संजय दीप का हृदय तीव्र प्रतिशोध से भरा था। पेरोल पर छूटते ही वह मोनिका बाती के घर की तरफ चल दिया। छह महीने बाद तो वह जेल की चारदीवारी से न...
संजय दीप का हृदय तीव्र प्रतिशोध से भरा था। पेरोल पर छूटते ही वह मोनिका बाती के घर की तरफ चल दिया।
छह महीने बाद तो वह जेल की चारदीवारी से निकल खुली हवा में सांस ले रहा था। मगर सांसें जल रही थीं। शहर की रौनक उसे बेनूर लग रही थी। आंखों में वही एक दृश्य छाया हुआ था, जिसमें सूखी बावड़ी पर पतझर में झर गए एक दरख्त के नीचे वह मोनिका के साथ प्रेमालाप में निमग्न था।... उससे पहले वे इतने खुलकर नहीं मिले थे। शहर के केबिन वाले रेस्त्राओं में 100 रुपए मग्गे कॉफी, 75 रुपए पैकेट पॉपकोर्न खाने के बहाने घंटों बैठे जरूर थे। पर वहां हथेलियों में एक-दूसरे का चेहरा ले, ओठ चूमने-चूसने से आगे न बढ़े थे।
यह सेकेण्ड ईयर की बात थी। फर्स्ट ईयर में तो उसके पर भी नहीं निकले थे! कहने को कॉलेज में रेगिंग खत्म हो गई था। करने वालों पर तुरंत प्रशासनिक कार्यवाही हो जाती। पर छात्रों की मानसिकता नहीं बदली थी। सीनियर्स किसी न किसी रूप में डराते, धमकाते और हर तरह का शोषण करने- शारीरिक, मानसिक कष्ट देने से वाज न आते। सो, थर्ड ईयर तक आते-आते वह खुद भी उसी राह पर चल पड़ा।...
हाईट अच्छी थी और कदकाठी का मजबूत। न्यूकमर दूर से ही कौंधते। तिस पर फर्स्ट ईयर में तो उस बार तमाम टीन एजर्स आ गए थे। कमसिन लड़कियां और मासूम लड़के। जिनकी अभी मसें भीग रही थीं।... आलम वही पुराना, टीचर्स अधिकतर क्लास से नदारद रहते। सत्र के आरंभ में तो यह हर साल होता।... रौब गालिब करने वह अपने शागिर्दों को लेकर किसी भी क्लास में घुस जाता। किसी को चड्डी में घुमाता तो किसी को मुर्गा बना देता। हद तो ये कि किसी-किसी को लड़कियों को छेड़ने को उकसाता! कहता, ये ट्रेनिंग है। सीखकर जाओ, दुनिया में बहुत मारामारी करना पड़ेगी।...
मोनिका बाती उसी साल कॉलेज में दाखिल हुई थी। सुरक्षा के लिए वह उसकी छत्रछाया में आ गई। शुरूआत बाईक पर लिफ्ट लेने से की और केबिन वाले रेस्त्राओं में साथ काफी पीने लगी। पहले उसे पता नहीं था कि कॉफी के बहाने वह एक घंटे बिठाएगा और बॉडी छू-छूकर बात करेगा! और वह सहनशील बन जाएगी तो एक दिन गाल चूमेगा, दूसरे दिन ओठ! तो तीसरे दिन वह उसे खुद ही प्यार करने लगेगी।
प्यार अंधा होता है! बाती ने उसे कहीं और चलने के लिए उकसाया। केबिन वाले रेस्त्राओं में अब पूर्ति नहीं हो रही थी। उसने कहा- यहां कभी पुलिस की रेड पड़ जाएगी या कोई मिलने-जुलने वाला देख लेगा। घर से निकलना बंद हो जाएगा, समझे!
