ज्ञान मानव को अन्तर्दृष्टि देता है, वह व्यक्ति या समाज में परिवर्तन का वाहक बनता है। पत्र-पत्रिकाएँ ज्ञान का भंडार होती हैं, इसलिए परि...
ज्ञान मानव को अन्तर्दृष्टि देता है, वह व्यक्ति या समाज में परिवर्तन का वाहक बनता है। पत्र-पत्रिकाएँ ज्ञान का भंडार होती हैं, इसलिए परिवर्तन में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण होती है लगभग सभी धर्म उनके सहारे ही फैले हैं। बड़ी-बड़ी सामाजिक क्रांतियां भी पत्र-पत्रिकाओं ने ही करवायी है। व्यक्ति के जीवन में पत्र-पत्रिकाएँ अति महत्वपूर्ण परिवर्तन लाती हैं। क्योंकि इससे उपयोगी जानकारी करके व्यक्ति अधिक योग्य और जीवनयापन के लायक बन जाता है। यह सच है कि इनके पढ़ने से व्यक्तित्व का विकास होता है सिर्फ इसलिए नहीं कि पढ़ने वाले का ज्ञान बढ़ता है, बल्कि इसलिए भी कि पत्र-पत्रिकाओं में व्यक्तित्व निखार के नुस्खे मिल जाते हैं। पाश्चात्य देशों में तो व्यक्ति को आकर्षक बनाने के गुर सिखाने वाली पत्रिकाओं का अंबार सा मिलता है।
साहित्यिक पत्र-पत्रिकाएँ सामाजिक व्यवस्था के लिए चतुर्थ स्तम्भ का कार्य करती हैं और अपनी बात को मनवाने के लिए एवं अपने पक्ष में साफ-सुथरा वातावरण तैयार करने में पत्र-पत्रिकाओं ने सदैव अमोघ अस्त्र का कार्य किया है। अमानवीय व्यवहार, अन्याय, अत्याचार, शोषण साथ ही किसी भी प्रकार की ज्यादती का डटकर प्रतिरोध करने के लिए समाचार पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से आवाज बुलन्द की जा सकती है क्योंकि इनमें साहित्य के विविध रूप ही नहीं, आतंरिक विवाद, प्रेरणा, पाठक वर्ग की प्रतिक्रिया अर्थात समूचा साहित्य एवं साहित्यकार संसार का आवरण छिपा होता है। हिन्दी के विविध आन्दोलन और साहित्यिक प्रवृत्तियाँ एवं अन्य सामाजिक गतिविधियों को सक्रिय करने में पत्रिकाओं की अग्रणी भूमिका रही है। भारत में अंग्रेजों का आगमन सर्वप्रथम बंगाल में विशेषकर कलकत्ता से माना जाता है। अंग्रेजों के आगमन के उपरान्त यहाँ क्रमशः औद्योगीकरण, मशीनीकरण, व्यापार, शिक्षणालयों की स्थापना, प्रेस, मुद्रण व टंकण आदि के कार्य अंग्रेजों की इच्छा के अनुरूप स्थापित किये जाने लगे। इसका प्रमुख केन्द्र कलकत्ता में रहने के कारण यहाँ अंग्रेजी साहित्य तथा अंग्रेजी शासन व्यवस्था का प्रभाव सर्वप्रथम कलकत्ता व बंगाल प्रान्त पर पड़ा। यही प्रभाव आगे चलकर बंग प्रान्त के सम्पर्क तथा बंग्ला साहित्य के माध्यम से हिन्दी भाषी प्रान्तों व साहित्य पर स्पष्ट दिखने लगा। अंग्रेजों की व्यापारिक कम्पनी ईस्ट इण्डिया का छद्म शोषण भारत के जन सामान्य में सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक व राष्ट्रीय रूप में प्रतिक्रिया के रूप में फैल रहा था। यह प्रतिक्रिया नवजागरण के रूप में भारतेन्दु जी के उदय से भी पहले आरम्भ हो चुकी थी। और इसकी अभिव्यक्ति तत्कालीन समय में अनेक प्रकार की दैनिक साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक, च्यौमासिक, छमाही, वार्षिक व पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन से प्रारम्भ हुई। इस समय इन गतिविधियों का चूँकि कलकत्ता केन्द्र था इसलिए यहाँ पर सबसे महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाएँ - उद्दंड मार्तंड, बंगदूत, प्रजामित्र मार्तंड तथा समाचार सुधा वर्षण आदि का प्रकाशन हुआ। प्रारम्भ के पाँचों साप्ताहिक पत्र थे एवं सुधा वर्षण दैनिक पत्र था। इनका प्रकाशन दो-तीन भाषाओं के माध्यम से होता था। ‘सुधाकर' और ‘बनारस अखबार' साप्ताहिक पत्र थे जो काशी से प्रकाशित होते थे। ‘प्रजाहितैषी' एवं बुद्धि प्रकाश का प्रकाशन आगरा से होता था। ‘तत्वबोधिनी' पत्रिका साप्ताहिक थी और इसका प्रकाशन बरेली से होता था। ‘मालवा' साप्ताहिक मालवा से एवं ‘वृतान्त' जम्मू से तथा ‘ज्ञान प्रदायिनी पत्रिका' लाहौर से प्रकाशित होते थे। दोनों मासिक पत्र थे। इन पत्र-पत्रिकाओं का प्रमुख उद्देश्य एवं सन्देश जनता में सुधार व जागरण की पवित्र भावनाओं को उत्पन्न कर अन्याय एवं अत्याचार का प्रतिरोध/विरोध करना था। हालाँकि इनमें प्रयुक्त भाषा (हिन्दी) बहुत ही साधारण किस्म की (टूटी-फूटी हिन्दी) हुआ करती थी।
