कहानी सीपो! सीपो!! हरि भटनागर दो गध्ो थे। एक गध्ो के मालिक ने अपने गध्ो का नाम मरघिल्ला रखा था जबकि दूसरे के मालिक ने शेर बब्बर! शेर...
कहानी
दो गध्ो थे। एक गध्ो के मालिक ने अपने गध्ो का नाम मरघिल्ला रखा था जबकि दूसरे के मालिक ने शेर बब्बर! शेर बब्बर शेर बब्बर की तरह चुस्त-दुरुस्त और तगड़ा था। मरघिल्ला अपने नाम को रोशन कर रहा था। खाने में वह शेर था, काम में लेंडू। शेर बब्बर शेर बब्बर की तरह खाता था, लेकिन शेर बब्बर की तरह सोता नहीं था, बल्कि बैल की तरह काम करता था।
दरअसल दोनों सगे भाई थे। होते ही दोनों बिक गए थे। शायर अली के पल्ले शेर बब्बर पड़ा और गिज्जू के मत्थे मरघिल्ला। दोनों का नामकरण दोनों धोबियों ने आचरण के मुताबिक़ किया था। दोनों अपने-अपने सम्बोधनों को समझते थे।
ख़्ौर, गधा शेर बब्बर हो या मरघिल्ला, काम तो उसे करना ही था। सो दोनों करते थे। शेर बब्बर बिना लात-गाली के करता था। मरघिल्ला बिना लात-गाली के हिलता न था।
शायर अली अपने गध्ो को खुल्ला छोड़कर रखता था। वह कहता कि गध्ो कोई बैल-गोरू तो हैं नहीं कि खूँटे से लगा दो। गध्ो जब तक चार जगह की घास-फूस और काग़ज़-पत्ती नहीं खाएँगे, गध्ो नहीं कहलाएँगे। गिज्जू का विचार अलहदा था। वह ग़ुस्सैल मिज़ाज था, मुमकिन है, इसीलिए वह गध्ो को बाँधकर रखता और बची-खुची चोकर और घास खिलाता। ज़रा भी मरघिल्ला चीं-चपड़ करता कि उसका दिमाग़ घूम जाता। फिर वह उसकी ऐसी धुनाई करता जैसे धुनिया रूई की करता है।
रोज़ सबेरे दोनों को लादी लेकर घाट पर जाना पड़ता। शेर बब्बर की पीठ पर जितनी लादियाँ लाद दो, वह ज़रा भी नहीं मिनकता, उल्टे उत्साहित हो जाता। मरघिल्ला लादी देखकर रो पड़ता। फिर जैसा कि कहा है, उसकी अच्छी खासी खातिरदारी होती। उसके बाद, वह डुगर-डुगर चलता हुआ सीध्ो घाट पर पहुँचता। शेर बब्बर काफ़ी पहले पहुँच जाता। उसकी यह खासियत थी कि उसने कभी रास्ते में लादी नहीं पटकी। अगर कभी लादी गिर भी जाती तो वह वहीं खड़ा रहता, जब तक शायर अली आ नहीं जाता। मरघिल्ला इसके उलट था। वह आगे बढ़ता जाता, फटती तो परवाह न करता।
मरघिल्ले और शेर बब्बर में खासी दोस्ती थी। दोनों कहीं मिल जाते तो एक-दूसरे के दुःख-दर्द पर आँखें गीली करते। एक-दूसरे की खुजली मिटाते और फिर मिलने की कहकर आगे बढ़ जाते।
मरघिल्ला अपने साथ होने वाले सुलूक से दुखी था। एक दिन, लादी घाट पर पहुँचाने के बाद, शेर बब्बर की खुजली मिटाते वक़्त उसने कहा कि मैं अपनी ज़िन्दगी से तंग आ गया हूँ, मर जाना चाहता हूँ!
शेर बब्बर ने उसकी पीठ पर दाँत रगड़ते हुए कहा कि आज सबेरे कसके पीटे गए हो, इसीलिए!
- नहीं! मरघिल्ले ने कहा - दरअसल खूँटा मेरा सबसे बड़ा दुख हो गया है! मैं कहीं घूम-फिर नहीं पाता, इधर-उधर की घास-पाती भी नहीं सूंघ पाता। हमारा भी दिल है कि नहीं।
मरघिल्ले ने उसाँस ली। शेर बब्बर को अपनी पीठ पर उसकी गर्मी का एहसास हुआ। वह रंज में डूब गया। बोला - हम गधों का नसीब ही खोटा है, क्या करें! माँ हमें जनम देते सिधार गई। बाप सीध्ो मुँह बात नहीं करता, दूर से दुलत्ती झाड़ता है। जिनके गुलाम हैं, वे अलग पैना किए रहते हैं।
- लेकिन, मरघिल्ले ने कहा- तुम तो खुश हो, तुम्हें तो शायर अली कभी मारता भी नहीं। ऐश से घूमते हो, सीपों, सीपों करते हो, गध्ौया का मज़ा भी लूट लेते हो! मैं आभागा खूँटे से सिर पीटता रहता हूँ।
नदी में छपाक की आवाज़ उठी। दोनों ने देखा - पुल के पास, नाव पर सावर मल्लाहों ने मछलियों को फँसाले के लिए ज़ोरों की आवाज़ के साथ जाल फेंका था।
मरघिल्ले ने पूछा - तुम कभी घाट के उस तरफ़ गये हो, नदी पार करके?
शेर बब्बर हँसा- हाँ, कई बार! वह जो कुँआ दीख रहा है, नदी के उस पार, ऐसा खड़ा है जैसे इसी तरह बनाया गया हो, बाँस भर ऊँचा। वहाँ मैं कई बार गया हूँ, बीच नदी से होकर। क्यों? क्यों पूछ रहे हो ऐसा?
- ऐसे ही। गिज्जू कह रहा था जब अंग्रेज थे तो हिन्दुस्तानियों को सज़ा के लिए इसी कुँए में डाल देते थे।
यकायक वह बात पलटकर बोला- अच्छा ये बताओ- तुम्हें क्या लगता है, अंगे्रज चले गए?
