‘हिन्दी भाषा क्षेत्र' के अन्तर्गत भारत के निम्नलिखित राज्य ∕ केन्द्र शासित प्रदेश समाहित हैं - 1. उत्तर प्रदेश 2. उत्तराखंड 3....
‘हिन्दी भाषा क्षेत्र' के अन्तर्गत भारत के निम्नलिखित राज्य ∕ केन्द्र शासित प्रदेश समाहित हैं - 1. उत्तर प्रदेश 2. उत्तराखंड 3. बिहार 4. झारखंड 5. मध्यप्रदेश 6. छत्तीसगढ़ 7. राजस्थान 8. हिमाचल प्रदेश 9. हरियाणा 10. दिल्ली 11. चण्डीगढ़।
‘ हिन्दी भाषा क्षेत्र ' में हिन्दी भाषा के जो प्रमुख क्षेत्रगत रूप बोले जाते हैं उनकी संख्या 20 है। भाषाविज्ञान का प्रत्येक विद्यार्थी जानता है कि प्रत्येक भाषा क्षेत्र में भाषिक भिन्नताएँ होती हैं। किसी ऐसी भाषा की कल्पना नहीं की जा सकती जो जिस ‘भाषा क्षेत्र' में बोली जाती है उसमें किसी प्रकार की क्षेत्रगत एवं वर्गगत भिन्नताएँ न हों। भिन्नत्व की दृष्टि से तो किसी भाषा क्षेत्र में जितने बोलने वाले व्यक्ति रहते हैं उस भाषा की उतनी ही ‘व्यक्ति बोलियाँ' होती हैं। इसी कारण यह कहा जाता है कि भाषा की संरचक ‘बोलियां' होती हैं तथा बोलियों की संरचक ‘व्यक्ति बोलियाँ'। इसी को इस प्रकार भी कह सकते हैं कि ‘व्यक्ति बोलियों' के समूह को ‘बोली' तथा ‘बोलियों' के समूह को भाषा कहते हैं। बोलियों की समष्टि का नाम ही भाषा है। किसी भाषा की बोलियों से इतर व्यवहार में सामान्य व्यक्ति भाषा के जिस रूप को ‘भाषा' के नाम से अभिहित करते हैं वह तत्वत: भाषा नहीं होती। भाषा का यह रूप उस भाषा क्षेत्र के किसी बोली ∕ बोलियों के आधार पर विकसित उस भाषा का ‘मानक भाषा रूप' होता है। भाषा विज्ञान से अनभिज्ञ व्यक्ति ‘मानक भाषा रूप' को ‘भाषा' कहने एवं समझने लगते हैं तथा ‘भाषा क्षेत्र' की बोलियों को अविकसित, हीन एवं गँवारू कहने, मानने एवं समझने लगते हैं। भारतीय भाषिक परम्परा इस दृष्टि से अधिक वैज्ञानिक रही है। भारतीय परम्परा ने भाषा के अलग अलग क्षेत्रों में बोले जाने वाले भाषिक रूपों को ‘देस भाखा∕ देसी भाषा' के नाम से पुकारा तथा घोषणा की कि देसी वचन सबको मीठे लगते हैं - ‘ देसिल बअना सब जन मिट्ठा '। ( विशेष अध्ययन के लिए देखें - प्रोफेसर महावीर सरन जैन : भाषा एवं भाषा विज्ञान, अध्याय 4 - भाषा के विविधरूप एवं प्रकार, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, 1985 )
हिन्दी भाषा क्षेत्र में हिन्दी की मुख्यत: 20 बोलियां अथवा उपभाषाएँ बोली जाती हैं। इन 20 बोलियों अथवा उपभाषाओं को ऐतिहासिक परम्परा से पाँच वर्गों में विभक्त किया जाता है - पश्चिमी हिन्दी, पूर्वी हिन्दी, राजस्थानी हिन्दी, बिहारी हिन्दी और पहाड़ी हिन्दी।
1. पश्चिमी हिन्दी - 1.खड़ी बोली 2. ब्रजभाषा 3. हरियाणवी 4. बुन्देली 5.कन्नौजी
2. पूर्वी हिन्दी - 1.अवधी 2.बघेली 3. छत्तीसगढ़ी
3.राजस्थानी - 1.मारवाड़ी 2.मेवाती 3.जयपुरी 4.मालवी
