भूपेन हजारिका दिल हूम-हूम करे -दिनकर कुमार रचनाकार परिचय: दिनकर कुमार जन्म : 5 अक्तूबर 1967, ग्राम ब्रह्मपुरा, जिला दरभंगा (बिहार) एक कविता ...
भूपेन हजारिका
दिल हूम-हूम करे
-दिनकर कुमार
दिनकर कुमार
जन्म : 5 अक्तूबर 1967, ग्राम ब्रह्मपुरा, जिला दरभंगा (बिहार)
एक कविता संग्रह ‘आत्म निर्वासन (1993), एक उपन्यास ‘निहारिका' (1995) प्रकाशित ।
असमिया से चालीस कृतियों का हिन्दी अनुवाद ।
अनुवाद के लिए 1998 का सोमदत्त सम्मान ।
कविताओं का असमिया, अंग्रेजी, नेपाली आदि भाषाओं में अनुवाद ।
100 से अधिक टीवी धारावाहिकों की पटकथाओं का लेखन ।
पत्रकारिता, रंगमंच एवं टीवी के क्षेत्र में योगदान ।
संप्रति : गुवाहाटी से प्रकाशित हिन्दी दैनिक ‘सेंटिनल' का संपादन ।
संपर्क : रोहिणी भवन, श्रीनगर, बाईलेन नं. - 2, दिसपुर, गुवाहाटी-781 005 (असम)
प्रकाशक (प्रिंट मीडिया, उषा पब्लिकेशन) का वक्तव्य
बचपन से ही मुझे साहित्य कला, सिनेमा आदि में व्यापक रूचि रही है शायद इसी के परिणाम स्वरूप दिनकर जी के सहयोग से कालेज में ‘‘अपवाद'' नामक एक पृष्ठीय पत्रिका का पदार्पण हुआ। भविष्य में इस आशा के साथ की अपवाद एक अपवाद नहीं रहेगा, हमने साहित्य के सफर में एक अंग्रेजी पत्रिका ‘‘क्रानिस इन्टरनेशनल'' को भी प्रकाशित किया। यद्यपि साहित्य की इस अनोखी और दिल लुभाने वाले अनुभव ने इस क्षेत्र में आगे बढने के लिए प्रेरित किया किंतु पारिवारिक जिम्मेदारियों में उलझकर इसमें एक विराम चिह्न लग गया।
परंतु बचपन के सखा दिनकर जी ने फिर इस पुस्तक को प्रकाशित करने का अनुरोध किया तो अनायास ही सोया हुआ वह साहित्य प्रेम फिर उभर कर एक बार सतह पर आ गया। हालांकि यह अब मैं अच्छी तरह समझ चुका था कि इस तरह का प्रयास आर्थिक रूप से कोई लाभ नहीं लाएगा परंतु यह एक व्यवसाय ही तो नहीं है, वरना प्रेमचन्द जी, फणीश्वर नाथ रेणु आदि अनेक साहित्यकार अतिधनाढ्य होते।
खैर भूपेन हजारिका जी किसी भी परिचय के मोहताज नहीं है। मां कामाख्या व ब्रह्मपुत्र के इस विलक्षण कलाप्रेमी को सारा देश जानता है। बचपन में एक बार इनसे मिलने का मौका मिला तो इन्होंने गले लगाकर मानो मुझमें अपनी अमिट छाप का एक अंश छोड दिया। यह दृश्य व चित्र मैं अपनी आंखों में हमेशा छिपाए रखता हूं।
संगीत, गायन व गीत रचना, वह भी इतनी स्मरणीय, संवेदनशील व कर्णप्रिय यह भूपेनदा का अपना अनोखा अंदाज हैं। लोगों के दिल में भूपेनदा का गीत ‘‘दिल हुम हुम करे'' बस गया। परंतु मैं तो उसी दिन उनका भक्त हो गया जब इनका संगीतबद्घ किया हुआ गीत आरोप फिल्म में ‘‘नयनों में दरपन है, दरपन में कोई'' सुना। सच में भूपेनदा असम के गौरव हैं, इनके व्यक्तित्व के कुछ अनछुए पहलुओं के बारे में इस पुस्तक को प्रकाशित करते हुए मैं गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं। भगवान उन्हें स्वस्थ रखे और वे अपनी धुनों से हमें सदा रिझाए रखें, इसी आशा के साथ.....आशा है यह आपको पसंद आएगी, कृपया अपने सुझावों से हमें अवगत कराएं। अतः इस महान हस्ती भूपेनदा को मेरा एक बार फिर ‘‘सलाम''।