- हाँ, अंग्रेज कहाँ रहे, अब तो हिन्दुस्तानियों का राज है।
- अपने लिए हिन्दुस्तानी और अँग्रेज़ दोनों एक हैं। दोनों हम पर शासन करते हैं। फिर राज तो उनके लिए होता है जो इंसान होते हैं। हम तो जानवर हैं। इंसान तो कभी आज़ाद भी हो जाता है लेकिन जानवर कभी आज़ाद नहीं होता। वह तो आदमी के हाथों कटने के लिए होता है!!! ख़्ौर छोड़ो! मरघिल्ला बोला- तुम हर जगह घूमते-फिरते हो, मुझे कोई ऐसा रास्ता सुझाओ कि मैं भी तुम्हारी तरह ऐश करूँ।
शेर बब्बर सोच में डूब गया। यकायक मुस्कुराकर बोला- एक रास्ता है, तुम अख्तियार करोगे तो जंजाल से छूट जाओगे, ज़िन्दगी ऐश में बीतेगी।
मरघिलले ने खुश होकर पूछा, हालाँकि वह अंदर ही अंदर दुखी था- वह कौन-सा रास्ता है?
शेर बब्बर ने कहा - उस रास्ते पर चलोगे तो समझ लो ...
- बोल तो सही, बस बके जाएगा, बताएगा नहीं।
शेर बब्बर संजीदा हो गया- तुम उस पर अमल करोगे- विश्वास नहीं होता।
- अमल करूँगा, चाहे जान चली जाए। इससे बड़ी बात तो कह नहीं सकता।
इस बीच एक मल्लाह ज़ोरों से चिल्लाया- जाल खींचो!
दोनों गधों ने देखा- जाल खींचा जा रहा था, छोटी-बड़ी मछलियाँ जाल में तड़प रही थीं।
शेर बब्बर ने कहा- सोच लो, ऐसा न हो, इन मछलियों की तरह तुम तड़पो और हमें ताना मारो। फिर मैं कहीं का न रहूँगा।
- नहीं बे! जान भी जाने पर मैं तेरा नाम मुँह पर नहीं लाऊँगा। यह समझ ले।
- तो ऐसा कर। शेर बब्बर ने कहा- तू तो हर वक़्त खूँटे से बँधा रहता है, रात में जब गिज्जू तुझे चोकर-रोटी डाले, झुके तो बस मुँह पर दुलत्ती जमा दे! सारी हेकड़ी भूल जाएगा। फिर आगे से कभी मारेगा नहीं।
- -
मरघिल्ले का होश उड़ गया। बोला- क्या कह रहे हो खां! ऐसा करने पर तो वह मुझे जिंदा ज़मीन में गाड़ देगा।
- कुछ नहीं कर पाएगा। सबर करेगा, सोचेगा, जानवर है कभी नाराज़ भी होता है, समझ गए? बस, तू अब मेरे कहे रास्ते पर चल!
- मगर यार! यह तो बड़ा कठिन रास्ता है।
- कठिन तो है, डरो तो अपनी जान को रोते रहो, काहे मुझसे रोना रोते हो? - शेर बब्बर तनिक गर्म होकर बोला।
- तू गुस्सा क्यों कर रहा है?
- क्यों न गुस्साऊँ? तू बात ही ऐसी कर रहा है।
- अच्छा ठीक है, मैं करूँगा। देख लेना।
शेर बब्बर ने आँखों में आँखें डालकर यकायक कहा- देखो, मुश्किलें तो आएँगी, संभव है, तुम्हारी पिटाई हो, लेकिन एक दिन तुम जीतोगे। मेरा विश्वास है।
मरघिल्ला सोच में डूब गया- ऐसा!
- हाँ, ऐसा! शेर बब्बर आगे बढ़ गया।
उस दिन, शाम को सूखे कपड़े का बण्डल जब गिज्जू ने मरघिल्ले की पीठ से उतारा, तो मरघिल्ला सोच रहा था कि अगर मैं शेर बब्बर की बात मानूं तो यह शख़्स चमड़ी खींच लेगा। खाने को अलग नहीं देगा। मरन हो जाएगी- यह सोचते ही वह रंज में डूब गया। लगा, उसकी पीठ पर लट्ठ बरस रहे हैं। वह गिर पड़ा है।
गिज्जू की बेटी रनिया उसे खूँटे से बाँधकर उसके लिए चोकर ले आई और अपने हाथों से खिलाने लगी।
मरघिल्ला रुआँसा हो आया- बताओ, इसके बाप को मारूँगा तो इसका कितना दिल दुखेगा। मुझे प्यार करने वाली सिरफ यही एक लड़की है, इसका दिल कैसे तोडूँ?
साँझ घिर रही थी। सूरज की लालिमा धीरे-धीरे काले धब्बों में तब्दील हो रही थी। पंछी अपने-अपने ठीहों पर चुप बैठ गए थे। घरों से लहरदार धुँआ उठना शुरू हो गया था। मरघिल्ले ने आज पहली बार प्रकृति का यह रूप देखा और खुश हो आया। सोचने लगा, आज पहली बार उसने यह बस कुछ देखा- कितना सुन्दर है! उसने गहरी साँस छोड़ी।
अचानक गिज्जू अपने मज़बूत हाथों में खाट टाँगकर, बाहर आया। खाट ज़मीन पर पटकी और उस पर अल्ला का नाम लेकर लेट गया। सिर पर वह सफे़द कटोरे जितनी गोल टोपी पहने था। सिर के नीचे उसने कुहनी रख ली। एड़ी में शायद खुजली मच रही थी, इसलिए अदवान से रगड़ने लगा। थोड़ी देर तक वह आँखें मींचे पड़ा रहा कि उसकी घरवाली उसके लिए मौनी में चबेना लेकर आई।
- लो पानी पी लो, तब तक खाब तैयार हो जाएगा।
गिज्जू अल्ला का नाम लेकर उठ बैठा। खरैरी खाट पर पालथी मारकर वह चबैना खाने लगा। बीच-बीच में दाँतों के बीच मिर्च काटता और पाटी पर रखा नमक उँगलियों से जीभ पर छुआता जाता। जब खा चुका तो बचा हुआ चबेना उसने मरघिल्ले की तरफ़ बढ़ा दिया जो उसकी तरफ़ देखते हुए कुछ सोच रहा था।
- ले खा ले! गिज्जू ने मरघिल्ले से कहा। फिर अपनी घरवाली को हाँक लगाई कि मरघिल्ले को पानी तो दे दो। साला मेरा मुँह ताक रहा है। यह कहकर गिज्जू ने मुँह खोला। लोटा दूर करके मुँह में पानी डाला और डकार लेकर लेट गया। आँखें मींच लीं। पैर पर पैर चढ़ा लिए।
उसकी घरवाली बाल्टी में पानी लाई, चबेना वैसा ही पड़ा देखकर बोली- चबेना तो खाया नहीं, पानी क्या पिएगा। कहीं...