4. बिहारी - 1. भोजपुरी 2. मैथिली 3. मगही 4. अंगिका 5. बज्जिका ( इनमें ‘मैथिली' को अलग भाषा का दर्जा दे दिया गया है हॉलाकि हिन्दी साहित्य के पाठ्यक्रम में अभी भी मैथिली कवि विद्यापति पढ़ाए जाते हैं तथा जब नेपाल में रहने वाले मैथिली बोलने वालों पर कोई दमनात्मक कार्रवाई होती है तो वे अपनी पहचान ‘हिन्दी भाषी' के रूप में उसी प्रकार करते हैं जिस प्रकार मुम्बई में रहने वाले भोजपुरी, मगही, मैथिली एवं अवधी आदि बोलने वाले अपनी पहचान ‘हिन्दी भाषी' के रूप में करते हैं। )
5. पहाड़ी - ‘आधुनिक भारतीय भाषाओं का वर्गीकरण' के अन्तर्गत डॉ. सर जॉर्ज ग्रियर्सन द्वारा प्रस्तुत वर्गीकरण के संदर्भ में इसका उल्लेख किया जा चुका है कि ग्रियर्सन ने ‘पहाड़ी' समुदाय के अन्तर्गत बोले जाने वाले भाषिक रूपों को तीन शाखाओं में बाँटा - पूर्वी पहाड़ी अथवा नेपाली, मध्य या केन्द्रीय पहाड़ी एवं पश्चिमी पहाड़ी। हिन्दी भाषा के संदर्भ में वर्तमान स्थिति यह हेै कि हिन्दी भाषा के अन्तर्गत मध्य या केन्द्रीय पहाड़ी की उत्तराखंड में बोली जाने वाली 1. कूमाऊँनी 2.गढ़वाली तथा पश्चिमी पहाड़ी की हिमाचल प्रदेश में बोली जाने वाली हिन्दी की अनेक बोलियाँ आती हैं जिन्हें आम बोलचाल में ‘ पहाड़ी ' नाम से पुकारा जाता है।
हिन्दी भाषा के संदर्भ में विचारणीय है कि अवधी, बुन्देली, ब्रज, भोजपुरी, मैथिली आदि को हिन्दी भाषा की बोलियाँ माना जाए अथवा उपभाषाएँ माना जाए। सामान्य रूप से इन्हें बोलियों के नाम से अभिहित किया जाता है किन्तु लेखक ने अपने ग्रन्थ ‘ भाषा एवं भाषाविज्ञान' में इन्हें उपभाषा मानने का प्रस्ताव किया है। ‘ - - क्षेत्र, बोलने वालों की संख्या तथा परस्पर भिन्नताओं के कारण इनको बोली की अपेक्षा उपभाषा मानना अधिक संगत है। ( भाषा एवं भाषाविज्ञान, पृष्ठ 60)
इसी ग्रन्थ में लेखक ने पाठकों का ध्यान इस ओर भी आकर्षित किया कि हिन्दी की कुछ उपभाषाओं के भी क्षेत्रगत भेद हैं जिन्हें उन उपभाषाओं की बोलियों अथवा उपबोलियों के नाम से पुकारा जा सकता है।
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि इन उपभाषाओं के बीच कोई स्पष्ट विभाजक रेखा नहीं खींची जा सकती है। प्रत्येक दो उपभाषाओं के मध्य संक्रमण क्षेत्र विद्यमान है।
विश्व की प्रत्येक विकसित भाषा के विविध बोली अथवा उपभाषा क्षेत्रों में से विभिन्न सांस्कृतिक कारणों से जब कोई एक क्षेत्र अपेक्षाकृत अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है तो उस क्षेत्र के भाषा रूप का सम्पूर्ण भाषा क्षेत्र में प्रसारण होने लगता है। इस क्षेत्र के भाषारूप के आधार पर पूरे भाषाक्षेत्र की ‘मानक भाषा' का विकास होना आरम्भ हो जाता है। भाषा के प्रत्येक क्षेत्र के निवासी इस भाषारूप को ‘मानक भाषा' मानने लगते हैं। भाषा के प्रत्येक क्षेत्र के निवासी भले ही इसका उच्चारण नहीं कर पाते, फिर भी वे इसको सीखने का प्रयास करते हैं। इसको मानक मानने के कारण यह मानक भाषा रूप ‘भाषा क्षेत्र' के लिए सांस्कृतिक मूल्यों का प्रतीक बन जाता है। मानक भाषा रूप की शब्दावली, व्याकरण एवं उच्चारण का