दशहरा पर्व भारतीय संस्कृति में सबसे ज्यादा बेसब्री के साथ इंतजार किये जाने वाला त्यौहार है। दशहरा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के शब्द सं...
दशहरा पर्व भारतीय संस्कृति में सबसे ज्यादा बेसब्री के साथ इंतजार किये जाने वाला त्यौहार है। दशहरा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के शब्द संयोजन 'दश' व 'हरा' से हुयी है, जिसका अर्थ भगवान राम द्वारा रावण के दस सिरों को काटने व तत्पश्चात रावण की मृत्यु रूप में राक्षस राज के आंतक की समाप्ति से है। यही कारण है कि इस दिन को विजयदशमी अर्थात अन्याय पर न्याय की विजय के रूप में भी मनाया जाता है। दशहरे की परम्परा भगवान राम द्वारा त्रेतायुग में रावण के वध से भले ही आरम्भ हुई हो, पर द्वापरयुग में महाभारत का प्रसिद्ध युद्ध भी इसी दिन आरम्भ हुआ था। पर विजयदशमी सिर्फ इस बात का प्रतीक नहीं है कि अन्याय पर न्याय अथवा बुराई पर अच्छाई की विजय हुई थी बल्कि यह बुराई में भी अच्छाई ढूँढ़ने का दिन होता है। रावण में कुछ अवगुण जरुर थे, लेकिन उसमें कई गुण भी मौजूद थे, जिन्हे कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में उतार सकता है। यदि रामायण या राम के जीवन से रावण के चरित्र को निकाल दिया जाएए तो संपूर्ण रामकथा का अर्थ ही बदल जाएगा। स्वयं राम ने रावण के बुद्धि और बल की प्रशंसा की है। रावण-वध के बाद भगवान राम ने अनुज लक्ष्मण को रावण के पास शिक्षा लेने के लिए भेजा था। पहले तो लक्ष्मण रावण के सिर के पास बैठे, पर जब रावण ने इस स्थित में उन्हें शिक्षा देने से इन्कार कर दिया, तो लक्ष्मण ने एक शिष्य की तरह रावण के चरणों के पास बैठकर शिक्षा ली।
रावण दैत्यराज सुमाली की पुत्री कैकशी एवं विद्वान ब्राहमण विश्रव का पुत्र था। दैत्यराज सुमाली अपनी बेटी कैकशी का विवाह एक ऐसे व्यक्ति से करना चाहते थे जो उन्हें एक योग्य एवं अति बलवान उत्तराधिकारी दे सके। जब दैत्यराज की इस इच्छा पर कोई भी खरा नहीं उतरा तो कैकशी ने स्वयं विद्वान ब्राहमण विश्रव का चयन किया। विवाह के वक्त ही विश्रव ने कैकशी से कहा था कि चूँकि तुमने मेरा चुनाव गलत क्षण में किया है, अतः तुम्हारा पुत्र बुराई के मार्ग पर जायेगा। रावण के जन्म के समय उसके पिता विश्रव को जब यह ज्ञात हुआ कि उनके बेटे में दस लोगों के बराबर बौद्धिक बल है, तो उन्होंने उसका नाम ‘दशानन‘ रख दिया। रावण के दशानन होने के संबंध में एक अन्य किंवदन्ती है कि उसके विद्धान-ब्राहमण पिता विश्रव ने उसे एक बेशकीमती रत्नों का हार पहनाया था, जिसकी खासियत यह थी कि उससे निकलने वाले प्रकाश से लोगों को रावण के दस सिर और बीस हाथ होने का आभास होता था। अपने माता-पिता के चलते रावण में दैत्य और ब्राहमण दोनों के गुण थे। रावण को न केवल शास्त्रों बल्कि 64 कलाओं में महारत हासिल थी। यहाँ तक कि उसे हाथी और गाय को भी प्रशिक्षित करने की कला का ज्ञान था।
यदि हम अलग.अलग स्थान पर प्रचलित राम कथाओं को जानें, तो रावण को बुरा व्यक्ति नहीं कहा जा सकता है। जैन धर्म के कुछ ग्रंथों में रावण को 'प्रतिनारायण' कहा गया है। रावण समाज सुधारक और प्रकांड पंडित था। तमिल रामायणकार 'कंब' ने उसे सद्चरित्र कहा है। रावण ने सीता के शरीर का स्पर्श तक नहीं किया बल्कि उनका अपहरण करते हुए वह उस भूखंड को ही उखाड़ लाता है, जिस पर सीता खड़ी हैं । गोस्वामी तुलसीदास ने भी कहा है कि रावण जब सीता का अपहरण करने आया तो वह पहले उनकी वंदना करता है। 'मन मांहि चरण बंदि सुख माना।' महर्षि याज्ञवल्क्य ने इस वंदना को विस्तारपूर्वक बताया है। 'मां' तू केवल राम की पत्नी नहीं बल्कि जगत जननी है। राम और रावण दोनों तेरी संतान के समान हैं। माता योग्य संतानों की चिंता नहीं करती बल्कि वह अयोग्य संतानों की चिंता करती है। राम योग्य पुरुष हैं जबकि मैं सर्वथा अयोग्य हूं इसलिए मेरा उद्धार करो मां। यह तभी संभव है जब तू मेरे साथ चलेगी और ममतामयी सीता उसके साथ चल पड़ी।