गिज्जू ने घबराकर आँखें खोलीं- नहीं लू-शू क्या लेगेगी इसे।
- अगर लग गई तो मुश्किल पड़ जाएगी- कौन करेगा इत्ता काम।
गिज्जू ने यकायक उठकर उसकी पीठ पर हाथ फेरा, हँसकर कहा- डील तो ठण्डी है। ऐसई नहीं खा रहा होगा। वह उसके बदन पर हाथ फेरने लगा।
मरघिल्ले को फुरेरी-सी हुई। सोचने लगा, देखो, प्यार जतला रहा है, मारते वक़्त सब प्यार भूल जाता है।
मरघिल्ले ने न चबेना खाया और न ही पानी पिया। यहाँ तक कि रात में जब रोटी और चोकर दी गई तो उसने उनकी तरफ़ से मुँह फेर लिया। वह उध्ोड़-बुन में था। शेर बब्बर की सलाह को अमल में लाए या नहीं।
आधी रात को जब दुधिया चाँद सिर पर था, गिज्जू अपनी खाट पर लेटा, अपनी घरवाली को प्यार कर रहा था और इसी तरह का माहौल चारों तरफ़ गर्म था- मरघिल्ले ने सोचा कि काश! वह भी कभी प्यार करने को पाता।
- अबकी मरघिल्ले को मेले में बेच दो। गिज्जू की घरवाली की थोड़ी देर बाद आवाज़ आई- यह बहुत शरीर हो रहा है, निकाल दो इसे! वह आदत के मुताबिक़ भुन-भुन करने लगी।
- ठीक है भाई, बेच दूँगा। मगर अच्छा गधा मुफत में तो आता नहीं।
- तो क्या इसे मुफत में लाए थे!
- मुफत में नहीं लाए थे, लेकिन यह समझ लो गध्ो सभी एक से होते हैं- गिज्जू बोला- नया लाओगी तो वह भी हरामीपन करेगा। इसका मतलब ये नहीं कि मैं मरघिल्ले की तरफ़दारी कर रहा हूँ।
गिज्जू की घरवाली ने अफ़सोस में सिर पीटा। चूड़ियाँ बजीं- मैं तो इससे आज़िज आ गई। न बिके तो हलाल कर दो! आज इतने कपड़े फाड़े कि मेरा कलेजा फट गया इससे।
- यह तो होता रहता है- गिज्जू बोला- इसमें ज़रा अकल होती तो क्यों फाड़ता!
- अकल-वकल सब है, जानबूझकर कमीनापन करता है। खुद क्यों नहीं कूप-खाई में कूद जाता। गहकियों के कपड़े ही बचे थे फाड़ने के लिए! मैं तो इस नाकिस से हार गई ...
- अच्छा छोड़ रोना ...
- तू हमेशा यह कहकर बात आई-गई कर देता है।
- तो क्या करूँ? मार के परान तो निकाल लिए अब क्या चाहती है ...
- जो चाहती हूँ, करेगा ...
आगे की बात ने मरघिल्ले को हिलाकर रख दिया। वह नाहक अच्छा सोचता है। यकायक वह गुस्से में भर उठा। काश! इस वक़्त यह धोबिन सामने आ जाती तो इसका भेजा उड़ा देता।
मगर धोबिन इस वक़्त कहाँ से सामने आने वाली थी। इसके लिए उसे इंतज़ार करना पड़ेगा। आज का नहीं, कल का। कल वह किसी न किसी को निपटा देगा जो होगा देखा जाएगा।
दूसरे दिन शाम को गिज्जू ने जब मरघिल्ले के आगे चोकर डाली और खड़े होने को हुआ कि मरघिल्ले का दिमाग़ यकायक घूम गया। सबेरे-सबेरे कसकर पिटने का अलग गुस्सा था। गिज्जू की घरवाली ने कल के कपड़े फटने का गुस्सा आज भी उतारा था। उसके बदन में बिजली-सी दौड़ी और उसने उसी रौ में अगले पैरों पर खड़े होकर ऐसी दुलत्ती चलाई कि मत पूछो। कोई धप्प से गिरा और एक कराह उसके कानों में गूंजी। लेकिन यह क्या? उसे तो लग रहा था कि उसका वार खाली चला गया, गिज्जू पीछे हट गया, अपने को बचा ले गया, क्योंकि लत्ती में रत्ती भर किसी के टकराने का एहसास भी न था। जब नीचे देखा तो आँखें फैली की फैली रह गईं।
गिज्जू ज़मीन पर चित्त पड़ा था। उसके मुँह से खून की धार बह रही थी। अपनी घरवाली को वह ज़ोरों से आवाज़ जगाता छाती पीटता अल्ला-अल्ला की पुकार लगा रहा था। उसके सामने के, ऊपर-नीचे के दाँत ग़ायब हो गए थे।
गिज्जू की घरवाली ने गिज्जू को इस रूप में देखा तो सन्न रह गई। मरघिल्ले ने लत्ती चलाई? विश्वास नहीं हो रहा था। यकायक ज़ोरों से रोती हुई वह गिज्जू से लिपट गई लेकिन तुरंत उठ बैठी। उसके बदन में क्रोध छिटकने की वजह से खिंचाव आ गया था। उसी में बहते हुए उसने कोने में रखा लट्ठ उठाया और इस कदर हन-हन कर चलाया, काफ़ी देर तक कि मरघिल्ले को लगा कि बदन का सारा खून निकल गया है, जोड़-जोड़ अलग हो रहे हैं ...
उसकी आँखों के आगे अँध्ोरा छाने लगा और वह अचेत होकर गिर पड़ा।
दो-चार रोज़ ग़मी में गुज़रे। गिज्जू की मरहम-पटटी हुई, वह कुछ-कुछ ठीक हुआ। मरघिल्ले की भी दवा की गई। चोट पर आमाहल्दी और रेड़ी के पत्ते बाँध्ो गए, वह भी कुछ-कुछ ठीक हुआ।
आने वाले दिनों में गिज्जू तो किसी तरह ठीक हो गया लेकिन मरघिल्ला टूट गया था। उससे चला नहीं जाता था। घाव पुर नहीं रहे थे। सोचता, नाहक दुलत्ती चलाई और ज़हमत मोल ली, जैसा चल रहा था, चलने देता।
उसे शेर बब्बर पर गुस्सा आता जिसने उसे कहीं का न रखा। फिर वह सोचता, शेर बब्बर ने तो उसके भले के लिए सलाह दी थी, उसका असर उल्टा हुआ तो वह कसूरवार थोड़े ही है!