उषा पब्लिकेशन की पहली प्रस्तुति हिंदी में प्रथम प्रकाशित भूपेनदा के व्यक्तित्व पर पुस्तक, आफ आशीर्वाद, प्रेरणा, सहभागिता की अपेक्षा करेगी ताकि भविष्य में भी अन्य साहित्य के नगीने आफ समक्ष प्रस्तुत कर सकें।
अजय चोखानी
प्रस्तावना
गुवाहाटी के एक कार्यक्रम में स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने कहा था - ‘हम असम को भूपेन हजारिका के नाम से जानते हैं।' भूपेन हजारिका के बहुआयामी व्यक्तित्व के कितने रूपख हैं - गीतकार, संगीतकार, गायक, साहित्यकार, पत्रकार, फिल्म निर्देशक, पटकथा लेखक, चित्रकार - और हर रूप अद्वितीय है, अनूठा है। असम की माटी की सोंधी महक को सुरों में रुपान्तरित कर उन्होंने देश-विदेश में असम के संगीत को प्रचारित किया है। वे असम की जनता की चार पीढ़ियों के सबसे चहेते गायक हैं। बिहू समारोहों में वर्षा में भींगते हुए रात-रात भर लोग उनको गाते हुए देखते-सुनते हैं। असम की संस्कृति, ब्रह्मपुत्र नदी, लोक परम्परा, समसामयिक समस्या - जीवन के हरेक पहलू को उन्होंने गीतों में रूपान्तरित किया है।
एक
रंगाली बिहू। प्रथम वैशाख। असमिया नववर्ष का पहला दिन। गुवाहाटी के चांदमारी इलाके में रात के 1॰.3॰ बजे हजारों लोग बेसब्री के साथ अपने प्रिय गायक डॉ. भूपेन हजारिका की एक झलक पाने के लिए इंतजार कर रहे हैं। बिहू मण्डप में कहीं सूई रखने की भी जगह नहीं है। लोग सड़कों पर, फ्लाई ओवर पर खड़े हैं। दर्शकों में मुख्यमंत्री और अन्य कई मंत्री भी उपस्थित हैं।
भूपेन हजारिका मंच पर आते हैं। जनता को प्रणाम करते हैं। सबको बिहू की शुभकामनाएं देते हैं। फिर मुस्कराते हुए कहते हैं, ‘मुझे खुशी है कि मैं अपने मोहल्ले के बिहू उत्सव में गाने के लिए आया हूं।' चूंकि चांदमारी इलाके में ही उन्होंने संघर्षपूर्ण जीवन के कई साल गुजारे हैं।
वे गाना शुरू करते हैं - ‘बरदै शिला ने सरू दै शिला ...' बिहू की परम्परा पर आधारित गीत। आवाज में वही गम्भीरता, वही खनक, वही दिल को छू लेने वाली मिठास है, केवल उम्र का प्रभाव नजर आने लगा है। पहले वे बिहू उत्सवों में रात-रात भर गाते रह जाते थे, परन्तु अब स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता।
वे गाना शुरू करते हैं - ‘मानुहे मानुहर बावे, यदिउ अकनो ने भावे ...' इसी गीत को वे बांग्ला में भी गाते हैं, असमिया में भी गाते हैं, हिन्दी में भी गाते हैं। फिर वे कहते हैं, ‘मैं एक प्रेमगीत सुनाना चाहता हूं।' वे गाने लगते हैं - ‘शैशवते धेमालिते ...' गीत का भाव है - ‘बचपन में हम साथ-साथ खेलते थे। वैशाख में ब्रह्मपुत्र में तैरते थे। तुमने मुझसे वादा किया था कि साथ-साथ जिएंगे। तुमने कहा था कि तुम्हारे बिना जी नहीं सकूंगी, जान दे दूंगी। मगर मेरे पास धन नहीं था। तुम अपना वादा भूल गयी और एक धनवान के साथ ब्याह कर चली गयीं। एक दिन मैंने तुम्हें महंगी पोशाकों में देखा। क्या तुम सोच रही थी कि तुम्हारे बिना मैं अपनी जान दे दूंगा ? मैं जान नहीं दूंगा, बल्कि जीता रहूंगा, ताकि एक नये समाज का निर्माण कर सकूं। युवावस्था में उन्होंने यह गीत लिखा था, जो आज भी सुनने वालों के हृदय को स्पर्श करता है।