भारतेन्दु हरिश्चन्द का हिन्दी पत्रकारिता में महत्वपूर्ण स्थान है। आपके समस्त समकालीन सहयोगी किसी न किसी पत्र-पत्रिका से संबद्ध थे। सन् 1868 ई. में भारतेन्दु जी ने साहित्यिक पत्रिका कवि वचन सुधा का प्रवर्तन किया। समाज में राष्ट्रीय चेतना के जागरण, उसमें समसामयिक ज्वलन्त प्रश्नों व समस्याओं के प्रति जागरूकता लाने तथा सामाजिक एवं धार्मिक सुधारों को गतिमान करने के लिए इन पत्रिकाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की साथ ही इस काल के पत्र-पत्रिकाओं ने हिन्दी भाषा के रूप सुधार के क्षेत्र में अमूल्य योगदान किया। अकेले बनारस में जो भारतेन्दु जी का जन्म स्थान भी था वहाँ छः पत्रिकायें प्रकाशित होती थीं-कविवचन सुधा, ‘चरणादि चंद्रिका' हरिश्चन्द्र-मैगजीन, बालबोधिनी तथा काशी समाचार व आर्यमित्र आदि। कविवचन सुधा पहले मासिक थी किन्तु बाद में पाक्षिक और इसके बाद साप्ताहिक रूप से प्रकाशित होने लगी थी। चरणादि-चन्द्रिका साप्ताहिक थी, बालबोधिनी, काशी समाचार व आर्यमित्र मासिक पत्रिकायें थीं। इसी समय कलकत्ता से तीन समाचार पत्रों का ‘सुलभ समाचार, उक्तिवक्ता, सार सुधानिधि का प्रकाशन होता था। यह सभी पत्र साप्ताहिक थे। कानपुर से मासिक ‘ब्राह्मण' तथा दैनिक भारतोदय समाचार पत्र निकलते थे। इसी प्रकार मिर्जापुर से मासिक आनन्द कादंबिनी, वृन्दावन से ‘भारतेन्दु', मेरठ से मासिक ‘देवनागर प्रचारक' लाहौर से मासिक इन्दु तथा ‘कान्यकुब्ज प्रकाश' (मासिक) पत्र निकलते थे आगरा से साप्ताहिक ‘जगत समाचार निकलता था। बांकीपुर से मासिक ‘क्षत्रिय' एवं ‘बिहार बंधु' पत्रिकाओं का प्रकाशन होता था। फर्रूखाबाद से ‘भारत सुदशा प्रवर्तक' साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन होता था। उक्त नामावली से यह स्पष्ट है कि हिन्दी साहित्य की सर्जना और बोध की प्रक्रिया इन पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से ही संचालित और अभिव्यक्ति हुई।
यहाँ एक बात स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि सर्वप्रथम भारतीय संस्कृति, सामाजिक, राजनीतिक व राष्ट्रीय चेतना के जागरण एवं वाहक का कार्य कलकत्ता में सम्पन्न हुआ इसलिये स्वाभाविक है कि यहाँ पर पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन समृद्धि रहा। यह समय राष्ट्रीय कांग्रेस के उत्थान का काल था। और बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भिक दौर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में बाल गंगाधर तिलक का प्रभाव बढ़ने लगा था। तिलक जी ने मराठी व हिन्दी में ‘केसरी' पत्रिका का प्रकाशन किया। अगले क्रम में द्विवेदी युग (1900-1918 ई.) आता है जहाँ पर राजनीतिक एवं साहित्यिक दोनों धाराओं की पत्र-पत्रिकायें प्रकाशित हो रही थीं। कलकत्ता समाचार तथा विश्वामित्र जो दैनिक पत्र थे कलकत्ता से प्रकाशित होते थे। इसी समय प्रयाग से दो साप्ताहिक पत्र ‘हितवाणी' एवं ‘नृसिंह' का प्रकाशन होता था। ‘अभ्युदय, कर्मयोगी दोनों साप्ताहिक पत्र थे। मदन मोहन मालवीय एवं कृष्णकांत मालवीय के सम्पादन में ‘मासिद' का प्रकाशन होता था। मासिक पत्र ‘प्रताप' गणेश शंकर विद्यार्थी के सम्पादन में कानपुर से प्रकाशित होता था। इन्हीं के दिशा निर्देशन में खंडवा से ‘प्रभा' नामक मासिक पत्रिका जो पहले साहित्यिक थी बाद में राजनीतिक हो गई का प्रकाशन होता था।
