(पिछले अंक से जारी...) दृश्य : छह (सिकंदर मिर्ज़ा बैठे अख़बार पढ़ रहे हैं। दरवाज़े पर कोई दस्तक देता है।) सिकंदर मिर्ज़ा : आइए... तशरीफ़...
दृश्य : छह
(सिकंदर मिर्ज़ा बैठे अख़बार पढ़ रहे हैं। दरवाज़े पर कोई दस्तक देता है।)
सिकंदर मिर्ज़ा : आइए... तशरीफ़ लाइए।
(पहलवान याकू़ब के साथ अनवर, सिराज? रज़ा और मुहम्मद शाह अन्दर आते हैं।)
सब एक साथ : सलाम अलैुकम...
सिकंदर मिर्ज़ा : वालेकुम सलाम... तशरीफ रखिए।
(सब बैठ जाते हैं।)
पहलवान : आपका इस्में शरीफ़ सिकंदर मिर्ज़ा है न?
सिकंदर मिर्ज़ा : जी हां।
पहलवान : ये कूचा जौहरियां में रतनलाल जौहरी की हवेली है ना?
सिकंदर मिर्ज़ा : जी हां बेशक।
पहलवान : ये मेरे दोसत हैं मुहम्मद शाह। इनको हवेली की दूसरी मंज़िल एलाट हो चुकी है।
मुहम्मद शाह : लेकि पहली मंज़िल तो आपके क़ब्ज़े मैं नहीं है न?
सिकंदर मिजर्द्या : ये आपको किसने बताया?
पहलवान : आपके बेटे जावेद कह रहे थे कि ऊपरी मंज़िल में रतनलाल जौहरी की मां रह रही है। मतलब पाकिस्तान को भी शहरे-लाहौर में एक काफ़िरा...
सिकंदर मिर्ज़ा : अच्छा तो आप वही हैं जिनसे जावेद की बात हुई थी।
पहलवान : जी हां, जी हां...
सिकंदर मिर्ज़ा : तो जनाब पहलवान साहब, आपके नाम ऊपरी मंज़िल एलाट नहीं हुई है... आप बस उस पर क़ब्ज़ा...
पहलवान : आप ठीक समझे... काफ़िरा के रहने से तो अच्छा है कि अपना अपना कोई मुसलमान भाई रहे।
सिकंदर मिर्ज़ा : लेकिन ये पूरी हवेली मुझे एलाट हुई है।
पहलावन : ठीक है... ठीक है लेकिन क़ब्ज़ा तो नहीं है आपका ऊपरी मंज़िल पर।
सिकंदर मिर्ज़ा : आपको इससे क्या मतलब।
पहलवान : इसका तो ये मतलब निकलता है कि आपने एक हिन्दू काफ़िरा को अपने घर में छुपा रखा है।
सिकंदर मिर्ज़ा : तो तुम मुझे धमका रहे हो जवान।
रज़ा : जी नहीं, बात दरअसल ये है...
सिकंदर मिर्ज़ा : (बात काट कर) कि ऊपर के ग्यारह कमरे क्यों न आप लोगों के क़ब्ज़े में आ जायें...
पहलवान : हम तो इस्लामी बिरादरी के नाते आपकी मदद करने आये थे। लेकिन आपको मुसलमान से ज़्यादा काफ़िर प्यारा है।
सिकंदर मिर्ज़ा : मुहम्मद शाह साहब। आप कस्टोडियन वालों को बुलाकर ले आयें... वो आपको क़ब्ज़ा दिला सकते हैं... इस बात में इस्लाम और कुफ्ऱ कहां से आ गया।
पहलवान : मिर्ज़ा साहब आप बता सकते हैं कि क्या पाकिस्तान इसी लिए बना था कि यहां काफ़िर रहें?
सिकंदर मिर्ज़ा : ये आप पाकिस्तान बनवाने वालों से पूछिए।
पहलवान : मिर्ज़ा साहब हम ये गवारा नहीं कर सकते कि शहरे लाहौर के कूचा जौहरियां में कोई काफ़िर दनदनाता फिरे।
सिकंदर मिर्ज़ा : जनाब वाला आप कहना क्या चाहते हैं मैं ये समझने से क़ासिर हूं।
पहलवान : हमारी मदद कीजिए... हम एक मिनट में ऊपरी मंज़िल का फै़सला किए देते हैं। वहां उस काफ़िरा की जगह मुहम्मद शाह...
सिकंदर मिर्ज़ा : देखिए हवेली पूरी की पूरी मेरे नाम एलाट हुई है।
पहलवान : चाहे उसमें काफ़िरा ही क्यों न रहे... आप...
सिकंदर मिर्ज़ा : मश्विरे के लिए शुक्रिया।
पहलवान : मिर्ज़ा, तो फिर ऐसा न हो सकेगा जैसा आप चाहते हैं... किसी काफ़िरा के वजूद को यहां नहीं बर्दाश्त किया जायेगा...
