रचनाकार में प्रकाशनार्थ हर विधा की रचनाओं का स्वागत है. अपनी या अपने रचनाकार मित्रों की रचनाएँ हिन्दी के किसी भी फ़ॉन्ट यथा - कृतिदेव...
रचनाकार में प्रकाशनार्थ हर विधा की रचनाओं का स्वागत है. अपनी या अपने रचनाकार मित्रों की रचनाएँ हिन्दी के किसी भी फ़ॉन्ट यथा - कृतिदेव, डेवलिस, श्रीलिपि, शुषा, वेबदुनिया, जिस्ट-आईएसएम, लीप या किसी भी अन्य फ़ॉन्ट में पेजमेकर या एमएस वर्ड फ़ाइल के रूप में अपनी रचना ई-मेल के जरिए rachanakar@gmail.com. के पते पर भेज सकते हैं. ध्यान दें - रचनाएँ पीडीएफ़ (PDF) फ़ाइल फ़ॉर्मेट में न भेजें, इसका उपयोग नहीं किया जा सकता है. यदि हिंदी यूनिकोड में रचना हो तो बेहतर. रचनाएं ईमेल से भेजना संभव नहीं हो तो रचनाओं को स्थानीय स्तर पर साइबर कैफ़े या डीटीपी सेंटर पर कम्प्यूटर पर टाइप करवाकर उसकी सीडी (इस विधि से संजय विद्रोही तथा असगर वज़ाहत जैसे दर्जनों नामचीन लेखकों के कहानी संग्रह/उपन्यास/संस्मरण/कविता संग्रह इत्यादि का प्रकाशन रचनाकार में किया जा चुका है) निम्न पते पर भेज सकते हैं:
यदि प्रकाशन हेतु ग़ज़ल / कविता भेज रहे हों तो कृपया कम से कम 10 कविताएं एक साथ प्रकाशनार्थ भेजें.
(२) ई-मेल से रचना भेजने के पश्चात् कृपया एक सप्ताह इंतजार करें. उसके पश्चात् ही स्मरण दिलाएँ. कई दफा तात्कालिक व्यस्तताओं तथा अन्य रचनाओं के अनुक्रम के कारण तत्काल प्रकाशन नहीं हो पाता है. एक सप्ताह बाद किसी तरह की सूचना प्राप्त न होने पर रचना फिर से भेजें या सूचित करें क्योंकि कई मर्तबा जेनुइन ई-मेल स्पैम भी हो जाता है.
कृपया नीचे दी गई बातों का भी ध्यानपूर्वक पालन करें:
हिन्द युग्म में एक पोस्ट प्रकाशित हुई है - "किसी अन्य की रचना को अपना कहने का जोखिम ना लें, इंटरनेट आपकी चोरी पकड़ लेगा". इसी तारतम्य में देखा जा रहा है कि इंटरनेट पर लगभग मुफ़्त में (आमतौर पर ब्लॉगों में) छपाई की सुविधा हासिल हो जाने के बाद अचानक हर कोई अपनी रचना हर संभव तरीके से इंटरनेट पर हर कहीं लाने को तत्पर दीखता है. देखने में आया है कि इंटरनेट पर रचनाकार अपनी रचना रचनाकार में प्रकाशित करने भेज रहा है तो साथ साथ साहित्य शिल्पी, हिन्द युग्म, अनुभूति-अभिव्यक्ति, सृजन-गाथा, शब्दकार और ऐसे ही दर्जनों अन्य जाल-प्रकल्पों पर भी अपनी वही रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज रहा है. कुछ अति उत्साही किस्म के लोग अपनी ब्लॉग रचनाओं को एक-दो नहीं, बल्कि तीन-तीन, चार-चार जगह पर छाप रहे हैं. परंतु इसका कोई अर्थ, कोई प्रयोजन है? शायद नहीं. दरअसल, ऐसा करके हम इंटरनेट पर और ज्यादा कचरा फैला रहे होते हैं. आप सभी सुधी रचनाकारों से आग्रह है कि इंटरनेट पर रचनाएँ प्रकाशित करते समय निम्न बातों का ध्यान रखें तो उत्तम होगा -
(1) यदि आपका अपना स्वयं का ब्लॉग है, तो उसमें पूर्व प्रकाशित रचनाओं को फिर से प्रकाशनार्थ न भेजें. इंटरनेट एक बड़े खुले किताब की तरह है. जिसमें सर्च कर किसी विशेष पृष्ठ पर आसानी से व तुरंत जाया जा सकता है. एक ही रचना को कई-कई पृष्ठों पर प्रकाशित करने का कोई अर्थ नहीं है. इंटरनेट पर अप्रकाशित (प्रिंट मीडिया में पूर्व प्रकाशित का तो स्वागत है) रचनाओं को ही इंटरनेटीय पत्रिकाओं को प्रकाशनार्थ भेजें. रचना एक ही इंटरनेट पत्रिका को भेजें. एक पत्रिका में प्रकाशित रचना को, अपवादों को छोड़कर, अन्य दूसरी पत्रिका में प्रकाशित न करवाएँ. आमतौर पर रचनाएँ जल्द ही प्रकाशित हो जाती हैं क्योंकि इंटरनेटी पत्रिकाओं में पृष्ठ सीमा इत्यादि का बंधन नहीं होता. आपको ईमेल से त्वरित सूचना भी प्राप्त हो जाती है. रचना के प्रकाशन के उपरांत आप चाहें तो अपने ब्लॉग में संक्षिप्त विवरण देकर उसका लिंक लगा सकते हैं.
