- वीरेन्द्र जैन १ सूरज को क्यों ना दिखलायें मेघों की श्याम पताकाएं सारा जल सोख सोख लेता संग्रहकर्ताओं का नेता वितरण की व्यर्थ व्यवस्थाएं...
- वीरेन्द्र जैन
१
सूरज को क्यों ना दिखलायें
मेघों की श्याम पताकाएं
सारा जल सोख सोख लेता
संग्रहकर्ताओं का नेता
वितरण की व्यर्थ व्यवस्थाएं
सूरज को क्यों ना दिखलायें
मेघों की श्याम पताकाएं
व्यर्थ हुआ अब विरोध धीमा
मनमानी तोड़ गयी सीमा
गरजें ओ बिजलियां गिरायें
सूरज को क्यों ना दिखलायें
मेघों की श्याम पताकाएं
२
लकड़ी के दरवाजे जैसे
श्रीमान बिल्कुल ही वैसे
फूल गये बरसात में
नोटों की बरसात में
वोटों की बरसात में
कैसी बिडम्बना है भाई
सावन में आजादी आई
हरा हरा दिखता है अब तो
इनको अब हर हालात में
लकड़ी के दरवाजे जैसे
श्रीमान बिल्कुल ही वैसे
फूल गये बरसात में
जकड़न ढीली हो पायेगी
जब घर में गर्मी आयेगी
पूंजी ओ सामंती पल्ले
अभी जुडे हैं साथ मे
लकड़ी के दरवाजे जैसे
श्रीमान बिल्कुल ही वैसे
फूल गये बरसात में
इनको अभी खोलना चाहो
तो थोड़ा सा जोर लगाओ
लातों के गुरूदेव कहां
माना करते हैं बात में
लकड़ी के दरवाजे जैसे
श्रीमान बिल्कुल ही वैसे
फूल गये बरसात में
३
खेत की मुंडेर पर
कूड़े के ढेर पर
उग आती हरियाली
गांव गांव घेर कर
घरती से सोख सोख मौसमी नमी
हर कच्ची मिट्टी की देह में जमी
पक्के पथरीलों से
अपना मुंह फेर कर
उग आती हरियाली
गांव गांव घेर कर
मौसम संग लहराता प्यारा यह रूप
हर लेती जीवन की सच्ची कटु धूप
फिर सूखे जीवन को
वहीं पर बिखेर कर
उग आती हरियाली
गांव गांव घेर कर
४
धरती को जब जब प्यासी पाया है
अम्बर के मुंह में पानी आया है
लो, फिर नभ का मन काला हो आया
धुंधला फिर आज उजाला हो आया
कर रहा इशारे बिजली चमका कर
घरती का भी तो मन अकुलाया है
धरती को जब जब प्यासी पाया है
अम्बर के मुंह में पानी आया है
बूढे सूरज ने चेहरा छुपा लिया
घरती के मन में कूकी कोयलिया
पर्वत से बादल आकर टकराये
फिर धरती को रस से नहलाया है
धरती को जब जब प्यासी पाया है
अम्बर के मुंह में पानी आया है
५
जैसे भूले भटके कोई दोस्त पुराना घर आ जाये
आज तुम्हारी याद बहुत दिन बाद आयी है
फिर से पहुंच गयी है उम्र उसी मधुवन में
और कूकने लगी उसी स्वर में कोयलिया
फिर से चित्र बनाती हैं सारी स्मृतियां
कब तुमने मुस्काया, कब मुंह फेर हॅंस दिया
जैसे कोई सहेजा खत, बक्से में अकस्मात मिल जाये
आज तुम्हारी याद बहुत दिन बाद आयी है
फिर से उठी हिलोर अचानक पोर पोर में
फिर से कसकी मन की वो ही पीर पुरानी
फिर से वही कसमसाहट महसूसी मैंने
वक्त फिसलना, मुट्ठी सिर्फ बंधी रह जानी
जैसे बेमौसम, बेबादल सुबह सुबह बारिश हो जाये