पत्र-पत्रिकाओं का सिलसिला जारी रहना तब महत्वपूर्ण हो गया जब सन् 1900 ई. में इलाहाबाद में मासिक पत्रिका ‘सरस्वती' का प्रकाशन होने लगा। शुरूआती दौर में हालांकि इसका प्रकाशन काशी से होता था परन्तु सन् 1903 ई. में महावीर प्रसाद द्विवेदी के सम्पादक होने से इसमें चार चांद लग गये। इसी समय बनारस से मासिक पत्रिका सुदर्शन का प्रकाशन देवकी नन्दन खत्री एवं माधव प्रसाद मिश्र के सहसम्पादन में होता था। मासिक पत्रिका ‘देवनागर' कलकत्ता से प्रकाशित होती थी, इलाहाबाद से ईश्वरी प्रसाद शर्मा के सम्पादन में ‘मनोरंजन' का प्रकाशन होता था। इसी समय काशी से मासिक पत्रिका ‘इन्दु' का प्रकाशन होता था। मासिक पत्रिका ‘समालोचक' का सम्पादन जयपुर से चन्द्रधर शर्मा साहब कर रहे थे। इन पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन से केवल साहित्य जगत ही नहीं ऋणी है बल्कि इनके द्वारा राजनीतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक योगदान समय-समय पर मिलता रहा है। विशेषकर सरस्वती के प्रकाशन से तत्कालीन समाज में घटित होने वाली सभी घटनाओं का लेखा-जोखा इसमें प्रकाशित होता था। और विशेषकर साहित्यिक क्षेत्र में द्विवेदी जी ने व्याकरण एवं खड़ी बोली को इसमें एक नई दिशा एवं दशा का बीजारोपण कर एक नया प्रतिमान हासिल किया।
छायावाद काल में पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रगति के साथ उसमें परिपक्वता का समावेश उत्तरोत्तर होता चला गया। ‘सरस्वती' एवम ‘मर्यादा' की अपनी निरन्तरता तो कायम रही थी साथ ही ‘चांद', ‘माधुरी', ‘प्रभा', ‘साहित्य सन्देश', ‘विशाल भारत', ‘सुधा', ‘कल्याण', ‘हंस', ‘आदर्श', ‘मौजी', ‘समन्वय', ‘सरोज' आदि मासिक पत्रिकाओं का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। तत्कालीन परिवेश (छायावाद) का वर्णन लगभग इन पत्रिकाओं में गायब था। छायावाद सम्बन्धी घटनाओं/विशेषताओं का वर्णन केवल ‘माधुरी' में ही मिलता था जो एक अपवाद माना गया। कृष्णकांत मालवीय के सम्पादन में ‘मर्यादा' का प्रकाशन होता था। इसमें सामाजिक, राजनीतिक एवं साहित्यिक विषयों का बराबर समायोजन किया जाता था। इसका समय-समय पर महत्वपूर्ण लोगों के द्वारा सम्पादन होता रहा जिसमें डॉ. सम्पूर्णानन्द एवं कथा सम्राट मुंशी प्रेमचन्द्र प्रमुख हैं। स्त्री विषयों से सम्बन्धित ‘स्त्री दर्पण' का प्रकाशन एवं सम्पादन का कार्य रामेश्वरी नेहरू द्वारा होता था। ‘चाँद' जो प्रयाग से निकली, इसमें भी विषय चयन स्त्री को ही बनाया गया था। ‘प्रभा' पत्रिका कानपुर से प्रकाशित होती थी जिसका प्रकाशन एवं सम्पादन का कार्य बालकृष्ण शर्मा नवीन साहब कर रहे थे। इस पत्रिका की इसलिये चर्चा करना चाहूँगा क्योंकि इसमें एक लेख छपा था जिसके द्वारा कहा गया था रवीन्द्रनाथ टैगोर की कविताओं की नकल निराला ने की है। ‘भावों की भिड़न्त' नाम से यह लेख इतना प्रसिद्ध हुआ कि तत्कालीन समय में इसने हलचल मचा दी। इसी समय एक महत्वपूर्ण पत्रिका ‘सुधा' जिसमें राष्ट्रीय आन्दोलन का समर्थन, अंग्रेजी के स्थान पर भारतीय भाषाओं के प्रयोग पर बल देने के साथ ही हिन्दी साहित्य के सर्वतोमुखी विकास पर महत्वपूर्ण कार्य हुआ। इसकी सबसे मुख्य विशेषता यह है कि इसने छायावाद पर सबसे पहले अपना विरोध जताया। लखनऊ से प्रकाशित होने वाली इस पत्रिका का सम्पादन निराला जी ने भी कुछ समय के लिये किया। यहीं से एक और पत्रिका ‘माधुरी' का प्रकाशन होता था, जिसका कई महत्वपूर्ण व्यक्ति मिलकर सम्पादन एवं प्रकाशन दुलारेलाल भार्गव तथा