दीप उसे सूखी बावड़ी पर ले आया।
दीप अतीत में खोया चला जा रहा था कि अचानक उसे एक लड़की का शोर सुनाई दिया। स्टेडियम के पीछे, सूनी रोड से वह पैदल गुजर रहा था। बाती की ससुराल के लिए यह शॉर्टकट था।... चौंककर नजरें उठाईं तो बालभवन के पार्क में उसे एक लड़की, दो लड़कों के सिर तितली-भौंरों से मंडराते दिखे।... दीप लम्बाई का फायदा उठाकर बाउड्री फलांग गया। लड़की बिल्ली की तरह मिमियाती पीछे हट रही थी। लड़के कुत्त्तों की तरह गुर्राते झपट रहे थे।
दीप ने बीच में आकर उनकी धुनाई शुरू कर दी। लड़की साथ देने लगी। पिटते-पिटते बेहाल हो, वे अंधेरे का फायदा उठा भाग खड़े हुए। तब दीप ने अपना गुस्सा निकाला- तुम शाम को इस डेंजरस एरिया में मरने क्यों आईं?
लड़की एक विदेशी श्ौलानी थी। अंग्रेजी उसे टूटी-फूटी आती। और उससे भी टूटी-फूटी हिंदी। डरते-डरते उसने दीप से कहा कि- खजुराहो से आने में लेट हो गई। स्टेशन पहुंची तब तक जयपुर की ट्रेन छूट गई। रात गुजारने के लिए उधर पीछे, होटल लेंडमार्क में कमरा ले लिया। सोचा, टाइम है, जरा ग्वालियर भी घूम लूं... मगर इधर आकर फंस गई।
-चलो तुम्हें होटल छोड़ दूं! संजय दीप ने उससे अंग्रेजी में कहा। बीई हो नहीं पाई मगर अंग्रेजी अच्छी हो गई थी।
लड़की का नाम सूकी था। साउथ अफ्रीका से वह भारत भ्रमण पर आई थी। गांधी का देश देखना चाहती थी। क्योंकि- उसके राश्ट्रपति, नेल्शन मंडेला, गांधी के अनुयायी थे। उन्होंने उन्हीं की तर्ज पर दक्षिण अफ्रीका को आजाद कराया।... होटल आकर सूकी ने दीप को कमरे में चलने को कहा। वह उसे कम से कम एक काफी पिलाकर उसका सत्कार करना चाहती थी। दीप मान गया और दूसरी मंजिल पर उसके कमरे में आ गया। कमरा अच्छा था। वे बैठ गए तो बेटर थोड़ी देर में वहीं काफी ले आया। काफी पीते हुए कुछ तो कहने की गरज से दीप ने कहा- रपट डाल दो।...
सूकी ने मना कर दिया। वह तो घूमने आई थी, कौन कोर्ट-कचहरी करेगा!
-ओके गुडनाईट! मग्गा खाली कर वह उठ खड़ा हुआ।
सूकी धक् से रह गई, बोली- मैं भी चलती हूं, मुझे पुलिस स्टेशन छोड़ देना।
-क्यों?
-यहां नहीं, उसने डरते हुए कहा, ट्रेन होती तो मैं नाइट में ही जयपुर चली जाती।
दीप जेल से लौटा था। उसे सब मालूम था। हफ्ते भर पहले ही स्टेशन पर छेड़छाड़ से बचने महिला थाने आईं दो युवतियों की रात साढ़े तीन बजे तीन पुलिसियों ने इज्जत लूट ली थी! उसने कहा- वहां कोई सुरक्षा नहीं है। ये होटल ज्यादा विश्वस्त है। मैं मैनेजर को बोलता जाऊंगा।
-नहीं, यहां नहीं, सूकी जिद कर गई, फिर मैं आपके साथ, आपके घर चली चलूंगी।
दीप चक्कर में पड़ गया कि- आज ही तो पेरोल पर छूटा हूं। इसी चक्कर में जेल हुई। घर वाले इसे देखते ही भड़क जाएंगे। और फिर मुझे घर नहीं सीधे मोनिका बाती के पास जाना है... और वहां से फिर जेल!
