स्वतंत्रता दिवस की रचनाएं

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भावना तिवारी झण्डे स्वाधीनता दिवस है, बाज़ार में खडे हैं. कई रूप में हैं झंडे ....!!   गारंटियां हैं कुछ पर, कुछ पर है छूट भारी ! क...

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भावना तिवारी

झण्डे

स्वाधीनता दिवस है,

बाज़ार में खडे हैं.

कई रूप में हैं झंडे ....!!

 

गारंटियां हैं कुछ पर,

कुछ पर है छूट भारी !

कुछ आईटम डबल हैं,

छीना-झपट है ज़ारी !

बनाओ खाओ बेचो,

बाज़ार के हैं फंडे ..!!

स्वाधीनता दिवस है  !!

 


लेकर के नए ऑफर,

फुल मार्केट खड़ा है !

डिस्काउंट से भरा है,

ये ख़ास दिन बड़ा है !

ये जागरण का जरिया,

केवल है यार वनडे. !!

स्वाधीनता दिवस है  !!

 

बचपन बहुत है भूखा,

मिट्टी को चाटता है !

जाने मुआवज़ा ये

कौन बाँटता है !

चुनिया को फ़िक्र है कल-

कैसे बिकेंगे कंडे  !!

स्वाधीनता दिवस है   !!

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drbhavanatiwari@gmail.com

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अखिलेश चन्द्र श्रीवास्तव

देश    के              वीर जवानों …………
अब सिरों का हसाब रखना होगा
उन्होंने हमारे एक शहीद का सर काटा
हमें पाँच    का सिर काटना होगा

उन्होंने हमारे शहीद के सिर की चोरी की ….
शायद  उनके दिमाग पर  रिसर्च कर रहे होंगे
कि हमारे जवानों के दिमाग कैसे है …….
उसकी क्वालिटी की जाँच कर रहे होंगे

पर हमें उनके सिरों की भी रिसर्च करनी होगी
उनके दिमागों की फितरत भी जाचनी होगी
अतः सिरों       का हिसाब    जरूरी है
एक के बदले पाँच का हिसाब जरूरी है

वे हमारी सीमा में घुसे         एक हिमाकत की
हमारे जवानों को मारा        दूसरी हिमाकत की
हमारे जवान का सिर काटा तीसरी हिमाकत की
इन हिमाकतों का        हमें जवाब देना ही होगा
एक के बदले       पाँच का सिर काटना ही होगा

उन्होंने हमारे      पाँच  जवानों        को मारा है
उनके पचीस जवानों को      हमें मारना ही होगा
तब लगेगा कि            हमें जवाब देना आता है


1965 की लड़ाई में  शाश्त्री जी ने केवल यह कहा था
कि ऐ         आर्मी कमांडरों     (तीनो चीफों से )कि
आप का  काम             देश की       रक्षा करना है
कैसे      करनी है        ये आपको तय करना    है
कमांडरो ने पूंछा     कि अगर सीमा पार करनी पड़े
शाश्त्री जी ने इसे उन कमांडरों के विवेक पर छोड़ दिया


परिडाम स्वरुप पाकिस्तान  की जबरदस्त हार हुई
जो अयूब खान रात     का खाना लाहौर में खाकर
सुबह की              चाय दिल्ली में पीना चाहते थे
जंग उन्के घर इच्छोगिल कैनाल   तक पहुच गयी
उन्होंने जब हमारे 200 वर्ग किलोमीटर पर कब्जा किया
जवाब में हमारे जवानों ने उनके 5500 वर्ग किलोमीटर पर
कब्ज़ा कर लिया

 

येह था सही समय        पर सही निर्णय का नतीजा
अब हमारी      सरकार न          खुद कुछ करती है
न          सेना को                   करने देती है
ऐसी कायर सोंच हमारे       देश  में कहाँ से आयी
क्यों हम कायर और दुम दबाने की भाषा बोलते हैं
अरे अपने पर ,अपनी सेना पर इस देश की जनता पर
कुछ तो विश्वास करो इस देश के आत्म सम्मान का
कुछ तो सम्मान करो दुश्मन को उसीकी भाषा में जवाब दो
तब तुम     सरकार में          बैठने के लायक हो
ये साबित करो …… ये साबित करो

जब जब हमारा सिपाही चाहे चीन चाहे पाकिस्तान से पिटा है
दुनिया के सामने      अपना आत्म सम्मान   बहुत  घटा है
अतः समय रहते         उचित कार्यवाही करो
सिरों का हिसाब करो …सिरो का हिसाब करो

