पिछली कड़ियाँ - एक , दो , तीन , चार , पांच , छः , सात , आठ , नौ , दस , ग्यारह , बारह , तेरह , चौदह , पंद्रह आओ कहें...दिल की बात कै...
पिछली कड़ियाँ - एक , दो , तीन, चार, पांच, छः , सात, आठ, नौ, दस, ग्यारह, बारह , तेरह, चौदह, पंद्रह
आओ कहें...दिल की बात
कैस जौनपुरी
काला पति
डैडी...!
आज आठ साल हो गए आपको डैडी कहे हुए...
डैडी...आपकी बेटी अब बड़ी हो गई है. और आपसे माफ़ी माँगना चाहती है. आपने तो सब कुछ मेरे भले के लिए किया मगर मैं गुस्से में आपसे नाराज हो गई और आप सबसे नाता तोड़ लिया.
डैडी, मुझे माफ कर दीजिए. मैं पुरानी सभी बातों को भूलकर एक नयी जिन्दगी जीना चाहती हूँ. जिसमें मेरे अपने घरवाले भी हों.
आज आठ साल हो गए डैडी. कुछ बातें हैं जिन्हें कहके मैं अपने दिल का बोझ हल्का कर लेना चाहती हूँ. और मैं जानती हूँ कि आप सब सुन लेंगे. मैं आपकी बेटी जो हूँ. अपनी औलाद की खुशी के लिए आपने बहुत कुछ किया है. ये भी कर लेंगे.
डैडी, मैं आपसे यूँ ही नाराज नहीं हुई थी. आपने मेरी शादी मेरी मरजी के खिलाफ की इसलिए मैं आपसे नाराज हुई. मैं जिसे चाहती थी आपने उसके बारे में मुझसे पूछा तक नहीं. और जल्दी जल्दी में आपने एक हफ्ते के अन्दर मेरी शादी एक अमीर लड़के से कर दी. जब मैंने अपने पति को देखा तो मेरी नाराजगी और बढ़ गई. क्यूंकि मेरा पति काला था. जिसे आपने पसन्द किया था मेरे लिए. उस वक्त मैंने सोचा था, “आप बाप नहीं कसाई हैं. जिन्दगी भर अब आपका मुँह नहीं देखूँगी.”
चिढ़ इस बात की नहीं थी कि मेरा पति काला है. गुस्सा इस बात का था कि ये जबर्दस्ती मेरे सिर मढ़ा गया था.
मैंने बहुत कोशिश की कि किसी तरह ये शादी टूट जाए और आपकी कोशिश पे मैं पानी फेर दूँ जैसे आपने मेरे अरमानों के साथ किया था. मेरी सहेलियों ने मेरा मजाक उड़ाया था “तू तो कितनी गोरी है. और तेरा पति जैसे उल्टा तवा.” और मुझे ऐसा लगता था जैसे इस काले तवे की कालिख मेरे चेहरे पर जानबूझ कर पोत दी गई हो. मुझे ऐसा लगा था जैसे मुझे प्यार करने की सजा मिली हो. प्यार तो हर कोई करता है लेकिन सजा में हर किसी को काला पति नहीं मिलता. इसीलिए मैं और उग्र हो गई थी.
मैंने अपनी ससुराल में किसी से सीधे मुँह बात नहीं की. ढाई साल लगे जब मैंने आपने पति को आपने नजदीक आने दिया. आपने मायके वालों को तो मैंने दरवाजे से ही भगा दिया हमेशा. आपकी शकल न देखने की तो मैंने कसम ही खा रखी थी.
मुझे अफ़सोस था अपने प्यार को खोने का. उसे तो मौका भी नहीं मिला खुद को साबित करने का. और आपने मुझे भी मौका नहीं दिया एक आखिरी बार उससे बात करने का. पता नहीं आपको इतना बुरा क्या लगा कि आपने एक बार भी मुझसे नहीं पूछा कि वो लड़का करता क्या है? मैं क्या चाहती हूँ? आपने कुछ भी पूछने की जरुरत नहीं समझी. आपने सीधे फैसला किया और मेरी शादी कर दी. आपने पति तो अमीर ढूँढ लिया था मगर एक लड़की, जो इतने बड़े सदमे से गुजरी हो, एक काले पति को देखकर क्या महसूस करती?
