बानो अरशद नन्ही परी हेड टीचर के कहने पर सरवत ने स्कूल के समस्त मुस्लिम बच्चों के लिए नमाज़ पढ़ने के स्थान की जिम्मेदारी स्वीकार ...
बानो अरशद
नन्ही परी
हेड टीचर के कहने पर सरवत ने स्कूल के समस्त मुस्लिम बच्चों के लिए नमाज़ पढ़ने के स्थान की जिम्मेदारी स्वीकार कर ली थी। वैसे उसके स्कूल में मुस्लिम बच्चे आटे में नमक के बराबर थे। परंतु सरवत को अपनी इस्लामीं संस्कृति, भाषा और जीवन मूल्य की हिफ़ाज़त का एहसास था, यद्यपि वह स्वयं इतना अधिक इन पाबंदियों को पूरा न कर पाती मगर एक बार जब से वह अपने मुल्क से बाहर आई थी एक बात का बहुत ध्यान रखती कि वह यहाँ अपने देश की प्रतिनिधि है और अँग्रेजी समाज हर रूप में उसको एक इस्लामी एवं पाकिस्तानी नागरिक मानता है और उसके प्रत्येक कदम पर उस को उसी दृष्टि से देखेगा, जैसे चावल दम होने पर एक दाना देखकर राय का़यम की जाती है कि चावल गल गये। न्याय-अन्याय का उसको बहुत ध्यान रहता था। इसीलिए स्कूल में अपने परिधान (लिबास), अपनी प्रतिष्ठा के कारण बहुत सम्मान से देखी जाती । भोजन के समय स्कूल के कुछ विद्यार्थी उसके पास भेज दिये जाते जो नमाज़ के पाबंद हुआ करते थे। उन बच्चों को वह उस कमरे में भेज दिया करती थी जो उसने स्कूल से बहुत प्रयास के बाद उन शिष्यों के लिए हासिल किया था। कभी-कभी सरवत भी बल्कि रमजान के ज़माने में जाकर उन बच्चों के साथ फर्ज़ नमाज़ अदा कर लेती वहीं पर एक सांवली सी लड़की बहुत ही प्रभावित करती, उसके चेहरे की बनावट भी कोई खास तीखे न थे। नमकीन चेहरा लेकिन मोनालिज़ा सा चेहरा पवित्रता से भरपूर और अधखुले होठों पर मुस्कान बिखरा रहता। उस खामोश पसंद लड़की पर सरवत की नजर प्रायः पड़ा करती। चूँकि सरवत उसे पढ़ाती नहीं थी तो सरवत उसको ज्यादा जानती भी नहीं थी। मगर उसका चंबेली सा बदन सरवत पर एक प्रभाव छोड़ गया था।
सरवत चूँकि स्कूल में अत्यधिक प्रसिद्ध थी जिसका कारण यह था कि वह बाहर से आए हुए बच्चों की समस्याओं को हल करने में बहुत रूचि लिया करती। एक प्रकार से वह कॉउन्सलिंग भी करती। दो-तीन भाषाओं को जानने के कारण उसकी अहमियत स्कूल के विद्यार्थियों में कम न थीं।
एक दिन उस लड़की अर्थात् जिस को सरवत मोनालिज़ा के नाम से पुकारती यानी स्टाफरूम में अपने स्वभाव के कारण वह नाम रख लिया करती थी, वास्तव में उस लड़की का नाम तान्या था। तान्या की क्लास टीचर ने कहा सरवत मेरी क्लास में तान्या जो है बल्कि जिस को तुम मोनालीज़ा कहती हो उसके सिलसिले में काफी चिंतित हूँ क्या तुम उससे बात कर सकती हो? कभी-कभी वह बहुत दुखी हो जाती है। उसके साथ में वह जो