हीं में जल रही थी
तुम्हीं में बुझ रही थी!
कुछ खाँचे बच गए थे
कई कहानियाँ तैर रही थीं जिनमें
उन्ही मे हमारी कहानी भी
अपना किनारा ढूँढती थी!
एक अंत ! जिसका आरम्भ,
दृष्टि और दृश्य से ओझल
भविष्य और भूत की धुन्ध में लिपटा
मद्धम सा दिखाई देता था।
अविरल !
शायद एक स्वप्न लोक !
और तब आँख खुल गई
हम अपनी तकदीरों में जग गए।
टुकड़े - टुकड़े
ज़मीं पर बिखर गए।
एक सीप, एक मोती
बूँदें!
आँखों से टपकें
मिट्टी हो जाएँ।
आग से गुज़रें
आग की नज़र हो जाएँ।
रगों में उतरें
तो लहू हो जाएँ।
या कालचक्र से निकलकर
समय की साँसों पर चलती हुई
मन की सीप में उतरें
और मोती हो जाएँ।
और कुछ भी नहीं-
ख़यालों में डूबे
वक्त की सियाही में
कलम को अपनी डुबोकर
आकाश को रोशन कर दिया था मैंने
और यह लहराते,
घूमते -फिरते, बहकते
बेफ़िक्र से आसमानी पन्ने
न जाने कब चुपचाप
आ के छुप गए
कलम के सीने में।
नज़्में उतरीं तो उतरती ही गईं मुझमें
आयते उभरीं
तो उभरती ही गईं तुम तक।
आँखें उट्ठीं तो देखा
क़ायनात जल रही थी।
जब ये झुकीं
तो तुम थे और कुछ भी नहीं।
और एक अंतिम रचना!
वह सभी क्षण
जो मुझमें बसते थे
उड़कर आकाश गंगा
में बह गए।
और तब आदि ने
अनादि की गोद से उठकर
इन बहते पलों को
अपनी अंजली में भरकर
मेरी कोख में उतार दिया।
मैं एक छोर रहित गहरे कुएँ में
इन संवेदनाओं की गूँज सुनती रही।
एक बुझती हुई याद की
अंतहीन दौड़!
एक उम्मीद!
एक संपूर्ण स्पर्श!
और एक अंतिम रचना|
शून्य की परछाईं
सितारों में लीन हो चुके हैं स्याह सन्नाटे
ख़लाओं को हाथों में थामें
दिन फूट पड़ा है लम्हा - लम्हा
रोशनी को अपनी
ढलती चाँदनी की चादर पर बिखराता|
अंधेरों की गहरी मौत
शून्य की परछाईं में धड़कती है अब तक
जिंदा है
न जाने कब से —
न जाने कब तक
-©मीना चोपड़ा
--
परिचय
निवास कनाडा
चित्रकार एवं कवित्री
डायरेकटर हिंदी राइटर्स गिल्ड कनाडा
कविता संकलन: "सुबह का सूरज अब मेरा नहीं है"
अंग्रेजी कविता संकलन: "इग्नाइटिड लाइन्स"
हिंदी ब्लॉग: प्रज्ज्वलित
ब्लॉग: Art, Poetry, Education, Community Outreach, Media & Advertising
वेबसाइट: Meena's Art World (Independent Artist & Poet)
Artist, Author, Educator
VISIT, participate and support
Poetry Writing Contest, "Little Muses Mississauga"
Remember every one can write poems
VIsit my website: Meena's Art World (Independent Artist & Poet)
Visit my blog: Art, Poetry, Education, Community Outreach, Media & Advertising
- Media, Social Media - StarBuzz
- Past Producer & Host: Radio Shehnai at CJMR 1320AM (11pm-12pm week nights)
- Director: Hindi Writers' Guild
- Event Director - "UNITY IN DIVERSITY" Childrens' Art Competition
- Past Chair - Carassauga Festival of Cultures, India Pavilion 2011
- Director - Cross Currents - Indo Canadian International Arts
- Past Co-Chair - Streetsville Art Fest 2009, Mississauga
- Past Secretary: Poetry Club of India
- Past Director: Learna Heartland education Centre
- Artist Educator - (Implementing an arts-infused approach in developing the potential of every child and adult)
- Twitter Handle - @meenachopra
- Request you to like our facebook pages: Meena chopra - Artist and Poet Social Media Impact - Meena Chopra
Founder member South Asian Press Club of Canada.
दोनों ही कवियित्रीयाँ अच्छी है उनके लेखन के रंग
जवाब देंहटाएंअलग अलग हैं पर लेखनी पर उनकी पकड़ शब्दों
की खास जकड साफ़ नज़र आती है हिंदी साहित्य
को उनसे विशेष आपेक्षाएं है उत्तम और सारगर्भित
लेखन के लिये मेरी बधाई और आशीर्वाद
यशस्वी भव
दौनो ही कवियत्रियों ने बहुत शानदार और जानदार शब्द लिखे हैं !
जवाब देंहटाएं