प्रतिशोध की ज्वाला फिर उसके भीतर धधक उठी। उसने बात बनादी- मेरा घर इस शहर में नहीं है...।
चिंता और भय से सूकी का मुंह म्लान और पीला पड़ गया। दीप ने उसे लाख आश्वस्त करना चाहा, पर नहीं हुई। उसने अनुरोध किया कि जाना जरूरी न हो तो तुम आज यहीं रुक जाओ।... जाना जरूरी था, दीप सोचने लगा। पर भयग्रस्त सूकी का ख्याल कर वह अपना बदला कल पर टाल देने को मजबूर हो गया। और वह रुक गया तो सूकी ने चहकते हुए कहा- तुम बहुत थके हुए लग रहे हो, पहले फ्रेश हो लो, फिर खाना खाएंगे।...
दीप जेल से आया था। बाल उलझे हुए थे। कपड़े जरूर साफ थे क्योंकि पिछली मिलाई पर पिता धुले हुए दे गए थे। जेल में वह जेल के पहनता था, इसलिए साफ बने रहे। सूकी से तौलिया लेकर वह नहाने चला गया। पसीने से देह गंधा रही थी।
पतझर का मौसम था। सूखी बावड़ी पर सब ओर पत्ते बिछे थे। बावड़ी जरूर सूखी थी मगर, पेड़ खूब घने और हरे भरे थे। शहर के प्रेमी जोड़े जब रेस्त्राओं में नहीं समाते तो इन्हीं के नीचे आकर काफी पीते, पॉपकोर्न खाते।... उन्होंने पतझर में झर गए एक दरख्त के नीचे के सूखे पत्ते झाड़कर अखबार के पन्ने बिछा लिए और एक-दूसरे का चुम्बन लेकर बैठ गए। फिर साथ में लाया जिंकफूड और पेय निबटाने के बाद वे उन्हीं पन्नों पर लेट गए और ओठ चूसते-चूसते दीप और बाती का संयोग करा कायनात रोशन कर उठे। मोनिका ने खुलकर साथ दिया और कहा कि- तुमने रेगिंग की नहर न खोदी होती तो आज ये नाव इस पतझर में न चल रही होती।...
संजय ने घटना प्रसंग का एमएमएस बना लिया और मोनिका के मोबाइल पर डाल दिया। देखकर वह उछल पड़ी। पूछा- फेसबुक पर डाल दूं? हां- डाल दो! इसका भी जैसे क्रेज चल पड़ा था। यूथ अपने अफेयर्स छुपाते नहीं थे।... मगर थोड़े दिन बाद ही मोनिका की शादी किसी और से हो गई। पति और देवर ने फेसबुक पर पड़ा वह एमएमएस देख लिया। उन्होंने रिपोर्ट कर दी। मोनिका ने गवाही दे दी। अदालत ने छेड़खानी और बलात्कार के जुर्म में संजय दीप को सात साल की सजा सुना दी। उसने कहा कि सहमति के आधार पर भी नाबालिग से संभोग, बलात्कार की श्रेणी में आता है!
दीप बड़े ततारोष में बाथरूम से लौटा। नहा लेने से बदन खिल जरूर गया था, पर मन बहुत उद्विग्न। उसने तय कर रखा था, बाती को उसके घर में ही बंधक बनाकर पेरोल के पूरे पंद्रह दिन काटूंगा! सजा तो हो ही चुकी है।...
वह निकल आया तो सूकी भी नहाने चली गई। लौटी तो वह बिकनी डाले हुए थी। वह विदेशी थी, उसे तो कोई झिझक भी न थी। सांवली जरूर थी, पर खूब छवि थी चेहरे पर। जाने से पहले वह खाने का आर्डर दे गई थी। कमरे में एक छोटी-सी कॉमन टेबिल थी। खाना उसी पर परोस दिया गया। देर तक वे खाते रहे, जैसे रात काटना थी। मगर कोई बात नहीं की। बात करते भी क्या? और क्यों! दोनों ही जानते थे कि- परदेसी की प्रीति फूस का तपना।...