पूनम बैठती है न, वह उसकी गहरी दोस्त है। आज उसने बताया कि वह बहुत ही कठोर दुखों से पीड़ित है। सरवत ने कहा कि समय मिलते ही मैं पता लगाऊँगी कि समस्या क्या है? दूसरे दिन सरवत ने जाकर उस लड़की को क्लास से बुलाकर बात की और कहा कि शायद तुम अपनी पढ़ाई पर पूरा ध्यान नहीं दे पा रही हो और होमवर्क भी पूरा नहीं करती हो। मैं तुम्हारी सहायता स्कूल के बाद कर दिया करूँगी। विशेष रूप से अँग्रेजी में और विज्ञान में, क्या विचार है। उसकी मोनालीज़ा वाली उदास मुस्कान लौट आई आँखों में चमक आ गई। अरे हाँ मिस मैं तो स्वयं आपसे पूछने वाली थी। अब तान्या से सरवत धीरे-धीरे निःसंकोच होने लगी। एक दिन सरवत स्कूल के बाद उसको अपने कमरे में ले गई, वहाँ मेज पर सरवत के बच्चों की तस्वीरें मेज पर एक फ्रेम में लगी रखी थी। तान्या ने कहा कि मिस ये कौन हैं? “.... ये मेरे बच्चे हैं” ये लड़की उसने मेरी बेटी के चेहरे पर हाथ रखकर पूछा, ये कौन है? यह मेरी बेटी है, बस एक ही बेटी है और दो बेटे हैं। “ये तो बिल्कुल आपकी शक्ल है। आप ऐसी ही होंगी जब इसके बराबर होंगी।” हाँ तान्या सामान्य रूप से लड़कियाँ अपनी माँ की शक्ल की होती हैं। बड़े होकर वह बहुत मिलने लगती हैं चूँकि वह माँ के शरीर का अंश होती है न।
“सच” उसने आश्चर्य से पूछा।
अरे तुम साइंस तो पढ़ती हो न। बच्चे में माँ-बाप का रूप होता है। सरवत ने लापरवाही से जवाब दिया।
“और, आवाज़....?” उसने बेचैन होकर पूछा।
“आवाज़, आवाज़ तो बहुत मिलती है। विशेष रूप से टेलिफोन पर बिल्कुल धोका हो जाता है सब को। जो भी मुझे फोन करता है “हाय अल्लाह” उसके मुँह से सहसा निकला। “मेरी ही क्या, मेरी तमाम सहेलियों की बेटियों की आवाज़ इसी तरह भ्रम पैदा करती है।” सरवत ने जवाब दिया।
“मिस एक बात और बताइये क्या मैं भी अपनी माँ जैसी निकलुंगी। मेरी आवाज़ और मेरा रूप भी वैसा ही होगा” उसने गंभीर भावनाओं के स्वर में डूब कर पूछा।
“हाँ भई होना तो चाहिए लेकिन आवश्यक नहीं” सरवत ने उत्तर दिया।
“मैं अपने पापा की शक्ल बिल्कुल नहीं हूँ” उसने कहा।
“तुम को कैसे मालूम?” सरवत ने कहा।
“इसलिए कि आईना जो रोज़ देखती हूँ ” वह मुस्कुराई तुम्हारी अम्मी जैसी शक्ल होगी फिर।
वह बोली - “मुझे क्या पता जब ही तो आप से पूछ रही हूँ।”
“तो तुम्हारी अम्मी कहाँ हैं?” सरवत ने जानने की इच्छा ने अँगड़ाई ली।
“वह..... तो ..... चलिए छोड़िए।”
“नहीं बताओ”
“वह तो बेल्जियम में है।”
“तुम किसके साथ रहती हो?”
मैं अपने पापा के साथ।
“और...?”
“पापा की बीवी-बच्चों के साथ रहती हूँ।”
“तुम्हारी सौतेली माँ?”
“जी”
“वह कैसी हैं तुम्हारे साथ?”