(2) यह अवधारणा गलत है कि जितनी ज्यादा जगह में एक रचना प्रकाशित होगी उतना ज्यादा लोग पढ़ेंगे. 5-10 प्रतिशत शुरूआती हिट्स भले ही ज्यादा मिल जाएं, परंतु अंतत: लंबे समय में खोजबीन कर बारंबार पठन पाठन में वही रचना प्रयोग में आएगी जिसमें स्तरीय, सारगर्भित सामग्री होगी. लोगबाग खुद ही ब्लॉगवाणी पसंद जैसे पुस्त-चिह्न औजारों (भविष्य में ऐसे दर्जनों औजारों के आने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता) का प्रयोग आपकी रचना को लोकप्रिय बनाने में करेंगे. अत: रचना इंटरनेट पर एक ही स्थल में प्रकाशित करें. यदि आपका अपना स्वयं का ब्लॉग या जाल-स्थल है तो आपकी रचना के लिए इंटरनेट पर इससे बेहतर और कोई दूसरा स्थल नहीं. यदि आप अपना स्वयं का डोमेन लेकर रचनाएँ प्रकाशित कर रहे हैं तब भी यह अनुशंसित है कि वर्डप्रेस या ब्लॉगर जैसे सदा सर्वदा के लिए मुफ़्त उपलब्ध प्रकल्पों के जरिए अपनी रचना प्रकाशित करें, व डोमेन पते से रीडायरेक्ट करें. कल को हो सकता है कि आप डोमेन का नवीनीकरण करवाना भूल जाएं, या फिर कोई पचास साल बाद आपके वारिसों को आपका डोमेन फालतू खर्च वाला लगने लगे.
(3) रचना ईमेल से भेजने के पश्चात् एक सप्ताह का समय दें. आमतौर पर इतने समय में इंटरनेटी पत्रिकाओं से प्रकाशन बाबत सूचना रचनाकारों तक पहुँच जाती है. उसके पश्चात् ही रचनाएं दोबारा भेजें. यदि संभव हो तो रचना दोबारा भेजने से पहले पूछ-ताछ कर लें, ताकि बार बार बड़ी फाइलों को अपलोड-डाउनलोड करने से बचा जा सके. आमतौर पर अच्छी प्रकाशन योग्य रचना को त्वरित ही प्रकाशित कर दिया जाता है. यदि रचना स्मरण दिलाने के बाद भी प्रकाशित नहीं होती हो तो कृपया अन्यथा न लें, क्योंकि बहुधा फरमा में नहीं बैठ पाने के कारण रचना प्रकाशित नहीं हो पाती. साथ ही हर रचना के बारे में प्रत्युत्तर की आशा न रखें. आधुनिक इंटरनेटी युग में सबसे कीमती वस्तु है समय. समयाभाव और साधनाभाव में बहुधा प्रत्येक को प्रत्युत्तर दे पाना संभव नहीं होता. अतः कृपया कृपा बनाए रखें. धैर्य भी.
(4) इंटरनेटी पत्रिका का स्वरूप, उसका तयशुदा फरमा, सामग्री इत्यादि को एक बार देख लेने के उपरांत ही अपनी रचनाएँ भेजें. इंटरनेट का प्रचार प्रसार चहुँओर फैलने से सामग्री की स्तरीयता में तेजी से कमी की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता. साथ ही, आमतौर पर इंटरनेट के साहित्यिक प्रकल्प रचनाकार जैसे स्थल राजनीतिक आलेख व टिप्पणियाँ प्रकाशित नहीं करते हैं, अत: इन्हें प्रकाशनार्थ न भेजें. इस तरह की तमाम सामग्री आप अपने ब्लॉग में बेधड़क प्रकाशित कर सकते हैं. यदि आपका ब्लॉग नहीं है तो, यकीन मानिए, ब्लॉग बनाना और उसमें लिखना बेहद आसान है. बाजू पट्टी में दी गई कड़ियों से और जानकारी प्राप्त करें.
(5) इंटरनेटी पत्रिकाओं के संपादकों से आग्रह है कि रचना के प्रकाशन से पूर्व वे रचना की कोई शुरूआती पंक्ति गूगल सर्च में डालकर देख लें कि वह कहीं पूर्व प्रकाशित तो नहीं है. यदि रचना पूर्व प्रकाशित है तो रचयिता को सूचित करें, और अपवाद स्वरूप कुछ विशिष्ट रचनाओं को छोड़ कर आमतौर पर इंटरनेट पर पूर्व प्रकाशित रचना को फिर से प्रकाशित न करें. पहले जब यूनिकोड प्रचलित नहीं था, तब एक ही रचना के शुषा, कृतिदेव, अर्जुन इत्यादि फोंटों में अलग अगल स्थलों पर प्रकाशित होने की बात तो ठीक थी, परंतु अब इसकी न तो जरूरत है, न ही प्रयोजन.