कृष्ण बिहारी मिश्र एवं शिवपूजन सहाय तथा प्रेमचन्द्र का भी सहयोग मिला हुआ था। इस काल में एक महत्वपूर्ण पत्रिका ‘विशाल भारत' का प्रकाशन हुआ। कलकत्ता से प्रकाशित होने वाली इस पत्रिका के सम्पादक बनारसीदास चतुर्वेदी थे। इस पत्रिका ने निराला को एवं छायावाद को सर्वोपरि रखा, जिससे कुछ लोगों को यह बात पची नहीं और क्रिया प्रतिक्रिया का सिलसिला काफी समय तक चलता रहा। भक्ति, ज्ञान, दर्शन, संस्कृति, सदाचार और वैराग्य भावनाओं से लेकर इस समय गोरखपुर से ‘कल्याण' पत्रिका का प्रकाशन हो रहा था जो आज भी अपनी धारा को प्रवाहित किये हुये है। तत्कालीन समय में कथा साहित्य में हलचल मचा देने वाली पत्रिका ‘हंस' का प्रकाशन बनारस से मुंशी प्रेमचन्द्र जी कर रहे थे, इसमें उच्चकोटि का साहित्य, कवितायें, आलोचनायें, निबंध और साहित्य की अन्य सभी विधाओं को स्थान दिया जाता था। प्रेमचन्द्र जी के अवसान के बाद इसका सम्पादन, शिवदान सिंह चौहान तथा अमृतराय जी ने किया। ‘साहित्य संदेश' के माध्यम से हिन्दी समीक्षा जगत में एक स्वच्छ छवि वाली भूमि तैयार हो रही थी जिसका सम्पादन का कार्य आगरा से बाबू गुलाबराय जी कर रहे थे। इसी समय तत्कालीन समय की राष्ट्रीय भावना, नारी समस्या एवं हिन्दू-मुस्लिम एकता की समस्या एवं साहित्यिक गतिविधियों को उजागर करने का कार्य मासिक पत्र ‘आदर्श' एवं ‘मौजी' में हो रहा था। धर्म, अध्यात्म व समाज आदि विषयों को केन्द्र में रखते हुये रामकृष्ण मिशन के सौजन्य से कलकत्ता में ‘समन्वय' का प्रकाशन हो रहा था। इसे कुछ दिन तक निराला जी का सहयोग भी प्राप्त हुआ।
आलोच्य काल में कुछ महत्वपूर्ण साप्ताहिक पत्रों ने पत्रिकाओं को पीछे कर अपनी विशिष्ट पहचान बनाई-भारत, जागरण तथा ‘मतवाला'। जैसा कि नाम से स्पष्ट है। ‘मतवाला' का प्रकाशन कलकत्ता से शिवपूजन एवं निराला जी के सम्पादकत्व में सम्पन्न हो रहा था। यह पत्र बिट्रिश सरकार की नीतियों को व्यंग्यात्मक रूप से लोगों तक अपनी बात पहुँचाने का कार्य करता था साथ ही साहित्यिक एवं राजनीतिक, सामाजिक विषयों पर भी रचनाओं का प्रकाशन करता था। ‘छायावादी' परम्पराओं एवं विशेषताओं का वाहक ‘जागरण' का प्रकाशन शिवपूजन सहाय के सम्पादन में बनारस से हो रहा था। इसमें कुछ दिन तक कथा सम्राट प्रेमचन्द्र का सहयोग रहा। इलाहाबाद से एक पत्र ‘भारत' का प्रकाशन जिसमें विशेष तौर पर प्रसाद, पन्त व निराला को स्थान मिलता था, नन्द दुलारे बाजपेयी के सम्पादन में हो रहा था। इसकी एक प्रमुख विशेषता यह थी कि इसमें छायावादी रचनाओं को ही प्रमुखता से प्रकाशन होता था। इस आलोच्य काल में कुछ साप्ताहिक राजनीतिक पत्रों का संपादन होता था जिसमें प्रमुख-‘देश'
(राजेन्द्र प्रसाद), ‘हिन्दी नवजीवन' (महात्मा गाँधी), ‘कर्मवीर' (माखनलाल चतुर्वेदी, माधवसप्रे) एवं ‘सेनापति' इत्यादि थे।
दैनिक समाचार पत्रों की परम्परा में यह युग अतिमहत्वपूर्ण भूमिका अदा करता रहा है। ‘आज' का प्रकाशन बनारस से शुभारम्भ हुआ जो आगे चलकर सबसे श्रेष्ठ दैनिक अखबार साबित हुआ। इसके प्रमुख सम्मानीय सम्पादकों में-श्री प्रकाश, बाबूराम विष्णुराव पराड़कर तथा कमलापति त्रिपाठी जैसे लगनशील, महान व्यक्तियों का सहयोग प्राप्त हुआ। ‘आज' के माध्यम से समाज में एक साहित्यिक अलख तो जगाई ही साथ में राजनीतिक हलचलों के बीच स्वतंत्रता संग्राम की पृष्ठभूमि तैयार करने में एक अति महत्वपूर्ण भूमिका भी अदा कीं। इसी क्रम में ‘स्वतंत्र' एवं ‘कलकत्ता समाचार पत्र' का प्रकाशन भी हो रहा था। ‘स्वतंत्र' पत्र का सम्पादन अम्बिका बाजपेयी कलकत्ता से कर रहे थे और इसने गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन में अति महत्वपूर्ण एवं सराहनीय प्रयास किया।