एक रोज़ जब उसके पाँव का ज़ख़्म थोड़ा ठीक हुआ, वह लंगड़ाते हुए लादी ले जा रहा था, सामने से शेर बब्बर आता दिखा।
पास आकर शेर बब्बर ने उसके घावों पर गहरी साँस छोड़ी।
मरघिल्ले की आँखों से आँसू चू पड़े।
- तुम दिल छोटा न करो। जान तो वैसे भी निकलेगी- अगर अपने हक की ख़ातिर लड़कर निकले तो उसका मज़ा ही कुछ और है! - शेर बब्बर ने ढाँढस बँधाते हुए कहा- तुम बहादुर हो। शायर अली के घर कई दिनों से तुम्हारी ही चर्चा गर्म है। यकायक वह संजीदा हो गया। उसके घावों पर गहरी साँसें छोड़ीं और जलती आँखों से बोला- तुम्हारे विरोध से तकलीफ तो तुम्हें हुई लेकिन इससे तुम्हारा रास्ता खुल गया। तुम जंजाल से बच गए।
- जंजाल से गच गया। मरघिल्ले ने तड़पकर गुस्से में कहा- कचूमर निकलने को जंजाल से बचना कहते हो तो हाथ जोड़ता हूँ।
शेर बब्बर बोला - कपड़े पर रंग तुरंत नहीं चढ़ता, धूप में डाला जाता है तो चढ़ता है।
- मतलब मैं ऐसी अग्नि-परीक्षाओं से गुज़रता रहूँ तो चोखा हो जाऊँगा।
- नहीं! अब तुम जल्द ईज़ा से निज़ात पाओगे। कुछ दिन की बात और है। शेर बब्बर ने क्रोध में गहरी सांस छोड़ी और कहा - देखते आओ। अब तुम पर कोई हाथ नहीं उठाएगा।
मरघिल्ले के चोट खाये बदन पर खुशी की लहर दौड़ गई। शेर बब्बर की दलीलों में उसे कुछ सार दिखा। कातर दृष्टि से देखता वह आगे बढ़ गया। उसे लग रहा था कि बुरे दिन अब खत्म होने वाले हैं। लेकिन दुर्भाग्य था कि दिन पर दिन गुज़रते जा रहे थे, निज़ात का दिन क़रीब आता नहीं लग रहा था। उल्टे आफतें बढ़ती जा रही थीं। अब उसे पूरा घर मारता-पीटता-यहाँ तक कि वह प्यारी रनिया भी उसे लात दिखाती।
एक दिन उसने शेर बब्बर को दाँतों से पकड़ा और कहा कि तुम मुझे सता क्यों रहे हो? क्यों सब्ज बाग़ दिखा रहे हो और यक़ीन दिलाते हो कि बस अब जुल्म खत्म हुए जबकि जुल्म मुझ पर बढ़ते ही जा रहे हैं लगातार। मैंने किस मुग़ालते में तुमसे सलाह ली ... कहकर मरघिल्ला यकायक रो पड़ा- मेरे तो शरीर की चूलें हिल गईं- दर्द ऐसा होता है कि मत पूछो।
शेर बब्बर दुखी स्वर में, उसकी गरदन दाँतों से सहलाता बोला- मेरा वह फार्मूला जरूर फेल हुआ लेकिन यह फार्मूला अचूक है, अगर फेल हो जाए तो तुम मेरी जान ले लेना। आखिर तुम मेरे सगे भाई हो। चूक तो सभी से होती है, फिर मैं भला क्या हूँ, गधा ही तो हूँ। यक़ीन कर मुझ पर।
यह कहकर उसने मरघिल्ले को वह मंत्र दिया जिसे मरघिल्ला आज रात को आजमाएगा।
अंध्ोरी रात थी। सभी धोबी अपनी-अपनी खाटों और ठेलों पर पहली नींद में ग़ाफिल थे कि मरघिल्ला हुलास से भर उठा। वह मंत्र के अमल के इंतज़ार में था। अब उससे ज़्यादा इंतज़ार नहीं हो पा रहा था। वह ज़ोर-ज़ोर से पैर पटकने और गरदन हिलाने लगा।
जब जामुन के पेड़ में छिपा उल्लू रोज़ की तरह बोला, मरघिल्ला समझा कि शेर बब्बर ने ‘हूँ' की आवाज़ करके उसके पीछे से गोली दागने का ऐलान किया। बस, उसकी आँखें चमक उठीं। और वह ज़ोरों से सीपो! सीपो! करने लगा।
रात में सीपो की आवाज़ कुँए में गूँजने जैसी लग रही थी।
गिज्जू ने यकायक जगकर उसे ज़ोर से डाँटा तो वह और ज़ोरों से सीपो-सीपो करने लगा।
गिज्जू खाट से उठ बैठा। जम्हाई लेने लगा। उसकी घरवाली भी उठ बैठी।
गिज्जू ने दाँत पीसते हुए कहा- डंडा तो ला। अभी रास्ते पर ला देता हूँ।
डण्डे के नाम पर मरघिल्ला यकायक चुप हो गया। गिज्जू उसकी ओर देखता, पाटी से डंडा लिटा, लेट गया। उसकी घरवाली भी लेट गई। दोनों उसको देखते रहे।
जैसे ही दोनों के खर्राटे बजे, मरघिल्ला फिर ज़ोरों से सीपो-सीपो करने लगा।
गिज्जू की घरवाली ने कहा- लगता है, मरघिल्ला गरमा गया है।
गिज्जू तिड़ककर बोला- तो उसके लिए गधी कहाँ से लाऊँ?
- नुक्कड़ पर बाँध दो। उसकी घरवाली ने सलाह दी।
- वहाँ भी वही हरामीपन करेगा- गिज्जू ने आँखें निकालीं- नुक्कड़ का बनिया हमें छोड़ेगा। अपना गधा किसके घर के आगे बाँध्ों?
इन दोनों की बातचीत के दौरान मरघिल्ला यकायक फिर चुप हो गया और तब तक चुप रहा जब तक दोनों सो नहीं गए। वह उसी हुलास में था। सीपो सीपो करने लगा। अबकी उसने ज़िद ठान ली, चुप न होने की। चाहे कितना मारो, पीटो वह चुप नहीं होगा।
और वास्तव में हुआ यही, वह बेतरह पिटा, लेकिन उसने मुँह बंद न किया। गला फाड़कर वह सीपो सीपो करता रहा।
अंत में दोनों ने हारकर, गाली देते हुए उसे खुल्ला छोड़ दिया।
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सीपो! सीपो!!