(6) यदि आप पुराने फ़ॉन्टों में लिख रहे हैं, तो इंटरनेट पर बहुत ही खूबसूरत ऑनलाइन फ़ॉन्ट कन्वर्टर यहाँ पर उपलब्ध है. उसमें अपनी रचना यूनिकोड में परिवर्तित करें, फिर गूगल डॉक में (यदि खाता नहीं है तो एक खाता खोल लें) हिन्दी वर्तनी की जांच (हालांकि यह उतना उन्नत नहीं है, मगर काम लायक तो है ही) कर लें. इस तरह से वर्तनी की जाँच कर ली गई, यूनिकोड में परिवर्तित रचना को प्रकाशनार्थ भेजें तो निश्चित तौर पर ऑनलाइन पत्रिकाओं के संपादक आपके अनुग्रही रहेंगे.
(7) एक बेहद महत्वपूर्ण बात - आप अपनी रचनाओं की वर्तनी, मात्रा इत्यादि की भली प्रकार जाँच परख कर प्रकाशनार्थ भेजें. जाल पर गूगल डॉक्स http://docs.google.com/?pli=1 पर हिन्दी की बढ़िया वर्तनी जाँच सुविधा है. इसका प्रयोग करें. यदि आपकी हिन्दी, आपको लगता है कि में सुधार की आवश्यकता है, तो अपने अन्य रचनाकार मित्रों जिनकी हिन्दी ठीक है उनसे एक बार परामर्श लेने में संकोच न करें. गलत वर्तनी युक्त रचनाओं को अस्वीकृत कर दिया जाएगा और इस संबंध में कोई पत्राचार नहीं किया जाएगा.
रचनाकार
रविशंकर श्रीवास्तव
101, आदित्य एवेन्यू, एयरपोर्ट रोड, भोपाल मप्र 462002 (भारत)
कृपया ध्यान दें: (१) रचनाकार का प्रकाशन अवैतनिक अव्यावसायिक किया जाता है अतः रचनाओं के प्रकाशन के एवज में किसी तरह का मानदेय/रायल्टी प्रदान करना संभव नहीं है. ध्येय यह है कि उत्कृष्ट रचनाएँ इंटरनेट के माध्यम से जन जन को सर्वसुलभ हों. अतः रचनाओं के अप्रकाशित होने जैसा कोई बंधन नहीं है. प्रिंट मीडिया में पूर्व-प्रकाशित, चर्चित, पुरस्कृत रचनाएँ हो तो और अच्छा. इंटरनेट / अपने ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित रचनाओं को दोबारा रचनाकार पर या इंटरनेट पर अन्यत्र प्रकाशित करने का कोई अर्थ नहीं है, अतः कृपया ऐसी रचनाएँ न भेजें. यदि प्रकाशन हेतु ग़ज़ल / कविता भेज रहे हों तो कृपया कम से कम 10 कविताएं एक साथ प्रकाशनार्थ भेजें.
रचनाएँ भेजने से पूर्व वर्तनी व व्याकरण इत्यादि की जाँच अवश्य कर लें.
(२) ई-मेल से रचना भेजने के पश्चात् कृपया एक सप्ताह इंतजार करें. उसके पश्चात् ही स्मरण दिलाएँ. कई दफा तात्कालिक व्यस्तताओं तथा अन्य रचनाओं के अनुक्रम के कारण तत्काल प्रकाशन नहीं हो पाता है. एक सप्ताह बाद किसी तरह की सूचना प्राप्त न होने पर रचना फिर से भेजें या सूचित करें क्योंकि कई मर्तबा जेनुइन ई-मेल स्पैम भी हो जाता है.
कृपया नीचे दी गई बातों का भी ध्यानपूर्वक पालन करें:
हिन्द युग्म में एक पोस्ट प्रकाशित हुई है - "किसी अन्य की रचना को अपना कहने का जोखिम ना लें, इंटरनेट आपकी चोरी पकड़ लेगा". इसी तारतम्य में देखा जा रहा है कि इंटरनेट पर लगभग मुफ़्त में (आमतौर पर ब्लॉगों में) छपाई की सुविधा हासिल हो जाने के बाद अचानक हर कोई अपनी रचना हर संभव तरीके से इंटरनेट पर हर कहीं लाने को तत्पर दीखता है. देखने में आया है कि इंटरनेट पर रचनाकार अपनी रचना रचनाकार में प्रकाशित करने भेज रहा है तो साथ साथ साहित्य शिल्पी, हिन्द युग्म, अनुभूति-अभिव्यक्ति, सृजन-गाथा, शब्दकार और ऐसे ही दर्जनों अन्य जाल-प्रकल्पों पर भी अपनी वही रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज रहा है. कुछ अति उत्साही किस्म के लोग अपनी ब्लॉग रचनाओं को एक-दो नहीं, बल्कि तीन-तीन, चार-चार जगह पर छाप रहे हैं. परंतु इसका कोई अर्थ, कोई प्रयोजन है? शायद नहीं. दरअसल, ऐसा करके हम इंटरनेट पर और ज्यादा कचरा फैला रहे होते हैं. आप सभी सुधी रचनाकारों से आग्रह है कि इंटरनेट पर रचनाएँ प्रकाशित करते समय निम्न बातों का ध्यान रखें तो उत्तम होगा -
(1) यदि आपका अपना स्वयं का ब्लॉग है, तो उसमें पूर्व प्रकाशित रचनाओं को फिर से प्रकाशनार्थ न भेजें. इंटरनेट एक बड़े खुले किताब की तरह है. जिसमें सर्च कर किसी विशेष पृष्ठ पर आसानी से व तुरंत जाया जा सकता है. एक ही रचना को कई-कई पृष्ठों पर प्रकाशित करने का कोई अर्थ नहीं है. इंटरनेट पर अप्रकाशित (प्रिंट मीडिया में पूर्व प्रकाशित का तो स्वागत है) रचनाओं को ही इंटरनेटीय पत्रिकाओं को प्रकाशनार्थ भेजें. रचना एक ही इंटरनेट पत्रिका को भेजें. एक पत्रिका में प्रकाशित रचना को, अपवादों को छोड़कर, अन्य दूसरी पत्रिका में प्रकाशित न करवाएँ. आमतौर पर रचनाएँ जल्द ही प्रकाशित हो जाती हैं क्योंकि इंटरनेटी पत्रिकाओं में पृष्ठ सीमा इत्यादि का बंधन नहीं होता. आपको ईमेल से त्वरित सूचना भी प्राप्त हो जाती है. रचना के प्रकाशन के उपरांत आप चाहें तो अपने ब्लॉग में संक्षिप्त विवरण देकर उसका लिंक लगा सकते हैं.