स्वरूप अधिक निश्चित एवं स्थिर होता है एवं इसका प्रचार, प्रसार एवं विस्तार पूरे भाषा क्षेत्र में होने लगता है। कलात्मक एवं सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का माध्यम एवं शिक्षा का माध्यम यही मानक भाषा रूप हो जाता है। इस प्रकार भाषा के ‘मानक भाषा रूप' का आधार उस भाषाक्षेत्र की क्षेत्रीय बोली अथवा उपभाषा ही होती है, किन्तु मानक भाषा होने के कारण इसका प्रसार अन्य बोली क्षेत्रों अथवा उपभाषा क्षेत्रों में होने लगता है। इस प्रसार के कारण इस भाषारूप पर ‘भाषा क्षेत्र' की सभी बोलियों का प्रभाव भी पड़ता है तथा यह भी सभी बोलियों अथवा उपभाषाओं को प्रभावित करता है। उस भाषा क्षेत्र के शिक्षित व्यक्ति औपचारिक अवसरों पर इसका प्रयोग करते हैं। भाषा के मानक भाषा रूप को सामान्य व्यक्ति अपने भाषा क्षेत्र की ‘मूल भाषा', केन्द्रक भाषा', ‘मानक भाषा' के नाम से पुकारते हैं। यदि किसी भाषा का क्षेत्र हिन्दी भाषा की तरह विस्तृत होता है तथा यदि उसमें ‘हिन्दी भाषा क्षेत्र' की भांति उपभाषाओं एवं बोलियों की अनेक परतें एवं स्तर होते हैं तो ‘मानक भाषा' के द्वारा समस्त भाषा क्षेत्र में विचारों का आदान प्रदान सम्भव हो पाता है, संप्रेषणीयता सम्भव हो पाती है। भाषा क्षेत्र के यदि अबोधगम्य उपभाषी अथवा बोली बोलने वाले परस्पर अपनी उपभाषा अथवा बोली के माध्यम से विचारों का आदान प्रदान नहीं कर पाते तो इसी मानक भाषा के द्वारा संप्रेषण करते हैं। भाषा विज्ञान में इस प्रकार की बोधगम्यता को ‘पारस्परिक बोधगम्यता' न कहकर ‘एकतरफ़ा बोधगम्यता' कहते हैं। एर्सी स्थिति में अपने क्षेत्र के व्यक्ति से क्षेत्रीय बोली में बातें होती हैं किन्तु दूसरे उपभाषा क्षेत्र अथवा बोली क्षेत्र के व्यक्ति से अथवा औपचारिक अवसरों पर मानक भाषा के द्वारा बातचीत होती हैं। इस प्रकार की भाषिक स्थिति को फर्गुसन ने बोलियों की परत पर मानक भाषा का अध्यारोपण कहा है (Ferguson: Diglossia: Word,15 pp. 325 - 340) तथा गम्पज.र् ने इसे ‘बाइलेक्टल' के नाम से पुकारा है। ( Gumperz: Speech variation and the study of Indian civilization, American Anthropologist, Vol. 63, pp. 976 - 988)
हम यह कह चुके हैं कि किसी भाषा क्षेत्र की मानक भाषा का आधार कोई बोली अथवा उपभाषा ही होती है किन्तु कालान्तर में उक्त बोली एवं मानक भाषा के स्वरूप में पर्याप्त अन्तर आ जाता है। सम्पूर्ण भाषा क्षेत्र के शिष्ट एवं शिक्षित व्यक्तियों द्वारा औपचारिक अवसरों पर मानक भाषा का प्रयोग किए जाने के कारण तथा साहित्य का माध्यम बन जाने के कारण स्वरूपगत परिवर्तन स्वाभाविक है। प्रत्येक भाषा क्षेत्र में किसी क्षेत्र विशेष के भाषिक रूप के आधार पर उस भाषा का मानक रूप विकसित होता है, जिसका उस भाषा-क्षेत्र के सभी क्षेत्रों के पढे-लिखे व्यक्ति औपचारिक अवसरों पर प्रयोग करते हैं। पूरे भाषा क्षेत्र में इसका व्यवहार होने तथा इसके प्रकार्यात्मक प्रचार-प्रसार के कारण विकसित भाषा का मानक रूप भाषा क्षेत्र के समस्त भाषिक रूपों के बीच संपर्क सेतु का काम करता है तथा कभी-कभी इसी मानक भाषा रूप के आधार पर उस भाषा की पहचान की जाती है। प्रत्येक देश की एक राजधानी होती है तथा विदेशों में किसी देश की राजधानी के नाम से प्रायः देश का बोध होता है, किन्तु सहज रूप से समझ में आने वाली बात है कि राजधानी ही देश नहीं होता।
