नेम चन्द अजनबी का आलेख : प्रसिद्ध लोक नाट्य 'करियाला'

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आलेख प्रसिद्ध लोक नाट्य ‘करियाला’ नेम चन्द अजनबी करयाला हिमाचल प्रदेश के सोलन, शिमला, सिरमौर, मण्डी तथा बिलासपुर जनपद में मंच...

आलेख


प्रसिद्ध लोक नाट्य ‘करियाला’






नेम चन्द अजनबी



करयाला हिमाचल प्रदेश के सोलन, शिमला, सिरमौर, मण्डी तथा बिलासपुर जनपद में मंचित किया जाता है । वैसे तो यह किसी भी समय का खेल है और वर्ष भर चलता रहता है परन्तु इसका असली समय सर्द ऋतु मानी जाती है । वास्तव में करयाला दिवाली से आरम्भ होता है । इन दिनों वर्ष भर के कड़े परिश्रम के बाद कृषक अपने खेतों और खलिहानों से निवृत हो जाते हैं और उसे मनोंरंजन की लालसा रहती है । इस लालसा की पूर्ति करियालची बड़ी सफलता से करते हैं ।



करयाला के लिए किसी विशेष मंच की आवश्यकता नहीं होती । यह प्रकृति के खुले प्रांगण का खेल है और प्राय रात के समय ही खेला जाता है । प्रांगण के कुछ भाग में चारों तरफ छोटे-छोटे खम्भे खड़े करके उसमें रस्सी बांधकर एक चोकोर वर्ग बना लिया जाता है । बदलते समय के परिदृष्य में अब इस सीमा की आवश्यकता महसूस नहीं की जा रही है । मात्र एक लकड़ी के डण्डे से गोल रेखा खींच ली जाती है जिसके बाहर चारों तरफ दर्शक आसीन होते हैं । उसके साथ ही सा कुछ दूरी पर करियालचियों की तैयारी के लिए दो-तीन चादरें तानकर एक छोटा तम्बु या कोई छोटा कमरा अथवा घास का छप्पर बना होता है । यहीं पर करियालची अपना हार-श्रृंगार करते हैं । इसे श्रृंगार कक्ष समझना बेहतर होगा । रस्सियों से घिरा हुआ चौकोर स्थान या डण्डे से खींची गई गोल रेखा का वृत्ताकार स्थान ही मंच है । न रंग बिरंगे परदे की आवश्यकता है और न ही यह समय के घेर में है । इस स्थान को खाड़ा (अखाड़ा शब्द का अपभ्रंश रूप) कहते हैं । आग को स्थानीय भाषा में धूनी या घयाना कहा जाता है । इस घयाने की आग को पवित्र माना जाता है । यह आग जहां रात भर प्रकाश का काम देती है वहीं सर्दी के मौसमें ठंड से ठिठुरते लोगों को गर्मी देती है ।



अखाडे के एक ओर वादक बैठ जाते हैं । करनाल, रणसिंहा, चिमटा, नगारा, शहनाई, बांसुरी, ढोलक, खांजरी आदि करयालचियों के वाद्ययन्त्र हैं । करियाला जंगताल से आरम्भ होता है । इसकी मधुर तान दर्शकों के लिए निमन्त्रण की घड़ी होती है। बजन्तरी अपने संगीत से दर्शकों का स्वागत करते हैं । इसे बधाई ताल भी कहा जाता है। बधाई ताल के बजते ही चन्द्रावली लक्ष्मी के रूप में हाथ में जले हुए धूप-दीप थाली में लिए हुए अखाड़े में प्रवेश करती है । पुरूष कलाकार ही स्त्रियों की वेश-भूषा में चन्द्रावली बनता है । चन्द्रावली मंच पर आते ही एक हाथ आकाश की ओर करके सरस्वती का आह्वान करते हुए वाद्य यन्त्राें को छूती है । अखाडे की परिक्रमा करती है तथा वाद्य यन्त्रों एवं दर्शकों के उपर जलते धूप का पात्र घूमाकर कार्यक्रम का शुभारम्भ करती है । घयाने के चारों ओर चन्द्रावली करियाले की ताल पर नृत्य करती है । उसका यह नृत्य 10 मिनट तक चलता है । कई बाद चन्द्रावली के साथ एक अन्य चरित्र भी होता है जिसके कान्हा कहा जाता है । कान्हा संभवत: कृष्ण कन्हैया ही है परन्तु वह एक ही दृष्य में पेश होता है । जब वह पांच-छ: सखियों के बीच प्रस्तुत होता है तब उसके हाथ में एक कुल्हाड़ा होता है । प्राय: यही चरित्र मशालों या दीपों को जलाता है जिसे अखाड़ा बांधना कहा जाता है । अखाड़ा बांधने से अभिप्राय: ईष्ट देव की पूजा करके करियाला के सफल आयोजन की मनोकामना से है । इसे मन्त्रोचारण्ा द्वारा, बन्दना या परिक्रमा द्वारा पूर्ण किया जाता है । वैसे अखाडा बांधने का विधान हर मण्डली का अपना-अपना होता है ।