छायावादोत्तर पत्रकारिता अपनी निरन्तरता विकासधारा एवं घटनाचक्र की दृष्टि से नित्य नये रूप ग्रहण करती जा रही थी। कुछ पत्र-पत्रिकायें छायावाद की समाप्ति के बावजूद आगे भी उनका प्रकाशन जारी रहा। दैनिक समाचार पत्र ‘आज' के सम्पादक पत्रकार बाबूराव विष्णु पराड़कर ने राष्ट्रीय आन्दोलन तथा समाज-सुधार के प्रबल समर्थन के साथ ही पत्रकारिता के उच्चादर्शों एवं मानदण्डों की स्थापना की। इन्द्र विद्यापति के सम्पादन में दिल्ली से राष्ट्रवादी पत्र दैनिक ‘वीर अर्जुन' का प्रकाशन होता था। इसमें अनेक विद्वान एवं प्रसिद्ध पत्रकारों का योगदान रहा है। ‘सैनिक' दैनिक का प्रकाशन आगरा से कृष्णदत्त पालीवाल के सम्पादन में कठिनाइयों के बाद भी अपने उच्च प्रतिमानों को प्राप्त कर रहा था। पंजाब में उन दिनों अनेक कर्मठ पत्रकारों ने उर्दू के प्रभाव को सन्तुलित कर राष्ट्रीयता की क्रांति फैलाई। ‘हिन्दी मिलाप', ‘शक्ति', ‘विश्वबन्धु' के माध्यम से पं. सुदर्शन, माधव जी, श्री सेंगर आदि पत्र-पत्रकारिता के नीलगगन में उभरे साथ ही उन्होंने राष्ट्रवादी क्रियाकलाप को गति और प्रेरणा दी। राष्ट्रीय भावनाओं को जागृत करने में दिल्ली से प्रकाशित दैनिक समाचार ‘हिन्दुस्तान' तब से आज तक राष्ट्रीय क्षेत्र में आज भी अपना दबदबा कायम किये हुये है। बिहार (पटना) से लोकप्रिय दैनिकों में ‘आर्यावर्त' का विशेष मान एवं महत्व रहा है साथ ही वर्तमान में भी यह पत्रकारिता के क्षेत्र में आज भी मील का पत्थर साबित हो रहा है। ‘चौथा संसार' के सम्पादक नरेश मेहता थे जो इसका प्रकाशन इन्दौर से कर रहे थे। छायावादोत्तर काल में साप्ताहिक पत्रों की धूम भी किसी मायने में कम नहीं रही। जबलपुर से माखनलाल चतुर्वेदी एवं माधवराव सप्रे के सम्पादकत्व में ‘कर्मवीर' का प्रकाशन हो रहा था। इस साप्ताहिक ने अपनी इतनी चमक फैलाई की वह आज भी उसी सतत गति से चालू प्रतीत हो रही है। आगे चलकर इसका विस्तार नागपुर से होने लगा था। साप्ताहिक ‘सारथी' भी इस युग का सबसे महत्वपूर्ण पत्र साबित हुआ और इसका प्रकाशन जबलपुर एवं नागपुर दो स्थानों से होता था। आलोच्य काल में मासिक पत्रिकाओं की भूमिका अति महत्वपूर्ण थी। जिसमें सरस्वती महावीर प्रसाद द्विवेदी के सम्पादकत्व में प्रकाशित हो रही थी। ये अपने आप में स्वतंत्र व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति थे। और हिन्दी भाषा एवं साहित्य का विकास इसने तत्कालीन समय में सबसे अधिक किया। पत्रिका ‘वीणा' जो इन्दौर से प्रकाशित होती थी, ने साहित्य के क्षेत्र में अति महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया। सबसे बड़ा सौभाग्य यह कि ‘वीणा' को शान्तिप्रिय द्विवेदी जैसे प्रतिभाशाली व्यक्ति का साथ मिला। ‘विशाल भारत' का प्रकाशन कलकत्ता से होता था और इसने तत्कालीन समय में साहित्यिक एवं ऐतिहासिक महत्व का दर्जा प्राप्त कर लिया। इसका गौरव प्रमुख साहित्यकारों-बनारसीदास चतुर्वेदी, श्री सेंगर एवं अज्ञेय आदि ने बढ़ाया। श्री सेंगर ने ‘नया समाज' एवं अज्ञेय जी ने इसी समय ‘प्रतीक' का सम्पादन कर साहित्य जगत में अपना विशिष्ट स्थान रेखांकित किया। विशिष्ट पत्रिकाओं की श्रेणी में ‘माधुरी' ने भी अपना नाम दर्ज कराया।