फिर वे गाने लगे ‘जीवन बूहलिषलै आह ...' इसी गीत को उन्होंने बांग्ला में भी गाया। वे थक गए थे। उन्होंने एक नवोदित गायिका की तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘घर की लड़की है। दो गाने सुनाएगी। फिर मैं गाऊंगा। ‘दमन' फिल्म का एक गाना भी सुनाएगी।' ‘दमन' में भूपेन हजारिका ने अपने पुराने लोकप्रिय गीतों को नये अन्दाज में पेश किया है। गायिका ने गाना शुरी किया ‘बिजुलीर पोहर मोट नाई', फिर गाया - ‘ओ राम-राम आलता लगाऊंगी ...' भूपेन हजारिका ने ताली बजाकर गायिका की प्रशंसा की। अब उन्होंने फिर गाना शुरू किया - ‘सागर संग मत कतना सातूरिलो, तथापितो हुआ नाई क्लान्त ...' यह गीत उन्हें बहुत पसन्द है। इस गीत में उनका जीवन दर्शन छिपा हुआ है - सागर संगम में कितना तैरा मैं, फिर भी मैं थका नहीं। निरन्तर जूझते रहने का जीवन दर्शन।
अब वे गाने लगे - ‘बूकू हूम-हूम करे, घन घम-घम करे ओ आई ...' गुलजार ने फिल्म ‘रूदाली' के लिए इसका अनुवाद किया है। हिन्दी में भी उन्होंने गाया - ‘दिल हूम-हूम करे ...'। यह गीत जब खत्म हुआ तो उन्होंने कहा - ‘एब्सट्रेक्ट पेंटिंग्स हो सकती है, एब्सट्रेक्ट फिल्म हो सकती है तो एब्सट्रेक्ट गीत क्यों नहीं हो सकता ...'। इसके साथ ही अपना मशहूर गीत गाने लगे - ‘विमूर्त मोर निशाति जेन मौनतार सूतारे बोवपा एखनि नीला चादर ...' मेरी विमूर्त रात मानो मौन के धागे से बुनी हुई एक नीली चादर है ...।
उन्होंने कहा - ‘मुझे पता चला है कि आज के इस कार्यक्रम को इण्टरनेट के जरिए दुनिया भर में प्रसारित किया जा रहा है। मैं बाहर बसे असम के लोगों के लिए, भारतवासियों के लिए, विश्ववासियों के लिए गाना चाहता हूं' - वे गाने लगे - ‘वी आर इन द सेम बोट ब्रदर, वी आर इन द सेम बोट ब्रदर ...' फिर इसी गीत को असमिया में और बांग्ला में भी गाकर सुनाया - ‘आमि एखनरे नावरे यात्री, आमि यात्री एखनरे नावरे ...'।
उन्होंने विनीत होकर दर्शकों को प्रणाम किया। एक घण्टे तक मंत्रमुग्ध दर्शक उन्हें देख रहे थे - सुन रहे थे। इन दर्शकों में चार पीढ़ियां थीं - असम की चार पीढ़ियों के दिल में भूपेन हजारिका बसते हैं। प्रेम, विषाद, विरह, करुणा - हर रस के गीत को उन्होंने रचा है, जनमानस के मन में घुल-मिल गये हैं। यही कारण है कि केवल उन्हें एक बार देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।
दो
8 सितम्बर, 1926 को भूपेन हजारिका का जन्म शदिया में हुआ। नाजिरा निवासी नीलकान्त हजारिका गुवाहाटी के कॉटन कॉलेज में पढ़ते थे और अपने सहपाठी अनाथबन्धु दास के घर में रहते थे। अनाथबन्धु अच्छे गायक और संगीतकार थे। सितार बजाते थे। टाइफाइड की वजह से केवल 23 वर्ष की उम्र में अनाथबन्धु की मौत हो गयी। अनाथबन्धु की मां ने अपनी बेटी शान्तिप्रिया का विवाह नीलकान्त हजारिका से करवा दिया। बी. ए. की पढ़ाई पूरी करने के बाद नीलकान्त हजारिका को शदिया के एम. ई. स्कूल में शिक्षक की नौकरी मिली। विवाह के दो वर्ष बाद ही भूपेन पैदा हुए।
