महावीर सरन जैन का आलेख : मध्य युगीन संतों का निर्गुण-भक्ति-काव्य : कुछ प्रश्न

SHARE:

[मध्‍य युग ने मोक्ष का अतिक्रमण कर, भक्‍ति की स्‍थापना की। हिन्‍दी साहित्‍य के इतिहास में भक्‍तिकाल का विवेचन करते समय विद्वानों ने निर्गुण ...

[मध्‍य युग ने मोक्ष का अतिक्रमण कर, भक्‍ति की स्‍थापना की। हिन्‍दी साहित्‍य के इतिहास में भक्‍तिकाल का विवेचन करते समय विद्वानों ने निर्गुण भक्‍ति एवं सगुण भक्‍ति में भेद किया है तथा संतों एवं सूफियों के काव्‍य की परम्‍परा को निर्गुण भक्‍ति के अन्‍तर्गत रखा है। सभी संतों ने अपने काव्‍य में निर्गुण एवं निराकार उपास्‍य के प्रति अपना भक्‍ति-भाव अभिव्‍यंजित किया है। जब हम संतों के निर्गुण-भक्‍ति काव्‍य पर विचार करते हैं तो हमारी अध्‍ययन-सीमा के अन्‍तर्गत (1) नामदेव (2) कबीर (3) रैदास (4) नानक (5) जसनाथ (6) धर्मदास (7) सिंगा जी (8) दादू दयाल (9) सुन्‍दरदास (11 )षाह ष्‍बुल्‍ला (12) गुलाल साहब (13) पलटू साहब (14) मलूकदास (15) बाबा लाल(16) प्राणनाथ (17) जगजीवन साहब (18) धरनीदास (19) दरिया साहब (20) शिवनारायण (21) किनाराम (22) चरणदास (23) तुलसी साहब आदि संतों के द्वारा रचित साहित्‍य आता है। जब हम इन संतों के काव्‍य के सैद्धान्‍तिक पक्षों पर विचार करते हैं तो पंथों के रूप में (1) कबीर पंथ (2) नानक पंथ (3) दादू पंथ (4) बाबरी पंथ (5) मलूक पंथ (6) धरतीश्‍वरी पंथ (7) प्रणामी पंथ (8) सतनामी पंथ (9) शिवनारायणी पंथ (10) साहिब पंथ आदि आते हैं। इन पंथों में सैद्धान्‍तिक मत-वैभिन्‍नय भी मिलता है। प्रत्‍येक रचनाकार के साहित्‍य की अपनी विशिष्‍ट छटा भी दृष्‍टिगत होती है। सम्‍प्रति, इनके सामान्‍य पक्ष के कुछ बिन्‍दुओं पर विचार करना ही अभीष्‍ट है।]

भक्‍ति या उपासना के लिए गुणों की सत्‍ता आवश्‍यक है। ब्रह्म के सगुण स्‍वरूप को आधार बनाकर तो भक्‍ति / उपासना की जा सकती है किन्‍तु जो निर्गुण एवं निराकार है उसकी भक्‍ति किस प्रकार सम्‍भव है ? निर्गुण के गुणों का आख्‍यान किस प्रकार किया जा सकता है ? गुणातीत में गुणों का प्रवाह किस प्रकार माना जा सकता है ? जो निरालम्‍ब है, उसको आलम्‍बन किस प्रकार बनाया जा सकता है। जो अरूप है, उसके रूप की कल्‍पना किस प्रकार सम्‍भव है। जो रागातीत है, उसके प्रति रागों का अर्पण किस प्रकार किया जा सकता है ? रूपातीत से मिलने की उत्‍कंठा का क्‍या औचित्‍य हो सकता है। जो नाम से भी अतीत है, उसके नाम का जप किस प्रकार किया जा सकता है।