ज्योतिष और आयुर्वेद का ज्ञाता लंकापति रावण तंत्र-मंत्र, सिद्धि और दूसरी कई गूढ़ विद्याओं का भी ज्ञाता था। ज्योतिष विद्या के अलावा उसे रसायन शास्त्र का भी ज्ञान प्राप्त था। उसे कई अचूक शक्तियां हासिल थीं जिनके बल पर उसने अनेक चमत्कारिक कार्य संपन्न किए। श्रावण संहिताश में उसके दुर्लभ ज्ञान के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है। वह राक्षस कुल का होते हुए भी भगवान शंकर का उपासक था। उसने लंका में छह करोड़ से भी अधिक शिवलिंगों की स्थापना करवाई थी। यही नहीं रावण एक महान कवि भी था। उसने श्शिव ताण्डव स्त्रोत्म की। उसने इसकी स्तुति कर शिव भगवान को प्रसन्न भी किया। रावण वेदों का भी ज्ञाता था। उनकी ऋचाओं पर अनुसंधान कर विज्ञान के अनेक क्षेत्रों में उल्लेखनीय सफलता अर्जित की। वह आयुर्वेद के बारे में भी जानकारी रखता था। वह कई जड़ी.बूटियों का प्रयोग औषधि के रूप में करता था।
रावण भगवान शिव का भक्त होने के साथ-साथ महापराक्रमी भी था। इसी तथ्य के मद्देनजर आज भी कानपुर के शिवाला स्थित कैलाश मंदिर में विजयदशमी के दिन दशानन रावण की महाआरती की जाती है। सन् 1865 में श्रृंगेरी के शंकराचार्य की मौजूदगी में महाराज गुरू प्रसाद द्वारा स्थापित इस मंदिर में शिव के साथ उनके प्रमुख भक्तों की मूर्तियाँ स्थापित की गई हैं। कालांतर में सन् 1900 मंे महाराज शिवशंकर लाल ने कैलाश मंदिर परिसर में शिवभक्त रावण का मंदिर बनवाया और देवी के तेइस रूपों की मूर्ति भी स्थापित की। वस्तुतः इसके पीछे यह तर्क था कि भक्त के बगैर ईश्वर अधूरे हैं, इसीलिए भगवान शंकर के मंदिर के बाहर उनके अनन्य भक्त रावण का भी मंदिर बनाया गया। तभी से रावण की महाआरती की परम्परा यहाँ पर कायम है। कानपुर से सटे उन्नाव जिले के मौरावां कस्बे में भी राजा चन्दन लाल द्वारा सन् 1804 में स्थापित रावण की मूर्ति की पूजा की जाती है। यहाँ दशहरे के दिन रामलीला मैदान में 7-8 फुट ऊँचे सिंहासन पर बैठे रावण की विशालकाय पत्थर की मूर्ति की लोग पूजा करते हैं, जबकि एक अन्य पुतला बनाकर रावण दहन करते हैं।
मध्य प्रदेश के मंदसौर में नामदेव वैश्य समाज के लोगों के अनुसार रावण की पत्नी मंदोदरी मंदसौर की थी। अतः रावण को जमाई मानकर उसकी खतिरदारी यहाँ पर भव्य रूप में की जाती है। यहाँ पर रावण के समक्ष मनौती मानने और पूरी होने के बाद रावण की वंदना करने व भोग लगाने की परंपरा रही है। हाल ही में यहाँ रावण की पैतीस फुट उंची बैठी हुई अवस्था में कंक्रीट मूर्ति स्थापित की गई है। इसी प्रकार जोधपुर के लोगों के अनुसार रावण की पत्नी मंदोदरी यहाँ की पूर्व राजधानी मंडोर की रहने वाली थीं व रावण व मंदोदरी के विवाह स्थल पर आज भी रावण की चवरी नामक एक छतरी मौजूद है। हाल ही में अक्षय ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र ने जोधपुर के चांदपोल क्षेत्र में स्थित महादेव अमरनाथ एवं नवग्रह मंदिर परिसर में रावण का मंदिर बनाने की घोषणा की है। इसमें रावण की मूर्ति शिवलिंग पर जल चढ़ाते हुए बनायी जा रही है, जिससे रावण की शिवभक्ति प्रकट होगी और उसका सम्मानीय स्वरूप सामने आयेगा।
मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में स्थित रावणगाँव में रावण को महात्मा या बाबा के रूप में पूजा जाता है। यहाँ रावण बाबा की करीब आठ फीट लंबी पाषाण प्रतिमा लेटी हुयी मुद्रा में है और प्रति वर्ष दशहरे पर इसका विधिवत श्रृंगार करके अक्षत, रोली, हल्दी व फूलों से पूजा करने की परंपरा है। चूंकि रावण की जान उसकी नाभि में बसती थी, अतः यहाँ पर रावण की नाभि पर तेल लगाने की परंपरा है अन्यथा पूजा अधूरी मानी जाती है।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ग्रेटर नोएडा के मध्य स्थित बिसरख गाँव को रावण का पैतृक गाँव माना जाता है। बताते हैं कि रावण के पिता विश्रवामुनि इस गाँव के जंगल में शिव भक्ति करते थे एवं रावण सहित उनके तीनों बेटे यहीं पर पैदा हुए। विजय दशमी के दिन जब चारो तरफ रावण का पुतला फूका जाता है, तो बिसरख गाँव के लोग उस दिन शोक मनाते हैं। इस गाँव में दशहरा का त्यौहार नहीं मनाया जाता है। गाँववासियों को मलाल है कि रावण को पापी रूप में प्रचारित किया जाता है जबकि वह बहुत तेजस्वी, बुद्विमान, शिवभक्त, प्रकाण्ड पण्डित एवं क्षत्रिय गुणों से युक्त था। महाराष्ट्र के अमरावती और गढ़चिरौली जिले में 'कोरकू' और 'गोंड' आदिवासी रावण और उसके पुत्र मेघनाद को अपना देवता मानते हैं। अपने एक खास पर्व 'फागुन' के अवसर पर वे इसकी विशेष पूजा करते हैं।
उत्तर भारत में दशहरा का मतलब भले ही रावण दहन से अनिवार्य रूप से जुड़ा हुआ हो, पर भारत के अन्य हिस्सों में ही इसे अन्य रूप में मनाया जाता है। बंगाल में दशहरे का मतलब रावण दहन नहीं बल्कि दुर्गा पूजा होती है, जिसमें माँ दुर्गा को महिषासुर का वध करते हुए दिखाया जाता है।
कृष्ण कुमार यादव,
भारतीय डाक सेवा,
निदेशक डाक सेवाएँ, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह, पोर्टब्लेयर-744101
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कृष्ण कुमार यादव : सम्प्रति भारत सरकार में निदेशक. प्रशासन के साथ-साथ साहित्य, लेखन और ब्लाॅगिंग के क्षेत्र में भी चर्चित नाम । जवाहर नवोदय विद्यालय-आज़मगढ़ एवं तत्पश्चात इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 1999 में राजनीति-शास्त्र में परास्नातक. देश की प्राय: अधिकतर प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर वेब पत्रिकाओं व ब्लॉग पर रचनाओं का निरंतर प्रकाशन. व्यक्तिश: 'शब्द-सृजन की ओर' और 'डाकिया डाक लाया' एवं युगल रूप में सप्तरंगी प्रेम, उत्सव के रंग और बाल-दुनिया ब्लॉग का सञ्चालन. इंटरनेट पर 'कविता कोश' में भी कविताएँ संकलित. 50 से अधिक पुस्तकों/संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित. आकाशवाणी और दूरदर्शन पर प्रसारण. कुल 5 कृतियाँ प्रकाशित- 'अभिलाषा' (काव्य-संग्रह,2005) 'अभिव्यक्तियों के बहाने' व 'अनुभूतियाँ और विमर्श' (निबंध-संग्रह, 2006 व 2007), 'India Post : 150 Glorious Years' (2006) एवं 'क्रांति-यज्ञ : 1857-1947 की गाथा' .विभिन्न सामाजिक-साहित्यिक संस्थाओं द्वारा 50 से ज्यादा सम्मान और मानद उपाधियाँ प्राप्त. व्यक्तित्व-कृतित्व पर 'बाल साहित्य समीक्षा' (सं. डा. राष्ट्रबंधु, कानपुर, सितम्बर 2007) और 'गुफ्तगू' (सं. मो. इम्तियाज़ गाज़ी, इलाहाबाद, मार्च 2008) पत्रिकाओं द्वारा विशेषांक जारी. व्यक्तित्व-कृतित्व पर एक पुस्तक 'बढ़ते चरण शिखर की ओर : कृष्ण कुमार यादव' (सं0- दुर्गाचरण मिश्र, 2009) प्रकाशित.
संपर्क : कृष्ण कुमार यादव, भारतीय डाक सेवा, निदेशक डाक सेवाएँ, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह, पोर्टब्लेयर-744101
ई-मेलः kkyadav.y@rediffmail.com
ब्लॉग:www.kkyadav.blogspot.com
boht achi jankari mili aapki is post se thanks
जवाब देंहटाएंयादव जी बहुत सुन्दर और जानकारीपूर्ण ,शोधपरक आलेख ! बधाई
जवाब देंहटाएंदशहरे पर रावण की पूजा...शीर्षक पढ़कर कुछ अजीब सा लगा. पर पूरा लेख पढने के बाद लगा की लेखक ने इसके लिए काफी शोधपरक श्रम किया है. कृष्ण कुमार जी, आप अपने समृद्ध लेखन के लिए यूँ ही नहीं जाने जाते हैं...बधाई.
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