हरि भटनागर
दो गध्ो थे। एक गध्ो के मालिक ने अपने गध्ो का नाम मरघिल्ला रखा था जबकि दूसरे के मालिक ने शेर बब्बर! शेर बब्बर शेर बब्बर की तरह चुस्त-दुरुस्त और तगड़ा था। मरघिल्ला अपने नाम को रोशन कर रहा था। खाने में वह शेर था, काम में लेंडू। शेर बब्बर शेर बब्बर की तरह खाता था, लेकिन शेर बब्बर की तरह सोता नहीं था, बल्कि बैल की तरह काम करता था।
दरअसल दोनों सगे भाई थे। होते ही दोनों बिक गए थे। शायर अली के पल्ले शेर बब्बर पड़ा और गिज्जू के मत्थे मरघिल्ला। दोनों का नामकरण दोनों धोबियों ने आचरण के मुताबिक़ किया था। दोनों अपने-अपने सम्बोधनों को समझते थे।
ख़्ौर, गधा शेर बब्बर हो या मरघिल्ला, काम तो उसे करना ही था। सो दोनों करते थे। शेर बब्बर बिना लात-गाली के करता था। मरघिल्ला बिना लात-गाली के हिलता न था।
शायर अली अपने गध्ो को खुल्ला छोड़कर रखता था। वह कहता कि गध्ो कोई बैल-गोरू तो हैं नहीं कि खूँटे से लगा दो। गध्ो जब तक चार जगह की घास-फूस और काग़ज़-पत्ती नहीं खाएँगे, गध्ो नहीं कहलाएँगे। गिज्जू का विचार अलहदा था। वह ग़ुस्सैल मिज़ाज था, मुमकिन है, इसीलिए वह गध्ो को बाँधकर रखता और बची-खुची चोकर और घास खिलाता। ज़रा भी मरघिल्ला चीं-चपड़ करता कि उसका दिमाग़ घूम जाता। फिर वह उसकी ऐसी धुनाई करता जैसे धुनिया रूई की करता है।
रोज़ सबेरे दोनों को लादी लेकर घाट पर जाना पड़ता। शेर बब्बर की पीठ पर जितनी लादियाँ लाद दो, वह ज़रा भी नहीं मिनकता, उल्टे उत्साहित हो जाता। मरघिल्ला लादी देखकर रो पड़ता। फिर जैसा कि कहा है, उसकी अच्छी खासी खातिरदारी होती। उसके बाद, वह डुगर-डुगर चलता हुआ सीध्ो घाट पर पहुँचता। शेर बब्बर काफ़ी पहले पहुँच जाता। उसकी यह खासियत थी कि उसने कभी रास्ते में लादी नहीं पटकी। अगर कभी लादी गिर भी जाती तो वह वहीं खड़ा रहता, जब तक शायर अली आ नहीं जाता। मरघिल्ला इसके उलट था। वह आगे बढ़ता जाता, फटती तो परवाह न करता।
मरघिल्ले और शेर बब्बर में खासी दोस्ती थी। दोनों कहीं मिल जाते तो एक-दूसरे के दुःख-दर्द पर आँखें गीली करते। एक-दूसरे की खुजली मिटाते और फिर मिलने की कहकर आगे बढ़ जाते।
मरघिल्ला अपने साथ होने वाले सुलूक से दुखी था। एक दिन, लादी घाट पर पहुँचाने के बाद, शेर बब्बर की खुजली मिटाते वक़्त उसने कहा कि मैं अपनी ज़िन्दगी से तंग आ गया हूँ, मर जाना चाहता हूँ!
शेर बब्बर ने उसकी पीठ पर दाँत रगड़ते हुए कहा कि आज सबेरे कसके पीटे गए हो, इसीलिए!
- नहीं! मरघिल्ले ने कहा - दरअसल खूँटा मेरा सबसे बड़ा दुख हो गया है! मैं कहीं घूम-फिर नहीं पाता, इधर-उधर की घास-पाती भी नहीं सूंघ पाता। हमारा भी दिल है कि नहीं।
मरघिल्ले ने उसाँस ली। शेर बब्बर को अपनी पीठ पर उसकी गर्मी का एहसास हुआ। वह रंज में डूब गया। बोला - हम गधों का नसीब ही खोटा है, क्या करें! माँ हमें जनम देते सिधार गई। बाप सीध्ो मुँह बात नहीं करता, दूर से दुलत्ती झाड़ता है। जिनके गुलाम हैं, वे अलग पैना किए रहते हैं।
- लेकिन, मरघिल्ले ने कहा- तुम तो खुश हो, तुम्हें तो शायर अली कभी मारता भी नहीं। ऐश से घूमते हो, सीपों, सीपों करते हो, गध्ौया का मज़ा भी लूट लेते हो! मैं आभागा खूँटे से सिर पीटता रहता हूँ।
नदी में छपाक की आवाज़ उठी। दोनों ने देखा - पुल के पास, नाव पर सावर मल्लाहों ने मछलियों को फँसाले के लिए ज़ोरों की आवाज़ के साथ जाल फेंका था।
मरघिल्ले ने पूछा - तुम कभी घाट के उस तरफ़ गये हो, नदी पार करके?
शेर बब्बर हँसा- हाँ, कई बार! वह जो कुँआ दीख रहा है, नदी के उस पार, ऐसा खड़ा है जैसे इसी तरह बनाया गया हो, बाँस भर ऊँचा। वहाँ मैं कई बार गया हूँ, बीच नदी से होकर। क्यों? क्यों पूछ रहे हो ऐसा?
- ऐसे ही। गिज्जू कह रहा था जब अंग्रेज थे तो हिन्दुस्तानियों को सज़ा के लिए इसी कुँए में डाल देते थे।
यकायक वह बात पलटकर बोला- अच्छा ये बताओ- तुम्हें क्या लगता है, अंगे्रज चले गए?
- हाँ, अंग्रेज कहाँ रहे, अब तो हिन्दुस्तानियों का राज है।
- अपने लिए हिन्दुस्तानी और अँग्रेज़ दोनों एक हैं। दोनों हम पर शासन करते हैं। फिर राज तो उनके लिए होता है जो इंसान होते हैं। हम तो जानवर हैं। इंसान तो कभी आज़ाद भी हो जाता है लेकिन जानवर कभी आज़ाद नहीं होता। वह तो आदमी के हाथों कटने के लिए होता है!!! ख़्ौर छोड़ो! मरघिल्ला बोला- तुम हर जगह घूमते-फिरते हो, मुझे कोई ऐसा रास्ता सुझाओ कि मैं भी तुम्हारी तरह ऐश करूँ।
शेर बब्बर सोच में डूब गया। यकायक मुस्कुराकर बोला- एक रास्ता है, तुम अख्तियार करोगे तो जंजाल से छूट जाओगे, ज़िन्दगी ऐश में बीतेगी।
मरघिलले ने खुश होकर पूछा, हालाँकि वह अंदर ही अंदर दुखी था- वह कौन-सा रास्ता है?