चन्द्रावली विभिन्न पहाड़ी धूनों पर नृत्य करने के पश्चात वापस श्रृंगार कक्ष में चली जाती है । इसी समय स्वांग कलाकार दर्शकों के बीच में से या कहीं बाहर भीड़ को चिरता हुआ अलख जगाता हुए साधू वेश में मंच की ओर लपकता है । उसके साथ ही चारों दिशाओं से साधु मंच की ओर लपकते हैं । दर्शकों की दृष्टि पड़ते ही अभिनय शुरू हो जाता है । स्वांग की कोई अवधि नहीं होती । ये भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं :-



1.साधु का स्वांग 2.बुध्दु का स्वांग 3.चूर्ण वाले का स्वांग 4.जोगी-जोगन का स्वांग

साधु का स्वांग:-1. आमतौर पर करियाला में तीन या चार रूपक होते हैं । करियाला का आरम्भ हमेशा साधु के स्वांग से होता है । इसका एक प्रमुख कारण है :-

-माधो सेला, सावणा बरखा, तौंदी जेठो, साधू रे भेखा सदा नारायणों मेठो ।

अर्थात माघ में सर्दी, श्रवण में वर्षा, ज्येष्ठ में गर्मी होती है । साधु के भेष में हमेशा नारायण वास करते हैं ।

अखाड़े में प्रवेश करते ही आपस में भांति-भांति की चर्चा करते हैं । एक विदुषक अखाड़े में प्रवेश करता है और साधुओं से भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रश्न पूछता है । जैसे :-

विदुषक:- कहां से तुम जोगी आये कहां तुम्हारा गांव

कौन तुम्हारी भैन भान्जी, कहां धरोगे पांव ॥

पहला साधु- दक्षिण से हम जोगी आए, पूर्व हमारा गांव ।

दया हमारी भैन-भान्जी, यहां धरेंगे पांव ॥

विदुषक- बाबा ! कुछ ज्ञान-ध्यान भी है तुम्हें ?

दुसरा साधु- हां ! हां ! बेटा हम बड़े ज्ञानी हैं ।

विदुषक- तो मैं एक प्रश्न करता हूं ।

दूसरा साधु- कहो बेटा ।

विदुषक- बार भी लंका पार भी लंका, बिचे धुआं धारी ।

राम लखन लंगा गए तो कहां थे तपाधारी ?

मस्करा- बार भी लंका पार भी लंका, बिचे धुआं धारी ।

राम लखन जेबे लंगा गये ये साधु थे तिना रे बगारी ।

पहला साधु- न बेटा ! न ! यह हंसी मजाक का समय नहीं । यहां ज्ञान ध्यान की बात चल रही है ।

दूसरा साधु- वार भी लंका पार भी लंका, विचे धुंआ धारी ।

राम लखन लंका गये उनके संग थे तपाधारी ॥


2. दर्शकों की भीड़ को चीरता हुआ एक साधु मंच पर प्रवेश करता है -


बम-बम भोले । बम-बम भोले ॥

साधु की नगरी में बसदा न कोये,

जो ही बसे वो साधु हो जाये ॥



कुछ और साधु मंच पर प्रवेश करते हैं । इनके प्रवेश करते ही प्रश्नो का सिलसिला शुरू होता है । ये प्रश्न बड़े ही मनोरंजक होते है । ज्ञान-ध्यान की बाते चलती है परन्तु मंच का हास्य पात्र मसखरा बीच में अपनी मनोविनोद छिंटाकशी से माहौल को मनोंरंजक और उल्लासपूर्ण बना देता है ।