तब शदिया अंचल ब्रिटिश पोलटिकल एजेण्ट के अधीन था। भूपेन के पिता पोलटिकट एजेण्ट के घर में ट्यूशन पढ़ाते थे। प्रसव के समय शान्तिप्रिया को काफी तकलीफ हुई थी। वहां के एकमात्र मेडिकल ऑफिसर को बुलाया गया। उसने कहा कि ‘फोरसेप डिलीवरी' करनी होगी। इसका मतलब था कि शिशु के सिर का आकार बड़ा था और सिर को तोड़कर प्रसव किया जाना था। डॉक्टर ने नीलकान्त हजारिका से पूछा था, ‘आपको बच्चा चाहिए या पत्नी ?' ‘सम्भव हो तो दोनों को बचा लें, नहीं तो बच्चे की मां को बचा लें।' नीलकान्त हजारिका ने जवाब दिया था। परन्तु सिर तोड़ने की जरूरत नहीं हुई। भूपेन हजारिका इस तरह दुनिया में आये।
असम के पूर्वी छोर में स्थित शदिया उस समय एक दुर्गम क्षेत्र था, जहां आदिवासी जनजाति के लोग रहते थे। भोले-भाले जनजातीय लोगों के साथ शिक्षक नीलकान्त हजारिका का आत्मीय सम्बन्ध था। सामान्य उपहारों के बदले जनजातीय लड़कियां शान्तिप्रिया के साथ घरेलू कार्यों में हाथ बंटाया करती थीं। लड़कियां बालक भूपेन को बहुत प्यार करती थीं।
पोलटिकल एजेंट को जब पता चला कि शिक्षक नीलकान्त हजारिका के घर पुत्र ने जन्म लिया है तो उसने लकड़ी की गाड़ी बच्चे को घुमाने के लिए उपहार के रूप में दिया। जनजातीय लड़कियां उस गाड़ी पर बालक भूपेन को घुमाती फिरतीं। एक दिन वे बालक को घुमाने ले गयीं तो शाम को लौटकर नहीं आयीं। रात हो गयी। नीलकान्त और शान्तिप्रिया चिन्तित और परेशान हो उठे। अगली सुबह लड़कियां बालक भूपेन को लेकर लौटीं। उन्होंने बताया कि बस्ती की औरतें उसे अपने पास रखना चाहती थीं। शान्तिप्रिया ने पूछा - ‘वह तो मां का दूध पीता है। दूध के बिना वह रात भर कैसे रह पाया ?' लड़कियों ने खिलखिलाकर उत्तर दिया - ‘बस्ती की कई औरतों ने भूपेन को अपना दूध पिलाया।'
भूपेन हजारिका की नानी ने एक दिन सपना देखा। नानी ने बताया - ‘मैंने एक सपना देखा है। मेरा पुत्र अनाथबन्धु दुबारा शान्ति के गर्भ में लौट आया है। सपने में उसने मुझसे कहा - मां, तू क्यों रो रही है, मैं फिर तुम्हारे परिवार में लौटकर आ रहा हूं। अपनी बहन के गर्भ में आ रहा हूं। नानी जब तक जीवित रहीं, वह भूपेन को अनाथबन्धु कहकर पुकारती रहीं।
पढ़ रहा हूं।
जवाब देंहटाएंमेरे प्रिय गायकों में से एक है भूपेन हजारिका!!
भूपेद हजारीका जन्म और बाकी विवरण जाना ज्ञान बडा , उनकी आवाज मे जादू के साथ साथ पवित्रता है।
जवाब देंहटाएंभूपेन जी के जादू से तो खैर कोई अछूता रह ही नहीं सकता, उनके जीवन के बारे में जान कर अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंरवि भाई बहुत ही स्तुत्य कार्य है ये । भूपेन दा के बारे में इतनी जानकारियां भला और कहां मिलेंगी । हम कोशिश करते हैं कि अपने ब्लॉग पर भूपेन दा की आवाज़ की श्रृंखला पेश करें तो एक जुगलबंदी हो जाये । शायद मुमकिन हो सके ।
जवाब देंहटाएंलीजिए जुगलबंदी शुरू हो गयी है । यहां पहुंचिए ।
जवाब देंहटाएंभूपेनदा आज नहीं रहे पर उनकी आवाज के जरिये वो सदा हमारे साथ है ...दिल में दुःख है कि अब कोई नयी रचना हमारे बीच उनकी कलम से या आवाज से नहीं आयेगी. उनके बारे में इस ब्लॉग से जानकर बहुत अलग अहसास हो रहा है..पहले क्यों ना पढ़ा ये सोच रही हूँ...खैर आज मिली ये भी अच्छा है.
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