वो तो भला हो मेरी किस्मत का कि मेरा काला पति दिल का बड़ा गोरा निकला. उसने मेरी हालत को समझा और मुझे बर्दाश्त किया. शायद कोई गोरा पति होता तो मुझे धक्के मारके घर से निकाल देता क्यूंकि मैं यही चाहती थी. लेकिन मेरे काले पति ने सब कुछ पलट कर रख दिया. उसने अपने साथ अपने घर वालों को भी मुझे बर्दाश्त करने के लिए मना लिया. मेरी इस घर से बाहर निकलने की हर कोशिश को इस उलटे तवे ने उलट कर रख दिया. मैंने उसे अपने करीब नहीं आने दिया. उसने इस बात को भी बर्दाश्त किया, पूरे ढाई साल.
आज आठ साल हो गए और मेरे पति ने धीरे-धीरे मुझे इतना प्यार दिया कि मैं अपना सारा गुस्सा भूल गई. आज मेरे सास-ससुर भी मुझसे बहुत खुश हैं. मैं उनकी अच्छी बहु बन चुकी हूँ.
इतना सब कुछ होने और जिन्दगी को इस तरह रुख मोड़ते देख मैंने सोचा, “क्या मेरे डैडी ने मेरे साथ गलत किया?” तब मुझे अपने काले पति का चेहरा याद आता था और तब मन के किसी कोने से आवाज आती थी “नहीं”. और मेरा उल्टा तवा चाँद की तरह चमकदार दिखाई देने लगता था.
आज मुझे अपने प्यार को खोने का उतना अफ़सोस नहीं जितना मैं इस काले पति को पाकर खुश हूँ. और ये सब हुआ आपकी वजह से. ना आप मेरी इस तरह शादी कराते ना ये सब होता. इसलिए अब मैं अपने डैडी को याद करके गुस्सा नहीं होती हूँ बल्कि मुस्कुराने लगती हूँ. लेकिन आपका सामना करने की हिम्मत मुझमें अभी भी नहीं है. इसीलिए ये खत लिख रही हूँ आपको. इसकी भी सलाह मेरे उलटे तवे ने दी है.
मैं अपनी जिन्दगी में बहुत खुश हूँ डैडी. मुझे उम्मीद है मैंने जिसे चाहा था उसने भी मुझे माफ कर दिया होगा. शायद मेरी किस्मत में यही लिखा था. वैसे मैंने अपनी किस्मत से लड़ने की भरपूर कोशिश की थी. लेकिन मेरे काले पति ने मेरी हर कोशिश को बेकार कर दिया. अपने ही घर में वो अजनबी बनके रहा. जब मैं बेमतलब का चिल्लाती थी तब वो मेरी हर ज्यादतियों को बर्दाश्त करता था. शायद उसकी जगह कोई और होता तो पता नहीं क्या करता.
एक बात मैंने सीखी कि “अगर सामने वाला चुप रहे तो कोई कितना चिल्लाएगा...?” मैं भी चिल्ला-चिल्ला के थक गई. कोई मेरी बात का बुरा मानता ही नहीं था. शायद इन लोगों को भी अपनी इज्जत का खयाल था कि “लोग क्या कहेंगे कि नई-नई बहु ड्रामा करती है” इसलिए इन लोगों ने मिलके मुझ जैसी डायन का सामना किया. और मुझे अपने प्यार और अपनेपन से एक औरत बना दिया.
जब मैं कई-कई दिन तक भूखी रहती थी तो मेरा यही काला पति मेरे लिए खाना लेके आता था. मैं उसे भी मना कर देती थी. पहले तो ठीक था लेकिन पूरे घर का माहौल मेरी वजह से खराब रहने लगा था. घर वाले मेरे पति को कोसने लगे थे. और बेचारा मेरा पति सबकी बात सुनता था सिर्फ मेरी वजह से. क्या पता उसे क्या अच्छा लगा मुझमें...? शायद वो काला था और एक गोरी लड़की पाके खुश हो गया था. लेकिन कोई भी सिर्फ गोरे चेहरे को देख इतना बर्दाश्त नहीं करेगा. कुछ तो बात होगी जो मेरे पति ने मुझे आज तक नहीं बताई. जब भी मैं जिद करके पूछने की कोशिश करती हूँ कि “तुमने इतने दिनों तक मुझे क्यूँ बर्दाश्त किया?” तब वो कहता था “बस मैं तुम्हें खोना नहीं चाहता था.” फिर मुझे और अफ़सोस होता था कि “मैंने इस भले इन्सान के साथ कितना जुल्म किया...?”