शेर बब्बर ने कहा - उस रास्ते पर चलोगे तो समझ लो ...
- बोल तो सही, बस बके जाएगा, बताएगा नहीं।
शेर बब्बर संजीदा हो गया- तुम उस पर अमल करोगे- विश्वास नहीं होता।
- अमल करूँगा, चाहे जान चली जाए। इससे बड़ी बात तो कह नहीं सकता।
इस बीच एक मल्लाह ज़ोरों से चिल्लाया- जाल खींचो!
दोनों गधों ने देखा- जाल खींचा जा रहा था, छोटी-बड़ी मछलियाँ जाल में तड़प रही थीं।
शेर बब्बर ने कहा- सोच लो, ऐसा न हो, इन मछलियों की तरह तुम तड़पो और हमें ताना मारो। फिर मैं कहीं का न रहूँगा।
- नहीं बे! जान भी जाने पर मैं तेरा नाम मुँह पर नहीं लाऊँगा। यह समझ ले।
- तो ऐसा कर। शेर बब्बर ने कहा- तू तो हर वक़्त खूँटे से बँधा रहता है, रात में जब गिज्जू तुझे चोकर-रोटी डाले, झुके तो बस मुँह पर दुलत्ती जमा दे! सारी हेकड़ी भूल जाएगा। फिर आगे से कभी मारेगा नहीं।
- -
मरघिल्ले का होश उड़ गया। बोला- क्या कह रहे हो खां! ऐसा करने पर तो वह मुझे जिंदा ज़मीन में गाड़ देगा।
- कुछ नहीं कर पाएगा। सबर करेगा, सोचेगा, जानवर है कभी नाराज़ भी होता है, समझ गए? बस, तू अब मेरे कहे रास्ते पर चल!
- मगर यार! यह तो बड़ा कठिन रास्ता है।
- कठिन तो है, डरो तो अपनी जान को रोते रहो, काहे मुझसे रोना रोते हो? - शेर बब्बर तनिक गर्म होकर बोला।
- तू गुस्सा क्यों कर रहा है?
- क्यों न गुस्साऊँ? तू बात ही ऐसी कर रहा है।
- अच्छा ठीक है, मैं करूँगा। देख लेना।
शेर बब्बर ने आँखों में आँखें डालकर यकायक कहा- देखो, मुश्किलें तो आएँगी, संभव है, तुम्हारी पिटाई हो, लेकिन एक दिन तुम जीतोगे। मेरा विश्वास है।
मरघिल्ला सोच में डूब गया- ऐसा!
- हाँ, ऐसा! शेर बब्बर आगे बढ़ गया।
उस दिन, शाम को सूखे कपड़े का बण्डल जब गिज्जू ने मरघिल्ले की पीठ से उतारा, तो मरघिल्ला सोच रहा था कि अगर मैं शेर बब्बर की बात मानूं तो यह शख़्स चमड़ी खींच लेगा। खाने को अलग नहीं देगा। मरन हो जाएगी- यह सोचते ही वह रंज में डूब गया। लगा, उसकी पीठ पर लट्ठ बरस रहे हैं। वह गिर पड़ा है।
गिज्जू की बेटी रनिया उसे खूँटे से बाँधकर उसके लिए चोकर ले आई और अपने हाथों से खिलाने लगी।
मरघिल्ला रुआँसा हो आया- बताओ, इसके बाप को मारूँगा तो इसका कितना दिल दुखेगा। मुझे प्यार करने वाली सिरफ यही एक लड़की है, इसका दिल कैसे तोडूँ?
साँझ घिर रही थी। सूरज की लालिमा धीरे-धीरे काले धब्बों में तब्दील हो रही थी। पंछी अपने-अपने ठीहों पर चुप बैठ गए थे। घरों से लहरदार धुँआ उठना शुरू हो गया था। मरघिल्ले ने आज पहली बार प्रकृति का यह रूप देखा और खुश हो आया। सोचने लगा, आज पहली बार उसने यह बस कुछ देखा- कितना सुन्दर है! उसने गहरी साँस छोड़ी।
अचानक गिज्जू अपने मज़बूत हाथों में खाट टाँगकर, बाहर आया। खाट ज़मीन पर पटकी और उस पर अल्ला का नाम लेकर लेट गया। सिर पर वह सफे़द कटोरे जितनी गोल टोपी पहने था। सिर के नीचे उसने कुहनी रख ली। एड़ी में शायद खुजली मच रही थी, इसलिए अदवान से रगड़ने लगा। थोड़ी देर तक वह आँखें मींचे पड़ा रहा कि उसकी घरवाली उसके लिए मौनी में चबेना लेकर आई।
- लो पानी पी लो, तब तक खाब तैयार हो जाएगा।
गिज्जू अल्ला का नाम लेकर उठ बैठा। खरैरी खाट पर पालथी मारकर वह चबैना खाने लगा। बीच-बीच में दाँतों के बीच मिर्च काटता और पाटी पर रखा नमक उँगलियों से जीभ पर छुआता जाता। जब खा चुका तो बचा हुआ चबेना उसने मरघिल्ले की तरफ़ बढ़ा दिया जो उसकी तरफ़ देखते हुए कुछ सोच रहा था।
- ले खा ले! गिज्जू ने मरघिल्ले से कहा। फिर अपनी घरवाली को हाँक लगाई कि मरघिल्ले को पानी तो दे दो। साला मेरा मुँह ताक रहा है। यह कहकर गिज्जू ने मुँह खोला। लोटा दूर करके मुँह में पानी डाला और डकार लेकर लेट गया। आँखें मींच लीं। पैर पर पैर चढ़ा लिए।
उसकी घरवाली बाल्टी में पानी लाई, चबेना वैसा ही पड़ा देखकर बोली- चबेना तो खाया नहीं, पानी क्या पिएगा। कहीं...