कमरे में दो अलग-अलग पलंग थे। न सिंगल न डबल। जैसे, चार बाई छह के। उनके बीच एक सोफे वाली बैंच। पर उन पर जाने की किसी की इच्छा नहीं हो रही थी। वे दोनों उसी बैंच पर बैठे थे। समय काटने के लिए आखिरश दीप ने पूछा- इंडिया कितना घूम लिया?
-अ-डेली, दून, मन्सूरी, डार्जलिंग, बनारस...सॉरी सारनात, अ-खजराओ...
-खजुराहो! उसने दोहराया।
-येस- खजराओ... उदर मंदिर में ये था, कहते उसने बैग उलटपुलट कर तमाम अलबमों में से खजुराहो का अलबम निकाल लिया। चित्र सोफे पर पसर गए।
-वण्डर...वण्डरफूल!
-हां ये सचमुच अद्भुत, आश्चर्यजनक हैं, दीप ने अंग्रेजी में कहा- मंदिर के लिए इनसे गुजर कर जाना होता है!
-कमाल है! क्या लाइफस्टाइल है... सूकी हैरत में आंखें नचा रही थी। आंखें उसकी छोटी थीं, पर गोल और सुंदर। उम्र उसकी अभी 20-22 के आसपास ही थी और हौसला! दीप चकित... उसकी तो शादीशुदा बहन भी घूमने कहीं अकेली नहीं जा सकती। विदेश छोड़ो, अपने देश में भी।
-सोया जाय? उसने जमुहाई लेते कहा। आंखें झुक रही थीं। कोर्ट से पेरोल का आदेश दो दिन पहले ही आ गया था, मगर जेल प्रशासन ने पूरा दिन बर्बाद कर दिया। खड़े-खड़े वह थक गया, तब शाम को जाकर फाटक से बाहर निकल पाया।
-ओके! सूकी ने अलबम समेट लीं और उठकर टयूब बंद कर नाइटलैम्प जला दिए। दीप अपने बेड पर पहुंच चुका था। सूकी अपने पर जाने से पहले उसके पास आई और उसे आलिंगन में बांध ओठ चूमते हुए बोली- ओके! गुडनाइट, डियर!
दीप लेट तो गया, मगर नींद उड़ गई। अलबम से निकल कर खजुराहो की मूर्तियाँ जीवंत होकर उसके बिस्तर पर आकर धमाल मचाने लगीं। थोड़ी देर बाद वह पानी पीने उठा, बोला- तुम्हें डर तो नहीं लग रहा।
-थोरा-थोरा!
दीप उसके बेड के पास पहुंच गया, बोला- मेरे बेड पर चलो!
सूकी एहसान से सराबोर उसके बेड पर आ गई। पहले करवट देकर लेटी, मगर नींद नहीं आई तो उसकी पीठ से चिपक गई।
पीठ में गुदगुदी भर गईं। दीप ने करवट उसी की ओर बदल ली। फिर उसे भुजपाश में ले लिया और कहा- सो जाओ।
मगर खुद को नींद नहीं आ रही थी। बाती के विरह और बाती की बेवफाई में जलता हृदय शीतल फुहार से भर गया। संसार की सबसे हसीन कृति बांहों में थी। इच्छा निःशेष हो गई।
उसकी बांहों में महफूज सूकी निश्चिंत हो गहरी नींद सो गई।
दीप भूल गया कि उसे मोनिका बाती से बदला लेना है। सुबह वह सूकी के साथ भारत भ्रमण पर चला गया।
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20, ज्वालामाता गली, गढ़ैया, भिण्ड (म0प्र0)
क्या शरीर ही सब कुछ है....... बदला ... बदले की चिंगारी, जेल वगैरह सब मिथ्या.....
जवाब देंहटाएंतपती रेत को बारिश की चंद बूंदों ने तृप्त कर दिया.
sundar
जवाब देंहटाएं"संसार की सबसे हसीं कृति बाँहों में थी" बहुत सुन्दर .......
जवाब देंहटाएंए असफल जी .
वैसे सब कुछ शरीर नहीं होता है दीपक जी लेकिन कुछ स्थानों पर यही सब कुछ होता है