एक साधु- कहां से तुम जोगी आये, कहां तुम्हारा गांव,

कहां से तुम चलकर आए, कहां धरोगे पावं ।

दूसरा साधु-दक्खन से हम जोगी आये, पच्छम हमारा गांव,

बिन्दराबन से चलकर आये, यहीं धरेंगें पावं ।

मसखरा- जितु रे घराटे मुआ एसरा बाव ।

मेरा बी लग्या बोलने रा दाव ॥

(अरे जितु के घराट में इसका बाप रहता है । मुझे भी यह बताने का मौका मिला है । )

पहला साधु- कौन तुम्हारी बहन भान्जी, कौन तुम्हारी मात ।

कौन तुम्हारे संग चलेगा, कौन करे दो बात ॥

दूसरा साधु- दया हमारी बहन भान्जी, धरती हमारी मात ।

लिया दिया सब साथ चलेगा, धरम करे दो बात ॥

मसखरा- ए जाणो आरा एक ई बात ।

खाया पिया और मारी लात ॥

(यार ये तो एक ही बात जानता है । खाया पिया और लात मार दी )

पहला साधु:- कौन तपस्वी तप करे, कौन नित उठ नहाए ।

कौन इस रस को उगले और कौन इस रख को खाए॥

दूसरा साधु:- सूर्य तपस्वी तप करे ब्रहम नित उठ नहाए ।

इन्द्र इस रस को उगले और धरती सब कुछ खाए ॥

मसखरा:- जप तप मुआ एसरा जाणो बाओ ।

जेती एसखे खाणे खे मिलो तेथी रोज आव ।

( अर्थात जप-तप यह कुछ नहीं जानता । जहां इसको खाने को मिले वहीं रोज जाता है ।)



मसखरा वास्तव में अंग्रेजी साहित्य का जोकर है । यह नाना प्रकार से प्रकट होता है । श्रोताओं के मन की बात करता है । व्यंग्य उसका अस्त्र है, जिससे वह नाटय की सार्थकता स्थापित करता है । अपनी हंसोड प्रवृति के कारण वह नाटय को अधिक मनोरंजक बनाता है । अर्थात वह मूल रूप से नाटय का जीवन है ।



3. विदूषक- एक क्या होता है ?

मसखरा:- जिसका कोई न हो ।

दूसरा साधु'- नहीं बच्चा! तुम अभी अक्ल के कच्चे हो ।

मसखरा:- भला फिर एक क्या होता है ?

दूसरा साधु:- एक ओंकार, दो चांद सूरज

तीन त्रिलोक, चार दिशाएं,

पांच पाण्डव, छ: ऋतुएं

सात ऋषि, आठ अष्ट भूजा,नौ ग्रह

(इसी बीच मसखरा बोल उठता है)

मसखरा:- दस हुए दशांग, सोलहवें दिन सोला,

दरवाजे पांदे फोड़ा ठूठा

सतारहवें दिने दस्या गूठा ।

पहला साधु:- आसन बांधू, पासन बांधू, बाधू कंचन केरी काया ।

चार उंगल तेरा सिर का खोपड़ा, जटा कहां से लाया ॥

मसखरा:- आसन खोलू , पासन खोलू, खोलू केरी कंचन काया ।

चार उंगल एसरा खोपड़ा खोलू जटा उधार है लाया ॥

इसी प्रकार वाद-विवाद से दर्शकों का मनोरंजन होता रहता है ।



बुध्दु का स्वांग:- ग्रामीणों के बीच स्वांगो की अपनी विशेषता है । करयाला में विविधता, नयापन ताजगी और उत्सुकता रहती है । संज्ञा को जानबूझ कर ऐसे स्थानों पर प्रयोग किया जाता है जहां वाक्य अर्थ का प्रतीक होता है । उदाहरणत::-



प्रश्न -'दावा' कहां होता है ?