--

आइये      हम           समझ    लें …….
अहिंसा    और     कायरता         के  बीच
एक      महत्वपूर्ण         और बड़ा अन्तर
ताकि       फिर गल्ती की सम्भावना  न रहे
कि अहिंसा      केवल  सबल की  होती     है
जो       अपने प्रति         की गयी हिंसा का
उससे बड़ी हिंसा से भरपूर जवाब दे सकता है
पर देता नहीं अपने पर   सयम रखता है और
अपनी       सबलता का     प्रदर्शन    करते हुए
हिंसा करने      वाले को       केवल     एक बार
चेतावनी देता है पूरी संजीदगी और सबक के साथ
कि दुबारा गल्ती किया       तो बहुत पछताओगे
धूल चाटोगे       अपने         जख्म सहलाओगे

 

कायरता        कमजोर          की होती है
अपने से बलशाली देख पसीने छूट जाते हैं
उसकी हिंसा का जवाब न दे सकने की मजबूरी
उसे       चुप      रहने को मजबूर करती है
दुम     दबा कर        चुपचाप निकल लो
ऐसा       उसकी            अक्ल कहती है


और हम एक देश के रूप में क्या करते है
चीन 19 किलोमीटर अन्दर तक आया
अपना बेस बनाकर      महीनों जमा रहा
येह्     चीन की     जमीन है यह बताया
हमारी ही      सेना की पेट्रोलिंग पार्टी को
हमारी जमीन से वापस भगाया  और हम
अपनी ही       जमीन से अपने बंकर तोड़
टेंट हटा कर अपमानित होकर वापस लौट आये


एकतरफ हम अपनी पीठ ठोंककर कहतें हैं
कि     भारतीय फ़ौज   विश्व में सर्व शेष्ट्र है
हम     हर मुकाबले           को तय्यार हैं
पर          मुकाबले के    समय आने  पर
दुम दबाते  हैं पता नहीं हम ऐसा क्यों दिखातें हैं
फ़ौज को उचित कार्यवाही की इजाजत  नहीं
हमारा    नेतृत्व कमजोर      और कायर है
क्या शान्ति का ठेका विश्व में केवल हमने लिया है


वे    आये हमारी सीमा   में   हमारे सैनिक मारे
उनके     सिर तक            काट ले गये
और हम    राष्ट्र के गम को          गुस्से को
समझ        न पाये       जवाब न दे पाये
यह क्या है कमजोरी और कायरता या दोनों
हम उन्हें मार कर उनके सिर क्यों नहीं काटते
जो खालाजी का घर समझ बेख़ौफ़ चले आते हैं
आखिर       ऐसी क्या            मजबूरी है
हमारी      जनता ,सेना और हमारा जमीर
जवाब चाहता है क्या हमारे पास कोई जवाब है
क्या हम एक कायर राष्ट्र कहलाने को तैयार हैं
मेरा जवाब नहीं है……आपका क्या जवाब है
जागो           इस देश के कर्ता धर्ता जागो
कायरता पूर्ण       बेशर्मी से बाहर निकलो
कायरता और अहिंसा का महत्वपूर्ण फर्क
समझो और जानो केवल कुर्सी महत्वपूर्ण नहीं
आत्मसम्मान से जीना भी जरूरी है
ये तो जानो            इतना तो जानो
पर दुर्भाग्य से उसे गल्ती समझ नहीं आ रही
वो यह गिना और आंकड़े बता रहा कि यू पी ए से
ज्यादा घटनाएँ         न डी ए के समय हुयी
यानि की अपनी कायरता को उचित ठहरा रहा है

ऐसे में परमपिता से प्रार्थना है कि इस महान देश को
विपदा से बचाये और इसके नेतत्व को सदबुधि दे
आमीन  आमीन आमीन
आइये सब मिल कर प्रार्थना करें

 

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रामवृक्ष सिंह

(1)
कैसी नापाक हरक़तें की हैं
पाक़ रमज़ान के महीने में।

तुम तो दिल चाक कर गए मेरा
मुझको सदियाँ लगेंगी सीने में।

करके तसकीन बताना हमको,
कैसा लगता है खून पीने में।

तुमने ताबूत जो बनाए थे,
हमने बदले हैं सब सफ़ीने में।

तुम कज़ाओं से अक़ीदत रखते
हमको आता है लुत्फ जीने में।

दुश्मन-ए-अम्न हैं असल काफिर
हों वो मथुरा में या मदीने में।

ज़ेब देती नहीं ग़बनसाज़ी
दौलत-ए-दीन के दफीने में।

मौक-ए-ईद था, गले मिलते।
भौंक दी क्यों कटार सीने में।।

(2)
रोज़ पीता है खून इंसां का, खुद को पर पाक-साफ कहता है।
कोई देखे कि पार सरहद के, इक दरिन्दा शरीफ रहता है।।