(उठते हुए सबसे)
चलो।
(सिकंदर मिर्ज़ा हैरत और डर से सबको देखते हैं। वे चले जाते हैं। कुछ क्षण बाद हमीदा बेगम अन्दर आती हैं।)
हमीदा बेगम : क्यों साहब ये कौन लोग थे... ऊंची आवाज़ में क्या बातें कर रहे थे।
सिकंदर मिर्ज़ा : ये वही बदमाश था जिससे जावेद ने बातकी थी।
हमीदा बेगम : लेकिन।
सिकंदर मिर्ज़ा : हां, फिर जावेद ने उसे मना कर दिया था। साफ़ कह दिया था कि ऐसा हम नहीं चाहते... लेकिन कम्बख़्त को ग्यारह कमरों का लालच यहां खींच लाया।
हमीदा बेगम : क्या मतलब?
सिकंदर मिर्ज़ा : पहले कहने लगा कि उसे ऊपरी मंज़िल के ग्यारह कमरे कस्टोडियन वालों ने एलाट कर दिए हैं।
हमीदा बेगम : हाय अल्ला... ये कैसे... एक मकान दो आदमियों को कैसे एलाट हो सकता है?
सिकंदर मिर्ज़ा : वो सब झूठ है...
हमीदा बेगम : फिर।
सिकंदर मिर्ज़ा : फिर इस्लाम का ख़ादिम बन गया। कहने लगा पाकिस्तान के शहरे लाहौर में कोई काफ़िरा कैसे रह सकती है... जाते-जाते धमकी दे गया है कि रतन जौहरी की मां का काम तमाम कर देगा।
हमीदा बेगम : हाय अल्ला... अब क्या होगा।
सिकंदर मिर्ज़ा : आदमी बदमाशा है... मेरे ख़्याल से उसे शक है कि रतन की मां ने ‘कुछ' छिपा रखा है... दरअसल उसकी नज़र ‘उसी' पर है।
हमीदा बेगम : हाय तो क्या मार डालेगा बेचारी को?
सिकंदर मिर्ज़ा : कुछ भी कर सकता है।
हमीदा बेगम : ये तो बड़ा बुरा होगा।
सिकंदर मिर्ज़ा : अजी फंसेंगे तो हम... वो तो मार-मूर और लूट खा कर चल देगा... फेस जायेंगे हम लोग।
हमीदा बेगम : हाय अल्ला फिर क्या करूं।
सिकंदर मिर्ज़ा : रात में दरवाज़े अच्छी तरह बंद करके सोना।
हमीदा बेगम : सुनिए, उनको बताऊं या न बताऊं।
(सिकंदर मिर्ज़ा सोच में पड़ जाते हैं।)
हमीदा बेगम : बताना तो हमारा फ़र्ज़ है।
सिकंदर मिर्ज़ा : कहीं वो ये न समझे कि ये सब हमारी चाल है?
हमीदा बेगम : तो, ये तुमने और उलझन में डाल दिया।
सिकंदर मिर्ज़ा : ऐसा करो कि उनकी हिफ़ाज़त का पूरा इंतेज़ाम इस तरह करो कि उन्हें पता न लगने पाए।
हमीदा बेगम : ये कैसे हो सकता है।
सिकंदर मिर्ज़ा : यहीं तो सोचना है।
हमीदा बेगम : हाय अल्ला ये सब क्या हो रहा है... क्या मैं फरियादी मातम पढ़ूं...
सिकंदर मिर्ज़ा : इमामबाड़ा कहां है घर में... खै़र... देखो... वो अकेली रहती है... उनके साथ किसी मर्द का रहना...
हमीदा बेगम : मतलब तुम...
सिकंदर मिर्ज़ा : (घबरा कर) नहीं... नहीं... जावेद...
हमीदा बेगम : वो जावेद को ऊपर क्यों सुलायेंगी... और जावेद को मैं वैसे भी नहीं जाने दूंगी।
सिकंदर मिर्ज़ा : ज़िद मत करो।
हमीदा बेगम : क्या चाहते हो... मेरा एकलौता लड़का भी...
सिकंदर मिर्ज़ा : बकवास मत करो।
हमीदा बेगम : फिर क्या करूं।
सिकंदर मिर्ज़ा : (डरते-डरते) तुम वहां... उसके साथ सो जाओ...
हमीदा बेगम : (जलकर) लो मर्द होकर मुझे आग के मंह में झोंक रहे हो।
सिकंदर मिर्ज़ा : (झुंझला कर) अरे तो मैं... वहां सो भी नहीं सकता।
हमीदा बेगम : ठीक है तो मैं ही ऊपर जाती हूं।
सिकंदर मिर्ज़ा : नहीं।
हमीदा बेगम : ये लो... अब फिर नहीं।
सिकंदर मिर्ज़ा : ठीक है, दोखो उनसे कहना...
हमीदा बेगम : अरे मुझे अच्छी तरह मालूम है उनसे क्या कहना है क्या नहीं कहना।
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(क्रमशः अगले अंकों में जारी)
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