शास्‍त्रीय दृष्‍टि से उपर्युक्‍त सभी प्रश्‍न ‘निर्गुण-भक्‍ति‘ के स्‍वरूप को ताल ठोंककर ‘चेलैन्‍ज‘ देते हुए प्रतीत होते हैं। यहां यह उल्‍लेखनीय है कि संतों तथा सूफियों की ‘‘भक्‍ति‘‘ की विशिष्‍ट पद्धति तथा विशिष्‍ट दृष्‍टि का वैज्ञानिक दृष्‍टि से विवेचन होना चाहिए; पूर्वाग्रहरहित एवं पक्षपातहीन मनःस्‍थिति में इसकी व्‍याख्‍या होनी चाहिए। इस सम्‍बन्‍ध में कुछ विचार सूत्र तत्‍सम्‍बन्‍धित क्षेत्र के अध्‍येताओं एवं अनुसंधित्‍सुओं के लिए प्रस्‍तुत हैः

(1) कबीर आदि संतों की दार्शनिक विवेचना करते समय आचार्य रामचन्‍द्र शुल्‍क ने यह मान्‍यता स्‍थापित की है कि उन्‍होंने निराकार ईश्‍वर के लिए भारतीय वेदान्‍त का पल्‍ला पकड़ा है।

इस सम्‍बन्‍ध में जब हम शांकर अद्वैतवाद एवं संतों की निर्गुण भक्‍ति के तुलनात्‍मक पक्षों पर विचार करते हैं तो उपर्युक्‍त मान्‍यता की सीमायें स्‍पष्‍ट हो जाती हैं ः

(क) शांकर अद्वैतवाद में भक्‍ति को साधन के रूप में स्‍वीकार किया गया है, किन्‍तु उसे साध्‍य नही माना गया है। संतों ने (सूफियों ने भी) भक्‍ति को साध्‍य माना है।

(ख) शांकर अद्वैतवाद में मुक्‍ति के प्रत्‍यक्ष साधन के रूप में ‘ज्ञान' को ग्रहण किया गया है। वहाँ मुक्‍ति के लिए भक्‍ति का ग्रहण अपरिहार्य नहीं है। वहाँ भक्‍ति के महत्‍व की सीमा प्रतिपादित है। वहाँ भक्‍ति का महत्‍व केवल इस दृष्‍टि से है कि वह अन्‍तःकरण के मालिन्‍य का प्रक्षालन करने में समर्थ सिद्ध होती है। भक्‍ति आत्‍म-साक्षात्‍कार नहीं करा सकती, वह केवल आत्‍म साक्षात्‍कार के लिए उचित भूमिका का निर्माण कर सकती है। संतों ने अपना चरम लक्ष्‍य आत्‍म साक्षात्‍कार या भगवद्‌-दर्शन माना है तथा भक्‍ति के ग्रहण को अपरिहार्य रूप में स्‍वीकार किया है क्‍योंकि संतों की दृष्‍टि में भक्‍ति ही आत्‍म-साक्षात्‍कार या भगवद्‌दर्शन कराती है। इसका कारण है कि संतों की दृष्‍टि में भक्‍ति केवल अन्‍तःकरण के मालिन्‍य का प्रक्षालन करने वाली ‘वृत्‍ति' न होकर ‘आत्‍म शक्‍ति' ही है। संतों ने भक्‍ति को ‘अन्‍तःकरण की वृत्‍ति' न मानकर ‘आत्‍म शक्‍ति' के रूप में स्‍वीकार किया है।