उत्तर- दावा सनोडन में मिलती है ।

दूसरा पाल- अरे ! दावा तो सेसन जज के यहां होता है ।


चूर्ण वाले का स्वांग:- प्रस्तुत स्वांग में चूर्णवाला चूर्ण के बहाने सीधे सादे शब्दों में कितनी अनूठी बाते कह रहा है:-


चूर्ण अमल वेद का भारी- जिस को खाते कृष्ण मुरारी

मेरा पाचक है पचलोना- जिसको खाता श्याम सलोना ।

चुर्ण साहब लोग जो खाता -सारे का सारा हजम कर जाता ।

चूर्ण पुलिस वाले खाते- सब कानून हजम कर जाते ।

चूर्ण हाकिम साहब जो खाते- सब पर दूना टैक्स लगाते ॥


जोगी-जोगन का स्वांग:- जोगी जोगन स्वांग में एक पुरूष नारी भेष में व एक जोगी के रूप में मंच पर आते हैं । इस स्वांग में पदों द्वारा नारी का कितना महान वर्णन किया गया हे । देखिए:-


नारी- सूरत तेरी देख के जी मेरा ललचाए ।

हे जोगी तुम कौन हो, दीजो मुझे बतलाए ।

(जोगी मौन रहता है)

नारी- कहां के तुम जोगी कहां तूम्हारा देश ।

किस कारण जोगी बने, किया फकीरी भेष ॥

जोगी- कंचनपुर के हम योगी, वहां हमारा देश ।

प्रीति लगी रघुनाथ से, किया फकीरी वेश ॥

जोगी पुन:-परनारी पैनी छूरी, मत कोई लाए अंग ।

दस शीश रावण कटे, पर नारी के संग ॥

नारी:- परनारी पैनी छूरी मत कोई लाए अंग ।

रावण को भी राम मिले परनारी के संग ॥

जोगी- नागिन से पर नारी बुरी, जो तीन ठौर से खाए ।

धन छीने जोवन घटे, पंचो में पत जाए ॥

नारी- नारी निन्दा मत करो नारी, नारी नर की खान ।

नारी से नर होत है, ध्रुव प्रहलाद समान ॥



इसी प्रकार अनेक प्रकार के स्वांग दर्शकों के मनोरंजन हेतु प्रस्तुत किए जाते हैं । इन स्वांगों में लाड़ा-लाड़ी, पति-पत्नी, नट्ट-नट्टणी, आदि में समसज की विभिन्न बुराइयों को सजीव तरीके से परिलक्षित किया जाता है । जहां पिलपिली साहब में नौकरशाही पर तीखा पहार हैं वहीं साहब और मेम के प्रहसन में भारतीय समाज की अंग्रेजियत पर कड़ा कटाक्ष है ।