हिन्दी भाषा का क्षेत्र बहुत विस्तृत है। इस कारण इसकी क्षेत्रगत भिन्नताएँ भी बहुत अधिक हैं।‘खड़ी बोली' हिन्दी भाषा क्षेत्र का उसी प्रकार एक भेद है, जिस प्रकार हिन्दी भाषा के अन्य बहुत से क्षेत्रगत भेद हैं। हिन्दी भाषा क्षेत्र में ऐसी बहुत सी उपभाषाएँ हैं जिनमें पारस्परिक बोधगम्यता का प्रतिशत बहुत कम है किन्तु ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से सम्पूर्ण भाषा क्षेत्र एक भाषिक इकाई है तथा इस भाषा-भाषी क्षेत्र के बहुमत भाषा-भाषी अपने-अपने क्षेत्रगत भेदों को हिन्दी भाषा के रूप में मानते एवं स्वीकारते आए हैं। भारत के संविधान की दृष्टि से यही स्थिति है। सन् 1997 में भारत सरकार के सैन्सस ऑफ इण्डिया द्वारा प्रकाशित ग्रन्थ में भी यही स्थिति है। वस्तु स्थिति यह है कि हिन्दी, चीनी एवं रूसी जैसी भाषाओं के क्षेत्रगत प्रभेदों की विवेचना यूरोप की भाषाओं के आधार पर विकसित पाश्चात्य भाषाविज्ञान के प्रतिमानों के आधार पर नहीं की जा सकती।
अपने 28 राज्यों एवं 07 केन्द्र शासित प्रदेशों को मिलाकर भारतदेश है, उसी प्रकार भारत के जिन राज्यों एवं शासित प्रदेशों को मिलाकर हिन्दी भाषा क्षेत्र है, उस हिन्दी भाषा-क्षेत्र के अन्तर्गत जितने भाषिक रूप बोले जाते हैं उनकी समाष्टि का नाम हिन्दी भाषा है। हिन्दी भाषा क्षेत्र के प्रत्येक भाग में व्यक्ति स्थानीय स्तर पर क्षेत्रीय भाषा रूप में बात करता है। औपचारिक अवसरों पर तथा अन्तर-क्षेत्रीय, राष्ट्रीय एवं सार्वदेशिक स्तरों पर भाषा के मानक रूप अथवा व्यावहारिक हिन्दी का प्रयोग होता है। आप विचार करें कि उत्तर प्रदेश हिन्दी भाषी राज्य है अथवा खड़ी बोली, ब्रजभाषा, कन्नौजी, अवधी, बुन्देली आदि भाषाओं का राज्य है। इसी प्रकार मध्य प्रदेश हिन्दी भाषी राज्य है अथवा बुन्देली, बघेली, मालवी, निमाड़ी आदि भाषाओं का राज्य है। जब संयुक्त राज्य अमेरिका की बात करते हैं तब संयुक्त राज्य अमेरिका के अन्तर्गत जितने राज्य हैं उन सबकी समष्टि का नाम ही तो संयुक्त राज्य अमेरिका है। विदेश सेवा में कार्यरत अधिकारी जानते हैं कि कभी देश के नाम से तथा कभी उस देश की राजधानी के नाम से देश की चर्चा होती है। वे ये भी जानते हैं कि देश की राजधानी के नाम से देश की चर्चा भले ही होती है, मगर राजधानी ही देश नहीं होता। इसी प्रकार किसी भाषा के मानक रूप के आधार पर उस भाषा की पहचान की जाती है मगर मानक भाषा, भाषा का एक रूप होता है ः मानक भाषा ही भाषा नहीं होती। इसी प्रकार खड़ी बोली के आधार पर मानक