देश को आजादी मिलने से जैसे ऐसा लगा मानो पत्र-पत्रिकाओं को भी आजादी मिल गयी हो और आधुनिक काल में पत्र-पत्रिकाओं की मानो बाढ़ सी आ गयी लगती है। जैसे ही भारतीय संविधान ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा घोषित किया वैसे ही लोगों को लगा कि अब हिन्दी पत्रकारिता अपने उज्जवल भविष्य की ओर रूख करेगी। और इसका परिणाम यह हुआ कि अंग्रेजी के दैनिक समाचार पत्रों का सम्पादन हिन्दी भाषा में होने लगा-ऐसे-समय की नब्ज पहचानने वाले पत्रों में ‘इंडियन नेशन' पटना से एवम दैनिक ‘आयावर्त' का प्रकाशन हो रहा था। ‘दैनिक हिन्दुस्तान' दिल्ली से पहले हिन्दुस्तान टाइम्स के नाम से प्रकाशित होता था। ‘नवभारत' पहले ‘टाइम्स आफ इण्डिया' एवं जनसत्ता, इण्डियन एक्सप्रेस के रूप में प्रकाशित होते थे। अमृत बाजार पत्रिका, अमृत प्रभात के नाम से इलाहाबाद से प्रकाशित होने लगी। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि इन पत्रों ने अंग्रेजी-पत्रों के अपने स्थापित संगठन के लाभ तो उठाये, लेकिन अपने स्वतंत्र विकास की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया। बड़े दुख की बात यह है कि इन पत्रों ने अपने किसी स्वतंत्र समाचार-संगठन या अभिकरण का विकास नहीं किया साथ ही न इनकी पत्रकारिता भ्रष्ट और भ्रामक अनुवादों से आगे वर्तमान में बढ़ पा रही है। इसका सबसे प्रमुख कारण-औद्योगीकरण, पूंजीवाद और स्वार्थनिष्ठा का अभाव है। पराड़कर जी के शब्दों को भविष्यवाणी मानें तो यह कि-‘एक समय आयेगा जब हिन्दी-पत्र रोटरी पर छपेंगे, सम्पादकों को ऊंची तनख्वाहें मिलेंगी, सब कुछ होगा किन्तु उनकी आत्मा मर जायेगी; सम्पादक, सम्पादक न होकर मालिक का नौकर होगा।' आजकल दैनिक समाचार पत्र अपनी निरंतरता बनाये हुये हैं उनमें प्रमुख हिन्दुस्तान, नवभारत टाइम्स, स्वतंत्र भारत, दैनिक जागरण, नवजीवन तथा जनसत्ता प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त नई दुनिया (इन्दौर) अमर किरण (दुर्ग) आज, विश्वामित्र, सन्मार्ग तथा पंजाब केसरी (जालंधर, दिल्ली) उल्लेखनीय हैं। साथ ही हिन्दी भाषी क्षेत्रों एवं प्रान्तों की राजधानियों से नियमित/दैनिक हिन्दी समाचार पत्रों का प्रकाशन/सम्पादन हो रहा है, परन्तु जो पत्रकारिता की मर्यादा होनी चाहिए वह इन समाचार पत्रों में अवलोकित नहीं हो रही है।
इस समय हिन्दी के साप्ताहिक पत्रों में साप्ताहिक हिन्दुस्तान, धर्म-युग, दिनमान, रविवार एवं सहारा समय प्रमुख हैं। हिन्दुस्तान का सम्पादन, सम्पादिका मृणाल पाण्डेय जी ने किया एवं धर्मयुग का सर्वप्रथम सम्पादन डॉ. धर्मवीर भारती जी ने किया। धर्मयुग ने जन सामान्य में अपनी लोकप्रियता इतनी बना रखी थी कि हर प्रबुद्ध पाठक वर्ग के ड्राइंग रूप में इसका पाया जाना गर्व की बात माने जाने लगी थी। कुछ दिनों तक गणेश मंत्री (बम्बई) ने भी इसका सम्पादन किया। कुछ आर्थिक एवं आपसी कमियों के अभाव के कारण इसका सम्पादन कार्य रूक गया। ‘दिनमान' का सम्पादन घनश्याम पंकज जी कर रहे थे साथ ही रविवार का सम्पादन उदय शर्मा के निर्देशन में आकर्षक ढंग से हो रहा था। इसी समय व्यंग्य के क्षेत्र में ‘हिन्दी शंकर्स वीकली' का सम्पादन हो रहा था। ‘वामा' हिन्दी की मासिक पत्रिका महिलापयोगी का सम्पादन विमला पाटिल के निर्देशन में हो रहा था। ‘इण्डिया टुडे' पहले पाक्षिक थी, परन्तु आज यही साप्ताहिक रूप में अपनी ख्याति बनाये हुये है। अन्य मासिक पत्रिकाओं में ‘कल्पना', ‘अजन्ता', ‘पराग', ‘नन्दन', ‘स्पतुनिक', ‘माध्यम', ‘यूनेस्को दूत', ‘नवनीत (डाइजेस्ट)', ‘ज्ञानोदय', ‘कादम्बिनी', ‘अछूते', ‘सन्दर्भ', ‘आखिर क्यों', ‘यूथ इण्डिया', ‘जन सम्मान', ‘अम्बेडकर इन इण्डिया', ‘राष्ट्रभाषा-विवरण पत्रिका', ‘पर्यावरण', ‘डाइजेस्ट आखिर कब तक?', ‘वार्तावाहक' आदि अनेक महत्वपूर्ण पत्रिकाओं का प्रकाशन हो रहा है। ‘अजन्ता' अब प्रकाशित नहीं हो रही है परन्तु ‘कल्पना' अब भी जारी है। इसी तरह से ‘यूथ इण्डिया' फर्रूखाबाद से राघवेन्द्र सिंह ‘राजू' के कुशल निर्देशन में अपना विशिष्ट स्थान मासिक पत्रिका के रूप में बनाये हुये है। ‘अछूते सन्दर्भ' दिल्ली से कमलेश चतुर्वेदी के दिशा निर्देशन एवं सम्पादकत्व में