मेरी आँख तब खुली जब मेरे ससुराल वाले मुझसे तंग आ गए और अब मेरे पति को सबकी बातें सुनकर मैंने झल्लाते हुए देखा. लेकिन मेरे पति ने मुझसे कुछ नहीं कहा बल्कि अपने घर वालों से कह दिया “आप लोगों को मेरी बीवी से दिक्कत है तो मैं उसे लेके अलग हो जाता हूँ.” घर वाले भी गुस्से में थे. उन्होंने कहा “जा, जा. तेरी जान ये डायन ही लेगी.” मेरे पति ने तब भी मुझे कुछ नहीं कहा. और धीरे से मुझसे कहा “अपना सामान पैक कर लो.”
तब मैंने सोचा “ये आदमी क्या है...? जिसे मैंने आज तक अपने पास भी बैठने नहीं दिया, आज मेरे लिए अपने घरवालों से दूर जा रहा है. ये ऐसा क्यूँ कर रहा है? इसे क्या मिलेगा?”
मगर मैंने जो किया था उसके बाद मुझमें ये पूछने की भी हिम्मत नहीं हुई. और तब मैं पहली बार अपने पति के पास गई जो घर में चुपचाप मेरे तैयार होने का इन्तजार कर रहा था. पहली बार मैंने उसकी आँखों में आँख मिला के देखा था, पूरे ढाई साल बाद.
और उस दिन मैंने देखा कि उसकी आँखों में मेरे लिए अब भी गुस्सा नहीं था. सिर्फ प्यार ही प्यार था. तब मैंने सोचा, “क्या कोई किसी को इतना भी प्यार कर सकता है कि उसकी हर नादानी को बर्दाश्त कर जाए और उफ्फ तक न करे...? ऐसा निकला मेरा काला पति.
अब मुझे ये समझ में नहीं आ रहा था कि अपने किये हुए कारनामों की गन्दगी मैं दूर कैसे करूँ? क्यूँकि उनकी वजह से पूरा घर बदबू कर रहा था. फिर सफाई की शुरुआत तो मुझे ही करनी थी. मैं अपने घरवालों से गुस्से में दूर हुई थी. कोई प्यार की वजह से दूर हो रहा था. वो भी मेरे जैसी बेवकूफ लड़की के लिए.
लेकिन मैंने ऐसा होने नहीं दिया. मुझे भी अकल देर से आई मगर आई. ढाई साल इस तरह बीतने के बाद फिर कभी किसी ने मुझे डायन नहीं कहा. और ना ही मेरे पति को मेरी वजह से कुछ सुनना पड़ा.
मुझे तो मेरे किये की सजा मिलनी चाहिए थी मगर मेरे पति ने मुझे माफ कर दिया. और फिर बाकी सबने भी देखा कि घर में अब बर्तनों की आवाज नहीं आ रही है तो इसका मतलब था कि मैंने खाना बनाना शुरू कर दिया है. फिर बाकी सबने भी मुझे माफ कर दिया.
एक बात मैंने और जानी कि “औरत गुस्सा करने में तेज होती है और मर्द माफ करने में. अजीब इत्तेफाक है.”
मेरे पति ने अपनी ख़ामोशी से मुझे ऐसी सजा दी कि मैं अब भूलकर भी कोई गलती नहीं करती. अब तो मैं परेशान रहती हूँ कि कोई मुझे मेरी गलती बताता ही नहीं. पता नहीं मैं गलत हूँ या सही? लेकिन सब लोग मुझसे बात करते हैं तो लगता है सब ठीक है. और फिर अब मैं सबका खयाल भी रखती हूँ.
डैडी, सबसे जरुरी बात तो मैं बताना भूल ही गई. मैं अब माँ बन चुकी है. मेरा एक बेटा है. जो आप पर गया है. मुझे उसमें आप दिखाई देते हैं. शायद उसने ही मुझे पिघला दिया और मैं इतनी हिम्मत जुटा पाई कि आपसे सारी बात कह सकी.
मुझे पता है आप मुझे मेरी नादानियों के लिए माफ कर देंगे.
आपकी बेटी,
रूबी
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कैस जौनपुरी
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