हिन्दी का विकास अवश्य हुआ है किन्तु खड़ी बोली ही हिन्दी नहीं है। तत्वतः हिन्दी भाषा क्षेत्र के अन्तर्गत जितने भाषिक रूप बोले जाते हैं उन सबकी समष्टि का नाम हिन्दी है। हिन्दी को उसके अपने ही घर में तोड़ने का षडयंत्र अब विफल हो गया है क्योंकि 1991 की भारतीय जनगणना के अंतर्गत जो भारतीय भाषाओं के विश्लेषण का ग्रन्थ प्रकाशित हुआ है उसमें मातृभाषा के रूप में हिन्दी को स्वीकार करने वालों की संख्या का प्रतिशत उत्तर प्रदेश (उत्तराखंड राज्य सहित) में 90.11, बिहार (झारखण्ड राज्य सहित) में 80.86, मध्य प्रदेश (छत्तीसगढ़ राज्य सहित) में 85.55, राजस्थान में 89.56, हिमाचल प्रदेश में 88.88, हरियाणा में 91.00, दिल्ली में 81.64 तथा चण्डीगढ़ में 61.06 है।
हिन्दी एक विशाल भाषा है। विशाल क्षेत्र की भाषा है। अब यह निर्विवाद है कि चीनी भाषा के बाद हिन्दी संसार में दूसरे नम्बर की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है।
यदि हम सम्पूर्ण प्रयोक्ताओं की संख्या की दृष्टि से बात करें जिसमें मातृभाषा वक्ता (First Language Speakers) तथा द्वितीयभाषा वक्ता(Second Language Speakers) दोनों हों तो हिन्दी भाषियों की संख्या लगभग एक हजार मिलियन (सौ करोड़ )है। The Linguasphere Register of the World's Languages and Speech Communities में इस दृष्टि से हिन्दी भाषियों की संख्या 960 मिलियन मानी गई है ।.
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प्रोफेसर महावीर सरन जैन
(सेवानिवृत्त निदेशक, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, भारत सरकार)
123, हरि एन्कलेव, बुलन्द शहर - 203 001
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बहुत महत्वपूर्ण जानकारी है । धन्यवाद
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जवाब देंहटाएंहिन्दी भाषा क्षेत्र में हिन्दी की मुख्यत: 20 बोलियां अथवा उपभाषाएँ बोली जाती हैं। इन 20 बोलियों अथवा उपभाषाओं को ऐतिहासिक परम्परा से पाँच वर्गों में विभक्त किया जाता है -
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हिन्दी भाषा के संदर्भ में विचारणीय है कि अवधी, बुन्देली, ब्रज, भोजपुरी, मैथिली आदि को हिन्दी भाषा की बोलियाँ माना जाए अथवा उपभाषाएँ माना जाए। सामान्य रूप से इन्हें बोलियों के नाम से अभिहित किया जाता है किन्तु लेखक ने अपने ग्रन्थ ‘ भाषा एवं भाषाविज्ञान' में इन्हें उपभाषा मानने का प्रस्ताव किया है। ‘ - - क्षेत्र, बोलने वालों की संख्या तथा परस्पर भिन्नताओं के कारण इनको बोली की अपेक्षा उपभाषा मानना अधिक संगत है।
महाशय, इस लेख में ही बोली और उपभाषा में अन्तर स्पष्ट करना चाहिए था । क्या आपके मतानुसार इस लेख में उल्लिखित बीसो बोलियों को उपभाषा की संज्ञा देनी चाहिए ? या कोई अपवाद भी हैं ? अन्य बोलियों के बारे में आपका क्या मन्तव्य है (सन् 2001 की जनगणना के अनुसार हिन्दी की कुल 48 बोलियाँ हैं) ?