गिज्जू ने घबराकर आँखें खोलीं- नहीं लू-शू क्या लेगेगी इसे।
- अगर लग गई तो मुश्किल पड़ जाएगी- कौन करेगा इत्ता काम।
गिज्जू ने यकायक उठकर उसकी पीठ पर हाथ फेरा, हँसकर कहा- डील तो ठण्डी है। ऐसई नहीं खा रहा होगा। वह उसके बदन पर हाथ फेरने लगा।
मरघिल्ले को फुरेरी-सी हुई। सोचने लगा, देखो, प्यार जतला रहा है, मारते वक़्त सब प्यार भूल जाता है।
मरघिल्ले ने न चबेना खाया और न ही पानी पिया। यहाँ तक कि रात में जब रोटी और चोकर दी गई तो उसने उनकी तरफ़ से मुँह फेर लिया। वह उध्ोड़-बुन में था। शेर बब्बर की सलाह को अमल में लाए या नहीं।
आधी रात को जब दुधिया चाँद सिर पर था, गिज्जू अपनी खाट पर लेटा, अपनी घरवाली को प्यार कर रहा था और इसी तरह का माहौल चारों तरफ़ गर्म था- मरघिल्ले ने सोचा कि काश! वह भी कभी प्यार करने को पाता।
- अबकी मरघिल्ले को मेले में बेच दो। गिज्जू की घरवाली की थोड़ी देर बाद आवाज़ आई- यह बहुत शरीर हो रहा है, निकाल दो इसे! वह आदत के मुताबिक़ भुन-भुन करने लगी।
- ठीक है भाई, बेच दूँगा। मगर अच्छा गधा मुफत में तो आता नहीं।
- तो क्या इसे मुफत में लाए थे!
- मुफत में नहीं लाए थे, लेकिन यह समझ लो गध्ो सभी एक से होते हैं- गिज्जू बोला- नया लाओगी तो वह भी हरामीपन करेगा। इसका मतलब ये नहीं कि मैं मरघिल्ले की तरफ़दारी कर रहा हूँ।
गिज्जू की घरवाली ने अफ़सोस में सिर पीटा। चूड़ियाँ बजीं- मैं तो इससे आज़िज आ गई। न बिके तो हलाल कर दो! आज इतने कपड़े फाड़े कि मेरा कलेजा फट गया इससे।
- यह तो होता रहता है- गिज्जू बोला- इसमें ज़रा अकल होती तो क्यों फाड़ता!
- अकल-वकल सब है, जानबूझकर कमीनापन करता है। खुद क्यों नहीं कूप-खाई में कूद जाता। गहकियों के कपड़े ही बचे थे फाड़ने के लिए! मैं तो इस नाकिस से हार गई ...
- अच्छा छोड़ रोना ...
- तू हमेशा यह कहकर बात आई-गई कर देता है।
- तो क्या करूँ? मार के परान तो निकाल लिए अब क्या चाहती है ...
- जो चाहती हूँ, करेगा ...
आगे की बात ने मरघिल्ले को हिलाकर रख दिया। वह नाहक अच्छा सोचता है। यकायक वह गुस्से में भर उठा। काश! इस वक़्त यह धोबिन सामने आ जाती तो इसका भेजा उड़ा देता।
मगर धोबिन इस वक़्त कहाँ से सामने आने वाली थी। इसके लिए उसे इंतज़ार करना पड़ेगा। आज का नहीं, कल का। कल वह किसी न किसी को निपटा देगा जो होगा देखा जाएगा।
दूसरे दिन शाम को गिज्जू ने जब मरघिल्ले के आगे चोकर डाली और खड़े होने को हुआ कि मरघिल्ले का दिमाग़ यकायक घूम गया। सबेरे-सबेरे कसकर पिटने का अलग गुस्सा था। गिज्जू की घरवाली ने कल के कपड़े फटने का गुस्सा आज भी उतारा था। उसके बदन में बिजली-सी दौड़ी और उसने उसी रौ में अगले पैरों पर खड़े होकर ऐसी दुलत्ती चलाई कि मत पूछो। कोई धप्प से गिरा और एक कराह उसके कानों में गूंजी। लेकिन यह क्या? उसे तो लग रहा था कि उसका वार खाली चला गया, गिज्जू पीछे हट गया, अपने को बचा ले गया, क्योंकि लत्ती में रत्ती भर किसी के टकराने का एहसास भी न था। जब नीचे देखा तो आँखें फैली की फैली रह गईं।
गिज्जू ज़मीन पर चित्त पड़ा था। उसके मुँह से खून की धार बह रही थी। अपनी घरवाली को वह ज़ोरों से आवाज़ जगाता छाती पीटता अल्ला-अल्ला की पुकार लगा रहा था। उसके सामने के, ऊपर-नीचे के दाँत ग़ायब हो गए थे।
गिज्जू की घरवाली ने गिज्जू को इस रूप में देखा तो सन्न रह गई। मरघिल्ले ने लत्ती चलाई? विश्वास नहीं हो रहा था। यकायक ज़ोरों से रोती हुई वह गिज्जू से लिपट गई लेकिन तुरंत उठ बैठी। उसके बदन में क्रोध छिटकने की वजह से खिंचाव आ गया था। उसी में बहते हुए उसने कोने में रखा लट्ठ उठाया और इस कदर हन-हन कर चलाया, काफ़ी देर तक कि मरघिल्ले को लगा कि बदन का सारा खून निकल गया है, जोड़-जोड़ अलग हो रहे हैं ...
उसकी आँखों के आगे अँध्ोरा छाने लगा और वह अचेत होकर गिर पड़ा।
दो-चार रोज़ ग़मी में गुज़रे। गिज्जू की मरहम-पटटी हुई, वह कुछ-कुछ ठीक हुआ। मरघिल्ले की भी दवा की गई। चोट पर आमाहल्दी और रेड़ी के पत्ते बाँध्ो गए, वह भी कुछ-कुछ ठीक हुआ।
आने वाले दिनों में गिज्जू तो किसी तरह ठीक हो गया लेकिन मरघिल्ला टूट गया था। उससे चला नहीं जाता था। घाव पुर नहीं रहे थे। सोचता, नाहक दुलत्ती चलाई और ज़हमत मोल ली, जैसा चल रहा था, चलने देता।
उसे शेर बब्बर पर गुस्सा आता जिसने उसे कहीं का न रखा। फिर वह सोचता, शेर बब्बर ने तो उसके भले के लिए सलाह दी थी, उसका असर उल्टा हुआ तो वह कसूरवार थोड़े ही है!