“आप ये बात किसी को बताइएगा नहीं।”
“नहीं मैं किसी को नहीं बताऊँगी तुम्हारी निजी बात है।”
आप बहुत अच्छी है अपने बच्चों के साथ रहती हैं उसने सरवत के दुखती रग पर उंगली रख दी।
“मैं तुम्हारी बात कर रही हूँ।”
आप को एक बात बताऊँ? ये सब लोग बहुत खराब हैं उसने नज़रें झुका कर बहुत धीमे स्वर में कहा। क्यों? सरवत को तान्या की समस्याओं का सिरा मिलना प्रारम्भ हुआ।
“वह लोग मुझे पसंद नहीं करते। उसने बुझे हुए अंदाज में उत्तर दिया। आप को देखकर मन चाहता है कि काश! आप मेरे पापा से विवाह कर लेतीं।”
उसकी पलकों पर आँसू चमक रहे थे।
“अरे कैसी बातें करती हो” सरवत हक्का-बक्का रह गई उसके भोले भाले अंदाज पर।
“अच्छा मैं चलती हूँ।” सरवत ने लज्जाते हुए काह।
“मेरी भी क्लास है आप नाराज़ तो नहीं हो गईं।” वह बोली नहीं चलो तुम्हारी भी क्लास है मेरी भी। सरवत ने कमरे की चाभी उठाते हुए कहा।
फिर तान्या अकसर सरवत से मदद लेने आ जाया करती। एक दिन तान्या और पूनम सरवत के कमरे में आई। पूनम ने सरवत को एक नोट दिया जो उसकी टीचर ने भेजा था, उसमें लिखा था, उसके शरीर पर नील के चिह्न है। वैसे भी उस दिन के बाद से सरवत सावधान भी हो गई थी लेकिन लगातार इस बारे में सोच रही थी।
“हाँ तान्या आओ” सरवत ने कहा।
“पूनम तुम अपनी क्लास में जाओ।”
“आज पापा ने मुझे पाइप से मारा है बहुत। मुझ से चाय की प्याली टूट गई।”
“इतनी सी बात पर”
“रात को मैं होमवर्क कर रही थी तो चूल्हे पर हंडिया रखी थी। वह जल गई और घर में धुआँ भर गया। अम्मी ने रात को उनसे शिकायत कर दी तो सुबह को मुझे डर लग रहा था। पापा ने आवाज़ दी, मैं चाय पी रही थी, मेरे हाथ से प्याली गिर गई, हमारे रसोईघर के फर्श पर टाइल्स लगे हैं जो भी चीज़ गिरती है, टूट जाती है। बस मेरा दुर्भाग्य आ जाता है। अम्मी रात को पापा से शिकायत कर देती है।”
“फिर अक्सर तुम को मार पड़ती है।”
“कभी भैया शिकायत कर देता है, कभी रफिया”
“तुम को पता है इस देश में मारना-पीटना अपराध है।”
“खुदारा मिस किसी को न बताइएगा। यदि स्कूल में रफिया को पता चल गया तो वह घर में बताएगी और मुझे इससे भी ज़्यादा मार पड़ेगी।”
“अरे वह रफिया जो बहुत बदतमीज़ लड़की है?”
“जी-जी” उसने हकलाते हुए कहा।
“नहीं यह रहस्य की बात है परंतु स्कूल के उन सारे लोगों को बताना है जिनका इस बात को जानना आवश्यक है।”
“क्यों?”
“इसलिए कि यहाँ का कानून है कि शारीरिक दण्ड बच्चों को माँ-बाप या गुरू नही दे सकते,” कठोर कानून है।
“फिर क्या होगा अब?”
आओ तुमको तुम्हारी टीचर के पास ले चलूँ।
सोशल वर्कर-हेड टीचर ऑफ डिपार्टमेंट स्कूल की मिशनरी सक्रिय हो गई।
तान्या के माँ-बाप को वार्निंग दे दी गई।
अब उसको शारीरिक चोट तो नहीं लगाई जाती परंतु तानों के, बुरी-भली बातों के ढेर लगते चले गए। वह कभी-कभार आकर सरवत को बता दिया करती।
वास्तव में उसका चेहरा जब भी उदास होता सरवत समझ जाती कि अवश्य ही घर में कोई कार्यवाही उसके विरूद्ध हुई है, और वह उसको बुलाकर कॉउन्सलिंग करती। एक दिन सरवत के दरवाजे पर दस्तक हुई।
“अन्दर आ जाओ!”
दरवाजा़ खुला। अन्दर आने वाली तान्या थी उसके मुख पर विश्वास का भाव बिखरा हुआ था जो बहुत गज़ब का था बल्कि आश्चर्य चकित कर देने वाली सीमा तक। “गुड मार्निंग मिस।” आप से एक बात करना है, समय है।
“हां-हां आओ कापियाँ देख रही थी।” उसने कापियाँ समेटते हुए कहा।
“आप एकदिन क़ानून की बात कर रही थीं। मैं उस घर से जाना चाहती हूँ। क्या आप मुझे एडोप्ट कर लेंगी?”