आज तुम्हारी याद बहुत दिन बाद आयी है
६
बेसुध नाच रही जंगल की गाती हुयी हवा
अनजाने उद्गम से चलकर आती हुयी हवा
फूलों को झटके दे देना, बेलों को धक्के
यौवन की मादकता से इठलाती हुयी हवा
बूढे बरगद के आगे मुंह बिचका देती है
छोटे छोटे पौधों को सहलाती हुयी हवा
चट्टानों के सीने से जा लिपट लिपट जाती
सूखी डालों में घुसकर झुंझलाती हुयी हवा
सर्दी में भरती सिसकारी,फुफकारें गर्मी में
फागुन, सावन गाती और नहाती हुयी हवा
७
मौसम तो आने दो , कोयल खुद आवाज लगा देगी
बीज कहाँ हैं जड़ें कहाँ हैं, ये बरसात बता देगी
हुये भूमिगत बैठे दादुर बोल उठेंगे अभी अभी
सूखे मुरझाये लहरा कर डोल उठेंगे अभी अभी
हवा गुनगुनाकर शिखरों पर रक्तिम फूल खिला देगी
मौसम तो आने दो , कोयल खुद आवाज लगा देगी
बैठा ही देगी एक बार में सारे गर्द गुबारों को
जंगल के कोने कोने तक जब मारेगी बौछारों को
धरती पेड़ पहाड़ सभी को साथ साथ नहला देगी
मौसम तो आने दो , कोयल खुद आवाज लगा देगी
बीज कहाँ हैं जड़ें कहाँ हैं, ये बरसात बता देगी
***********
रचनाकार संपर्क:
वीरेन्द्र जैन
२/१ शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल म.प्र.
फोन ९४२५६७४६२९
१
सूरज को क्यों ना दिखलायें
मेघों की श्याम पताकाएं
सारा जल सोख सोख लेता
संग्रहकर्ताओं का नेता
वितरण की व्यर्थ व्यवस्थाएं
सूरज को क्यों ना दिखलायें
मेघों की श्याम पताकाएं
व्यर्थ हुआ अब विरोध धीमा
मनमानी तोड़ गयी सीमा
गरजें ओ बिजलियां गिरायें
सूरज को क्यों ना दिखलायें
मेघों की श्याम पताकाएं
२
लकड़ी के दरवाजे जैसे
श्रीमान बिल्कुल ही वैसे
फूल गये बरसात में
नोटों की बरसात में
वोटों की बरसात में
कैसी बिडम्बना है भाई
सावन में आजादी आई
हरा हरा दिखता है अब तो
इनको अब हर हालात में
लकड़ी के दरवाजे जैसे
श्रीमान बिल्कुल ही वैसे
फूल गये बरसात में
जकड़न ढीली हो पायेगी
जब घर में गर्मी आयेगी
पूंजी ओ सामंती पल्ले
अभी जुडे हैं साथ मे
लकड़ी के दरवाजे जैसे
श्रीमान बिल्कुल ही वैसे
फूल गये बरसात में
इनको अभी खोलना चाहो
तो थोड़ा सा जोर लगाओ
लातों के गुरूदेव कहां
माना करते हैं बात में
लकड़ी के दरवाजे जैसे
श्रीमान बिल्कुल ही वैसे
फूल गये बरसात में
३
खेत की मुंडेर पर
कूड़े के ढेर पर
उग आती हरियाली
गांव गांव घेर कर
घरती से सोख सोख मौसमी नमी
हर कच्ची मिट्टी की देह में जमी
पक्के पथरीलों से
अपना मुंह फेर कर
उग आती हरियाली
गांव गांव घेर कर
मौसम संग लहराता प्यारा यह रूप
हर लेती जीवन की सच्ची कटु धूप
फिर सूखे जीवन को
वहीं पर बिखेर कर
उग आती हरियाली
गांव गांव घेर कर
४
धरती को जब जब प्यासी पाया है
अम्बर के मुंह में पानी आया है
लो, फिर नभ का मन काला हो आया