उसकी आँखों से शर्म गायब है, उसपे तारी हैं रूहें शैतानी।
उसकी रग-रग भरी है चालाकी, जिसमें लोहू गलीज़ बहता है।।

जिन फिज़ाओं में प्यार पलता था, अम्न बसता था जिनकी गलियों में
उन फिज़ाओं का ज़र्रा-ज़र्रा क्यों जुल्म बलवाइयों के सहता है।।

देखना है कि अस्ल चेहरे पर कब तलक यह नक़ाब टिकती है
देखना है किला फरेबों का किस तरह एक रोज़ ढहता है।।

डॉ. रामवृक्ष सिंह
------

 

सुनील जाधव

वे लड़ते-लड़ते हुए शहीद ...

देखो,
सूनो ....
गौर से......
सुनो
क्या तुम्हे ....
सुनाई दे रही है
कोई आवाज ?

एक बहन
जिसके हाथ में है राखी
एक पत्नी जिसके माथे पर
अब सिंदूर नही बाकी
एक माँ
जिसकी आँखें देखने वाली थी
बेटे की सुंदर, मोहक, झाँकी |

सुन रहे हो उनका क्रन्दन ?
वह अपने हाथों की
चुडिया तोड़ रही है
देखा तुमने वह दृश्य ?
वह राखी को देख
सिसक-सिसक कर
खून के आँसू बहा रही है ?

अंधी माँ
जिसने हाल ही में
देखना शुरू किया था
पर वह नही देख पाई है
अपने होनहार
शुर-वीर बेटें को
प्राणों के साथ खोई है |

क्या तुम्हे सुनाई दे रहा है ?
क्या तुम्ह सच में ही सुन रहे हो ?
या उन शहीदों की माँ, बेटी
बहन, पत्नी की अंत: चीखों से
कानो के पतले पर्दे फट गये है ?
या फिर जानबूझ कर
फटने का बहाना कर रहे हो ?

क्या तुम्हे किसी ने सजा दी है ?
हाथ बाँधकर एक ऊँगली
मुह पर रख शांत बैठे हो ?
या कोई घोर साधना कर रहे हो ?
संकट जब तुम पर आएगा
और तब तुमारा कवच
तुमारी रक्षा करेगा ?

ऐसा क्या करना होगा
शहीदों के परिजनों को
जिस कारण प्रत्येक शब्द
जो आंसुओं में डूबकर
बाहर निकल रहे है
शुद्ध रूप में से
और स्पष्ट सुनाई दे |

कल थी छह तारीख अगस्त २०१३
ठीक बजे थे दो
पडोसी कायर सेना ने
पाँच शुर वीर योद्धाओं को
कर दिया था शहीद
हर गोली सीने पर खाई थी
वे लड़ते-लड़ते हुए शहीद |

सुनील जाधव ,नांदेड
महाराष्ट्र
---------------

COMMENTS

BLOGGER: 9
  1. आपकी यह पोस्ट आज के (१४ अगस्त, २०१३) ब्लॉग बुलेटिन - जय हो मंगलमय हो पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई

    जवाब देंहटाएं
  2. सारी की सारी कविताएँ पसंद आई ।

    जवाब देंहटाएं
  3. खुबसूरत अभिवयक्ति...... आपको भी स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक मंगलकामनाएँ....

    जवाब देंहटाएं
  4. अति सुंदर मन को झकझोर गई अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  5. सुन्दर संग्रह

    जवाब देंहटाएं
  6. अच्छी कवितायें...

    जवाब देंहटाएं
  7. Akhilesh Chandra Srivastava9:28 am

    hum kaviyon ki mehnat safal ho jaye yadi hamare dare huye kayer aur kamjor netratav ko kuch josh utsaah aur atmsamman mil jaye
    AMEEEN AMEEEN AMEEEN

    BHAGWAN IS PYAREE DESH KA BHALA KAREN KUCH TO IMANDAAR DESH KO PYAR KARNE WALE IS DESH MEN BHEJEN

    जवाब देंहटाएं
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श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक 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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया 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रचनाकार: स्वतंत्रता दिवस की रचनाएं
स्वतंत्रता दिवस की रचनाएं
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