(2) यह अवधारणा गलत है कि जितनी ज्यादा जगह में एक रचना प्रकाशित होगी उतना ज्यादा लोग पढ़ेंगे. 5-10 प्रतिशत शुरूआती हिट्स भले ही ज्यादा मिल जाएं, परंतु अंतत: लंबे समय में खोजबीन कर बारंबार पठन पाठन में वही रचना प्रयोग में आएगी जिसमें स्तरीय, सारगर्भित सामग्री होगी. लोगबाग खुद ही ब्लॉगवाणी पसंद जैसे पुस्त-चिह्न औजारों (भविष्य में ऐसे दर्जनों औजारों के आने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता) का प्रयोग आपकी रचना को लोकप्रिय बनाने में करेंगे. अत: रचना इंटरनेट पर एक ही स्थल में प्रकाशित करें. यदि आपका अपना स्वयं का ब्लॉग या जाल-स्थल है तो आपकी रचना के लिए इंटरनेट पर इससे बेहतर और कोई दूसरा स्थल नहीं. यदि आप अपना स्वयं का डोमेन लेकर रचनाएँ प्रकाशित कर रहे हैं तब भी यह अनुशंसित है कि वर्डप्रेस या ब्लॉगर जैसे सदा सर्वदा के लिए मुफ़्त उपलब्ध प्रकल्पों के जरिए अपनी रचना प्रकाशित करें, व डोमेन पते से रीडायरेक्ट करें. कल को हो सकता है कि आप डोमेन का नवीनीकरण करवाना भूल जाएं, या फिर कोई पचास साल बाद आपके वारिसों को आपका डोमेन फालतू खर्च वाला लगने लगे.
(3) रचना ईमेल से भेजने के पश्चात् एक सप्ताह का समय दें. आमतौर पर इतने समय में इंटरनेटी पत्रिकाओं से प्रकाशन बाबत सूचना रचनाकारों तक पहुँच जाती है. उसके पश्चात् ही रचनाएं दोबारा भेजें. यदि संभव हो तो रचना दोबारा भेजने से पहले पूछ-ताछ कर लें, ताकि बार बार बड़ी फाइलों को अपलोड-डाउनलोड करने से बचा जा सके. आमतौर पर अच्छी प्रकाशन योग्य रचना को त्वरित ही प्रकाशित कर दिया जाता है. यदि रचना स्मरण दिलाने के बाद भी प्रकाशित नहीं होती हो तो कृपया अन्यथा न लें, क्योंकि बहुधा फरमा में नहीं बैठ पाने के कारण रचना प्रकाशित नहीं हो पाती. साथ ही हर रचना के बारे में प्रत्युत्तर की आशा न रखें. आधुनिक इंटरनेटी युग में सबसे कीमती वस्तु है समय. समयाभाव और साधनाभाव में बहुधा प्रत्येक को प्रत्युत्तर दे पाना संभव नहीं होता. अतः कृपया कृपा बनाए रखें. धैर्य भी.
(4) इंटरनेटी पत्रिका का स्वरूप, उसका तयशुदा फरमा, सामग्री इत्यादि को एक बार देख लेने के उपरांत ही अपनी रचनाएँ भेजें. इंटरनेट का प्रचार प्रसार चहुँओर फैलने से सामग्री की स्तरीयता में तेजी से कमी की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता. साथ ही, आमतौर पर इंटरनेट के साहित्यिक प्रकल्प रचनाकार जैसे स्थल राजनीतिक आलेख व टिप्पणियाँ प्रकाशित नहीं करते हैं, अत: इन्हें प्रकाशनार्थ न भेजें. इस तरह की तमाम सामग्री आप अपने ब्लॉग में बेधड़क प्रकाशित कर सकते हैं. यदि आपका ब्लॉग नहीं है तो, यकीन मानिए, ब्लॉग बनाना और उसमें लिखना बेहद आसान है. बाजू पट्टी में दी गई कड़ियों से और जानकारी प्राप्त करें.