साहित्य एवं विविध सामाजिक पहलुओं को रेखांकित करने में सहायक हो रही है। ‘जन-सम्मान' मुरादाबाद से ‘मोहर सिंह' के सम्पादकत्व में समाज में दलित लोगों की दिशा एवं दशा को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है। राष्ट्रभाषा को सम्मान दिलाने की हैसियत से ‘राष्ट्रभाषा', वर्धा से श्री अनन्तराम त्रिपाठी के सम्पादकत्व में प्रकाशित हो रही है। उड़ीसा से वार्तावाहक ब्रज सुन्दरपाढ़ी एवं ‘विवरण पत्रिका', हैदराबाद से चन्द्रदेव भगवन्तराव कवड़े के सहयोग से अपनी निरन्तरता बनाये हुये है।
कथा साहित्य को लेकर वर्तमान में कुछ पत्रिकाओं का प्रकाशन सतत जारी है। ‘सारिका', ‘संचेतना', ‘नीहारिका', ‘वीणा', ‘प्रगतिशील समाज', ‘रंग पर्व लहर', ‘युगदाह', ‘कुरूशंख', ‘पुनःश्च' तथा ‘लघु आघात', ‘कथन', ‘कथासागर', ‘कथाक्रम', ‘कथादेश', कथा ‘सम्वेत', ‘कथा-विम्ब', कहानीकार, ‘कथा', कथादशक, कहानियां आदि का प्रकाशन, कहानी को एक नयी दिशा की ओर अग्रसर किये हुये है। और यह पत्रिकायें लघुकथा के विकास में विशिष्ट भूमिका का निर्वहन कर रही हैं। आलोचनात्मक मासिक पत्रिकाओं में साहित्य सन्देश, आलोचना, सरस्वती संवाद, मध्य प्रदेश साहित्य सरोवर, ‘नया ज्ञानोदय' एवम ‘वागर्थ' का प्रकाशन हो रहा है। ‘हिन्दी समीक्षा के क्षेत्र में बिना किसी पक्षपात एवं स्वस्थ विकास की दिशा में अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य सम्पन्न कर रहे हैं ‘हंस' के सम्पादक श्री राजेन्द्र यादव जी एवं ‘गंगा' मिश्रित प्रकृति की समीक्षात्मक पत्रिका का सम्पादन कमलेश्वर जी कर रहे हैं हम उन ऐसे अनेक मूर्धन्य साहित्यकार एवं सम्पादक विद्वतजनों का आभार एवं धन्यवाद ज्ञापित कर रहे हैं जो मासिक पत्रिकायें संपादित कर समाज को साहित्य के क्षेत्र में एक नई दशा एवं दिशा दे रहे हैं।
वर्तमान समय में त्रैमासिक शोध पत्रिकाओं एवं साहित्यिक पत्रिकाओं की निरन्तरता जारी है। और यहाँ पर सभी का उल्लेख करना सम्भव नहीं हो सकता है कुछ प्रमुख त्रैमासिक पत्रिकायें-‘भाषा' और ‘अनुवाद', ‘साक्षात्कार', ‘पूर्वग्रह', ‘दस्तावेज', ‘आलोचना', ‘इन्द्रप्रस्थ', ‘उन्नयन', ‘काव्यभाषा', ‘सम्बोधन', ‘जनाधार', ‘पल प्रतिपल', ‘गगनांचल', ‘परिभाषा' मधुरिमा शोधात्मक पत्रिकाओं में नागरी प्रचारिणी पत्रिका (वाराणसी), ‘सम्मेलन पत्रिका' (इलाहाबाद), हिन्दी अनुशीलन (प्रयाग), समकालीन अभिव्यक्ति (दिल्ली), रचनाकर्म (गुजरात), संकल्य (हैदराबाद), मरुगुलशन (राजस्थान), संदर्भ (राँची), परिधि के बाहर (पटना) साहित्य भारती (लखनऊ) अभिप्राय (इलाहाबाद), भाव वीथिका (बिजनौर) समीचीन मुम्बई का प्रकाशन हो रहा है जिनके द्वारा अनेक शोधार्थियों की आवश्यकता की पूर्ति होती रहती है। चौमासिक पत्रिकाओं में भोपाल से कला एवं संस्कृति पर चौमासा पत्रिका ने अपना विशिष्ट स्थान बना रखा है। उरई (जालौन) से स्पंदन का प्रकाशन रचना धर्मिता को एक नई दिशा देने का कार्य डॉ. कुमारेन्द्र सिंह सेंगर कर रहे हैं। वहीं कृतिका के माध्यम से साहित्य, कला, संस्कृति और सामाजिक चेतना की अलख एवं हाशिए पर कर दिये युवा लेखकों को सृजनशीलता के प्रति जागृति करने का कार्य उरई (जालौन) से डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त छमाही शोध पत्रिकाओं में शोध यात्रा (ग्वालियर), आशय (कानपुर), शोध-संकल्प (कानपुर) एवं वार्षिक पत्रिकाओं में मड़ई (छत्तीसगढ़), अम्बेडकर चिंतन (हरियाणा) युग पुरुष अम्बेडकर (बरेली) इसके साथ ही देश के विश्वविद्यालयों के हिन्दी विभागों द्वारा शोधार्थियों को ध्यान में रखते हुये शोध की प्रवृत्ति को बढ़ावा देने के लिये वार्षिक शोध पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है। वर्तमान