एक रोज़ जब उसके पाँव का ज़ख़्म थोड़ा ठीक हुआ, वह लंगड़ाते हुए लादी ले जा रहा था, सामने से शेर बब्बर आता दिखा।
पास आकर शेर बब्बर ने उसके घावों पर गहरी साँस छोड़ी।
मरघिल्ले की आँखों से आँसू चू पड़े।
- तुम दिल छोटा न करो। जान तो वैसे भी निकलेगी- अगर अपने हक की ख़ातिर लड़कर निकले तो उसका मज़ा ही कुछ और है! - शेर बब्बर ने ढाँढस बँधाते हुए कहा- तुम बहादुर हो। शायर अली के घर कई दिनों से तुम्हारी ही चर्चा गर्म है। यकायक वह संजीदा हो गया। उसके घावों पर गहरी साँसें छोड़ीं और जलती आँखों से बोला- तुम्हारे विरोध से तकलीफ तो तुम्हें हुई लेकिन इससे तुम्हारा रास्ता खुल गया। तुम जंजाल से बच गए।
- जंजाल से गच गया। मरघिल्ले ने तड़पकर गुस्से में कहा- कचूमर निकलने को जंजाल से बचना कहते हो तो हाथ जोड़ता हूँ।
शेर बब्बर बोला - कपड़े पर रंग तुरंत नहीं चढ़ता, धूप में डाला जाता है तो चढ़ता है।
- मतलब मैं ऐसी अग्नि-परीक्षाओं से गुज़रता रहूँ तो चोखा हो जाऊँगा।
- नहीं! अब तुम जल्द ईज़ा से निज़ात पाओगे। कुछ दिन की बात और है। शेर बब्बर ने क्रोध में गहरी सांस छोड़ी और कहा - देखते आओ। अब तुम पर कोई हाथ नहीं उठाएगा।
मरघिल्ले के चोट खाये बदन पर खुशी की लहर दौड़ गई। शेर बब्बर की दलीलों में उसे कुछ सार दिखा। कातर दृष्टि से देखता वह आगे बढ़ गया। उसे लग रहा था कि बुरे दिन अब खत्म होने वाले हैं। लेकिन दुर्भाग्य था कि दिन पर दिन गुज़रते जा रहे थे, निज़ात का दिन क़रीब आता नहीं लग रहा था। उल्टे आफतें बढ़ती जा रही थीं। अब उसे पूरा घर मारता-पीटता-यहाँ तक कि वह प्यारी रनिया भी उसे लात दिखाती।
एक दिन उसने शेर बब्बर को दाँतों से पकड़ा और कहा कि तुम मुझे सता क्यों रहे हो? क्यों सब्ज बाग़ दिखा रहे हो और यक़ीन दिलाते हो कि बस अब जुल्म खत्म हुए जबकि जुल्म मुझ पर बढ़ते ही जा रहे हैं लगातार। मैंने किस मुग़ालते में तुमसे सलाह ली ... कहकर मरघिल्ला यकायक रो पड़ा- मेरे तो शरीर की चूलें हिल गईं- दर्द ऐसा होता है कि मत पूछो।
शेर बब्बर दुखी स्वर में, उसकी गरदन दाँतों से सहलाता बोला- मेरा वह फार्मूला जरूर फेल हुआ लेकिन यह फार्मूला अचूक है, अगर फेल हो जाए तो तुम मेरी जान ले लेना। आखिर तुम मेरे सगे भाई हो। चूक तो सभी से होती है, फिर मैं भला क्या हूँ, गधा ही तो हूँ। यक़ीन कर मुझ पर।
यह कहकर उसने मरघिल्ले को वह मंत्र दिया जिसे मरघिल्ला आज रात को आजमाएगा।
अंध्ोरी रात थी। सभी धोबी अपनी-अपनी खाटों और ठेलों पर पहली नींद में ग़ाफिल थे कि मरघिल्ला हुलास से भर उठा। वह मंत्र के अमल के इंतज़ार में था। अब उससे ज़्यादा इंतज़ार नहीं हो पा रहा था। वह ज़ोर-ज़ोर से पैर पटकने और गरदन हिलाने लगा।
जब जामुन के पेड़ में छिपा उल्लू रोज़ की तरह बोला, मरघिल्ला समझा कि शेर बब्बर ने ‘हूँ' की आवाज़ करके उसके पीछे से गोली दागने का ऐलान किया। बस, उसकी आँखें चमक उठीं। और वह ज़ोरों से सीपो! सीपो! करने लगा।
रात में सीपो की आवाज़ कुँए में गूँजने जैसी लग रही थी।
गिज्जू ने यकायक जगकर उसे ज़ोर से डाँटा तो वह और ज़ोरों से सीपो-सीपो करने लगा।
गिज्जू खाट से उठ बैठा। जम्हाई लेने लगा। उसकी घरवाली भी उठ बैठी।
गिज्जू ने दाँत पीसते हुए कहा- डंडा तो ला। अभी रास्ते पर ला देता हूँ।
डण्डे के नाम पर मरघिल्ला यकायक चुप हो गया। गिज्जू उसकी ओर देखता, पाटी से डंडा लिटा, लेट गया। उसकी घरवाली भी लेट गई। दोनों उसको देखते रहे।
जैसे ही दोनों के खर्राटे बजे, मरघिल्ला फिर ज़ोरों से सीपो-सीपो करने लगा।
गिज्जू की घरवाली ने कहा- लगता है, मरघिल्ला गरमा गया है।
गिज्जू तिड़ककर बोला- तो उसके लिए गधी कहाँ से लाऊँ?
- नुक्कड़ पर बाँध दो। उसकी घरवाली ने सलाह दी।
- वहाँ भी वही हरामीपन करेगा- गिज्जू ने आँखें निकालीं- नुक्कड़ का बनिया हमें छोड़ेगा। अपना गधा किसके घर के आगे बाँध्ों?
इन दोनों की बातचीत के दौरान मरघिल्ला यकायक फिर चुप हो गया और तब तक चुप रहा जब तक दोनों सो नहीं गए। वह उसी हुलास में था। सीपो सीपो करने लगा। अबकी उसने ज़िद ठान ली, चुप न होने की। चाहे कितना मारो, पीटो वह चुप नहीं होगा।
और वास्तव में हुआ यही, वह बेतरह पिटा, लेकिन उसने मुँह बंद न किया। गला फाड़कर वह सीपो सीपो करता रहा।
अंत में दोनों ने हारकर, गाली देते हुए उसे खुल्ला छोड़ दिया।
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ati sundar
जवाब देंहटाएंachchhi kahani
Waah ! lajawaab kahani hai.
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