(5) इंटरनेटी पत्रिकाओं के संपादकों से आग्रह है कि रचना के प्रकाशन से पूर्व वे रचना की कोई शुरूआती पंक्ति गूगल सर्च में डालकर देख लें कि वह कहीं पूर्व प्रकाशित तो नहीं है. यदि रचना पूर्व प्रकाशित है तो रचयिता को सूचित करें, और अपवाद स्वरूप कुछ विशिष्ट रचनाओं को छोड़ कर आमतौर पर इंटरनेट पर पूर्व प्रकाशित रचना को फिर से प्रकाशित न करें. पहले जब यूनिकोड प्रचलित नहीं था, तब एक ही रचना के शुषा, कृतिदेव, अर्जुन इत्यादि फोंटों में अलग अगल स्थलों पर प्रकाशित होने की बात तो ठीक थी, परंतु अब इसकी न तो जरूरत है, न ही प्रयोजन.
(6) यदि आप पुराने फ़ॉन्टों में लिख रहे हैं, तो इंटरनेट पर बहुत ही खूबसूरत ऑनलाइन फ़ॉन्ट कन्वर्टर यहाँ पर उपलब्ध है. उसमें अपनी रचना यूनिकोड में परिवर्तित करें, फिर गूगल डॉक में (यदि खाता नहीं है तो एक खाता खोल लें) हिन्दी वर्तनी की जांच (हालांकि यह उतना उन्नत नहीं है, मगर काम लायक तो है ही) कर लें. इस तरह से वर्तनी की जाँच कर ली गई, यूनिकोड में परिवर्तित रचना को प्रकाशनार्थ भेजें तो निश्चित तौर पर ऑनलाइन पत्रिकाओं के संपादक आपके अनुग्रही रहेंगे.
(7) एक बेहद महत्वपूर्ण बात - आप अपनी रचनाओं की वर्तनी, मात्रा इत्यादि की भली प्रकार जाँच परख कर प्रकाशनार्थ भेजें. जाल पर गूगल डॉक्स http://docs.google.com/?pli=1 पर हिन्दी की बढ़िया वर्तनी जाँच सुविधा है. इसका प्रयोग करें. यदि आपकी हिन्दी, आपको लगता है कि में सुधार की आवश्यकता है, तो अपने अन्य रचनाकार मित्रों जिनकी हिन्दी ठीक है उनसे एक बार परामर्श लेने में संकोच न करें. गलत वर्तनी युक्त रचनाओं को अस्वीकृत कर दिया जाएगा और इस संबंध में कोई पत्राचार नहीं किया जाएगा.
जानकारी महत्वपूर्ण है।
जवाब देंहटाएंACHHI JAANKAARI DI AAPNE,,,...
जवाब देंहटाएंARSH
सही कहा आपने। सहमत।
जवाब देंहटाएंरवि जी,
जवाब देंहटाएंआपने बहुत ही उपयोगी सलाह दिये हैं। मैं यही बात चिल्ला-चिल्लाकर हिन्द-युग्म पर रचनाएँ भेजने वाले रचनाकारों को कहता रहा हूँ कि बस इतना ही मोह रखें कि एक रचना एक ही इंटरनेट पत्रिका को भेजें। ज्यादातर रचनाकार कई जगह एक साथ ही अपनी रचना भेजते हैं। जब ऐसे रचनाकारों की कृतियाँ मैं प्रकाशित करता हूँ तो मुझे बाद में बहुत अफसोस भी होता है। एक कवि विजय कुमार सपत्ती ने तो हमारी यूनिकवि प्रतियोगिता ने एक ऐसी कविता भेज दी, जिसे वे आपके यहाँ प्रकाशित भी करवा चुके थे। कविता प्रथम हो गई थी। बाद में मैंने जब दूसरी कविता प्रकाशित की, तो पाया ऐसे ही कहीं उसे प्रकाशित पाया। फिर मुझे यूनिकविता पर भी संदेह हुआ। गूगल किया तो पाया कि वो कविता इक जगह नहीं, बल्कि कई जगह प्रकाशित थी। उसके बाद मैंने कड़ा निर्णय लिया। पूरी बात यहाँ देखें।
शैलेष जी नमस्कार
हटाएंआपकी २०११ कि प्रतियोगिता अभी भी फ़्लैश हो रही है जैसे अभी को प्रतियोगिता होने वाली है कृपया इसे मेन्टेन करें ,धन्यवाद
सर मैं भी अपनी कविताएं प्रकाशित करवाना चाहती हू, कृपया मुझे बताए की मुझे क्या कर होगा। धन्यवाद सर
हटाएंरवि जी
जवाब देंहटाएंअभिवंदन
"अपनी रचना इंटरनेट पर प्रकाशित करते-करवाते समय निम्न बातों का ध्यान रखें " के तारतम्य में लिखे गए आलेख को पढ़ कर ऐसा लगा जैसे आपने एक अनुकरणीय कार्य किया हो.
मुझे उम्मीद है जो भी इस आलेख को पढेंगे वे जरूर आपके बताये हुए बिन्दुओं पर गौर करेंगे.
- विजय
रवि जी
जवाब देंहटाएंअभिवंदन
"अपनी रचना इंटरनेट पर प्रकाशित करते-करवाते समय निम्न बातों का ध्यान रखें " के तारतम्य में लिखे गए आलेख को पढ़ कर ऐसा लगा जैसे आपने एक अनुकरणीय कार्य किया हो.