में हिन्दी को स्वीकृति लगभग सभी ओर से मिलती चली जा रही है। इसका अन्दाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि देश के बाहर भी अप्रवासी वहाँ हिन्दी में पत्र-पत्रिकाओं का निरन्तर प्रकाशन कर रहे हैं। दूसरी प्रमुख बात वह यह है कि आज विज्ञान विषय से सम्बन्ध रखने वाली पत्रिकायें भी हिन्दी भाषा में प्रकाशित होने लगी हैं। विज्ञान प्रगति (दिल्ली) वैज्ञानिक खोजों के बारे में एक नई दिशा प्रदान कर रही है। विज्ञान (प्रयाग), वैज्ञानिक (मुम्बई), किसान भारती (पन्त नगर), खेती फल फूल, कृषि चयनिका, इंजीनियर पत्रिका (कलकत्ता), विज्ञान डाइजेस्ट, आविष्कार (दिल्ली), अनुसंधान पत्रिका (प्रयाग), विज्ञान भारती, पर्यावरण दर्शन (इलाहाबाद)। अर्थ (लखनऊ) आदि ने उल्लेखनीय भूमिका अदा की है और वर्तमान समय में अग्रणीय भूमिका का निर्वहन कर रही हैं।
हिन्दी भाषा में प्रकाशित इन साहित्यिक और साहित्येत्तर पत्र-पत्रिकाओं के लेखा-जोखा से यह स्पष्ट है कि देश की स्वतंत्रता से पहले इन्होंने अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और देश को आजाद कराने की पृष्ठभूमि भी तैयार कर लोगों में जागरण का वातावरण उत्पन्न किया और आज हम सब कुछ स्वतंत्र लिखने की स्थिति में आ गये हैं। गणनात्मक दृष्टि से आज पत्र-पत्रिकाओं की संख्या अनन्त है किन्तु गुणात्मक दृष्टि से इस दिशा में लेखकों एवं सम्पादकों में नैतिक स्खलन की भावनायें अधिक जोर पकड़ रही हैं लेकिन आज जहाँ उपभोक्तावादी संस्कृति एवं बाजारीकरण का बोलबाला चारों ओर हावी है ऐसे में निःस्वार्थ भाव से पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन करना अपने आप में एक चुनौती भरा कार्य है। अपेक्षा करता हूँ कि इसी तरह से उच्च आदर्श एवं प्रतिमानों को लेकर बौद्धिक वर्ग पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन एवं प्रकाशन करता रहेगा।
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युवा साहित्यकार के रूप में ख्याति प्राप्त डाँ वीरेन्द्र सिंह यादव ने दलित विमर्श के क्षेत्र में ‘दलित विकासवाद ' की अवधारणा को स्थापित कर उनके सामाजिक,आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त किया है। आपके दो सौ पचास से अधिक लेखों का प्रकाशन राष्ट्र्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर की स्तरीय पत्रिकाओं में हो चुका है। दलित विमर्श, स्त्री विमर्श, राष्ट्रभाषा हिन्दी में अनेक पुस्तकों की रचना कर चुके डाँ वीरेन्द्र ने विश्व की ज्वलंत समस्या पर्यावरण को शोधपरक ढंग से प्रस्तुत किया है। राष्ट्रभाषा महासंघ मुम्बई, राजमहल चौक कवर्धा द्वारा स्व0 श्री हरि ठाकुर स्मृति पुरस्कार, बाबा साहब डाँ0 भीमराव अम्बेडकर फेलोशिप सम्मान 2006, साहित्य वारिधि मानदोपाधि एवं निराला सम्मान 2008 सहित अनेक सम्मानो से उन्हें अलंकृत किया जा चुका है। वर्तमान में आप भारतीय उच्च शिक्षा अध्ययन संस्थान राष्ट्रपति निवास, शिमला (हि0प्र0) में नई आर्थिक नीति एवं दलितों के समक्ष चुनौतियाँ (2008-11) विषय पर तीन वर्ष के लिए एसोसियेट हैं।
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सम्पर्क ः वरिष्ठ प्रवक्ता ः हिन्दी विभाग दयानन्द वैदिक स्नातकोत्तर महाविद्यालय उरई-जालौन (उ0प्र0)-285001 भारत
virendra ji buddhijivi varg ka pratinidhitva karate hain,unaki rachanaon ka ek star hota hai,so pasand aane mein koi sandeh naheen,han unase hamen ummeed hamesha jyada ki hoti hai,jab thoda bhi kam paate hain to muskurakar agale lekh ka intejaar karate hain.
जवाब देंहटाएंShobha Gupta
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