धुंधला फिर आज उजाला हो आया
कर रहा इशारे बिजली चमका कर
घरती का भी तो मन अकुलाया है
धरती को जब जब प्यासी पाया है
अम्बर के मुंह में पानी आया है
बूढे सूरज ने चेहरा छुपा लिया
घरती के मन में कूकी कोयलिया
पर्वत से बादल आकर टकराये
फिर धरती को रस से नहलाया है
धरती को जब जब प्यासी पाया है
अम्बर के मुंह में पानी आया है
५
जैसे भूले भटके कोई दोस्त पुराना घर आ जाये
आज तुम्हारी याद बहुत दिन बाद आयी है
फिर से पहुंच गयी है उम्र उसी मधुवन में
और कूकने लगी उसी स्वर में कोयलिया
फिर से चित्र बनाती हैं सारी स्मृतियां
कब तुमने मुस्काया, कब मुंह फेर हॅंस दिया
जैसे कोई सहेजा खत, बक्से में अकस्मात मिल जाये
आज तुम्हारी याद बहुत दिन बाद आयी है
फिर से उठी हिलोर अचानक पोर पोर में
फिर से कसकी मन की वो ही पीर पुरानी
फिर से वही कसमसाहट महसूसी मैंने
वक्त फिसलना, मुट्ठी सिर्फ बंधी रह जानी
जैसे बेमौसम, बेबादल सुबह सुबह बारिश हो जाये
आज तुम्हारी याद बहुत दिन बाद आयी है
६
बेसुध नाच रही जंगल की गाती हुयी हवा
अनजाने उद्गम से चलकर आती हुयी हवा
फूलों को झटके दे देना, बेलों को धक्के
यौवन की मादकता से इठलाती हुयी हवा
बूढे बरगद के आगे मुंह बिचका देती है
छोटे छोटे पौधों को सहलाती हुयी हवा
चट्टानों के सीने से जा लिपट लिपट जाती
सूखी डालों में घुसकर झुंझलाती हुयी हवा
सर्दी में भरती सिसकारी,फुफकारें गर्मी में
फागुन, सावन गाती और नहाती हुयी हवा
७
मौसम तो आने दो , कोयल खुद आवाज लगा देगी
बीज कहाँ हैं जड़ें कहाँ हैं, ये बरसात बता देगी
हुये भूमिगत बैठे दादुर बोल उठेंगे अभी अभी
सूखे मुरझाये लहरा कर डोल उठेंगे अभी अभी
हवा गुनगुनाकर शिखरों पर रक्तिम फूल खिला देगी
मौसम तो आने दो , कोयल खुद आवाज लगा देगी
बैठा ही देगी एक बार में सारे गर्द गुबारों को
जंगल के कोने कोने तक जब मारेगी बौछारों को
धरती पेड़ पहाड़ सभी को साथ साथ नहला देगी
मौसम तो आने दो , कोयल खुद आवाज लगा देगी
बीज कहाँ हैं जड़ें कहाँ हैं, ये बरसात बता देगी
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रचनाकार संपर्क:
वीरेन्द्र जैन
२/१ शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल म.प्र.
फोन ९४२५६७४६२९
रवि जी,विरेन्द्र जी की रचनाओं को पढ़ कर मन आंन्दित हुआ।बरसात पर लिखी रचनाओ ने सच मुच भिगों दिया।बहुत बढिया प्रस्तुति है। बधाई।
जवाब देंहटाएंआपने तो भूली हुई बरखा की याद दिलादी
जवाब देंहटाएंthankzzzzzzzzzzzzzzzzzzzzzzzz.................
जवाब देंहटाएंyou have written very beautiful poema which have radiated me.
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