(ग) शांकर अद्वैतवाद में अद्वैत-ज्ञान की उपलब्‍धि के अनन्‍तर ‘भक्‍ति' की सत्‍ता अनावश्‍यक ही नहीं अपितु असम्‍भव है। संतों में अद्वैतज्ञान के बाद भी ‘ज्ञानोत्‍तरा भक्‍ति' की स्‍थिति है। इसका कारण यह है कि भक्‍ति काल के साहित्‍य की रस-साधना में जो भक्‍ति है वह तत्‍वतः आत्‍मस्‍वरूपा शक्‍ति ही है। इस प्रकार भक्‍ति की उपासना वास्‍तव में आत्‍मस्‍वरूपा शक्‍ति की ही उपासना है। कबीर इसी कारण प्रतिपादित करते हैं कि ‘ समझि बिचारि जीव जब देखा, यह संसार सुपन करि लेखा/ भई बुधि कछु गयाँन निहारा, आप आपहि किया बिचारा'। सगुण भक्‍ति वेद, शास्‍त्र और पुराणों की सम्‍मति और समर्थन के बिना एक कदम आगे नहीं बढ़ती, किन्‍तु कबीर ने जीवन की साधना के बल पर जाना था कि ‘ मानस' यदि विकारों से मुक्‍त होकर ‘निर्मल' हो जाता है तो उसमें ‘अलख निरंजन' का प्रतिबिंब अनायास प्रतिफलित हो जाता है। ‘ प्‍यंजर प्रेम प्रकासिया, अन्‍तरि भया उजास'।

(2) संत अपने निराकार ईश्‍वर की भक्‍ति करते हैं। इस सम्‍बन्‍ध में विचार करते समय आचार्य रामचन्‍द्र शुक्‍ल की स्‍थापना है कि वे ऐसा इस कारण कर पाते हैं क्‍योंकि उन्‍होंने प्रेम तत्‍व सूफियों से ग्रहण कर लिया है, उनका प्रेम तत्‍व सूफियों का है। डा0 रामकुमार वर्मा कबीर के सन्‍दर्भ में विचार करते हुए संत-मत को हिन्‍दू धर्म के मूल सिद्धान्‍तों एवं मुसलमानी धर्म के मूल सिद्धान्‍तों से बना हुआ मानते हैं। ‘‘कबीर ने हिन्‍दू धर्म के मूल सिद्धान्‍तों को मुसलमानी धर्म के मूल सिद्धान्‍तों से मिलाकर एक नूतन पंथ का श्रीगणेश किया। इस तरह दोनों धर्मों के मूल से एक नवीन पंथ का प्रचार हुआ जो संतमत के नाम से पुकारा गया।''

संतों पर सूफियों का प्रभाव पड़ा है- इस बात को तो हम नहीं नकारते मगर उस प्रभाव के स्‍वरूप एवं सीमा-रेखा को अवश्‍य स्‍पष्‍ट करना चाहते हैं। यह बात अब स्‍पष्‍ट हो चुकी है कि स्‍वयं सूफी-साधना को केवल मुसलमानी धर्म के मूल सिद्धान्‍तों के परिप्रेक्ष्‍य में रखकर देखना संगत नहीं है। सूफी-मत के उपास्‍य को मुसलमानी धर्म या इस्‍लाम धर्म के एकेश्‍वरवाद के रूप में पहचानने का मतलब दोनों के अन्‍तर के प्रति अपनी अनभिज्ञता प्रकट करना ही होगा। वे परमात्‍मा को एकेश्‍वर रूप में नहीं, अपितु अद्वैत रूप में मानते हैं।

सूफी-मत का जो प्रभाव संत-साहित्‍य पर पड़ा है, उसकी स्‍पष्‍ट दिशायें निम्‍न हैं ः-

      (1) मादन भाव (2) विरह की तड़पन (3) ब्रह्म के प्रति प्रगाढ़ अनुराग

इसी के साथ-साथ हम यह भी जोर देकर कहना चाहते हैं कि स्‍वयं सूफी मत में जिस उपास्‍य का स्‍वरूप चित्रांकित है, परम साक्षात्‍कार के भाव-केन्‍द्र का जो चिन्‍मय रूप है, गुरु का जो महत्‍व प्रतिपादित है तथा साधना-पक्ष में योग-पद्धति की जो विशिष्‍टता मान्‍य है वे भारतीय धर्म-साधना से प्रभावित हैं। सूफियों की साधना में नाम-जप तथा कुण्‍डलिनि-योग इत्‍यादि के तत्‍व स्‍पष्‍ट रूप में भारतीय तंत्रों के उपदान हैं।