मुझे उम्मीद है जो भी इस आलेख को पढेंगे वे जरूर आपके बताये हुए बिन्दुओं पर गौर करेंगे.
- विजय
"अपनी रचना इंटरनेट पर प्रकाशित करते-करवाते समय निम्न बातों का ध्यान रखें "
जवाब देंहटाएंजानकारी से आपने एक अनुकरणीय कार्य किया है।
बहुत अच्छा व उचित परामर्श ।
जवाब देंहटाएंA very useful guide line for the poets and writers. Thanks alot ravi jee. harendra
जवाब देंहटाएंखूबसूरत पोस्ट
जवाब देंहटाएंmahatbtavpurna janakari hai............
जवाब देंहटाएंbahut upyogi jankari hai.sadhuvad.
जवाब देंहटाएंसाहित्यकार से एक बौद्धिक ऊंचाई की आशा की जाती है .......कुछ लोग प्रकाशन को प्रशंसा- प्रसिद्धि पाने का हथियार बना लेते हैं ...दुःख होता है ऐसे लोगों की बुद्धि पर .
जवाब देंहटाएंआपने महत्वपूर्ण जानकारी दी ...इसके लिए साधुवाद .
रवि रतलामी जी नमस्कार बहुत अच्छी जानकारियां दी हैं आप ने यहाँ पर हमारे कवी , लेखक प मुद्रण में लगे लोगों के लिए
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
Achchi jankari di hai.
जवाब देंहटाएंpavitra
Important Information
जवाब देंहटाएंअखिलेश सू. जोशी की हिन्दी साहित्य को एक अद्वितीय एवं अद्भुत प्रस्तुति - स्व. श्री श्रीकृष्ण जोशी 'नक़्शे नवीस' की अद्वितीय काव्य रचनाएँ वर्ष १९१५-१९६१ के बीच रचित हैं परन्तु अब तक केवल पांडुलिपियों तक ही सीमित थी. अपने दादाजी की इन रचनाओं को अखिलेश सू. जोशी ने विश्व के सम्मुख प्रस्तुत करने का बीड़ा उठाया है एवं 'नक़्शे नवीस' की पहली रचना "वसंत विरह" इंदौर से प्रकाशित दैनिक नईदुनिया में दि. २२ जनवरी को प्रकाशित हुई| यहाँ यह उल्लेख करना अनुचित नहीं होगा की लगभग १७५ से अधिक रचनाएं अब तक अप्रकाशित हैं | उनकी रचनाओं के अंश फेसबुक के " स्व. श्री श्रीकृष्ण जोशी 'नक़्शे नवीस' ग्रुप पर प्रेषित किये जा रहे हैं | साथ ही 'नक़्शे नवीस' की रचनाओं का ब्लॉग http://श्रीकृष्णजोशी.ब्लॉगस्पोट .कॉम पर भी रचनाओं की प्रस्तुति के लिए माध्यम बनाया गया है |
जवाब देंहटाएंरचनाकार का परिचय http://en.wikipedia.org/wiki/User:Shreekrishna_Joshi_'Nakshe_Navees' पर उपलब्ध है |
यह उम्मीद की जा सकती है कि आगामी एक वर्ष में सभी रचनाओं का हिन्दी साहित्य प्रेमी रसास्वादन कर सकेंगे |
रवि जी अभिनन्दन ,
जवाब देंहटाएंआपके वेबसाइट पर आना क्या हुआ,धन्य हों गया .......हिंदी ब्लोग्गिं से संबधित महत्वपूर्ण जानकारियाँ और मार्गदर्शन पाकर मैं अपनी खुशी को व्यक्त नहीं कर पा रहा हूं |
रवि जी अभिनन्दन ,
जवाब देंहटाएंआपके वेबसाइट पर आना क्या हुआ,धन्य हों गया .......हिंदी ब्लोग्गिं से संबधित महत्वपूर्ण जानकारियाँ और मार्गदर्शन पाकर मैं अपनी खुशी को व्यक्त नहीं कर पा रहा हूं |
आपने महत्वपूर्ण जानकारी दी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंjankari achhi hai
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी सलाह और जानकारी.
जवाब देंहटाएंयह जानकारी न केवल पुराने बल्कि उन नए लेखकों के लिए भी महत्वपूर्ण है,जिनके लिए अंतर्जाल का यह माध्यम एकदम नया है और वे इसे पा कर अति -उत्साही हो जाते हैं.
mam app net ki kahani par video banaati hi
हटाएंक्या google transliteration पर टाइप कर इमेल dwara भेजी गयी रचना स्वीकार्य होगी .कृपया उचित मार्ग दर्शन करें
जवाब देंहटाएंजी हाँ बिलकुल स्वीकार्य होगी. बस आप इतना ध्यान रखें कि टाइपिंग की गलतियां न हों, और जो बीच बीच में रोमन में छप जाता है उसे भी सुधार कर भेजें
हटाएंक्या google transliteration पर टाइप कर इमेल द्वारा भेजी गयी रचना स्वीकार्य होगी .कृपया उचित मार्गदर्शन करें .