“हें - ये क्या कर रही हो!”
“जी मिस मैं आपके घर का सारा काम कर दिया करूँगी जैसे लोग इस्पेअर रख लेते हैं न वैसे ही रख लीजिए” तान्या ने हठ किया।
“ये मुमकिन नहीं भई।”
मैं तो खाना भी कम खाती हूँ।
आपका फोन भी इस्तेमाल नहीं करूंगी। शावर लेती हूँ रोज़ प्रातःकाल नाश्ता में केवल एक कप चाय की प्याली।
अरे ये नहीं हो सकता।
मैं फिर सेटर-डे जॉब भी कर लूँगी तो बिलों मैं अपना हिस्सा दे दूँगी।
“मेरे पास जगह नहीं है।” मैंने जवाब दिया।
जी मैं अब वहाँ नहीं रह सकती। उसकी आँखों में आँसू झिलमिला रहे थे।
“क्यों?”
मेरी सौतेली माँ अपने भाई से मेरा ब्याह कराना चाहती है। वह इस देश से बाहर पाकिस्तान में है, बस उसको बुलाना चाहती है।
“तुम घर से भागना नहीं” सरवत ने स्नेहपूर्वक हाथ रखा।
“मैं ओर एक बात बताऊँ यदि आप किसी से न कहें” उसने रहस्यमय ढंग से कहा।
“नहीं कहूंगी बताओ क्या बात है?”
रात को भैया ने दराज़ खोली, इसमे उसको Valentine Card मिल गया। उसने तुरंत पापा को दिया तो फिर बस पापा ने कहा अब तुम इसके बाद नहीं पढ़ोगी क्योंकि अब तुम सोलह वर्ष की हो गई हो पढ़ाई खत्म, और चुपके से वह लोग मुझे झेलम ले जा रहे हैं यानी तैयारी कर रहे हैं, क्योंकि मैं ब्रिटिश नेशनल हूँ न।
“उफ् खुदाया” सरवत के मुँह से सहसा निकला। “मैं घर से भागना नहीं चाहती हूँ क्योंकि यहाँ पर हमारे समाज की बहुत बदनामी होती है कि पाकिस्तानी लड़कियाँ घर से भाग जाती हैं।”
“अब क्या करोगी मैं तुम को सलाह नहीं दे सकती” सरवत ने जान छुड़ाना चाही।
“फिर”
“बस अब तुम बड़ी हो गई हो स्वयं अच्छे बुरे का निर्णय ले सकती हो।” मेरे पास तो अम्मी का पता भी नहीं है, वह कभी उपहार भेजती हैं परंतु पापा मुझे उनका पता नहीं देते। एक दिन उन्होंने केवल खत दिखाया था, जिसमें लिखा था कि शुक्रिया आप इसका ध्यान रखते हैं.... बस। अच्छा सुनो पढ़ाई पर ध्यान दो, ऐसा नहीं होगा कि वह तुम को ज़बरदस्ती ले जाएँ तुम स्वयं बहुत बुद्धिमान हो।”
वह मुँह लटका कर चली गई। सरवत ने सारी रिर्पोट लिख कर उसके फाइल में नत्थी कर दी।
सरवत रजिस्टर लेकर कार्यालय में प्रवेश कर रही थी तो क्लर्क ने उसको लिफाफा दिया कि यह हेड टीचर ने आप को आपके Comment के लिए भेजा है। उसे खोला तो वह किसी लड़के की तरफ से तान्या के नाम था उस पर लिखा था-
“तान्या चिंता मत करो, अब तुम सोलह वर्ष की हो चुकी हो, हम को अब कोई जुदा नहीं कर सकता है। हम सिविल मैरिज कर लेंगे और यह पवित्र आत्मा हमारे प्रेम की साक्षी होगी।”
तुम्हारा अपना
जावेद
उस पर दो दिल बने थे और क्यूपेड का तीर जो एक नन्हें बच्चे की शक्ल में उस पर भोलेपन के साथ थामे हुए था। सरवत के हाथ में कार्ड और उसके चेहरे पर “न निगलते बनता, न उगलते बनता” के हाव-भाव प्रश्नवाचक चिह्न की तरह बिखर गए। नन्हीं परी के मुख पर मोनालीज़ा की मुस्कान चकनाचूर होकर रह गई।
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