संतों का प्रेम-तत्‍व ‘उधारी' का नहीं है। वस्‍तुतः इस प्रकार की भ्रान्‍त मान्‍यता का कारण हमारी समझ में यह आता है कि कुछ विद्वानों ने संतों को मूलतः ज्ञानाश्रयी मान लिया है, समाज-सुधारक मान लिया है। इस दृष्‍टि-दोष के कारण ही उन्‍हें संतों के काव्‍य का अपना मौलिक-अंश ज्ञान-मार्गी साधना के तत्‍व तथा समाज सुधारक के नैतिक उपदेश ही लगते हैं। इस दुराग्रह के कारण उन्‍हें निर्गुण पंथ के संतों में किसी दार्शनिक व्‍यवस्‍था दिखाने का प्रयत्‍न करना व्‍यर्थ प्रतीत होता है। इस संदर्भ में हम यह कहना चाहते हैं कि संतों को डा0 पीताम्‍बर दत्‍त बड़थ्‍वाल की भांति द्वैत, अद्वैत, विशिष्‍टाद्वैत आदि रूपों में वर्गीकृत करने का प्रयास भले ही संगत न हो मगर उनकी अपनी दार्शनिक व्‍यवस्‍था के वैशिष्‍ट्‌य को समझने का प्रयास होना चाहिये। इस दार्शनिक व्‍यवस्‍था में जो प्रेम तत्‍व है वह उधारी का नहीं है। संतों को न तो विशुद्ध ज्ञान-मार्गी माना जा सकता है और न ही विशुद्ध समाज-सुधारक। कबीर ज्ञान का सहारा मन को निर्मल बनाने के लिए लेते हैं। ज्ञान की आंधी भक्‍तिरूपी वर्षा के आने के लिए भूमिका मात्र है। ‘ आंधी पीछे जो जल बूठा, प्रेम हरि जन भीना'। सभी संतों ने प्रेम पर बहुत अधिक जोर दिया है। भक्‍तिकाल के साहित्‍य की रस साधना में जो भक्‍ति है वह तत्‍वतः आत्‍मस्‍वरूपा शक्‍ति ही है। सभी संतों का लक्ष्‍य भाव से प्रेम की ओर अग्रसर होना है। प्रेम का आविर्भाव होने पर ‘भाव' शांत हो जाता है। भक्‍त महाप्रेम में अपने स्‍वरूप में प्रतिष्‍ठित हो जाता है। हम यह कहने के लोभ का संवरण नहीं कर पा रहे हैं कि सूफियों ने भी भाव के केन्‍द्र को भौतिक न मानकर चिन्‍मय रूप में स्‍वीकार किया है तथा कृष्‍ण भक्‍तों की भाव साधना में भी भाव ही ‘महाभाव' में रूपान्‍तरित हो जाता है। कृष्‍ण भक्‍त कवियों के काव्‍य में भी राधा-भाव आत्‍म-शक्‍ति के अतिरिक्‍त अन्‍य नहीं है।

(3) संतों की दार्शनिक व्‍यवस्‍था को वैष्‍णव मतवाद तथा उनकी भक्‍ति पद्धति को वैष्‍णव भक्‍ति आन्‍दोलन की पृष्‍ठभूमि तक सीमित रखकर व्याख्यायित करना भी संगत नहीं है। उनमें जो अहिंसावाद एवं प्रपत्‍तिवाद है उनको भी केवल प्राचीन वैष्‍णव भक्‍ति मार्ग का अनुसरण नहीं माना जा सकता। संतों की भक्‍ति एवं वैष्‍णव भक्‍ति समरूप नहीं हंै । उनमें कुछ मूलभूत अन्‍तर हैं:

(क) संतों ने उपास्‍य के स्‍वरूप को स्‍वीकार नहीं किया है। उनकी साधना ‘रूप की साधना' नहीं है। उनकी साधना ‘नाम' की साधना है। उन्‍होंने उपास्‍य के नाम का जप किया है। वैष्‍णवों ने नाम रूप दोनों को अंगीकार किया है। संतों का ‘अनाहत नाद' तत्‍वतः भगवत्‌ नाम ही है। संत ‘नाम' के ही रंग में रंगकर तद्रूप हो जाता है। भीतर अव्‍यक्‍त व्‍यक्‍त हो जाता है। ‘प्रेम ध्‍यान की तारी' लग जाती है। ‘सहजावस्‍था' की प्राप्‍ति हो जाती है।

(ख) वैष्‍णव योग को भक्‍ति का प्रतिपक्षी मानते हैं। अधिकांश वैष्‍णवों ने योग एवं ज्ञान का मजाक उड़ाया है। संतों की भक्‍ति का साधना-पक्ष मूलतः योग पर आधारित है। सहज यानी और नाथ-पंथियों की योगमूलक साधना परम्‍परा से काटकर संतों की साधना परम्‍परा पर विचार नहीं किया जा सकता।

(ग) संतों एवं वैष्‍णवों की सामाजिक चेतना का अन्‍तराल बहुत स्‍पष्‍ट एवं महत्‍वपूर्ण है। वैष्‍णव जाति, वर्ण एवं वर्णांश्रम की पारम्‍परिक प्रथा में विश्‍वास रखते हैं। संत इस प्रथा के विरोधी हैं। वे जन्‍मना विभाजन को नहीं मानते, कर्मों के अनुसार मनुष्‍य की कोटि के अस्‍तित्‍व को स्‍वीकार करते हैं।

(घ) वैष्‍णवों की भक्‍ति शास्‍त्रीय है। संत शास्‍त्रीय ज्ञान को त्‍याज्‍य मानते हैं तथा सत्‍संग, प्रेम एवं विवेक का महत्‍व निरूपित करते हैं। संत साधना की आंतरिकता में आस्‍था रखते हैं तथा बाह्याचारों का प्रतिषेध करते हैं।

तत्‍वतः सभी संतों के विचारों में अनेक दार्शनिक सिद्धान्‍तों का प्रतिपादन हुआ है। संतों की दार्शनिक दृष्‍टि को किसी सीमा रेखा में बांधना युक्‍तियुक्‍त नहीं है। उनकी विशिष्‍ट दार्शनिक-व्‍यवस्‍था व्‍यापक पृष्‍ठभूमि पर आधारित है। इसको हृदयंगम न कर सकने के कारण उनमें परस्‍पर विरुद्ध एवं विपरीत दार्शनिक तत्‍वों के होने का आभास होता है। उनकी ‘भावभूमि' में भेद, अभेद, भेदाभेद तीनों विद्यमान हैं। भूमध्‍य से नीचे आज्ञाचक्र से मूलाधार चक्र तक की भेद-भूमि है, सत्‍य लोक से भूमध्‍यम के ऊपर तक महामाया के स्‍तर पर भेदाभेद भूमि है किन्‍तु इनके परे अनामी, अलख, अगम लोक की अभेद भूमि है। उनकी दृष्‍टि की व्‍यापकता को न पहचान पाने के कारण उनके काव्‍य में कुछ विद्वानों को भले ही अस्‍पष्‍ट, क्रमरहित एवं असम्‍बद्ध दार्शनिक विचारोें की प्रतीति होती हो मगर हमारी धारणा है कि इनमें दार्शनिक विचारों की एकरूपता, दार्शनिक-व्‍यवस्‍था की संगति, दार्शनिक-स्‍थापनाओं की विलक्षणता है जो इनकी अत्‍यंत व्‍यापक, मानवीय, उदार उवं उदात्‍त चेतना तथा प्रगतिशील दृष्‍टि का प्रतिफलन है और यदि कोई इसको शास्‍त्र की पृष्‍ठभूमि में ही समझने का अभ्‍यासी हो तो उसके लिए मैं यह कहना चाहूंगा कि इनके दार्शनिक सिद्धान्‍तों एवं भक्‍ति-प्रवाह को आगमिक-परम्‍परा के आलोक में ज्‍यादा अच्‍छी तरह समझा जा सकता है । सर्वब्रह्मवाद, निस्‍पंद एवं निष्‍क्रिय परम शिव की पंचकृत्‍यकारिता, सर्वचिन्‍मयवाद, सामरस्‍यवाद, शक्‍तिवाद, शक्‍तिपातवाद, पिण्‍डब्रह्माण्‍डेक्‍यवाद, नाद-बिन्‍दुवाद, अधिकारवाद, लीलावाद, रसवाद तथा काश्‍मीरी शैवागम एवं शास्‍त्र दर्शन में मान्‍य ज्ञान-भक्‍ति-योग समन्‍वयवाद एवं ज्ञानोत्तरा भक्‍ति आदि की पृष्‍ठभूमि में हम संतों के निर्गुण भक्‍ति-साहित्‍य के निम्‍न बिन्‍दुओं की व्‍याख्‍या करने में समर्थ सिद्ध हो सकते हैं ः