जवाब देंहटाएंaapne tatha kathit sahityakaron ko achhi shiksha di hai
जवाब देंहटाएंasha hai log samajh badhayenge.
manoj 'aajiz'
hi
जवाब देंहटाएंRachanakar. blog per aakar bada achha laga.koti koti pranam.dhyan hai hindi ke rachanakar.aap internet ke madhyam se pure hindi samaj ka alakh jaga rahe hai.aapaka anuj-Brahmanand gupta.maghar
जवाब देंहटाएंरचनाकार द्वारा दी गई इस महत्वपूर्ण जानकारी ने मुझे कुछ लिखने के लिए प्रेरित किया हैं....जल्द ही कोई रचन भेजकर अपना योगदान देने की प्रबल अभिलषा हैं ..धन्यवाद
जवाब देंहटाएंरविशंकर जी, पिछले कुछ समय से मैं अपने ब्लॉग (http://itismypen.blogspot.in/)पर कवितायें लिख रहा हु। आपकी साइट देखकर अब रचनाकार मे अपनी रचनाएँ भेजने की इच्छा हो चली है। इसी उम्मीद के साथ कुछ अप्रकाशित रचनाएँ भेजने को उत्सुक हूँ।
जवाब देंहटाएं- सिद्धान्त
सिद्धांत जी,
हटाएंजी हाँ, जरूर भेजिए. स्वागत है.
रविशंकर जी, पिछले कुछ समय से अपने ब्लॉग (http://itismypen.blogspot.in/) पर कवितायें लिख रहा हूँ। आज आपकी साइट (www.rachanakar.org) देखकर आपको अपनी रचनाएँ भेजने की इच्छा हो चली है। इसी उम्मीद के साथ कुछ अप्रकाशित रचनाए भेजने को उत्सुक हूँ। कृपया मार्गदर्शन करें।
जवाब देंहटाएं-सिद्धान्त
रचनाएँ इस पते पर भेज दें -
हटाएंrachanakar@gmail.com
सादर,
रवि
great blog
जवाब देंहटाएंऊपर कई लोगों के विचार पड़े. शमा करें लेकिन कविताओं के पुन; प्रकशन के बारे में मेरी अपनी निजी राय थोड़ी अलग है.हर एक इ-पत्रिका के अपने अलग पाठक होते हैं और इन्टरनेट एक खुला प्लेटफार्म होने के बावजूद तब तक आपको या आपकी रचनाओं को कोई नहीं ढूढ़ेगा जब तक आप कोई Celebrity न हो.
जवाब देंहटाएंजितनी ज्यादा पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित होगी, वो उतने ज्यादा पाठकों तक पहुँचेगी इसमें को २ -राय नहीं हो सकती.
उदाहरण के तौर पर मेरी कई रचनाओं पर मुझे पाठकों की काफी अच्छी प्रतिक्रिया मिली है और सभी इन्टरनेट पर उप्लब्थ है मगर मुझे पूरा भरोसा है कि "रचनाकार" पर कई पाठक होगें जिन तक मेरी रचनाएँ अब तक नहीं पहुँची होगी.
अगर मैं इन नियमों की वजह से अपनी कवितायेँ रचनाकार पर नहीं पोस्ट कर पता हूँ तो मैं अच्छे पाठकों तक नहीं पहुँच पाउँगा और पाठक अच्छी कविताओं तक.
शमा करे ये मेरी अपनी निजी राय है, हो सकता है आप लोग इससे इत्तफाक न रखते हो ..
Dinesh Gupta
https://www.facebook.com/dineshguptadin
achchi salah di hai badhai ,maira sujhav hai ki blog par prakashit rachnaon ko svikriti kai uprant ek jagah netjal mai praashit kiya jave tb kahi adhik log padkar ek doosre se jud sakte hai
जवाब देंहटाएंआज रचनाकार से प्रथम परिचय हुआ ...थोडा अफ़सोस भी हो रहा है की इतनी देर बाद ..... कुछ दिन पहले अखबार से जानकारी मिली तब संपर्क किया ..वाकई अभिभूत हूँ ...बधाई ...
जवाब देंहटाएंरविशंकर जी... अच्छी जानकारी.. और इस से लेखक को प्रोत्साहन भी मिलता है... अगर एक लेखक कवि अपनी रचना को अपने ब्लॉग में पोस्ट करता है तो उसे उतनी संतुस्ती नहीं होती जितनी की वह अपनी रचना का मान अन्य जगह भी देखता है... आपका सहृदय धन्यवाद
जवाब देंहटाएंनैतिकता के नए मानदंड..........
जवाब देंहटाएंनैतिकता के नए प्रतिमान.........
जवाब देंहटाएंAAP KA MARGDARSHAN ATI AVASHYAK AVM ATI UPYOGI HAI. MAIN BHI APNI RACHNAAIN AAP KO BHEJNA CHAAHTA HUN ,KRIPYA BTAIN KYA AAP UNHEN UCHIT STHAN DENE KI KRIPA KAREN GE ? AAP KE UTTER KI PRATIKSHA MEIN . DHANYAWAD , ATAM PRAKASH .