एक स्वांग में वार्तालाप कुछ यौं होता है -

विदुषक- माता थी गर्भ में पिता थे कवांरे,

तब कहां थे जन्म तुम्हारे ।

मसखरा- माता थी गर्भ में पिता थे कवांरे, था यह उस वक्त घर में तुम्हारे ॥

साधु- ना बच्चा ना । ज्ञान - ध्यान की बातें हैं सही-सही सुनो ।

मसखरा- सुनाओ ।

साधु - तो सुनो । माता थी गर्भ में पिता थे कवांरे ।

पिता के मस्तक पर थे जन्म हमारे ॥

विदुषक- धन्य हो महाराज, धन्य स्वामी जी ।


एक अन्य करियाला मण्डली अपना साधु का स्वांग कुछ इस तरह शुरू करती है-


पहला साधु- जय शिव शंकर, कांटा लगे न कंकर ।

दूसरा साधु- अरे दरिद्री, खाने पीने का ढंग कर ।

पहला साधु- बम-बम भोले, बम-बम भोले ।

दूसरा साधु- देख रहा मैं लाट-लाट में उड़न-खटौले ।

तीसरा साधु- एक मछेरन सागर तट पर, डाल रही थी कांटा ।

पहला साधु- मुझ को लगा ज्ञान का चांटा ।

दूसरा साधु- चरपट हो तुम बड़े रसीले, एक आंख से भजते ईश्वर ।

तीसरा साधु- तन के खोटे मन के भोले, नाड़ी के तुम ढीले ।

पहला साधु- तेरे मन पर काई छायी, पहले इसको धोले,

बम-बम भोले , बम-बम भोले ॥

दूसरा साधु- सारी उम्र गई मरघट में, धूनी बन गई कोले ।

बम-बम भोले , बम-बम भोले ॥

तीसरा साधु- भांग धतूरे की यह माया,

पहला साधु- जोगी इसमे क्यों भरमाया ।

दूसरा साधु- अन्त समय कुछ हाथ न आया ॥

सभी साधु- छूटे कुटुम्ब कबिले, बम-बम भोले , बम-बम भोले ॥



करियाले में इन स्वांगों के अलावा हिमाचली संस्कृति के छोटे-छोटे रूपक भी पेश किये जाते हैं । रांझू-फुलमू, कुंजू-चंचलो, राजा-गद्दन के रूपक बहुत प्रसिद्ध है । यह लोकगीतों की धुनों पर आधारीत होते हैं, जिनमें विशेषकर वियोग की भावना जागृत होती है -



कपड़े धोंआं छम-छम रोआं चंचलों, विच क्या हो नशाणी हो ।

हाय ओ मेरिये जिन्दे विच क्या हो नशाणी हो ॥

कपड़े धोंआं छम-छम रोआं कुंजुआ, विच बटण नशाणी हो ।

हाय ओ मेरिये जिन्दे विच बटण नशाणी हो ॥



हिमाचली लोककथाओं पर आधारित इन रूपको का सीधा सम्बन्ध दर्शकों से होता है । गाथाकार के कण्ठ में वे पात्र को विराजा हुआ देखते हैं । हिमाचल के ग्रामीण परिवेश में गायी जाने वाली इन लोककथाओं में सामाजिक परिस्थितियों का सही चित्रण प्रस्तुत होता है-



बाड़ुए सगाड़ुए कजो झांकदी वलीये कजो झांकदी,

दो हत्थ बटणे दे लाया फुलमु गला होई बीतियां ।

कुणिये परोहिते तेरा व्याह लिखेया, कुणीए लगाई कड़माई ।

कुले रे परोहिते मेरा व्याह लिखेया, बापुए कीती कड़माई,

गला होई बीतियां ॥



लोककथाओं के अलावा समाज की वर्तमान परिस्थितियों को भी करियाले में छोटे-छोटे रूपकों के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है । गार्ड स्वांग में जंगलायत के रिश्वतखोर गार्ड का चित्रण प्रस्तुत होता है-

पांज मांगे दस देणे ओ गार्डा,

देख्या मेरी डी आर कटदा ओ गार्डा ।

तु मेरी रपोट मत करदा ॥



इतना हास्य व्यंग्य विनोद के चलते लोग बड़ी उत्सुकता से गंगी, सुन्दर और लोका नामक लोकगीतों की प्रतीक्षा में रात-रात भर बैठे रहते है ।



इतना कुछ रोचक होते हुए भी आज इस मनोरम और उल्लासपूर्ण खेल का भविष्य अन्धकार में है । इसके कारण ढूंढना भी कठिन नहीं है । विज्ञान और उद्योग के चमत्कारपूर्ण विकास के युग में हर वस्तु को भौतिकवादी दृष्टिकोण से आंका जाता है । हमारी सांस्कृतिक धरोहर आज दुष्प्रभावित हो रही है । इस सांस्कृतिक धरोहर को बचाने के लिए करियालचियों को प्रोत्साहन दिया जाना अत्यन्त आवश्यक है ताकि विज्ञान के इस युग में करियाला का अस्तित्व बना रह सके ।

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नेम चन्द अजनबी

गांव-अन्द्रोली, डाकघर-घनागु घाट,

तहसील-अर्की, जिला सोलन

हिमाचल प्रदेश -171102

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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: नेम चन्द अजनबी का आलेख : प्रसिद्ध लोक नाट्य 'करियाला'
नेम चन्द अजनबी का आलेख : प्रसिद्ध लोक नाट्य 'करियाला'
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