(अ) भक्‍तिमार्ग के आलम्‍बन सगुण ब्रह्म के स्‍थान पर ज्ञानमार्ग के आलम्‍बन निर्गुण ब्रह्म के प्रति प्रेम।

(आ) निर्गुण ब्रह्म में गुणों का आरोपण।

(इ) मुक्‍ति की अद्वैत दशा में भी द्वंद्वात्‍मक भक्‍ति की कल्‍पना।

(ई) निष्‍क्रिय, निस्‍पंद एवं निर्गुण ब्रह्म में क्रियाशीलता तथा गुणवत्‍ता की विद्यमानता।

(उ) जीवात्‍मा को अंश मानकर भी उसको ब्रह्म घोषित करने की प्रवृत्‍ति । आत्‍मा एवं परमात्‍मा की अभेदता।

(ऊ) जगत को मिथ्‍या मानकर भी उसे लीलामय की रसमयी लीला मानने की दृष्‍टि।

(ए) मिथ्‍यात्‍ववाद में विश्‍वास करते हुए भी आनन्‍दवाद एवं सर्वचिन्‍मयवाद में आस्‍था।

(ऐ) जगन्‍मिथ्‌यात्‍व का प्रतिपादन करके भी उसके सत्‍यत्‍व की पुष्‍टि।

(ओ) योग एवं भक्‍ति में समन्‍वय।

(औ) ज्ञान, भक्‍ति एवं योग तीनों की स्‍वीकृति।

अंत में इस लेख का समापन इन श्‍ाब्‍दों के साथ करना चाहूँगा कि समस्‍त प्राणियों के प्रति प्रेम भाव, मैत्री भाव तथा समभाव होना ही संतों की साधना का मार्ग है।

----

प्रोफेसर महावीर सरन जैन

(सेवानिवृत्त्‍ा निदेशक,केन्‍द्रीय हिन्‍दी संस्‍थान)

123, हरिएन्‍क्‍लेव, बुलन्‍दशहर-203001

(05732-233089)

COMMENTS

BLOGGER: 2
  1. यह तो अपने आप में एक ज्ञानयुग प्रभात है रतलामी साहब। बहुत आभार आपका इस पोस्ट के लिए।

    जवाब देंहटाएं
  2. हिन्दी साहित्य की संबृद्ध परम्पराओं के बारे में एक बहुत ही ज्ञानप्रद लेख।
    मैना: भोजपुरी साहित्य क उड़ान

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: महावीर सरन जैन का आलेख : मध्य युगीन संतों का निर्गुण-भक्ति-काव्य : कुछ प्रश्न
महावीर सरन जैन का आलेख : मध्य युगीन संतों का निर्गुण-भक्ति-काव्य : कुछ प्रश्न
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2009/10/blog-post_1347.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2009/10/blog-post_1347.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content