जवाब देंहटाएंहिन्दी में अंतरजाल पर व्यावसायिक लेखन की संभावनाओं पर प्रकाश डालिए।
जवाब देंहटाएंरवि भाई एक बात बताएं कितने लोग ब्लॉग पड़ते हैं या इन्टरनेट से पठनीय सामग्री का प्रयोग करते हैं ,अगर किसी पत्रिका के माध्यम से हमारी बात ज्यादा दिलों तक पहुंचती है तो उसमें क्या दुविधा हो सकती है
जवाब देंहटाएंसब पत्रिकाएं अपने अपने क्षेत्र में ही ज्यादा बिकती हैं
कुछेक को छोड़ कर ..
इसलिए आपको अच्छी रचनाओं को मौका देना चाहिए चाहे कहीं भी छपी हो क्या फरक पड़ता है ,मेरा तो सुझाव मात्र है ,फैसला तो आपका है
सरिता जी,
जवाब देंहटाएंरचनाकार का प्राथमिक उद्देश्य है ऐसे रचनाकारों को प्लेटफ़ॉर्म प्रदान करना जो अपने स्वयं के ब्लॉग पर रचना प्रकाशित करने में अड़चनें महसूस करते हैं. - जैसे कि फ़ॉन्ट इत्यादि की समस्याएँ.
रहा सवाल अच्छी रचना का, तो अच्छी रचनाएँ तो पाताल से भी पाठक खींच लाने में समर्थ होती हैं. यकीन मानिए!
बहुत ही उत्तम प्लेटफ़ॉर्म लग रहा है ..........हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंis mahatvapoorna jankari keliye shukriya
जवाब देंहटाएंjankari keliye..........thanx
जवाब देंहटाएंsir ek br m 10 poems bhejna jruri h kya??
जवाब देंहटाएंplz rply....
jaankaari ke lie thanks..............
जवाब देंहटाएंjaankaari ke lie thanks...
जवाब देंहटाएंsir, many many thanks for the information............
जवाब देंहटाएंmany many thanks for the information....
जवाब देंहटाएंमें भी एक लेख देना चाहता हु
जवाब देंहटाएंक्या वह छपेगा मेरा लेख किसानो
से सम्बधित हे !
इस जानकारी के लिए धन्य्वाद
जवाब देंहटाएंjankari dene hetu dhanybad
जवाब देंहटाएंUPYOGI JAANKAARI KE LIYE DHANYAVAAD
जवाब देंहटाएंकाव्य पुस्तकों के रचनाकार में प्रकाशित होने की नियमावली पढ़ा. मैं इस नियमावली के अधीन ही अपनी रचनाएँ प्रकाशनार्थ भेजता हूँ. कोशिश करूँगा ई-मेल के जरिए अपनी काव्य पुस्तक को प्रकाशनार्थ भेजने की.
जवाब देंहटाएंजानकारी देने के लिए, धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंप्रिय बन्ध
जवाब देंहटाएंसस्नेह नमन।
रचनाकार का अवलोकन करके बड़ा ही अच्छा लगा।एक श्लाघ्य प्रयास है।मैं भी पूरी तैयारी कर लिया,कि कुछ दूँ आपको भी.किन्तु आपकी नियमावली देखा तो अपना खजाना खाली लगा । फिलहाल,जो भी था सब punyarkkriti,akulahat,sonbhadra को दे चुका हूँ।आगे कुछ नया होगातो आपसे भी अवश्य जुड़ना चाहूँगा।
धन्यवाद।
रविशंकरजी , रचनाओं के सन्दर्भ में इतनी विस्तृत और सटीक जानकारी हेतु आप सह्रदय आभार के पात्र हैं ..मेने यदा -कदा 'इ.प्रकाशन' के सन्दर्भ में इस तरह का मार्गदर्शन पूर्ववत नहीं देखा सहमति और असहमति द्वितीयक हैं किंतु आपने निःसंदेह मार्गदर्शक होने का अपना कर्तव्य पूर्ण निष्ठां से निभाया .आपका तात्पर्य रचनाओं को लेकर निःसंदेह अनुचित अतिव्रता को लेकर हैं ..किसी भी परामर्श से सभी इत्तेफाक रखे यह आवश्यक नहीं ..किन्तु परामर्श मिलता रहे ये बेहद महत्वपूर्ण और आवश्यक हैं ...
जवाब देंहटाएंशुभेच्छु
शोभा जैन
इंदौर
बहुत अच्छी जानकारी दिया .
जवाब देंहटाएंधन्यबाद
जयचन्द प्रजापति
रचनाकार से काफी जानकारी प्राप्त हुई और अच्छी रचनाएं और लेख भी उपलब्ध है.आप को बधाई देती हूं.धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंसुंदर सार्थक अनुपम आयोजन , हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंमैं अपनी सभी रचनाएें अपने ब्लॉग पर पोस्ट कर चुकी हूँ।। रचनाकार में भेजने के लिए खजाना खाली ही लग रहा है।
जवाब देंहटाएंआदरणीय संपादक महोदय,
जवाब देंहटाएंमै नवनीता कुमारी, मैने आपको अपनी कविता
बाते आपको भेजी है अगर आपको सही लगा तो कपया मुझे सूचित करने का कषट करे ताकी मै अपनी और रचनाए भेज सकू
Sampadak mahoday ko Mera savinay pranam.yah mahatvapurn jaankari dene ke liye dhanyavaad .Mai bhi apna rachnaye prakashit karna chahta hun Jo hamari rachna betiyon ke sandarbh me hoga
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